०६० वासुदेववाक्ये

भागसूचना

षष्टितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

वसुदेवजीके पूछनेपर श्रीकृष्णका उन्हें महाभारत-युद्धका वृत्तान्त संक्षेपसे सुनाना

मूलम् (वचनम्)

वसुदेव उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुतवानस्मि वार्ष्णेय संग्रामं परमाद्‌भुतम्।
नराणां वदतां तत्र कथं वा तेषु नित्यशः ॥ १ ॥

मूलम्

श्रुतवानस्मि वार्ष्णेय संग्रामं परमाद्‌भुतम्।
नराणां वदतां तत्र कथं वा तेषु नित्यशः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वसुदेवजीने पूछा— वृष्णिनन्दन! मैं प्रतिदिन बातचीतके प्रसंगमें लोगोंके मुँहसे सुनता आ रहा हूँ कि महाभारत-युद्ध बड़ा अद्‌भुत हुआ था। इसलिये पूछता हूँ कि कौरवों और पाण्डवोंमें किस तरह युद्ध हुआ?॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वं तु प्रत्यक्षदर्शी च रूपज्ञश्च महाभुज।
तस्मात् प्रब्रूहि संग्रामं याथातथ्येन मेऽनघ ॥ २ ॥

मूलम्

त्वं तु प्रत्यक्षदर्शी च रूपज्ञश्च महाभुज।
तस्मात् प्रब्रूहि संग्रामं याथातथ्येन मेऽनघ ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबाहो! तुम तो उस युद्धके प्रत्यक्षदर्शी हो और उसके स्वरूपको भी भलीभाँति जानते होः अतः अनघ! मुझसे उस युद्धका यथार्थ वर्णन करो॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा तदभवद् युद्धं पाण्डवानां महात्मनाम्।
भीष्मकर्णकृपद्रोणशल्यादिभिरनुत्तमम् ॥ ३ ॥

मूलम्

यथा तदभवद् युद्धं पाण्डवानां महात्मनाम्।
भीष्मकर्णकृपद्रोणशल्यादिभिरनुत्तमम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महात्मा पाण्डवोंका भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य और शल्य आदिके साथ जो परम उत्तम युद्ध हुआ था, वह किस तरह हुआ?॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्येषां क्षत्रियाणां च कृतास्त्राणामनेकशः।
नानावेषाकृतिमतां नानादेशनिवासिनाम् ॥ ४ ॥

मूलम्

अन्येषां क्षत्रियाणां च कृतास्त्राणामनेकशः।
नानावेषाकृतिमतां नानादेशनिवासिनाम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरे-दूसरे देशोंमें निवास करनेवाले, भाँति-भाँतिकी वेशभूषा और आकृतिवाले जो अस्त्र-विद्यामें निपुण बहुसंख्यक क्षत्रिय वीर थे, उन्होंने भी किस प्रकार युद्ध किया था?॥४॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्युक्तः पुण्डरीकाक्षः पित्रा मातुस्तदन्तिके।
शशंस कुरुवीराणां संग्रामे निधनं यथा ॥ ५ ॥

मूलम्

इत्युक्तः पुण्डरीकाक्षः पित्रा मातुस्तदन्तिके।
शशंस कुरुवीराणां संग्रामे निधनं यथा ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— माताके निकट पिताके इस प्रकार पूछनेपर कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण कौरव वीरोंके संग्राममें मारे जानेका वह प्रसंग यथावत् रूपसे सुनाने लगे॥५॥

मूलम् (वचनम्)

वासुदेव उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अत्यद्‌भुतानि कर्माणि क्षत्रियाणां महात्मनाम्।
बहुलत्वान्न संख्यातुं शक्यान्यब्दशतैरपि ॥ ६ ॥

मूलम्

अत्यद्‌भुतानि कर्माणि क्षत्रियाणां महात्मनाम्।
बहुलत्वान्न संख्यातुं शक्यान्यब्दशतैरपि ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्णने कहा— पिताजी! महाभारत-युद्धमें काममें आनेवाले मनस्वी क्षत्रिय वीरोंके कर्म बड़े अद्‌भुत हैं। वे इतने अधिक हैं कि यदि विस्तारके साथ उनका वर्णन किया जाय तो सौ वर्षोंमें भी उनकी समाप्ति नहीं हो सकती॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्राधान्यतस्तु गदतः समासेनैव मे शृणु।
कर्माणि पृथिवीशानां यथावदमरद्युते ॥ ७ ॥

मूलम्

प्राधान्यतस्तु गदतः समासेनैव मे शृणु।
कर्माणि पृथिवीशानां यथावदमरद्युते ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अतः देवताओंके समान तेजस्वी तात! मैं मुख्य-मुख्य घटनाओंको ही संक्षेपसे सुना रहा हूँ, आप उन भूपतियोंके कर्म यथावत् रूपसे सुनिये॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मः सेनापतिरभूदेकादशचमूपतिः ।
कौरव्यः कौरवेन्द्राणां देवानामिव वासवः ॥ ८ ॥

मूलम्

भीष्मः सेनापतिरभूदेकादशचमूपतिः ।
कौरव्यः कौरवेन्द्राणां देवानामिव वासवः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे इन्द्र देवताओंकी सेनाके स्वामी हैं, उसी प्रकार कुरुकुलतिलक भीष्म भी श्रेष्ठ कौरववीरोंके सेनापति बनाये गये थे। वे ग्यारह अक्षौहिणी सेनाके संरक्षक थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डी पाण्डुपुत्राणां नेता सप्तचमूपतिः।
बभूव रक्षितो धीमान् श्रीमता सव्यसाचिना ॥ ९ ॥

मूलम्

शिखण्डी पाण्डुपुत्राणां नेता सप्तचमूपतिः।
बभूव रक्षितो धीमान् श्रीमता सव्यसाचिना ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंके सेनानायक शिखण्डी थे, जो सात अक्षौहिणी सेनाओंका संचालन करते थे। बुद्धिमान् शिखण्डी श्रीमान् सव्यसाची अर्जुनके द्वारा सुरक्षित थे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां तदभवद् युद्धं दशाहानि महात्मनाम्।
कुरूणां पाण्डवानां च सुमहल्लोमहर्षणम् ॥ १० ॥

मूलम्

तेषां तदभवद् युद्धं दशाहानि महात्मनाम्।
कुरूणां पाण्डवानां च सुमहल्लोमहर्षणम् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन महामनस्वी कौरवों और पाण्डवोंमें दस दिनोंतक महान् रोमांचकारी युद्ध हुआ॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शिखण्डी गाङ्गेयं युध्यमानं महाहवे।
जघान बहुभिर्बाणैः सह गाण्डीवधन्वना ॥ ११ ॥

मूलम्

ततः शिखण्डी गाङ्गेयं युध्यमानं महाहवे।
जघान बहुभिर्बाणैः सह गाण्डीवधन्वना ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर दसवें दिन शिखण्डीने महासमरमें जूझते हुए गंगानन्दन भीष्मको गाण्डीवधारी अर्जुनकी सहायतासे बहुसंख्यक बाणोंद्वारा बहुत घायल कर दिया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अकरोत् स ततः कालं शरतल्पगतो मुनिः।
अयनं दक्षिणं हित्वा सम्प्राप्ते चोत्तरायणे ॥ १२ ॥

मूलम्

अकरोत् स ततः कालं शरतल्पगतो मुनिः।
अयनं दक्षिणं हित्वा सम्प्राप्ते चोत्तरायणे ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् भीष्मजी बाणशय्यापर पड़ गये। जबतक दक्षिणायन रहा है, वे मुनिव्रतका पालन करते हुए शरशय्यापर सोते रहे हैं। दक्षिणायन समाप्त होकर उत्तरायणके आनेपर ही उन्होंने मृत्यु स्वीकार की है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सेनापतिरभूद् द्रोणोऽस्त्रविदुषां वरः।
प्रवीरः कौरवेन्द्रस्य काव्यो दैत्यपतेरिव ॥ १३ ॥

मूलम्

ततः सेनापतिरभूद् द्रोणोऽस्त्रविदुषां वरः।
प्रवीरः कौरवेन्द्रस्य काव्यो दैत्यपतेरिव ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर अस्त्रवेत्ताओंमें श्रेष्ठ आचार्य द्रोण कौरवपक्षके सेनापति बनाये गये। वे कौरवराजकी सेनाके प्रमुख वीर थे, मानो दैत्यराज बलिकी सेनाके प्रधान संरक्षक शुक्राचार्य हों॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अक्षौहिणीभिः शिष्टाभिर्नवभिर्द्विजसत्तमः ।
संवृतः समरश्लाघी गुप्तः कृपवृषादिभिः ॥ १४ ॥

मूलम्

अक्षौहिणीभिः शिष्टाभिर्नवभिर्द्विजसत्तमः ।
संवृतः समरश्लाघी गुप्तः कृपवृषादिभिः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय मरनेसे बची हुई नौ अक्षौहिणी सेना उन्हें सब ओरसे घेरकर खड़ी थी। वे स्वयं तो युद्धका हौसला रखते ही थे, कृपाचार्य और कर्ण भी सदा उनकी रक्षा करते रहते थे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नस्त्वभून्नेता पाण्डवानां महास्त्रवित् ।
गुप्तो भीमेन मेधावी मित्रेण वरुणो यथा ॥ १५ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नस्त्वभून्नेता पाण्डवानां महास्त्रवित् ।
गुप्तो भीमेन मेधावी मित्रेण वरुणो यथा ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इधर महान् अस्त्रवेत्ता धृष्टद्युम्न पाण्डवसेनाके अधिनायक हुए। जैसे मित्र वरुणकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन मेधावी धृष्टद्युम्नकी रक्षा करने लगे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स च सेनापरिवृतो द्रोणप्रेप्सुर्महामनाः।
पितुर्निकारान् संस्मृत्य रणे कर्माकरोन्महत् ॥ १६ ॥

मूलम्

स च सेनापरिवृतो द्रोणप्रेप्सुर्महामनाः।
पितुर्निकारान् संस्मृत्य रणे कर्माकरोन्महत् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवसेनासे घिरे हुए महामनस्वी वीर धृष्टद्युम्नने द्रोणके द्वारा अपने पिताके अपमानका स्मरण करके उन्हें मार डालनेके लिये युद्धमें बड़ा भारी पराक्रम दिखाया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्ते पृथिवीपाला द्रोणपार्षतसंगरे ।
नानादिगागता वीराः प्रायशो निधनं गताः ॥ १७ ॥

मूलम्

तस्मिंस्ते पृथिवीपाला द्रोणपार्षतसंगरे ।
नानादिगागता वीराः प्रायशो निधनं गताः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न और द्रोणके उस भीषण संग्राममें नाना दिशाओंसे आये हुए भूपाल अधिक संख्यामें मारे गये॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिनानि पञ्च तद् युद्धमभूत् परमदारुणम्।
ततो द्रोणः परिश्रान्तो धृष्टद्युम्नवशं गतः ॥ १८ ॥

मूलम्

दिनानि पञ्च तद् युद्धमभूत् परमदारुणम्।
ततो द्रोणः परिश्रान्तो धृष्टद्युम्नवशं गतः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंका वह परम दारुण युद्ध पाँच दिनोंतक चलता रहा। अन्तमें द्रोणाचार्य बहुत थक गये और धृष्टद्युम्नके वशमें पड़कर मारे गये॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सेनापतिरभूत् कर्णो दौर्योधने बले।
अक्षौहिणीभिः शिष्टाभिर्वृतः पञ्चभिराहवे ॥ १९ ॥

मूलम्

ततः सेनापतिरभूत् कर्णो दौर्योधने बले।
अक्षौहिणीभिः शिष्टाभिर्वृतः पञ्चभिराहवे ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् दुर्योधनकी सेनामें कर्णको सेनापति बनाया गया, जो मरनेसे बची हुए पाँच अक्षौहिणी सेनाओंसे घिरकर युद्धके मैदानमें खड़ा था॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिस्रस्तु पाण्डुपुत्राणां चम्वो बीभत्सुपालिताः।
हतप्रवीरभूयिष्ठा बभूवुः समवस्थिताः ॥ २० ॥

मूलम्

तिस्रस्तु पाण्डुपुत्राणां चम्वो बीभत्सुपालिताः।
हतप्रवीरभूयिष्ठा बभूवुः समवस्थिताः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय पाण्डवोंके पास तीन अक्षौहिणी सेनाएँ शेष थीं, जिनकी रक्षा अर्जुन कर रहे थे। उनमें बहुत-से प्रमुख वीर मारे गये थे; फिर भी वे युद्धके लिये डटी हुई थीं॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पार्थं समासाद्य पतङ्ग इव पावकम्।
पञ्चत्वमगमत् सौतिर्द्वितीयेऽहनि दारुणः ॥ २१ ॥

मूलम्

ततः पार्थं समासाद्य पतङ्ग इव पावकम्।
पञ्चत्वमगमत् सौतिर्द्वितीयेऽहनि दारुणः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कर्ण दो दिनतक युद्ध करता रहा। वह बड़े क्रूर स्वभावका था। जैसे पतंग जलती आगमें कूदकर जल मरता है, उसी प्रकार वह दूसरे दिनके युद्धमें अर्जुनसे भिड़कर मारा गया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हते कर्णे तु कौरव्या निरुत्साहा हतौजसः।
अक्षौहिणीभिस्तिसृभिर्मद्रेशं पर्यवारयन् ॥ २२ ॥

मूलम्

हते कर्णे तु कौरव्या निरुत्साहा हतौजसः।
अक्षौहिणीभिस्तिसृभिर्मद्रेशं पर्यवारयन् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कर्णके मारे जानेपर कौरव हतोत्साह होकर अपनी शक्ति खो बैठे और मद्रराज शल्यको सेनापति बनाकर उन्हें तीन अक्षौहिणी सेनाओंसे सुरक्षित रखकर उन्होंने युद्ध आरम्भ किया॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतवाहनभूयिष्ठाः पाण्डवाऽपि युधिष्ठिरम् ।
अक्षौहिण्या निरुत्साहाः शिष्टया पर्यवारयन् ॥ २३ ॥

मूलम्

हतवाहनभूयिष्ठाः पाण्डवाऽपि युधिष्ठिरम् ।
अक्षौहिण्या निरुत्साहाः शिष्टया पर्यवारयन् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंके भी बहुत-से वाहन नष्ट हो गये थे। उनमें भी अब युद्धविषयक उत्साह नहीं रह गया था तो भी वे शेष बची हुई एक अक्षौहिणी सेनासे घिरे हुए युधिष्ठिरको आगे करके शल्यका सामना करनेके लिये बढ़े॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवधीन्मद्रराजानं कुरुराजो युधिष्ठिरः ।
तस्मिंस्तदार्धदिवसे कृत्वा कर्म सुदुष्करम् ॥ २४ ॥

मूलम्

अवधीन्मद्रराजानं कुरुराजो युधिष्ठिरः ।
तस्मिंस्तदार्धदिवसे कृत्वा कर्म सुदुष्करम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुराज युधिष्ठिरने अत्यन्त दुष्कर पराक्रम करके दोपहर होते-होते मद्रराज शल्यको मार गिराया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हते शल्ये तु शकुनिं सहदेवो महामनाः।
आहर्तारं कलेस्तस्य जघानामितविक्रमः ॥ २५ ॥

मूलम्

हते शल्ये तु शकुनिं सहदेवो महामनाः।
आहर्तारं कलेस्तस्य जघानामितविक्रमः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शल्यके मारे जानेपर अमित पराक्रमी महामना सहदेवने कलहकी नींव डालनेवाले शकुनिको मार दिया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निहते शकुनौ राजा धार्तराष्ट्रः सुदुर्मनाः।
अपाक्रामद् गदापाणिर्हतभूयिष्ठसैनिकः ॥ २६ ॥

मूलम्

निहते शकुनौ राजा धार्तराष्ट्रः सुदुर्मनाः।
अपाक्रामद् गदापाणिर्हतभूयिष्ठसैनिकः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शकुनिकी मृत्यु हो जानेपर राजा दुर्योधनके मनमें बड़ा दुःख हुआ। उसके बहुत-से सैनिक युद्धमें मार डाले गये थे। इसलिये वह अकेला ही हाथमें गदा लेकर रणभूमिसे भाग निकला॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमन्वधावत् संक्रुद्धो भीमसेनः प्रतापवान्।
ह्रदे द्वैपायने चापि सलिलस्थं ददर्श तम् ॥ २७ ॥

मूलम्

तमन्वधावत् संक्रुद्धो भीमसेनः प्रतापवान्।
ह्रदे द्वैपायने चापि सलिलस्थं ददर्श तम् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इधरसे अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए प्रतापी भीमसेनने उसका पीछा किया और द्वैपायन नामक सरोवरमें पानीके भीतर छिपे हुए दुर्योधनका पता लगा लिया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतशिष्टेन सैन्येन समन्तात् परिवार्य तम्।
अथोपविविशुर्हृष्टा ह्रदस्थं पञ्च पाण्डवाः ॥ २८ ॥

मूलम्

हतशिष्टेन सैन्येन समन्तात् परिवार्य तम्।
अथोपविविशुर्हृष्टा ह्रदस्थं पञ्च पाण्डवाः ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर हर्षमें भरे हुए पाँचों पाण्डव मरनेसे बची हुई सेनाके द्वारा उसपर चारों ओरसे घेरा डालकर तालाबमें बैठे हुए दुर्योधनके पास जा पहुँचे॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विगाह्य सलिलं त्वाशु वाग्बाणैर्भृशविक्षतः।
उत्थाय स गदापाणिर्युद्धाय समुपस्थितः ॥ २९ ॥

मूलम्

विगाह्य सलिलं त्वाशु वाग्बाणैर्भृशविक्षतः।
उत्थाय स गदापाणिर्युद्धाय समुपस्थितः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भीमसेनके वाग्बाणोंसे अत्यन्त घायल होकर दुर्योधन तुरंत पानीसे बाहर निकला और हाथमें गदा ले युद्धके लिये उद्यत हो पाण्डवोंके पास आ गया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः स निहतो राजा धार्तराष्ट्रो महारणे।
भीमसेनेन विक्रम्य पश्यतां पृथिवीक्षिताम् ॥ ३० ॥

मूलम्

ततः स निहतो राजा धार्तराष्ट्रो महारणे।
भीमसेनेन विक्रम्य पश्यतां पृथिवीक्षिताम् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् उस महासमरमें सब राजाओंके देखते-देखते भीमसेनने पराक्रम करके धृतराष्ट्रपुत्र राजा दुर्योधनको मार डाला॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तत् पाण्डवं सैन्यं प्रसुप्तं शिबिरे निशि।
निहतं द्रोणपुत्रेण पितुर्वधममृष्यता ॥ ३१ ॥

मूलम्

ततस्तत् पाण्डवं सैन्यं प्रसुप्तं शिबिरे निशि।
निहतं द्रोणपुत्रेण पितुर्वधममृष्यता ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद रातके समय जब पाण्डवोंकी सेना अपनी छावनीमें निश्चिन्त सो रही थी, उसी समय द्रोणपुत्र अश्वत्थामाने अपने पिताके वधको न सह सकनेके कारण आक्रमण किया और सबको मार गिराया॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतपुत्रा हतबला हतमित्रा मया सह।
युयुधानसहायेन पञ्च शिष्टास्तु पाण्डवाः ॥ ३२ ॥

मूलम्

हतपुत्रा हतबला हतमित्रा मया सह।
युयुधानसहायेन पञ्च शिष्टास्तु पाण्डवाः ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय पाण्डवोंके पुत्र, मित्र और सैनिक सब मारे गये। केवल मेरे और सात्यकिके साथ पाँचों पाण्डव शेष रह गये हैं॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहैव कृपभोजाभ्यां द्रौणिर्युद्धादमुच्यत ।
युयुत्सुश्चापि कौरव्यो मुक्तःपाण्डवसंश्रयात् ॥ ३३ ॥

मूलम्

सहैव कृपभोजाभ्यां द्रौणिर्युद्धादमुच्यत ।
युयुत्सुश्चापि कौरव्यो मुक्तःपाण्डवसंश्रयात् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौरवोंके पक्षमें कृपाचार्य और कृतवर्माके साथ द्रोणपुत्र अश्वत्थामा युद्धसे जीवित बचा है। कुरुवंशी युयुत्सु भी पाण्डवोंका आश्रय लेनेके कारण बच गये हैं॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निहते कौरवेन्द्रे तु सानुबन्धे सुयोधने।
विदुरः संजयश्चैव धर्मराजमुपस्थितौ ॥ ३४ ॥

मूलम्

निहते कौरवेन्द्रे तु सानुबन्धे सुयोधने।
विदुरः संजयश्चैव धर्मराजमुपस्थितौ ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बन्धु-बान्धवोंसहित कौरवराज दुर्योधनके मारे जानेपर विदुर और संजय धर्मराज युधिष्ठिरके आश्रयमें आ गये हैं॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं तदभवद् युद्धमहान्यष्टादश प्रभो।
यत्र ते पृथिवीपाला निहताः स्वर्गमावसन् ॥ ३५ ॥

मूलम्

एवं तदभवद् युद्धमहान्यष्टादश प्रभो।
यत्र ते पृथिवीपाला निहताः स्वर्गमावसन् ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! इस प्रकार अठारह दिनोंतक वह युद्ध हुआ है। उसमें जो राजा मारे गये हैं, वे स्वर्गलोकमें जा बसे हैं॥३५॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृण्वतां तु महाराज कथां तां लोमहर्षणाम्।
दुःखशोकपरिक्लेशा वृष्णीनामभवंस्तदा ॥ ३६ ॥

मूलम्

शृण्वतां तु महाराज कथां तां लोमहर्षणाम्।
दुःखशोकपरिक्लेशा वृष्णीनामभवंस्तदा ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— महाराज! रोंगटे खड़े कर देनेवाली उस युद्ध-वार्ताको सुनकर वृष्णिवंशी लोग दुःख-शोकसे व्याकुल हो गये॥३६॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि वासुदेववाक्ये षष्टितमोऽध्यायः ॥ ६० ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें श्रीकृष्णद्वारा युद्धवृत्तान्तका कथनविषयक साठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥६०॥