भागसूचना
त्रिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अलर्कके ध्यानयोगका उदाहरण देकर पितामहोंका परशुरामजीको समझाना और परशुरामजीका तपस्याके द्वारा सिद्धि प्राप्त करना
मूलम् (वचनम्)
पितर ऊचुः
विश्वास-प्रस्तुतिः
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम् ।
श्रुत्वा च तत् तथा कार्यं भवता द्विजसत्तम ॥ १ ॥
मूलम्
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम् ।
श्रुत्वा च तत् तथा कार्यं भवता द्विजसत्तम ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पितरोंने कहा— ब्राह्मणश्रेष्ठ! इसी विषयमें एक प्राचीन इतिहासका उदाहरण दिया जाता है, उसे सुनकर तुम्हें वैसा ही आचरण करना चाहिये॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलर्को नाम राजर्षिरभवत् सुमहातपाः।
धर्मज्ञः सत्यवादी च महात्मा सुदृढव्रतः ॥ २ ॥
मूलम्
अलर्को नाम राजर्षिरभवत् सुमहातपाः।
धर्मज्ञः सत्यवादी च महात्मा सुदृढव्रतः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पहलेकी बात है, अलर्क नामसे प्रसिद्ध एक राजर्षि थे, जो बड़े ही तपस्वी, धर्मज्ञ, सत्यवादी, महात्मा और दृढ़प्रतिज्ञ थे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ससागरान्तां धनुषा विनिर्जित्य महीमिमाम्।
कृत्वा सुदुष्करं कर्म मनः सूक्ष्मे समादधे ॥ ३ ॥
मूलम्
ससागरान्तां धनुषा विनिर्जित्य महीमिमाम्।
कृत्वा सुदुष्करं कर्म मनः सूक्ष्मे समादधे ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने अपने धनुषकी सहायतासे समुद्रपर्यन्त इस पृथ्वीको जीतकर अत्यन्त दुष्कर पराक्रम कर दिखाया था। इसके पश्चात् उनका मन सूक्ष्मतत्त्वकी खोजमें लगा॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थितस्य वृक्षमूलेषु तस्य चिन्ता बभूव ह।
उत्सृज्य सुमहत्कर्म सूक्ष्मं प्रति महामते ॥ ४ ॥
मूलम्
स्थितस्य वृक्षमूलेषु तस्य चिन्ता बभूव ह।
उत्सृज्य सुमहत्कर्म सूक्ष्मं प्रति महामते ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महामते! वे बड़े-बड़े कर्मोंका आरम्भ त्यागकर एक वृक्षके नीचे जा बैठे और सूक्ष्मतत्त्वकी खोजके लिये इस प्रकार चिन्ता करने लगे॥४॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मनसो मे बलं जातं मनो जित्वा ध्रुवो जयः।
अन्यत्र बाणान् धास्यामि शत्रुभिः परिवारितः ॥ ५ ॥
मूलम्
मनसो मे बलं जातं मनो जित्वा ध्रुवो जयः।
अन्यत्र बाणान् धास्यामि शत्रुभिः परिवारितः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्क कहने लगे— मुझे मनसे ही बल प्राप्त हुआ है, अतः वही सबसे प्रबल है। मनको जीत लेनेपर ही मुझे स्थायी विजय प्राप्त हो सकती है। मैं इन्द्रियरूपी शत्रुओंसे घिरा हुआ हूँ, इसलिये बाहरके शत्रुओंपर हमला न करके इन भीतरी शत्रुओंको ही अपने बाणोंका निशाना बनाऊँगा॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदिदं चापलात् कर्म सर्वान् मर्त्यांश्चिकीर्षति।
मनः प्रति सुतीक्ष्णाग्रानहं मोक्ष्यामि सायकान् ॥ ६ ॥
मूलम्
यदिदं चापलात् कर्म सर्वान् मर्त्यांश्चिकीर्षति।
मनः प्रति सुतीक्ष्णाग्रानहं मोक्ष्यामि सायकान् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह मन चंचलताके कारण सभी मनुष्योंसे तरह-तरहके कर्म कराता है, अतः अब मैं मनपर ही तीखे बाणोंका प्रहार करूँगा॥६॥
मूलम् (वचनम्)
मन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ ७ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ ७ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
अनुवाद (हिन्दी)
मन बोला— अलर्क! तुम्हारे ये बाण मुझे किसी तरह नहीं बींध सकते। यदि इन्हें चलाओगे तो ये तुम्हारे ही मर्मस्थानोंको चीर डालेंगे और मर्मस्थानोंके चीरे जानेपर तुम्हारी ही मृत्यु होगी; अतः तुम अन्य प्रकारके बाणोंका विचार करो, जिनसे तुम मुझे मार सकोगे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ ८ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सुनकर अलर्कने थोड़ी देरतक विचार किया, इसके बाद वे (नासिकाको लक्ष्य करके) बोले॥८॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
आघ्राय सुबहून् गन्धांस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माद् घ्राणं प्रति शरान् प्रतिमोक्ष्याम्यहं शितान् ॥ ९ ॥
मूलम्
आघ्राय सुबहून् गन्धांस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माद् घ्राणं प्रति शरान् प्रतिमोक्ष्याम्यहं शितान् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्कने कहा— मेरी यह नासिका अनेक प्रकारकी सुगन्धियोंका अनुभव करके भी फिर उन्हींकी इच्छा करती है, इसलिये इन तीखे बाणोंको मैं इस नासिकापर ही छोड़ूँगा॥९॥
मूलम् (वचनम्)
घ्राण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ १० ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ १० ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
अनुवाद (हिन्दी)
नासिका बोली— अलर्क! ये बाण मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इनसे तो तुम्हारे ही मर्म विदीर्ण होंगे और मर्मस्थानोंका भेदन हो जानेपर तुम्हीं मरोगे; अतः तुम दूसरे प्रकारके बाणोंका अनुसंधान करो, जिससे तुम मुझे मार सकोगे॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ ११ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नासिकाका यह कथन सुनकर अलर्क कुछ देर विचार करनेके पश्चात् (जिह्वाको लक्ष्य करके) कहने लगे॥११॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इयं स्वादून् रसान् भुक्त्वा तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माज्जिह्वां प्रति शरान् प्रतिमोक्ष्याम्यहं शितान् ॥ १२ ॥
मूलम्
इयं स्वादून् रसान् भुक्त्वा तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माज्जिह्वां प्रति शरान् प्रतिमोक्ष्याम्यहं शितान् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्कने कहा— यह रसना स्वादिष्ट रसोंका उपभोग करके फिर उन्हें ही पाना चाहती है। इसलिये अब इसीके ऊपर अपने तीखे सायकोंका प्रहार करूँगा॥१२॥
मूलम् (वचनम्)
जिह्वोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ १३ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ १३ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
अनुवाद (हिन्दी)
जिह्वा बोली— अलर्क! ये बाण मुझे किसी प्रकार नहीं छेद सकते। ये तो तुम्हारे ही मर्मस्थानोंको बींधेंगे। मर्मस्थानोंके बिंध जानेपर तुम्हीं मरोगे। अतः दूसरे प्रकारके बाणोंका प्रबन्ध सोचो, जिनकी सहायतासे तुम मुझे मार सकोगे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ १४ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सुनकर अलर्क कुछ देरतक सोचते-विचारते रहे, फिर (त्वचापर कुपित होकर) बोले॥१४॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्पृष्ट्वा त्वग्विविधान् स्पर्शांस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्मात् त्वचं पाटयिष्ये विविधैः कङ्कपत्रिभिः ॥ १५ ॥
मूलम्
स्पृष्ट्वा त्वग्विविधान् स्पर्शांस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्मात् त्वचं पाटयिष्ये विविधैः कङ्कपत्रिभिः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्कने कहा— यह त्वचा नाना प्रकारके स्पर्शोंका अनुभव करके फिर उन्हींकी अभिलाषा किया करती है, अतः नाना प्रकारके बाणोंसे मारकर इस त्वचाको ही विदीर्ण कर डालूँगा॥१५॥
मूलम् (वचनम्)
त्वगुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ १६ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ १६ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
अनुवाद (हिन्दी)
त्वचा बोली— अलर्क! ये बाण किसी प्रकार मुझे अपना निशाना नहीं बना सकते। ये तो तुम्हारा ही मर्म विदीर्ण करेंगे और मर्म विदीर्ण होनेपर तुम्हीं मौतके मुखमें पड़ोगे। मुझे मारनेके लिये तो दूसरी तरहके बाणोंकी व्यवस्था सोचो, जिनसे तुम मुझे मार सकोगे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ १७ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
त्वचाकी बात सुनकर अलर्कने थोड़ी देरतक विचार किया, फिर (श्रोत्रको सुनाते हुए) कहा—॥१७॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुत्वा तु विविधान् शब्दांस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माच्छ्रोत्रं प्रति शरान् प्रतिमुञ्चाम्यहं शितान् ॥ १८ ॥
मूलम्
श्रुत्वा तु विविधान् शब्दांस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माच्छ्रोत्रं प्रति शरान् प्रतिमुञ्चाम्यहं शितान् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्क बोले— यह श्रोत्र बारंबार नाना प्रकारके शब्दोंको सुनकर उन्हींकी अभिलाषा करता है, इसलिये मैं इन तीखे बाणोंको श्रोत्र-इन्द्रियके ऊपर चलाऊँगा॥१८॥
मूलम् (वचनम्)
श्रोत्रमुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति ततो हास्यसि जीवितम् ॥ १९ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति ततो हास्यसि जीवितम् ॥ १९ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
अनुवाद (हिन्दी)
श्रोत्रने कहा— अलर्क! ये बाण मुझे किसी प्रकार नहीं छेद सकते। ये तुम्हारे ही मर्मस्थानोंको विदीर्ण करेंगे। तब तुम जीवनसे हाथ धो बैठोगे। अतः तुम अन्य प्रकारके बाणोंकी खोज करो, जिनसे मुझे मार सकोगे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ २० ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सुनकर अलर्कने कुछ सोच-विचारकर (नेत्रको सुनाते हुए) कहा॥२०॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा रूपाणि बहुशस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माच्चक्षुर्हनिष्यामि निशितैः सायकैरहम् ॥ २१ ॥
मूलम्
दृष्ट्वा रूपाणि बहुशस्तानेव प्रतिगृध्यति।
तस्माच्चक्षुर्हनिष्यामि निशितैः सायकैरहम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्क बोले— यह आँख भी अनेकों बार विभिन्न रूपोंका दर्शन करके पुनः उन्हींको देखना चाहती है। अतः मैं इसे अपने तीखे तीरोंसे मार डालूँगा॥२१॥
मूलम् (वचनम्)
चक्षुरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ २२ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि ॥ २२ ॥
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि।
अनुवाद (हिन्दी)
आँखने कहा— अलर्क! ये बाण मुझे किसी प्रकार नहीं छेद सकते। ये तुम्हारे ही मर्मस्थानोंको बींध डालेंगे और मर्म विदीर्ण हो जानेपर तुम्हें ही जीवनसे हाथ धोना पड़ेगा। अतः दूसरे प्रकारके सायकोंका प्रबन्ध सोचो, जिनकी सहायतासे तुम मुझे मार सकोगे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ २३ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा स विचिन्त्याथ ततो वचनमब्रवीत् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सुनकर अलर्कने कुछ देर विचार करनेके बाद (बुद्धिको लक्ष्य करके) यह बात कही॥२३॥
मूलम् (वचनम्)
अलर्क उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इयं निष्ठा बहुविधा प्रज्ञया त्वध्यवस्यति।
तस्माद् बुद्धिं प्रति शरान् प्रतिमोक्ष्याम्यहं शितान् ॥ २४ ॥
मूलम्
इयं निष्ठा बहुविधा प्रज्ञया त्वध्यवस्यति।
तस्माद् बुद्धिं प्रति शरान् प्रतिमोक्ष्याम्यहं शितान् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलर्कने कहा— यह बुद्धि अपनी ज्ञानशक्तिसे अनेक प्रकारका निश्चय करती है, अतः इस बुद्धिपर ही अपने तीक्ष्ण सायकोंका प्रहार करूँगा॥२४॥
मूलम् (वचनम्)
बुद्धिरुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि।
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि ॥ २५ ॥
मूलम्
नेमे बाणास्तरिष्यन्ति मामलर्क कथंचन।
तवैव मर्म भेत्स्यन्ति भिन्नमर्मा मरिष्यसि।
अन्यान् बाणान् समीक्षस्व यैस्त्वं मां सूदयिष्यसि ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बुद्धि बोली— अलर्क! ये बाण मेरा किसी प्रकार भी स्पर्श नहीं कर सकते। इनसे तुम्हारा ही मर्म विदीर्ण होगा और मर्म विदीर्ण होनेपर तुम्हीं मरोगे। जिनकी सहायतासे मुझे मार सकोगे, वे बाण तो कोई और ही हैं। उनके विषयमें विचार करो॥२५॥
मूलम् (वचनम्)
ब्राह्मण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽलर्कस्तपो घोरं तत्रैवास्थाय दुष्करम्।
नाध्यगच्छत् परं शक्त्या बाणमेतेषु सप्तसु ॥ २६ ॥
मूलम्
ततोऽलर्कस्तपो घोरं तत्रैवास्थाय दुष्करम्।
नाध्यगच्छत् परं शक्त्या बाणमेतेषु सप्तसु ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्राह्मणने कहा— देवि! तदनन्तर अलर्कने उसी पेड़के नीचे बैठकर घोर तपस्या की, किंतु उससे मन-बुद्धिसहित पाँचों इन्द्रियोंको मारनेयोग्य किसी उत्तम बाणका पता न चला॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुसमाहितचेतास्तु स ततोऽचिन्तयत् प्रभुः।
स विचिन्त्य चिरं कालमलर्को द्विजसत्तम ॥ २७ ॥
नाध्यगच्छत् परं श्रेयो योगान्मतिमतां वरः।
मूलम्
सुसमाहितचेतास्तु स ततोऽचिन्तयत् प्रभुः।
स विचिन्त्य चिरं कालमलर्को द्विजसत्तम ॥ २७ ॥
नाध्यगच्छत् परं श्रेयो योगान्मतिमतां वरः।
अनुवाद (हिन्दी)
तब वे सामर्थ्यशाली राजा एकाग्रचित्त होकर विचार करने लगे। विप्रवर! बहुत दिनोंतक निरन्तर सोचने-विचारनेके बाद बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ राजा अलर्कको योगसे बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी साधन नहीं प्रतीत हुआ॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स एकाग्रं मनः कृत्वा निश्चलो योगमास्थितः ॥ २८ ॥
इन्द्रियाणि जघानाशु बाणेनैकेन वीर्यवान्।
योगेनात्मानमाविश्य सिद्धिं परमिकां गतः ॥ २९ ॥
मूलम्
स एकाग्रं मनः कृत्वा निश्चलो योगमास्थितः ॥ २८ ॥
इन्द्रियाणि जघानाशु बाणेनैकेन वीर्यवान्।
योगेनात्मानमाविश्य सिद्धिं परमिकां गतः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे मनको एकाग्र करके स्थिर आसनसे बैठ गये और ध्यानयोगका साधन करने लगे। इस ध्यानयोगरूप एक ही बाणसे मारकर उन बलशाली नरेशने समस्त इन्द्रियोंको सहसा परास्त कर दिया। वे ध्यानयोगके द्वारा आत्मामें प्रवेश करके परम सिद्धि (मोक्ष)-को प्राप्त हो गये॥२८-२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विस्मितश्चापि राजर्षिरिमां गाथां जगाद ह।
अहो कष्टं यदस्माभिः सर्वं बाह्यमनुष्ठितम् ॥ ३० ॥
भोगतृष्णासमायुक्तैः पूर्वं राज्यमुपासितम् ।
इति पश्चान्मया ज्ञातं योगान्नास्ति परं सुखम् ॥ ३१ ॥
मूलम्
विस्मितश्चापि राजर्षिरिमां गाथां जगाद ह।
अहो कष्टं यदस्माभिः सर्वं बाह्यमनुष्ठितम् ॥ ३० ॥
भोगतृष्णासमायुक्तैः पूर्वं राज्यमुपासितम् ।
इति पश्चान्मया ज्ञातं योगान्नास्ति परं सुखम् ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस सफलतासे राजर्षि अलर्कको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने इस गाथाका गान किया—‘अहो! बड़े कष्टकी बात है कि अबतक मैं बाहरी कामोंमें ही लगा रहा और भोगोंकी तृष्णासे आबद्ध होकर राज्यकी ही उपासना करता रहा। ध्यानयोगसे बढ़कर दूसरा कोई उत्तम सुखका साधन नहीं है, यह बात तो मुझे बहुत पीछे मालूम हुई है’॥३०-३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति त्वमनुजानीहि राम मा क्षत्रियान् जहि।
तपो घोरमुपातिष्ठ ततः श्रेयोऽभिपत्स्यसे ॥ ३२ ॥
मूलम्
इति त्वमनुजानीहि राम मा क्षत्रियान् जहि।
तपो घोरमुपातिष्ठ ततः श्रेयोऽभिपत्स्यसे ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
(पितामहोंने कहा—) बेटा परशुराम! इन सब बातोंको अच्छी तरह समझकर तुम क्षत्रियोंका नाश न करो। घोर तपस्यामें लग जाओ, उसीसे तुम्हें कल्याण प्राप्त होगा॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्युक्तः स तपो घोरं जामदग्न्यः पितामहैः।
आस्थितः सुमहाभागो ययौ सिद्धिं च दुर्गमाम् ॥ ३३ ॥
मूलम्
इत्युक्तः स तपो घोरं जामदग्न्यः पितामहैः।
आस्थितः सुमहाभागो ययौ सिद्धिं च दुर्गमाम् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने पितामहोंके इस प्रकार कहनेपर महान् सौभाग्यशाली जमदग्निनन्दन परशुरामजीने कठोर तपस्या की और इससे उन्हें परम दुर्लभ सिद्धि प्राप्त हुई॥३३॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि ब्राह्मणगीतासु त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३० ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें ब्राह्मणगीताविषयक तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥३०॥