०१३

मूलम् (समाप्तिः)

[प्राणियोंकी शुभ और अशुभ गतिका निश्चय करानेवाले लक्षणोंका वर्णन, मृत्युके दो भेद और यत्नसाध्य मृत्युके चार भेदोंका कथन, कर्तव्य-पालनपूर्वक शरीरत्यागका महान् फल और काम, क्रोध आदिद्वारा देहत्याग करनेसे नरककी प्राप्ति]

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

मानुषेष्वेव जीवत्सु गतिर्विज्ञायते न वा।
यथा शुभगतिर्जीवन् नासौ त्वशुभभागिति॥
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तन्मे शंसितुमर्हसि।

मूलम्

मानुषेष्वेव जीवत्सु गतिर्विज्ञायते न वा।
यथा शुभगतिर्जीवन् नासौ त्वशुभभागिति॥
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तन्मे शंसितुमर्हसि।

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— प्रभो! मनुष्योंके जीते-जी उनकी गतिका ज्ञान होता है या नहीं? शुभगतिवाले मनुष्यका जैसा जीवन है, वैसा ही अशुभ गतिवालेका नहीं हो सकता। इस विषयको मैं सुनना चाहती हूँ, आप मुझे बताइये॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदहं ते प्रवक्ष्यामि जीवितं विद्यते यथा।
द्विविधाः प्राणिनो लोके दैवासुरसमाश्रिताः॥

मूलम्

तदहं ते प्रवक्ष्यामि जीवितं विद्यते यथा।
द्विविधाः प्राणिनो लोके दैवासुरसमाश्रिताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! प्राणियोंका जीवन जैसा होता है, वह मैं तुम्हें बताऊँगा। संसारमें दो प्रकारके प्राणी होते हैं—एक दैवभावके आश्रित और दूसरे आसुरभावके आश्रित॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मनसा कर्मणा वाचा प्रतिकूला भवन्ति ये।
तादृशानासुरान् विद्धि मर्त्यास्ते नरकालयाः॥

मूलम्

मनसा कर्मणा वाचा प्रतिकूला भवन्ति ये।
तादृशानासुरान् विद्धि मर्त्यास्ते नरकालयाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य मन, वाणी और क्रियाद्वारा सदा सबके प्रतिकूल ही आचरण करते हैं, उनको आसुर समझो। उन्हें नरकमें निवास करना पड़ता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हिंस्राश्चोराश्च धूर्ताश्च परदाराभिमर्शकाः ।
नीचकर्मरता ये च शौचमङ्गलवर्जिताः॥
शुचिविद्वेषिणः पापा लोकचारित्रदूषकाः ।
एवंयुक्तसमाचारा जीवन्तो नरकालयाः ॥

मूलम्

हिंस्राश्चोराश्च धूर्ताश्च परदाराभिमर्शकाः ।
नीचकर्मरता ये च शौचमङ्गलवर्जिताः॥
शुचिविद्वेषिणः पापा लोकचारित्रदूषकाः ।
एवंयुक्तसमाचारा जीवन्तो नरकालयाः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो हिंसक, चोर, धूर्त, परस्त्रीगामी, नीचकर्म-परायण, शौच और मंगलाचारसे रहित, पवित्रतासे द्वेष रखनेवाले, पापी और लोगोंके चरित्रपर कलंक लगानेवाले हैं, ऐसे आचारवाले अर्थात् आसुरी स्वभाववाले मनुष्य जीते-जी ही नरकमें पड़े हुए हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

लोकोद्वेगकराश्चान्ये पशवश्च सरीसृपाः ।
वृक्षाः कण्टकिनो रूक्षास्तादृशान्‌ विद्धि चासुरान्॥

मूलम्

लोकोद्वेगकराश्चान्ये पशवश्च सरीसृपाः ।
वृक्षाः कण्टकिनो रूक्षास्तादृशान्‌ विद्धि चासुरान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोगोंको उद्वेगमें डालनेवाले पशु, साँप-विच्छू आदि जन्तु तथा रूखे और कँटीले वृक्ष हैं, वे सब पहले आसुर स्वभावके मनुष्य ही थे, ऐसा समझो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपरान् देवपक्षांस्तु शृणु देवि समाहिता॥
मनोवाक्कर्मभिर्नित्यमनुकूला भवन्ति ये ।
तादृशानमरान् विद्धि ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

अपरान् देवपक्षांस्तु शृणु देवि समाहिता॥
मनोवाक्कर्मभिर्नित्यमनुकूला भवन्ति ये ।
तादृशानमरान् विद्धि ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवि! अब तुम एकाग्रचित्त होकर दूसरे देव-पक्षीय अर्थात् दैवी प्रकृतिवाले मनुष्योंका परिचय सुनो। जो मन, वाणी और क्रियाद्वारा सदा सबके अनुकूल होते हैं, ऐसे मनुष्योंको अमर (देवता) समझो। वे स्वर्गगामी होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शौचार्जवपरा धीराः परार्थान् न हरन्ति ये।
ये समाः सर्वभूतेषु ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

शौचार्जवपरा धीराः परार्थान् न हरन्ति ये।
ये समाः सर्वभूतेषु ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो शौच और सरलतामें तत्पर तथा धीर हैं, जो दूसरोंके धनका अपहरण नहीं करते हैं और समस्त प्राणियोंके प्रति समानभाव रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धार्मिकाः शौचसम्पन्नाः शुक्ला मधुरवादिनः।
नाकार्यं मनसेच्छन्ति ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

धार्मिकाः शौचसम्पन्नाः शुक्ला मधुरवादिनः।
नाकार्यं मनसेच्छन्ति ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो धार्मिक, शौचाचारसम्पन्न, शुद्ध और मधुरभाषी होकर कभी मनसे भी न करने योग्य कार्य करना नहीं चाहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दरिद्रा अपि ये केचिद् याचिताः प्रीतिपूर्वकम्।
ददत्येव च यत् किंचित् ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

दरिद्रा अपि ये केचिद् याचिताः प्रीतिपूर्वकम्।
ददत्येव च यत् किंचित् ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो कोई दरिद्र होनेपर भी किसी याचकके माँगनेपर उसे प्रसन्नतापूर्वक कुछ-न-कुछ देते ही हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आस्तिका मङ्गलपराः सततं वृद्धसेविनः।
पुण्यकर्मपरा नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

आस्तिका मङ्गलपराः सततं वृद्धसेविनः।
पुण्यकर्मपरा नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो आस्तिक, मंगलपरायण, सदा बड़े-बूढ़ोंकी सेवा करनेवाले और प्रतिदिन पुण्यकर्ममें संलग्न रहनेवाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्ममा निरहंकाराः सानुक्रोशाः स्वबन्धुषु।
दीनानुकम्पिनो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

निर्ममा निरहंकाराः सानुक्रोशाः स्वबन्धुषु।
दीनानुकम्पिनो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ममता और अहंकारसे शून्य, अपने बन्धुजनोंपर अनुग्रह रखनेवाले और सदा दीनोंपर दया करनेवाले हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वदुःखमिव मन्यन्ते परेषां दुःखवेदनम्।
गुरुशुश्रूषणपरा देवब्राह्मणपूजकाः ॥
कृतज्ञाः कृतविद्याश्च ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

स्वदुःखमिव मन्यन्ते परेषां दुःखवेदनम्।
गुरुशुश्रूषणपरा देवब्राह्मणपूजकाः ॥
कृतज्ञाः कृतविद्याश्च ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरोंकी दुःख-वेदनाको अपने दुःखके समान ही मानते हैं, गुरुजनोंकी सेवामें तत्पर रहते हैं, देवताओं और ब्राह्मणोंकी पूजा करते हैं, कृतज्ञ तथा विद्वान् हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जितेन्द्रिया जितक्रोधा जितमानमदास्तथा ।
लोभमात्सर्यहीना ये ते नराः स्वर्गगामिनः॥
शक्त्या चाभ्यवपद्यन्ते ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

जितेन्द्रिया जितक्रोधा जितमानमदास्तथा ।
लोभमात्सर्यहीना ये ते नराः स्वर्गगामिनः॥
शक्त्या चाभ्यवपद्यन्ते ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो जितेन्द्रिय, क्रोधपर विजय पानेवाले और मान तथा मदको परास्त करनेवाले हैं तथा जिनमें लोभ और मात्सर्यका अभाव है, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं; जो यथाशक्ति परोपकारमें तत्पर रहते हैं, वे मनुष्य भी स्वर्गलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्रतिनो दानशीलाश्च धर्मशीलाश्च मानवाः।
ऋजवो मृदवो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

व्रतिनो दानशीलाश्च धर्मशीलाश्च मानवाः।
ऋजवो मृदवो नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो व्रती, दानशील, धर्मशील, सरल और सदा कोमलतापूर्ण बर्ताव करनेवाले हैं, वे मनुष्य सदा स्वर्गलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऐहिकेन तु वृत्तेन पारत्रमनुमीयते।
एवंविधा नरा लोके जीवन्तः स्वर्गगामिनः॥

मूलम्

ऐहिकेन तु वृत्तेन पारत्रमनुमीयते।
एवंविधा नरा लोके जीवन्तः स्वर्गगामिनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस लोकके आचारसे परलोकमें प्राप्त होनेवाली गतिका अनुमान किया जाता है। जगत्‌में ऐसा जीवन बितानेवाले मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदन्यच्च शुभं लोके प्रजानुग्रहकारि च।
पशवश्चैव वृक्षाश्च प्रजानां हितकारिणः॥
तादृशान् देवपक्षस्थानिति विद्धि शुभानने॥

मूलम्

यदन्यच्च शुभं लोके प्रजानुग्रहकारि च।
पशवश्चैव वृक्षाश्च प्रजानां हितकारिणः॥
तादृशान् देवपक्षस्थानिति विद्धि शुभानने॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोकमें और भी जो शुभ एवं प्रजापर अनुग्रह करनेवाला कर्म है, वह स्वर्गकी प्राप्तिका साधन है। शुभानने! जो प्रजाका हित करनेवाले पशु एवं वृक्ष हैं, उन सबको देवपक्षीय जानो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शुभाशुभमयं लोके सर्वं स्थावरजङ्गमम्।
दैवं शुभमिति प्राहुरासुरं चाशुभं प्रिये॥

मूलम्

शुभाशुभमयं लोके सर्वं स्थावरजङ्गमम्।
दैवं शुभमिति प्राहुरासुरं चाशुभं प्रिये॥

अनुवाद (हिन्दी)

जगत्‌में सारा चराचरसमुदाय शुभाशुभमय है। प्रिये! इनमें जो शुभ है, उसे दैव और जो अशुभ है, उसे आसुर समझो॥

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगवन् मानुषाः केचित् कालधर्ममुपस्थिताः।
प्राणमोक्षं कथं कृत्वा परत्र हितमाप्नुयुः॥

मूलम्

भगवन् मानुषाः केचित् कालधर्ममुपस्थिताः।
प्राणमोक्षं कथं कृत्वा परत्र हितमाप्नुयुः॥

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— भगवन्! जो कोई मनुष्य मृत्युके निकट पहुँचे हुए हैं, वे किस प्रकार अपने प्राणोंका परित्याग करें, जिससे परलोकमें उन्हें कल्याणकी प्राप्ति हो?॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

हन्त ते कथयिष्यामि शृणु देवि समाहिता।
द्विविधं मरणं लोके स्वभावाद् यत्नस्तथा॥

मूलम्

हन्त ते कथयिष्यामि शृणु देवि समाहिता।
द्विविधं मरणं लोके स्वभावाद् यत्नस्तथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! मैं प्रसन्नतापूर्वक तुमसे इस विषयका वर्णन करता हूँ, तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो। लोकमें दो प्रकारकी मृत्यु होती है, एक स्वाभाविक और दूसरी यत्नसाध्य॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः स्वभावं नापायं यत्नतः करणोद्भवम्।
एतयोरुभयोर्देवि विधानं शृणु शोभने॥

मूलम्

तयोः स्वभावं नापायं यत्नतः करणोद्भवम्।
एतयोरुभयोर्देवि विधानं शृणु शोभने॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवि! इन दोनोंमें जो स्वाभाविक मृत्यु है, वह अटल है, उसमें कोई बाधा नहीं है। परंतु जो यत्नसाध्य मृत्यु है, वह साधनसामग्रीद्वारा सम्भव होती है। शोभने! इन दोनोंमें जो विधान है, वह मुझसे सुनो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कल्याकल्यशरीरस्य यत्नजं द्विविधं स्मृतम्।
यत्नजं नाम मरणमात्मत्यागो मुमूर्षया॥

मूलम्

कल्याकल्यशरीरस्य यत्नजं द्विविधं स्मृतम्।
यत्नजं नाम मरणमात्मत्यागो मुमूर्षया॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो यत्नसाध्य मृत्यु है, वह समर्थ और असमर्थ शरीरसे सम्बन्ध रखनेके कारण दो प्रकारकी मानी गयी है। मरनेकी इच्छासे जो जान-बूझकर अपने शरीरका परित्याग किया जाता है, उसीका नाम है यत्नसाध्य मृत्यु॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राकल्यशरीरस्य जरा व्याधिश्च कारणम्।
महाप्रस्थानगमनं तथा प्रायोपवेशनम् ॥
जलावगाहनं चैव अग्निचित्याप्रवेशनम् ।
एवं चतुर्विधः प्रोक्त आत्मत्यागो मुमूर्षताम्॥

मूलम्

तत्राकल्यशरीरस्य जरा व्याधिश्च कारणम्।
महाप्रस्थानगमनं तथा प्रायोपवेशनम् ॥
जलावगाहनं चैव अग्निचित्याप्रवेशनम् ।
एवं चतुर्विधः प्रोक्त आत्मत्यागो मुमूर्षताम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो असमर्थ शरीरसे युक्त है अर्थात् बुढ़ापेके कारण या रोगके कारण असमर्थ हो गया है, उसकी मृत्युमें कारण है महाप्रस्थानगमन, आमरण उपवास, जलमें प्रवेश अथवा चिताकी आगमें जल मरना। यह चार प्रकारका देहत्याग बताया गया है, जिसे मरनेकी इच्छावाले पुरुष करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतेषां क्रमयोगेन विधानं शृणु शोभने॥
स्वधर्मयुक्तं गार्हस्थ्यं चिरमूढ्वा विधानतः।
तत्रानृण्यं च सम्प्राप्य वृद्धो वा व्याधितोऽपि वा॥
दर्शयित्वा स्वदौर्बल्यं सर्वानेवानुमान्य च।
सर्वं विहाय बन्धूंश्च कर्मणां भरणं तथा॥
दानानि विधिवत् कृत्वा धर्मकार्यार्थमात्मनः।
अनुज्ञाप्य जनं सर्वं वाचा मधुरया ब्रुवन्॥
अहतं वस्त्रमाच्छाद्य बद्ध्वा तत् कुशरज्जुना।
उपस्पृश्य प्रतिज्ञाय व्यवसायपुरस्सरम् ॥
परित्यज्य ततो ग्राम्यं धर्मं कुर्याद् यथेप्सितम्॥

मूलम्

एतेषां क्रमयोगेन विधानं शृणु शोभने॥
स्वधर्मयुक्तं गार्हस्थ्यं चिरमूढ्वा विधानतः।
तत्रानृण्यं च सम्प्राप्य वृद्धो वा व्याधितोऽपि वा॥
दर्शयित्वा स्वदौर्बल्यं सर्वानेवानुमान्य च।
सर्वं विहाय बन्धूंश्च कर्मणां भरणं तथा॥
दानानि विधिवत् कृत्वा धर्मकार्यार्थमात्मनः।
अनुज्ञाप्य जनं सर्वं वाचा मधुरया ब्रुवन्॥
अहतं वस्त्रमाच्छाद्य बद्ध्वा तत् कुशरज्जुना।
उपस्पृश्य प्रतिज्ञाय व्यवसायपुरस्सरम् ॥
परित्यज्य ततो ग्राम्यं धर्मं कुर्याद् यथेप्सितम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

शोभने! अब क्रमशः इनकी विधि सुनो—मनुष्य स्वधर्मयुक्त गार्हस्थ-आश्रमका दीर्घकालतक विधिपूर्वक निर्वाह करके उससे उऋण हो वृद्ध अथवा रोगी हो जानेपर अपनी दुर्बलता दिखा सभी लोगोंसे गृहत्यागके लिये अनुमति ले फिर समस्त भाई-बन्धुओं और कर्मानुष्ठानोंका त्याग करके अपने धर्मकार्यके लिये विधिवत् दान करनेके पश्चात् मीठी वाणी बोलकर सब लोगोंसे आज्ञा ले नूतन वस्त्र धारण करके उसे कुशकी रस्सीसे बाँध ले। इसके बाद आचमनपूर्वक दृढ़ निश्चयके साथ आत्मत्यागकी प्रतिज्ञा करके ग्राम्यधर्मको छोड़कर इच्छानुसार कार्य करे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महाप्रस्थानमिच्छेच्चेत् प्रतिष्ठेतोत्तरां दिशम् ॥
भूत्वा तावन्निराहारो यावत् प्राणविमोक्षणम्।
चेष्टाहानौ शयित्वापि तन्मनाः प्राणमुत्सृजेत्॥
एवं पुण्यकृतां लोकानमलान् प्रतिपद्यते॥

मूलम्

महाप्रस्थानमिच्छेच्चेत् प्रतिष्ठेतोत्तरां दिशम् ॥
भूत्वा तावन्निराहारो यावत् प्राणविमोक्षणम्।
चेष्टाहानौ शयित्वापि तन्मनाः प्राणमुत्सृजेत्॥
एवं पुण्यकृतां लोकानमलान् प्रतिपद्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि महाप्रस्थानकी इच्छा हो तो निराहार रहकर जबतक प्राण निकल न जायँ तबतक उत्तर दिशाकी ओर निरन्तर प्रस्थान करे। जब शरीर निश्चेष्ट हो जाय, तब वहीं सोकर उस परमेश्वरमें मन लगाकर प्राणोंका परित्याग कर दे। ऐसा करनेसे वह पुण्यात्माओंके निर्मल लोकोंको प्राप्त होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रायोपवेशनं चेच्छेत् तेनैव विधिना नरः।
देशे पुण्यतमे श्रेष्ठे निराहारस्तु संविशेत्॥

मूलम्

प्रायोपवेशनं चेच्छेत् तेनैव विधिना नरः।
देशे पुण्यतमे श्रेष्ठे निराहारस्तु संविशेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि मनुष्य प्रायोपवेशन (आमरण उपवास) करना चाहे तो पूर्वोक्त विधिसे ही घर छोड़कर परम पवित्र श्रेष्ठतम देशमें निराहार होकर बैठ जाय॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आप्राणान्तं शुचिर्भूत्वा कुर्वन् दानं स्वशक्तितः।
हरिं स्मरंस्त्यजेत् प्राणानेष धर्मः सनातनः॥

मूलम्

आप्राणान्तं शुचिर्भूत्वा कुर्वन् दानं स्वशक्तितः।
हरिं स्मरंस्त्यजेत् प्राणानेष धर्मः सनातनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जबतक प्राणोंका अन्त न हो तबतक शुद्ध होकर अपनी शक्तिके अनुसार दान करते हुए भगवान्‌के स्मरण-पूर्वक प्राणोंका परित्याग करे। यह सनातन धर्म है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं कलेवरं त्यक्त्वा स्वर्गलोके महीयते॥
अग्निप्रवेशनं चेच्छेत् तेनैव विधिना शुभे।
कृत्वा काष्ठमयं चित्यं पुण्यक्षेत्रे नदीषु वा॥
दैवतेभ्यो नमस्कृत्वा कृत्वा चापि प्रदक्षिणम्।
भूत्वा शुचिर्व्यवसितः स्मरन् नारायणं हरिम्॥
ब्राह्मणेभ्यो नमस्कृत्वा प्रविशेदग्निसंस्तरम् ॥

मूलम्

एवं कलेवरं त्यक्त्वा स्वर्गलोके महीयते॥
अग्निप्रवेशनं चेच्छेत् तेनैव विधिना शुभे।
कृत्वा काष्ठमयं चित्यं पुण्यक्षेत्रे नदीषु वा॥
दैवतेभ्यो नमस्कृत्वा कृत्वा चापि प्रदक्षिणम्।
भूत्वा शुचिर्व्यवसितः स्मरन् नारायणं हरिम्॥
ब्राह्मणेभ्यो नमस्कृत्वा प्रविशेदग्निसंस्तरम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शुभे! इस प्रकार शरीरका त्याग करके मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। यदि मनुष्य अग्निमें प्रवेश करना चाहे तो उसी विधिसे विदा लेकर किसी पुण्यक्षेत्रमें अथवा नदियोंके तटपर काठकी चिता बनावे। फिर देवताओंको नमस्कार और परिक्रमा करके शुद्ध एवं दृढ़निश्चयसे युक्त हो श्रीनारायण हरिका स्मरण करते हुए ब्राह्मणोंको मस्तक नवाकर उस प्रज्वलित चिताग्निमें प्रवेश कर जाय॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽपि लोकान्‌ यथान्यायं प्राप्नुयात्‌ पुण्यकर्मणाम्॥
जलावगाहनं चेच्छेत् तेनैव विधिना शुभे।
ख्याते पुण्यतमे तीर्थे निमज्जेत् सुकृतं स्मरन्॥
सोऽपि पुण्यतमाल्ँलोकान् निसर्गात् प्रतिपद्यते॥

मूलम्

सोऽपि लोकान्‌ यथान्यायं प्राप्नुयात्‌ पुण्यकर्मणाम्॥
जलावगाहनं चेच्छेत् तेनैव विधिना शुभे।
ख्याते पुण्यतमे तीर्थे निमज्जेत् सुकृतं स्मरन्॥
सोऽपि पुण्यतमाल्ँलोकान् निसर्गात् प्रतिपद्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसा पुरुष भी यथोचितरूपसे उक्त कार्य करके पुण्यात्माओंके लोक प्राप्त कर लेता है। शुभे! यदि कोई जलमें प्रवेश करना चाहे तो उसी विधिसे किसी विख्यात पवित्रतम तीर्थमें पुण्यका चिन्तन करते हुए डूब जाय। ऐसा मनुष्य भी स्वभावतः पुण्यतम लोकोंमें जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कल्यशरीरस्य संत्यागं शृणु तत्त्वतः॥
रक्षार्थं क्षत्रियस्येष्टः प्रजापालनकारणात् ॥
योधानां भर्तृपिण्डार्थं गुर्वर्थं ब्रह्मचारिणाम्।
गोब्राह्मणार्थं सर्वेषां प्राणत्यागो विधीयते॥

मूलम्

ततः कल्यशरीरस्य संत्यागं शृणु तत्त्वतः॥
रक्षार्थं क्षत्रियस्येष्टः प्रजापालनकारणात् ॥
योधानां भर्तृपिण्डार्थं गुर्वर्थं ब्रह्मचारिणाम्।
गोब्राह्मणार्थं सर्वेषां प्राणत्यागो विधीयते॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद समर्थ शरीरवाले पुरुषके आत्मत्यागकी तात्त्विक विधि बताता हूँ, सुनो। क्षत्रियके लिये दीन-दुःखियोंकी रक्षा और प्रजापालनके निमित्त प्राणत्याग अभीष्ट बताया गया है। योद्धा अपने स्वामीके अन्नका बदला चुकानेके लिये, ब्रह्मचारी गुरुके हितके लिये तथा सब लोग गौओं और ब्राह्मणोंकी रक्षाके लिये अपने प्राणोंको निछावर कर दें, यह शास्त्रका विधान है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वराज्यरक्षणार्थं वा कुनृपैः पीडिताः प्रजाः।
मोक्तुकामस्त्यजेत् प्राणान् युद्धमार्गे यथाविधि॥

मूलम्

स्वराज्यरक्षणार्थं वा कुनृपैः पीडिताः प्रजाः।
मोक्तुकामस्त्यजेत् प्राणान् युद्धमार्गे यथाविधि॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा अपने राज्यकी रक्षाके लिये अथवा दुष्ट नरेशोंद्वारा पीड़ित हुई प्रजाको संकटसे छुड़ानेके लिये विधिपूर्वक युद्धके मार्गपर चलकर प्राणोंका परित्याग करे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुसन्नद्धो व्यवसितः सम्प्रविश्यापराङ्‌मुखः ॥
एवं राजा मृतः सद्यः स्वर्गलोके महीयते।
तादृशी सुगतिर्नास्ति क्षत्रियस्य विशेषतः॥

मूलम्

सुसन्नद्धो व्यवसितः सम्प्रविश्यापराङ्‌मुखः ॥
एवं राजा मृतः सद्यः स्वर्गलोके महीयते।
तादृशी सुगतिर्नास्ति क्षत्रियस्य विशेषतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो राजा कवच बाँधकर मनमें दृढ़ निश्चय ले युद्धमें प्रवेश करके पीठ नहीं दिखाता और शत्रुओंका सामना करता हुआ मारा जाता है, वह तत्काल स्वर्गलोकमें सम्मानित होता है। सामान्यतः सबके लिये और विशेषतः क्षत्रियके लिये वैसी उत्तम गति दूसरी नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भृत्यो वा भर्तृपिण्डार्थं भर्तृकर्मण्युपस्थिते।
कुर्वंस्तत्र तु साहाय्यमात्मप्राणानपेक्षया ॥
स्वाम्यर्थं संत्यजेत् प्राणान् पुण्याल्ँलोकान् स गच्छति।
स्पृहणीयः सुरगणैस्तत्र नास्ति विचारणा॥

मूलम्

भृत्यो वा भर्तृपिण्डार्थं भर्तृकर्मण्युपस्थिते।
कुर्वंस्तत्र तु साहाय्यमात्मप्राणानपेक्षया ॥
स्वाम्यर्थं संत्यजेत् प्राणान् पुण्याल्ँलोकान् स गच्छति।
स्पृहणीयः सुरगणैस्तत्र नास्ति विचारणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो भृत्य स्वामीके अन्नका बदला देनेके लिये उनका कार्य उपस्थित होनेपर अपने प्राणोंका मोह छोड़कर उनकी सहायता करता है और स्वामीके लिये प्राण त्याग देता है, वह देवसमूहोंके लिये स्पृहणीय हो पुण्यलोकोंमें जाता है। इस विषयमें कोई विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं गोब्राह्मणार्थं वा दीनार्थं वा त्यजेत् तनुम्।
सोऽपि पुण्यमवाप्नोति आनृशंस्यव्यपेक्षया ॥
इत्येते जीवितत्यागे मार्गास्ते समुदाहृताः॥

मूलम्

एवं गोब्राह्मणार्थं वा दीनार्थं वा त्यजेत् तनुम्।
सोऽपि पुण्यमवाप्नोति आनृशंस्यव्यपेक्षया ॥
इत्येते जीवितत्यागे मार्गास्ते समुदाहृताः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार जो गौओं, ब्राह्मणों तथा दीन-दुःखियोंकी रक्षाके लिये शरीरका त्याग करता है, वह भी दयाधर्मको अपनानेके कारण पुण्यलोकोंमें जाता है। इस तरह ये प्राणत्यागके समुचित मार्ग तुम्हें बताये गये हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कामात् क्रोधाद् भयाद् वापि यदि चेत्‌ संत्यजेत्‌ तनुम्।
सोऽनन्तं नरकं याति आत्महन्तृत्वकारणात्॥

मूलम्

कामात् क्रोधाद् भयाद् वापि यदि चेत्‌ संत्यजेत्‌ तनुम्।
सोऽनन्तं नरकं याति आत्महन्तृत्वकारणात्॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि कोई काम, क्रोध अथवा भयसे शरीरका त्याग करे तो वह आत्महत्या करनेके कारण अनन्त नरकमें जाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वभावं मरणं नाम न तु चात्मेच्छया भवेत्।
यथा मृतानां यत् कार्यं तन्मे शृणु यथाविधि॥

मूलम्

स्वभावं मरणं नाम न तु चात्मेच्छया भवेत्।
यथा मृतानां यत् कार्यं तन्मे शृणु यथाविधि॥

अनुवाद (हिन्दी)

स्वाभाविक मृत्यु वह है, जो अपनी इच्छासे नहीं होती, स्वतः प्राप्त हो जाती है। उसमें जिस प्रकार मरे हुए लोगोंके लिये जो कर्तव्य है, वह मुझसे विधिपूर्वक सुनो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्रापि मरणं त्यागो मूढत्यागाद् विशिष्यते।
भूमौ संवेशयेद् देहं नरस्य विनशिष्यतः॥
निर्जीवं वृणुयात् सद्यो वाससा तु कलेवरम्।
माल्यगन्धैरलङ्कृत्य सुवर्णेन च भामिनि॥
श्मशाने दक्षिणे देशे चिताग्नौ प्रदहेन्मृतम्।
अथवा निक्षिपेद् भूमौ शरीरं जीववर्जितम्॥

मूलम्

तत्रापि मरणं त्यागो मूढत्यागाद् विशिष्यते।
भूमौ संवेशयेद् देहं नरस्य विनशिष्यतः॥
निर्जीवं वृणुयात् सद्यो वाससा तु कलेवरम्।
माल्यगन्धैरलङ्कृत्य सुवर्णेन च भामिनि॥
श्मशाने दक्षिणे देशे चिताग्नौ प्रदहेन्मृतम्।
अथवा निक्षिपेद् भूमौ शरीरं जीववर्जितम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसमें भी जो मरण या त्याग होता है, वह किसी मूर्खके देहत्यागसे बढ़कर है। मरनेवाले मनुष्यके शरीरको पृथ्वीपर लिटा देना चाहिये और जब प्राण निकल जाय, तब तत्काल उसके शरीरको नूतन वस्त्रसे ढक देना चाहिये। भामिनि! फिर उसे माला, गन्ध और सुवर्णसे अलंकृत करके श्मशान-भूमिमें दक्षिण दिशाकी ओर चिताकी आगमें उस शवको जला देना चाहिये। अथवा निर्जीव शरीरको वहाँ भूमिपर ही डाल दे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिवा च शुक्लपक्षश्च उत्तरायणमेव च।
मुमूर्षूणां प्रशस्तानि विपरीतं तु गर्हितम्॥

मूलम्

दिवा च शुक्लपक्षश्च उत्तरायणमेव च।
मुमूर्षूणां प्रशस्तानि विपरीतं तु गर्हितम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

दिन, शुक्लपक्ष और उत्तरायणका समय मुमूर्षुओंके लिये उत्तम है। इसके विपरीत रात्रि, कृष्णपक्ष और दक्षिणायन निन्दित हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

औदकं चाष्टकाश्राद्धं बहुभिर्बहुभिः कृतम्।
आप्यायनं मृतानां तत् परलोके भवेच्छुभम्॥
एतत् सर्वं मया प्रोक्तं मानुषाणां हितं वचः॥

मूलम्

औदकं चाष्टकाश्राद्धं बहुभिर्बहुभिः कृतम्।
आप्यायनं मृतानां तत् परलोके भवेच्छुभम्॥
एतत् सर्वं मया प्रोक्तं मानुषाणां हितं वचः॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुत-से पुरुषोंद्वारा किया गया जलदान और अष्टकाश्राद्ध परलोकमें मृत पुरुषोंको तृप्त करनेवाला और शुभ होता है। यह सब मैंने मनुष्योंके लिये हितकारक बात बतायी है॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)