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मूलम् (समाप्तिः)

[यमलोक तथा वहाँके मार्गोंका वर्णन, पापियोंकी नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योनियोंमें उनके जन्मका उल्लेख]

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगवन् सर्वलोकेश त्रिपुरार्दन शंकर।
कीदृशा यमदण्डास्ते कीदृशाः परिचारकाः॥

मूलम्

भगवन् सर्वलोकेश त्रिपुरार्दन शंकर।
कीदृशा यमदण्डास्ते कीदृशाः परिचारकाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— भगवन्! सर्वलोकेश्वर! त्रिपुरनाशन! शंकर! यमदण्ड कैसे होते हैं? तथा यमराजके सेवक किस तरहके होते हैं?॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं मृतास्ते गच्छन्ति प्राणिनो यमसादनम्।
कीदृशं भवनं तस्य कथं दण्डयति प्रजाः॥
एतत् सर्वं महादेव श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो॥

मूलम्

कथं मृतास्ते गच्छन्ति प्राणिनो यमसादनम्।
कीदृशं भवनं तस्य कथं दण्डयति प्रजाः॥
एतत् सर्वं महादेव श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो॥

अनुवाद (हिन्दी)

मृत प्राणी यमलोकको कैसे जाते हैं? यमराजका भवन कैसा है? तथा वे प्रजावर्गको किस तरह दण्ड देते हैं? प्रभो! महादेव! मैं यह सब सुनना चाहती हूँ॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु कल्याणि तत् सर्वं यत्‌ ते देवि मनःप्रियम्।
दक्षिणस्यां दिशि शुभे यमस्य सदनं महत्॥

मूलम्

शृणु कल्याणि तत् सर्वं यत्‌ ते देवि मनःप्रियम्।
दक्षिणस्यां दिशि शुभे यमस्य सदनं महत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— कल्याणि! देवि! तुम्हारे मनमें जो-जो पूछने योग्य बातें हैं, उन सबका उत्तर सुनो। शुभे! दक्षिणदिशामें यमराजका विशाल भवन है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विचित्रं रमणीयं च नानाभावसमन्वितम्।
पितृभिः प्रेतसंघैश्च यमदूतैश्च संततम्॥

मूलम्

विचित्रं रमणीयं च नानाभावसमन्वितम्।
पितृभिः प्रेतसंघैश्च यमदूतैश्च संततम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह बहुत ही विचित्र, रमणीय एवं नाना प्रकारके भावोंसे युक्त है। पितरों, प्रेतों और यमदूतोंसे व्याप्त है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्राणिसंघैश्च बहुभिः कर्मवश्यैश्च पूरितम्।
तत्रास्ते दण्डयन् नित्यं यमो लोकहिते रतः॥

मूलम्

प्राणिसंघैश्च बहुभिः कर्मवश्यैश्च पूरितम्।
तत्रास्ते दण्डयन् नित्यं यमो लोकहिते रतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

कर्मोंके अधीन हुए बहुत-से प्राणियोंके समुदाय उस यमलोकको भरे हुए हैं। वहाँ लोकहितमें तत्पर रहनेवाले यम पापियोंको सदा दण्ड देते हुए निवास करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मायया सततं वेत्ति प्राणिनां यच्छुभाशुभम्।
मायया संहरंस्तत्र प्राणिसङ्घान् यतस्ततः॥

मूलम्

मायया सततं वेत्ति प्राणिनां यच्छुभाशुभम्।
मायया संहरंस्तत्र प्राणिसङ्घान् यतस्ततः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे अपनी मायाशक्तिसे ही सदा प्राणियोंके शुभाशुभ कर्मको जानते हैं और मायाद्वारा ही जहाँ-तहाँसे प्राणि-समुदायका संहार कर लाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य मायामयाः पाशा न वेद्यन्ते सुरासुरैः।
को हि मानुषमात्रस्तु देवस्य चरितं महत्॥

मूलम्

तस्य मायामयाः पाशा न वेद्यन्ते सुरासुरैः।
को हि मानुषमात्रस्तु देवस्य चरितं महत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके मायामय पाश हैं, जिन्हें न देवता जानते हैं, न असुर। फिर मनुष्योंमें कौन ऐसा है, जो उन यमदेवके महान् चरित्रको जान सके॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं संवसतस्तस्य यमस्य परिचारकाः।
गृहीत्वा संनयन्त्येव प्राणिनः क्षीणकर्मणः॥

मूलम्

एवं संवसतस्तस्य यमस्य परिचारकाः।
गृहीत्वा संनयन्त्येव प्राणिनः क्षीणकर्मणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार यमलोकमें निवास करते हुए यमराजके दूत जिनके प्रारब्धकर्म क्षीण हो गये हैं, उन प्राणियोंको पकड़कर उनके पास ले जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येन केनापदेशेन त्वपदेशस्तदुद्भवः ।
कर्मणा प्राणिनो लोके उत्तमाधममध्यमाः॥
यथार्हं तान् समादाय नयन्ति यमसादनम्।

मूलम्

येन केनापदेशेन त्वपदेशस्तदुद्भवः ।
कर्मणा प्राणिनो लोके उत्तमाधममध्यमाः॥
यथार्हं तान् समादाय नयन्ति यमसादनम्।

अनुवाद (हिन्दी)

जिस किसी निमित्तसे वे प्राणियोंको ले जाते हैं, वह निमित्त वे स्वयं बना लेते हैं। जगत्‌में कर्मानुसार उत्तम, मध्यम और अधम तीन प्रकारके प्राणी होते हैं। यथायोग्य उन सभी प्राणियोंको लेकर वे यमलोकमें पहुँचाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धार्मिकानुत्तमान् विद्धि स्वर्गिणस्ते यथामराः॥
नृषु जन्म लभन्ते ये कर्मणा मध्यमाः स्मृताः।

मूलम्

धार्मिकानुत्तमान् विद्धि स्वर्गिणस्ते यथामराः॥
नृषु जन्म लभन्ते ये कर्मणा मध्यमाः स्मृताः।

अनुवाद (हिन्दी)

धार्मिक पुरुषोंको उत्तम समझो। वे देवताओंके समान स्वर्गके अधिकारी होते हैं। जो अपने कर्मके अनुसार मनुष्योंमें जन्म लेते हैं, वे मध्यम माने गये हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिर्यङ्नरकगन्तारो ह्यधमास्ते नराधमाः ॥
पन्थानस्त्रिविधा दृष्टाः सर्वेषां गतजीविनाम्।
रमणीयं निराबाधं दुर्दर्शमिति नामतः॥

मूलम्

तिर्यङ्नरकगन्तारो ह्यधमास्ते नराधमाः ॥
पन्थानस्त्रिविधा दृष्टाः सर्वेषां गतजीविनाम्।
रमणीयं निराबाधं दुर्दर्शमिति नामतः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो नराधम पशु-पक्षियोंकी योनि तथा नरकमें जानेवाले हैं, वे अधमकोटिके अन्तर्गत हैं। सभी मरे हुए प्राणियोंके लिये तीन प्रकारके मार्ग देखे गये हैं—एक रमणीय, दूसरा निराबाध और तीसरा दुर्दर्श॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रमणीयं तु यन्मार्गं पताकाध्वजसंकुलम्।
धूपितं सिक्तसम्मृष्टं पुष्पमालाभिसंकुलम् ॥
मनोहरं सुखस्पर्शं गच्छतामेव तद् भवेत्।
निराबाधं यथालोकं सुप्रशस्तं कृतं भवेत्॥

मूलम्

रमणीयं तु यन्मार्गं पताकाध्वजसंकुलम्।
धूपितं सिक्तसम्मृष्टं पुष्पमालाभिसंकुलम् ॥
मनोहरं सुखस्पर्शं गच्छतामेव तद् भवेत्।
निराबाधं यथालोकं सुप्रशस्तं कृतं भवेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो रमणीय मार्ग है, वह ध्वजा-पताकाओंसे सुशोभित और फूलोंकी मालाओंसे अलंकृत है। उसे झाड़-बुहारकर उसके ऊपर जलका छिड़काव किया गया होता है। वहाँ धूपकी सुगन्ध छायी रहती है। उसका स्पर्श चलनेवालोंके लिये सुखद और मनोहर होता है। निराबाध वह मार्ग है, जो लौकिक मार्गोंके समान सुन्दर एवं प्रशस्त बनाया गया है। वहाँ किसी प्रकारकी बाधा नहीं होती॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तृतीयं यत् तु दुर्दर्शं दुर्गन्धितमसावृतम्।
परुषं शर्कराकीर्णं श्वदंष्ट्राबहुलं भृशम्॥
कृमिकीटसमाकीर्णं भजतामतिदुर्गमम् ।

मूलम्

तृतीयं यत् तु दुर्दर्शं दुर्गन्धितमसावृतम्।
परुषं शर्कराकीर्णं श्वदंष्ट्राबहुलं भृशम्॥
कृमिकीटसमाकीर्णं भजतामतिदुर्गमम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

जो तीसरा मार्ग है, वह देखनेमें भी दुःखद होनेके कारण दुर्दर्श कहलाता है। वह दुर्गन्धयुक्त एवं अन्धकार-से आच्छन्न है। कंकड़-पत्थरोंसे व्याप्त और कठोर जान पड़ता है। वहाँ कुत्ते और दाढ़ोंवाले हिंसक जन्तु अधिक रहते हैं। कृमि और कीट सब ओर छाये रहते हैं। उस मार्गसे चलनेवालोंको वह अत्यन्त दुर्गम प्रतीत होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मार्गैरेवं त्रिभिर्नित्यमुत्तमाधममध्यमान् ॥
संनयन्ति यथा काले तन्मे शृणु शुचिस्मिते।

मूलम्

मार्गैरेवं त्रिभिर्नित्यमुत्तमाधममध्यमान् ॥
संनयन्ति यथा काले तन्मे शृणु शुचिस्मिते।

अनुवाद (हिन्दी)

शुचिस्मिते! इस प्रकार तीन मार्गोंद्वारा वे सदा यथासमय उत्तम, मध्यम और अधम पुरुषोंको जिस प्रकार ले जाते हैं, वह मुझसे सुनो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्तमानन्तकाले तु यमदूताः सुसंवृताः।
नयन्ति सुखमादाय रमणीयपथेन वै॥

मूलम्

उत्तमानन्तकाले तु यमदूताः सुसंवृताः।
नयन्ति सुखमादाय रमणीयपथेन वै॥

अनुवाद (हिन्दी)

उत्तम पुरुषोंको अन्तके समय ले जानेके लिये जो यमदूत आते हैं, वे सुन्दर वस्त्राभूषणोंसे विभूषित होते हैं और उन पुरुषोंको साथ ले रमणीय मार्गद्वारा सुखपूर्वक ले जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मध्यमान् योधवेषेण मध्यमेन पथा तथा॥
चण्डालवेषास्त्वधमान् गृहीत्वा भर्त्सतर्जनैः ।
आकर्षन्तस्तथा पाशैर्दुर्दर्शेन नयन्ति तान्॥
त्रिविधानेवमादाय नयन्ति यमसादनम् ॥

मूलम्

मध्यमान् योधवेषेण मध्यमेन पथा तथा॥
चण्डालवेषास्त्वधमान् गृहीत्वा भर्त्सतर्जनैः ।
आकर्षन्तस्तथा पाशैर्दुर्दर्शेन नयन्ति तान्॥
त्रिविधानेवमादाय नयन्ति यमसादनम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मध्यमकोटिके प्राणियोंको मध्यम मार्गके द्वारा योद्धाका वेष धारण किये हुए यमदूत अपने साथ ले जाते हैं तथा चाण्डालका वेष धारण करके अधमकोटिके प्राणियोंको पकड़कर उन्हें डाँटते-फटकारते तथा पाशोंद्वारा बाँधकर घसीटते हुए दुर्दर्श नामक मार्गसे ले जाते हैं। इस प्रकार त्रिविध प्राणियोंको लेकर वे उन्हें यमलोकमें पहुँचाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धर्मासनगतं दक्षं भ्राजमानं स्वतेजसा।
लोकपालं सभाध्यक्षं तथैव परिषद्‌गतम्॥
दर्शयन्ति महाभागे यामिकास्तं निवेद्य ते।

मूलम्

धर्मासनगतं दक्षं भ्राजमानं स्वतेजसा।
लोकपालं सभाध्यक्षं तथैव परिषद्‌गतम्॥
दर्शयन्ति महाभागे यामिकास्तं निवेद्य ते।

अनुवाद (हिन्दी)

महाभागे! वहाँ धर्मके आसनपर अपने तेजसे प्रकाशित होते हुए अपनी सभाके सभापतिके रूपमें चतुर लोकपाल यम बैठे होते हैं। यमदूत उन्हें सूचना देकर अपने साथ लाये हुए प्राणीको दिखाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूजयन् दण्डयन्‌ कांश्चित्‌ तेषां शृण्वन्‌ शुभाशुभम्।
व्यावृतो बहुसाहस्रैस्तत्रास्ते सततं यमः॥

मूलम्

पूजयन् दण्डयन्‌ कांश्चित्‌ तेषां शृण्वन्‌ शुभाशुभम्।
व्यावृतो बहुसाहस्रैस्तत्रास्ते सततं यमः॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमराज कई सहस्र सदस्योंसे घिरे हुए अपनी सभामें विराजमान होते हैं। वे वहाँ आये हुए प्राणियोंके शुभाशुभ कर्मोंका ब्यौरेवार वर्णन सुनकर उनमेंसे किन्हींका आदर करते हैं और किन्हींको दण्ड देते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गतानां तु यमस्तेषामुत्तमानभिपूजयेत् ।
अभिसंगृह्य विधिवत्‌ पृष्ट्वा स्वागतकौशलम्॥

मूलम्

गतानां तु यमस्तेषामुत्तमानभिपूजयेत् ।
अभिसंगृह्य विधिवत्‌ पृष्ट्वा स्वागतकौशलम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमलोकमें गये हुए प्राणियोंमेंसे जो उत्तम होते हैं, उन्हें विधिपूर्वक अपनाकर स्वागतपूर्वक उनका कुशल-समाचार पूछकर यमराज उनकी पूजा करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रस्तुत्य तत् कृतं तेषां लोकं संदिशते यमः।
यमेनैवमनुज्ञाता यान्ति पश्चात् त्रिविष्टपम्॥

मूलम्

प्रस्तुत्य तत् कृतं तेषां लोकं संदिशते यमः।
यमेनैवमनुज्ञाता यान्ति पश्चात् त्रिविष्टपम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके सत्कर्मोंकी भूरि-भूरि प्रशंसा करके यमराज उन्हें यह संदेश देते हैं कि ‘आपको अमुक पुण्य लोकमें जाना है।’ यमराजकी ऐसी आज्ञा पानेके पश्चात् वे स्वर्गलोकमें जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मध्यमानां यमस्तेषां श्रुत्वा कर्म यथातथम्।
जायन्तां मानुषेष्वेव इति संदिशते च तान्॥

मूलम्

मध्यमानां यमस्तेषां श्रुत्वा कर्म यथातथम्।
जायन्तां मानुषेष्वेव इति संदिशते च तान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

मध्यम कोटिके पुरुषोंके कर्मोंका यथावत् वर्णन सुनकर यमराज उनके लिये यह आज्ञा देते हैं कि ‘ये लोग फिर मनुष्योंमें ही जन्म लें’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अधमान् पाशसंयुक्तान् यमो नावेक्षते गतान्।
यमस्य पुरुषा घोराश्चण्डालसमदर्शनाः ॥
यातनाः प्रापयन्त्येताल्ँलोकपालस्य शासनात् ॥

मूलम्

अधमान् पाशसंयुक्तान् यमो नावेक्षते गतान्।
यमस्य पुरुषा घोराश्चण्डालसमदर्शनाः ॥
यातनाः प्रापयन्त्येताल्ँलोकपालस्य शासनात् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाशोंमें बँधे हुए जो अधम कोटिके प्राणी आते हैं, यमराज उनकी ओर आँख उठाकर देखते तक नहीं हैं। चाण्डालके समान दिखायी देनेवाले भयंकर यमदूत ही लोकपाल यमकी आज्ञासे उन पापियोंको यातनाके स्थानोंमें ले जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भिन्दन्तश्च तुदन्तश्च प्रकर्षन्तो यतस्ततः।
क्रोशन्तः पातयन्त्येतान्‌ मिथो गर्तेष्ववाङ्‌मुखान्॥

मूलम्

भिन्दन्तश्च तुदन्तश्च प्रकर्षन्तो यतस्ततः।
क्रोशन्तः पातयन्त्येतान्‌ मिथो गर्तेष्ववाङ्‌मुखान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे उन्हें विदीर्ण किये डालते हैं, भाँति-भाँतिकी पीड़ाएँ देते हैं, जहाँ-तहाँ घसीटकर ले जाते हैं तथा उन्हें कोसते हुए नीचे मुँह करके नरकके गड्‌ढोंमें गिरा देते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संयामिन्यः शिलाश्चैषां पतन्ति शिरसि प्रिये।
अयोमुखाः कङ्कवला भक्षयन्ति सुदारुणाः॥

मूलम्

संयामिन्यः शिलाश्चैषां पतन्ति शिरसि प्रिये।
अयोमुखाः कङ्कवला भक्षयन्ति सुदारुणाः॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिये! फिर उनके सिरपर ऊपरसे संयामिनी शिलाएँ गिरायी जाती हैं तथा लोहेकी-सी चोंचवाले अत्यन्त भयंकर कौए और बगुले उन्हें नोच खाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

असिपत्रवने घोरे चारयन्ति तथा परान्।
तीक्ष्णदंष्ट्रास्तथा श्वानः कांश्चित् तत्र ह्यदन्ति वै॥

मूलम्

असिपत्रवने घोरे चारयन्ति तथा परान्।
तीक्ष्णदंष्ट्रास्तथा श्वानः कांश्चित् तत्र ह्यदन्ति वै॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरे पापियोंको यमदूत घोर असिपत्रवनमें घुमाते हैं। वहाँ तीखी दाढ़ोंवाले कुत्ते कुछ पापियोंको काट खाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र वैतरणी नाम नदी ग्राहसमाकुला।
दुष्प्रवेशा च घोरा च मूत्रशोणितवाहिनी॥

मूलम्

तत्र वैतरणी नाम नदी ग्राहसमाकुला।
दुष्प्रवेशा च घोरा च मूत्रशोणितवाहिनी॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमलोकमें वैतरणी नामवाली एक नदी है, जो पानीकी जगह मूत और रक्त बहाती है। ग्राहोंसे भरी होनेके कारण वह बड़ी भयंकर जान पड़ती है। उसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठिन है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यां सम्मज्जयन्त्येते तृषितान् पाययन्ति तान्।
आरोपयन्ति वै कांश्चित्‌ तत्र कण्टकशाल्मलीम्॥

मूलम्

तस्यां सम्मज्जयन्त्येते तृषितान् पाययन्ति तान्।
आरोपयन्ति वै कांश्चित्‌ तत्र कण्टकशाल्मलीम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमदूत इन पापियोंको उसी नदीमें डुबो देते हैं। प्यासे प्राणियोंको उस वैतरणीका ही जल पिलाते हैं। वहाँ कितने ही काँटेदार सेमलके वृक्ष हैं। यमदूत कुछ पापियोंको उन्हीं वृक्षोंपर चढ़ाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यन्त्रचक्रेषु तिलवत् पीड्‌यन्ते तत्र केचन।
अङ्गारेषु च दह्यन्ते तथा दुष्कृतकारिणः॥

मूलम्

यन्त्रचक्रेषु तिलवत् पीड्‌यन्ते तत्र केचन।
अङ्गारेषु च दह्यन्ते तथा दुष्कृतकारिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे कोल्हूमें तिल पेरे जाते हैं, उसी प्रकार कितने ही पापी मशीनके चक्कोंमें पेरे जाते हैं। कितने ही अंगारोंमें डालकर जलाये जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुम्भीपाकेषु पच्यन्ते पच्यन्ते सिकतासु वै।
पाट्‌यन्ते तरुवच्छस्त्रैः पापिनः क्रकचादिभिः॥

मूलम्

कुम्भीपाकेषु पच्यन्ते पच्यन्ते सिकतासु वै।
पाट्‌यन्ते तरुवच्छस्त्रैः पापिनः क्रकचादिभिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुछ कुम्भीपाकोंमें पकाये जाते हैं, कुछ तपी हुई बालुकाओंमें भूने जाते हैं और कितने ही पापी आरे आदि शस्त्रोंद्वारा वृक्षकी भाँति चीरे जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भिद्यन्ते भागशः शूलैस्तुद्यन्ते सूक्ष्मसूचिभिः॥
एवं त्वया कृतो दोषस्तदर्थं दण्डनं त्विति।
वाचैवं घोषयन्ति स्म दण्डमानाः समन्ततः॥

मूलम्

भिद्यन्ते भागशः शूलैस्तुद्यन्ते सूक्ष्मसूचिभिः॥
एवं त्वया कृतो दोषस्तदर्थं दण्डनं त्विति।
वाचैवं घोषयन्ति स्म दण्डमानाः समन्ततः॥

अनुवाद (हिन्दी)

कितनोंके शूलोंद्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं। कुछ पापियोंके शरीरोंमें महीन सूइयाँ चुभोयी जाती हैं। दण्ड देनेवाले यमदूत अपनी वाणीद्वारा सब ओर यह घोषित करते रहते हैं कि तूने अमुक पाप किया है, जिसके लिये यह दण्ड तुझे मिल रहा है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं ते यातनां प्राप्य शरीरैर्यातनाशयैः।
प्रसहन्तश्च तद् दुःखं स्मरन्तः स्वापराधजम्॥
क्रोशन्तश्च रुदन्तश्च न मुच्यन्ते कथंचन।
स्मरन्तस्तत्र तप्यन्ते पापमात्मकृतं भृशम्॥

मूलम्

एवं ते यातनां प्राप्य शरीरैर्यातनाशयैः।
प्रसहन्तश्च तद् दुःखं स्मरन्तः स्वापराधजम्॥
क्रोशन्तश्च रुदन्तश्च न मुच्यन्ते कथंचन।
स्मरन्तस्तत्र तप्यन्ते पापमात्मकृतं भृशम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार यातनाधीन शरीरोंद्वारा यातना पाकर नारकी जीव उसके दुःखको सहते और अपने पापको स्मरण करते हुए चीखते-चिल्लाते एवं रोते रहते हैं, किंतु किसी तरह उस यातनासे छुटकारा नहीं पाते हैं। अपने किये हुए पापको याद करके वे अत्यन्त संतप्त हो उठते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं बहुविधा दण्डा भुज्यन्ते पापकारिभिः।
यातनाभिश्च पच्यन्ते नरकेषु पुनः पुनः॥

मूलम्

एवं बहुविधा दण्डा भुज्यन्ते पापकारिभिः।
यातनाभिश्च पच्यन्ते नरकेषु पुनः पुनः॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार पापाचारी प्राणियोंको नाना प्रकारके दण्ड भोगने पड़ते हैं। वे बारंबार नरकोंमें विविध यातनाओंद्वारा पकाये जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपरे यातना भुक्त्वा मुच्यन्ते तत्र किल्बिषात्॥
पापदोषक्षयकरा यातना संस्मृता नृणाम्।
बहु तप्तं यथा लोहममलं तत् तथा भवेत्॥

मूलम्

अपरे यातना भुक्त्वा मुच्यन्ते तत्र किल्बिषात्॥
पापदोषक्षयकरा यातना संस्मृता नृणाम्।
बहु तप्तं यथा लोहममलं तत् तथा भवेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरे लोग वहाँ यातनाएँ भोगकर उस पापसे मुक्त हो जाते हैं। जैसे अधिक तपाया हुआ लोहा निर्मल एवं शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्योंको जो नरकोंमें यातनाएँ प्राप्त होती हैं, वे उनके पाप-दोषका विनाश करनेवाली मानी गयी हैं॥

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगवंस्ते कथं तत्र दण्ड्‌यन्ते नरकेषु वै।
कति ते नरका घोराः कीदृशास्ते महेश्वर॥

मूलम्

भगवंस्ते कथं तत्र दण्ड्‌यन्ते नरकेषु वै।
कति ते नरका घोराः कीदृशास्ते महेश्वर॥

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— भगवन्! महेश्वर! नरकोंमें पापियोंको किस प्रकार दण्ड दिया जाता है? वे भयानक नरक कितने और कैसे हैं?॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु भामिनि तत् सर्वं पञ्चैते नरकाः स्मृताः।
भूमेरधस्ताद् विहिता घोरा दुष्कृतकर्मणाम्॥

मूलम्

शृणु भामिनि तत् सर्वं पञ्चैते नरकाः स्मृताः।
भूमेरधस्ताद् विहिता घोरा दुष्कृतकर्मणाम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— भामिनि! तुमने जो पूछा है, वह सब सुनो। पापाचारी प्राणियोंके लिये भूमिके नीचे जो भयानक नरक बनाये गये हैं, वे मुख्यतः पाँच माने गये हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रथमं रौरवं नाम शतयोजनमायतम्।
तावत्प्रमाणविस्तीर्णं तामसं पापपीडितम् ॥

मूलम्

प्रथमं रौरवं नाम शतयोजनमायतम्।
तावत्प्रमाणविस्तीर्णं तामसं पापपीडितम् ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनमें पहला रौरव नामक नरक है, जिसकी लंबाई सौ योजन है। उसकी चौड़ाई भी उतनी ही है। वह तमोमय नरक पापके कारण प्राप्त होनेवाली पीड़ाओंसे परिपूर्ण है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भृशं दुर्गन्धि परुषं कृमिभिर्दारुणैर्युतम्।
अतिघोरमनिर्देश्यं प्रतिकूलं ततस्ततः ॥

मूलम्

भृशं दुर्गन्धि परुषं कृमिभिर्दारुणैर्युतम्।
अतिघोरमनिर्देश्यं प्रतिकूलं ततस्ततः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उससे बड़ी दुर्गन्ध निकलती है, वह कठोर नरक क्रूर स्वभाववाले कीटोंसे भरा हुआ है। वह अत्यन्त घोर, अवर्णनीय और सर्वथा प्रतिकूल है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते चिरं तत्र तिष्ठन्ति न तत्र शयनासने।
कृमिभिर्भक्ष्यमाणाश्च विष्ठागन्धसमायुताः ॥

मूलम्

ते चिरं तत्र तिष्ठन्ति न तत्र शयनासने।
कृमिभिर्भक्ष्यमाणाश्च विष्ठागन्धसमायुताः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे पापी उस नरकमें सुदीर्घकालतक खड़े रहते हैं। वहाँ सोने और बैठनेकी सुविधा नहीं है। विष्ठाकी दुर्गन्धमें सने हुए उन पापियोंको वहाँके कीड़े खाते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं प्रमाणमुद्विग्ना यावत् तिष्ठन्ति तत्र ते।
यातनाभ्यो दशगुणं नरके दुःखमिष्यते॥

मूलम्

एवं प्रमाणमुद्विग्ना यावत् तिष्ठन्ति तत्र ते।
यातनाभ्यो दशगुणं नरके दुःखमिष्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसे विशाल नरकमें वे जबतक रहते हैं, उद्विग्न भावसे खड़े रहते हैं। साधारण यातनाओंकी अपेक्षा नरकमें दसगुना दुःख होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र चात्यन्तिकं दुःखमिष्यते च शुभेक्षणे।
क्रोशन्तश्च रुदन्तश्च वेदनास्तत्र भुञ्जते॥

मूलम्

तत्र चात्यन्तिकं दुःखमिष्यते च शुभेक्षणे।
क्रोशन्तश्च रुदन्तश्च वेदनास्तत्र भुञ्जते॥

अनुवाद (हिन्दी)

शुभेक्षणे! वहाँ आत्यन्तिक दुःखकी प्राप्ति होती है। पापी जीव चीखते-चिल्लाते और रोते हुए वहाँकी यातनाएँ भोगते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भ्रमन्ति दुःखमोक्षार्थं ज्ञाता कश्चिन्न विद्यते।
दुःखस्यान्तरमात्रं तु ज्ञानं वा न च लभ्यते॥

मूलम्

भ्रमन्ति दुःखमोक्षार्थं ज्ञाता कश्चिन्न विद्यते।
दुःखस्यान्तरमात्रं तु ज्ञानं वा न च लभ्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दुःखोंसे छुटकारा पानेके लिये चारों ओर चक्कर काटते हैं; परंतु कोई भी उन्हें जाननेवाला वहाँ नहीं होता। उस दुःखमें तनिक भी अन्तर नहीं होता और न उसे छुड़ानेवाला ज्ञान ही उपलब्ध होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महारौरवसंज्ञं तु द्वितीयं नरकं प्रिये।
तस्माद् द्विगुणितं विद्धि माने दुःखे च रौरवात्॥

मूलम्

महारौरवसंज्ञं तु द्वितीयं नरकं प्रिये।
तस्माद् द्विगुणितं विद्धि माने दुःखे च रौरवात्॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिये! दूसरे नरकका नाम है महारौरव। वह लंबाई, चौड़ाई और दुःखमें रौरवसे दूना बड़ा है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तृतीयं नरकं तत्र कण्टकावनसंज्ञितम्।
ततो द्विगुणितं तच्च पूर्वाभ्यां दुःखमानयोः॥
महापातकसंयुक्ता घोरास्तस्मिन् विशन्ति हि॥

मूलम्

तृतीयं नरकं तत्र कण्टकावनसंज्ञितम्।
ततो द्विगुणितं तच्च पूर्वाभ्यां दुःखमानयोः॥
महापातकसंयुक्ता घोरास्तस्मिन् विशन्ति हि॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ तीसरा नरक है कण्टकावन, जो दुःख और लंबाई-चौड़ाईमें पहलेके दोनों नरकोंसे दुगुना बड़ा है। उसमें घोर महापातकयुक्त प्राणी प्रवेश करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्निकुण्डमिति ख्यातं चतुर्थं नरकं प्रिये।
एतद् द्विगुणितं तस्माद् यथानिष्टसुखं तथा॥
ततो दुःखं हि सुमहदमानुषमिति स्मृतम्।
भुञ्जते तत्र तत्रैव दुःखं दुष्कृतकारिणः॥

मूलम्

अग्निकुण्डमिति ख्यातं चतुर्थं नरकं प्रिये।
एतद् द्विगुणितं तस्माद् यथानिष्टसुखं तथा॥
ततो दुःखं हि सुमहदमानुषमिति स्मृतम्।
भुञ्जते तत्र तत्रैव दुःखं दुष्कृतकारिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिये! चौथा नरक अग्निकुण्डके नामसे विख्यात है। यह पहलेकी अपेक्षा दूना दुःख देनेवाला है। वहाँ महान् अमानुषिक दुःख भोगने पड़ते हैं। उन सभीमें पापाचारी प्राणी दुःख भोगते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चकष्टमिति ख्यातं नरकं पञ्चमं प्रिये।
तत्र दुःखमनिर्देश्यं महाघोरं यथातथम्॥

मूलम्

पञ्चकष्टमिति ख्यातं नरकं पञ्चमं प्रिये।
तत्र दुःखमनिर्देश्यं महाघोरं यथातथम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिये! पाँचवें नरकका नाम पंचकष्ट है। वहाँ जो महाघोर दुःख प्राप्त होता है, उसका यथावत् वर्णन नहीं किया जा सकता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चेन्द्रियैरसह्यत्वात् पञ्चकष्टमिति स्मृतम् ।
भुञ्जते तत्र तत्रैवं दुःखं दुष्कृतकारिणः॥

मूलम्

पञ्चेन्द्रियैरसह्यत्वात् पञ्चकष्टमिति स्मृतम् ।
भुञ्जते तत्र तत्रैवं दुःखं दुष्कृतकारिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाँचों इन्द्रियोंसे असह्य होनेके कारण उसका नाम ‘पंचकष्ट’ है। पापी पुरुष उन-उन नरकोंमें महान् दुःख भोगते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अमानुषार्हजं दुःखं महाभूतैश्च भुज्यते।
अतिघोरं चिरं कृत्वा महाभूतानि यान्ति तम्॥

मूलम्

अमानुषार्हजं दुःखं महाभूतैश्च भुज्यते।
अतिघोरं चिरं कृत्वा महाभूतानि यान्ति तम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ बड़े-बड़े जीव चिरकालतक अत्यन्त घोर अमानुषिक दुःख भोगते हैं और महान् भूतोंके समुदाय उस पापी पुरुषका अनुसरण करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चकष्टेन हि समं नास्ति दुःखं तथा परम्।
दुःखस्थानमिति प्राहुः पञ्चकष्टमिति प्रिये॥

मूलम्

पञ्चकष्टेन हि समं नास्ति दुःखं तथा परम्।
दुःखस्थानमिति प्राहुः पञ्चकष्टमिति प्रिये॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिये! पंचकष्टके समान या उससे बढ़कर दुःख कोई नहीं है। पंचकष्टको समस्त दुःखोंका निवासस्थान बताया गया है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं त्वेतेषु तिष्ठन्ति प्राणिनो दुःखभागिनः।
अन्ये च नरकाः सन्त्यवीचिप्रमुखाः प्रिये॥

मूलम्

एवं त्वेतेषु तिष्ठन्ति प्राणिनो दुःखभागिनः।
अन्ये च नरकाः सन्त्यवीचिप्रमुखाः प्रिये॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार इन नरकोंमें दुःख भोगनेवाले प्राणी निवास करते हैं। प्रिये! इन नरकोंके सिवा और भी बहुत-से अवीचि आदि नरक हैं।

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्रोशन्तश्च रुदन्तश्च वेदनार्ता भुशातुराः।
केचिद् भ्रमन्तश्चेष्टन्ते केचिद् धावन्ति चातुराः॥

मूलम्

क्रोशन्तश्च रुदन्तश्च वेदनार्ता भुशातुराः।
केचिद् भ्रमन्तश्चेष्टन्ते केचिद् धावन्ति चातुराः॥

अनुवाद (हिन्दी)

वेदनासे पीड़ित हो अत्यन्त आतुर हुए नरकनिवासी जीव रोते-चिल्लाते रहते हैं। कोई चारों ओर चक्कर काटते हैं, कोई पृथ्वीपर पड़े-पड़े छटपटाते हैं और कोई आतुर होकर दौड़ते रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आधावन्तो निवार्यन्ते शूलहस्तैर्यतस्ततः ।
रुजार्दितास्तृषायुक्ताः प्राणिनः पापकारिणः ॥

मूलम्

आधावन्तो निवार्यन्ते शूलहस्तैर्यतस्ततः ।
रुजार्दितास्तृषायुक्ताः प्राणिनः पापकारिणः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कोई दौड़ते हुए प्राणी हाथमें त्रिशूल लिये हुए यमदूतोंद्वारा जहाँ-तहाँ रोके जाते हैं। वहाँ पापाचारी जीव रोगोंसे व्यथित और प्याससे पीड़ित रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यावत् पूर्वकृतं तावन्न मुच्यन्ते कथंचन।
कृमिभिर्भक्ष्यमाणाश्च वेदनार्तास्तृषान्विताः ॥

मूलम्

यावत् पूर्वकृतं तावन्न मुच्यन्ते कथंचन।
कृमिभिर्भक्ष्यमाणाश्च वेदनार्तास्तृषान्विताः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जबतक पूर्वकृत पापका भोग शेष है, तबतक किसी तरह उन्हें नरकोंसे छुटकारा नहीं मिलता है। उनको कीड़े काटते रहते हैं तथा वे वेदनासे पीड़ित और प्याससे व्याकुल होते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संस्मरन्तः स्वकं पापं कृतमात्मापराधजम्।
शोचन्तस्तत्र तिष्ठन्ति यावत् पापक्षयं प्रिये॥
एवं भुक्त्वा तु नरकं मुच्यन्ते पापसंक्षयात्॥

मूलम्

संस्मरन्तः स्वकं पापं कृतमात्मापराधजम्।
शोचन्तस्तत्र तिष्ठन्ति यावत् पापक्षयं प्रिये॥
एवं भुक्त्वा तु नरकं मुच्यन्ते पापसंक्षयात्॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रिये! जबतक सारे पापोंका क्षय नहीं हो जाता तबतक वे अपने ही किये हुए अपराधजनित पापको याद करके वहाँ शोकमग्न होते रहते हैं। इस प्रकार नरक भोगकर पापोंका नाश करनेके पश्चात् वे उस कष्टसे मुक्ता हो जाते हैं॥

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगवन् कति कालं ते तिष्ठन्ति नरकेषु वै।
एतद् वेदितुमिच्छामि तन्मे ब्रूहि महेश्वर॥

मूलम्

भगवन् कति कालं ते तिष्ठन्ति नरकेषु वै।
एतद् वेदितुमिच्छामि तन्मे ब्रूहि महेश्वर॥

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— भगवन्! महेश्वर! पापी जीव कितने समयतक नरकोंमें रहते हैं, यह मैं जानना चाहती हूँ? अतः मुझे बताइये॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शतवर्षसहस्राणामादिं कृत्वा हि जन्तवः।
तिष्ठन्ति नरकावासाः प्रलयान्तमिति स्थितिः॥

मूलम्

शतवर्षसहस्राणामादिं कृत्वा हि जन्तवः।
तिष्ठन्ति नरकावासाः प्रलयान्तमिति स्थितिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— प्राणी अपने पापोंके अनुसार एक लाख वर्षोंसे लेकर महाप्रलयकालतक नरकोंमें निवास करते हैं, ऐसा शास्त्रोंका निश्चय है॥

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगवंस्तेषु के तत्र तिष्ठन्तीति वद प्रभो॥

मूलम्

भगवंस्तेषु के तत्र तिष्ठन्तीति वद प्रभो॥

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— भगवन्! प्रभो! उन नरकोंमें किस-किस तरहके पापी निवास करते हैं? यह मुझे बताइये॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

रौरवे शतसाहस्रं वर्षाणामिति संस्थितिः।
मानुषघ्नाः कृतघ्नाश्च तथैवानृतवादिनः ॥

मूलम्

रौरवे शतसाहस्रं वर्षाणामिति संस्थितिः।
मानुषघ्नाः कृतघ्नाश्च तथैवानृतवादिनः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— रौरव नरकमें एक लाख वर्षोंतक रहनेका नियम है। उसमें मनुष्योंकी हत्या करनेवाले, कृतघ्न तथा असत्यवादी मनुष्य जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्वितीये द्विगुणं कालं पच्यन्ते तादृशा नराः।
महापातकयुक्तास्तु तृतीये दुःखमाप्नुयुः ॥

मूलम्

द्वितीये द्विगुणं कालं पच्यन्ते तादृशा नराः।
महापातकयुक्तास्तु तृतीये दुःखमाप्नुयुः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरे नरक (महारौरव)-में वैसे ही पापी मनुष्य दूने काल (दो लाख वर्ष) तक पकाये जाते हैं। तीसरे (कण्टकावन)-में महापातकी मनुष्य कष्ट भोगते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चतुर्थे परितप्यन्ते यावद् युगविपर्ययः॥

मूलम्

चतुर्थे परितप्यन्ते यावद् युगविपर्ययः॥

अनुवाद (हिन्दी)

चौथे नरकमें पापी लोग तबतक संतप्त होते हैं, जबतक कि महाप्रलय नहीं हो जाता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहन्तस्तादृशं घोरं पञ्चकष्टे तु यादृशम्।
तत्रास्य चिरदुःखस्य ह्यधोऽन्यान्‌ विद्धि मानुषान्॥

मूलम्

सहन्तस्तादृशं घोरं पञ्चकष्टे तु यादृशम्।
तत्रास्य चिरदुःखस्य ह्यधोऽन्यान्‌ विद्धि मानुषान्॥

अनुवाद (हिन्दी)

पंचकष्ट नरकमें जैसा घोर दुःख होता है, उसको भी यहाँ सहन करते हैं। दीर्घकालतक दुःख देनेवाले इस घोर नरकसे नीचे मानवसम्बन्धी अन्य नरकोंकी स्थिति समझो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं ते नरकान् भुक्त्वा तत्र क्षपितकल्मषाः।
नरकेभ्यो विमुक्ताश्च जायन्ते कृमिजातियु॥

मूलम्

एवं ते नरकान् भुक्त्वा तत्र क्षपितकल्मषाः।
नरकेभ्यो विमुक्ताश्च जायन्ते कृमिजातियु॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार नरकोंका कष्ट भोग लेनेके बाद पाप कट जानेपर मनुष्य उन नरकोंसे छूटकर कीटयोनिमें जन्म लेते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उद्भेदजेषु वा केचिदत्रापि क्षीणकल्मषाः।
पुनरेव प्रजायन्ते मृगपक्षिषु शोभने॥
मृगपक्षिषु तद् भुक्त्वा लभन्ते मानुषं पदम्॥

मूलम्

उद्भेदजेषु वा केचिदत्रापि क्षीणकल्मषाः।
पुनरेव प्रजायन्ते मृगपक्षिषु शोभने॥
मृगपक्षिषु तद् भुक्त्वा लभन्ते मानुषं पदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

शोभने! अथवा कोई-कोई उद्भिज्ज योनिमें जन्म लेते हैं। उसमें भी कुछ पापोंका क्षय होनेके बाद वे पुनः पशु-पक्षियोंकी योनिमें जन्म पाते हैं। वहाँ कर्मफल भोग लेनेपर उन्हें मनुष्यशरीरकी प्राप्ति होती है॥

मूलम् (वचनम्)

उमोवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानाजातिषु केनैव जायन्ते पापकारिणः॥

मूलम्

नानाजातिषु केनैव जायन्ते पापकारिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

उमाने पूछा— प्रभो! पापाचारी मनुष्य किस प्रकारसे नाना प्रकारकी योनियोंमें जन्म लेते हैं?॥

मूलम् (वचनम्)

श्रीमहेश्वर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदहं ते प्रवक्ष्यामि यत् त्वमिच्छसि शोभने।
सर्वदाऽऽत्मा कर्मवशो नानाजातिषु जायते॥

मूलम्

तदहं ते प्रवक्ष्यामि यत् त्वमिच्छसि शोभने।
सर्वदाऽऽत्मा कर्मवशो नानाजातिषु जायते॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीमहेश्वरने कहा— शोभने! तुम जो चाहती हो, उसे बता रहा हूँ। जीवात्मा सदा कर्मके अधीन होकर नाना प्रकारकी योनियोंमें जन्म लेता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यश्च मांसप्रियो नित्यं काकगृध्रान् स संस्पृशेत्।
सुरापः सततं मर्त्यः सूकरत्वं व्रजेद् ध्रुवम्॥

मूलम्

यश्च मांसप्रियो नित्यं काकगृध्रान् स संस्पृशेत्।
सुरापः सततं मर्त्यः सूकरत्वं व्रजेद् ध्रुवम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन मांसके लिये लालायित रहता है, वह कौओं और गीधोंकी योनिमें जन्म लेता है। सदा शराब पीनेवाला मनुष्य निश्चय ही सूअर होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभक्ष्यभक्षणो मर्त्यः काकजातिषु जायते।
आत्मघ्नो यो नरः कोपात् प्रेतजातिषु तिष्ठति॥

मूलम्

अभक्ष्यभक्षणो मर्त्यः काकजातिषु जायते।
आत्मघ्नो यो नरः कोपात् प्रेतजातिषु तिष्ठति॥

अनुवाद (हिन्दी)

अभक्ष्य भक्षण करनेवाला मनुष्य कौएके कुलमें उत्पन्न होता है तथा क्रोधपूर्वक आत्महत्या करनेवाला पुरुष प्रेतयोनिमें पड़ा रहता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पैशुन्यात् परिवादाच्च कुक्कुटत्वमवाप्नुयात् ।
नास्तिकश्चैव यो मूर्खो मृगजातिं स गच्छति॥

मूलम्

पैशुन्यात् परिवादाच्च कुक्कुटत्वमवाप्नुयात् ।
नास्तिकश्चैव यो मूर्खो मृगजातिं स गच्छति॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरोंकी चुगली और निन्दा करनेसे मुर्गेकी योनिमें जन्म लेना पड़ता है। जो मूर्ख नास्तिक होता है, वह मृगजातिमें जन्म ग्रहण करता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हिंसाविहारस्तु नरः कृमिकीटेषु जायते।
अतिमानयुतो नित्यं प्रेत्य गर्दभतां व्रजेत्॥

मूलम्

हिंसाविहारस्तु नरः कृमिकीटेषु जायते।
अतिमानयुतो नित्यं प्रेत्य गर्दभतां व्रजेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

हिंसा या शिकारके लिये भ्रमण करनेवाला मानव कीड़ोंकी योनिमें जन्म लेता है। अत्यन्त अभिमानयुक्त पुरुष सदा मृत्युके पश्चात् गदहेकी योनिमें जन्म पाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अगम्यागमनाच्चैव परदारनिषेवणात् ।
मूषिकत्वं व्रजेन्मर्त्यो नास्ति तत्र विचारणा॥

मूलम्

अगम्यागमनाच्चैव परदारनिषेवणात् ।
मूषिकत्वं व्रजेन्मर्त्यो नास्ति तत्र विचारणा॥

अनुवाद (हिन्दी)

अगम्या-गमन और परस्त्रीसेवन करनेसे मनुष्य चूहा होता है, इसमें शंका करनेकी आवश्यकता नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृतघ्नो मित्रघाती च शृगालवृकजातिषु।
कृतघ्नः पुत्रघाती च स्थावरेष्वथ तिष्ठति॥

मूलम्

कृतघ्नो मित्रघाती च शृगालवृकजातिषु।
कृतघ्नः पुत्रघाती च स्थावरेष्वथ तिष्ठति॥

अनुवाद (हिन्दी)

कृतघ्न और मित्रघाती मनुष्य सियार और भेड़ियोंकी योनिमें जन्म लेता है। दूसरोंके किये हुए उपकारको न माननेवाला और पुत्रघाती मनुष्य स्थावरयोनिमें जन्म लेता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमाद्यशुभं कृत्वा नरा निरयगामिनः।
तां तां योनिं प्रपद्यन्ते स्वकृतस्यैव कारणात्॥

मूलम्

एवमाद्यशुभं कृत्वा नरा निरयगामिनः।
तां तां योनिं प्रपद्यन्ते स्वकृतस्यैव कारणात्॥

अनुवाद (हिन्दी)

इत्यादि प्रकारके अशुभ कर्म करके मनुष्य नरकगामी होते हैं और अपनी ही करनीके कारण पूर्वोक्त भिन्न-भिन्न योनिमें जन्म ग्रहण करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं जातिषु निर्देश्याः प्राणिनः पापकारिणः।
कथंचित् पुनरुत्पद्य लभन्ते मानुषं पदम्॥

मूलम्

एवं जातिषु निर्देश्याः प्राणिनः पापकारिणः।
कथंचित् पुनरुत्पद्य लभन्ते मानुषं पदम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी तरह विभिन्न जातियोंमें जन्म लेनेवाले पापाचारी प्राणियोंका निर्देश करना चाहिये। ये किसी तरह उन योनियोंसे छूटकर जब पुनः जन्म लेते हैं, तब मनुष्यका पद पाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बहुशश्चाग्निसंक्रान्तं लोहं शुचिमयं यथा।
बहुदुःखाभिसंतप्तस्तथाऽऽत्मा शोध्यते बलात् ॥
तस्मात् सुदुर्लभं चेति विद्धि जन्मसु मानुषम्॥

मूलम्

बहुशश्चाग्निसंक्रान्तं लोहं शुचिमयं यथा।
बहुदुःखाभिसंतप्तस्तथाऽऽत्मा शोध्यते बलात् ॥
तस्मात् सुदुर्लभं चेति विद्धि जन्मसु मानुषम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे लोहेको बार-बार आगमें तपानेसे वह शुद्ध होता है, उसी प्रकार बहुत दुःखसे संतप्त हुआ जीवात्मा बलात् शुद्ध हो जाता है। अतः सभी जन्मोंमें मानव-जन्मको अत्यन्त दुर्लभ समझो॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)