मूलम् (समाप्तिः)
[उमा-महेश्वर-संवादमें कितने ही महत्त्वपूर्ण विषयोंका विवेचन]
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् देवदेवेश प्रमदा विधवा भृशम्।
दृश्यन्ते मानुषे लोके सर्वकल्याणवर्जिताः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।
मूलम्
भगवन् देवदेवेश प्रमदा विधवा भृशम्।
दृश्यन्ते मानुषे लोके सर्वकल्याणवर्जिताः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! देवदेवेश्वर! मनुष्यलोकमें बहुत-सी युवती स्त्रियाँ समस्त कल्याणोंसे रहित विधवा दिखायी देती हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
याः पुरा मनुजा देवि बुद्धिमोहसमन्विताः।
कुटुम्बं तत्र वै पत्युर्नाशयन्ति वृथा तथा॥
विषदाश्चाग्निदाश्चैव पतीन् प्रति सुनिर्दयाः।
अन्यासां हि पतीन् यान्ति स्वपतीन् द्वेष्यकारणात्॥
एवंयुक्तसमाचारा यमलोके सुदण्डिताः ॥
निरयस्थाश्चिरं कालं कथंचित् प्राप्य मानुषम्॥
तत्र ता भोगरहिता विधवाश्च भवन्ति वै॥
मूलम्
याः पुरा मनुजा देवि बुद्धिमोहसमन्विताः।
कुटुम्बं तत्र वै पत्युर्नाशयन्ति वृथा तथा॥
विषदाश्चाग्निदाश्चैव पतीन् प्रति सुनिर्दयाः।
अन्यासां हि पतीन् यान्ति स्वपतीन् द्वेष्यकारणात्॥
एवंयुक्तसमाचारा यमलोके सुदण्डिताः ॥
निरयस्थाश्चिरं कालं कथंचित् प्राप्य मानुषम्॥
तत्र ता भोगरहिता विधवाश्च भवन्ति वै॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो स्त्रियाँ पहले जन्ममें बुद्धिमें मोह छा जानेके कारण पतिके कुटुम्बका व्यर्थ नाश करती हैं, विष देती, आग लगाती और पतियोंके प्रति अत्यन्त निर्दय होती हैं, अपने पतियोंसे द्वेष रखनेके कारण दूसरी स्त्रियोंके पतियोंसे सम्बन्ध स्थापित कर लेती हैं, ऐसे आचरणवाली नारियाँ यमलोकमें भलीभाँति दण्डित हो चिरकालतक नरकमें पड़ी रहती हैं। फिर किसी तरह मनुष्य-योनि पाकर वे भोगरहित विधवा हो जाती हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् देवदेवेश मानुषेष्वेव केचन।
दासभूताः प्रदृश्यन्ते सर्वकर्मपरा भृशम्॥
आघातभर्त्सनसहाः पीड्यमानाश्च सर्वशः ।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् देवदेवेश मानुषेष्वेव केचन।
दासभूताः प्रदृश्यन्ते सर्वकर्मपरा भृशम्॥
आघातभर्त्सनसहाः पीड्यमानाश्च सर्वशः ।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! देवदेवेश्वर! मनुष्योंमें ही कोई दासभावको प्राप्त दिखायी देते हैं, जो सब प्रकारके कर्मोंमें सर्वथा संलग्न रहते हैं। वे पीटे जाते हैं, डाँट-फटकार सहते हैं और सब तरहसे सताये जाते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्॥
ये पुरा मनुजा देवि परेषां वित्तहारकाः॥
ऋणवृद्धिकरं क्रौर्यान्न्यासदत्तं तथैव च।
निक्षेपकारणाद् दत्तपरद्रव्यापहारिणः ॥
प्रमादाद् विस्मृतं नष्टं परेषां धनहारकाः।
वधबन्धपरिक्लेशैर्दासत्वं कुर्वते परान् ॥
तादृशा मरणं प्राप्ता दण्डिता यमशासनैः।
कथंचित् प्राप्य मानुष्यं तत्र ते देवि सर्वथा॥
दासभूता भविष्यन्ति जन्मप्रभृति मानवाः॥
तेषां कर्माणि कुर्वन्ति येषां ते धनहारकाः।
आसमाप्तेः स्वपापस्य कुर्वन्तीति विनिश्चयः॥
मूलम्
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्॥
ये पुरा मनुजा देवि परेषां वित्तहारकाः॥
ऋणवृद्धिकरं क्रौर्यान्न्यासदत्तं तथैव च।
निक्षेपकारणाद् दत्तपरद्रव्यापहारिणः ॥
प्रमादाद् विस्मृतं नष्टं परेषां धनहारकाः।
वधबन्धपरिक्लेशैर्दासत्वं कुर्वते परान् ॥
तादृशा मरणं प्राप्ता दण्डिता यमशासनैः।
कथंचित् प्राप्य मानुष्यं तत्र ते देवि सर्वथा॥
दासभूता भविष्यन्ति जन्मप्रभृति मानवाः॥
तेषां कर्माणि कुर्वन्ति येषां ते धनहारकाः।
आसमाप्तेः स्वपापस्य कुर्वन्तीति विनिश्चयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— कल्याणि! वह कारण मैं बताता हूँ, सुनो। देवि! जो मनुष्य पहले दूसरोंके धनका अपहरण करते हैं, जो क्रूरतावश किसीके ऐसे धनको हड़प लेते हैं, जिसके कारण उसके ऊपर ऋण बढ़ जाता है, जो रखनेके लिये दिये हुए या धरोहरके तौरपर रखे हुए पराये धनको दबा लेते हैं अथवा प्रमादवश दूसरोंके भूले या खोये हुए धनको हर लेते हैं, दूसरोंको वध-बन्धन और क्लेशमें डालकर उनसे अपनी दासता कराते हैं; देवि! ऐसे लोग मृत्युको प्राप्त हो यमदण्डसे दण्डित होकर जब किसी तरह मनुष्य-योनिमें जन्म लेते हैं, तब जन्मसे ही दास होते हैं और उन्हींकी सेवा करते हैं, जिनका धन उन्होंने पूर्वजन्ममें हर लिया है। जबतक उनके पापका भोग समाप्त नहीं हो जाता, तबतक वे दासकर्म ही करते रहते हैं, यही शास्त्रका निश्चय है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पशुभूतास्तथा चान्ये भवन्ति धनहारकाः।
तत् तथा क्षीयते कर्म तेषां पूर्वापराधजम्॥
मूलम्
पशुभूतास्तथा चान्ये भवन्ति धनहारकाः।
तत् तथा क्षीयते कर्म तेषां पूर्वापराधजम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
पराये धनका अपहरण करनेवाले दूसरे लोग पशु होकर भी धनीकी सेवा करते हैं। ऐसा करनेसे उनका पूर्वापराधजनित कर्म क्षीण होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किंतु मोक्षविधिस्तेषां सर्वथा तत्प्रसादनम्।
अयथावन्मोक्षकामः पुनर्जन्मनि चेष्यते ॥
मूलम्
किंतु मोक्षविधिस्तेषां सर्वथा तत्प्रसादनम्।
अयथावन्मोक्षकामः पुनर्जन्मनि चेष्यते ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सब प्रकारसे उस धनके स्वामीको प्रसन्न कर लेना ही उसके ऋणसे छुटकारा पानेका उपाय है, किंतु जो यथावत् रूपसे उस ऋणसे छूटना नहीं चाहता, उसे पुनर्जन्म लेकर उसकी सेवा करनी पड़ती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मोक्षकामी यथान्यायं कुर्वन् कर्माणि सर्वशः।
भर्तुः प्रसादमाकांक्षेदायासान् सर्वथा सहन्॥
मूलम्
मोक्षकामी यथान्यायं कुर्वन् कर्माणि सर्वशः।
भर्तुः प्रसादमाकांक्षेदायासान् सर्वथा सहन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो उस बन्धनसे छूटना चाहता हो, वह यथोचित रूपसे सारे काम करता और परिश्रमको सर्वथा सहता हुआ स्वामीको प्रसन्न करनेकी आकांक्षा रखे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रीतिपूर्वं तु यो भर्त्रा मुक्तो मुक्तः स पावनः।
तथाभूतान् कर्मकरान् सदा संतोषयेत् पतिः॥
मूलम्
प्रीतिपूर्वं तु यो भर्त्रा मुक्तो मुक्तः स पावनः।
तथाभूतान् कर्मकरान् सदा संतोषयेत् पतिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसे स्वामी प्रसन्न्तापूर्वक दासताके बन्धनसे मुक्त कर देता है, वह मुक्त एवं शुद्ध हो जाता है। स्वामीको भी चाहिये कि वह ऐसे सेवकोंको सदा संतुष्ट रखे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथार्हं कारयेत् कर्म दण्डं कारणतः क्षिपेत्।
वृद्धान् बालांस्तथा क्षीणान् पालयन् धर्ममाप्नुयात्।
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
मूलम्
यथार्हं कारयेत् कर्म दण्डं कारणतः क्षिपेत्।
वृद्धान् बालांस्तथा क्षीणान् पालयन् धर्ममाप्नुयात्।
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनसे यथायोग्य कार्य कराये और विशेष कारणसे ही उन्हें दण्ड दे। जो वृद्धों, बालकों और दुर्बल मनुष्योंका पालन करता है, वह धर्मका भागी होता है। देवि! यह विषय तुम्हें बताया गया। अब और क्या सुनना चाहती हो॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् भुवि मर्त्यानां दण्डितानां नरेश्वरैः।
दण्डेनैव कृतेनेह पापनाशो भवेन्न वा॥
एतन्मया संशयितं तद् भवांश्छेत्तुमर्हति॥
मूलम्
भगवन् भुवि मर्त्यानां दण्डितानां नरेश्वरैः।
दण्डेनैव कृतेनेह पापनाशो भवेन्न वा॥
एतन्मया संशयितं तद् भवांश्छेत्तुमर्हति॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! इस भूतलपर राजा लोग जिन मनुष्योंको दण्ड दे देते हैं, अब उस दण्डसे ही उनके पापोंका नाश हो जाता है या नहीं? यह मेरा संदेह है। आप इसका निवारण करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थाने संशयितं देवि शृणु तत्त्वं समाहिता॥
ये नृपैर्दण्डिता भूमावपराधापदेशतः ।
यमलोके न दण्ड्यन्ते तत्र ते यमदण्डनैः॥
मूलम्
स्थाने संशयितं देवि शृणु तत्त्वं समाहिता॥
ये नृपैर्दण्डिता भूमावपराधापदेशतः ।
यमलोके न दण्ड्यन्ते तत्र ते यमदण्डनैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! तुम्हारा संदेह ठीक है, तुम एकाग्रचित्त होकर इसका यथार्थ उत्तर सुनो। इस भूमिपर राजालोग जिस अपराधका नाम लेकर जिन मनुष्योंको दण्ड दे देते हैं, उसके लिये वे यमलोकमें यमराजके दण्डद्वारा दण्डित नहीं होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अदण्डिता वा ये तथ्या मिथ्या वा दण्डिता भुवि।
तान् यमो दण्डयत्येव स हि वेद कृताकृतम्॥
मूलम्
अदण्डिता वा ये तथ्या मिथ्या वा दण्डिता भुवि।
तान् यमो दण्डयत्येव स हि वेद कृताकृतम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस पृथ्वीपर जो वास्तविक अपराधी बिना दण्ड पाये रह जाते हैं अथवा झूठे ही दूसरे लोग दण्डित हो जाते हैं, उस दशामें यमराज उन वास्तविक अपराधियोंको अवश्य दण्ड देते हैं; क्योंकि वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि किसने अपराध किया है और किसने नहीं किया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नातिक्रमेद् यमं कश्चित् कर्म कृत्वेह मानुषः।
राजा यमश्च कुर्वाते दण्डमात्रं तु शोभने॥
मूलम्
नातिक्रमेद् यमं कश्चित् कर्म कृत्वेह मानुषः।
राजा यमश्च कुर्वाते दण्डमात्रं तु शोभने॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोई भी मनुष्य इस लोकमें कर्म करके यमराजको नहीं लाँघ सकता, उसे अवश्य दण्ड भोगना पड़ता है। शोभने! राजा और यम सबको भरपूर दण्ड देते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नास्ति कर्मफलच्छेत्ता कश्चिल्लोकत्रयेऽपि च।
इति ते कथितं सर्वं निर्विशङ्का भव प्रिये॥
मूलम्
नास्ति कर्मफलच्छेत्ता कश्चिल्लोकत्रयेऽपि च।
इति ते कथितं सर्वं निर्विशङ्का भव प्रिये॥
अनुवाद (हिन्दी)
तीनों लोकोंमें कोई भी ऐसा पुरुष नहीं है, जो कर्मोंके फलका बिना भोगे नाश कर सके। प्रिये! इस विषयमें तुम्हें सारी बातें बता दीं। अब संदेहरहित हो जाओ॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमर्थं दुष्कृतं कृत्वा मानुषा भुवि नित्यशः।
पुनस्तत्कर्मनाशाय प्रायश्चित्तानि कुर्वते ॥
मूलम्
किमर्थं दुष्कृतं कृत्वा मानुषा भुवि नित्यशः।
पुनस्तत्कर्मनाशाय प्रायश्चित्तानि कुर्वते ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! यदि ऐसी बात है तो भूमण्डलके मनुष्य पाप-कर्म करके उसके निवारणके लिये प्रायश्चित्त क्यों करते हैं?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वपापहरं चेति हयमेधं वदन्ति च।
प्रायश्चित्तानि चान्यानि पापनाशाय कुर्वते॥
तस्मान्मया संशयितं त्वं तच्छेत्तुमिहार्हसि।
मूलम्
सर्वपापहरं चेति हयमेधं वदन्ति च।
प्रायश्चित्तानि चान्यानि पापनाशाय कुर्वते॥
तस्मान्मया संशयितं त्वं तच्छेत्तुमिहार्हसि।
अनुवाद (हिन्दी)
कहते हैं कि अश्वमेधयज्ञ सम्पूर्ण पापोंको हर लेनेवाला है। लोग दूसरे-दूसरे प्रायश्चित्त भी पापोंका नाश करनेके लिये ही करते हैं (इधर आप कहते हैं कि तीनों लोकोंमें कोई कर्मफलका नाश करनेवाला है ही नहीं) अतः इस विषयमें मुझे संदेह हो गया है। आप मेरे इस संदेहका निवारण करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थाने संशयितं देवि शृणु तत्त्वं समाहिता।
संशयो हि महानेव पूर्वेषां च मनीषिणाम्॥
मूलम्
स्थाने संशयितं देवि शृणु तत्त्वं समाहिता।
संशयो हि महानेव पूर्वेषां च मनीषिणाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! तुमने ठीक संशय उपस्थित किया है। अब एकाग्रचित्त होकर इसका वास्तविक उत्तर सुनो। पहलेके महर्षियोंके मनमें भी यह महान् संदेह बना रहा है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्विधा तु क्रियते पापं सद्भिश्चासद्भिरेव च।
अभिसंधाय वा नित्यमन्यथा वा यदृच्छया॥
मूलम्
द्विधा तु क्रियते पापं सद्भिश्चासद्भिरेव च।
अभिसंधाय वा नित्यमन्यथा वा यदृच्छया॥
अनुवाद (हिन्दी)
सज्जन हों या असज्जन, सभीके द्वारा दो प्रकारका पाप बनता है, एक तो वह पाप है, जिसे सदा किसी उद्देश्यको मनमें लेकर जान-बूझकर किया जाता है और दूसरा वह है, जो अकस्मात् दैवेच्छासे बिना जाने ही बन जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केवलं चाभिसंधाय संरम्भाच्च करोति यत्।
कर्मणस्तस्य नाशस्तु न कथंचन विद्यते॥
मूलम्
केवलं चाभिसंधाय संरम्भाच्च करोति यत्।
कर्मणस्तस्य नाशस्तु न कथंचन विद्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो उद्देश्य-सिद्धिकी कामना रखकर क्रोधपूर्वक कोई असत् कर्म करता है, उसके उस कर्मका किसी तरह नाश नहीं होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिसंधिकृतस्यैव नैव नाशोऽस्ति कर्मणः।
अश्वमेधसहस्रैश्च प्रायश्चित्तशतैरपि ॥
अन्यथा यत् कृतं पापं प्रमादाद् वा यदृच्छया।
प्रायश्चित्ताश्वमेधाभ्यां श्रेयसा तत् प्रणश्यति॥
मूलम्
अभिसंधिकृतस्यैव नैव नाशोऽस्ति कर्मणः।
अश्वमेधसहस्रैश्च प्रायश्चित्तशतैरपि ॥
अन्यथा यत् कृतं पापं प्रमादाद् वा यदृच्छया।
प्रायश्चित्ताश्वमेधाभ्यां श्रेयसा तत् प्रणश्यति॥
अनुवाद (हिन्दी)
फलाभिसन्धिपूर्वक किये गये कर्मोंका नाश सहस्रों अश्वमेधयज्ञों और सैकड़ों प्रायश्चित्तोंसे भी नहीं होता। इसके सिवा और प्रकारसे—असावधानी या दैवेच्छासे जो पाप बन जाता है, वह प्रायश्चित्त और अश्वमेधयज्ञसे तथा दूसरे किसी श्रेष्ठ कर्मसे नष्ट हो जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विद्ध्येवं पापके कार्ये निर्विशंका भव प्रिये।
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
मूलम्
विद्ध्येवं पापके कार्ये निर्विशंका भव प्रिये।
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रिये! इस प्रकार पाप कर्मके विषयमें तुम्हारा यह संदेह अब दूर हो जाना चाहिये। देवि! यह विषय मैंने तुम्हें बताया। अब और क्या सुनना चाहती हो?॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् देवदेवेश मानुषाश्चेतरा अपि।
म्रियन्ते मानुषा लोके कारणाकारणादपि॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् देवदेवेश मानुषाश्चेतरा अपि।
म्रियन्ते मानुषा लोके कारणाकारणादपि॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! देवदेवेश्वर! जगत्के मनुष्य तथा दूसरे प्राणी, जो किसी कारणसे या अकारण भी मृत्युको प्राप्त हो जाते हैं, इसमें कौन-सा कर्मविपाक कारण है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि कारणाकारणादपि।
यथासुभिर्वियुज्यन्ते प्राणिनः प्राणिनिर्दयाः ॥
तथैव ते प्राप्नुवन्ति यथैवात्मकृतं फलम्।
विषदास्तु विषेणैव शस्त्रैः शस्त्रेण घातकाः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि कारणाकारणादपि।
यथासुभिर्वियुज्यन्ते प्राणिनः प्राणिनिर्दयाः ॥
तथैव ते प्राप्नुवन्ति यथैवात्मकृतं फलम्।
विषदास्तु विषेणैव शस्त्रैः शस्त्रेण घातकाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो निर्दयी मनुष्य पहले किसी कारणसे या अकारण भी दूसरे प्राणियोंके प्राण लेते हैं, वे उसी प्रकार अपनी करनीका फल पाते हैं। विष देनेवाले विषसे ही मरते हैं और शस्त्रद्वारा दूसरोंकी हत्या करनेवाले लोग स्वयं भी जन्मान्तरमें शस्त्रोंके आघातसे ही मारे जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति सत्यं प्रजानीहि लोके तत्र विधिं प्रति।
कर्मकर्ता नरोऽभोक्ता स नास्ति दिवि वा भुवि।
मूलम्
इति सत्यं प्रजानीहि लोके तत्र विधिं प्रति।
कर्मकर्ता नरोऽभोक्ता स नास्ति दिवि वा भुवि।
अनुवाद (हिन्दी)
तुम इसीको सत्य समझो। कर्म करनेवाला मनुष्य उन कर्मोंका फल न भोगे, ऐसा कोई पुरुष न इस पृथ्वीपर है न स्वर्गमें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न शक्यं कर्म चाभोक्तुं सदेवासुरमानुषैः॥
कर्मणा ग्रथितो लोक आदिप्रभृति वर्तते।
मूलम्
न शक्यं कर्म चाभोक्तुं सदेवासुरमानुषैः॥
कर्मणा ग्रथितो लोक आदिप्रभृति वर्तते।
अनुवाद (हिन्दी)
देवता, असुर और मनुष्य कोई भी अपने कर्मोंका फल भोगे बिना नहीं रह सकता। आदिकालसे ही यह संसार कर्मसे गुँथा हुआ है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतदुद्देशतः प्रोक्तं कर्मपाकफलं प्रति॥
यदन्यच्च मया नोक्तं यस्मिंस्ते कर्मसंग्रहे।
बुद्धितर्केण तत् सर्वं तथा वेदितुमर्हसि॥
कथितं श्रोतुकामाया भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
मूलम्
एतदुद्देशतः प्रोक्तं कर्मपाकफलं प्रति॥
यदन्यच्च मया नोक्तं यस्मिंस्ते कर्मसंग्रहे।
बुद्धितर्केण तत् सर्वं तथा वेदितुमर्हसि॥
कथितं श्रोतुकामाया भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
कर्मोंके परिणामके विषयमें ये बातें संक्षेपसे बतायी गयी हैं। कर्मसंचयके विषयमें जो बात मैंने अबतक नहीं कही हो, उसे भी तुम्हें अपनी बुद्धिद्वारा तर्क—ऊहापोह करके जान लेना चाहिये। तुम्हें सुननेकी इच्छा थी, इसलिये मैंने ये सारी बातें बतायीं। अब तुम और क्या सुनना चाहती हो?॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् भगनेत्रघ्न मानुषाणां विचेष्टितम्।
सर्वमात्मकृतं चेति श्रुतं मे भगवन्मतम्॥
लोके ग्रहकृतं सर्वं मत्वा कर्म शुभाशुभम्।
तदेव ग्रहनक्षत्रं प्रायशः पर्युपासते॥
एष मे संशयो देव तं मे त्वं छेत्तुमर्हसि।
मूलम्
भगवन् भगनेत्रघ्न मानुषाणां विचेष्टितम्।
सर्वमात्मकृतं चेति श्रुतं मे भगवन्मतम्॥
लोके ग्रहकृतं सर्वं मत्वा कर्म शुभाशुभम्।
तदेव ग्रहनक्षत्रं प्रायशः पर्युपासते॥
एष मे संशयो देव तं मे त्वं छेत्तुमर्हसि।
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! भगनेत्रनाशन! आपका मत है कि मनुष्योंकी जो भली-बुरी अवस्था है, वह सब उनकी अपनी ही करनीका फल है। आपके इस मतको मैंने अच्छी तरह सुना; परंतु लोकमें यह देखा जाता है कि लोग समस्त शुभाशुभ कर्मफलको ग्रहजनित मानकर प्रायः उन ग्रहनक्षत्रोंकी ही आराधना करते रहते हैं। क्या उनकी यह मान्यता ठीक है? देव! यही मेरा संशय है। आप मेरे इस संदेहका निवारण कीजिये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थाने संशयितं देवि शृणु तत्त्वविनिश्चयम्॥
नक्षत्राणि ग्रहाश्चैव शुभाशुभनिवेदकाः ।
मानवानां महाभागे न तु कर्मकराः स्वयम्॥
मूलम्
स्थाने संशयितं देवि शृणु तत्त्वविनिश्चयम्॥
नक्षत्राणि ग्रहाश्चैव शुभाशुभनिवेदकाः ।
मानवानां महाभागे न तु कर्मकराः स्वयम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! तुमने उचित संदेह उपस्थित किया है। इस विषयमें जो सिद्धान्त मत है, उसे सुनो। महाभागे! ग्रह और नक्षत्र मनुष्योंके शुभ और अशुभकी सूचनामात्र देनेवाले हैं। वे स्वयं कोई काम नहीं करते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रजानां तु हितार्थाय शुभाशुभविधिं प्रति।
अनागतमतिक्रान्तं ज्योतिश्चक्रेण बोध्यते ॥
मूलम्
प्रजानां तु हितार्थाय शुभाशुभविधिं प्रति।
अनागतमतिक्रान्तं ज्योतिश्चक्रेण बोध्यते ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजाके हितके लिये ज्यौतिषचक्र (ग्रह-नक्षत्र मण्डल)-के द्वारा भूत और भविष्यके शुभाशुभ फलका बोध कराया जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किंतु तत्र शुभं कर्म सुग्रहैस्तु निवेद्यते।
दुष्कृतस्याशुभैरेव समवायो भवेदिति ॥
मूलम्
किंतु तत्र शुभं कर्म सुग्रहैस्तु निवेद्यते।
दुष्कृतस्याशुभैरेव समवायो भवेदिति ॥
अनुवाद (हिन्दी)
किंतु वहाँ शुभ कर्मफलकी सूचना (उत्तम) शुभ ग्रहोंद्वारा प्राप्त होती है और दुष्कर्मके फलकी सूचना अशुभ ग्रहोंद्वारा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केवलं ग्रहनक्षत्रं न करोति शुभाशुभम्।
सर्वमात्मकृतं कर्म लोकवादो ग्रहा इति॥
मूलम्
केवलं ग्रहनक्षत्रं न करोति शुभाशुभम्।
सर्वमात्मकृतं कर्म लोकवादो ग्रहा इति॥
अनुवाद (हिन्दी)
केवल ग्रह और नक्षत्र ही शुभाशुभ कर्मफलको उपस्थित नहीं करते हैं। सारा अपना ही किया हुआ कर्म शुभाशुभ फलका उत्पादक होता है। ग्रहोंने कुछ किया है—यह कथन लोगोंका प्रवादमात्र है॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् विविधं कर्म कृत्वा जन्तुः शुभाशुभम्।
किं तयोः पूर्वकतरं भुङ्क्ते जन्मान्तरे पुनः॥
एष मे संशयो देव तं मे त्वं छेत्तुमर्हसि।
मूलम्
भगवन् विविधं कर्म कृत्वा जन्तुः शुभाशुभम्।
किं तयोः पूर्वकतरं भुङ्क्ते जन्मान्तरे पुनः॥
एष मे संशयो देव तं मे त्वं छेत्तुमर्हसि।
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! जीव नाना प्रकारके शुभाशुभ कर्म करके जब दूसरा जन्म धारण करता है, तब दोनोंमेंसे पहले किसका फल भोगता है, शुभका या अशुभका? देव! यह मेरा संशय है। आप इसे मिटा दीजिये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थाने संशयितं देवि तत् ते वक्ष्यामि तत्त्वतः॥
अशुभं पूर्वमित्याहुरपरे शुभमित्यपि ।
मिथ्या तदुभयं प्रोक्तं केवलं तद् ब्रवीमि ते॥
मूलम्
स्थाने संशयितं देवि तत् ते वक्ष्यामि तत्त्वतः॥
अशुभं पूर्वमित्याहुरपरे शुभमित्यपि ।
मिथ्या तदुभयं प्रोक्तं केवलं तद् ब्रवीमि ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! तुम्हारा संदेह उचित ही है, अब मैं तुम्हें इसका यथार्थ उत्तर देता हूँ। कुछ लोगोंका कहना है कि पहले अशुभ कर्मका फल मिलता है, दूसरे कहते हैं कि पहले शुभ कर्मका फल प्राप्त होता है। परंतु ये दोनों ही बातें मिथ्या कही गयी हैं। सच्ची बात क्या है? यह मैं तुम्हें बता रहा हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भुञ्जानाश्चापि दृश्यन्ते क्रमशो भुवि मानवाः।
ऋद्धिं हानिं सुखं दुःखं तत् सर्वमभयं भयम्॥
मूलम्
भुञ्जानाश्चापि दृश्यन्ते क्रमशो भुवि मानवाः।
ऋद्धिं हानिं सुखं दुःखं तत् सर्वमभयं भयम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस पृथ्वीपर मनुष्य क्रमशः दोनों प्रकारके फल भोगते देखे जाते हैं। कभी धनकी वृद्धि होती है कभी हानि, कभी सुख मिलता है कभी दुःख, कभी निर्भयता रहती है और कभी भय प्राप्त होता है। इस प्रकार सभी फल क्रमशः भोगने पड़ते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुःखान्यनुभवन्त्याढ्या दरिद्राश्च सुखानि च।
यौगपद्याद्धि भुञ्जाना दृश्यन्ते लोकसाक्षिकम्॥
मूलम्
दुःखान्यनुभवन्त्याढ्या दरिद्राश्च सुखानि च।
यौगपद्याद्धि भुञ्जाना दृश्यन्ते लोकसाक्षिकम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
कभी धनाढ्य लोग दुःखका अनुभव करते हैं और कभी दरिद्र भी सुख भोगते हैं। इस प्रकार एक ही साथ लोग शुभ और अशुभका भोग करते देखे जाते हैं। सारा जगत् इस बातका साक्षी है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नरके स्वर्गलोके च न तथा संस्थितिः प्रिये।
नित्यं दुःखं हि नरके स्वर्गे नित्यं सुखं तथा॥
मूलम्
नरके स्वर्गलोके च न तथा संस्थितिः प्रिये।
नित्यं दुःखं हि नरके स्वर्गे नित्यं सुखं तथा॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रिये! किंतु नरक और स्वर्गलोकमें ऐसी स्थिति नहीं है। नरकमें सदा दुःख ही दुःख है और स्वर्गमें सदा सुख ही सुख॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्रापि सुमहद् भुक्त्वा पूर्वमल्पं पुनः शुभे।
एतत् ते सर्वमाख्यातं किं भूयः श्रोतुमिच्छसि॥
मूलम्
तत्रापि सुमहद् भुक्त्वा पूर्वमल्पं पुनः शुभे।
एतत् ते सर्वमाख्यातं किं भूयः श्रोतुमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
शुभे! वहाँ भी शुभ या अशुभमेंसे जो बहुत अधिक होता है, उसका भोग पहले और जो बहुत कम होता है, उसका भोग पीछे होता है। ये सब बातें मैंने तुम्हें बता दीं, अब और क्या सुनना चाहती हो?॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् प्राणिनो लोके म्रियन्ते केन हेतुना।
जाता जाता न तिष्ठन्ति तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् प्राणिनो लोके म्रियन्ते केन हेतुना।
जाता जाता न तिष्ठन्ति तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! इस लोकमें प्राणी किस कारणसे मर जाते हैं? जन्म ले-लेकर वे यहीं बने क्यों नहीं रहते हैं? यह मुझे बतानेकी कृपा करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु सत्यं समाहिता।
आत्मा कर्मक्षयाद् देहं यथा मुञ्चति तच्छृणु॥
मूलम्
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु सत्यं समाहिता।
आत्मा कर्मक्षयाद् देहं यथा मुञ्चति तच्छृणु॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! इस विषयमें जो यथार्थ बात है, वह मैं तुम्हें बता रहा हूँ। कर्मोंका भोग समाप्त होनेपर आत्मा इस शरीरको कैसे छोड़ता है? यह एकाग्रचित्त होकर सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरीरात्मसमाहारो जन्तुरित्यभिधीयते ।
तत्रात्मानं नित्यमाहुरनित्यं क्षेत्रमुच्यते ॥
मूलम्
शरीरात्मसमाहारो जन्तुरित्यभिधीयते ।
तत्रात्मानं नित्यमाहुरनित्यं क्षेत्रमुच्यते ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शरीर और आत्माका (जड और चेतनका) जो संयोग है, उसीको जीव या प्राणी कहते हैं। इनमें आत्माको नित्य और शरीरको अनित्य बताया जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं कालेन संक्रान्तं शरीरं जर्जरीकृतम्।
अकर्मयोग्यं संशीर्णं त्यक्त्वा देही ततो व्रजेत्॥
मूलम्
एवं कालेन संक्रान्तं शरीरं जर्जरीकृतम्।
अकर्मयोग्यं संशीर्णं त्यक्त्वा देही ततो व्रजेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब कालसे आक्रान्त होकर शरीर जरावस्थासे जर्जर हो जाता है, कोई कर्म करने योग्य नहीं रह जाता और सर्वथा गल जाता है, तब देहधारी जीव उसे त्यागकर चल देता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नित्यस्यानित्यसंत्यागाल्लोके तन्मरणं विदुः ।
कालं नातिक्रमेरन् हि सदेवासुरमानवाः॥
मूलम्
नित्यस्यानित्यसंत्यागाल्लोके तन्मरणं विदुः ।
कालं नातिक्रमेरन् हि सदेवासुरमानवाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
नित्य जीवात्मा जब अनित्य शरीरको त्यागकर चला जाता है, तब लोकमें उस प्राणीकी मृत्यु हुई मानी जाती है। देवता, असुर और मनुष्य कोई भी कालका उल्लंघन नहीं कर सकते॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथाऽऽकाशे न तिष्ठेत द्रव्यं किंचिदचेतनम्।
तथा धावति कालोऽयं क्षणं किंचिन्न तिष्ठति॥
मूलम्
यथाऽऽकाशे न तिष्ठेत द्रव्यं किंचिदचेतनम्।
तथा धावति कालोऽयं क्षणं किंचिन्न तिष्ठति॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे आकाशमें कोई भी जड द्रव्य स्थिर नहीं रह सकता, उसी प्रकार यह काल निरन्तर दौड़ लगाता रहता है। एक क्षण भी स्थिर नहीं रहता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पुनर्जायतेऽन्यत्र शरीरं नवमाविशन्।
एवं लोकगतिर्नित्यमादिप्रभृति वर्तते ॥
मूलम्
स पुनर्जायतेऽन्यत्र शरीरं नवमाविशन्।
एवं लोकगतिर्नित्यमादिप्रभृति वर्तते ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह जीव फिर किसी दूसरे शरीरमें प्रवेश करके अन्यत्र जन्म लेता है। इस प्रकार आदि कालसे ही लोककी सदा ऐसी ही गति चल रही है॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् प्राणिनो बाला दृश्यन्ते मरणं गताः।
अतिवृद्धाश्च जीवन्तो दृश्यन्ते चिरजीविनः॥
मूलम्
भगवन् प्राणिनो बाला दृश्यन्ते मरणं गताः।
अतिवृद्धाश्च जीवन्तो दृश्यन्ते चिरजीविनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! इस संसारमें बाल्यावस्थामें भी प्राणियोंकी मृत्यु होती देखी जाती है और अत्यन्त वृद्ध मनुष्य भी चिरजीवी होकर जीवित दिखायी देते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केवलं कालमरणं न प्रमाणं महेश्वर।
तस्मान्मे संशयं ब्रूहि प्राणिनां जीवकारणम्॥
मूलम्
केवलं कालमरणं न प्रमाणं महेश्वर।
तस्मान्मे संशयं ब्रूहि प्राणिनां जीवकारणम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
महेश्वर! केवल काल-मृत्यु अर्थात् वृद्धावस्थामें ही मृत्यु होनेकी बात प्रमाणभूत नहीं रह गयी है; अतः प्राणियोंके जीवनके लिये उठे हुए मेरे इस संदेहका आप निवारण कीजिये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शृणु तत् कारणं देवि निर्णयस्त्वेक एव सः।
मूलम्
शृणु तत् कारणं देवि निर्णयस्त्वेक एव सः।
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! इसका कारण सुनो। इस विषयमें एक ही निर्णय है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावत् पूर्वकृतं कर्म तावज्जीवति मानवः।
तत्र कर्मवशाद् बाला म्रियन्ते कालसंक्षयात्॥
चिरं जीवन्ति वृद्धाश्च तथा कर्मप्रमाणतः।
इति ते कथितं देवि निर्विशङ्का भव प्रिये॥
मूलम्
यावत् पूर्वकृतं कर्म तावज्जीवति मानवः।
तत्र कर्मवशाद् बाला म्रियन्ते कालसंक्षयात्॥
चिरं जीवन्ति वृद्धाश्च तथा कर्मप्रमाणतः।
इति ते कथितं देवि निर्विशङ्का भव प्रिये॥
अनुवाद (हिन्दी)
जबतक पूर्वकृत कर्म (प्रारब्ध) शेष है, तबतक मनुष्य जीवित रहता है। उसी कर्मके अधीन होकर प्रारब्ध भोगका काल समाप्त होनेपर बालक भी मर जाते हैं और उसी कर्मकी मात्राके अनुसार वृद्ध पुरुष भी दीर्घकालतक जीवित रहते हैं। देवि! यह सब विषय तुम्हें बताया गया। प्रिये इस विषयमें अब तुम संशयरहित हो जाओ॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् केन वृत्तेन भवन्ति चिरजीविनः।
अल्पायुषो नराः केन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् केन वृत्तेन भवन्ति चिरजीविनः।
अल्पायुषो नराः केन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! किस आचरणसे मनुष्य चिरजीवी होते हैं और किससे अल्पायु हो जाते हैं? यह मुझे बतानेकी कृपा करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शृणु तत् सर्वमखिलं गुह्यं पथ्यतरं नृणाम्।
येन वृत्तेन सम्पन्ना भवन्ति चिरजीविनः॥
मूलम्
शृणु तत् सर्वमखिलं गुह्यं पथ्यतरं नृणाम्।
येन वृत्तेन सम्पन्ना भवन्ति चिरजीविनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! यह सारा गूढ़ रहस्य मनुष्योंके लिये परम लाभदायक है। जिस आचरणसे सम्पन्न मनुष्य चिरजीवी होते हैं, वह सब सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहिंसा सत्यवचनमक्रोधः क्षान्तिरार्जवम् ।
गुरूणां नित्यशुश्रूषा वृद्धानामपि पूजनम्॥
शौचादकार्यसंत्यागः सदा पथ्यस्य भोजनम्।
एवमादिगुणं वृत्तं नराणां दीर्घजीविनाम्॥
मूलम्
अहिंसा सत्यवचनमक्रोधः क्षान्तिरार्जवम् ।
गुरूणां नित्यशुश्रूषा वृद्धानामपि पूजनम्॥
शौचादकार्यसंत्यागः सदा पथ्यस्य भोजनम्।
एवमादिगुणं वृत्तं नराणां दीर्घजीविनाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
अहिंसा, सत्यभाषण, क्रोधका त्याग, क्षमा, सरलता, गुरुजनोंकी नित्य सेवा, बड़े-बूढ़ोंका पूजन, पवित्रताका ध्यान रखकर न करनेयोग्य कर्मोंका त्याग, सदा ही पथ्य भोजन इत्यादि गुणोंवाला आचार दीर्घजीवी मनुष्योंका है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तपसा ब्रह्मचर्येण रसायननिषेवणात् ।
उदग्रसत्त्वा बलिनो भवन्ति चिरजीविनः॥
मूलम्
तपसा ब्रह्मचर्येण रसायननिषेवणात् ।
उदग्रसत्त्वा बलिनो भवन्ति चिरजीविनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तपस्या, ब्रह्मचर्य तथा रसायनके सेवनसे मनुष्य अधिक धैर्यशाली, बलवान् और चिरजीवी होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वर्गे वा मानुषे वापि चिरं तिष्ठन्ति धार्मिकाः॥
अपरे पापकर्माणः प्रायशोऽनृतवादिनः ।
हिंसाप्रिया गुरुद्विष्टा निष्क्रियाः शौचवर्जिताः॥
नास्तिका घोरकर्माणः सततं मांसपानपाः।
पापाचारा गुरुद्विष्टाः कोपनाः कलहप्रियाः॥
एवमेवाशुभाचारास्तिष्ठन्ति निरये चिरम् ।
तिर्यग्योनौ तथात्यन्तमल्पास्तिष्ठन्ति मानवाः ॥
मूलम्
स्वर्गे वा मानुषे वापि चिरं तिष्ठन्ति धार्मिकाः॥
अपरे पापकर्माणः प्रायशोऽनृतवादिनः ।
हिंसाप्रिया गुरुद्विष्टा निष्क्रियाः शौचवर्जिताः॥
नास्तिका घोरकर्माणः सततं मांसपानपाः।
पापाचारा गुरुद्विष्टाः कोपनाः कलहप्रियाः॥
एवमेवाशुभाचारास्तिष्ठन्ति निरये चिरम् ।
तिर्यग्योनौ तथात्यन्तमल्पास्तिष्ठन्ति मानवाः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धर्मात्मा पुरुष स्वर्गमें हो या मनुष्यलोकमें, वे दीर्घकालतक अपने पदपर बने रहते हैं। इनके सिवा दूसरे जो पापकर्मी प्रायः झूठ बोलनेवाले, हिंसाप्रेमी, गुरुद्रोही, अकर्मण्य, शौचाचारसे रहित, नास्तिक, घोरकर्मी, सदा मांस खाने और मद्य पीनेवाले, पापाचारी, गुरुसे द्वेष रखनेवाले, क्रोधी और कलहप्रेमी हैं, ऐसे असदाचारी पुरुष चिरकालतक नरकमें पड़े रहते हैं तथा तिर्यग्योनिमें स्थित होते हैं, वे मनुष्य-शरीरमें अत्यन्त अल्प समयतक ही रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मादल्पायुषो मर्त्यास्तादृशाः सम्भवन्ति ते॥
अगम्यदेशगमनादपथ्यानां च भोजनात् ।
आयुःक्षयो भवेन्नॄणामायुःक्षयकरा हि ते॥
मूलम्
तस्मादल्पायुषो मर्त्यास्तादृशाः सम्भवन्ति ते॥
अगम्यदेशगमनादपथ्यानां च भोजनात् ।
आयुःक्षयो भवेन्नॄणामायुःक्षयकरा हि ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसीलिये ऐसे मनुष्य अल्पायु होते हैं। अगम्य स्थानोंमें जानेसे, अपथ्य वस्तुओंका भोजन करनेसे मनुष्योंकी आयु क्षीण होती है, क्योंकि वे आयुका नाश करनेवाले हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भवन्त्यल्पायुषस्तैस्तैरन्यथा चिरजीविनः ।
एतत् ते कथितं सर्वं भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
मूलम्
भवन्त्यल्पायुषस्तैस्तैरन्यथा चिरजीविनः ।
एतत् ते कथितं सर्वं भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऊपर बताये हुए कारणोंसे मनुष्य अल्पायु होते हैं, अन्यथा चिरजीवी होते हैं। यह सारा विषय मैंने तुम्हें बता दिया। अब और क्या सुनना चाहती हो?॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवदेव महादेव श्रुतं मे भगवन्निदम्।
आत्मनो जातिसम्बन्धं ब्रूहि स्त्रीपुरुषान्तरे॥
मूलम्
देवदेव महादेव श्रुतं मे भगवन्निदम्।
आत्मनो जातिसम्बन्धं ब्रूहि स्त्रीपुरुषान्तरे॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— देवदेव! महादेव! भगवन्! यह विषय तो मैंने अच्छी तरह सुन लिया। अब यह बताइये कि आत्माका स्त्री या पुरुषमेंसे किस जातिके साथ सम्बन्ध है?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्त्रीप्राणः पुरुषप्राण एकः स पृथगेव वा।
एष मे संशयो देव तं मे छेत्तुं त्वमर्हसि॥
मूलम्
स्त्रीप्राणः पुरुषप्राण एकः स पृथगेव वा।
एष मे संशयो देव तं मे छेत्तुं त्वमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
जीवात्मा स्त्रीरूप है या पुरुषरूप? एक है या अलग-अलग? देव! यह मेरा संशय है। आप इसका निवारण करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
निर्विकारः सदैवात्मा स्त्रीत्वं पुंस्त्वं न चात्मनि।
कर्मप्रकारेण तथा जात्यां जात्यां प्रजायते॥
कृत्वा तु पौरुषं कर्म स्त्री पुमानपि जायते।
स्त्रीभावयुक् पुमान् कृत्वा कर्मणा प्रमदा भवेत्॥
मूलम्
निर्विकारः सदैवात्मा स्त्रीत्वं पुंस्त्वं न चात्मनि।
कर्मप्रकारेण तथा जात्यां जात्यां प्रजायते॥
कृत्वा तु पौरुषं कर्म स्त्री पुमानपि जायते।
स्त्रीभावयुक् पुमान् कृत्वा कर्मणा प्रमदा भवेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— जीवात्मा सदा ही निर्विकार है! वह न स्त्री है न पुरुष। वह कर्मके अनुसार विभिन्न जातियोंमें जन्म लेता है। पुरुषोचित कर्म करके स्त्री भी पुरुष हो सकती है और स्त्री-भावनासे युक्त पुरुष तदनुरूप कर्म करके उस कर्मके अनुसार स्त्री हो सकता है॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् सर्वलोकेश कर्मात्मा न करोति चेत्।
कोऽन्यः कर्मकरो देहे तन्मे त्वं वक्तुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् सर्वलोकेश कर्मात्मा न करोति चेत्।
कोऽन्यः कर्मकरो देहे तन्मे त्वं वक्तुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! सर्वलोकेश्वर! यदि आत्मा कर्म नहीं करता तो शरीरमें दूसरा कौन कर्म करनेवाला है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शृणु भामिनि कर्तारमात्मा हि न च कर्मकृत्।
प्रकृत्या गुणयुक्तेन क्रियते कर्म नित्यशः॥
मूलम्
शृणु भामिनि कर्तारमात्मा हि न च कर्मकृत्।
प्रकृत्या गुणयुक्तेन क्रियते कर्म नित्यशः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— भामिनि! कर्ता कौन है? यह सुनो। आत्मा कर्म नहीं करता है। प्रकृतिके गुणोंसे युक्त प्राणीद्वारा ही सदा कर्म किया जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरीरं प्राणिनां लोके यथा पित्तकफानिलैः।
व्याप्तमेभिस्त्रिभिर्दोषैस्तथा व्याप्तं त्रिभिर्गुणैः ॥
मूलम्
शरीरं प्राणिनां लोके यथा पित्तकफानिलैः।
व्याप्तमेभिस्त्रिभिर्दोषैस्तथा व्याप्तं त्रिभिर्गुणैः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जगत्में प्राणियोंका शरीर जैसे वात, पित्त और कफ—इन तीन दोषोंसे व्याप्त रहता है, इसी प्रकार प्राणी सत्त्व, रज और तम—इन गुणोंसे व्याप्त होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सत्त्वं रजस्तमश्चैव गुणास्त्वेते शरीरिणः।
प्रकाशात्मकमेतेषां सत्त्वं सततमिष्यते ॥
रजो दुःखात्मकं तत्र तमो मोहात्मकं स्मृतम्।
त्रिभिरेतैर्गुणैर्युक्तं लोके कर्म प्रवर्तते॥
मूलम्
सत्त्वं रजस्तमश्चैव गुणास्त्वेते शरीरिणः।
प्रकाशात्मकमेतेषां सत्त्वं सततमिष्यते ॥
रजो दुःखात्मकं तत्र तमो मोहात्मकं स्मृतम्।
त्रिभिरेतैर्गुणैर्युक्तं लोके कर्म प्रवर्तते॥
अनुवाद (हिन्दी)
सत्त्व, रज और तम—ये तीनों शरीरधारीके गुण हैं। इनमेंसे सत्त्व सदा प्रकाशस्वरूप माना गया है। रजोगुण दुःखरूप और तमोगुण मोहरूप बताया गया है। लोकमें इन तीनों गुणोंसे युक्त कर्मकी प्रवृत्ति होती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सत्यं प्राणिदया शौचं श्रेयः प्रीतिः क्षमा दमः।
एवमादि तथान्यच्च कर्म सात्त्विकमुच्यते॥
मूलम्
सत्यं प्राणिदया शौचं श्रेयः प्रीतिः क्षमा दमः।
एवमादि तथान्यच्च कर्म सात्त्विकमुच्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
सत्यभाषण, प्राणियोंपर दया, शौच, श्रेय, प्रीति, क्षमा और इन्द्रिय-संयम—ये तथा ऐसे ही अन्य कर्म भी सात्त्विक कहलाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दाक्ष्यं कर्मपरत्वं च लोभो मोहो विधिं प्रति।
कलत्रसङ्गो माधुर्यं नित्यमैश्वर्यलुब्धता ॥
रजसश्चोद्भवं चैतत् कर्म नानाविधं सदा॥
मूलम्
दाक्ष्यं कर्मपरत्वं च लोभो मोहो विधिं प्रति।
कलत्रसङ्गो माधुर्यं नित्यमैश्वर्यलुब्धता ॥
रजसश्चोद्भवं चैतत् कर्म नानाविधं सदा॥
अनुवाद (हिन्दी)
दक्षता, कर्मपरायणता, लोभ, विधिके प्रति मोह, स्त्री-संग, माधुर्य तथा सदा ऐश्वर्यका लोभ—ये नाना प्रकारके भाव और कर्म रजोगुणसे प्रकट होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनृतं चैव पारुष्यं धृतिर्विद्वेषिता भृषम्।
हिंसासत्यं च नास्तिक्यं निद्रालस्यभयानि च॥
तमसश्चोद्भवं चैतत् कर्म पापयुतं तथा॥
मूलम्
अनृतं चैव पारुष्यं धृतिर्विद्वेषिता भृषम्।
हिंसासत्यं च नास्तिक्यं निद्रालस्यभयानि च॥
तमसश्चोद्भवं चैतत् कर्म पापयुतं तथा॥
अनुवाद (हिन्दी)
असत्यभाषण, रूखापन, अत्यन्त अधीरता, हिंसा, असत्य, नास्तिकता, निद्रा, आलस्य और भय—ये तथा पापयुक्त कर्म तमोगुणसे प्रकट होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माद् गुणमयः सर्वः कार्यारम्भः शुभाशुभः।
तस्मादात्मानमव्यग्रं विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥
मूलम्
तस्माद् गुणमयः सर्वः कार्यारम्भः शुभाशुभः।
तस्मादात्मानमव्यग्रं विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसलिये समस्त शुभाशुभ कार्यारम्भ गुणमय है, अतः आत्माको व्यग्रतारहित, अकर्ता और अविनाशी समझो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सात्त्विकाः पुण्यलोकेषु राजसा मानुषे पदे।
तिर्यग्योनौ च नरके तिष्ठेयुस्तामसा नराः॥
मूलम्
सात्त्विकाः पुण्यलोकेषु राजसा मानुषे पदे।
तिर्यग्योनौ च नरके तिष्ठेयुस्तामसा नराः॥
अनुवाद (हिन्दी)
सात्त्विक मनुष्य पुण्यलोकोंमें जाते हैं। राजस जीव मनुष्यलोकमें स्थित होते हैं तथा तमोगुणी मनुष्य पशु-पक्षियोंकी योनिमें और नरकमें स्थित होते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमर्थमात्मा भिन्नेऽस्मिन् देहे शस्त्रेण वा हते।
स्वयं प्रयास्यति तदा तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
किमर्थमात्मा भिन्नेऽस्मिन् देहे शस्त्रेण वा हते।
स्वयं प्रयास्यति तदा तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— इस शरीरके भेदनसे अथवा शस्त्रद्वारा मारे जानेसे आत्मा स्वयं ही क्यों चला जाता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्।
एतन्नैर्मापिकैश्चापि मुह्यन्ते सूक्ष्मबुद्धिभिः ॥
मूलम्
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्।
एतन्नैर्मापिकैश्चापि मुह्यन्ते सूक्ष्मबुद्धिभिः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— कल्याणि! इसका कारण मैं बताता हूँ, सुनो। इस विषयमें सूक्ष्म बुद्धिवाले विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कर्मक्षये तु सम्प्राप्ते प्राणिनां जन्मधारिणाम्।
उपद्रवो भवेद् देहे येन केनापि हेतुना॥
तन्निमित्तं शरीरी तु शरीरं प्राप्य संक्षयम्।
अपयाति परित्यज्य ततः कर्मवशेन सः॥
मूलम्
कर्मक्षये तु सम्प्राप्ते प्राणिनां जन्मधारिणाम्।
उपद्रवो भवेद् देहे येन केनापि हेतुना॥
तन्निमित्तं शरीरी तु शरीरं प्राप्य संक्षयम्।
अपयाति परित्यज्य ततः कर्मवशेन सः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जन्मधारी प्राणियोंके कर्मोंका क्षय हो जानेपर इस देहमें जिस किसी भी कारणसे उपद्रव होने लगता है। उसके कारण शरीरका क्षय हो जानेपर देहाभिमानी जीव कर्मके अधीन हो उस शरीरको त्यागकर चला जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देहः क्षयति नैवात्मा वेदनाभिर्न चाल्यते।
तिष्ठेत् कर्मफलं यावद् व्रजेत् कर्मक्षये पुनः॥
मूलम्
देहः क्षयति नैवात्मा वेदनाभिर्न चाल्यते।
तिष्ठेत् कर्मफलं यावद् व्रजेत् कर्मक्षये पुनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
शरीर क्षीण होता है, आत्मा नहीं। वह वेदनाओंसे भी विचलित नहीं होता। जबतक कर्मफल शेष रहता है, तबतक जीवात्मा इस शरीरमें स्थित रहता है और कर्मोंका क्षय होनेपर पुनः चला जाता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आदिप्रभृति लोकेऽस्मिन्नेवमात्मगतिः स्मृता ।
एतत् ते कथितं देवि किं भूयः श्रोतुमिच्छसि॥
मूलम्
आदिप्रभृति लोकेऽस्मिन्नेवमात्मगतिः स्मृता ।
एतत् ते कथितं देवि किं भूयः श्रोतुमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
आदिकालसे ही इस जगत्में आत्माकी ऐसी ही गति मानी गयी है। देवि! यह सब विषय तुम्हें बताया गया। अब और क्या सुनना चाहती हो?॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)