मूलम् (समाप्तिः)
[अन्धत्व और पंगुत्व आदि नाना प्रकारके दोषों और रोगोंके कारणभूत दुष्कर्मोंका वर्णन]
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् देवदेवेश मम प्रीतिविवर्धन।
जात्यन्धाश्चैव दृश्यन्ते जाता वा नष्टचक्षुषः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।
मूलम्
भगवन् देवदेवेश मम प्रीतिविवर्धन।
जात्यन्धाश्चैव दृश्यन्ते जाता वा नष्टचक्षुषः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने कहा— भगवन्! मेरी प्रीति बढ़ानेवाले देवदेवेश्वर! इस संसारमें कुछ लोग जन्मसे ही अन्धे दिखायी देते हैं और कुछ लोगोंके जन्म लेनेके पश्चात् उनकी आँखें नष्ट हो जाती हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बतानेकी कृपा करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा कामकारेण परवेश्मसु लोलुपाः।
परस्त्रियोऽभिवीक्षन्ते दुष्टेनैव स्वचक्षुषा ॥
अन्धीकुर्वन्ति ये मर्त्याः क्रोधलोभसमन्विताः।
लक्षणज्ञाश्च रूपेषु अयथावत्प्रदर्शकाः ॥
एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मवशास्तु ते ।
दण्डिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥
मूलम्
ये पुरा कामकारेण परवेश्मसु लोलुपाः।
परस्त्रियोऽभिवीक्षन्ते दुष्टेनैव स्वचक्षुषा ॥
अन्धीकुर्वन्ति ये मर्त्याः क्रोधलोभसमन्विताः।
लक्षणज्ञाश्च रूपेषु अयथावत्प्रदर्शकाः ॥
एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मवशास्तु ते ।
दण्डिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— प्रिये! जो पूर्वजन्ममें काम या स्वेच्छाचारवश पराये घरोंमें अपनी लोलुपताका परिचय देते हैं और परायी स्त्रियोंपर अपनी दूषित दृष्टि डालते हैं तथा जो मनुष्य क्रोध और लोभके वशीभूत होकर दूसरोंको अन्धा बना देते हैं, अथवा रूपविषयक लक्षणोंको जानकर उसका मिथ्या प्रदर्शन करते हैं। ऐसे आचारवाले मनुष्य मृत्युको प्राप्त होनेपर यमदण्डसे दण्डित हो चिरकालतक नरकोंमें पड़े रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथापि वा।
स्वभावतो वा जाता वा अन्धा एव भवन्ति ते॥
अक्षिरोगयुता वापि नास्ति तत्र विचारणा॥
मूलम्
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथापि वा।
स्वभावतो वा जाता वा अन्धा एव भवन्ति ते॥
अक्षिरोगयुता वापि नास्ति तत्र विचारणा॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके बाद यदि वे मनुष्ययोनिमें जन्म लेते हैं, तब स्वभावतः अन्धे होते हैं अथवा जन्म लेनेके बाद अन्धे हो जाते हैं या सदा ही नेत्ररोगसे पीड़ित रहते हैं। इस विषयमें विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुखरोगयुताः केचिद् दृश्यन्ते सततं नराः।
दन्तकण्ठकपोलस्थैर्व्याधिभिर्बहुपीडिताः ॥
आदिप्रभृति वै मर्त्या जाता वाप्यथ कारणात्।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
मुखरोगयुताः केचिद् दृश्यन्ते सततं नराः।
दन्तकण्ठकपोलस्थैर्व्याधिभिर्बहुपीडिताः ॥
आदिप्रभृति वै मर्त्या जाता वाप्यथ कारणात्।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— प्रभो! कुछ मनुष्य सदा मुखके रोगसे व्यथित रहते हैं, दाँत, कण्ठ और कपोलोंके रोगसे अत्यन्त कष्ट भोगते हैं, कुछ तो जन्मसे ही रोगी होते हैं और कुछ जन्म लेनेके बाद कारणवश उन रोगोंके शिकार हो जाते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
हन्त ते कथयिष्यामि शृणु देवि समाहिता॥
कुवक्तारस्तु ये देवि जिह्वया कटुकं भृशम्।
असत्यं परुषं घोरं गुरून् प्रति परान् प्रति॥
जिह्वाबाधां तदान्येषां कुर्वते कोपकारणात्।
प्रायशोऽनृतभूयिष्ठा नराः कार्यवशेन वा॥
तेषां जिह्वाप्रदेशस्था व्याधयः सम्भवन्ति ते॥
मूलम्
हन्त ते कथयिष्यामि शृणु देवि समाहिता॥
कुवक्तारस्तु ये देवि जिह्वया कटुकं भृशम्।
असत्यं परुषं घोरं गुरून् प्रति परान् प्रति॥
जिह्वाबाधां तदान्येषां कुर्वते कोपकारणात्।
प्रायशोऽनृतभूयिष्ठा नराः कार्यवशेन वा॥
तेषां जिह्वाप्रदेशस्था व्याधयः सम्भवन्ति ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! एकाग्रचित होकर सुनो, मैं प्रसन्नतापूर्वक तुम्हें सब कुछ बताता हूँ। जो कुवाक्य बोलनेवाले मनुष्य अपनी जिह्वासे गुरुजनों या दूसरोंके प्रति अत्यन्त कड़वे, झूठे, रूखे तथा घोर वचन बोलते हैं, जो क्रोधके कारण दूसरोंकी जीभ काट लेते हैं अथवा जो कार्यवश प्रायः अधिकाधिक झूठ ही बोलते हैं, उनके जिह्वाप्रदेशमें ही रोग होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुश्रोतारस्तु ये चार्थं परेषां कर्णनाशकाः।
कर्णरोगान् बहुविधाल्ँलभन्ते ते पुनर्भवे॥
मूलम्
कुश्रोतारस्तु ये चार्थं परेषां कर्णनाशकाः।
कर्णरोगान् बहुविधाल्ँलभन्ते ते पुनर्भवे॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो परदोष और निन्दादियुक्त कुवचन सुनते हैं तथा जो दूसरोंके कानोंको हानि पहुँचाते हैं, वे दूसरे जन्ममें कर्ण-सम्बन्धी नाना प्रकारके रोगोंका कष्ट भोगते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दन्तरोगशिरोरोगकर्णरोगास्तथैव च ।
अन्ये मुखाश्रिताः दोषाः सर्वे चात्मकृतं फलम्॥
मूलम्
दन्तरोगशिरोरोगकर्णरोगास्तथैव च ।
अन्ये मुखाश्रिताः दोषाः सर्वे चात्मकृतं फलम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसे ही लोगोंको दन्तरोग, शिरोरोग, कर्णरोग तथा अन्य सभी मुखसम्बन्धी दोष अपनी करनीके फलरूपसे प्राप्त होते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
पीड्यन्ते सततं देव मानुषेष्वेव केचन।
कुक्षिपक्षाश्रितैर्दोषैर्व्याधिभिश्चोदराश्रितैः ॥
मूलम्
पीड्यन्ते सततं देव मानुषेष्वेव केचन।
कुक्षिपक्षाश्रितैर्दोषैर्व्याधिभिश्चोदराश्रितैः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— देव! मनुष्योंमें कुछ लोग सदा कुक्षि और पक्षसम्बन्धी दोषों तथा उदरसम्बन्धी रोगोंसे पीड़ित रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तीक्ष्णशूलैश्च पीड्यन्ते नरा दुःखपरिप्लुताः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
तीक्ष्णशूलैश्च पीड्यन्ते नरा दुःखपरिप्लुताः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ लोगोंके उदरमें तीखे शूल-से उठते हैं, जिनसे वे बहुत पीड़ित होते और दुःखमें डूब जाते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि कामक्रोधवशा भृशम्।
आत्मार्थमेव चाहारं भुञ्जन्ते निरपेक्षकाः॥
अभक्ष्याहारदानैश्च विश्वस्तानां विषप्रदाः ।
अभक्ष्यभक्षदाश्चैव शौचमङ्गवर्जिताः ॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
कथंचित् प्राप्य मानुष्यं तत्र ते व्याधिपीडिताः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि कामक्रोधवशा भृशम्।
आत्मार्थमेव चाहारं भुञ्जन्ते निरपेक्षकाः॥
अभक्ष्याहारदानैश्च विश्वस्तानां विषप्रदाः ।
अभक्ष्यभक्षदाश्चैव शौचमङ्गवर्जिताः ॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
कथंचित् प्राप्य मानुष्यं तत्र ते व्याधिपीडिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! पहले जो मनुष्य काम और क्रोधके अत्यन्त वशीभूत हो दूसरोंकी परवा न करके केवल अपने ही लिये आहार जुटाते और खाते हैं, अभक्ष्य भोजनका दान करते हैं, विश्वस्त मनुष्योंको जहर दे देते हैं, न खानेयोग्य वस्तुएँ खिला देते हैं, शौच और मंगलाचारसे रहित होते हैं; शोभने! ऐसे आचरणवाले लोग पुनर्जन्म लेनेपर किसी तरह मानव-शरीरको पाकर उन्हीं रोगोंसे पीड़ित होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तैस्तैर्बहुविधाकारैर्व्याधिभिर्दुःखसंश्रिताः ।
भवन्त्येव तथा देवि यथा चैव कृतं पुरा॥
मूलम्
तैस्तैर्बहुविधाकारैर्व्याधिभिर्दुःखसंश्रिताः ।
भवन्त्येव तथा देवि यथा चैव कृतं पुरा॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवि! नाना प्रकारके रूपवाले उन रोगोंसे पीड़ित हो वे दुःखमें निमग्न हो जाते हैं। पूर्वजन्ममें जैसा किया था वैसा भोगते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृश्यन्ते सततं देव व्याधिभिर्मेहनाश्रितैः।
पीड्यमानास्तथा मर्त्या अश्मरीशर्करादिभिः ॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
दृश्यन्ते सततं देव व्याधिभिर्मेहनाश्रितैः।
पीड्यमानास्तथा मर्त्या अश्मरीशर्करादिभिः ॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— देव! बहुत-से मनुष्य प्रमेहसम्बन्धी रोगोंसे पीड़ित देखे जाते हैं, कितने ही पथरी और शर्करा (पेशाबसे चीनी आना) आदि रोगोंके शिकार हो जाते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बतानेकी कृपा करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि परदारप्रधर्षकाः।
तिर्यग्योनिषु धूर्ता वै मैथुनार्थं चरन्ति च॥
कामदोषेण ये धूर्ताः कन्यासु विधवासु च।
बलात्कारेण गच्छन्ति रूपदर्पसमन्विताः ॥
तादृशा मरणं प्राप्ताः पुनर्जन्मनि शोभने।
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः॥
मेहनस्थैस्ततो घोरैः पीड्यन्ते व्याधिभिः प्रिये।
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि परदारप्रधर्षकाः।
तिर्यग्योनिषु धूर्ता वै मैथुनार्थं चरन्ति च॥
कामदोषेण ये धूर्ताः कन्यासु विधवासु च।
बलात्कारेण गच्छन्ति रूपदर्पसमन्विताः ॥
तादृशा मरणं प्राप्ताः पुनर्जन्मनि शोभने।
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः॥
मेहनस्थैस्ततो घोरैः पीड्यन्ते व्याधिभिः प्रिये।
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पूर्वजन्ममें परायी स्त्रियोंका सतीत्व नष्ट करनेवाले होते हैं, जो धूर्त मानव पशुयोनिमें मैथुनके लिये चेष्टा करते हैं, रूपके घमंडमें भरे हुए जो धूर्त काम-दोषसे कुमारी कन्याओं और विधवाओंके साथ बलात्कार करते हैं, शोभने! ऐसे मनुष्य मृत्युके पश्चात् जब फिर जन्म लेते हैं, तब मनुष्ययोनिमें आनेके बाद वैसे ही रोगी होते हैं। प्रिये! वे प्रमेहसम्बन्धी भयंकर रोगोंसे पीड़ित रहते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन्-मानुषाः केचिद् दृश्यन्ते शोषिणः कृशाः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन्-मानुषाः केचिद् दृश्यन्ते शोषिणः कृशाः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! कुछ मनुष्य सूखारोग (जिसमें शरीर सूख जाता है) से पीड़ित एवं दुर्बल दिखायी देते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि मांसलुब्धाः सुलोलुपाः।
आत्मार्थं स्वादुगृद्धाश्च परभोगोपतापिनः ॥
अभ्यसूयापराश्चापि परभोगेषु ये नराः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
शोषव्याधियुतास्तत्र नरा धमनिसंतताः ॥
भवन्त्येव नरा देवि पापकर्मोपभोगिनः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि मांसलुब्धाः सुलोलुपाः।
आत्मार्थं स्वादुगृद्धाश्च परभोगोपतापिनः ॥
अभ्यसूयापराश्चापि परभोगेषु ये नराः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
शोषव्याधियुतास्तत्र नरा धमनिसंतताः ॥
भवन्त्येव नरा देवि पापकर्मोपभोगिनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य मांसपर लुभाये रहते हैं, अत्यन्त लोलुप हैं, अपने लिये स्वादिष्ट भोजन चाहते हैं, दूसरोंकी भोगसामग्री देखकर जलते हैं तथा जो दूसरोंके भोगोंमें दोषदृष्टि रखते हैं, शोभने! ऐसे आचारवाले मनुष्य पुनर्जन्म लेनेपर सूखारोगसे पीड़ित हो इतने दुर्बल हो जाते हैं कि उनके शरीरमें फैली हुई नस-नाड़ियाँतक दिखायी देती हैं। देवि! वे पापकर्मोंका फल भोगनेवाले मनुष्य वैसे ही होते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचित् क्लिश्यन्ते कुष्ठरोगिणः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचित् क्लिश्यन्ते कुष्ठरोगिणः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! कुछ मनुष्य कोढ़ी होकर कष्ट पाते हैं, यह किस कर्मविपाकका फल है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि परेषां रूपनाशनाः।
आघातवधबन्धैश्च वृथा दण्डेन मोहिताः॥
इष्टनाशकरा ये तु अपथ्याहारदा नराः।
चिकित्सका वा दुष्टाश्च द्वेषलोभसमन्विताः॥
निर्दयाः प्राणिहिंसायां मलदाश्चित्तनाशनाः ॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
यदि वै मानुषं जन्म लभेंरस्तेषु दुःखिताः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि परेषां रूपनाशनाः।
आघातवधबन्धैश्च वृथा दण्डेन मोहिताः॥
इष्टनाशकरा ये तु अपथ्याहारदा नराः।
चिकित्सका वा दुष्टाश्च द्वेषलोभसमन्विताः॥
निर्दयाः प्राणिहिंसायां मलदाश्चित्तनाशनाः ॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
यदि वै मानुषं जन्म लभेंरस्तेषु दुःखिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले मोहवश आघात, वध, बन्धन तथा व्यर्थ दण्डके द्वारा दूसरोंके रूपका नाश करते हैं, किसीकी प्रिय वस्तु नष्ट कर देते हैं। चिकित्सक होकर दूसरोंको अपथ्य भोजन देते हैं, द्वेष और लोभके वशीभूत होकर दुष्टता करते हैं, प्राणियोंकी हिंसाके लिये निर्दय बन जाते हैं, मल देते और दूसरोंकी चेतनाका नाश करते हैं, शोभने! ऐसे आचरणवाले पुरुष पुनर्जन्मके समय यदि मनुष्य-जन्म पाते हैं तो मनुष्योंमें सदा दुःखी ही रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अत्र ते क्लेशसंयुक्ताः कुष्ठरोगशतैर्वृताः॥
केचित् त्वग्दोषसंयुक्ता व्रणकुष्ठैश्च संयुताः।
श्वित्रकुष्ठयुता वापि बहुधा कुष्ठसंयुताः॥
भवन्त्येव नरा देवि यथा येन कृतं फलम्॥
मूलम्
अत्र ते क्लेशसंयुक्ताः कुष्ठरोगशतैर्वृताः॥
केचित् त्वग्दोषसंयुक्ता व्रणकुष्ठैश्च संयुताः।
श्वित्रकुष्ठयुता वापि बहुधा कुष्ठसंयुताः॥
भवन्त्येव नरा देवि यथा येन कृतं फलम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस जन्ममें वे सैकड़ों कुष्ठ रोगोंसे घिरकर क्लेशसे पीड़ित होते हैं। कोई चर्मदोषसे युक्त होते हैं, कोई व्रणकुष्ठ (कोढ़के घाव) से पीड़ित होते हैं अथवा कोई सफेद कोढ़से लांछित दिखायी देते हैं। देवि! जिसने जैसा किया है उसके अनुसार फल पाकर वे सब मनुष्य नाना प्रकारके कुष्ठ रोगोंके शिकार हो जाते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचिदङ्गहीनाश्च पङ्गवः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचिदङ्गहीनाश्च पङ्गवः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! किस कर्मके विपाकसे कुछ मनुष्य अंगहीन एवं पंगु हो जाते हैं, यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि लोभमोहसमावृताः।
प्राणिनां प्राणहिंसार्थमङ्गविघ्नं प्रकुर्वते ॥
शस्त्रेणोत्कृत्य वा देवि प्राणिनां चेष्टनाशकाः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
तदङ्गहीना वै प्रेत्य भवन्त्येव न संशयः॥
स्वभावतो वा जाता वा पङ्गवस्ते भवन्ति वै॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि लोभमोहसमावृताः।
प्राणिनां प्राणहिंसार्थमङ्गविघ्नं प्रकुर्वते ॥
शस्त्रेणोत्कृत्य वा देवि प्राणिनां चेष्टनाशकाः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
तदङ्गहीना वै प्रेत्य भवन्त्येव न संशयः॥
स्वभावतो वा जाता वा पङ्गवस्ते भवन्ति वै॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले लोभ और मोहसे आच्छादित होकर प्राणियोंके प्राणोंकी हिंसा करनेके लिये उनके अंग-भंग कर देते हैं, शस्त्रोंसे काटकर उन प्राणियोंको निश्चेष्ट बना देते हैं, शोभने! ऐसे आचारवाले पुरुष मरनेके बाद पुनर्जन्म लेनेपर अंगहीन होते हैं; इसमें संशय नहीं है। वे स्वभावतः पंगुरूपमें उत्पन्न होते हैं अथवा जन्म लेनेके बाद पंगु हो जाते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचिद् ग्रन्थिभिः पिल्लकैस्तथा।
क्लिश्यमानाः प्रदृश्यन्ते तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचिद् ग्रन्थिभिः पिल्लकैस्तथा।
क्लिश्यमानाः प्रदृश्यन्ते तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! कुछ मनुष्य ग्रन्थि (गठिया), पिल्लक (फीलपाँव) आदि रोगोंसे कष्ट पाते देखे जाते हैं, इसका क्या कारण है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि ग्रन्थिभेदकरा नृणाम्।
मुष्टिप्रहारपरुषा नृशंसाः पापकारिणः ॥
पाटकास्तोटकाश्चैव शूलतुन्दास्तथैव च ।
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
ग्रन्थिभिः पिल्लकैश्चैव क्लिश्यन्ते भृशदुःखिताः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि ग्रन्थिभेदकरा नृणाम्।
मुष्टिप्रहारपरुषा नृशंसाः पापकारिणः ॥
पाटकास्तोटकाश्चैव शूलतुन्दास्तथैव च ।
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
ग्रन्थिभिः पिल्लकैश्चैव क्लिश्यन्ते भृशदुःखिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले लोगोंकी ग्रथियोंका भेदन करनेवाले रहे हैं; जो मुष्टि-प्रहार करनेमें निर्दय, नृशंस, पापाचारी, तोड़-फोड़ करनेवाले और शूल चुभाकर पीड़ा देनेवाले रहे हैं, शोभने! ऐसे आचरणवाले लोग फिर जन्म लेनेपर गठिया और फीलपाँवसे कष्ट पाते तथा अत्यन्त दुःखी होते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचित् पादरोगसमन्विताः।
दृश्यन्ते सततं देव तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचित् पादरोगसमन्विताः।
दृश्यन्ते सततं देव तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! देव! कुछ मनुष्य सदा पैरोंके रोगोंसे पीड़ित दिखायी देते हैं। इसका क्या कारण है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि क्रोधलोभसमन्विताः।
मनुजा देवतास्थानं स्वपादैर्भ्रंशयन्त्युत ॥
जानुभिः पार्ष्णिभिश्चैव प्राणिहिंसां प्रकुर्वते॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
पादरोगैर्बहुविधैर्बाध्यन्ते श्वपदादिभिः ॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि क्रोधलोभसमन्विताः।
मनुजा देवतास्थानं स्वपादैर्भ्रंशयन्त्युत ॥
जानुभिः पार्ष्णिभिश्चैव प्राणिहिंसां प्रकुर्वते॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
पादरोगैर्बहुविधैर्बाध्यन्ते श्वपदादिभिः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले क्रोध और लोभके वशीभूत होकर देवताके स्थानको अपने पैरोंसे भ्रष्ट करते, घुटनों और एड़ियोंसे मारकर प्राणियोंकी हिंसा करते हैं; शोभने! ऐसे आचरणवाले लोग पुनर्जन्म लेनेपर श्वपद आदि नाना प्रकारके पाद-रोगोंसे पीड़ित होते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचिद् दृश्यन्ते बहवो भुवि।
वातजैः पित्तजै रोगैर्युगपत् संनिपातकैः॥
रोगैर्बहुविधैर्देव क्लिश्यमानाः सुदुःखिताः ।
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचिद् दृश्यन्ते बहवो भुवि।
वातजैः पित्तजै रोगैर्युगपत् संनिपातकैः॥
रोगैर्बहुविधैर्देव क्लिश्यमानाः सुदुःखिताः ।
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! देव! इस भूतलपर कुछ ऐसे लोगोंकी बहुत बड़ी संख्या दिखायी देती है, जो वात, पित्त और कफजनित रोगोंसे तथा एक ही साथ इन तीनोंके संनिपातसे तथा दूसरे-दूसरे अनेक रोगोंसे कष्ट पाते हुए बहुत दुःखी रहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
असमस्तैः समस्तैश्च आढ्या वा दुर्गतास्तथा॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
असमस्तैः समस्तैश्च आढ्या वा दुर्गतास्तथा॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे धनी हों या दरिद्र, पूर्वाक्त रोगोंमेंसे कुछके द्वारा अथवा समस्त रोगोंके द्वारा कष्ट पाते रहते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्॥
ये पुरा मनुजा देवि त्वासुरं भावमाश्रिताः।
स्ववशाः कोपनपरा गुरुविद्वेषिणस्तथा ॥
परेषां दुःखजनका मनोवाक्कायकर्मभिः ।
छिन्दन् भिन्दंस्तुदन्नेव नित्यं प्राणिषु निर्दयाः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
यदि वै मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः॥
मूलम्
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्॥
ये पुरा मनुजा देवि त्वासुरं भावमाश्रिताः।
स्ववशाः कोपनपरा गुरुविद्वेषिणस्तथा ॥
परेषां दुःखजनका मनोवाक्कायकर्मभिः ।
छिन्दन् भिन्दंस्तुदन्नेव नित्यं प्राणिषु निर्दयाः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
यदि वै मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— कल्याणि! इसका कारण मैं तुम्हें बताता हूँ, सुनो। देवि! जो मनुष्य पूर्वजन्ममें असुरभावका आश्रय ले स्वच्छन्दचारी, क्रोधी और गुरुद्रोही हो जाते हैं, मन, वाणी, शरीर और क्रियाद्वारा दूसरोंको दुःख देते हैं, काटते, विदीर्ण करते और पीड़ा देते हुए सदा ही प्राणियोंके प्रति निर्दयता दिखाते हैं। शोभने! ऐसे आचरणवाले लोग पुनर्जन्मके समय यदि मनुष्य-जन्म पाते हैं तो वे वैसे ही होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र ते बहुभिर्घोरैस्तप्यन्ते व्याधिभिः प्रिये॥
केचिच्च छर्दिसंयुक्ताः केचित्काससमन्विताः ।
ज्वरातिसारतृष्णाभिः पीड्यमानास्तथा परे ॥
पादगुल्मैश्च बहुभिः श्लेष्मदोषसमन्विताः ।
पादरोगैश्च विविधैर्व्रणकुष्ठभगन्दरैः ॥
आढ्या वा दुर्गता वापि दृश्यन्ते व्याधिपीडिताः॥
मूलम्
तत्र ते बहुभिर्घोरैस्तप्यन्ते व्याधिभिः प्रिये॥
केचिच्च छर्दिसंयुक्ताः केचित्काससमन्विताः ।
ज्वरातिसारतृष्णाभिः पीड्यमानास्तथा परे ॥
पादगुल्मैश्च बहुभिः श्लेष्मदोषसमन्विताः ।
पादरोगैश्च विविधैर्व्रणकुष्ठभगन्दरैः ॥
आढ्या वा दुर्गता वापि दृश्यन्ते व्याधिपीडिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रिये! उस शरीरमें वे बहुतेरे भयंकर रोगोंसे संतप्त होते हैं। किसीको उलटी होती है तो कोई खाँसीसे कष्ट पाते हैं। दूसरे बहुत-से मनुष्य ज्वर, अतिसार और तृष्णासे पीड़ित रहते हैं। किन्हींको अनेक प्रकारके पादगुल्म सताते हैं। कुछ लोग कफदोषसे पीड़ित होते हैं। कितने ही नाना प्रकारके पादरोग, व्रणकुष्ठ और भगन्दर रोगोंसे रुग्ण रहते हैं। वे धनी हों या दरिद्र सब लोग रोगोंसे पीड़ित दिखायी देते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमात्मकृतं कर्म भुञ्जते तत्र तत्र ते।
ग्रहीतुं न च शक्यं हि केनचिद्ध्यकृतं फलम्॥
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
मूलम्
एवमात्मकृतं कर्म भुञ्जते तत्र तत्र ते।
ग्रहीतुं न च शक्यं हि केनचिद्ध्यकृतं फलम्॥
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार उन-उन शरीरोंमें वे अपने किये हुए कर्मका ही फल भोगते हैं। कोई भी बिना किये हुए कर्मके फलको नहीं पा सकता। देवि! इस प्रकार यह विषय मैंने तुम्हें बताया, अब और क्या सुनना चाहती हो?॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् देवदेवेश भूतपाल नमोऽस्तु ते।
ह्रस्वाङ्गाश्चैव वक्राङ्गा कुब्जा वामनकास्तथा॥
अपरे मानुषा देव दृश्यन्ते कुणिबाहवः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् देवदेवेश भूतपाल नमोऽस्तु ते।
ह्रस्वाङ्गाश्चैव वक्राङ्गा कुब्जा वामनकास्तथा॥
अपरे मानुषा देव दृश्यन्ते कुणिबाहवः।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! देवदेवेश्वर! भूतनाथ! आपको नमस्कार है। देव! दूसरे मनुष्य छोटे शरीरवाले, टेढ़े-मेढ़े अंगोंवाले, कुबड़े, बौने और लूले दिखायी देते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि लोभमोहसमन्विताः।
धान्यमानान् विकुर्वन्ति क्रयविक्रयकारणात् ॥
तुलादोषं तदा देवि धृतमानेषु नित्यशः।
अर्धापकर्षणाच्चैव सर्वेषां क्रयविकये ॥
अङ्गदोषकरा ये तु परेषां कोपकारणात्।
मांसादाश्चैव ये मूर्खा अयथावत्प्रथाः सदा॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
ह्रस्वाङ्गा वामनाश्चैव कुब्जाश्चैव भवन्ति ते॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि लोभमोहसमन्विताः।
धान्यमानान् विकुर्वन्ति क्रयविक्रयकारणात् ॥
तुलादोषं तदा देवि धृतमानेषु नित्यशः।
अर्धापकर्षणाच्चैव सर्वेषां क्रयविकये ॥
अङ्गदोषकरा ये तु परेषां कोपकारणात्।
मांसादाश्चैव ये मूर्खा अयथावत्प्रथाः सदा॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
ह्रस्वाङ्गा वामनाश्चैव कुब्जाश्चैव भवन्ति ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले लोभ और मोहसे युक्त हो खरीद-बिक्रीके लिये अनाज तौलनेके बाटोंको तोड़-फोड़कर छोटे कर देते हैं, तराजूमें भी कुछ दोष रख लेते हैं और प्रतिदिन क्रय-विक्रयके समय जब उन बाटोंको रखकर अनाज तौलते हैं, तब सभीके मालमेंसे आधेकी चोरी कर लेते हैं। जो क्रोध करते, दूसरोंके शरीरपर चोट करके उसके अंगोंमें दोष उत्पन्न कर देते हैं, जो मूर्ख मांस खाते और सदा झूठ बोलते हैं, शोभने! ऐसे आचरणवाले मनुष्य पुनर्जन्म लेनेपर छोटे शरीरवाले बौने और कुबड़े होते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचिद् दृश्यन्ते मानुषेषु वै।
उन्मत्ताश्च पिशाचाश्च पर्यटन्तो यतस्ततः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचिद् दृश्यन्ते मानुषेषु वै।
उन्मत्ताश्च पिशाचाश्च पर्यटन्तो यतस्ततः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! मनुष्योंमेंसे कुछ लोग उन्मत्त और पिशाचोंके समान इधर-उधर घूमते दिखायी देते हैं। उनकी ऐसी अवस्थामें कौन-सा कर्म-फल कारण है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि दर्पाहङ्कारसंयुताः।
बहुधा प्रलपन्त्येव हसन्ति च परान् भृशम्॥
मोहयन्ति परान् भोगैर्मदनैर्लोभकारणात् ।
वृद्धान् गुरूंश्च ये मूर्खा वृथैवापहसन्ति च॥
शौण्डा विदग्धाः शास्त्रेषु तथैवानृतवादिनः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
उन्मत्ताश्च पिशाचाश्च भवन्त्येव न संशयः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि दर्पाहङ्कारसंयुताः।
बहुधा प्रलपन्त्येव हसन्ति च परान् भृशम्॥
मोहयन्ति परान् भोगैर्मदनैर्लोभकारणात् ।
वृद्धान् गुरूंश्च ये मूर्खा वृथैवापहसन्ति च॥
शौण्डा विदग्धाः शास्त्रेषु तथैवानृतवादिनः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
उन्मत्ताश्च पिशाचाश्च भवन्त्येव न संशयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले दर्प और अहंकारसे युक्त हो नाना प्रकारकी अंटशंट बातें करते हैं, दूसरोंकी खूब हँसी उड़ाते हैं, लोभवश, उन्मत्त बना देनेवाले भोगोंद्वारा दूसरोंको मोहित करते हैं, जो मूर्ख वृद्धों और गुरुजनोंका व्यर्थ ही उपहास करते हैं तथा शास्त्रज्ञानमें चतुर एवं प्रवीण होनेपर भी सदा झूठ बोलते हैं, शोभने! ऐसे आचरणवाले मनुष्य पुनर्जन्म लेनेपर उन्मत्तों और पिशाचोंके समान भटकते फिरते हैं; इसमें संशय नहीं है॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचिन्निरपत्याः सुदुःखिताः।
यतन्तो न लभन्त्येव अपत्यानि यतस्ततः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचिन्निरपत्याः सुदुःखिताः।
यतन्तो न लभन्त्येव अपत्यानि यतस्ततः॥
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! कुछ मनुष्य संतानहीन होनेके कारण अत्यन्त दुःखी रहते हैं। वे जहाँ-तहाँसे प्रयत्न करनेपर भी संतानलाभसे वंचित ही रह जाते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बतानेकी कृपा करें॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा देवि सर्वप्राणिषु निर्दयाः।
घ्नन्ति बालांश्च भुञ्जन्ते मृगाणां पक्षिणामपि॥
गुरुविद्वेषिणश्चैव परपुत्राभ्यसूयकाः ।
पितृपूजां न कुर्वन्ति यथोक्तां चाष्टकादिभिः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
मानुष्यं सुचिरात् प्राप्य निरपत्या भवन्ति ते।
पुत्रशोकयुताश्चापि नास्ति तत्र विचारणा॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा देवि सर्वप्राणिषु निर्दयाः।
घ्नन्ति बालांश्च भुञ्जन्ते मृगाणां पक्षिणामपि॥
गुरुविद्वेषिणश्चैव परपुत्राभ्यसूयकाः ।
पितृपूजां न कुर्वन्ति यथोक्तां चाष्टकादिभिः॥
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि शोभने ।
मानुष्यं सुचिरात् प्राप्य निरपत्या भवन्ति ते।
पुत्रशोकयुताश्चापि नास्ति तत्र विचारणा॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले समस्त प्राणियोंके प्रति निर्दयताका बर्ताव करते हैं, मृगों और पक्षियोंके भी बच्चोंको मारकर खा जाते हैं, गुरुसे द्वेष रखते, दूसरोंके पुत्रोंके दोष देखते हैं, पार्वण आदि श्राद्धोंके द्वारा शास्त्रोक्त रीतिसे पितरोंकी पूजा नहीं करते; शोभने! ऐसे आचरणवाले जीव फिर जन्म लेनेपर दीर्घकालके पश्चात् मानवयोनिको पाकर संतानहीन तथा पुत्रशोकसे संतप्त होते हैं; इसमें विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् मानुषाः केचित् प्रदृश्यन्ते सुदुःखिताः।
उद्वेगवासनिरताः सोद्वेगाश्च यतव्रताः ॥
नित्यं शोकसमाविष्टा दुर्गताश्च तथैव च।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् मानुषाः केचित् प्रदृश्यन्ते सुदुःखिताः।
उद्वेगवासनिरताः सोद्वेगाश्च यतव्रताः ॥
नित्यं शोकसमाविष्टा दुर्गताश्च तथैव च।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने कहा— भगवन्! मनुष्योंमें कुछ लोग अत्यन्त दुःखी दिखायी देते हैं। उनके निवासस्थानमें उद्वेगका वातावरण छाया रहता है। वे उद्विग्न रहकर संयमपूर्वक व्रतका पालन करते हैं। नित्य शोकमग्न तथा दुर्गतिग्रस्त रहते हैं। किस कर्मविपाकसे ऐसा होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये पुरा मनुजा नित्यमुत्कोचनपरायणाः।
भीषयन्ति परान् नित्यं विकुर्वन्ति तथैव च॥
ऋणवृद्धिकराश्चैव दरिद्रेभ्यो यथेष्टतः ।
ये श्वभिः क्रीडमानाश्च त्रासयन्ति वने मृगान्।
प्राणिहिंसां तथा देवि कुर्वन्ति च यतस्ततः॥
येषां गृहेषु वै श्वानः त्रासयन्ति वृथा नरान्॥
एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मगताः पुनः ।
पीडिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥
कथंचित् प्राप्य मानुष्यं तत्र ते दुःखसंयुताः॥
कुदेशे दुःखभूयिष्ठे व्याघातशतसंकुले ।
जायन्ते तत्र शोचन्तः सोद्वेगाश्च यतस्ततः॥
मूलम्
ये पुरा मनुजा नित्यमुत्कोचनपरायणाः।
भीषयन्ति परान् नित्यं विकुर्वन्ति तथैव च॥
ऋणवृद्धिकराश्चैव दरिद्रेभ्यो यथेष्टतः ।
ये श्वभिः क्रीडमानाश्च त्रासयन्ति वने मृगान्।
प्राणिहिंसां तथा देवि कुर्वन्ति च यतस्ततः॥
येषां गृहेषु वै श्वानः त्रासयन्ति वृथा नरान्॥
एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मगताः पुनः ।
पीडिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥
कथंचित् प्राप्य मानुष्यं तत्र ते दुःखसंयुताः॥
कुदेशे दुःखभूयिष्ठे व्याघातशतसंकुले ।
जायन्ते तत्र शोचन्तः सोद्वेगाश्च यतस्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— देवि! जो मनुष्य पहले प्रतिदिन घूस लेते हैं, दूसरोंको डराते और उनके मनमें विकार उत्पन्न कर देते हैं, अपने इच्छानुसार दरिद्रोंका ऋण बढ़ाते हैं, जो कुत्तोंसे खेलते और वनमें मृगोंको त्रास पहुँचाते हैं, जहाँ-तहाँ प्राणियोंकी हिंसा करते हैं, जिनके घरोंमें पले हुए कुत्ते व्यर्थ ही लोगोंको डराते रहते हैं, प्रिये! ऐसे आचरणवाले मनुष्य मृत्युको प्राप्त होकर यमदण्डसे पीड़ित हो चिरकालतक नरकमें पड़े रहते हैं। फिर किसी प्रकार मनुष्यका जन्म पाकर अधिक दुःखसे भरे हुए सैकड़ों बाधाओंसे व्याप्त कुत्सित देशमें उत्पन्न हो वहाँ दुःखी, शोकमग्न और सब ओरसे उद्विग्न बने रहते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् भगनेत्रघ्न मानुषेषु च केचन।
क्लीबा नपुंसकाश्चैव दृश्यन्ते षण्ढकास्तथा॥
नीचकर्मरता नीचा नीचसख्यास्तथा भुवि।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् भगनेत्रघ्न मानुषेषु च केचन।
क्लीबा नपुंसकाश्चैव दृश्यन्ते षण्ढकास्तथा॥
नीचकर्मरता नीचा नीचसख्यास्तथा भुवि।
केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने पूछा— भगवन्! भगदेवताके नेत्रको नष्ट करनेवाले महादेव! मनुष्योंमें कुछ लोग कायर, नपुंसक और हिजड़े देखे जाते हैं, जो इस भूतलपर स्वयं तो नीच हैं ही, नीच कर्मोंमें तत्पर रहते और नीचोंका ही साथ करते हैं। उनके नपुंसक होनेमें कौन-सा कर्मविपाक कारण होता है? यह मुझे बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्।
ये पुरा मनुजा भूत्वा घोरकर्मरतास्तथा।
पशुपुंस्त्वोपघातेन जीवन्ति च रमन्ति च॥
एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मं गतास्तु ते॥
दण्डिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः।
क्लीबा वर्षवराश्चैव षण्ढकाश्च भवन्ति ते॥
मूलम्
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्।
ये पुरा मनुजा भूत्वा घोरकर्मरतास्तथा।
पशुपुंस्त्वोपघातेन जीवन्ति च रमन्ति च॥
एवंयुक्तसमाचाराः कालधर्मं गतास्तु ते॥
दण्डिता यमदण्डेन निरयस्थाश्चिरं प्रिये॥
यदि चेन्मानुषं जन्म लभेरंस्ते तथाविधाः।
क्लीबा वर्षवराश्चैव षण्ढकाश्च भवन्ति ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— कल्याणि! मैं वह कारण तुम्हें बताता हूँ, सुनो! जो मनुष्य पहले भयंकर कर्ममें तत्पर होकर पशुके पुरुषत्वका नाश करने अर्थात् पशुओंको बधिया करनेके कार्यद्वारा जीवननिर्वाह करते और उसीमें सुख मानते हैं, प्रिये! ऐसे आचरणवाले मनुष्य मृत्युको पाकर यमदण्डसे दण्डित हो चिरकालतक नरकमें निवास करते हैं। यदि मनुष्यजन्म धारण करते हैं तो वैसे ही कायर, नपुंसक और हिजड़े होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्त्रीणामपि तथा देवि यथा पुंसां तु कर्मजम्।
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
मूलम्
स्त्रीणामपि तथा देवि यथा पुंसां तु कर्मजम्।
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवि! जैसे पुरुषोंको कर्मजनित फल प्राप्त होता है, उसी प्रकार स्त्रियोंको भी अपने-अपने कर्मोंका फल भोगना पड़ता है। यह विषय मैंने तुम्हें बता दिया। अब और क्या सुनना चाहती हो?॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)