मूलम् (समाप्तिः)
[अहिंसाकी और इन्द्रिय-संयमकी प्रशंसा तथा दैवकी प्रधानता]
मूलम् (वचनम्)
उमोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवदेव महादेव सर्वदेवनमस्कृत ।
यानि धर्मरहस्यानि श्रोतुमिच्छामि तान्यहम्॥
मूलम्
देवदेव महादेव सर्वदेवनमस्कृत ।
यानि धर्मरहस्यानि श्रोतुमिच्छामि तान्यहम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उमाने कहा— सर्वदेववन्दित देवाधिदेव महादेव! अब मैं धर्मके रहस्योंको सुनना चाहती हूँ॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीमहेश्वर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्।
अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम्॥
मूलम्
अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्।
अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीमहेश्वरने कहा— अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा परम सुख है। सम्पूर्ण धर्मशास्त्रोंमें अहिंसाको परमपद बताया गया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवतातिथिशुश्रूषा सततं धर्मशीलता ।
वेदाध्ययनयज्ञाश्च तपो दानं दमस्तथा॥
आचार्यगुरुशुश्रूषा तीर्थाभिगमनं तथा ।
अहिंसाया वरारोहे कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥
एतत् ते परमं गुह्यमाख्यातं परमार्चितम्॥
मूलम्
देवतातिथिशुश्रूषा सततं धर्मशीलता ।
वेदाध्ययनयज्ञाश्च तपो दानं दमस्तथा॥
आचार्यगुरुशुश्रूषा तीर्थाभिगमनं तथा ।
अहिंसाया वरारोहे कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥
एतत् ते परमं गुह्यमाख्यातं परमार्चितम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वरारोहे! देवताओं और अतिथियोंकी सेवा, निरन्तर धर्मशीलता, वेदाध्ययन, यज्ञ, तप, दान, दम, गुरु और आचार्यकी सेवा तथा तीर्थोंकी यात्रा—ये सब अहिंसा-धर्मकी सोलहवीं कलाके भी बराबर नहीं हैं। यह मैंने तुम्हें धर्मका परम गुह्य रहस्य बताया है, जिसकी शास्त्रोंमें भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निरुणद्धीन्द्रियाण्येव स सुखी स विचक्षणः॥
इन्द्रियाणां निरोधेन दानेन च दमेन च।
नरः सर्वमवाप्नोति मनसा यद् यदिच्छति॥
मूलम्
निरुणद्धीन्द्रियाण्येव स सुखी स विचक्षणः॥
इन्द्रियाणां निरोधेन दानेन च दमेन च।
नरः सर्वमवाप्नोति मनसा यद् यदिच्छति॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो अपनी इन्द्रियोंका निरोध करता है, वही सुखी है और वही विद्वान् है। इन्द्रियोंके निरोधसे, दानसे और इन्द्रिय-संयमसे मनुष्य मनमें जिस-जिस वस्तुकी इच्छा करता है, वह सब पा लेता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यतो यतो महाभागे हिंसा स्यान्महती ततः।
निवृत्तो मधुमांसाभ्यां हिंसा त्वल्पतरा भवेत्॥
मूलम्
यतो यतो महाभागे हिंसा स्यान्महती ततः।
निवृत्तो मधुमांसाभ्यां हिंसा त्वल्पतरा भवेत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाभागे! जिस-जिस ओरसे भारी हिंसाकी सम्भावना हो, उससे तथा मद्य और मांससे मनुष्यको निवृत्त हो जाना चाहिये। इससे हिंसाकी सम्भावना बहुत कम हो जाती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निवृत्तिः परमो धर्मो निवृत्तिः परमं सुखम्।
मनसा विनिवृत्तानां धर्मस्य निचयो महान्॥
मूलम्
निवृत्तिः परमो धर्मो निवृत्तिः परमं सुखम्।
मनसा विनिवृत्तानां धर्मस्य निचयो महान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
निवृत्ति परम धर्म है, निवृत्ति परम सुख है, जो मनसे विषयोंकी ओरसे निवृत्त हो गये हैं, उन्हें विशाल धर्मराशिकी प्राप्ति होती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मनःपूर्वागमा धर्मा अधर्माश्च न संशयः।
मनसा बद्ध्यते चापि मुच्यते चापि मानवः॥
निगृहीते भवेत् स्वर्गो विसृष्टे नरको ध्रुवः।
मूलम्
मनःपूर्वागमा धर्मा अधर्माश्च न संशयः।
मनसा बद्ध्यते चापि मुच्यते चापि मानवः॥
निगृहीते भवेत् स्वर्गो विसृष्टे नरको ध्रुवः।
अनुवाद (हिन्दी)
इसमें संदेह नहीं कि धर्म और अधर्म पहले मनमें ही आते हैं। मनसे ही मनुष्य बँधता है और मनसे ही मुक्त होता है। यदि मनको वशमें कर लिया जाय, तब तो स्वर्ग मिलता है और यदि उसे खुला छोड़ दिया जाय तो नरककी प्राप्ति अवश्यम्भावी है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जीवाः पुराकृतेनैव तिर्यग्योनिसरीसृपाः ।
नानायोनिषु जायन्ते स्वकर्मपरिवेष्टिताः ॥
मूलम्
जीवाः पुराकृतेनैव तिर्यग्योनिसरीसृपाः ।
नानायोनिषु जायन्ते स्वकर्मपरिवेष्टिताः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जीव अपने पूर्वकृत कर्मके ही फलसे पशु-पक्षी एवं कीट आदि होते हैं। अपने-अपने कर्मोंसे बँधे हुए प्राणी ही भिन्न-भिन्न योनियोंमें जन्म लेते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जायमानस्य जीवस्य मृत्युः पूर्वं प्रजायते।
सुखं वा यदि वा दुःखं यथापूर्वं कृतं तु वा॥
मूलम्
जायमानस्य जीवस्य मृत्युः पूर्वं प्रजायते।
सुखं वा यदि वा दुःखं यथापूर्वं कृतं तु वा॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो जीव जन्म लेता है, उसकी मृत्यु पहले ही पैदा हो जाती है। मनुष्यने पूर्व जन्ममें जैसा कर्म किया है, तदनुसार ही उसे सुख या दुःख प्राप्त होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अप्रमत्तः प्रमत्तेषु विधिर्जागर्ति जन्तुषु।
न हि तस्य प्रियः कश्चिन्न द्वेष्यो न च मध्यमः॥
मूलम्
अप्रमत्तः प्रमत्तेषु विधिर्जागर्ति जन्तुषु।
न हि तस्य प्रियः कश्चिन्न द्वेष्यो न च मध्यमः॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्राणी प्रमादमें पड़कर भले ही सो जायँ, परंतु उनका प्रारब्ध या दैव प्रमादशून्य—सावधान होकर सदा जागता रहता है। उसका न कोई प्रिय है, न द्वेषपात्र है और न कोई मध्यस्थ ही है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समः सर्वेषु भूतेषु कालः कालं निरीक्षते।
गतायुषो ह्याक्षिपते जीवः सर्वस्य देहिनः॥
मूलम्
समः सर्वेषु भूतेषु कालः कालं निरीक्षते।
गतायुषो ह्याक्षिपते जीवः सर्वस्य देहिनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
काल समस्त प्राणियोंके प्रति समान है। वह अवसरकी प्रतीक्षा करता रहता है। जिनकी आयु समाप्त हो गयी है, उन्हीं प्राणियोंका वह संहार करता है। वही समस्त देहधारियोंका जीवन है॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य प्रतिमें अध्याय समाप्त)