१३६ प्रायश्चित्तविधिः

भागसूचना

षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दान लेने और अनुचित भोजन करनेका प्रायश्चित्त

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

उक्तास्तु भवता भोज्यास्तथाभोज्याश्च सर्वशः।
अत्र मे प्रश्नसंदेहस्तन्मे वद पितामह ॥ १ ॥

मूलम्

उक्तास्तु भवता भोज्यास्तथाभोज्याश्च सर्वशः।
अत्र मे प्रश्नसंदेहस्तन्मे वद पितामह ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने कहा— पितामह! आपने भोज्यान्न और अभोज्यान्न सभी तरहके मनुष्योंका वर्णन किया; किंतु इस विषयमें मुझे पूछनेयोग्य एक संदेह उत्पन्न हो गया। उसका मेरे लिये समाधान कीजिये॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणानां विशेषेण हव्यकव्यप्रतिग्रहे ।
नानाविधेषु भोज्येषु प्रायश्चित्तानि शंस मे ॥ २ ॥

मूलम्

ब्राह्मणानां विशेषेण हव्यकव्यप्रतिग्रहे ।
नानाविधेषु भोज्येषु प्रायश्चित्तानि शंस मे ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रायः ब्राह्मणोंको ही हव्य और कव्यका प्रतिग्रह लेना पड़ता है और उन्हें ही नाना प्रकारके अन्न ग्रहण करनेका अवसर आता है। ऐसी दशामें उन्हें पाप लगते हैं, उनका क्या प्रायश्चित्त है? यह मुझे बतावें॥२॥

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

हन्त वक्ष्यामि ते राजन् ब्राह्मणानां महात्मनाम्।
प्रतिग्रहेषु भोज्ये च मुच्यते येन पाप्मनः ॥ ३ ॥

मूलम्

हन्त वक्ष्यामि ते राजन् ब्राह्मणानां महात्मनाम्।
प्रतिग्रहेषु भोज्ये च मुच्यते येन पाप्मनः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजीने कहा— राजन्! महात्मा ब्राह्मणोंको प्रतिग्रह लेने और भोजन करनेके पापसे जिस प्रकार छुटकारा मिलता है, वह प्रायश्चित्त मैं बता रहा हूँ, सुनो॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घृतप्रतिग्रहे चैव सावित्री समिदाहुतिः।
तिलप्रतिग्रहे चैव सममेतद् युधिष्ठिर ॥ ४ ॥

मूलम्

घृतप्रतिग्रहे चैव सावित्री समिदाहुतिः।
तिलप्रतिग्रहे चैव सममेतद् युधिष्ठिर ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! ब्राह्मण यदि घीका दान ले तो गायत्री-मन्त्र पढ़कर अग्निमें समिधाकी आहुति दे। तिलका दान लेनेपर भी यही प्रायश्चित्त करना चाहिये। ये दोनों कार्य समान हैं॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मांसप्रतिग्रहे चैव मधुनो लवणस्य च।
आदित्योदयनं स्थित्वा पूतो भवति ब्राह्मणः ॥ ५ ॥

मूलम्

मांसप्रतिग्रहे चैव मधुनो लवणस्य च।
आदित्योदयनं स्थित्वा पूतो भवति ब्राह्मणः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फलका गुद्दा, मधु और नमकका दान लेनेपर उस समयसे लेकर सूर्योदयतक खड़े रहनेसे ब्राह्मण शुद्ध हो जाता है॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काञ्चनं प्रतिगृह्याथ जपमानो गुरुश्रुतिम्।
कृष्णायसं च विवृतं धारयन् मुच्यते द्विजः ॥ ६ ॥

मूलम्

काञ्चनं प्रतिगृह्याथ जपमानो गुरुश्रुतिम्।
कृष्णायसं च विवृतं धारयन् मुच्यते द्विजः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुवर्णका दान लेकर गायत्री-मन्त्रका जप करने और खुले तौरपर काले लोहेका दंड धारण करनेसे ब्राह्मण उसके दोषसे छुटकारा पाता है॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं प्रतिगृहीतेऽथ धने वस्त्रे तथा स्त्रियाम्।
एवमेव नरश्रेष्ठ सुवर्णस्य प्रतिग्रहे ॥ ७ ॥
अन्नप्रतिग्रहे चैव पायसेक्षुरसे तथा।

मूलम्

एवं प्रतिगृहीतेऽथ धने वस्त्रे तथा स्त्रियाम्।
एवमेव नरश्रेष्ठ सुवर्णस्य प्रतिग्रहे ॥ ७ ॥
अन्नप्रतिग्रहे चैव पायसेक्षुरसे तथा।

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! इसी प्रकार धन, वस्त्र, कन्या, अन्न, खीर और ईखके रसका दान ग्रहण करनेपर भी सुवर्ण-दानके समान ही प्रायश्चित्त करे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इक्षुतैलपवित्राणां त्रिसंध्येऽप्सु निमज्जनम् ॥ ८ ॥
व्रीहौ पुष्पे फले चैव जले पिष्टमये तथा।
यावके दधिदुग्धे च सावित्रीं शतशोऽन्विताम् ॥ ९ ॥

मूलम्

इक्षुतैलपवित्राणां त्रिसंध्येऽप्सु निमज्जनम् ॥ ८ ॥
व्रीहौ पुष्पे फले चैव जले पिष्टमये तथा।
यावके दधिदुग्धे च सावित्रीं शतशोऽन्विताम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गन्ना, तेल और कुशोंका प्रतिग्रह स्वीकार करनेपर त्रिकाल स्नान करना चाहिये। धान, फूल, फल, जल, पूआ, जौकी लपसी और दही-दूधका दान लेनेपर सौ बार गायत्री-मन्त्रका जप करना चाहिये॥८-९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपानहौ च च्छत्रं च प्रतिगृह्यौर्ध्वदेहिके।
जपेच्छतं समायुक्तस्तेन मुच्येत पाप्मना ॥ १० ॥

मूलम्

उपानहौ च च्छत्रं च प्रतिगृह्यौर्ध्वदेहिके।
जपेच्छतं समायुक्तस्तेन मुच्येत पाप्मना ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्राद्धमें जूता और छाता ग्रहण करनेपर एकाग्रचित्त हो यदि सौ बार गायत्री-मन्त्रका जप करे तो उस प्रतिग्रहके दोषसे छुटकारा मिल जाता है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षेत्रप्रतिग्रहे चैव ग्रहसूतकयोस्तथा ।
त्रीणि रात्राण्युपोषित्वा तेन पापाद् विमुच्यते ॥ ११ ॥

मूलम्

क्षेत्रप्रतिग्रहे चैव ग्रहसूतकयोस्तथा ।
त्रीणि रात्राण्युपोषित्वा तेन पापाद् विमुच्यते ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

1ग्रहणके समय अथवा अशौचमें किसीके दिये हुए खेतका दान स्वीकार करनेपर तीन रात उपवास करनेसे उसके दोषसे छुटकारा मिलता है॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृष्णपक्षे तु यः श्राद्धं पितॄणामश्नुते द्विजः।
अन्नमेतदहोरात्रात् पूतो भवति ब्राह्मणः ॥ १२ ॥

मूलम्

कृष्णपक्षे तु यः श्राद्धं पितॄणामश्नुते द्विजः।
अन्नमेतदहोरात्रात् पूतो भवति ब्राह्मणः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो द्विज कृष्णपक्षमें किये हुए पितृश्राद्धका अन्न भोजन करता है, वह एक दिन और एक रात बीत जानेपर शुद्ध होता है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न च संध्यामुपासीत न च जाप्यं प्रवर्तयेत्।
न संकिरेत् तदन्नं च ततः पूयेत ब्राह्मणः ॥ १३ ॥

मूलम्

न च संध्यामुपासीत न च जाप्यं प्रवर्तयेत्।
न संकिरेत् तदन्नं च ततः पूयेत ब्राह्मणः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ब्राह्मण जिस दिन श्राद्धका अन्न भोजन करे, उस दिन संध्या, गायत्री-जप और दुबारा भोजन त्याग दे। इससे उसकी शुद्धि होती है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्यर्थमपराह्णे तु पितॄणां श्राद्धमुच्यते।
यथोक्तानां यदश्नीयुर्ब्राह्मणाः पूर्वकीर्तिताः ॥ १४ ॥

मूलम्

इत्यर्थमपराह्णे तु पितॄणां श्राद्धमुच्यते।
यथोक्तानां यदश्नीयुर्ब्राह्मणाः पूर्वकीर्तिताः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसीलिये अपराह्णकालमें पितरोंके श्राद्धका विधान किया गया है। (जिससे सबेरेकी संध्योपासना हो जाय और शामको पुनर्भोजनकी आवश्यकता ही न पड़े) ब्राह्मणोंको एक दिन पहले श्राद्धका निमन्त्रण देना चाहिये। जिससे वे पूर्वोक्त प्रकारसे विशुद्ध पुरुषोंके यहाँ यथावत् रूपसे भोजन कर सकें॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मृतकस्य तृतीयाहे ब्राह्मणो योऽन्नमश्नुते।
स त्रिवेलं समुन्मज्ज्य द्वादशाहेन शुध्यति ॥ १५ ॥

मूलम्

मृतकस्य तृतीयाहे ब्राह्मणो योऽन्नमश्नुते।
स त्रिवेलं समुन्मज्ज्य द्वादशाहेन शुध्यति ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिसके घर किसीकी मृत्यु हुई हो, उसके यहाँ मरणाशौचके तीसरे दिन अन्न ग्रहण करनेवाला ब्राह्मण बारह दिनोंतक त्रिकाल स्नान करनेसे शुद्ध होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्वादशाहे व्यतीते तु कृतशौचो विशेषतः।
ब्राह्मणेभ्यो हविर्दत्त्वा मुच्यते तेन पाप्मना ॥ १६ ॥

मूलम्

द्वादशाहे व्यतीते तु कृतशौचो विशेषतः।
ब्राह्मणेभ्यो हविर्दत्त्वा मुच्यते तेन पाप्मना ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बारह दिनोंतक स्नानका नियम पूर्ण हो जानेपर तेरहवें दिन वह विशेषरूपसे स्नान आदिके द्वारा पवित्र हो ब्राह्मणोंको हविष्य भोजन करावे। तब उस पापसे मुक्त हो सकता है॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मृतस्य दशरात्रेण प्रायश्चित्तानि दापयेत्।
सावित्रीं रैवतीमिष्टिं कूष्माण्डमघमर्षणम् ॥ १७ ॥

मूलम्

मृतस्य दशरात्रेण प्रायश्चित्तानि दापयेत्।
सावित्रीं रैवतीमिष्टिं कूष्माण्डमघमर्षणम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मनुष्य किसीके यहाँ मरणाशौचमें दस दिनतक अन्न खाता है, उसे गायत्री-मन्त्र, रैवत शाम, पवित्रेष्टि कूष्माण्ड अनुवाक् और अघमर्षणका जप करके उस दोषका प्रायश्चित्त करना चाहिये॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मृतकस्य त्रिरात्रे यः समुद्दिष्टे समश्नुते।
सप्त त्रिषवणं स्नात्वा पूतो भवति ब्राह्मणः ॥ १८ ॥

मूलम्

मृतकस्य त्रिरात्रे यः समुद्दिष्टे समश्नुते।
सप्त त्रिषवणं स्नात्वा पूतो भवति ब्राह्मणः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार जो मरणाशौचवाले घरमें लगातार तीन रात भोजन करता है, वह ब्राह्मण सात दिनोंतक त्रिकाल स्नान करनेसे शुद्ध होता है॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिद्धिमाप्नोति विपुलामापदं चैव नाप्नुयात् ॥ १९ ॥

मूलम्

सिद्धिमाप्नोति विपुलामापदं चैव नाप्नुयात् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह प्रायश्चित्त करनेके बाद उसे सिद्धि प्राप्त होती है और वह भारी आपत्तिमें कभी नहीं पड़ता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्तु शूद्रैः समश्नीयाद् ब्राह्मणोऽप्येकभोजने।
अशौचं विधिवत् तस्य शौचमत्र विधीयते ॥ २० ॥

मूलम्

यस्तु शूद्रैः समश्नीयाद् ब्राह्मणोऽप्येकभोजने।
अशौचं विधिवत् तस्य शौचमत्र विधीयते ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण शूद्रोंके साथ एक पंक्तिमें भोजन कर लेता है, वह अशुद्ध हो जाता है। अतः उनकी शुद्धिके लिये शास्त्रीय विधिके अनुसार यहाँ शौचका विधान है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्तु वैश्यैः सहाश्नीयाद् ब्राह्मणोऽप्येकभोजने।
स वै त्रिरात्रं दीक्षित्वा मुच्यते तेन कर्मणा ॥ २१ ॥

मूलम्

यस्तु वैश्यैः सहाश्नीयाद् ब्राह्मणोऽप्येकभोजने।
स वै त्रिरात्रं दीक्षित्वा मुच्यते तेन कर्मणा ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण वैश्योंके साथ एक पंक्तिमें भोजन करता है, वह तीन राततक व्रत करनेपर उस कर्मदोषसे मुक्त होता है॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षत्रियैः सह योऽश्नीयाद् ब्राह्मणोऽप्येकभोजने।
आप्लुतः सह वासोभिस्तेन मुच्येत पाप्मना ॥ २२ ॥

मूलम्

क्षत्रियैः सह योऽश्नीयाद् ब्राह्मणोऽप्येकभोजने।
आप्लुतः सह वासोभिस्तेन मुच्येत पाप्मना ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण क्षत्रियोंके साथ एक पंक्तिमें भोजन करता है, वह वस्त्रोंसहित स्नान करनेसे पापमुक्त होता है॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शूद्रस्य तु कुलं हन्ति वैश्यस्य पशुबान्धवान्।
क्षत्रियस्य श्रियं हन्ति ब्राह्मणस्य सुवर्चसम् ॥ २३ ॥

मूलम्

शूद्रस्य तु कुलं हन्ति वैश्यस्य पशुबान्धवान्।
क्षत्रियस्य श्रियं हन्ति ब्राह्मणस्य सुवर्चसम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ब्राह्मणका तेज उसके साथ भोजन करनेवाले शूद्रके कुलका, वैश्यके पशु और बान्धवोंका तथा क्षत्रियकी सम्पत्तिका नाश कर डालता है॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रायश्चित्तं च शान्तिं च जुहुयात् तेन मुच्यते।
सावित्रीं रैवतीमिष्टिं कूष्माण्डमघमर्षणम् ॥ २४ ॥

मूलम्

प्रायश्चित्तं च शान्तिं च जुहुयात् तेन मुच्यते।
सावित्रीं रैवतीमिष्टिं कूष्माण्डमघमर्षणम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके लिये प्रायश्चित्त और शान्तिहोम करना चाहिये। गायत्री-मन्त्र, रैवत साम, पवित्रेष्टि, कूष्माण्ड अनुवाक् और अघमर्षण मन्त्रका जप भी आवश्यक है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथोच्छिष्टमथान्योन्यं सम्प्राशेन्नात्र संशयः ।
रोचना विरजा रात्रिर्मङ्गलालम्भनानि च ॥ २५ ॥

मूलम्

तथोच्छिष्टमथान्योन्यं सम्प्राशेन्नात्र संशयः ।
रोचना विरजा रात्रिर्मङ्गलालम्भनानि च ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किसीका जूठा अथवा उसके साथ एक पंक्तिमें भोजन नहीं करना चाहिये। उपर्युक्त प्रायश्चित्तके विषयमें संशय नहीं करना चाहिये। प्रायश्चित्त करनेके अनन्तर गोरोचन, दूर्वा और हल्दी आदि मांगलिक वस्तुओंका स्पर्श करना चाहिये॥२५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि प्रायश्चित्तविधिर्नाम षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १३६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें प्रायश्चित्तविधि नामक एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१३६॥


  1. कुछ लोग ‘ग्रहसूतकयोः’ का अर्थ करते हैं ‘कारागारस्थाशौचवतो’ इसके अनुसार जो जेलमें रह आया हो तथा जो जनन-मरण-सम्बन्धी अशौचसे युक्त हो ऐसे लोगोंका दिया हुआ क्षेत्रदान स्वीकार करनेपर तीन रात उपवास करनेसे प्रतिग्रह-दोषसे छुटकारा मिलता है। ↩︎