भागसूचना
पञ्चाधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
बड़े और छोटे भाईके पारस्परिक बर्ताव तथा माता-पिता, आचार्य आदि गुरुजनोंके गौरवका वर्णन
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा ज्येष्ठः कनिष्ठेषु वर्तेत भरतर्षभ।
कनिष्ठाश्च यथा ज्येष्ठे वर्तेरंस्तद् ब्रवीहि मे ॥ १ ॥
मूलम्
यथा ज्येष्ठः कनिष्ठेषु वर्तेत भरतर्षभ।
कनिष्ठाश्च यथा ज्येष्ठे वर्तेरंस्तद् ब्रवीहि मे ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने पूछा— भरतश्रेष्ठ! बड़ा भाई अपने छोटे भाइयोंके साथ कैसा बर्ताव करे? और छोटे भाइयोंका बड़े भाईके साथ कैसा बर्ताव होना चाहिये? यह मुझे बताइये॥१॥
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ज्येष्ठवत् तात वर्तस्व ज्येष्ठोऽसि सततं भवान्।
गुरोर्गरीयसी वृत्तिर्या च शिष्यस्य भारत ॥ २ ॥
मूलम्
ज्येष्ठवत् तात वर्तस्व ज्येष्ठोऽसि सततं भवान्।
गुरोर्गरीयसी वृत्तिर्या च शिष्यस्य भारत ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजीने कहा— तात भरतनन्दन! तुम अपने भाइयोंमें सबसे बड़े हो; अतः सदा बड़ेके अनुरूप ही बर्ताव करो। गुरुको अपने शिष्यके प्रति जैसा गौरवयुक्त बर्ताव होता है, वैसा ही तुम्हें भी अपने भाइयोंके साथ करना चाहिये॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न गुरावकृतप्रज्ञे शक्यं शिष्येण वर्तितुम्।
गुरोर्हि दीर्घदर्शित्वं यत् तच्छिष्यस्य भारत ॥ ३ ॥
मूलम्
न गुरावकृतप्रज्ञे शक्यं शिष्येण वर्तितुम्।
गुरोर्हि दीर्घदर्शित्वं यत् तच्छिष्यस्य भारत ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि गुरु अथवा बड़े भाईका विचार शुद्ध न हो तो शिष्य या छोटे भाई उसकी आज्ञाके अधीन नहीं रह सकते। भारत! बड़ेके दीर्घदर्शी होनेपर छोटे भाई भी दीर्घदर्शी होते हैं॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्धः स्यादन्धवेलायां जडः स्यादपि वा बुधः।
परिहारेण तद् ब्रूयाद् यस्तेषां स्याद् व्यतिक्रमः ॥ ४ ॥
मूलम्
अन्धः स्यादन्धवेलायां जडः स्यादपि वा बुधः।
परिहारेण तद् ब्रूयाद् यस्तेषां स्याद् व्यतिक्रमः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बड़े भाईको चाहिये कि वह अवसरके अनुसार अन्ध, जड़ और विद्वान् बने अर्थात् यदि छोटे भाइयोंसे कोई अपराध हो जाय तो उसे देखते हुए भी न देखे। जानकर भी अनजान बना रहे और उनसे ऐसी बात करे, जिससे उनकी अपराध करनेकी प्रवृत्ति दूर हो जाय॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रत्यक्षं भिन्नहृदया भेदयेयुः कृतं नराः।
श्रियाभितप्ताः कौन्तेय भेदकामास्तथारयः ॥ ५ ॥
मूलम्
प्रत्यक्षं भिन्नहृदया भेदयेयुः कृतं नराः।
श्रियाभितप्ताः कौन्तेय भेदकामास्तथारयः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि बड़ा भाई प्रत्यक्षरूपसे अपराधका दण्ड देता है तो उसके छोटे भाइयोंका हृदय छिन्न-भिन्न हो जाता है और वे उस दुर्व्यवहारका लोगोंमें प्रचार कर देते हैं, तब उनके ऐश्वर्यको देखकर जलनेवाले कितने ही शत्रु उनमें मतभेद पैदा करनेकी इच्छा करने लगते हैं॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ज्येष्ठः कुलं वर्धयति विनाशयति वा पुनः।
हन्ति सर्वमपि ज्येष्ठः कुलं यत्रावजायते ॥ ६ ॥
मूलम्
ज्येष्ठः कुलं वर्धयति विनाशयति वा पुनः।
हन्ति सर्वमपि ज्येष्ठः कुलं यत्रावजायते ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जेठा भाई अपनी अच्छी नीतिसे कुलको उन्नतिशील बनाता है; किंतु यदि वह कुनीतिका आश्रय लेता है तो उसे विनाशके गर्तमें डाल देता है! जहाँ बड़े भाईका विचार खोटा हुआ, वहाँ वह जिसमें उत्पन्न हुआ है, अपने उस समस्त कुलको ही चौपट कर देता है॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ यो विनिकुर्वीत ज्येष्ठो भ्राता यवीयसः।
अज्येष्ठः स्यादभागश्च नियम्यो राजभिश्च सः ॥ ७ ॥
मूलम्
अथ यो विनिकुर्वीत ज्येष्ठो भ्राता यवीयसः।
अज्येष्ठः स्यादभागश्च नियम्यो राजभिश्च सः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो बड़ा भाई होकर छोटे भाइयोंके साथ कुटिलतापूर्ण बर्ताव करता है, वह न तो ज्येष्ठ कहलाने योग्य है और न ज्येष्ठांश पानेका ही अधिकारी है। उसे तो राजाओंके द्वारा दण्ड मिलना चाहिये॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निकृती हि नरो लोकान् पापान् गच्छत्यसंशयम्।
विदुलस्येव तत् पुष्पं मोघं जनयितुः स्मृतम् ॥ ८ ॥
मूलम्
निकृती हि नरो लोकान् पापान् गच्छत्यसंशयम्।
विदुलस्येव तत् पुष्पं मोघं जनयितुः स्मृतम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कपट करनेवाला मनुष्य निःसंदेह पापमय लोकों (नरक)-में जाता है। उसका जन्म पिताके लिये बेतके फूलकी भाँति निरर्थक ही माना गया है॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वानर्थः कुले यत्र जायते पापपूरुषः।
अकीर्तिं जनयत्येव कीर्तिमन्तर्दधाति च ॥ ९ ॥
मूलम्
सर्वानर्थः कुले यत्र जायते पापपूरुषः।
अकीर्तिं जनयत्येव कीर्तिमन्तर्दधाति च ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस कुलमें पापी पुरुष जन्म लेता है, उसके लिये वह सम्पूर्ण अनर्थोंका कारण बन जाता है। पापात्मा मनुष्य कुलमें कलंक लगाता और उसके सुयशका नाश करता है॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वे चापि विकर्मस्था भागं नार्हन्ति सोदराः।
नाप्रदाय कनिष्ठेभ्यो ज्येष्ठः कुर्वीत यौतकम् ॥ १० ॥
मूलम्
सर्वे चापि विकर्मस्था भागं नार्हन्ति सोदराः।
नाप्रदाय कनिष्ठेभ्यो ज्येष्ठः कुर्वीत यौतकम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि छोटे भाई भी पापकर्ममें लगे रहते हों तो वे पैतृक धनका भाग पानेके अधिकारी नहीं हैं। छोटे भाइयोंको उनका उचित भाग दिये बिना बड़े भाईको पैतृक-सम्पत्तिका भाग ग्रहण नहीं करना चाहिये॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनुपघ्नन् पितुर्दायं जङ्घाश्रमफलोऽध्वगः ।
स्वयमीहितलब्धं तु नाकामो दातुमर्हति ॥ ११ ॥
मूलम्
अनुपघ्नन् पितुर्दायं जङ्घाश्रमफलोऽध्वगः ।
स्वयमीहितलब्धं तु नाकामो दातुमर्हति ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि बड़ा भाई पैतृक धनको हानि पहुँचाये बिना ही केवल जाँघोंके परिश्रमसे परदेशमें जाकर धन पैदा करे तो वह उसके निजी परिश्रमकी कमाई है। अतः यदि उसकी इच्छा न हो तो वह उस धनमेंसे भाइयोंको नहीं दे सकता है॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भ्रातॄणामविभक्तानामुत्थानमपि चेत् सह ।
न पुत्रभागं विषमं पिता दद्यात् कदाचन ॥ १२ ॥
मूलम्
भ्रातॄणामविभक्तानामुत्थानमपि चेत् सह ।
न पुत्रभागं विषमं पिता दद्यात् कदाचन ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि भाइयोंके हिस्सेका बटवारा न हुआ हो और सबने साथ-ही-साथ व्यापार आदिके द्वारा धनकी उन्नति की हो, उस अवस्थामें यदि पिताके जीते-जी सब अलग होना चाहें तो पिताको उचित है कि वह कभी किसीको कम और किसीको अधिक धन न दे अर्थात् वह सब पुत्रोंको बराबर-बराबर हिस्सा दे॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न ज्येष्ठो वावमन्येत दुष्कृतः सुकृतोऽपि वा।
यदि स्त्री यद्यवरजः श्रेयश्चेत् तत् तदाचरेत् ॥ १३ ॥
धर्मं हि श्रेय इत्याहुरिति धर्मविदो जनाः।
मूलम्
न ज्येष्ठो वावमन्येत दुष्कृतः सुकृतोऽपि वा।
यदि स्त्री यद्यवरजः श्रेयश्चेत् तत् तदाचरेत् ॥ १३ ॥
धर्मं हि श्रेय इत्याहुरिति धर्मविदो जनाः।
अनुवाद (हिन्दी)
बड़ा भाई अच्छा काम करनेवाला हो या बुरा, छोटेको उसका अपमान नहीं करना चाहिये। इसी तरह यदि स्त्री अथवा छोटे भाई बुरे रास्तेपर चल रहे हों तो श्रेष्ठ पुरुषको जिस तरहसे भी उनकी भलाई हो, वही उपाय करना चाहिये। धर्मज्ञ पुरुषोंका कहना है कि धर्म ही कल्याणका सर्वश्रेष्ठ साधन है॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायान् पिता दश ॥ १४ ॥
दश चैव पितॄन् माता सर्वां वा पृथिवीमपि।
गौरवेणाभिभवति नास्ति मातृसमो गुरुः ॥ १५ ॥
मूलम्
दशाचार्यानुपाध्याय उपाध्यायान् पिता दश ॥ १४ ॥
दश चैव पितॄन् माता सर्वां वा पृथिवीमपि।
गौरवेणाभिभवति नास्ति मातृसमो गुरुः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गौरवमें दस आचार्योंसे बढ़कर उपाध्याय, दस उपाध्यायोंसे बढ़कर पिता और दस पिताओंसे बढ़कर माता है। माता अपने गौरवसे समूची पृथ्वीको भी तिरस्कृत कर देती है। अतः माताके समान दूसरा कोई गुरु नहीं है॥१४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
माता गरीयसी यच्च तेनैतां मन्यते जनः।
ज्येष्ठो भ्राता पितृसमो मृते पितरि भारत ॥ १६ ॥
मूलम्
माता गरीयसी यच्च तेनैतां मन्यते जनः।
ज्येष्ठो भ्राता पितृसमो मृते पितरि भारत ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! माताका गौरव सबसे बढ़कर है, इसलिये लोग उसका विशेष आदर करते हैं। भारत! पिताकी मृत्यु हो जानेपर बड़े भाईको ही पिताके समान समझना चाहिये॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स ह्येषां वृत्तिदाता स्यात् स चैतान् प्रतिपालयेत्।
कनिष्ठास्तं नमस्येरन् सर्वे छन्दानुवर्तिनः ॥ १७ ॥
तमेव चोपजीवेरन् यथैव पितरं तथा।
मूलम्
स ह्येषां वृत्तिदाता स्यात् स चैतान् प्रतिपालयेत्।
कनिष्ठास्तं नमस्येरन् सर्वे छन्दानुवर्तिनः ॥ १७ ॥
तमेव चोपजीवेरन् यथैव पितरं तथा।
अनुवाद (हिन्दी)
बड़े भाईको उचित है कि वह अपने छोटे भाइयोंको जीविका प्रदान करे तथा उनका पालन-पोषण करे। छोटे भाइयोंका भी कर्तव्य है कि वे सब-के-सब बड़े भाईके सामने नतमस्तक हों और उसकी इच्छाके अनुसार चलें। बड़े भाईको ही पिता मानकर उनके आश्रयमें जीवन व्यतीत करें॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरीरमेतौ सृजतः पिता माता च भारत ॥ १८ ॥
आचार्यशास्ता या जातिः सा सत्या साजरामरा।
मूलम्
शरीरमेतौ सृजतः पिता माता च भारत ॥ १८ ॥
आचार्यशास्ता या जातिः सा सत्या साजरामरा।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! पिता और माता केवल शरीरकी सृष्टि करते हैं, किंतु आचार्यके उपदेशसे जो ज्ञानरूप नवीन जीवन प्राप्त होता है, वह सत्य, अजर और अमर है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ज्येष्ठा मातृसमा चापि भगिनी भरतर्षभ ॥ १९ ॥
भ्रातुर्भार्या च तद्वत् स्याद् यस्या बाल्ये स्तनं पिबेत्॥२०॥
मूलम्
ज्येष्ठा मातृसमा चापि भगिनी भरतर्षभ ॥ १९ ॥
भ्रातुर्भार्या च तद्वत् स्याद् यस्या बाल्ये स्तनं पिबेत्॥२०॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! बड़ी बहिन भी माताके समान है। इसी तरह बड़े भाईकी पत्नी तथा बचपनमें जिसका दूध पिया गया हो, वह धाय भी माताके समान है॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि ज्येष्ठकनिष्ठवृत्तिर्नाम पञ्चाधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०५ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें बड़े और छोटे भाईका पारस्परिक बर्तावनामक एक सौ पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१०५॥