भागसूचना
एकोनाशीतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
गौओंको तपस्याद्वारा अभीष्ट वरकी प्राप्ति तथा उनके दानकी महिमा, विभिन्न प्रकारके गौओंके दानसे विभिन्न उत्तम लोकोंमें गमनका कथन
मूलम् (वचनम्)
वसिष्ठ उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शतं वर्षसहस्राणां तपस्तप्तं सुदुष्करम्।
गोभिः पूर्वं विसृष्टाभिर्गच्छेम श्रेष्ठतामिति ॥ १ ॥
लोकेऽस्मिन् दक्षिणानां च सर्वासां वयमुत्तमाः।
भवेम न च लिप्येम दोषेणेति परंतप ॥ २ ॥
अस्मत्पुरीषस्नानेन जनः पूयेत सर्वदा।
शकृता च पवित्रार्थं कुर्वीरन् देवमानुषाः ॥ ३ ॥
तथा सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
प्रदातारश्च लोकान् नो गच्छेयुरिति मानद ॥ ४ ॥
मूलम्
शतं वर्षसहस्राणां तपस्तप्तं सुदुष्करम्।
गोभिः पूर्वं विसृष्टाभिर्गच्छेम श्रेष्ठतामिति ॥ १ ॥
लोकेऽस्मिन् दक्षिणानां च सर्वासां वयमुत्तमाः।
भवेम न च लिप्येम दोषेणेति परंतप ॥ २ ॥
अस्मत्पुरीषस्नानेन जनः पूयेत सर्वदा।
शकृता च पवित्रार्थं कुर्वीरन् देवमानुषाः ॥ ३ ॥
तथा सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च।
प्रदातारश्च लोकान् नो गच्छेयुरिति मानद ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वसिष्ठजी कहते हैं— मानद परंतप! प्राचीन कालमें जब गौओंकी सृष्टि हुई थी, तब उन गौओंने एक लाख वर्षोंतक बड़ी कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्याका उद्देश्य यह था कि हम श्रेष्ठता प्राप्त करें। इस जगत्में जितनी दक्षिणा देने योग्य वस्तुएँ हैं, उन सबमें हम उत्तम समझी जायँ। किसी दोषसे लिप्त न हों। हमारे गोबरसे स्नान करनेपर सदा सब लोग पवित्र हों। देवता और मनुष्य पवित्रताके लिये हमेशा हमारे गोबरका उपयोग करें। समस्त चराचर प्राणी भी हमारे गोबरसे पवित्र हो जायँ और हमारा दान करनेवाले मनुष्य हमारे ही लोक (गोलोकधाम) में जायँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ताभ्यो वरं ददौ ब्रह्मा तपसोऽन्ते स्वयं प्रभुः।
एवं भवत्विति प्रभुर्लोकांस्तारयतेति च ॥ ५ ॥
मूलम्
ताभ्यो वरं ददौ ब्रह्मा तपसोऽन्ते स्वयं प्रभुः।
एवं भवत्विति प्रभुर्लोकांस्तारयतेति च ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब उनकी तपस्या समाप्त हुई, तब साक्षात् भगवान् ब्रह्माने उन्हें वर दिया—‘गौओ! ऐसा ही हो—तुम्हारे मनमें जो संकल्प है, वह परिपूर्ण हो। तुम सम्पूर्ण जगत्के जीवोंका उद्धार करती रहो’॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्तस्थुः सिद्धकामास्ता भूतभव्यस्य मातरः।
प्रातर्नमस्यास्ता गावस्ततः पुष्टिमवाप्नुयात् ॥ ६ ॥
मूलम्
उत्तस्थुः सिद्धकामास्ता भूतभव्यस्य मातरः।
प्रातर्नमस्यास्ता गावस्ततः पुष्टिमवाप्नुयात् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार अपनी समस्त कामनाएँ सिद्ध हो जानेपर गौएँ तपस्यासे उठीं। वे भूत, भविष्य और वर्तमान—तीनों कालोंकी जननी हैं; अतः प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर गौओंको प्रणाम करना चाहिये। इससे मनुष्योंको पुष्टि प्राप्त होती है॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तपसोऽन्ते महाराज गावो लोकपरायणाः।
तस्माद् गावो महाभागाः पवित्रं परमुच्यते ॥ ७ ॥
मूलम्
तपसोऽन्ते महाराज गावो लोकपरायणाः।
तस्माद् गावो महाभागाः पवित्रं परमुच्यते ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तपस्या समाप्त होनेपर गौएँ सम्पूर्ण जगत्का आश्रय बन गयीं; इसलिये वे महान् सौभाग्यशालिनी गौएँ परम पवित्र बतायी जाती हैं॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव सर्वभूतानां समतिष्ठन्त मूर्धनि।
समानवत्सां कपिलां धेनुं दत्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां ब्रह्मलोके महीयते ॥ ८ ॥
मूलम्
तथैव सर्वभूतानां समतिष्ठन्त मूर्धनि।
समानवत्सां कपिलां धेनुं दत्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां ब्रह्मलोके महीयते ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये समस्त प्राणियोंके मस्तकपर स्थित हैं (अर्थात् सबसे श्रेष्ठ एवं वन्दनीय हैं)। जो मनुष्य दूध देनेवाली सुलक्षणा कपिला गौको वस्त्र ओढ़ाकर कपिल रंगके बछड़ेसहित दान करता है, वह ब्रह्मलोकमें सम्मानित होता है॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लोहितां तुल्यवत्सां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां सूर्यलोके महीयते ॥ ९ ॥
मूलम्
लोहितां तुल्यवत्सां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां सूर्यलोके महीयते ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य दूध देनेवाली सुलक्षणा लाल रंगकी गौको वस्त्र ओढ़ाकर लाल रंगके बछड़ेसहित दान करता है, वह सूर्यलोकमें सम्मानित होता है॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समानवत्सां शबलां धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां सोमलोके महीयते ॥ १० ॥
मूलम्
समानवत्सां शबलां धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां सोमलोके महीयते ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुरुष दूध देनेवाली सुलक्षणा चितकबरी गौको वस्त्र ओढ़ाकर चितकबरे बछड़ेसहित दान करता है, वह चन्द्रलोकमें पूजित होता है॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समानवत्सां श्वेतां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतामिन्द्रलोके महीयते ॥ ११ ॥
मूलम्
समानवत्सां श्वेतां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतामिन्द्रलोके महीयते ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मानव दूध देनेवाली सुलक्षणा श्वेत वर्णकी गौको वस्त्र ओढ़ाकर श्वेत वर्णके बछड़ेसहित दान करता है, उसे इन्द्रलोकमें सम्मान प्राप्त होता है॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समानवत्सां कृष्णां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतामग्निलोके महीयते ॥ १२ ॥
मूलम्
समानवत्सां कृष्णां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतामग्निलोके महीयते ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य दूध देनेवाली सुलक्षणा कृष्ण वर्णकी गौको वस्त्र ओढ़ाकर कृष्ण वर्णके बछड़ेसहित दान करता है, वह अग्निलोकमें प्रतिष्ठित होता है॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समानवत्सां धूम्रां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां याम्यलोके महीयते ॥ १३ ॥
मूलम्
समानवत्सां धूम्रां तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां याम्यलोके महीयते ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुरुष दूध देनेवाली सुलक्षणा धूएँ-जैसे रंगकी गौको वस्त्र ओढ़ाकर धूएँके समान रंगके बछड़ेसहित दान करता है, वह यमलोकमें सम्मानित होता है॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अपां फेनसवर्णां तु सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां वारुणं लोकमाप्नुते ॥ १४ ॥
मूलम्
अपां फेनसवर्णां तु सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां वारुणं लोकमाप्नुते ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो जलके फेनके समान रंगवाली गौको वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े और कांस्यके दुग्धपात्रसहित दान करता है, वह वरुणलोकको प्राप्त होता है॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वातरेणुसवर्णां तु सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां वायुलोके महीयते ॥ १५ ॥
मूलम्
वातरेणुसवर्णां तु सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां वायुलोके महीयते ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो हवासे उड़ी हुई धूलके समान रंगवाली गौको वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े और कांस्यके दुग्धपात्रसहित दान करता है, उसकी वायुलोकमें पूजा होती है॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हिरण्यवर्णां पिंगाक्षीं सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां कौबेरं लोकमश्नुते ॥ १६ ॥
मूलम्
हिरण्यवर्णां पिंगाक्षीं सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां कौबेरं लोकमश्नुते ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो सुवर्णके समान रंग तथा पिंगल वर्णके नेत्रवाली गौको वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े और कांस्यके दुग्धपात्रसहित दान करता है, वह कुबेर-लोकको प्राप्त होता है॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पलालधूम्रवर्णां तु सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां पितृलोके महीयते ॥ १७ ॥
मूलम्
पलालधूम्रवर्णां तु सवत्सां कांस्यदोहनाम्।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां पितृलोके महीयते ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुआलके धूएँके समान रंगवाली बछड़ेसहित गौको वस्त्रसे आच्छादित करके कांस्यके दुग्धपात्रसहित दान करता है, वह पितृलोकमें प्रतिष्ठित होता है॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सवत्सां पीवरीं दत्त्वा दृतिकण्ठामलंकृताम्।
वैश्वदेवमसम्बाधं स्थानं श्रेष्ठं प्रपद्यते ॥ १८ ॥
मूलम्
सवत्सां पीवरीं दत्त्वा दृतिकण्ठामलंकृताम्।
वैश्वदेवमसम्बाधं स्थानं श्रेष्ठं प्रपद्यते ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो लटकते हुए गलकम्बलसे युक्त मोटी-ताजी सवत्सा गौको अलंकृत करके ब्राह्मणको दान देता है, वह बिना किसी बाधाके विश्वेदेवोंके श्रेष्ठ लोकमें पहुँच जाता है॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समानवत्सां गौरीं तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां वसूनां लोकमाप्नुयात् ॥ १९ ॥
मूलम्
समानवत्सां गौरीं तु धेनुं दत्त्वा पयस्विनीम्।
सुव्रतां वस्त्रसंवीतां वसूनां लोकमाप्नुयात् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो गौर वर्णवाली और दूध देनेवाली शुभलक्षणा गौको वस्त्र ओढ़ाकर समान रंगवाले बछड़ेसहित दान करता है, वह वसुओंके लोकमें जाता है॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाण्डुकम्बलवर्णाभां सवत्सां कांस्यदोहनाम् ।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां साध्यानां लोकमाप्नुते ॥ २० ॥
मूलम्
पाण्डुकम्बलवर्णाभां सवत्सां कांस्यदोहनाम् ।
प्रदाय वस्त्रसंवीतां साध्यानां लोकमाप्नुते ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो श्वेत कम्बलके समान रंगवाली सवत्सा गौको वस्त्रसे आच्छादित करके कांस्यके दुग्धपात्रसहित दान करता है, वह साध्योंके लोकमें जाता है॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वैराटपृष्ठमुक्षाणं सर्वरत्नैरलंकृतम् ।
प्रददन्मरुतां लोकान् स राजन् प्रतिपद्यते ॥ २१ ॥
मूलम्
वैराटपृष्ठमुक्षाणं सर्वरत्नैरलंकृतम् ।
प्रददन्मरुतां लोकान् स राजन् प्रतिपद्यते ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जो विशालपृष्ठभागवाले बैलको सब प्रकारके रत्नोंसे अलंकृत करके उसका दान करता है, वह मरुद्गणोंके लोकोंमें जाता है॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वयोपपन्नं लीलांगं सर्वरत्नसमन्वितम् ।
गन्धर्वाप्सरसां लोकान् दत्त्वा प्राप्नोति मानवः ॥ २२ ॥
मूलम्
वयोपपन्नं लीलांगं सर्वरत्नसमन्वितम् ।
गन्धर्वाप्सरसां लोकान् दत्त्वा प्राप्नोति मानवः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मनुष्य यौवनसे सम्पन्न और सुन्दर अंगवाले बैलको सम्पूर्ण रत्नोंसे विभूषित करके उसका दान करता है, वह गन्धर्वों और अप्सराओंके लोकोंको प्राप्त करता है॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृतिकण्ठमनड्वाहं सर्वरत्नैरलंकृतम् ।
दत्त्वा प्रजापतेर्लोकान् विशोकः प्रतिपद्यते ॥ २३ ॥
मूलम्
दृतिकण्ठमनड्वाहं सर्वरत्नैरलंकृतम् ।
दत्त्वा प्रजापतेर्लोकान् विशोकः प्रतिपद्यते ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो लटकते हुए गलकम्बलवाले तथा गाड़ीका बोझ ढोनेमें समर्थ बैलको सम्पूर्ण रत्नोंसे अलंकृत करके ब्राह्मणको देता है, वह शोकरहित हो प्रजापतिके लोकोंमें जाता है॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोप्रदानरतो याति भित्त्वा जलदसंचयान्।
विमानेनार्कवर्णेन दिवि राजन् विराजते ॥ २४ ॥
मूलम्
गोप्रदानरतो याति भित्त्वा जलदसंचयान्।
विमानेनार्कवर्णेन दिवि राजन् विराजते ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! गोदानमें अनुरागपूर्वक तत्पर रहनेवाला पुरुष सूर्यके समान देदीप्यमान विमानमें बैठकर मेघमण्डलको भेदता हुआ स्वर्गमें जाकर सुशोभित होता है॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं चारुवेषाः सुश्रोण्यः सहस्रं सुरयोषितः।
रमयन्ति नरश्रेष्ठं गोप्रदानरतं नरम् ॥ २५ ॥
मूलम्
तं चारुवेषाः सुश्रोण्यः सहस्रं सुरयोषितः।
रमयन्ति नरश्रेष्ठं गोप्रदानरतं नरम् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस गोदानपरायण श्रेष्ठ मनुष्यको मनोहर वेष और सुन्दर नितम्बवाली सहस्रों देवांगनाएँ (अपनी सेवासे) रमण कराती हैं॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वीणानां वल्लकीनां च नूपुराणां च सिञ्जितैः।
हासैश्च हरिणाक्षीणां सुप्तः स प्रतिबोध्यते ॥ २६ ॥
मूलम्
वीणानां वल्लकीनां च नूपुराणां च सिञ्जितैः।
हासैश्च हरिणाक्षीणां सुप्तः स प्रतिबोध्यते ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह वीणा और वल्लकीके मधुर गुंजन, मृगनयनी युवतियोंके नूपुरोंकी मनोहर झनकारों तथा हास-परिहासके शब्दोंको श्रवण करके नींदसे जागता है॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यावन्ति रोमाणि भवन्ति धेन्वा-
स्तावन्ति वर्षाणि महीयते सः।
स्वर्गच्युतश्चापि ततो नृलोके
प्रसूयते वै विपुले गृहे सः ॥ २७ ॥
मूलम्
यावन्ति रोमाणि भवन्ति धेन्वा-
स्तावन्ति वर्षाणि महीयते सः।
स्वर्गच्युतश्चापि ततो नृलोके
प्रसूयते वै विपुले गृहे सः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गौके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने वर्षोंतक वह स्वर्गलोकमें सम्मानपूर्वक रहता है। फिर पुण्यक्षीण होनेपर जब स्वर्गसे नीचे उतरता है, तब इस मनुष्यलोकमें आकर सम्पन्न घरमें जन्म लेता है॥२७॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि गोप्रदानिके एकोनाशीतितमोऽध्यायः ॥ ७९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें गोदानविषयक उन्यासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७९॥