भागसूचना
एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
स्त्रियोंकी रक्षाके विषयमें युधिष्ठिरका प्रश्न
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इमे वै मानवा लोके स्त्रीषु सज्जन्त्यभीक्ष्णशः।
मोहेन परमाविष्टा देवसृष्टेन पार्थिव ॥ १ ॥
मूलम्
इमे वै मानवा लोके स्त्रीषु सज्जन्त्यभीक्ष्णशः।
मोहेन परमाविष्टा देवसृष्टेन पार्थिव ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर बोले— पृथ्वीनाथ! संसारके ये मनुष्य विधाताद्वारा उत्पन्न किये गये महान् मोहसे आविष्ट हो सदा ही स्त्रियोंमें आसक्त होते हैं॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्त्रियश्च पुरुषेष्वेव प्रत्यक्षं लोकसाक्षिकम्।
अत्र मे संशयस्तीव्रो हृदि सम्परिवर्तते ॥ २ ॥
मूलम्
स्त्रियश्च पुरुषेष्वेव प्रत्यक्षं लोकसाक्षिकम्।
अत्र मे संशयस्तीव्रो हृदि सम्परिवर्तते ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी तरह स्त्रियाँ भी पुरुषोंमें ही आसक्त होती हैं। यह बात प्रत्यक्ष देखी जाती है और लोग इसके साक्षी हैं। इस बातको लेकर मेरे मनमें भारी संदेह खड़ा हो गया है॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथमासां नराः सङ्गं कुर्वते कुरुनन्दन।
स्त्रियो वा केषु रज्यन्ते विरज्यन्ते च ताः पुनः॥३॥
मूलम्
कथमासां नराः सङ्गं कुर्वते कुरुनन्दन।
स्त्रियो वा केषु रज्यन्ते विरज्यन्ते च ताः पुनः॥३॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! पुरुष क्यों इन स्त्रियोंका संग करते हैं? अथवा स्त्रियाँ भी किस निमित्तसे पुरुषोंमें अनुरक्त एवं विरक्त होती हैं॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति ताः पुरुषव्याघ्र कथं शक्यास्तु रक्षितुम्।
प्रमदाः पुरुषेणेह तन्मे व्याख्यातुमर्हसि ॥ ४ ॥
मूलम्
इति ताः पुरुषव्याघ्र कथं शक्यास्तु रक्षितुम्।
प्रमदाः पुरुषेणेह तन्मे व्याख्यातुमर्हसि ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुरुषसिंह! पुरुष यौवनसे उन्मत्त स्त्रियोंकी रक्षा कैसे कर सकता है? यह विस्तारपूर्वक बतानेकी कृपा करें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एता हि रममाणास्तु वञ्चयन्तीह मानवान्।
न चासां मुच्यते कश्चित् पुरुषो हस्तमागतः ॥ ५ ॥
मूलम्
एता हि रममाणास्तु वञ्चयन्तीह मानवान्।
न चासां मुच्यते कश्चित् पुरुषो हस्तमागतः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये रमण करती हुई भी यहाँ पुरुषोंको ठगती रहती हैं। इनके हाथमें आया हुआ कोई भी पुरुष इनसे बचकर नहीं जा सकता॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गावो नवतृणानीव गृह्णन्त्येता नवं नवम्।
शम्बरस्य च या माया माया या नमुचेरपि ॥ ६ ॥
बलेः कुम्भीनसेश्चैव सर्वास्ता योषितो विदुः।
मूलम्
गावो नवतृणानीव गृह्णन्त्येता नवं नवम्।
शम्बरस्य च या माया माया या नमुचेरपि ॥ ६ ॥
बलेः कुम्भीनसेश्चैव सर्वास्ता योषितो विदुः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे गौएँ नयी-नयी घास चरती हैं, उसी प्रकार ये नारियाँ नये-नये पुरुषको अपनाती रहती हैं। शम्बरासुरकी जो माया है तथा नमुचि, बलि और कुम्भीनसीकी जो मायाएँ हैं, उन सबको ये युवतियाँ जानती हैं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हसन्तं प्रहसन्त्येता रुदन्तं प्ररुदन्ति च ॥ ७ ॥
अप्रियं प्रियवाक्यैश्च गृह्णते कालयोगतः।
मूलम्
हसन्तं प्रहसन्त्येता रुदन्तं प्ररुदन्ति च ॥ ७ ॥
अप्रियं प्रियवाक्यैश्च गृह्णते कालयोगतः।
अनुवाद (हिन्दी)
पुरुषको हँसते देख ये स्त्रियाँ जोर-जोरसे हँसती हैं। उसे रोते देख स्वयं भी फूट-फूटकर रोने लगती हैं और अवसर आनेपर अप्रिय पुरुषको प्रिय वचनोंद्वारा अपना लेती हैं॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उशना वेद यच्छास्त्रं यच्च वेद बृहस्पतिः ॥ ८ ॥
स्त्रीबुद्ध्या न विशिष्येत तास्तु रक्ष्याः कथं नरैः।
मूलम्
उशना वेद यच्छास्त्रं यच्च वेद बृहस्पतिः ॥ ८ ॥
स्त्रीबुद्ध्या न विशिष्येत तास्तु रक्ष्याः कथं नरैः।
अनुवाद (हिन्दी)
जिस नीतिशास्त्रको शुक्राचार्य जानते हैं, जिसे बृहस्पति जानते हैं, वह भी स्त्रीकी बुद्धिसे बढ़कर नहीं है। ऐसी स्त्रियोंकी रक्षा पुरुष कैसे कर सकते हैं॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनृतं सत्यमित्याहुः सत्यं चापि तथानृतम् ॥ ९ ॥
इति यास्ताः कथं वीर संरक्ष्याः पुरुषैरिह।
मूलम्
अनृतं सत्यमित्याहुः सत्यं चापि तथानृतम् ॥ ९ ॥
इति यास्ताः कथं वीर संरक्ष्याः पुरुषैरिह।
अनुवाद (हिन्दी)
वीर! जिनके झूठको भी सच और सचको भी झूठ बताया गया है, ऐसी स्त्रियोंकी रक्षा पुरुष यहाँ कैसे कर सकते हैं?॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्त्रीणां बुद्ध्यर्थनिष्कर्षादर्थशास्त्राणि शत्रुहन् ॥ १० ॥
बृहस्पतिप्रभृतिभिर्मन्ये सद्भिः कृतानि वै।
मूलम्
स्त्रीणां बुद्ध्यर्थनिष्कर्षादर्थशास्त्राणि शत्रुहन् ॥ १० ॥
बृहस्पतिप्रभृतिभिर्मन्ये सद्भिः कृतानि वै।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुघाती नरेश! मुझे तो ऐसा लगता है कि स्त्रियोंकी बुद्धिमें जो अर्थ भरा है, उसीका निष्कर्ष (सारांश) लेकर बृहस्पति आदि सत्पुरुषोंने नीतिशास्त्रोंकी रचना की है॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्पूज्यमानाः पुरुषैर्विकुर्वन्ति मनो नृषु ॥ ११ ॥
अपास्ताश्च तथा राजन् विकुर्वन्ति मनः स्त्रियः।
मूलम्
सम्पूज्यमानाः पुरुषैर्विकुर्वन्ति मनो नृषु ॥ ११ ॥
अपास्ताश्च तथा राजन् विकुर्वन्ति मनः स्त्रियः।
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! पुरुषोंद्वारा सम्मानित होनेपर भी ये रमणियाँ उनका मन विकृत कर देती हैं और उनके द्वारा तिरस्कृत होनेपर भी उनके मनमें विकार उत्पन्न कर देती हैं॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इमाः प्रजा महाबाहो धार्मिक्य इति नः श्रुतम् ॥ १२ ॥
सत्कृतासत्कृताश्चापि विकुर्वन्ति मनः सदा।
कस्ताः शक्तो रक्षितुं स्यादिति मे संशयो महान् ॥ १३ ॥
मूलम्
इमाः प्रजा महाबाहो धार्मिक्य इति नः श्रुतम् ॥ १२ ॥
सत्कृतासत्कृताश्चापि विकुर्वन्ति मनः सदा।
कस्ताः शक्तो रक्षितुं स्यादिति मे संशयो महान् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहो! हमने सुन रखा है कि ये स्त्रीरूपिणी प्रजाएँ बड़ी धार्मिक होती हैं (जैसा कि सावित्री आदिके जीवनसे प्रत्यक्ष हो चुका है); फिर भी ये स्त्रियाँ सम्मानित हों या असम्मानित, सदा ही पुरुषोंके मनमें विकार उत्पन्न करती रहती हैं। उनकी रक्षा कौन कर सकता है? यही मेरे मनमें महान् संशय है॥१२-१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा ब्रूहि महाभाग कुरूणां वंशवर्धन।
यदि शक्या कुरुश्रेष्ठ रक्षा तासां कदाचन॥
कर्तुं वा कृतपूर्वं वा तन्मे व्याख्यातुमर्हसि ॥ १४ ॥
मूलम्
तथा ब्रूहि महाभाग कुरूणां वंशवर्धन।
यदि शक्या कुरुश्रेष्ठ रक्षा तासां कदाचन॥
कर्तुं वा कृतपूर्वं वा तन्मे व्याख्यातुमर्हसि ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाभाग! कुरुकुलवर्धन! कुरुश्रेष्ठ! यदि किसी प्रकार कभी भी उनकी रक्षा की जा सके तो वह बताइये। यदि किसीने पहले कभी किसी स्त्रीकी रक्षा की हो तो वह कथा भी मुझे विस्तारके साथ बताइये॥१४॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि स्त्रीस्वभावकथने एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ३९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें स्त्रियोंके स्वभावका वर्णनविषयक उनतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥३९॥