भागसूचना
त्रयोदशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
शरीर, वाणी और मनसे होनेवाले पापोंके परित्यागका उपदेश
मूलम् (वचनम्)
युधिष्ठिर उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं कर्तव्यं मनुष्येण लोकयात्राहितार्थिना।
कथं वै लोकयात्रां तु किंशीलश्च समाचरेत् ॥ १ ॥
मूलम्
किं कर्तव्यं मनुष्येण लोकयात्राहितार्थिना।
कथं वै लोकयात्रां तु किंशीलश्च समाचरेत् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने पूछा— पितामह! लोकयात्राका भली-भाँति निर्वाह करनेकी इच्छा रखनेवाले मनुष्यको क्या करना चाहिये? कैसा स्वभाव बनाकर किस प्रकार लोकमें जीवन बिताना चाहिये?॥१॥
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कायेन त्रिविधं कर्म वाचा चापि चतुर्विधम्।
मनसा त्रिविधं चैव दशकर्मपथांस्त्यजेत् ॥ २ ॥
मूलम्
कायेन त्रिविधं कर्म वाचा चापि चतुर्विधम्।
मनसा त्रिविधं चैव दशकर्मपथांस्त्यजेत् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजीने कहा— राजन्! शरीरसे तीन प्रकारके कर्म, वाणीसे चार प्रकारके कर्म और मनसे भी तीन प्रकारके कर्म—इस तरह कुल दस तरहके कर्मोंका त्याग कर दे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्राणातिपातः स्तैन्यं च परदारानथापि च।
त्रीणि पापानि कायेन सर्वतः परिवर्जयेत् ॥ ३ ॥
मूलम्
प्राणातिपातः स्तैन्यं च परदारानथापि च।
त्रीणि पापानि कायेन सर्वतः परिवर्जयेत् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरोंके प्राणनाश करना, चोरी करना और परायी स्त्रीसे संसर्ग रखना—ये तीन शरीरसे होनेवाले पाप हैं। इन सबका परित्याग कर देना उचित है॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
असत्प्रलापं पारुष्यं पैशुन्यमनृतं तथा।
चत्वारि वाचा राजेन्द्र न जल्पेन्नानुचिन्तयेत् ॥ ४ ॥
मूलम्
असत्प्रलापं पारुष्यं पैशुन्यमनृतं तथा।
चत्वारि वाचा राजेन्द्र न जल्पेन्नानुचिन्तयेत् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मुँहसे बुरी बातें निकालना, कठोर बोलना, चुगली खाना और झूठ बोलना—ये चार वाणीसे होनेवाले पाप हैं। राजेन्द्र! इन्हें न तो कभी जबानपर लाना चाहिये और न मनमें ही सोचना चाहिये॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनभिध्या परस्वेषु सर्वसत्त्वेषु सौहृदम्।
कर्मणां फलमस्तीति त्रिविधं मनसा चरेत् ॥ ५ ॥
मूलम्
अनभिध्या परस्वेषु सर्वसत्त्वेषु सौहृदम्।
कर्मणां फलमस्तीति त्रिविधं मनसा चरेत् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरेके धनको लेनेका उपाय न सोचना, समस्त प्राणियोंके प्रति मैत्रीभाव रखना और कर्मोंका फल अवश्य मिलता है, इस बातपर विश्वास रखना—ये तीन मनसे आचरण करने योग्य कार्य हैं। इन्हें सदा करना चाहिये। (इनके विपरीत दूसरोंके धनका लालच करना, समस्त प्राणियोंसे वैर रखना और कर्मोंके फलपर विश्वास न करना—ये तीन मानसिक पाप हैं—इनसे सदा बचे रहना चाहिये)॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माद् वाक्कायमनसा नाचरेदशुभं नरः।
शुभाशुभान्याचरन् हि तस्य तस्याश्नुते फलम् ॥ ६ ॥
मूलम्
तस्माद् वाक्कायमनसा नाचरेदशुभं नरः।
शुभाशुभान्याचरन् हि तस्य तस्याश्नुते फलम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसलिये मनुष्यका कर्तव्य है कि वह मन, वाणी या शरीरसे कभी अशुभ कर्म न करे; क्योंकि वह शुभ या अशुभ जैसा कर्म करता है; उसका वैसा ही फल उसे भोगना पड़ता है॥६॥
सूचना (हिन्दी)
[ब्रह्माजीका देवताओंसे गरुड-कश्यप-संवादका प्रसंग सुनाना, गरुडजीका ऋषियोंके समाजमें नारायणकी महिमाके सम्बन्धमें अपना अनुभव सुनाना तथा इस प्रसंगके पाठ और श्रवणकी महिमा]
विश्वास-प्रस्तुतिः
अमृतस्य समुत्पत्तौ देवानामसुरैः सह।
षष्टिवर्षसहस्राणि देवासुरमवर्तत ॥
मूलम्
अमृतस्य समुत्पत्तौ देवानामसुरैः सह।
षष्टिवर्षसहस्राणि देवासुरमवर्तत ॥
अनुवाद (हिन्दी)
एक समय अमृतकी उत्पत्ति हो जानेपर उसकी प्राप्तिके लिये देवताओंका असुरोंके साथ साठ हजार वर्षोंतक युद्ध हुआ, जो देवासुर-संग्रामके नामसे प्रसिद्ध है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र देवास्तु दैतेयैर्वध्यन्ते भृशदारुणैः।
त्रातारं नाधिगच्छन्ति वध्यमाना महासुरैः॥
मूलम्
तत्र देवास्तु दैतेयैर्वध्यन्ते भृशदारुणैः।
त्रातारं नाधिगच्छन्ति वध्यमाना महासुरैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धमें अत्यन्त भयंकर दैत्यों एवं बड़े-बड़े असुरोंकी मार खाकर देवता किसी रक्षकको नहीं पाते थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आर्तास्ते देवदेवेशं प्रपन्नाः शरणैषिणः।
पितामहं महाप्राज्ञं वध्यमानाः सुरेतरैः॥
मूलम्
आर्तास्ते देवदेवेशं प्रपन्नाः शरणैषिणः।
पितामहं महाप्राज्ञं वध्यमानाः सुरेतरैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
दैत्योंद्वारा सताये जानेवाले देवता दुःखी होकर अपने लिये आश्रय ढूँढ़ते हुए देवदेवेश्वर महाज्ञानी ब्रह्माजीकी शरणमें गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वैकुण्ठं शरणं देवं प्रतिपेदे च तैः सह॥
मूलम्
वैकुण्ठं शरणं देवं प्रतिपेदे च तैः सह॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब ब्रह्माजी उन सबके साथ भगवान् विष्णुकी शरणमें गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स देवैः सहितः पद्मयोनिर्नरेश्वर।
तुष्टाव प्राञ्जलिर्भूत्वा नारायणमनामयम् ॥
मूलम्
ततः स देवैः सहितः पद्मयोनिर्नरेश्वर।
तुष्टाव प्राञ्जलिर्भूत्वा नारायणमनामयम् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! तदनन्तर देवताओंसहित कमलयोनि ब्रह्माजी हाथ जोड़कर रोग-शोकसे रहित भगवान् नारायणकी स्तुति करने लगे॥
मूलम् (वचनम्)
ब्रह्मोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वद्रूपचिन्तनान्नाम्नां स्मरणादर्चनादपि ।
तपोयोगादिभिश्चैव श्रेयो यान्ति मनीषिणः॥
मूलम्
त्वद्रूपचिन्तनान्नाम्नां स्मरणादर्चनादपि ।
तपोयोगादिभिश्चैव श्रेयो यान्ति मनीषिणः॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्रह्माजी बोले— प्रभो! आपके रूपका चिन्तन करनेसे, नामोंके स्मरण और जपसे, पूजनसे तथा तप और योग आदिसे मनीषी पुरुष कल्याणको प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भक्तवत्सल पद्माक्ष परमेश्वर पापहन्।
परमात्माविकाराद्य नारायण नमोऽस्तु ते॥
मूलम्
भक्तवत्सल पद्माक्ष परमेश्वर पापहन्।
परमात्माविकाराद्य नारायण नमोऽस्तु ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
भक्तवत्सल! कमलनयन! परमेश्वर! पापहारी परमात्मन्! निर्विकार! आदिपुरुष! नारायण! आपको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नमस्ते सर्वलोकादे सर्वात्मामितविक्रम ।
सर्वभूतभविष्येश सर्वभूतमहेश्वर ॥
मूलम्
नमस्ते सर्वलोकादे सर्वात्मामितविक्रम ।
सर्वभूतभविष्येश सर्वभूतमहेश्वर ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सम्पूर्ण लोकोंके आदिकारण! सर्वात्मन्! अमित पराक्रमी नारायण! सम्पूर्ण भूत और भविष्यके स्वामी! सर्वभूतमहेश्वर! आपको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवानामपि देवस्त्वं सर्वविद्यापरायणः ।
जगद्बीजसमाहार जगतः परमो ह्यसि॥
मूलम्
देवानामपि देवस्त्वं सर्वविद्यापरायणः ।
जगद्बीजसमाहार जगतः परमो ह्यसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! आप देवताओंके भी देवता और समस्त विद्याओंके परम आश्रय हैं। जगत्के जितने भी बीज हैं, उन सबका संग्रह करनेवाले आप ही हैं। आप ही जगत्के परम कारण हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रायस्व देवता वीर दानवाद्यैः सुपीडिताः।
लोकांश्च लोकपालांश्च ऋषींश्च जयतां वर॥
मूलम्
त्रायस्व देवता वीर दानवाद्यैः सुपीडिताः।
लोकांश्च लोकपालांश्च ऋषींश्च जयतां वर॥
अनुवाद (हिन्दी)
वीर! ये देवता दानव, दैत्य आदिसे अत्यन्त पीड़ित हो रहे हैं। आप इनकी रक्षा कीजिये। विजयशीलोंमें सबसे श्रेष्ठ नारायणदेव! आप लोकों, लोकपालों तथा ऋषियोंका संरक्षण कीजिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेदाः साङ्गोपनिषदः सरहस्याः ससंग्रहाः।
सोङ्काराः सवषट्काराः प्राहुस्त्वां यज्ञमुत्तमम्॥
मूलम्
वेदाः साङ्गोपनिषदः सरहस्याः ससंग्रहाः।
सोङ्काराः सवषट्काराः प्राहुस्त्वां यज्ञमुत्तमम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
सम्पूर्ण अंगों और उपनिषदोंसहित वेद, उनके रहस्य, संग्रह, ॐकार और वषट्कार आपहीको उत्तम यज्ञका स्वरूप बताते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पवित्राणां पवित्रं च मङ्गलानां च मङ्गलम्।
तपस्विनां तपश्चैव दैवतं देवतास्वपि॥
मूलम्
पवित्राणां पवित्रं च मङ्गलानां च मङ्गलम्।
तपस्विनां तपश्चैव दैवतं देवतास्वपि॥
अनुवाद (हिन्दी)
आप पवित्रोंके भी पवित्र, मंगलोंके भी मंगल, तपस्वियोंके तप और देवताओंके भी देवता हैं॥
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमादिपुरस्कारैर्ऋक्सामयजुषां गणैः ।
वैकुण्ठं तुष्टुवुर्देवाः समेत्य ब्रह्मणा सह॥
मूलम्
एवमादिपुरस्कारैर्ऋक्सामयजुषां गणैः ।
वैकुण्ठं तुष्टुवुर्देवाः समेत्य ब्रह्मणा सह॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजी कहते हैं— राजन्! इस प्रकार ब्रह्मासहित देवताओंने एकत्र होकर ऋक्, साम और यजुर्वेदके मन्त्रोंद्वारा भगवान् विष्णुकी स्तुति की॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽन्तरिक्षे वागासीन्मेघगम्भीरनिःस्वना ।
जेष्यध्वं दानवान् यूयं मयैव सह सङ्गरे॥
मूलम्
ततोऽन्तरिक्षे वागासीन्मेघगम्भीरनिःस्वना ।
जेष्यध्वं दानवान् यूयं मयैव सह सङ्गरे॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब मेघके समान गम्भीर स्वरमें आकाशवाणी हुई—‘देवताओ! तुम युद्धमें मेरे साथ रहकर दानवोंको अवश्य जीत लोगे’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो देवगणानां च दानवानां च युध्यताम्।
प्रादुरासीन्महातेजाः शङ्खचक्रगदाधरः ॥
मूलम्
ततो देवगणानां च दानवानां च युध्यताम्।
प्रादुरासीन्महातेजाः शङ्खचक्रगदाधरः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् परस्पर युद्ध करनेवाले देवताओं और दानवोंके बीच शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले महातेजस्वी भगवान् विष्णु प्रकट हुए॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुपर्णपृष्ठमास्थाय तेजसा प्रदहन्निव ।
व्यधमद् दानवान् सर्वान् बाहुद्रविणतेजसा॥
मूलम्
सुपर्णपृष्ठमास्थाय तेजसा प्रदहन्निव ।
व्यधमद् दानवान् सर्वान् बाहुद्रविणतेजसा॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने गरुडकी पीठपर बैठकर तेजसे विरोधियोंको दग्ध करते हुए-से अपनी भुजाओंके तेज और वैभवसे समस्त दानवोंका संहार कर डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं समासाद्य समरे दैत्यदानवपुङ्गवाः।
व्यनश्यन्त महाराज पतङ्गा इव पावकम्॥
मूलम्
तं समासाद्य समरे दैत्यदानवपुङ्गवाः।
व्यनश्यन्त महाराज पतङ्गा इव पावकम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! समरभूमिमें दैत्यों और दानवोंके प्रमुख वीर भगवान्से टक्कर लेकर वैसे ही नष्ट हो गये, जैसे पतंगे आगमें कूदकर अपने प्राण दे देते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विजित्यासुरान् सर्वान् दानवांश्च महामतिः।
पश्यतामेव देवानां तत्रैवान्तरधीयत ॥
मूलम्
स विजित्यासुरान् सर्वान् दानवांश्च महामतिः।
पश्यतामेव देवानां तत्रैवान्तरधीयत ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परम बुद्धिमान् श्रीहरि समस्त असुरों और दानवोंको परास्त करके देवताओंके देखते-देखते वहीं अन्तर्धान हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वान्तर्हितं देवं विष्णुं देवामितद्युतिम्।
विस्मयोत्फुल्लनयना ब्रह्माणमिदमब्रुवन् ॥
मूलम्
तं दृष्ट्वान्तर्हितं देवं विष्णुं देवामितद्युतिम्।
विस्मयोत्फुल्लनयना ब्रह्माणमिदमब्रुवन् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अनन्त तेजस्वी श्रीविष्णुदेवको अदृश्य हुआ देख आश्चर्यसे चकित नेत्रवाले देवता ब्रह्माजीसे इस प्रकार बोले—॥
मूलम् (वचनम्)
देवा ऊचुः
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् सर्वलोकेश सर्वलोकपितामह ।
इदमत्यद्भुतं वृत्तं त्वं नः शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
भगवन् सर्वलोकेश सर्वलोकपितामह ।
इदमत्यद्भुतं वृत्तं त्वं नः शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवताओंने पूछा— सर्वलोकेश्वर! सम्पूर्ण जगत्के पितामह! भगवन्! यह अत्यन्त अद्भुत वृत्तान्त हमें बतानेकी कृपा करें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कोऽयमस्मान् परित्राय तूष्णीमेव यथागतम्।
प्रतिप्रयातो दिव्यात्मा तं नः शंसितुमर्हसि॥
मूलम्
कोऽयमस्मान् परित्राय तूष्णीमेव यथागतम्।
प्रतिप्रयातो दिव्यात्मा तं नः शंसितुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
कौन दिव्यात्मा पुरुष हमारी रक्षा करके चुपचाप जैसे आया था; वैसे लौट गया? यह हमें बतानेकी कृपा करें॥
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तः सुरैः सर्वैर्वचनं वचनार्थवित्।
उवाच पद्मनाभस्य पूर्वरूपं प्रति प्रभो॥
मूलम्
एवमुक्तः सुरैः सर्वैर्वचनं वचनार्थवित्।
उवाच पद्मनाभस्य पूर्वरूपं प्रति प्रभो॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजी कहते हैं— प्रभो! सम्पूर्ण देवताओंके ऐसा कहनेपर वचनके तात्पर्यको समझानेवाले ब्रह्माजीने भगवान् पद्मनाभ (विष्णु)-के पूर्वरूपके विषयमें इस प्रकार कहा—॥
मूलम् (वचनम्)
ब्रह्मोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
न ह्येनं वेद तत्त्वेन भुवनं भुवनेश्वरम्।
संख्यातुं नैव चात्मानं निर्गुणं गुणिनां वरम्॥
मूलम्
न ह्येनं वेद तत्त्वेन भुवनं भुवनेश्वरम्।
संख्यातुं नैव चात्मानं निर्गुणं गुणिनां वरम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्रह्माजी बोले— देवताओ! ये भगवान् सम्पूर्ण भुवनोंके अधीश्वर हैं। इन्हें जगत्का कोई भी प्राणी यथार्थरूपसे नहीं जानता। गुणवानोंमें श्रेष्ठ निर्गुण परमात्माकी महिमाका कोई पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अत्र वो वर्तयिष्यामि इतिहासं पुरातनम्।
सुपर्णस्य च संवादमृषीणां चापि देवताः॥
मूलम्
अत्र वो वर्तयिष्यामि इतिहासं पुरातनम्।
सुपर्णस्य च संवादमृषीणां चापि देवताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवगण! इस विषयमें मैं तुमलोगोंको गरुड और ऋषियोंका संवादरूप प्राचीन इतिहास बता रहा हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरा ब्रह्मर्षयश्चैव सिद्धाश्च भुवनेश्वरम्।
आश्रित्य हिमवत्पृष्ठे चक्रिरे विविधाः कथाः॥
मूलम्
पुरा ब्रह्मर्षयश्चैव सिद्धाश्च भुवनेश्वरम्।
आश्रित्य हिमवत्पृष्ठे चक्रिरे विविधाः कथाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पूर्वकालकी बात है, हिमालयके शिखरपर ब्रह्मर्षि और सिद्धगण जगदीश्वर श्रीहरिकी शरण ले उन्हींके विषयमें नाना प्रकारकी बातें कर रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां कथयतां तत्र कथान्ते पततां वरः।
प्रादुरासीन्महातेजा वाहश्चक्रगदाभृतः ॥
मूलम्
तेषां कथयतां तत्र कथान्ते पततां वरः।
प्रादुरासीन्महातेजा वाहश्चक्रगदाभृतः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी बातचीत पूरी होते ही चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान् विष्णुके वाहन महातेजस्वी पक्षिराज गरुड वहाँ आ पहुँचे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तानृषीन् समासाद्य विनयावनताननः।
अवतीर्य महावीर्यस्तानृषीनभिजग्मिवान् ॥
मूलम्
स तानृषीन् समासाद्य विनयावनताननः।
अवतीर्य महावीर्यस्तानृषीनभिजग्मिवान् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन ऋषियोंके पास पहुँचकर महापराक्रमी गरुड नीचे उतर पड़े और विनयसे मस्तक झुकाकर उनके समीप गये।
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभ्यर्चितः स ऋषिभिः स्वागतेन महाबलः।
उपाविशत तेजस्वी भूमौ वेगवतां वरः॥
मूलम्
अभ्यर्चितः स ऋषिभिः स्वागतेन महाबलः।
उपाविशत तेजस्वी भूमौ वेगवतां वरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऋषियोंने स्वागतपूर्वक वेगवानोंमें श्रेष्ठ महान् बलवान् एवं तेजस्वी गरुडका पूजन किया। उनसे पूजित होकर वे पृथ्वीपर बैठे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमासीनं महात्मानं वैनतेयं महाद्युतिम्।
ऋषयः परिपप्रच्छुर्महात्मानं तपस्विनः ॥
मूलम्
तमासीनं महात्मानं वैनतेयं महाद्युतिम्।
ऋषयः परिपप्रच्छुर्महात्मानं तपस्विनः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बैठ जानेपर उन महाकाय, महामना और महातेजस्वी विनतानन्दन गरुडसे वहाँ बैठे हुए तपस्वी ऋषियोंने पूछा॥
मूलम् (वचनम्)
ऋषय ऊचुः
विश्वास-प्रस्तुतिः
कौतूहलं वैनतेय परं नो हृदि वर्तते।
तस्य नान्योऽस्ति वक्तेह त्वामृते पन्नगाशन॥
तदाख्यातमिहेच्छामो भवता प्रश्नमुत्तमम् ।
मूलम्
कौतूहलं वैनतेय परं नो हृदि वर्तते।
तस्य नान्योऽस्ति वक्तेह त्वामृते पन्नगाशन॥
तदाख्यातमिहेच्छामो भवता प्रश्नमुत्तमम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
ऋषि बोले— विनतानन्दन गरुड! हमारे हृदयमें एक प्रश्नको लेकर बड़ा कौतूहल उत्पन्न हो गया है। उसका समाधान करनेवाला यहाँ आपके सिवा दूसरा कोई नहीं है, अतः हम आपके द्वारा अपने उस उत्तम प्रश्नका विवेचन कराना चाहते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
गरुड उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं मया ब्रूत वक्तव्यं कार्यं च वदतां वराः॥
यूयं हि मां यथायुक्तं सर्वे वै देष्टुमर्हथ।
मूलम्
किं मया ब्रूत वक्तव्यं कार्यं च वदतां वराः॥
यूयं हि मां यथायुक्तं सर्वे वै देष्टुमर्हथ।
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड बोले— वक्ताओंमें श्रेष्ठ मुनीश्वरो! मेरे द्वारा किस विषयमें आप प्रवचन कराना चाहते हैं? यह बताइये। आप मुझे सभी यथोचित कार्योंके लिये आज्ञा दे सकते हैं॥
मूलम् (वचनम्)
ब्रह्मोवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
नमस्कृत्वा ह्यनन्ताय ततस्ते हृदि सत्तमाः।
प्रष्टुं प्रचक्रमुस्तत्र वैनतेयं महाबलम्॥
मूलम्
नमस्कृत्वा ह्यनन्ताय ततस्ते हृदि सत्तमाः।
प्रष्टुं प्रचक्रमुस्तत्र वैनतेयं महाबलम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
ब्रह्माजी कहते हैं— देवताओ! तदनन्तर उन श्रेष्ठतम ऋषियोंने अन्तरहित भगवान् नारायणको नमस्कार करके महाबली गरुडसे वहाँ इस प्रकार पूछना आरम्भ किया॥
मूलम् (वचनम्)
ऋषय ऊचुः
विश्वास-प्रस्तुतिः
देवदेवं महात्मानं नारायणमनामयम् ।
भवानुपास्ते वरदं कुतोऽसौ कश्च तत्त्वतः॥
मूलम्
देवदेवं महात्मानं नारायणमनामयम् ।
भवानुपास्ते वरदं कुतोऽसौ कश्च तत्त्वतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऋषि बोले— विनतानन्दन! जिस रोग-शोकसे रहित वरदायक देवाधिदेव महात्मा नारायणकी आप उपासना करते हैं, उनका प्राकट्य कहाँसे हुआ है? तथा वे वास्तवमें कौन हैं?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रकृतिर्विकृतिर्वास्य कीदृशी क्व नु संस्थितिः।
एतद् भवन्तं पृच्छामो देवोऽयं क्व कृतालयः॥
मूलम्
प्रकृतिर्विकृतिर्वास्य कीदृशी क्व नु संस्थितिः।
एतद् भवन्तं पृच्छामो देवोऽयं क्व कृतालयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी प्रकृति अथवा विकृति कैसी है? उनकी स्थिति कहाँ है? तथा वे नारायणदेव कहाँ अपना घर बनाये हुए हैं? ये सब बातें हमलोग आपसे पूछते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष भक्तप्रियो देवः प्रियभक्तस्तथैव च।
त्वं प्रियश्चास्य भक्तश्च नान्यः काश्यप विद्यते॥
मूलम्
एष भक्तप्रियो देवः प्रियभक्तस्तथैव च।
त्वं प्रियश्चास्य भक्तश्च नान्यः काश्यप विद्यते॥
अनुवाद (हिन्दी)
कश्यपकुमार! ये भगवान् नारायण भक्तोंके प्रिय हैं तथा भक्त भी उन्हें बहुत प्रिय हैं और आप भी उनके प्रिय एवं भक्त हैं। आपके समान दूसरा कोई उन्हें प्रिय नहीं है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुष्णन्निव मनश्चक्षूंष्यविभाव्यतनुर्विभुः ।
अनादिमध्यनिधनो न विद्मैनं कुतो ह्यसौ॥
मूलम्
मुष्णन्निव मनश्चक्षूंष्यविभाव्यतनुर्विभुः ।
अनादिमध्यनिधनो न विद्मैनं कुतो ह्यसौ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनका विग्रह इन्द्रियोंद्वारा प्रत्यक्ष अनुभवमें आने योग्य नहीं है। वे सबके मन और नेत्रोंको मानो चुराये लेते हैं। उनका आदि, मध्य और अन्त नहीं है। हम इनके विषयमें यह नहीं समझ पाते कि ये कहाँसे प्रकट हुए हैं?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेदेष्वपि च विश्वात्मा गीयते न च विद्महे।
तत्त्वतस्तत्त्वभूतात्मा विभुर्नित्यः सनातनः ॥
मूलम्
वेदेष्वपि च विश्वात्मा गीयते न च विद्महे।
तत्त्वतस्तत्त्वभूतात्मा विभुर्नित्यः सनातनः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वेदोंमें भी विश्वात्मा कहकर इनकी महिमाका गान किया गया है, परंतु हम यह नहीं जानते कि वे तत्त्वभूतस्वरूप नित्य सनातन प्रभु वस्तुतः कैसे हैं?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च पञ्चमम्।
गुणाश्चैषां यथासंख्यं भावाभावौ तथैव च॥
तमः सत्त्वं रजश्चैव भावाश्चैव तदात्मकाः।
मनो बुद्धिश्च तेजश्च बुद्धिगम्यानि तत्त्वतः॥
मूलम्
पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च पञ्चमम्।
गुणाश्चैषां यथासंख्यं भावाभावौ तथैव च॥
तमः सत्त्वं रजश्चैव भावाश्चैव तदात्मकाः।
मनो बुद्धिश्च तेजश्च बुद्धिगम्यानि तत्त्वतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथ्वी, वायु, आकाश, जल और अग्नि—ये पाँच भूत; क्रमशः इन भूतोंके गुण; भाव-अभाव; सत्त्व, रज, तम, सात्त्विक, राजस और तामस भाव; मन, बुद्धि और तेज—ये वास्तवमें बुद्धिगम्य हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जायन्ते तात तस्माद्धि तिष्ठते तेष्वसौ विभुः।
संचिन्त्य बहुधा बुद्ध्या नाध्यवस्यामहे परम्॥
तस्य देवस्य तत्त्वेन तन्नः शंस यथातथम्।
मूलम्
जायन्ते तात तस्माद्धि तिष्ठते तेष्वसौ विभुः।
संचिन्त्य बहुधा बुद्ध्या नाध्यवस्यामहे परम्॥
तस्य देवस्य तत्त्वेन तन्नः शंस यथातथम्।
अनुवाद (हिन्दी)
तात! ये सब उन्हीं श्रीहरिसे उत्पन्न होते हैं और वे भगवान् इन सबमें व्यापकरूपसे स्थित हैं। हम उनके विषयमें अपनी बुद्धिके द्वारा नाना प्रकारसे विचार करते हैं तथापि किसी उत्तम निश्चयपर नहीं पहुँच पाते, अतः आप यथार्थ रूपसे हमें उनका तत्त्व बताइये॥
मूलम् (वचनम्)
सुपर्ण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थूलतो यस्तु भगवांस्तेनैव स्वेन हेतुना।
त्रैलोक्यस्य तु रक्षार्थं दृश्यते रूपमास्थितः॥
मूलम्
स्थूलतो यस्तु भगवांस्तेनैव स्वेन हेतुना।
त्रैलोक्यस्य तु रक्षार्थं दृश्यते रूपमास्थितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरुडजीने कहा— महात्माओ! जो स्थूलस्वरूप भगवान् हैं, वे तीनों लोकोंकी रक्षाके लिये उसी कारणभूत अपने स्वरूपसे लोगोंको दृष्टिगोचर होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मया तु महदाश्चर्यं पुरा दृष्टं सनातने।
देवे श्रीवत्सनिलये तच्छ्रणुध्वमशेषतः ॥
मूलम्
मया तु महदाश्चर्यं पुरा दृष्टं सनातने।
देवे श्रीवत्सनिलये तच्छ्रणुध्वमशेषतः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैंने पूर्वकालमें श्रीवत्सचिह्नके आश्रयभूत सनातन-देव श्रीहरिके विषयमें जो महान् आश्चर्यकी बात देखी है, वह सब बताता हूँ, सुनिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न स्म शक्यो मया वेत्तुं न भवद्भिः कथंचन॥
यथा मां प्राह भगवांस्तथा तच्छ्रूयतां मम।
मूलम्
न स्म शक्यो मया वेत्तुं न भवद्भिः कथंचन॥
यथा मां प्राह भगवांस्तथा तच्छ्रूयतां मम।
अनुवाद (हिन्दी)
मैं या आपलोग कोई भी किसी तरह भगवान्के यथार्थ स्वरूपको नहीं जान सकते। भगवान्ने स्वयं ही अपने विषयमें मुझसे जो कुछ जैसा कहा है, वह उसी रूपमें सुनिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मयामृतं देवतानां मिषतामृषिसत्तमाः ॥
हृतं विपाट्य तं यन्त्रं विद्राव्यामृतरक्षिणः।
देवता विमुखीकृत्य सेन्द्राः समरुतो मृधे॥
तं दृष्ट्वा मम विक्रान्तं वागुवाचाशरीरिणी।
मूलम्
मयामृतं देवतानां मिषतामृषिसत्तमाः ॥
हृतं विपाट्य तं यन्त्रं विद्राव्यामृतरक्षिणः।
देवता विमुखीकृत्य सेन्द्राः समरुतो मृधे॥
तं दृष्ट्वा मम विक्रान्तं वागुवाचाशरीरिणी।
अनुवाद (हिन्दी)
मुनिश्रेष्ठगण! मैंने देवताओंके देखते-देखते उनके रक्षायन्त्रको विदीर्ण करके अमृतके रक्षकोंको खदेड़कर युद्धमें इन्द्र और मरुद्गणोंसहित सम्पूर्ण देवताओंको पराजित करके शीघ्र ही अमृतका अपहरण कर लिया। मेरे उस पराक्रमको देखकर आकाशवाणीने कहा॥
मूलम् (वचनम्)
अशरीरिणी वागुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रीतोऽस्मि ते वैनतेय कर्मणानेन सुव्रत।
अवृथा तेऽस्तु मद्वाक्यं ब्रूहि किं करवाणि ते॥
मूलम्
प्रीतोऽस्मि ते वैनतेय कर्मणानेन सुव्रत।
अवृथा तेऽस्तु मद्वाक्यं ब्रूहि किं करवाणि ते॥
अनुवाद (हिन्दी)
आकाशवाणी बोली— उत्तम व्रतका पालन करनेवाले विनतानन्दन! मैं तुम्हारे इस पराक्रमसे बहुत प्रसन्न हूँ। मेरी यह वाणी व्यर्थ नहीं जानी चाहिये; इसलिये बताओ, मैं तुम्हारा कौन-सा मनोरथ पूर्ण करूँ?॥
मूलम् (वचनम्)
सुपर्ण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तामेवंवादिनीं वाचमहं प्रत्युक्तवांस्तदा ।
ज्ञातुमिच्छामि कस्त्वं हि ततो मे दास्यसे वरम्॥
मूलम्
तामेवंवादिनीं वाचमहं प्रत्युक्तवांस्तदा ।
ज्ञातुमिच्छामि कस्त्वं हि ततो मे दास्यसे वरम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड कहते हैं— ऋषिगण! आकाशवाणीकी ऐसी बात सुनकर मैंने उस समय यों उत्तर दिया—‘पहले मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप कौन हैं? फिर मुझे वर दीजियेगा’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो जलदगम्भीरं प्रहस्य गदतां वरः।
उवाच वरदः प्रीतः काले त्वं माभिवेत्स्यसि॥
मूलम्
ततो जलदगम्भीरं प्रहस्य गदतां वरः।
उवाच वरदः प्रीतः काले त्वं माभिवेत्स्यसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब वक्ताओंमें श्रेष्ठ वरदायक भगवान्ने बड़े जोरसे हँसकर मेघके समान गम्भीर वाणीमें प्रसन्नतापूर्वक कहा—‘समय आनेपर मेरे विषयमें तुम सब कुछ जान लोगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वाहनं भव मे साधु वरं दद्मि तवोत्तमम्।
न ते वीर्येण सदृशः कश्चिल्लोके भविष्यति॥
पतङ्ग पततां श्रेष्ठ न देवो नापि दानवः।
मत्सखित्वमनुप्राप्तो दुर्धर्षश्च भविष्यसि ॥
मूलम्
वाहनं भव मे साधु वरं दद्मि तवोत्तमम्।
न ते वीर्येण सदृशः कश्चिल्लोके भविष्यति॥
पतङ्ग पततां श्रेष्ठ न देवो नापि दानवः।
मत्सखित्वमनुप्राप्तो दुर्धर्षश्च भविष्यसि ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पक्षियोंमें श्रेष्ठ गरुड! मैं तुम्हें यह उत्तम वर देता हूँ कि देवता हो या दानव, कोई भी इस संसारमें तुम्हारे समान पराक्रमी न होगा। तुम मेरे अच्छे वाहन हो जाओ, मेरे सखाभावको प्राप्त होनेके कारण तुम सदा दुर्जय बने रहोगे’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमब्रवं देवदेवं मामेवं वादिनं परम्।
प्रयतः प्राञ्जलिर्भूत्वा प्रणम्य शिरसा विभुम्॥
मूलम्
तमब्रवं देवदेवं मामेवं वादिनं परम्।
प्रयतः प्राञ्जलिर्भूत्वा प्रणम्य शिरसा विभुम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब मैंने हाथ जोड़ पवित्र हो उपर्युक्त बात कहनेवाले सर्वव्यापी देवाधिदेव भगवान् परम पुरुषको मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और इस प्रकार कहा—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमेतन्महाबाहो सर्वमेतद् भविष्यति ।
वाहनं ते भविष्यामि यथा वदति मां भवान्॥
ध्वजस्तेऽहं भविष्यामि रथस्थस्य न संशयः।
मूलम्
एवमेतन्महाबाहो सर्वमेतद् भविष्यति ।
वाहनं ते भविष्यामि यथा वदति मां भवान्॥
ध्वजस्तेऽहं भविष्यामि रथस्थस्य न संशयः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘महाबाहो! आपका यह कथन ठीक है। यह सब कुछ आपकी आज्ञाके अनुसार ही होगा। आप मुझे जैसा आदेश दे रहे हैं, उसके अनुसार मैं आपका वाहन अवश्य होऊँगा। आप रथपर विराजमान होंगे, उस समय मैं आपकी ध्वजापर स्थित रहूँगा, इसमें संशय नहीं है’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथास्त्विति स मामुक्त्वा यथाभिप्रायतो गतः॥
मूलम्
तथास्त्विति स मामुक्त्वा यथाभिप्रायतो गतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब भगवान्ने मुझसे ‘तथास्तु’ कहकर वे अपनी इच्छाके अनुसार चले गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽहं कृतसंवादस्तेन केनापि सत्तमाः।
कौतूहलसमाविष्टः पितरं काश्यपं गतः॥
मूलम्
ततोऽहं कृतसंवादस्तेन केनापि सत्तमाः।
कौतूहलसमाविष्टः पितरं काश्यपं गतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
साधुशिरोमणियो! तदनन्तर उन अनिर्वचनीय देवतासे वार्तालाप करके मैं कौतूहलवश अपने पिता कश्यपजीके पास गया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽहं पितरमासाद्य प्रणिपत्याभिवाद्य च।
सर्वमेतद् यथातथ्यमुक्तवान् पितुरन्तिके ॥
मूलम्
सोऽहं पितरमासाद्य प्रणिपत्याभिवाद्य च।
सर्वमेतद् यथातथ्यमुक्तवान् पितुरन्तिके ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पिताके पास पहुँचकर मैंने उनके चरणोंमें प्रणाम किया और यह सारा वृत्तान्त उनसे यथावत्रूपसे कह सुनाया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुत्वा तु भगवान् मह्यं ध्यानमेवान्वपद्यत।
स मुहूर्तमिव ध्यात्वा मामाह वदतां वरः॥
मूलम्
श्रुत्वा तु भगवान् मह्यं ध्यानमेवान्वपद्यत।
स मुहूर्तमिव ध्यात्वा मामाह वदतां वरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सुनकर मेरे पूज्यपाद पिताने ध्यान लगाया। दो घड़ीतक ध्यान करके वे वक्ताओंमें श्रेष्ठ मुनि मुझसे बोले—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धन्योऽस्म्यनुगृहीतोऽस्मि यत् त्वं तेन महात्मना।
संवादं कृतवांस्तात गुह्येन परमात्मना॥
मूलम्
धन्योऽस्म्यनुगृहीतोऽस्मि यत् त्वं तेन महात्मना।
संवादं कृतवांस्तात गुह्येन परमात्मना॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तात! मैं धन्य हूँ, भगवान्की कृपाका पात्र हूँ, जिसके पुत्र होकर तुमने उन महामनस्वी गुह्य परमात्मासे वार्तालाप कर लिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मया हि स महातेजा नान्ययोगसमाधिना।
तपसोग्रेण तेजस्वी तोषितस्तपसां निधिः॥
मूलम्
मया हि स महातेजा नान्ययोगसमाधिना।
तपसोग्रेण तेजस्वी तोषितस्तपसां निधिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैंने अनन्यभावसे मनको एकाग्र करके उग्र तपस्याद्वारा उन महातेजस्वी तपस्याकी निधिरूप (प्रतापी) श्रीहरिको संतुष्ट किया था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो मे दर्शयामास तोषयन्निव पुत्रक।
श्वेतपीतारुणनिभः कद्रूकपिलपिङ्गलः ॥
मूलम्
ततो मे दर्शयामास तोषयन्निव पुत्रक।
श्वेतपीतारुणनिभः कद्रूकपिलपिङ्गलः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बेटा! तब मुझे संतुष्ट करते हुए-से भगवान् श्रीहरिने मुझे दर्शन दिया। उनके विभिन्न अंगोंकी कान्ति श्वेत, पीत, अरुण, भूरी, कपिश और पिंगल वर्णकी थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रक्तनीलासितनिभः सहस्रोदरपाणिमान् ।
द्विसाहस्रमहावक्त्र एकाक्षः शतलोचनः ॥
मूलम्
रक्तनीलासितनिभः सहस्रोदरपाणिमान् ।
द्विसाहस्रमहावक्त्र एकाक्षः शतलोचनः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे लाल, नीले और काले-जैसे भी दीखते थे। उनके सहस्रों उदर और हाथ थे। उनके महान् मुख दो सहस्रकी संख्यामें दिखायी देते थे। वे एक नेत्र तथा सौ नेत्रोंसे युक्त थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समासाद्य तु तं विश्वमहं मूर्ध्ना प्रणम्य च।
ऋग्यजुःसामभिः स्तुत्वा शरण्यं शरणं गतः॥
मूलम्
समासाद्य तु तं विश्वमहं मूर्ध्ना प्रणम्य च।
ऋग्यजुःसामभिः स्तुत्वा शरण्यं शरणं गतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन विश्वात्माको निकट पाकर मैंने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और ऋक्, यजुः तथा साम-मन्त्रोंसे उनकी स्तुति करके मैं उन शरणागतवत्सल देवकी शरणमें गया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेन त्वं कृतसंवादः स्वतः सर्वहितैषिणा।
विश्वरूपेण देवेन पुरुषेण महात्मना॥
तमेवाराधय क्षिप्रं तमाराध्य न सीदसि।
मूलम्
तेन त्वं कृतसंवादः स्वतः सर्वहितैषिणा।
विश्वरूपेण देवेन पुरुषेण महात्मना॥
तमेवाराधय क्षिप्रं तमाराध्य न सीदसि।
अनुवाद (हिन्दी)
बेटा गरुड! सबका हित चाहनेवाले उन विश्वरूपधारी अन्तर्यामी परमात्मदेवसे तुमने वार्तालाप किया है; अतः शीघ्र उन्हींकी आराधना करो। उनकी आराधना करके तुम कभी कष्टमें नहीं पड़ोगे’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽहमेवं भगवता पित्रा ब्रह्मर्षिसत्तमाः॥
अनुनीतो यथान्यायं स्वमेव भवनं गतः।
सोऽहमामन्त्र्य पितरं तद्भावगतमानसः ॥
स्वमेवालयमासाद्य तमेवार्थमचिन्तयम् ।
मूलम्
सोऽहमेवं भगवता पित्रा ब्रह्मर्षिसत्तमाः॥
अनुनीतो यथान्यायं स्वमेव भवनं गतः।
सोऽहमामन्त्र्य पितरं तद्भावगतमानसः ॥
स्वमेवालयमासाद्य तमेवार्थमचिन्तयम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
ब्रह्मर्षिशिरोमणियो! इस प्रकार अपने पूज्य पिताके यथोचितरूपसे समझानेपर मैं अपने घरको गया। पितासे विदा ले अपने घर आकर मैं उन्हीं परमात्माके ध्यानमें मन लगाकर उन्हींका चिन्तन करने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद्भावगतभावात्मा तद्भूतगतमानसः ॥
गोविन्दं चिन्तयन्नास्से शाश्वतं परमव्ययम्।
मूलम्
तद्भावगतभावात्मा तद्भूतगतमानसः ॥
गोविन्दं चिन्तयन्नास्से शाश्वतं परमव्ययम्।
अनुवाद (हिन्दी)
मेरा भावभक्तिसे युक्त मन उन्हींकी भावनामें लगा हुआ था। मेरा चित्त उनका चिन्तन करते-करते तदाकार हो गया था। इस प्रकार मैं उन सनातन अविनाशी परम पुरुष गोविन्दके चिन्तनमें तत्पर हो बैठा रहा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृतं बभूव हृदयं नारायणदिदृक्षया॥
सोऽहं वेगं समास्थाय मनोमारुतवेगवान्।
रम्यां विशालां बदरीं गतो नारायणाश्रमम्॥
मूलम्
धृतं बभूव हृदयं नारायणदिदृक्षया॥
सोऽहं वेगं समास्थाय मनोमारुतवेगवान्।
रम्यां विशालां बदरीं गतो नारायणाश्रमम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसा करनेसे मेरा हृदय नारायणके दर्शनकी इच्छासे स्थिर हो गया और मैं मन एवं वायुके समान वेगशाली हो महान् वेगका आश्रय ले रमणीय बदरीविशाल तीर्थमें भगवान् नारायणके आश्रमपर जा पहुँचा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तत्र हरिं दृष्ट्वा जगतः प्रभवं विभुम्।
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं प्रणतः शिरसा हरिम्॥
ऋग्यजुःसामभिश्चैनं तुष्टाव परया मुदा।
मूलम्
ततस्तत्र हरिं दृष्ट्वा जगतः प्रभवं विभुम्।
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं प्रणतः शिरसा हरिम्॥
ऋग्यजुःसामभिश्चैनं तुष्टाव परया मुदा।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर वहाँ जगत्की उत्पत्तिके कारणभूत सर्वव्यापी कमलनयन श्रीगोविन्द हरिका दर्शन करके मैं उन्हें मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और बड़ी प्रसन्नताके साथ ऋक्, यजुः एवं साममन्त्रोंके द्वारा उनका स्तवन किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽहं प्रपन्नः शरणं देवदेवं सनातनम्।
प्राञ्जलिर्मनसा भूत्वा वाक्यमेतत् तदोक्तवान्॥
मूलम्
सोऽहं प्रपन्नः शरणं देवदेवं सनातनम्।
प्राञ्जलिर्मनसा भूत्वा वाक्यमेतत् तदोक्तवान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब मैं मन-ही-मन उन सनातन देवदेवकी शरणमें गया और हाथ जोड़कर इस प्रकार बोला—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् भूतभव्येश भवद्भूतकृदव्यय ।
शरणं सम्प्रपन्नं मां त्रातुमर्हस्यरिंदम॥
मूलम्
भगवन् भूतभव्येश भवद्भूतकृदव्यय ।
शरणं सम्प्रपन्नं मां त्रातुमर्हस्यरिंदम॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भगवन्! भूत और भविष्यके स्वामी, वर्तमान भूतोंके निर्माता, शत्रुदमन, अविनाशी! मैं आपकी शरणमें आया हूँ। आप मेरी रक्षा करें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहं तु तत्त्वजिज्ञासुः कोऽसि कस्यासि कुत्र वा।
सम्प्राप्तः पदवीं देव स मां संत्रातुमर्हसि॥
मूलम्
अहं तु तत्त्वजिज्ञासुः कोऽसि कस्यासि कुत्र वा।
सम्प्राप्तः पदवीं देव स मां संत्रातुमर्हसि॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मैं तो ‘आप कौन हैं, किसके हैं और कहाँ रहते हैं?’ इस बातको तत्त्वसे जाननेकी इच्छा रखकर आपके चरणोंकी शरणमें आया हूँ। देव! आप मेरी रक्षा करें’॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मम त्वं विदितः सौम्य यथावत् तत्त्वदर्शने।
ज्ञापितश्चापि यत् पित्रा तच्चापि विदितं महत्॥
मूलम्
मम त्वं विदितः सौम्य यथावत् तत्त्वदर्शने।
ज्ञापितश्चापि यत् पित्रा तच्चापि विदितं महत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान्ने कहा— सौम्य! तुम यथावत्रूपसे मेरे तत्त्वका साक्षात्कार करनेके लिये सचेष्ट होओ। यह बात मुझे पहलेसे ही विदित है। तुम्हारे पिताने तुम्हें मेरे विषयमें जो कुछ ज्ञान दिया है वह सब कुछ मुझे ज्ञात है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वैनतेय न कस्यापि अहं वैद्यः कथंचन।
मां हि विन्दन्ति विद्वांसो ये ज्ञाने परिनिष्ठिताः॥
मूलम्
वैनतेय न कस्यापि अहं वैद्यः कथंचन।
मां हि विन्दन्ति विद्वांसो ये ज्ञाने परिनिष्ठिताः॥
अनुवाद (हिन्दी)
विनतानन्दन! किसीको भी किसी तरह मेरे स्वरूपका पूर्णतः ज्ञान नहीं हो सकता। ज्ञाननिष्ठ विद्वान् ही मेरे विषयमें कुछ जान पाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निर्ममा निरहङ्कारा निराशीर्बन्धनायुताः ।
भवांस्तु सततं भक्तो मन्मनाः पक्षिसत्तम॥
स्थूलं मां वेत्स्यसे तस्माज्जगतः कारणे स्थितम्।
मूलम्
निर्ममा निरहङ्कारा निराशीर्बन्धनायुताः ।
भवांस्तु सततं भक्तो मन्मनाः पक्षिसत्तम॥
स्थूलं मां वेत्स्यसे तस्माज्जगतः कारणे स्थितम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जो ममता और अहंकारसे रहित तथा कामनाओंके बन्धनसे मुक्त हैं, वे ही मुझे जान पाते हैं। पक्षिप्रवर! तुम मेरे भक्त हो और सदा ही मुझमें मन लगाये रखते हो। इसलिये जगत्के कारणरूपमें स्थित मेरे स्थूलस्वरूपका बोध प्राप्त करोगे॥
मूलम् (वचनम्)
सुपर्ण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं दत्ताभयस्तेन ततोऽहमृषिसत्तमाः ।
नष्टखेदश्रमभयः क्षणेन ह्यभवं तदा॥
मूलम्
एवं दत्ताभयस्तेन ततोऽहमृषिसत्तमाः ।
नष्टखेदश्रमभयः क्षणेन ह्यभवं तदा॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड कहते हैं— ऋषिशिरोमणियो! इस प्रकार भगवान्के अभय देनेपर क्षणभरमें मेरे खेद, श्रम और भय सब नष्ट हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शनैर्याति भगवान् गत्या लघुपराक्रमः।
अहं तु सुमहावेगमास्थायानुव्रजामि तम्॥
मूलम्
स शनैर्याति भगवान् गत्या लघुपराक्रमः।
अहं तु सुमहावेगमास्थायानुव्रजामि तम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय शीघ्रगामी भगवान् अपनी गतिसे धीरे-धीरे चल रहे थे और मैं महान् वेगका आश्रय लेकर उनका अनुसरण करता था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स गत्वा दीर्घमध्वानमाकाशममितद्युतिः ।
मनसाप्यगमं देशमाससादात्मतत्त्ववित् ॥
मूलम्
स गत्वा दीर्घमध्वानमाकाशममितद्युतिः ।
मनसाप्यगमं देशमाससादात्मतत्त्ववित् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे अमित तेजस्वी एवं आत्मतत्त्वके ज्ञाता भगवान् श्रीहरि आकाशमें बहुत दूरतकका मार्ग तै करके ऐसे देशमें जा पहुँचे जो मनके लिये भी अगम्य था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ देवः समासाद्य मनसः सदृशं जवम्।
मोहयित्वा च मां तत्र क्षणेनान्तरधीयत॥
मूलम्
अथ देवः समासाद्य मनसः सदृशं जवम्।
मोहयित्वा च मां तत्र क्षणेनान्तरधीयत॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर भगवान् मनके समान वेगको अपनाकर मुझे मोहित करके वहीं क्षणभरमें अदृश्य हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राम्बुधरधीरेण भोःशब्देनानुनादिना ।
अयं भोऽहमिति प्राह वाक्यं वाक्यविशारदः॥
मूलम्
तत्राम्बुधरधीरेण भोःशब्देनानुनादिना ।
अयं भोऽहमिति प्राह वाक्यं वाक्यविशारदः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ मेघके समान धीर-गम्भीर स्वरमें उच्चारित ‘भो’ शब्दके द्वारा बोलनेमें कुशल भगवान् इस प्रकार बोले—‘हे गरुड! यह मैं हूँ’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शब्दानुसारी तु ततस्तं देशमहमाव्रजम्।
तत्रापश्यं ततश्चाहं श्रीमद्धंसयुतं सरः॥
मूलम्
शब्दानुसारी तु ततस्तं देशमहमाव्रजम्।
तत्रापश्यं ततश्चाहं श्रीमद्धंसयुतं सरः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं उसी शब्दका अनुसरण करता हुआ उस स्थानपर जा पहुँचा। वहाँ मैंने एक सुन्दर सरोवर देखा जिसमें बहुत-से हंस शोभा पा रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तत्सरः समासाद्य भगवानात्मवित्तमः।
भोःशब्दप्रतिसृष्टेन स्वरेणाप्रतिवादिना ॥
विवेश देवः स्वां योनिं मामिदं चाभ्यभाषत।
मूलम्
स तत्सरः समासाद्य भगवानात्मवित्तमः।
भोःशब्दप्रतिसृष्टेन स्वरेणाप्रतिवादिना ॥
विवेश देवः स्वां योनिं मामिदं चाभ्यभाषत।
अनुवाद (हिन्दी)
आत्मतत्त्वके ज्ञाताओंमें सर्वोत्तम भगवान् नारायण उस सरोवरके पास पहुँचकर ‘भो’ शब्दसे युक्त अनुपम गम्भीर स्वरसे मुझे पुकारते हुए अपने शयन-स्थान जलमें प्रविष्ट हो गये और मुझसे इस प्रकार बोले—॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशस्व सलिलं सौम्य सुखमत्र वसामहे।
मूलम्
विशस्व सलिलं सौम्य सुखमत्र वसामहे।
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान्ने कहा— सौम्य! तुम भी जलमें प्रवेश करो। हम दोनों यहाँ सुखसे रहेंगे॥
मूलम् (वचनम्)
सुपर्ण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततश्च प्राविशं तत्र सह तेन महात्मना।
दृष्टवानद्भुततरं तस्मिन् सरसि भास्वताम्॥
अग्नीनां सुप्रणीतानामिद्धानामिन्धनैर्विना ।
दीप्तानामाज्यसिक्तानां स्थानेष्वार्चिष्मतां सदा ॥
मूलम्
ततश्च प्राविशं तत्र सह तेन महात्मना।
दृष्टवानद्भुततरं तस्मिन् सरसि भास्वताम्॥
अग्नीनां सुप्रणीतानामिद्धानामिन्धनैर्विना ।
दीप्तानामाज्यसिक्तानां स्थानेष्वार्चिष्मतां सदा ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड कहते हैं— ऋषियो! तब मैं उन महात्मा श्रीहरिके साथ उस सरोवरमें घुसा। वहाँ मैंने अत्यन्त अद्भुत दृश्य देखा। भिन्न-भिन्न स्थानोंपर विधिपूर्वक स्थापित की हुई प्रज्वलित अग्नियाँ बिना ईंधनके ही जल रही थीं और घीकी आहुति पाकर उद्दीप्त हो उठी थीं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दीप्तिस्तेषामनाज्यानां प्राप्ताज्यानामिवाभवत् ।
अनिद्धानामिव सतामिद्धानामिव भास्वताम् ॥
मूलम्
दीप्तिस्तेषामनाज्यानां प्राप्ताज्यानामिवाभवत् ।
अनिद्धानामिव सतामिद्धानामिव भास्वताम् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
घी न मिलनेपर भी उन अग्नियोंकी दीप्ति घीकी आहुति पायी हुई अग्नियोंके समान थी और बिना ईंधनके भी ईंधनयुक्त आगके तुल्य उनकी प्रभा प्रकाशित होती रहती थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथाहं वरदं देवं नापश्यं तत्र सङ्गतम्।
मूलम्
अथाहं वरदं देवं नापश्यं तत्र सङ्गतम्।
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ जानेपर भी उन वरदायक देवता नारायण-देवका मुझे दर्शन न हो सका॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां तत्राग्निहोत्राणामीडितानां सहस्रशः ॥
समीपे त्वद्भुततममपश्यमहमव्ययम् ॥
मूलम्
तेषां तत्राग्निहोत्राणामीडितानां सहस्रशः ॥
समीपे त्वद्भुततममपश्यमहमव्ययम् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सहस्रों स्थानोंमें प्रशंसित होनेवाले उन अग्निहोत्रोंके समीप मैंने उन अद्भुत एवं अविनाशी श्रीहरिको ढूँढ़ना आरम्भ किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एषु चाग्निसमीपेषु शुश्राव सुपदाक्षराः॥
प्रभावान्तरितानां तु प्रस्पष्टाक्षरभाषिणाम् ।
ऋग्यजुःसामगानां च मधुराः सुस्वरा गिरः।
मूलम्
एषु चाग्निसमीपेषु शुश्राव सुपदाक्षराः॥
प्रभावान्तरितानां तु प्रस्पष्टाक्षरभाषिणाम् ।
ऋग्यजुःसामगानां च मधुराः सुस्वरा गिरः।
अनुवाद (हिन्दी)
इन अग्नियोंके समीप अक्षरोंका स्पष्ट उच्चारण करनेवाले तथा अपने प्रभावसे अदृश्य रहनेवाले, ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदके विद्वानोंकी सुस्वर मधुर वाणी मैंने सुनी। उनके पद और अक्षर बहुत सुन्दर ढंगसे उच्चारित हो रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान्यनेकसहस्राणि परीयंस्तु महाजवात् ।
अपश्यमानस्तं देवं ततोऽहं व्यथितोऽभवम्॥
मूलम्
तान्यनेकसहस्राणि परीयंस्तु महाजवात् ।
अपश्यमानस्तं देवं ततोऽहं व्यथितोऽभवम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं बड़े वेगसे वहाँके हजारों घरोंमें घूम आया; परंतु कहीं भी अपने उन आराध्यदेवको न देख सका, इससे मुझे बड़ी व्यथा हुई॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तेष्वग्निहोत्रेषु ज्वलत्सु विमलार्चिषु ।
भानुमत्सु न पश्यामि देवदेवं सनातनम्॥
ततोऽहं तानि दीप्तानि परीय व्यथितेन्द्रियः।
नान्तं तेषां प्रपश्यामि येनाहमिह चोदितः॥
मूलम्
ततस्तेष्वग्निहोत्रेषु ज्वलत्सु विमलार्चिषु ।
भानुमत्सु न पश्यामि देवदेवं सनातनम्॥
ततोऽहं तानि दीप्तानि परीय व्यथितेन्द्रियः।
नान्तं तेषां प्रपश्यामि येनाहमिह चोदितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
निर्मल ज्वालाओंसे युक्त वे अग्निहोत्र पूर्ववत् प्रकाशित हो रहे थे। उनके समीप भी मुझे कहीं सनातन देवाधिदेव श्रीहरि नहीं दिखायी दिये। तब मैं उन प्रदीप्त अग्निहोत्रोंकी परिक्रमा करते-करते थक गया। मेरी सारी इन्द्रियाँ व्याकुल हो उठीं; परंतु उनका कहीं अन्त नहीं दिखायी दिया। जिन भगवान्ने मुझे यहाँ आनेके लिये प्रेरित किया था, उनका दर्शन नहीं हो सका॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं चिन्तासमापन्नः प्रध्यातुमुपचक्रमे ।
विनयावनतो भूत्वा नमश्चक्रे महात्मने॥
अनादिनिधनायैभिर्नामभिः परमात्मने ।
मूलम्
एवं चिन्तासमापन्नः प्रध्यातुमुपचक्रमे ।
विनयावनतो भूत्वा नमश्चक्रे महात्मने॥
अनादिनिधनायैभिर्नामभिः परमात्मने ।
अनुवाद (हिन्दी)
इस तरह चिन्तामें पड़कर मैं भगवान्का ध्यान करने लगा; एवं विनयसे नतमस्तक होकर मैंने निम्नांकित नामोंद्वारा आदि-अन्तसे रहित परमात्मा महामनस्वी नारायणकी वन्दना आरम्भ की—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नारायणाय शुद्धाय शाश्वताय ध्रुवाय च॥
भूतभव्यभवेशाय शिवाय शिवमूर्तये ।
शिवयोनेः शिवाद्याय शिवपूज्यतमाय च॥
मूलम्
नारायणाय शुद्धाय शाश्वताय ध्रुवाय च॥
भूतभव्यभवेशाय शिवाय शिवमूर्तये ।
शिवयोनेः शिवाद्याय शिवपूज्यतमाय च॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो शुद्ध, सनातन, ध्रुव, भूत, वर्तमान और भविष्यके स्वामी, शिवस्वरूप और मंगलमूर्ति हैं, कल्याणके उत्पत्तिस्थान हैं, शिवके भी आदिकारण तथा भगवान् शिवके भी परम पूजनीय हैं, उन नारायणदेवको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घोररूपाय महते युगान्तकरणाय च।
विश्वाय विश्वदेवाय विश्वेशाय महात्मने॥
मूलम्
घोररूपाय महते युगान्तकरणाय च।
विश्वाय विश्वदेवाय विश्वेशाय महात्मने॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो कल्पका अन्त करनेके लिये अत्यन्त घोर रूप धारण करते हैं, जो विश्वरूप, विश्वदेव, विश्वेश्वर एवं परमात्मा हैं, उन श्रीहरिको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सहस्रोदारपादाय सहस्रनयनाय च ।
सहस्रबाहवे चैव सहस्रवदनाय च॥
मूलम्
सहस्रोदारपादाय सहस्रनयनाय च ।
सहस्रबाहवे चैव सहस्रवदनाय च॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिनके सहस्रों उदर, सहस्रों पैर और सहस्रों नेत्र हैं, जो सहस्रों भुजाओं और सहस्रों मुखोंसे सुशोभित हैं, उन भगवान् विष्णुको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शुचिश्रवाय महते ऋतुसंवत्सराय च।
ऋग्यजुःसामवक्त्राय अथर्वशिरसे नमः ॥
मूलम्
शुचिश्रवाय महते ऋतुसंवत्सराय च।
ऋग्यजुःसामवक्त्राय अथर्वशिरसे नमः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिनका यश पवित्र है, जो महान् तथा ऋतु एवं संवत्सररूप हैं, ऋक्, यजुः और सामवेद जिनके मुख हैं तथा अथर्ववेद जिनका सिर है, उन नारायण-देवको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हृषीकेशाय कृष्णाय द्रुहिणोरुक्रमाय च।
ब्रह्मेन्द्रकाय तार्क्ष्याय वराहायैकशृङ्गिणे ॥
मूलम्
हृषीकेशाय कृष्णाय द्रुहिणोरुक्रमाय च।
ब्रह्मेन्द्रकाय तार्क्ष्याय वराहायैकशृङ्गिणे ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो हृषीकेश (सम्पूर्ण इन्द्रियोंके नियन्ता), कृष्ण (सच्चिदानन्दस्वरूप), द्रुहिण (ब्रह्मा), ऊरुक्रम (बहुत बड़े डग भरनेवाले त्रिविक्रम), ब्रह्मा एवं इन्द्ररूप, गरुडस्वरूप तथा एक सींगवाले वराहरूपधारी हैं, उन भगवान् विष्णुको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिपिविष्टाय सत्याय हरयेऽथ शिखण्डिने।
हुतायोर्ध्वाय वक्त्राय रौद्रानीकाय साधवे॥
सिन्धवे सिन्धुवर्षघ्ने देवानां सिन्धवे नमः।
मूलम्
शिपिविष्टाय सत्याय हरयेऽथ शिखण्डिने।
हुतायोर्ध्वाय वक्त्राय रौद्रानीकाय साधवे॥
सिन्धवे सिन्धुवर्षघ्ने देवानां सिन्धवे नमः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो शिपिविष्ट (तेजसे व्याप्त), सत्य, हरि और शिखण्डी (मोरपंखधारी श्रीकृष्ण) आदि नामोंसे प्रसिद्ध हैं, जो हुत (हविष्यको ग्रहण करनेवाले अग्निरूप), ऊर्ध्वमुख, रुद्रकी सेना, साधु, सिन्धु, समुद्रमें वर्षाका हनन करनेवाले तथा देवसिन्धु (गंगास्वरूप) हैं, उन भगवान् विष्णुको प्रणाम है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गरुत्मते त्रिनेत्राय सुधामाय वृषावृषे॥
सम्राडुग्रे संकृतये विरजे सम्भवे भवे।
मूलम्
गरुत्मते त्रिनेत्राय सुधामाय वृषावृषे॥
सम्राडुग्रे संकृतये विरजे सम्भवे भवे।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो गरुडरूपधारी, तीन नेत्रोंसे युक्त (रुद्ररूप), उत्तम धामवाले, वृषावृष, धर्मपालक, सबके सम्राट्, उग्ररूपधारी, उत्तम कृतिवाले, रजोगुणरहित, सबकी उत्पत्तिके कारण तथा भवरूप हैं, उन श्रीहरिको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृषाय वृषरूपाय विभवे भूर्भुवाय च॥
दीप्तसृष्टाय यज्ञाय स्थिराय स्थविराय च।
मूलम्
वृषाय वृषरूपाय विभवे भूर्भुवाय च॥
दीप्तसृष्टाय यज्ञाय स्थिराय स्थविराय च।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो वृष (अभीष्ट वस्तुओंकी वर्षा करनेवाले), वृषरूप (धर्मस्वरूप), विभु (व्यापक) तथा भूर्लोक और भुवर्लोकमय हैं, जो तेजस्वी पुरुषोंद्वारा सम्पादित यज्ञरूप हैं, स्थिर हैं और स्थविररूप (वृद्ध) हैं, उन भगवान्को नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अच्युताय तुषाराय वीराय च समाय च॥
जिष्णवे पुरुहूताय वशिष्ठाय वराय च।
मूलम्
अच्युताय तुषाराय वीराय च समाय च॥
जिष्णवे पुरुहूताय वशिष्ठाय वराय च।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो अपनी महिमासे कभी च्युत नहीं होते, हिमके समान शीतल हैं, जिनमें वीरत्व है, जो सर्वत्र समभावसे स्थित हैं, विजयशील हैं, जिन्हें बहुत लोग पुकारते हैं अथवा जो इन्द्ररूप हैं तथा जो सर्वश्रेष्ठ वसिष्ठ हैं, उन भगवान्को नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सत्येशाय सुरेशाय हरयेऽथ शिखण्डिने॥
बर्हिषाय वरेण्याय वसवे विश्ववेधसे।
मूलम्
सत्येशाय सुरेशाय हरयेऽथ शिखण्डिने॥
बर्हिषाय वरेण्याय वसवे विश्ववेधसे।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो सत्य और देवताओंके स्वामी हैं, हरि (श्यामसुन्दर) और शिखण्डी (मोरमुकुटधारी) हैं, जो कुशापर बैठनेवाले सर्वश्रेष्ठ वसुरूप हैं, उन विश्वस्रष्टा भगवान् विष्णुको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किरीटिने सुकेशाय वासुदेवाय शुष्मिणे॥
बृहदुक्थसुषेणाय युग्ये दुन्दुभये तथा।
मूलम्
किरीटिने सुकेशाय वासुदेवाय शुष्मिणे॥
बृहदुक्थसुषेणाय युग्ये दुन्दुभये तथा।
अनुवाद (हिन्दी)
जो किरीटधारी, सुन्दर केशोंसे सुशोभित तथा पराक्रमी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्णरूप हैं, बृहदुक्थ साम जिनका स्वरूप है, जो सुन्दर सेनासे युक्त हैं, जुएका भार सँभालनेवाले वृषभरूप हैं तथा दुन्दुभि नामक वाद्यविशेष हैं, उन भगवान्को नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भवेसखाय विभवे भरद्वाजाभयाय च॥
भास्कराय वरेन्द्राय पद्मनाभाय भूरिणे।
मूलम्
भवेसखाय विभवे भरद्वाजाभयाय च॥
भास्कराय वरेन्द्राय पद्मनाभाय भूरिणे।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो इस जगत्में जीवमात्रके सखा हैं, व्यापकरूप हैं, भरद्वाजको अभय देनेवाले हैं, सूर्यरूपसे प्रभाका विस्तार करनेवाले हैं, श्रेष्ठ पुरुषोंके स्वामी हैं, जिनकी नाभिसे कमल प्रकट हुआ है और जो महान् हैं, उन भगवान् नारायणको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनर्वसुभृतत्वाय जीवप्रभविषाय च ॥
वषट्काराय स्वाहायै स्वधायै निधनाय च।
ऋचे च यजुषे साम्ने त्रैलोक्यपतये नमः॥
मूलम्
पुनर्वसुभृतत्वाय जीवप्रभविषाय च ॥
वषट्काराय स्वाहायै स्वधायै निधनाय च।
ऋचे च यजुषे साम्ने त्रैलोक्यपतये नमः॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो पुनर्वसु नामक नक्षत्रसे पालित और जीवमात्रकी उत्पत्तिके स्थान हैं, वषट्कार, स्वाहा, स्वधा और निधन—ये जिनके ही नाम और रूप हैं तथा जो ऋक्, यजुष्, सामवेद-स्वरूप हैं और त्रिलोकीके अधिपति हैं, उन भगवान् विष्णुको मेरा प्रणाम है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीपद्मायात्मसदृशे धरणे धारणे परे।
सौम्याय सौम्यरूपाय सौम्ये सुमनसे नमः॥
मूलम्
श्रीपद्मायात्मसदृशे धरणे धारणे परे।
सौम्याय सौम्यरूपाय सौम्ये सुमनसे नमः॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो शोभाशाली कमलको हाथमें लिये रहते हैं, जो अपने समान स्वयं ही हैं, जो धारण करने और करानेवाले परम पुरुष हैं, जो सौम्य, सौम्यरूपधारी तथा सौम्य एवं सुन्दर मनवाले हैं, उन श्रीहरिको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विश्वाय च सुविश्वाय विश्वरूपधराय च।
केशवाय सुकेशाय रश्मिकेशाय भूरिणे॥
मूलम्
विश्वाय च सुविश्वाय विश्वरूपधराय च।
केशवाय सुकेशाय रश्मिकेशाय भूरिणे॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो विश्वरूप, सुन्दर विश्वके निर्माता तथा विश्वरूपधारी हैं, जो केशव, सुन्दर केशोंसे युक्त किरणरूपी केशवाले और अधिक बलशाली हैं, उन भगवान् विष्णुको मेरा प्रणाम है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हिरण्यगर्भाय नमः सौम्याय वृषरूपिणे।
नारायणाग्रवपुषे पुरुहूताय वज्रिणे ॥
धर्मिणे वृषसेनाय धर्मसेनाय रोधसे।
मूलम्
हिरण्यगर्भाय नमः सौम्याय वृषरूपिणे।
नारायणाग्रवपुषे पुरुहूताय वज्रिणे ॥
धर्मिणे वृषसेनाय धर्मसेनाय रोधसे।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो हिरण्यगर्भ, सौम्य, वृषरूपधारी, नारायण, श्रेष्ठ शरीरधारी, पुरुहूत (इन्द्र) तथा वज्र धारण करनेवाले हैं, जो धर्मात्मा, वृषसेन, धर्मसेन तथा तटरूप हैं, उन भगवान् श्रीहरिको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुनये ज्वरमुक्ताय ज्वराधिपतये नमः॥
अनेत्राय त्रिनेत्राय पिङ्गलाय विडूर्मिणे।
मूलम्
मुनये ज्वरमुक्ताय ज्वराधिपतये नमः॥
अनेत्राय त्रिनेत्राय पिङ्गलाय विडूर्मिणे।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो मननशील मुनि, ज्वर आदि रोगोंसे मुक्त तथा ज्वरके अधिपति हैं, जिनके नेत्र नहीं हैं अथवा जिनके तीन नेत्र हैं, जो पिंगलवर्णवाले तथा प्रजारूपी लहरोंकी उत्पत्तिके लिये महासागरके समान हैं, उन भगवान् विष्णुको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तपोब्रह्मनिधानाय युगपर्यायिणे नमः ॥
शरणाय शरण्याय शक्तेष्टशरणाय च।
नमः सर्वभवेशाय भूतभव्यभवाय च॥
मूलम्
तपोब्रह्मनिधानाय युगपर्यायिणे नमः ॥
शरणाय शरण्याय शक्तेष्टशरणाय च।
नमः सर्वभवेशाय भूतभव्यभवाय च॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो तप और वेदकी निधि हैं, बारी-बारीसे युगोंका परिवर्तन करनेवाले हैं, सबके शरणदाता, शरणागतवत्सल और शक्तिशाली पुरुषके लिये अभीष्ट आश्रय हैं, सम्पूर्ण संसारके अधीश्वर एवं भूत, वर्तमान और भविष्यरूप हैं, उन भगवान् नारायणको नमस्कार है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाहि मां देवदेवेश कोऽप्यजोऽसि सनातन।
एवं गतोऽसि शरणं शरण्यं ब्रह्मयोनिनाम्॥
मूलम्
पाहि मां देवदेवेश कोऽप्यजोऽसि सनातन।
एवं गतोऽसि शरणं शरण्यं ब्रह्मयोनिनाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘देवदेवेश्वर! आप मेरी रक्षा करें। सनातन परमात्मन्! आप कोई अनिर्वचनीय अजन्मा पुरुष हैं, ब्राह्मणोंके शरणदाता हैं; मैं इस संकटमें पड़कर आपकी ही शरण लेता हूँ’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्तव्यं स्तवं स्तुतवतस्तत् तमो मे प्रणश्यत।
शृणोमि च गिरं दिव्यामन्तर्धानगतां शिवाम्।
मूलम्
स्तव्यं स्तवं स्तुतवतस्तत् तमो मे प्रणश्यत।
शृणोमि च गिरं दिव्यामन्तर्धानगतां शिवाम्।
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार स्तवनीय परमेश्वरकी स्तुति करते ही मेरा वह सारा दुःख नष्ट हो गया। तत्पश्चात् मुझे किसी अदृश्य शक्तिके द्वारा कही हुई यह मंगलमयी दिव्य वाणी सुनायी दी॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मा भैर्गरुत्मन् दान्तोऽसि पुनः सेन्द्रान् दिवौकसः॥
स्वं चैव भवनं गत्वा द्रक्ष्यसे पुत्रबान्धवान्।
मूलम्
मा भैर्गरुत्मन् दान्तोऽसि पुनः सेन्द्रान् दिवौकसः॥
स्वं चैव भवनं गत्वा द्रक्ष्यसे पुत्रबान्धवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान् बोले— गरुड! तुम डरो मत। तुमने मन और इन्द्रियोंको जीत लिया है। अब तुम पुनः इन्द्र आदि देवताओंके सहित अपने घरमें जाकर पुत्रों और भाई-बन्धुओंको देखोगे॥
मूलम् (वचनम्)
सुपर्ण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तस्मिन् क्षणेनैव सहसैव महाद्युतिः॥
प्रत्यदृश्यत तेजस्वी पुरस्तात् स ममान्तिके।
मूलम्
ततस्तस्मिन् क्षणेनैव सहसैव महाद्युतिः॥
प्रत्यदृश्यत तेजस्वी पुरस्तात् स ममान्तिके।
अनुवाद (हिन्दी)
गरुडजी कहते हैं— मुनियो! तदनन्तर उसी क्षण वे परम कान्तिमान् तेजस्वी नारायण सहसा मेरे सामने अत्यन्त निकट दिखायी दिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समागम्य ततस्तेन शिवेन परमात्मना॥
अपश्यं चाहमायान्तं नरनारायणाश्रमे ।
चतुर्द्विगुणविन्यासं तं च देवं सनातनम्॥
मूलम्
समागम्य ततस्तेन शिवेन परमात्मना॥
अपश्यं चाहमायान्तं नरनारायणाश्रमे ।
चतुर्द्विगुणविन्यासं तं च देवं सनातनम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब उन मंगलमय परमात्मासे मिलकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर मैंने देखा, वे आठ भुजाओंवाले सनातनदेव पुनः नर-नारायणके आश्रमकी ओर आ रहे हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यजतस्तानृषीन् देवान् वदतो ध्यायतो मुनीन्।
युक्तान् सिद्धान् नैष्ठिकांश्च जपतो यजतो गृहीन्॥
मूलम्
यजतस्तानृषीन् देवान् वदतो ध्यायतो मुनीन्।
युक्तान् सिद्धान् नैष्ठिकांश्च जपतो यजतो गृहीन्॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ मैंने देखा, ऋषि यज्ञ कर रहे हैं, देवता बातें कर रहे हैं, मुनिलोग ध्यानमें मग्न हैं, योगयुक्त सिद्ध और नैष्ठिक ब्रह्मचारी जप करते हैं तथा गृहस्थलोग यज्ञोंके अनुष्ठानमें संलग्न हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुष्पपूरपरिक्षिप्तं धूपितं दीपितं हितम्।
वन्दितं सिक्तसम्मृष्टं नरनारायणाश्रमम् ॥
मूलम्
पुष्पपूरपरिक्षिप्तं धूपितं दीपितं हितम्।
वन्दितं सिक्तसम्मृष्टं नरनारायणाश्रमम् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नर-नारायणका आश्रम धूपसे सुगन्धित और दीपसे प्रकाशित हो रहा था। वहाँ चारों ओर ढेर-के-ढेर फूल बिखरे हुए थे। वह आश्रम सबके लिये हितकर एवं सत्पुरुषोंद्वारा वन्दित था। झाड़-बुहारकर स्वच्छ बनाया और सींचा गया था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदद्भुतमहं दृष्ट्वा विस्मितोऽस्मि तदानघाः।
जगाम शिरसा देवं प्रयतेनान्तरात्मना॥
मूलम्
तदद्भुतमहं दृष्ट्वा विस्मितोऽस्मि तदानघाः।
जगाम शिरसा देवं प्रयतेनान्तरात्मना॥
अनुवाद (हिन्दी)
निष्पाप मुनियो! उस अद्भुत दृश्यको देखकर मुझे बड़ा विस्मय हुआ और मैंने पवित्र एवं एकाग्र हृदयसे मस्तक झुकाकर उन भगवान्की शरण ली॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदत्यद्भुतसंकाशं किमेतदिति चिन्तयन् ।
नाध्यगच्छं परं दिव्यं तस्य सर्वभवात्मनः॥
मूलम्
तदत्यद्भुतसंकाशं किमेतदिति चिन्तयन् ।
नाध्यगच्छं परं दिव्यं तस्य सर्वभवात्मनः॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह सब अद्भुत-सा दृश्य क्या था, यह बहुत सोचनेपर भी मेरी समझमें नहीं आया। सबकी उत्पत्तिके कारणभूत उन परमात्माके परम दिव्य भावको मैं नहीं समझ सका॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रणिपत्य सुदुर्धर्षं पुनः पुनरुदीक्ष्य च।
शिरस्यञ्जलिमाधाय विस्मयोत्फुल्ललोचनः ॥
अवोचं तमदीनार्थं श्रेष्ठानां श्रेष्ठमुत्तमम्।
मूलम्
प्रणिपत्य सुदुर्धर्षं पुनः पुनरुदीक्ष्य च।
शिरस्यञ्जलिमाधाय विस्मयोत्फुल्ललोचनः ॥
अवोचं तमदीनार्थं श्रेष्ठानां श्रेष्ठमुत्तमम्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन दुर्जय परमात्माको बारंबार प्रणाम करके उनकी ओर देखकर मेरे नेत्र आश्चर्यसे खिल उठे और मैंने मस्तकपर अंजलि बाँधे उन श्रेष्ठ पुरुषोंमें भी सर्वश्रेष्ठ एवं उदार पुरुषोत्तमसे कहा—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नमस्ते भगवन् देव भूतभव्यभवत्प्रभो॥
यदेतदद्भुतं देव मया दृष्टं त्वदाश्रयम्।
अनादिमध्यपर्यन्तं किं तच्छंसितुमर्हसि ॥
मूलम्
नमस्ते भगवन् देव भूतभव्यभवत्प्रभो॥
यदेतदद्भुतं देव मया दृष्टं त्वदाश्रयम्।
अनादिमध्यपर्यन्तं किं तच्छंसितुमर्हसि ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भूत, वर्तमान और भविष्यके स्वामी भगवान् नारायणदेव! आपको नमस्कार है। देव! मैंने आपके आश्रित जो यह अद्भुत दृश्य देखा है, इसका कहीं आदि, मध्य और अन्त नहीं है। वह सब क्या है, यह बतानेकी कृपा करें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदि जानासि मां भक्तं यदि वानुग्रहो मयि।
शंस सर्वमशेषेण श्रोतव्यं यदि चेन्मया॥
मूलम्
यदि जानासि मां भक्तं यदि वानुग्रहो मयि।
शंस सर्वमशेषेण श्रोतव्यं यदि चेन्मया॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यदि आप मुझे अपना भक्त समझते हैं अथवा यदि आपका मुझपर अनुग्रह है तो यह सब यदि मेरे सुननेयोग्य हो तो पूर्णरूपसे बताइये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वभावस्तव दुर्ज्ञेयः प्रादुर्भावोऽभवस्य च।
भवद्भूतभविष्येश सर्वथा गहनो भवान्॥
मूलम्
स्वभावस्तव दुर्ज्ञेयः प्रादुर्भावोऽभवस्य च।
भवद्भूतभविष्येश सर्वथा गहनो भवान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आपका स्वभाव दुर्ज्ञेय है। आप अजन्मा परमेश्वरका प्रादुर्भाव भी समझमें आना कठिन है। भूत, वर्तमान और भविष्यके स्वामी नारायण! आप सर्वथा गहन (अगम्य) हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्रूहि सर्वमशेषेण तदाश्चर्यं महामुने।
किं तदत्यद्भुतं वृत्तं तेष्वग्निषु समन्ततः॥
मूलम्
ब्रूहि सर्वमशेषेण तदाश्चर्यं महामुने।
किं तदत्यद्भुतं वृत्तं तेष्वग्निषु समन्ततः॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘महामुने! वह सारा आश्चर्यजनक एवं अद्भुत वृत्तान्त जो उन अग्नियोंके चारों ओर देखा गया, क्या था? यह पूर्णरूपसे बतानेकी कृपा करें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कानि तान्यग्निहोत्राणि केषां शब्दः श्रुतो मया।
शृण्वतां ब्रह्म सततमदृश्यानां महात्मनाम्॥
मूलम्
कानि तान्यग्निहोत्राणि केषां शब्दः श्रुतो मया।
शृण्वतां ब्रह्म सततमदृश्यानां महात्मनाम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘वे अग्निहोत्र कौन थे? निरन्तर वेदोंका श्रवण और पाठ करनेवाले वे अदृश्य महात्मा कौन थे, जिनका शब्दमात्र मैंने सुना था?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतन्मे भगवन् कृष्ण ब्रूहि सर्वमशेषतः।
गृणन्त्यग्निसमीपेषु के च ते ब्रह्मराशयः॥
मूलम्
एतन्मे भगवन् कृष्ण ब्रूहि सर्वमशेषतः।
गृणन्त्यग्निसमीपेषु के च ते ब्रह्मराशयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भगवान् श्रीकृष्ण! यह सब आप पूर्णरूपसे मुझे बताइये। जो लोग अग्निके समीप वेदोंका पारायण कर रहे थे, वे ब्राह्मणसमूह महात्मा कौन थे?’॥
मूलम् (वचनम्)
श्रीभगवानुवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
मां न देवा न गन्धर्वा न पिशाचा न राक्षसाः।
विदुस्तत्त्वेन तत्त्वस्थं सूक्ष्मात्मानमवस्थितम् ॥
मूलम्
मां न देवा न गन्धर्वा न पिशाचा न राक्षसाः।
विदुस्तत्त्वेन तत्त्वस्थं सूक्ष्मात्मानमवस्थितम् ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीभगवान् बोले— गरुड! मुझे न तो देवता, न गन्धर्व, न पिशाच और न राक्षस ही तत्त्वसे जानते हैं। मैं सम्पूर्ण तत्त्वोंमें उनके सूक्ष्म आत्मारूपसे अवस्थित हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुर्धाहं विभक्तात्मा लोकानां हितकाम्यया।
भूतभव्यभविष्यादिरनादिर्विश्वकृत्तमः ॥
मूलम्
चतुर्धाहं विभक्तात्मा लोकानां हितकाम्यया।
भूतभव्यभविष्यादिरनादिर्विश्वकृत्तमः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
लोकोंके हितकी कामनासे मैंने अपने आपको चार स्वरूपोंमें विभक्त कर रखा है। मैं भूत, वर्तमान और भविष्यका आदि हूँ। मेरा आदि कोई नहीं है। मैं ही सबसे बड़ा विश्वस्रष्टा हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च पञ्चमम्।
मनो बुद्धिश्च तेजश्च तमः सत्त्वं रजस्तथा॥
प्रकृतिर्विकृतिश्चेति विद्याविद्ये शुभाशुभे ।
मत्त एतानि जायन्ते नाहमेभ्यः कथंचन॥
मूलम्
पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च पञ्चमम्।
मनो बुद्धिश्च तेजश्च तमः सत्त्वं रजस्तथा॥
प्रकृतिर्विकृतिश्चेति विद्याविद्ये शुभाशुभे ।
मत्त एतानि जायन्ते नाहमेभ्यः कथंचन॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, मन, बुद्धि, तेज (अहंकार), सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण, प्रकृति, विकृति, विद्या, अविद्या तथा शुभ और अशुभ—ये सब मुझसे ही उत्पन्न होते हैं। मैं इनसे किसी प्रकार उत्पन्न नहीं होता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् किंचिच्छ्रेयसा युक्तः श्रेष्ठभावं व्यवस्यति।
धर्मयुक्तं च पुण्यं च सोऽहमस्मि निरामयः॥
मूलम्
यत् किंचिच्छ्रेयसा युक्तः श्रेष्ठभावं व्यवस्यति।
धर्मयुक्तं च पुण्यं च सोऽहमस्मि निरामयः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मनुष्य कल्याणभावनासे युक्त हो जिस किसी पवित्र, धर्मयुक्त एवं श्रेष्ठ भावका निश्चय करता है वह सब मैं निरामय परमेश्वर ही हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यः स्वभावात्मतत्त्वज्ञैः कारणैरुपलक्ष्यते ।
अनादिमध्यनिधनः सोऽन्तरात्मास्मि शाश्वतः ॥
मूलम्
यः स्वभावात्मतत्त्वज्ञैः कारणैरुपलक्ष्यते ।
अनादिमध्यनिधनः सोऽन्तरात्मास्मि शाश्वतः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
स्वभाव एवं आत्माके तत्त्वको जाननेवाले पुरुष विभिन्न हेतुओंद्वारा जिसका साक्षात्कार करते हैं, वह आदि, मध्य और अन्तसे रहित सर्वान्तरात्मा सनातन पुरुष मैं ही हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् तु मे परमं गुह्यं रूपं सूक्ष्मार्थदर्शिभिः।
गृह्यते सूक्ष्मभावज्ञैः स विभाव्योऽस्मि शाश्वतः॥
मूलम्
यत् तु मे परमं गुह्यं रूपं सूक्ष्मार्थदर्शिभिः।
गृह्यते सूक्ष्मभावज्ञैः स विभाव्योऽस्मि शाश्वतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूक्ष्म अर्थको देखने और समझनेवाले तथा सूक्ष्मभावको जाननेवाले ज्ञानी पुरुष मेरे जिस परम गुह्य रूपको ग्रहण करते हैं, वह चिन्तनीय सनातन परमात्मा मैं ही हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् तु मे परमं गुह्यं येन व्याप्तमिदं जगत्।
सोऽहं गतः सर्वसत्त्वः सर्वस्य प्रभवोऽप्ययः॥
मूलम्
यत् तु मे परमं गुह्यं येन व्याप्तमिदं जगत्।
सोऽहं गतः सर्वसत्त्वः सर्वस्य प्रभवोऽप्ययः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो मेरा परम गुह्य रूप है और जिससे यह सम्पूर्ण जगत् व्याप्त है, वह सर्वसत्त्वरूप परमात्मा मैं ही हूँ, मैं ही सबका अविनाशी कारण हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मत्तो जातानि भूतानि मया धार्यन्त्यहर्निशम्।
मय्येव विलयं यान्ति प्रलये पन्नगाशन॥
मूलम्
मत्तो जातानि भूतानि मया धार्यन्त्यहर्निशम्।
मय्येव विलयं यान्ति प्रलये पन्नगाशन॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड! सम्पूर्ण भूत प्राणी मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं, मेरे ही द्वारा वे अहर्निश जीवन धारण करते हैं और प्रलयके समय सब-के-सब मुझमें ही लीन हो जाते हैं।
विश्वास-प्रस्तुतिः
यो मां यथा वेदयति तस्य तस्यास्मि काश्यप।
मनोबुद्धिगतः श्रेयो विदधामि विहङ्गम॥
मूलम्
यो मां यथा वेदयति तस्य तस्यास्मि काश्यप।
मनोबुद्धिगतः श्रेयो विदधामि विहङ्गम॥
अनुवाद (हिन्दी)
काश्यप! जो मुझे जैसा जानता है, उसके लिये मैं वैसा ही हूँ। विहंगम! मैं सभीके मन और बुद्धिमें रहकर सबका कल्याण करता हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मां तु ज्ञातुं कृता बुद्धिर्भवता पक्षिसत्तम।
शृणु योऽहं यतश्चाहं यदर्थं चाहमुद्यतः॥
मूलम्
मां तु ज्ञातुं कृता बुद्धिर्भवता पक्षिसत्तम।
शृणु योऽहं यतश्चाहं यदर्थं चाहमुद्यतः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पक्षिप्रवर! तुमने मेरे तत्त्वको जाननेका विचार किया था; अतः मैं कौन हूँ? कहाँसे आया हूँ? और किस उद्देश्यकी सिद्धिके लिये उद्यत हुआ हूँ? यह सब बताता हूँ, सुनो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये केचिन्नियतात्मानस्त्रेताग्निपरमा द्विजाः ।
अग्निकार्यपरा नित्यं जपहोमपरायणाः ॥
आत्मन्यग्नीन् समाधाय नियता नियतेन्द्रियाः।
अनन्यमनसस्ते मां सर्वे वै समुपासते॥
यजन्तो जपयज्ञैर्मां मानसैश्च सुसंयताः।
अग्नीनभ्युद्ययुः शश्वदग्निष्वेवाभिसंस्थिताः ॥
अनन्यकार्याः शुचयो नित्यमग्निपरायणाः ।
य एवं बुद्धयो धीरास्ते मां गच्छन्ति तादृशाः॥
मूलम्
ये केचिन्नियतात्मानस्त्रेताग्निपरमा द्विजाः ।
अग्निकार्यपरा नित्यं जपहोमपरायणाः ॥
आत्मन्यग्नीन् समाधाय नियता नियतेन्द्रियाः।
अनन्यमनसस्ते मां सर्वे वै समुपासते॥
यजन्तो जपयज्ञैर्मां मानसैश्च सुसंयताः।
अग्नीनभ्युद्ययुः शश्वदग्निष्वेवाभिसंस्थिताः ॥
अनन्यकार्याः शुचयो नित्यमग्निपरायणाः ।
य एवं बुद्धयो धीरास्ते मां गच्छन्ति तादृशाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो कोई ब्राह्मण अपने मनको वशमें करके त्रिविध अग्नियोंकी उपासना करते हैं, नित्य अग्निहोत्रमें तत्पर और जप-होममें संलग्न हैं, जो नियमपूर्वक रहकर अपनी इन्द्रियोंको वशमें करके अपने-आपमें ही अग्नियोंका आधान कर लेते हैं तथा सब-के-सब अनन्यचित्त होकर मेरी ही उपासना करते हैं, जो अपनेको पूर्ण संयममें रखकर जप, यज्ञ और मानसयज्ञोंद्वारा मेरी आराधना करते हैं, जो सदा अग्निहोत्रमें ही तत्पर रहकर अग्नियोंका स्वागत करते हैं तथा अन्य कार्यमें रत न होकर शुद्धभावसे सदा अग्निकी परिचर्या करते हैं; ऐसी बुद्धिवाले धीर पुरुष वैसे भक्तिभावसे सम्पन्न होते हैं, वे मुझे प्राप्त कर लेते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अकामहतसंकल्पा ज्ञाने नित्यं समाहिताः।
आत्मन्यग्नीन् समाधाय निराहारा निराशिषः॥
विषयेषु निरारम्भा विमुक्ता ज्ञानचक्षुषः।
अनन्यमनसो धीराः स्वभावनियमान्विताः ॥
मूलम्
अकामहतसंकल्पा ज्ञाने नित्यं समाहिताः।
आत्मन्यग्नीन् समाधाय निराहारा निराशिषः॥
विषयेषु निरारम्भा विमुक्ता ज्ञानचक्षुषः।
अनन्यमनसो धीराः स्वभावनियमान्विताः ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिन्होंने निष्कामभावके द्वारा अपने सारे संकल्पोंको नष्ट कर दिया है, जो सदा ज्ञानमें ही चित्तको एकाग्र किये रहते हैं और अग्नियोंको अपने आत्मामें ही स्थापित करके आहार (भोग) और कामनाओंका त्याग कर देते हैं, विषयोंकी उपलब्धिके लिये जिनकी कोई प्रवृत्ति नहीं होती, जो सब प्रकारके बन्धनोंसे मुक्त एवं ज्ञानदृष्टिसे सम्पन्न हैं, वे स्वभावतः नियमपरायण एवं अनन्यचित्तसे मेरा चिन्तन करनेवाले धीर पुरुष मुझे ही प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् तद् वियति दृष्टं तत् सरः पद्मोत्पलायुतम्।
तत्राग्नयः संनिहिता दीप्यन्ते स्म निरिन्धनाः॥
मूलम्
यत् तद् वियति दृष्टं तत् सरः पद्मोत्पलायुतम्।
तत्राग्नयः संनिहिता दीप्यन्ते स्म निरिन्धनाः॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुमने जो आकाशमें कमल और उत्पलसे भरा हुआ सुन्दर सरोवर देखा था, उसके समीप स्थापित हुई अग्नियाँ बिना ईंधनके ही प्रज्वलित होती हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ज्ञानामलाशयास्तस्मिन् ये च चन्द्रांशुनिर्मलाः।
उपासीना गृणन्तोऽग्निं प्रस्पष्टाक्षरभाषिणः ॥
आकाङ्क्षमाणाः शुचयस्तेष्वग्निषु विहङ्गम ।
मूलम्
ज्ञानामलाशयास्तस्मिन् ये च चन्द्रांशुनिर्मलाः।
उपासीना गृणन्तोऽग्निं प्रस्पष्टाक्षरभाषिणः ॥
आकाङ्क्षमाणाः शुचयस्तेष्वग्निषु विहङ्गम ।
अनुवाद (हिन्दी)
जिनके अन्तःकरण ज्ञानके प्रकाशसे निर्मल हो गये हैं, जो चन्द्रमाकी किरणोंके समान उज्ज्वल हैं, वे ही वहाँ स्पष्ट अक्षरका उच्चारण करते हुए वेदमन्त्रोंके उच्चारणपूर्वक अग्निकी उपासना करते हैं। विहंगम! वे पवित्रभावसे रहकर उन अग्नियोंकी परिचर्याकी ही इच्छा रखते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये मया भावितात्मानो मय्येभिरताः सदा॥
उपासते च मामेव ज्योतिर्भूता निरामयाः।
तैर्हि तत्रैव वस्तव्यं नीरागात्मभिरच्युतैः॥
मूलम्
ये मया भावितात्मानो मय्येभिरताः सदा॥
उपासते च मामेव ज्योतिर्भूता निरामयाः।
तैर्हि तत्रैव वस्तव्यं नीरागात्मभिरच्युतैः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरा चिन्तन करनेके कारण जिनका अन्तःकरण पवित्र हो गया है, जो सदा मेरी ही उपासनामें रत हैं, वे ही वहाँ रोग-शोकसे रहित एवं ज्योतिःस्वरूप होकर मेरी ही उपासना किया करते हैं। वे अपनी मर्यादासे कभी च्युत न होकर वीतराग हृदयसे सदा वहीं निवास करेंगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निराहारा ह्यनिष्यन्दाश्चन्द्रांशुसदृशप्रभाः ।
निर्मला निरहंकारा निरालम्बा निराशिषः॥
मद्भक्ताः सततं ते वै भक्तस्तानपि चाप्यहम्।
मूलम्
निराहारा ह्यनिष्यन्दाश्चन्द्रांशुसदृशप्रभाः ।
निर्मला निरहंकारा निरालम्बा निराशिषः॥
मद्भक्ताः सततं ते वै भक्तस्तानपि चाप्यहम्।
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी अंगकान्ति चन्द्रमाकी किरणोंके समान उज्ज्वल है। वे निराहार, श्रमविन्दुओंसे रहित, निर्मल, अहंकारशून्य, आलम्बनरहित और निष्काम हैं। उनकी सदा मुझमें भक्ति बनी रहती है तथा मैं भी उनका भक्त (प्रेमी) बना रहता हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुर्धाहं विभक्तात्मा चरामि जगतो हितः॥
लोकानां धारणार्थाय विधानं विदधामि च।
यथावत्तदशेषेण श्रोतुमर्हति मे भवान्॥
मूलम्
चतुर्धाहं विभक्तात्मा चरामि जगतो हितः॥
लोकानां धारणार्थाय विधानं विदधामि च।
यथावत्तदशेषेण श्रोतुमर्हति मे भवान्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं अपनेको चार स्वरूपोंमें विभक्त करके जगत्के हितसाधनमें तत्पर हो विचरता रहता हूँ। सम्पूर्ण लोक जीवित एवं सुरक्षित रहें—इसके लिये मैं विधान बनाता हूँ। वह सब तुम यथार्थरूपसे सुननेके अधिकारी हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एका मूर्तिर्निर्गुणाख्या योगं परममास्थिता।
द्वितीया सृजते तात भूतग्रामं चराचरम्॥
मूलम्
एका मूर्तिर्निर्गुणाख्या योगं परममास्थिता।
द्वितीया सृजते तात भूतग्रामं चराचरम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
तात! मेरी एक निर्गुण मूर्ति है जो परम योगका आश्रय लेकर रहती है। दूसरी वह मूर्ति है जो चराचर प्राणिसमुदायकी सृष्टि करती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सृष्टं संहरते चैका जगत् स्थावरजङ्गमम्।
जातात्मनिष्ठा क्षपयन् मोहयन्निव मायया॥
मूलम्
सृष्टं संहरते चैका जगत् स्थावरजङ्गमम्।
जातात्मनिष्ठा क्षपयन् मोहयन्निव मायया॥
अनुवाद (हिन्दी)
तीसरी मूर्ति स्थावर-जङ्गम जगत्का संहार करती है और चौथी मूर्ति आत्मनिष्ठ है, जो आसुरी शक्तियोंको मायासे मोहित-सी करके उन्हें नष्ट कर देती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षिपन्ती मोहयन्ती च ह्यात्मनिष्ठा स्वमायया।
चतुर्थी मे महामूर्तिर्जगद्वृद्धिं ददाति सा॥
रक्षते चापि नियता सोऽहमस्मि नभश्चर।
मूलम्
क्षिपन्ती मोहयन्ती च ह्यात्मनिष्ठा स्वमायया।
चतुर्थी मे महामूर्तिर्जगद्वृद्धिं ददाति सा॥
रक्षते चापि नियता सोऽहमस्मि नभश्चर।
अनुवाद (हिन्दी)
अपनी मायासे दुष्टोंको मोहित और नष्ट करनेवाली जो मेरी चौथी आत्मनिष्ठ महामूर्ति है, वह नियम-पूर्वक रहकर जगत्की वृद्धि और रक्षा करती है। गरुड! वही मैं हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मया सर्वमिदं व्याप्तं मयि सर्वं प्रतिष्ठितम्॥
अहं सर्वजगद्बीजं सर्वत्रगतिरव्ययः ।
मूलम्
मया सर्वमिदं व्याप्तं मयि सर्वं प्रतिष्ठितम्॥
अहं सर्वजगद्बीजं सर्वत्रगतिरव्ययः ।
अनुवाद (हिन्दी)
मैंने इस सम्पूर्ण जगत्को व्याप्त कर रखा है। सारा जगत् मुझमें ही प्रतिष्ठित है। मैं ही सम्पूर्ण जगत्का बीज हूँ। मेरी सर्वत्र गति है और मैं अविनाशी हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यानि तान्यग्निहोत्राणि ये च चन्द्रांशुराशयः।
गृणन्ति वेद सततं तेष्वग्निषु विहङ्गम॥
क्रमेण मां समायान्ति सुखिनो ज्ञानसंयुताः।
तेषामहं तपो दीप्तं तेजः सम्यक् समाहितम्।
नित्यं ते मयि वर्तन्ते तेषु चाहमतन्द्रितः॥
मूलम्
यानि तान्यग्निहोत्राणि ये च चन्द्रांशुराशयः।
गृणन्ति वेद सततं तेष्वग्निषु विहङ्गम॥
क्रमेण मां समायान्ति सुखिनो ज्ञानसंयुताः।
तेषामहं तपो दीप्तं तेजः सम्यक् समाहितम्।
नित्यं ते मयि वर्तन्ते तेषु चाहमतन्द्रितः॥
अनुवाद (हिन्दी)
विहंगम! वे जो अग्निहोत्र थे तथा जो चन्द्रमाकी किरणोंके पुंज-जैसी कान्तिवाले पुरुष निरन्तर उन अग्नियोंके समीप बैठकर वेदोंका पाठ करते थे, वे ज्ञानसम्पन्न एवं सुखी होकर क्रमशः मुझे प्राप्त होते हैं। मैं ही उनका उद्दीप्त तप और सम्यक् रूपसे संचित तेज हूँ। वे सदा मुझमें विद्यमान हैं और मैं उनमें सावधान हुआ रहता हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वतो मुक्तसङ्गेन मय्यनन्यसमाधिना ।
शक्यः समासादयितुमहं वै ज्ञानचक्षुषा॥
मूलम्
सर्वतो मुक्तसङ्गेन मय्यनन्यसमाधिना ।
शक्यः समासादयितुमहं वै ज्ञानचक्षुषा॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो सब ओरसे आसक्तिशून्य है, वह मुझमें अनन्यभावसे चित्तको एकाग्र करके ज्ञानदृष्टिसे मेरा साक्षात्कार कर सकता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकान्तिनो ध्यानपरा यतिभावाद् व्रजन्ति माम्।
मूलम्
एकान्तिनो ध्यानपरा यतिभावाद् व्रजन्ति माम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जो संन्यासका आश्रय लेकर अनन्यभावसे मेरे ध्यानमें तत्पर रहते हैं, वे मुझे ही प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सत्त्वयुक्ता मतिर्येषां केवलात्मविनिश्चिता ॥
ते पश्यन्ति स्वमात्मानं परमात्मानमव्ययम्।
मूलम्
सत्त्वयुक्ता मतिर्येषां केवलात्मविनिश्चिता ॥
ते पश्यन्ति स्वमात्मानं परमात्मानमव्ययम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जिनकी बुद्धि सत्त्वगुणसे युक्त है और केवल आत्मतत्त्वका निश्चय करके उसीके चिन्तनमें लगी हुई है, वे अपने आत्मरूप अविनाशी परमात्माका दर्शन करते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहिंसा सर्वभूतेषु तेष्ववस्थितमार्जवम् ॥
तेष्वेव च समाधाय सम्यगेति स मामजम्।
मूलम्
अहिंसा सर्वभूतेषु तेष्ववस्थितमार्जवम् ॥
तेष्वेव च समाधाय सम्यगेति स मामजम्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन्हींका समस्त प्राणियोंके प्रति अहिंसाभाव होता है, उन्हींमें ‘सरलता’ नामक सद्गुणकी स्थिति होती है और उन्हीं गुणोंमें स्थित हुआ जो चित्तको मुझ परमात्मामें भलीभाँति समाहित कर देता है वह मुझ अजन्मा परमेश्वरको प्राप्त होता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदेतत् परमं गुह्यमाख्यानं परमाद्भुतम्॥
यत्नेन तदशेषेण यथावच्छ्रोतुमर्हसि ।
मूलम्
यदेतत् परमं गुह्यमाख्यानं परमाद्भुतम्॥
यत्नेन तदशेषेण यथावच्छ्रोतुमर्हसि ।
अनुवाद (हिन्दी)
यह जो परम गोपनीय एवं अत्यन्त अद्भुत आख्यान है, इसे पूर्णतः यत्नपूर्वक यथावत् रूपसे श्रवण करो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये त्वग्निहोत्रनियता जपयज्ञपरायणाः ॥
ये मामुपासते शश्वदेतांस्त्वं दृष्टवानसि।
मूलम्
ये त्वग्निहोत्रनियता जपयज्ञपरायणाः ॥
ये मामुपासते शश्वदेतांस्त्वं दृष्टवानसि।
अनुवाद (हिन्दी)
जो अग्निहोत्रमें संलग्न और जप-यज्ञपरायण होते हैं, जो निरन्तर मेरी उपासना करते रहते हैं; उन्हींका तुमने प्रत्यक्ष दर्शन किया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शास्त्रदृष्टविधानज्ञा असक्ताः क्वचिदन्यथा ॥
शक्योऽहं वेदितुं तैस्तु यन्मे परममव्ययम्।
मूलम्
शास्त्रदृष्टविधानज्ञा असक्ताः क्वचिदन्यथा ॥
शक्योऽहं वेदितुं तैस्तु यन्मे परममव्ययम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जो शास्त्रोक्त विधिके ज्ञाता होकर अनासक्त-भावसे सत्कर्म करते हैं, कभी शास्त्रविपरीत—असत् कर्ममें नहीं लगते, उनके द्वारा ही मैं जाना जा सकता हूँ। मेरा जो अविनाशी परम तत्त्व है, उसे भी वे ही जान सकते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माज्ज्ञानेन शुद्धेन प्रसन्नात्मात्मविच्छुचिः ॥
आसादयति तद् ब्रह्म यत्र गत्वा न शोचति।
मूलम्
तस्माज्ज्ञानेन शुद्धेन प्रसन्नात्मात्मविच्छुचिः ॥
आसादयति तद् ब्रह्म यत्र गत्वा न शोचति।
अनुवाद (हिन्दी)
इसलिये विशुद्ध ज्ञानके द्वारा जिसका चित्त प्रसन्न (निर्मल) है, जो आत्मतत्त्वका ज्ञाता और पवित्र है, वह ज्ञानी पुरुष ही उस ब्रह्मको प्राप्त होता है, जहाँ जाकर कोई शोकमें नहीं पड़ता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शुद्धाभिजनसम्पन्नाः श्रद्धायुक्तेन चेतसा ॥
मद्भक्त्या च द्विजश्रेष्ठा गच्छन्ति परमां गतिम्।
मूलम्
शुद्धाभिजनसम्पन्नाः श्रद्धायुक्तेन चेतसा ॥
मद्भक्त्या च द्विजश्रेष्ठा गच्छन्ति परमां गतिम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जो शुद्ध कुलमें उत्पन्न हैं, जो श्रेष्ठ द्विज श्रद्धायुक्त चित्तसे मेरा भजन करते हैं, वे मेरी भक्तिद्वारा परम गतिको प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यद् गुह्यं परमं बुद्धेरलिङ्गग्रहणं च यत्॥
तत् सूक्ष्मं गृह्यते विप्रैर्यतिभिस्तत्त्वदर्शभिः।
मूलम्
यद् गुह्यं परमं बुद्धेरलिङ्गग्रहणं च यत्॥
तत् सूक्ष्मं गृह्यते विप्रैर्यतिभिस्तत्त्वदर्शभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
जो बुद्धिके लिये परम गुह्य रहस्य है, जो किसी आकृतिसे गृहीत नहीं होता—अनुभवमें नहीं आता उस सूक्ष्म परब्रह्मका तत्त्वदर्शी यति ब्राह्मण साक्षात्कार कर लेते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न वायुः पवते तत्र न तस्मिन् ज्योतिषां गतिः॥
न चापः पृथिवी नैव नाकाशं न मनोगतिः।
मूलम्
न वायुः पवते तत्र न तस्मिन् ज्योतिषां गतिः॥
न चापः पृथिवी नैव नाकाशं न मनोगतिः।
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ यह वायु नहीं चलती, ग्रहों और नक्षत्रोंकी पहुँच नहीं होती तथा जल, पृथ्वी, आकाश और मनकी भी गति नहीं हो पाती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माच्चैतानि सर्वाणि प्रजायन्ते विहङ्गम॥
सर्वेभ्यश्च स तेभ्यश्च प्रभवत्यमलो विभुः।
मूलम्
तस्माच्चैतानि सर्वाणि प्रजायन्ते विहङ्गम॥
सर्वेभ्यश्च स तेभ्यश्च प्रभवत्यमलो विभुः।
अनुवाद (हिन्दी)
विहंगम! उसी ब्रह्मसे ये सारी वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं। वह निर्मल एवं सर्वव्यापी परमात्मा उन सबके द्वारा ही सबको उत्पन्न करनेमें समर्थ है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थूलदर्शनमेतन्मे यद् दृष्टं भवतानघ॥
एतत् सूक्ष्मस्य च द्वारं कार्याणां कारणं त्वहम्।
मूलम्
स्थूलदर्शनमेतन्मे यद् दृष्टं भवतानघ॥
एतत् सूक्ष्मस्य च द्वारं कार्याणां कारणं त्वहम्।
अनुवाद (हिन्दी)
अनघ! तुमने जो मेरा यह स्थूल रूप देखा है, यही मेरे सूक्ष्म स्वरूपमें प्रवेश करनेका द्वार है। समस्त कार्योंका कारण मैं ही हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्टो वै भवता तस्मात् सरस्यमितविक्रम॥
मूलम्
दृष्टो वै भवता तस्मात् सरस्यमितविक्रम॥
अनुवाद (हिन्दी)
अमित पराक्रमी गरुड! इसीलिये तुमने उस सरोवरमें मेरा दर्शन किया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मां यज्ञमाहुर्यज्ञज्ञा वेदं वेदविदो जनाः।
मुनयश्चापि मामेव जपयज्ञं प्रचक्षते॥
मूलम्
मां यज्ञमाहुर्यज्ञज्ञा वेदं वेदविदो जनाः।
मुनयश्चापि मामेव जपयज्ञं प्रचक्षते॥
अनुवाद (हिन्दी)
यज्ञके ज्ञाता मुझे यज्ञ कहते हैं। वेदोंके विद्वान् मुझे ही वेद बताते हैं और मुनि भी मुझे ही जप-यज्ञ कहते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वक्ता मन्ता रसयिता घ्राता द्रष्टा प्रदर्शकः।
बोद्धा बोद्धयिता चाहं गन्ता श्रोता चिदात्मकः॥
मूलम्
वक्ता मन्ता रसयिता घ्राता द्रष्टा प्रदर्शकः।
बोद्धा बोद्धयिता चाहं गन्ता श्रोता चिदात्मकः॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं ही वक्ता, मनन करनेवाला, रस लेनेवाला, सूँघनेवाला, देखने और दिखानेवाला, समझने और समझानेवाला तथा जाने और सुननेवाला चेतन आत्मा हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मामिष्ट्वा स्वर्गमायान्ति तथा चाप्नुवते महत्।
ज्ञात्वा मामेव चैवं ते निःसङ्गेनान्तरात्मना॥
मूलम्
मामिष्ट्वा स्वर्गमायान्ति तथा चाप्नुवते महत्।
ज्ञात्वा मामेव चैवं ते निःसङ्गेनान्तरात्मना॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरा ही यजन करके यजमान स्वर्गमें आते और महान् पद पाते हैं। इसी प्रकार जो अनासक्त हृदयसे मुझे ही जान लेते हैं, वे मुझ परमात्माको ही प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहं तेजो द्विजातीनां मम तेजो द्विजातयः।
मम यस्तेजसा देहः सोऽग्निरित्यवगम्यताम्॥
मूलम्
अहं तेजो द्विजातीनां मम तेजो द्विजातयः।
मम यस्तेजसा देहः सोऽग्निरित्यवगम्यताम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं ब्राह्मणोंका तेज हूँ और ब्राह्मण मेरे तेज हैं। मेरे तेजसे जो शरीर प्रकट हुआ है, उसीको तुम अग्नि समझो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्राणपालः शरीरेऽहं योगिनामहमीश्वरः ।
सांख्यानामिदमेवाग्रे मयि सर्वमिदं जगत्॥
मूलम्
प्राणपालः शरीरेऽहं योगिनामहमीश्वरः ।
सांख्यानामिदमेवाग्रे मयि सर्वमिदं जगत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
मैं ही शरीरमें प्राणोंका रक्षक हूँ। मैं ही योगियोंका ईश्वर हूँ। सांख्योंका जो यह प्रधान तत्त्व है, वह भी मैं ही हूँ। मुझमें ही यह सम्पूर्ण जगत् स्थित है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्ममर्थं च कामं च मोक्षं चैवार्जवं जपम्।
तमः सत्त्वं रजश्चैव कर्मजं च भवाप्ययम्॥
मूलम्
धर्ममर्थं च कामं च मोक्षं चैवार्जवं जपम्।
तमः सत्त्वं रजश्चैव कर्मजं च भवाप्ययम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, सरलता, जप, सत्त्वगुण, तमोगुण, रजोगुण तथा कर्मजनित जन्म-मरण—सब मेरे ही स्वरूप हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तदाहं तथारूपस्त्वया दृष्टः सनातनः।
ततस्त्वहं परतरः शक्यः कालेन वेदितुम्॥
मम यत् परमं गुह्यो शाश्वतं ध्रुवमव्ययम्।
तदेवं परमो गुह्यो देवो नारायणो हरिः॥
मूलम्
स तदाहं तथारूपस्त्वया दृष्टः सनातनः।
ततस्त्वहं परतरः शक्यः कालेन वेदितुम्॥
मम यत् परमं गुह्यो शाश्वतं ध्रुवमव्ययम्।
तदेवं परमो गुह्यो देवो नारायणो हरिः॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय तुमने मुझ सनातन पुरुषका उस रूपमें दर्शन किया था। उससे भी उत्कृष्ट जो मेरा स्वरूप है, उसे तुम समयानुसार जान सकते हो। मेरा जो परम गोपनीय, शाश्वत, ध्रुव एवं अव्यय पद है, उसका ज्ञान भी तुम्हें समयानुसार हो सकता है। इस प्रकार मैं नारायणदेव एवं हरिनामसे प्रसिद्ध परमेश्वर परम गोपनीय माना गया हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न तच्छक्यं भुजङ्गारे वेत्तुमभ्युयान्वितैः।
निरारम्भनमस्कारा निराशीर्बन्धनास्तथा ॥
गच्छन्ति तं महात्मानं परं ब्रह्म सनातनम्।
मूलम्
न तच्छक्यं भुजङ्गारे वेत्तुमभ्युयान्वितैः।
निरारम्भनमस्कारा निराशीर्बन्धनास्तथा ॥
गच्छन्ति तं महात्मानं परं ब्रह्म सनातनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड! जो लौकिक अभ्युदयमें आसक्त हैं, वे मेरे उस स्वरूपको नहीं जान सकते। जो कर्मोंके आरम्भका मार्ग छोड़ चुके हैं, नमस्कारसे दूर हो गये हैं और कामनाओंके बन्धनसे मुक्त हैं, वे यतिजन उन सनातन परमात्मा परब्रह्मको प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थूलोऽहमेवं विहग त्वया दृष्टस्तथानघ॥
एतच्चापि न वेत्त्यन्यस्त्वामृते पन्नगाशन।
मूलम्
स्थूलोऽहमेवं विहग त्वया दृष्टस्तथानघ॥
एतच्चापि न वेत्त्यन्यस्त्वामृते पन्नगाशन।
अनुवाद (हिन्दी)
निष्पाप पक्षिराज गरुड! इस प्रकार तुमने मेरे स्थूल स्वरूपका दर्शन किया है। परंतु तुम्हारे सिवा दूसरा कोई इस स्वरूपको भी नहीं जानता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मा मतिस्तव गान्नाशमेषा गतिरनुत्तमा॥
मद्भक्तो भव नित्यं त्वं ततो वेत्स्यसि मे पदम्।
मूलम्
मा मतिस्तव गान्नाशमेषा गतिरनुत्तमा॥
मद्भक्तो भव नित्यं त्वं ततो वेत्स्यसि मे पदम्।
अनुवाद (हिन्दी)
तुम्हारी बुद्धिका नाश न हो—यही सर्वोत्तम गति है। तुम नित्य-निरन्तर मेरी भक्तिमें लगे रहो। इससे तुम्हें मेरे स्वरूपका यथार्थ बोध हो जायगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतत् ते सर्वमाख्यातं रहस्यं दिव्यमानुषम्॥
एतच्छ्रेयः परं चैतत् पन्थानं विद्धि मोक्षिणाम्।
मूलम्
एतत् ते सर्वमाख्यातं रहस्यं दिव्यमानुषम्॥
एतच्छ्रेयः परं चैतत् पन्थानं विद्धि मोक्षिणाम्।
अनुवाद (हिन्दी)
यह सब तुम्हें बताया गया। यह देवताओं और मनुष्योंके लिये भी रहस्यकी बात है। यही परम कल्याण है। तुम इसे मोक्षकी अभिलाषा रखनेवाले पुरुषोंका मार्ग समझो॥
मूलम् (वचनम्)
सुपर्ण उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत ॥
पश्यतो मे महायोगी जगामात्मगतिर्गतिम्।
मूलम्
एवमुक्त्वा स भगवांस्तत्रैवान्तरधीयत ॥
पश्यतो मे महायोगी जगामात्मगतिर्गतिम्।
अनुवाद (हिन्दी)
गरुड कहते हैं— ऋषियो! ऐसा कहकर वे भगवान् वहीं अन्तर्धान हो गये। वे महायोगी तथा आत्मगतिरूप परमेश्वर मेरे देखते-देखते अदृश्य हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतदेवंविधं तस्य महिमानं महात्मनः॥
अच्युतस्याप्रमेयस्य दृष्टवानस्मि यत् पुरा।
मूलम्
एतदेवंविधं तस्य महिमानं महात्मनः॥
अच्युतस्याप्रमेयस्य दृष्टवानस्मि यत् पुरा।
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार मैंने पूर्वकालमें अप्रमेय महात्मा अच्युतकी महिमाका साक्षात्कार किया था।
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतद् वः सर्वमाख्यातं चेष्टितं तस्य धीमतः॥
मयानुभूतं प्रत्यक्षं दृष्ट्वा चाद्भुतकर्मणः।
मूलम्
एतद् वः सर्वमाख्यातं चेष्टितं तस्य धीमतः॥
मयानुभूतं प्रत्यक्षं दृष्ट्वा चाद्भुतकर्मणः।
अनुवाद (हिन्दी)
अद्भुतकर्मा परम बुद्धिमान् भगवान् श्रीहरिकी यह सारी लीला जो मैंने प्रत्यक्ष देखकर अनुभव की है, आपको बता दी॥
मूलम् (वचनम्)
ऋषय ऊचुः
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहो श्रावितमाख्यानं भवतात्यद्भुतं महत्॥
पुण्यं यशस्यमायुष्यं स्वर्ग्यं स्वस्त्ययनं महत्।
मूलम्
अहो श्रावितमाख्यानं भवतात्यद्भुतं महत्॥
पुण्यं यशस्यमायुष्यं स्वर्ग्यं स्वस्त्ययनं महत्।
अनुवाद (हिन्दी)
ऋषियोंने कहा— अहो! आपने यह बड़ा अद्भुत एवं महत्त्वपूर्ण आख्यान सुनाया। यह परम पवित्र प्रसंग यश, आयु एवं स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाला तथा महान् मंगलकारी है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतत् पवित्रं देवानामेतद् गुह्यं परंतप॥
एतज्ज्ञानवतां ज्ञेयमेषा गतिरनुत्तमा ।
मूलम्
एतत् पवित्रं देवानामेतद् गुह्यं परंतप॥
एतज्ज्ञानवतां ज्ञेयमेषा गतिरनुत्तमा ।
अनुवाद (हिन्दी)
परंतप गरुडजी! यह पवित्र विषय देवताओंके लिये भी गुह्य रहस्य है। यही ज्ञानियोंका ज्ञेय है और यही सर्वोत्तम गति है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
य इमां श्रावयेद् विद्वान् कथां पर्वसु पर्वसु॥
स लोकान् प्राप्नुयात् पुण्यान् देवर्षिभिरभिष्टुतान्।
मूलम्
य इमां श्रावयेद् विद्वान् कथां पर्वसु पर्वसु॥
स लोकान् प्राप्नुयात् पुण्यान् देवर्षिभिरभिष्टुतान्।
अनुवाद (हिन्दी)
जो विद्वान् प्रत्येक पर्वके अवसरपर इस कथाको सुनायेगा वह देवर्षियोंद्वारा प्रशंसित पुण्य-लोकोंको प्राप्त होगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्राद्धकाले च विप्राणां य इमां श्रावयेच्छुचिः॥
न तत्र रक्षसां भागो नासुराणां च विद्यते।
मूलम्
श्राद्धकाले च विप्राणां य इमां श्रावयेच्छुचिः॥
न तत्र रक्षसां भागो नासुराणां च विद्यते।
अनुवाद (हिन्दी)
जो श्राद्धके समय पवित्रभावसे ब्राह्मणोंको यह प्रसंग सुनायेगा, उस श्राद्धमें राक्षसों और असुरोंको भाग नहीं मिलेगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनसूयुर्जितक्रोधः सर्वसत्त्वहिते रतः ॥
यः पठेत् सततं युक्तः स व्रजेत् तत्सलोकताम्।
मूलम्
अनसूयुर्जितक्रोधः सर्वसत्त्वहिते रतः ॥
यः पठेत् सततं युक्तः स व्रजेत् तत्सलोकताम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जो दोषदृष्टिसे रहित हो क्रोधको जीतकर समस्त प्राणियोंके हितमें तत्पर हो सदा योगयुक्त रहकर इसका पाठ करेगा वह भगवान् विष्णुके लोकमें जायगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेदान् पारयते विप्रो राजा विजयवान् भवेत्॥
वैश्यस्तु धनधान्याढ्यः शूद्रः सुखमवाप्नुयात्।
मूलम्
वेदान् पारयते विप्रो राजा विजयवान् भवेत्॥
वैश्यस्तु धनधान्याढ्यः शूद्रः सुखमवाप्नुयात्।
अनुवाद (हिन्दी)
इसका पाठ करनेवाला ब्राह्मण वेदोंका पारंगत विद्वान् होगा। क्षत्रियको इसका पाठ करनेसे युद्धमें विजयकी प्राप्ति होगी। वैश्य धन-धान्यसे सम्पन्न और शूद्र सुखी होगा॥
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्ते मुनयः सर्वे सम्पूज्य विनतासुतम्।
स्वानेव चाश्रमान् जग्मुर्बभूवुः शान्तितत्पराः॥
मूलम्
ततस्ते मुनयः सर्वे सम्पूज्य विनतासुतम्।
स्वानेव चाश्रमान् जग्मुर्बभूवुः शान्तितत्पराः॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजी कहते हैं— राजन्! तदनन्तर वे सम्पूर्ण महर्षि विनतानन्दन गरुडकी पूजा करके अपने-अपने आश्रमको चले गये और वहाँ शम-दमके साधनमें तत्पर हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थूलदर्शिभिराकृष्टो दुर्जेयो ह्यकृतात्मभिः ।
एषा श्रुतिर्महाराज धर्म्या धर्मभृतां वर॥
सुराणां ब्रह्मणा प्रोक्ता विस्मितानां परंतप।
मूलम्
स्थूलदर्शिभिराकृष्टो दुर्जेयो ह्यकृतात्मभिः ।
एषा श्रुतिर्महाराज धर्म्या धर्मभृतां वर॥
सुराणां ब्रह्मणा प्रोक्ता विस्मितानां परंतप।
अनुवाद (हिन्दी)
धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ महाराज युधिष्ठिर! जिनका मन अपने वशमें नहीं है, उन स्थूलदर्शी पुरुषोंके लिये भगवान् श्रीहरिके तत्त्वका ज्ञान होना अत्यन्त कठिन है। यह धर्मसम्मत श्रुति है। परंतप! इसे ब्रह्माजीने आश्चर्यचकित हुए देवताओंको सुनाया था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ममाप्येषा कथा तात कथिता मातुरन्तिके॥
वसुभिः सत्त्वसम्पन्नैः तवाप्येषा मयोच्यते।
मूलम्
ममाप्येषा कथा तात कथिता मातुरन्तिके॥
वसुभिः सत्त्वसम्पन्नैः तवाप्येषा मयोच्यते।
अनुवाद (हिन्दी)
तात! तत्त्वज्ञानी वसुओंने मेरी माता गंगाजीके निकट मुझसे यह कथा कही थी और अब तुमसे मैंने कही है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदग्निहोत्रपरमा जपयज्ञपरायणाः ॥
निराशीर्बन्धनाः सन्तः प्रयान्त्यक्षरसात्मताम् ।
मूलम्
तदग्निहोत्रपरमा जपयज्ञपरायणाः ॥
निराशीर्बन्धनाः सन्तः प्रयान्त्यक्षरसात्मताम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
जो अग्निहोत्रमें तत्पर, जप-यज्ञमें संलग्न तथा कामनाओंके बन्धनसे मुक्त होते हैं, वे अविनाशी परमात्माके स्वरूपको प्राप्त हो जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आरम्भयज्ञानुत्सृज्य जपहोमपरायणाः ।
ध्यायन्तो मनसा विष्णुं गच्छन्ति परमां गतिम्॥
मूलम्
आरम्भयज्ञानुत्सृज्य जपहोमपरायणाः ।
ध्यायन्तो मनसा विष्णुं गच्छन्ति परमां गतिम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो क्रियात्मक यज्ञोंका परित्याग करके जप और होममें तत्पर हो मन-ही-मन भगवान् विष्णुका ध्यान करते हैं वे परम गतिको प्राप्त होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदेव परमो मोक्षो मोक्षद्वारं च भारत।
यदा विनिश्चितात्मानो गच्छन्ति परमां गतिम्॥
मूलम्
तदेव परमो मोक्षो मोक्षद्वारं च भारत।
यदा विनिश्चितात्मानो गच्छन्ति परमां गतिम्॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! जब निश्चित बुद्धिवाले पुरुष परमात्म-तत्त्वको जानकर परम गतिको प्राप्त हो जाते हैं, वही परम मोक्ष या मोक्षद्वार कहलाता है॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि लोकयात्राकथने त्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें लोकयात्राके निर्वाहकी विधिका वर्णनविषयक तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१३॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके २०४ श्लोक मिलाकर कुल २१० श्लोक हैं)