२५५ शुकानुप्रश्ने

भागसूचना

पञ्चपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

पञ्चभूतोंके तथा मन और बुद्धिके गुणोंका विस्तृत वर्णन

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूतानां परिसंख्यानं भूयः पुत्र निशामय।
द्वैपायनमुखाद् भ्रष्टं श्लाघया परयानघ ॥ १ ॥

मूलम्

भूतानां परिसंख्यानं भूयः पुत्र निशामय।
द्वैपायनमुखाद् भ्रष्टं श्लाघया परयानघ ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजी कहते हैं— निष्पाप पुत्र युधिष्ठिर! द्वैपायन व्यासजीके मुखसे वर्णित जो पञ्चमहाभूतोंका निरूपण है, वह मैं पुनः तुम्हें बता रहा हूँ; तुम बड़ी स्पृहाके साथ इस विषयको सुनो॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीप्तानलनिभः प्राह भगवान् धूमवर्चसे।
ततोऽहमपि वक्ष्यामि भूयः पुत्र निदर्शनम् ॥ २ ॥

मूलम्

दीप्तानलनिभः प्राह भगवान् धूमवर्चसे।
ततोऽहमपि वक्ष्यामि भूयः पुत्र निदर्शनम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वत्स! प्रज्वलित अग्निके समान तेजस्वी भगवान् वेदव्यासने धूमाच्छादित अग्निके सदृश विराजमान अपने पुत्र शुकदेवके समक्ष पहले जिस प्रकार इस विषयका प्रतिपादन किया था, उसे मैं पुनः तुमसे कहूँगा। बेटा! तुम सुनिश्चित दर्शन-शास्त्रको श्रवण करो॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूमेः स्थैर्यं गुरुत्वं च काठिन्यं प्रसवार्थता।
गन्धो गुरुत्वं शक्तिश्च संघातः स्थापना धृतिः ॥ ३ ॥

मूलम्

भूमेः स्थैर्यं गुरुत्वं च काठिन्यं प्रसवार्थता।
गन्धो गुरुत्वं शक्तिश्च संघातः स्थापना धृतिः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

स्थिरता, भारीपन, कठिनता (कड़ापन), बीजको अंकुरित करनेकी शक्ति, गन्ध, विशालता, शक्ति, संघात, स्थापना और धारणशक्ति—ये दस पृथ्वीके गुण हैं॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपां शैत्यं रसः क्लेदो द्रवत्वं स्नेहसौम्यता।
जिह्वा विस्यन्दनं चापि भौमानां श्रपणं तथा ॥ ४ ॥

मूलम्

अपां शैत्यं रसः क्लेदो द्रवत्वं स्नेहसौम्यता।
जिह्वा विस्यन्दनं चापि भौमानां श्रपणं तथा ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शीतलता, रस, क्लेद (गलाना या गीला करना), द्रवत्व (पिघलना), स्नेह (चिकनाहट), सौम्यभाव, जिह्वा, टपकना, ओले या बर्फके रूपमें जम जाना तथा पृथ्वीसे उत्पन्न होनेवाले चावल-दाल आदिको गला देना—ये सब जलके गुण हैं॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अग्नेर्दुर्धर्षता ज्योतिस्तापः पाकः प्रकाशनम्।
शोको रागो लघुस्तैक्ष्णयं सततं चोर्ध्वभासिता ॥ ५ ॥

मूलम्

अग्नेर्दुर्धर्षता ज्योतिस्तापः पाकः प्रकाशनम्।
शोको रागो लघुस्तैक्ष्णयं सततं चोर्ध्वभासिता ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्धर्ष होना, जलना, ताप देना, पकाना, प्रकाश करना, शोक, राग, हलकापन, तीक्ष्णता और आगकी लपटोंका सदा ऊपरकी ओर उठना एवं प्रकाशित होना—ये सब अग्निके गुण हैं॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वायोरनियमस्पर्शो वादस्थानं स्वतन्त्रता ।
बलं शैघ्र्यं च मोक्षं च कर्म चेष्टाऽऽत्मता भवः॥६॥

मूलम्

वायोरनियमस्पर्शो वादस्थानं स्वतन्त्रता ।
बलं शैघ्र्यं च मोक्षं च कर्म चेष्टाऽऽत्मता भवः॥६॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनियत स्पर्श, वाक्-इन्द्रियकी स्थिति, चलने-फिरने आदिकी स्वतन्त्रता, बल, शीघ्रगामिता, मल-मूत्र आदिको शरीरसे बाहर निकालना, उत्क्षेपण आदि कर्म, क्रिया-शक्ति, प्राण और जन्म-मृत्यु—ये सब वायुके गुण हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आकाशस्य गुणः शब्दो व्यापित्वं च्छिद्रतापि च।
अनाश्रयमनालम्बमव्यक्तमविकारिता ॥ ७ ॥
अप्रतीघातिता चैव भूतत्वं विकृतानि च।
गुणाः पञ्चाशतं प्रोक्ताः पञ्चभूतात्मभाविताः ॥ ८ ॥

मूलम्

आकाशस्य गुणः शब्दो व्यापित्वं च्छिद्रतापि च।
अनाश्रयमनालम्बमव्यक्तमविकारिता ॥ ७ ॥
अप्रतीघातिता चैव भूतत्वं विकृतानि च।
गुणाः पञ्चाशतं प्रोक्ताः पञ्चभूतात्मभाविताः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शब्द, व्यापकता, छिद्र होना, किसी स्थूल पदार्थका आश्रय न होना, स्वयं किसी दूसरे आधारपर न रहना, अव्यक्तता, निर्विकारता, प्रतिघातशून्यता और भूतता अर्थात् श्रवणेन्द्रियका कारण होना और विकृतिसे युक्त होना—से सब आकाशके गुण हैं। इस प्रकार पञ्चमहाभूतोंके ये पचास गुण बताये गये हैं॥७-८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धैर्योपपत्तिर्व्यक्तिश्च विसर्गः कल्पना क्षमा।
सदसच्चाशुता चैव मनसो नव वै गुणाः ॥ ९ ॥

मूलम्

धैर्योपपत्तिर्व्यक्तिश्च विसर्गः कल्पना क्षमा।
सदसच्चाशुता चैव मनसो नव वै गुणाः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धैर्य, तर्क-वितर्कमें कुशलता, स्मरण, भ्रान्ति, कल्पना, क्षमा, शुभ एवं अशुभ संकल्प और चंचलता—ये मनके नौ गुण हैं॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इष्टानिष्टविपत्तिश्च व्यवसायः समाधिता ।
संशयः प्रतिपत्तिश्च बुद्धेः पञ्चगुणान् विदुः ॥ १० ॥

मूलम्

इष्टानिष्टविपत्तिश्च व्यवसायः समाधिता ।
संशयः प्रतिपत्तिश्च बुद्धेः पञ्चगुणान् विदुः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इष्ट और अनिष्ट वृत्तियोंका नाश, विचार, समाधान, संदेह और निश्चय—ये पाँच बुद्धिके गुण माने गये हैं॥१०॥

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं पञ्चगुणा बुद्धिः कथं पञ्चेन्द्रिया गुणाः।
एतन्मे सर्वमाचक्ष्व सूक्ष्मज्ञानं पितामह ॥ ११ ॥

मूलम्

कथं पञ्चगुणा बुद्धिः कथं पञ्चेन्द्रिया गुणाः।
एतन्मे सर्वमाचक्ष्व सूक्ष्मज्ञानं पितामह ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने पूछा— पितामह! बुद्धिके पाँच ही गुण कैसे हैं? तथा पाँच इन्द्रियाँ भी भूतोंके गुण कैसे हो सकती हैं? यह सारा सूक्ष्म ज्ञान आप मुझे बताइये॥११॥

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

आहुः षष्टिं बुद्धिगुणान् वै
भूतविशिष्टा नित्यविषक्ताः ।
भूतविभूतीश्चाक्षरसृष्टाः
पुत्र न नित्यं तदिह वदन्ति ॥ १२ ॥

मूलम्

आहुः षष्टिं बुद्धिगुणान् वै
भूतविशिष्टा नित्यविषक्ताः ।
भूतविभूतीश्चाक्षरसृष्टाः
पुत्र न नित्यं तदिह वदन्ति ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजीने कहा— वत्स युधिष्ठिर! महर्षियोंका कहना है कि बुद्धिके साठ गुण हैं; अर्थात् पाँचों भूतोंके पूर्वाक्त पचास गुण तथा बुद्धिके पाँच गुण मिलकर पचपन हुए। इनमें पञ्चभूतोंको भी बुद्धिके गुणरूपसे गिन लेनेपर वे साठ हो जाते हैं। ये सभी गुण नित्य चैतन्यसे मिले हुए हैं। पञ्चमहाभूत और उनकी विभूतियाँ अविनाशी परमात्माकी सृष्टि हैं; परंतु परिवर्तनशील होनेके कारण उसे तत्त्वज्ञ पुरुष नित्य नहीं बताते हैं॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत् पुत्र चिन्ताकलिलं तदुक्त-
मनागतं वै तव सम्प्रतीह।
भूतार्थतत्त्वं तदवाप्य सर्वं
भूतप्रभावाद् भव शान्तबुद्धिः ॥ १३ ॥

मूलम्

तत् पुत्र चिन्ताकलिलं तदुक्त-
मनागतं वै तव सम्प्रतीह।
भूतार्थतत्त्वं तदवाप्य सर्वं
भूतप्रभावाद् भव शान्तबुद्धिः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वत्स युधिष्ठिर! अन्य वक्ताओंने जगत्‌की उत्पत्तिके विषयमें पहले जो कुछ कहा है, वह सब वेदविरुद्ध और विचार-दूषित है; अतः इस समय तुम नित्यसिद्ध परमात्माका यथार्थ तत्त्व सुनकर उन्हीं परमेश्वरके प्रभाव एवं प्रसादसे शान्तबुद्धि हो जाओ॥१३॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि शुकानुप्रश्ने पञ्चपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २५५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वके अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्वमें शुकदेवका अनुप्रश्नविषयक दो सौ पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२५५॥