११० दुर्गातितरणम्

भागसूचना

दशाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

सदाचार और ईश्वरभक्ति आदिको दुःखोंसे छूटनेका उपाय बताना

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्लिश्यमानेषु भूतेषु तैस्तैर्भावैस्ततस्ततः ।
दुर्गाण्यतितरेद् येन तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥

मूलम्

क्लिश्यमानेषु भूतेषु तैस्तैर्भावैस्ततस्ततः ।
दुर्गाण्यतितरेद् येन तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने पूछा— पितामह! जगत्‌के जीव भिन्न-भिन्न भावोंके द्वारा जहाँ-तहाँ नाना प्रकारके कष्ट उठा रहे हैं; अतः जिस उपायसे मनुष्य इन दुःखोंसे छुटकारा पा सके, वह मुझे बताइये॥१॥

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

आश्रमेषु यथोक्तेषु यथोक्तं ये द्विजातयः।
वर्तन्ते संयतात्मानो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २ ॥

मूलम्

आश्रमेषु यथोक्तेषु यथोक्तं ये द्विजातयः।
वर्तन्ते संयतात्मानो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजीने कहा— ‘राजन् जो द्विज अपने मनको वशमें करके शास्त्रोक्त चारों आश्रमोंमें रहते हुए उनके अनुसार ठीक-ठीक बर्ताव करते हैं, वे दुःखोंके पार हो जाते हैं॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये दम्भान्नाचरन्ति स्म येषां वृत्तिश्च संयता।
विषयांश्च निगृह्णन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ३ ॥

मूलम्

ये दम्भान्नाचरन्ति स्म येषां वृत्तिश्च संयता।
विषयांश्च निगृह्णन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दम्भयुक्त आचरण नहीं करते, जिनकी जीविका नियमानुकूल चलती है और जो विषयोंके लिये बढ़ती हुई इच्छाको रोकते हैं, वे दुःखोंको लाँघ जाते हैं॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्याहुर्नोच्यमाना ये न हिंसन्ति च हिंसिताः।
प्रयच्छन्ति न याचन्ते दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ४ ॥

मूलम्

प्रत्याहुर्नोच्यमाना ये न हिंसन्ति च हिंसिताः।
प्रयच्छन्ति न याचन्ते दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरोंके कटु वचन सुनाने या निन्दा करनेपर भी स्वयं उन्हें उत्तर नहीं देते, मार खाकर भी किसीको मारते नहीं तथा स्वयं देते हैं, परंतु दूसरोंसे माँगते नहीं; वे भी दुर्गम संकटसे पार हो जाते हैं॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वासयन्त्यतिथीन् नित्यं नित्यं ये चानसूयकाः।
नित्यं स्वाध्यायशीलाश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ५ ॥

मूलम्

वासयन्त्यतिथीन् नित्यं नित्यं ये चानसूयकाः।
नित्यं स्वाध्यायशीलाश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन अतिथियोंको अपने घरमें सत्कारपूर्वक ठहराते हैं, कभी किसीके दोष नहीं देखते हैं तथा नित्य नियमपूर्वक वेदादि सद्ग्रन्थोंका स्वाध्याय करते रहते हैं, वे दुर्गम संकटोंसे पार हो जाते हैं॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मातापित्रोश्च ये वृत्तिं वर्तन्ते धर्मकोविदाः।
वर्जयन्ति दिवा स्वप्नं दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ६ ॥

मूलम्

मातापित्रोश्च ये वृत्तिं वर्तन्ते धर्मकोविदाः।
वर्जयन्ति दिवा स्वप्नं दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो धर्मज्ञ पुरुष सदा माता-पिताकी सेवामें लगे रहते हैं और दिनमें कभी सोते नहीं हैं, वे सभी दुःखोंसे छूट जाते हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये वा पापं न कुर्वन्ति कर्मणा मनसा गिरा।
निक्षिप्तदण्डा भूतेषु दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ७ ॥

मूलम्

ये वा पापं न कुर्वन्ति कर्मणा मनसा गिरा।
निक्षिप्तदण्डा भूतेषु दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मन, वाणी और क्रियाद्वारा कभी पाप नहीं करते हैं और किसी भी प्राणीको कष्ट नहीं पहुँचाते हैं, वे भी संकट से पार हो जाते हैं॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये न लोभान्नयन्त्यर्थान् राजानो रजसान्विताः।
विषयान् परिरक्षन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ८ ॥

मूलम्

ये न लोभान्नयन्त्यर्थान् राजानो रजसान्विताः।
विषयान् परिरक्षन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो रजोगुणसम्पन्न राजा लोभवश प्रजाके धनका अपहरण नहीं करते हैं और अपने राज्यकी सब ओरसे रक्षा करते हैं, वे भी दुर्गम दुःखोंको लाँघ जाते हैं॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वेषु दारेषु वर्तन्ते न्यायवृत्तिमृतावृतौ।
अग्निहोत्रपराः सन्तो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ९ ॥

मूलम्

स्वेषु दारेषु वर्तन्ते न्यायवृत्तिमृतावृतौ।
अग्निहोत्रपराः सन्तो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो गृहस्थ प्रतिदिन अग्निहोत्र करते और ऋतुकालमें अपनी ही स्त्रीके साथ धर्मानुकूल समागम करते हैं, वे दुःखोंसे छूट जाते हैं॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आहवेषु च ये शूरास्त्यक्त्वा मरणजं भयम्।
धर्मेण जयमिच्छन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १० ॥

मूलम्

आहवेषु च ये शूरास्त्यक्त्वा मरणजं भयम्।
धर्मेण जयमिच्छन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो शूरवीर युद्धस्थलमें मृत्युका भय छोड़कर धर्मपूर्वक विजय पाना चाहते हैं, वे सभी दुःखोंसे पार हो जाते हैं॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते।
प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ११ ॥

मूलम्

ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते।
प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग प्राण जानेका अवसर उपस्थित होनेपर भी सत्य बोलना नहीं छोड़ते, वे सम्पूर्ण प्राणियोंके विश्वासपात्र बने रहकर सभी दुःखोंसे पार हो जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्माण्यकुहकार्थानि येषां वाचश्च सूनृताः।
येषामर्थाश्च सम्बद्धा दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १२ ॥

मूलम्

कर्माण्यकुहकार्थानि येषां वाचश्च सूनृताः।
येषामर्थाश्च सम्बद्धा दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके शुभ कर्म दिखावेके लिये नहीं होते, जो सदा मीठे वचन बोलते और जिनका धन सत्कर्मोंके लिये बँधा हुआ है, वे दुर्गम संकटोंसे पार हो जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनध्यायेषु ये विप्राः स्वाध्यायं नेह कुर्वते।
तपोनिष्ठाः सुतपसो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १३ ॥

मूलम्

अनध्यायेषु ये विप्राः स्वाध्यायं नेह कुर्वते।
तपोनिष्ठाः सुतपसो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो अनध्यायके अवसरोंपर वेदोंका स्वाध्याय नहीं करते और तपस्यामें ही लगे रहते हैं, वे उत्तम तपस्वी ब्राह्मण दुस्तर विपत्तिसे छुटकारा पा जाते हैं॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये तपश्च तपस्यन्ति कौमारब्रह्मचारिणः।
विद्यावेदव्रतस्नाता दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १४ ॥

मूलम्

ये तपश्च तपस्यन्ति कौमारब्रह्मचारिणः।
विद्यावेदव्रतस्नाता दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो तपस्या करते, कुमारावस्थासे ही ब्रह्मचर्यके पालनमें तत्पर रहते और विद्या एवं वेदोंके अध्ययन-सम्बन्धी व्रतको पूर्ण करके स्नातक हो चुके हैं, वे दुस्तर दुःखोंको तर जाते है॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये च संशान्तरजसः संशान्ततमसश्च ये।
सत्त्वे स्थिता महात्मानो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १५ ॥

मूलम्

ये च संशान्तरजसः संशान्ततमसश्च ये।
सत्त्वे स्थिता महात्मानो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके रजोगुण और तमोगुण शान्त हो गये हों तथा जो विशुद्ध सत्त्वगुणमें स्थित हैं, वे महात्मा दुर्लंघ्य संकटोंको भी लाँघ जाते हैं॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येषां न कश्चित् त्रसति न त्रसन्ति हि कस्यचित्।
येषामात्मसमो लोको दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १६ ॥

मूलम्

येषां न कश्चित् त्रसति न त्रसन्ति हि कस्यचित्।
येषामात्मसमो लोको दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनसे कोई भयभीत नहीं होता, जो स्वयं भी किसीसे भय नहीं मानते तथा जिनकी दृष्टिमें यह सारा जगत् अपने आत्माके ही तुल्य है, वे दुस्तर संकटोंसे तर जाते हैं॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परश्रिया न तप्यन्ति ये सन्तः पुरुषर्षभाः।
ग्राम्यादर्थान्निवृत्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १७ ॥

मूलम्

परश्रिया न तप्यन्ति ये सन्तः पुरुषर्षभाः।
ग्राम्यादर्थान्निवृत्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरोंकी सम्पत्तिसे ईर्ष्यावश जलते नहीं हैं और ग्राम्य विषय-भोगसे निवृत्त हो गये हैं, वे मनुष्योंमें श्रेष्ठ साधु पुरुष दुस्तर विपत्तिसे छुटकारा पा जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वान् देवान् नमस्यन्ति सर्वधर्मांश्च शृण्वते।
ये श्रद्दधानाः शान्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १८ ॥

मूलम्

सर्वान् देवान् नमस्यन्ति सर्वधर्मांश्च शृण्वते।
ये श्रद्दधानाः शान्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो सब देवताओंको प्रणाम करते और सभी धर्मोंको सुनते हैं, जिनमें श्रद्धा और शान्ति विद्यमान है, वे सम्पूर्ण दुःखोंसे पार हो जाते हैं॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये न मानित्वमिच्छन्ति मानयन्ति च ये परान्।
मान्यमानान् नमस्यन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १९ ॥

मूलम्

ये न मानित्वमिच्छन्ति मानयन्ति च ये परान्।
मान्यमानान् नमस्यन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो दूसरोंसे सम्मान नहीं चाहते, जो स्वयं ही दूसरोंको सम्मान देते हैं और सम्माननीय पुरुषोंको नमस्कार करते हैं, वे दुर्लंघ्य संकटोंसे पार हो जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये च श्राद्धानि कुर्वन्ति तिथ्यां तिथ्यां प्रजार्थिनः।
सुविशुद्धेन मनसा दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २० ॥

मूलम्

ये च श्राद्धानि कुर्वन्ति तिथ्यां तिथ्यां प्रजार्थिनः।
सुविशुद्धेन मनसा दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो संतानकी इच्छा रखकर प्रत्येक तिथिपर विशुद्ध हृदयसे पितरोंका श्राद्ध करते हैं, वे दुर्गम विपत्तिसे छुटकारा पा जाते हैं॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये क्रोधं संनियच्छन्ति क्रुद्धान्संशमयन्ति च।
न च कुप्यन्ति भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २१ ॥

मूलम्

ये क्रोधं संनियच्छन्ति क्रुद्धान्संशमयन्ति च।
न च कुप्यन्ति भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो क्रोधको काबूमें रखते हैं, क्रोधी मनुष्योंको शान्त करते और स्वयं किसी भी प्राणीपर कुपित नहीं होते हैं, वे दुर्लंघ्य संकटोंसे पार हो जाते हैं॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मधु मांसं च ये नित्यं वर्जयन्तीह मानवाः।
जन्मप्रभृति मद्यं च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २२ ॥

मूलम्

मधु मांसं च ये नित्यं वर्जयन्तीह मानवाः।
जन्मप्रभृति मद्यं च दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो मानव जन्मसे ही सदाके लिये मधु, मांस और मदिराका त्याग कर देते हैं, वे भी दुस्तर दुःखोंसे छूट जाते हैं॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यात्रार्थं भोजनं येषां संतानार्थं च मैथुनम्।
वाक् सत्यवचनार्थाय दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २३ ॥

मूलम्

यात्रार्थं भोजनं येषां संतानार्थं च मैथुनम्।
वाक् सत्यवचनार्थाय दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनका भोजन स्वादके लिये नहीं, जीवनयात्राका निर्वाह करनेके लिये होता है, जो विषयवासनाकी तृप्तिके लिये नहीं, संतानकी इच्छासे मैथुनमें प्रवृत्त होते हैं तथा जिनकी वाणी केवल सत्य बोलनेके लिये है, वे समस्त संकटोंसे पार हो जाते हैं॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ईश्वरं सर्वभूतानां जगतः प्रभवाप्ययम्।
भक्ता नारायणं देवं दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २४ ॥

मूलम्

ईश्वरं सर्वभूतानां जगतः प्रभवाप्ययम्।
भक्ता नारायणं देवं दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो समस्त प्राणियोंके स्वामी तथा जगत्‌की उत्पत्ति और प्रलयके हेतुभूत भगवान् नारायणमें भक्तिभाव रखते हैं, वे दुस्तर दुःखोंसे तर जाते हैं॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

य एष पद्‌मरक्ताक्षः पीतवासा महाभुजः।
सुहृद् भ्राता च मित्रं च सम्बन्धी च तथाच्युतः॥२५॥

मूलम्

य एष पद्‌मरक्ताक्षः पीतवासा महाभुजः।
सुहृद् भ्राता च मित्रं च सम्बन्धी च तथाच्युतः॥२५॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिर! ये जो कमल पुष्पके समान कुछ-कुछ लाल रंगके नेत्रोंसे सुशोभित पीताम्बरधारी महाबाहु श्रीकृष्ण हैं, जो तुम्हारे सुहृद् भाई, मित्र और सम्बन्धी भी हैं, यही साक्षात् नारायण हैं॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

य इमान् सकलाल्लोँकांश्चर्मवत् परिवेष्टयेत्।
इच्छन् प्रभुरचिन्त्यात्मा गोविन्दः पुरुषोत्तमः ॥ २६ ॥

मूलम्

य इमान् सकलाल्लोँकांश्चर्मवत् परिवेष्टयेत्।
इच्छन् प्रभुरचिन्त्यात्मा गोविन्दः पुरुषोत्तमः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनका स्वरूप अचिन्त्य है। ये पुरुषोत्तम भगवान् गोविन्द इन सम्पूर्ण लोकोंको इच्छापूर्वक चमड़ेकी भाँति आच्छादित किये हुए हैं॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्थितः प्रियहिते जिष्णोः स एष पुरुषोत्तमः।
राजंस्तव च दुर्धर्षो वैकुण्ठः पुरुषर्षभ ॥ २७ ॥

मूलम्

स्थितः प्रियहिते जिष्णोः स एष पुरुषोत्तमः।
राजंस्तव च दुर्धर्षो वैकुण्ठः पुरुषर्षभ ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरुषप्रवर युधिष्ठिर! वे ही ये दुर्धर्ष वीर पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण साक्षात् वैकुण्ठधामके निवासी श्रीविष्णु हैं। राजन्! ये इस समय तुम्हारे और अर्जुनके प्रिय तथा हितसाधनमें संलग्न हैं॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

य एनं संश्रयन्तीह भक्ता नारायणं हरिम्।
ते तरन्तीह दुर्गाणि न चात्रास्ति विचारणा ॥ २८ ॥

मूलम्

य एनं संश्रयन्तीह भक्ता नारायणं हरिम्।
ते तरन्तीह दुर्गाणि न चात्रास्ति विचारणा ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो भक्त पुरुष यहाँ इन भगवान् श्रीहरि—नारायण देवकी शरण लेते हैं, वे दुस्तर संकटोंसे तर जाते हैं। इस विषयमें कोई संशय नहीं है॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(अस्मिन्नर्पितकर्माणः सर्वभावेन भारत ।
कृष्णे कमलपत्राक्षे दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥

मूलम्

(अस्मिन्नर्पितकर्माणः सर्वभावेन भारत ।
कृष्णे कमलपत्राक्षे दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! जो इन कमलनयन श्रीकृष्णको सम्पूर्ण भक्तिभावसे अपने सारे कर्म समर्पित कर देते हैं, वे दुर्गम संकटोंको लाँघ जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रह्माणं लोककर्तारं ये नमस्यन्ति सत्पतिम्।
यष्टव्यं क्रतुभिर्देवं दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥

मूलम्

ब्रह्माणं लोककर्तारं ये नमस्यन्ति सत्पतिम्।
यष्टव्यं क्रतुभिर्देवं दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो यज्ञोंद्वारा आराधनाके योग्य हैं, उन साधुप्रतिपालक विश्वविधाता भगवान् ब्रह्माको जो नमस्कार करते हैं, वे समस्त दुःखोंसे छुटकारा पा जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यं विष्णुरिन्द्रः शम्भुश्च ब्रह्मा लोकपितामहः।
स्तुवन्ति विविधैः स्तोत्रैर्देवदेवं महेश्वरम्॥
तमर्चयन्ति ये शश्वद् दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥)

मूलम्

यं विष्णुरिन्द्रः शम्भुश्च ब्रह्मा लोकपितामहः।
स्तुवन्ति विविधैः स्तोत्रैर्देवदेवं महेश्वरम्॥
तमर्चयन्ति ये शश्वद् दुर्गाण्यतितरन्ति ते॥)

अनुवाद (हिन्दी)

विष्णु, इन्द्र, शिव तथा लोकपितामह ब्रह्मा नाना प्रकारके स्तोत्रोंद्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, उन देवाधिदेव परमेश्वरकी जो सदा आराधना करते हैं, वे दुर्गम संकटोंसे पार हो जाते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्गातितरणं ये च पठन्ति श्रावयन्ति च।
कथयन्ति च विप्रेभ्यो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २९ ॥

मूलम्

दुर्गातितरणं ये च पठन्ति श्रावयन्ति च।
कथयन्ति च विप्रेभ्यो दुर्गाण्यतितरन्ति ते ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग इस दुर्गातितरण नामक अध्यायको पढ़ते और सुनते हैं तथा ब्राह्मणोंके सामने इसकी चर्चा करते हैं, वे दुर्गम संकटोंसे पार हो जाते हैं॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति कृत्यसमुद्देशः कीर्तितस्ते मयानघ।
तरन्ते येन दुर्गाणि परत्रेह च मानवाः ॥ ३० ॥

मूलम्

इति कृत्यसमुद्देशः कीर्तितस्ते मयानघ।
तरन्ते येन दुर्गाणि परत्रेह च मानवाः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

निष्पाप युधिष्ठिर! इस प्रकार मैंने यहाँ संक्षेपसे उस कर्तव्यका प्रतिपादन किया है, जिसका पालन करनेसे मनुष्य इहलोक और परलोकमें समस्त दुःखोंसे छुटकारा पा जाते हैं॥३०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मानुशासनपर्वणि दुर्गातितरणं नाम दशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११० ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वके अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्वमें दुर्गातितरण नामक एक सौ दसवाँ अध्याय पूरा हआ॥११०॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ३ श्लोक मिलाकर कुल ३३ श्लोक हैं)