०७६

भागसूचना

षट्‌सप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

उत्तम-अधम ब्राह्मणोंके साथ राजाका बर्ताव

मूलम् (वचनम्)

युधिष्ठिर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वकर्मण्यपरे युक्तास्तथैवान्ये विकर्मणि ।
तेषां विशेषमाचक्ष्व ब्राह्मणानां पितामह ॥ १ ॥

मूलम्

स्वकर्मण्यपरे युक्तास्तथैवान्ये विकर्मणि ।
तेषां विशेषमाचक्ष्व ब्राह्मणानां पितामह ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युधिष्ठिरने पूछा— पितामह! कुछ ब्राह्मण अपने वर्णोचित कर्मोंमें लगे रहते हैं तथा दूसरे बहुत-से ब्राह्मण अपने वर्णके विपरीत कर्ममें प्रवृत्त हो जाते हैं। उन सभी ब्राह्मणोंमें क्या अन्तर है? यह मुझे बताइये॥१॥

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

विद्यालक्षणसम्पन्नाः सर्वत्र समदर्शिनः ।
एते ब्रह्मसमा राजन् ब्राह्मणाः परिकीर्तिताः ॥ २ ॥

मूलम्

विद्यालक्षणसम्पन्नाः सर्वत्र समदर्शिनः ।
एते ब्रह्मसमा राजन् ब्राह्मणाः परिकीर्तिताः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजीने कहा— राजन्! जो विद्वान् उत्तम लक्षणोंसे सम्पन्न तथा सर्वत्र समान दृष्टि रखनेवाले हैं, ऐसे ब्राह्मण ब्रह्माजीके समान कहे गये हैं॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऋग्यजुःसामसम्पन्नाः स्वेषु कर्मस्ववस्थिताः ।
एते देवसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ३ ॥

मूलम्

ऋग्यजुःसामसम्पन्नाः स्वेषु कर्मस्ववस्थिताः ।
एते देवसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! जो ऋग्, यजुः और सामवेदका अध्ययन करके अपने वर्णोचित कर्मोंमें लगे हुए हैं, वे ब्राह्मणोंमें देवताके समान समझे जाते हैं॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जन्मकर्मविहीना ये कदर्या ब्रह्मबन्धवः।
एते शूद्रसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ४ ॥

मूलम्

जन्मकर्मविहीना ये कदर्या ब्रह्मबन्धवः।
एते शूद्रसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जो अपने जातीय कर्मसे हीन हो कुत्सित कर्मोंमें लगकर ब्राह्मणत्वसे भ्रष्ट हो चुके हैं, ऐसे लोग ब्राह्मणोंमें शूद्रके तुल्य होते हैं॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्रोत्रियाः सर्व एव सर्वे चानाहिताग्नयः।
तान् सर्वान् धार्मिको राजा बलिं विष्टिं च कारयेत्॥५॥

मूलम्

अश्रोत्रियाः सर्व एव सर्वे चानाहिताग्नयः।
तान् सर्वान् धार्मिको राजा बलिं विष्टिं च कारयेत्॥५॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो ब्राह्मण वेदशास्त्रोंके ज्ञानसे शून्य हैं तथा जो अग्निहोत्र नहीं करते हैं, वे सभी शूद्रतुल्य हैं। धर्मात्मा राजाको चाहिये कि इन सब लोगोंसे कर ले और बेगार करावे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आह्वायका देवलका नाक्षत्रा ग्रामयाजकाः।
एते ब्राह्मणचाण्डाला महापथिकपञ्चमाः ॥ ६ ॥

मूलम्

आह्वायका देवलका नाक्षत्रा ग्रामयाजकाः।
एते ब्राह्मणचाण्डाला महापथिकपञ्चमाः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

न्यायालयमें या कहीं भी लोगोंको बुलाकर लानेका काम करनेवाले, वेतन लेकर देवमन्दिरमें पूजा करनेवाले, नक्षत्र-विद्याद्वारा जीविका चलानेवाले, ग्रामपुरोहित तथा पाँचवें महापथिक (दूर देशके यात्री या समुद्र—यात्रा करनेवाले) ब्राह्मण चाण्डालके तुल्य माने जाते हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(म्लेच्छदेशास्तु ये केचित् पापैरध्युषिता नरैः।
गत्वा तु ब्राह्मणस्तांश्च चाण्डालः प्रेत्य चेह च॥

मूलम्

(म्लेच्छदेशास्तु ये केचित् पापैरध्युषिता नरैः।
गत्वा तु ब्राह्मणस्तांश्च चाण्डालः प्रेत्य चेह च॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो कोई म्लेच्छ देश हैं और जहाँ पापी मनुष्य निवास करते हैं, वहाँ जाकर ब्राह्मण इहलोकमें चाण्डालके तुल्य हो जाता है, और मृत्युके बाद अधोगतिको प्राप्त होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्रात्यान् म्लेच्छांश्च शूद्रांश्च याजयित्वा द्विजाधमः।
अकीर्तिमिह सम्प्राप्य नरकं प्रतिपद्यते॥

मूलम्

व्रात्यान् म्लेच्छांश्च शूद्रांश्च याजयित्वा द्विजाधमः।
अकीर्तिमिह सम्प्राप्य नरकं प्रतिपद्यते॥

अनुवाद (हिन्दी)

संस्कारभ्रष्ट, म्लेच्छ तथा शूद्रोंका यज्ञ कराकर पतित हुआ अधम ब्राह्मण इस संसारमें अपयश पाता और मरनेके बाद नरकमें गिरता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्राह्मणो ऋग्यजुःसाम्नां मूढः कृत्वा तु विप्लवम्।
कल्पमेकं कृमिःसोऽथ नानाविष्ठासु जायते॥)

मूलम्

ब्राह्मणो ऋग्यजुःसाम्नां मूढः कृत्वा तु विप्लवम्।
कल्पमेकं कृमिःसोऽथ नानाविष्ठासु जायते॥)

अनुवाद (हिन्दी)

जो मूर्ख ब्राह्मण ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदके मन्त्रोंका विप्लव करता है, वह एक कल्पतक नाना प्राणियोंकी विष्ठाओंका कीड़ा होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऋत्विक् पुरोहितो मन्त्री दूतो वार्तानुकर्षकः।
एते क्षत्रसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ७ ॥

मूलम्

ऋत्विक् पुरोहितो मन्त्री दूतो वार्तानुकर्षकः।
एते क्षत्रसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! ब्राह्मणोंमेंसे जो ऋत्विज्, राजपुरोहित, मन्त्री, राजदूत अथवा संदेशवाहक हों, वे क्षत्रियके समान माने जाते हैं॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वारोहा गजारोहा रथिनोऽथ पदातयः।
एते वैश्यसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ८ ॥

मूलम्

अश्वारोहा गजारोहा रथिनोऽथ पदातयः।
एते वैश्यसमा राजन् ब्राह्मणानां भवन्त्युत ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! घुड़सवार, हाथीसवार, रथी और पैदल सिपाहीका काम करनेवाले ब्राह्मणोंको वैश्यके समान समझा जाता है॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतेभ्यो बलिमादद्याद्धीनकोशो महीपतिः ।
ऋते ब्रह्मसमेभ्यश्च देवकल्पेभ्य एव च ॥ ९ ॥

मूलम्

एतेभ्यो बलिमादद्याद्धीनकोशो महीपतिः ।
ऋते ब्रह्मसमेभ्यश्च देवकल्पेभ्य एव च ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि राजाके खजानेमें कमी हो तो वह इन ब्राह्मणोंसे कर ले सकता है। केवल उन ब्राह्मणोंसे, जो ब्रह्माजी तथा देवताओंके समान बताये गये हैं, कर नहीं लेना चाहिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अब्राह्मणानां वित्तस्य स्वामी राजेति वैदिकम्।
ब्राह्मणानां च ये केचिद् विकर्मस्था भवन्त्युत ॥ १० ॥

मूलम्

अब्राह्मणानां वित्तस्य स्वामी राजेति वैदिकम्।
ब्राह्मणानां च ये केचिद् विकर्मस्था भवन्त्युत ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा ब्राह्मणके सिवा अन्य सब वर्णोंके धनका स्वामी होता है, यही वैदिक सिद्धान्त है। ब्राह्मणोंमेंसे जो कोई अपने वर्णके विपरीत कर्म करनेवाले हैं, उनके धनपर भी राजाका ही अधिकार है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विकर्मस्थाश्च नोपेक्ष्या विप्रा राज्ञा कथंचन।
नियम्याः संविभज्याश्च धर्मानुग्रहकारणात् ॥ ११ ॥

मूलम्

विकर्मस्थाश्च नोपेक्ष्या विप्रा राज्ञा कथंचन।
नियम्याः संविभज्याश्च धर्मानुग्रहकारणात् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजाको कर्मभ्रष्ट ब्राह्मणोंकी किसी प्रकार उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। बल्कि धर्मपर अनुग्रह करनेके लिये उन्हें दण्ड देना और श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी श्रेणीसे अलग कर देना चाहिये॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्य स्म विषये राजन् स्तेनो भवति वै द्विजः।
राज्ञ एवापराधं तं मन्यन्ते तद्विदो जनाः ॥ १२ ॥

मूलम्

यस्य स्म विषये राजन् स्तेनो भवति वै द्विजः।
राज्ञ एवापराधं तं मन्यन्ते तद्विदो जनाः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जिस किसी भी राजाके राज्यमें यदि ब्राह्मण चोर बन जाता है तो उसकी इस परिस्थितिके लिये जानकार लोग उस राजाका ही अपराध ठहराते हैं॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवृत्त्या यो भवेत् स्तेनो वेदवित् स्नातकस्तथा।
राजन् स राज्ञा भर्तव्य इति वेदविदो विदुः ॥ १३ ॥

मूलम्

अवृत्त्या यो भवेत् स्तेनो वेदवित् स्नातकस्तथा।
राजन् स राज्ञा भर्तव्य इति वेदविदो विदुः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! यदि कोई वेदवेत्ता अथवा स्नातक ब्राह्मण जीविकाके अभावमें चोरी करता हो तो राजाको उचित है कि उसके भरण-पोषणकी व्यवस्था करे; यह वेदवेत्ताओंका मत है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स चेन्नो परिवर्तेत कृतवृत्तिः परंतप।
ततो निर्वासनीयः स्यात् तस्माद् देशात् सबान्धवः ॥ १४ ॥

मूलम्

स चेन्नो परिवर्तेत कृतवृत्तिः परंतप।
ततो निर्वासनीयः स्यात् तस्माद् देशात् सबान्धवः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतप! यदि जीविकाका प्रबन्ध कर देनेपर भी उस ब्राह्मणमें कोई परिवर्तन न हो—वह पूर्ववत् चोरी करता ही रह जाय तो उसे बन्धु-बान्धवोंसहित उस देशसे निर्वासित कर देना चाहिये॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(यज्ञः श्रुतमपैशुन्यमहिंसातिथिपूजनम् ।
दमः सत्यं तपो दानमेतद् ब्राह्मणलक्षणम्॥)

मूलम्

(यज्ञः श्रुतमपैशुन्यमहिंसातिथिपूजनम् ।
दमः सत्यं तपो दानमेतद् ब्राह्मणलक्षणम्॥)

अनुवाद (हिन्दी)

यज्ञ, वेदोंका अध्ययन, किसीकी चुगली न करना, किसी भी प्राणीको मन, वाणी और कियाद्वारा क्लेश न पहुँचाना, अतिथियोंका पूजन करना, इन्द्रियोंको संयममें रखना, सच बोलना, तप करना और दान देना, यह सब ब्राह्मणका लक्षण है॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मानुशासनपर्वणि षट्‌सप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वके अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्वमें छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७६॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ४ श्लोक मिलाकर कुल १८ श्लोक हैं)