भागसूचना
द्विचत्वारिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
राजा युधिष्ठिर तथा धृतराष्ट्रका युद्धमें मारे गये सगे-सम्बन्धियों तथा अन्य राजाओंके लिये श्राद्धकर्म करना
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो युधिष्ठिरो राजा ज्ञातीनां ये हता युधि।
श्राद्धानि कारयामास तेषां पृथगुदारधीः ॥ १ ॥
मूलम्
ततो युधिष्ठिरो राजा ज्ञातीनां ये हता युधि।
श्राद्धानि कारयामास तेषां पृथगुदारधीः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! तदनन्तर उदार बुद्धि राजा युधिष्ठिरने जाति, भाई और कुटुम्बीजनोंमेंसे जो लोग युद्धमें मारे गये थे, उन सबके अलग-अलग श्राद्ध करवाये॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृतराष्ट्रो ददौ राजा पुत्राणामौर्ध्वदेहिकम्।
सर्वकामगुणोपेतमन्नं गाश्च धनानि च ॥ २ ॥
रत्नानि च विचित्राणि महार्हाणि महायशाः।
मूलम्
धृतराष्ट्रो ददौ राजा पुत्राणामौर्ध्वदेहिकम्।
सर्वकामगुणोपेतमन्नं गाश्च धनानि च ॥ २ ॥
रत्नानि च विचित्राणि महार्हाणि महायशाः।
अनुवाद (हिन्दी)
महायशस्वी राजा धृतराष्ट्रने अपने पुत्रोंके श्राद्धमें समस्त कमनीय गुणोंसे युक्त अन्न, गो, धन और बहुमूल्य विचित्र रत्न प्रदान किये॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरस्तु द्रोणस्य कर्णस्य च महात्मनः ॥ ३ ॥
धृष्टद्युम्नाभिमन्युभ्यां हैडिम्बस्य च रक्षसः।
विराटप्रभृतीनां च सुहृदामुपकारिणाम् ॥ ४ ॥
द्रुपदद्रौपदेयानां द्रौपद्या सहितो ददौ।
मूलम्
युधिष्ठिरस्तु द्रोणस्य कर्णस्य च महात्मनः ॥ ३ ॥
धृष्टद्युम्नाभिमन्युभ्यां हैडिम्बस्य च रक्षसः।
विराटप्रभृतीनां च सुहृदामुपकारिणाम् ॥ ४ ॥
द्रुपदद्रौपदेयानां द्रौपद्या सहितो ददौ।
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिरने द्रौपदीको साथ लेकर आचार्य द्रोण, महामना कर्ण, धृष्टद्युम्न, अभिमन्यु, राक्षस घटोत्कच, विराट आदि उपकारी सुहृद्, द्रुपद तथा द्रौपदीकुमारोंका श्राद्ध किया॥३—४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्राह्मणानां सहस्राणि पृथगेकैकमुद्दिशन् ॥ ५ ॥
धनै रत्नैश्च गोभिश्च वस्त्रैश्च समतर्पयत्।
मूलम्
ब्राह्मणानां सहस्राणि पृथगेकैकमुद्दिशन् ॥ ५ ॥
धनै रत्नैश्च गोभिश्च वस्त्रैश्च समतर्पयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने प्रत्येकके उद्देश्यसे हजारों ब्राह्मणोंको अलग-अलग धन, रत्न, गौ और वस्त्र देकर संतुष्ट किया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये चान्ये पृथिवीपाला येषां नास्ति सुहृज्जनः ॥ ६ ॥
उद्दिश्योद्दिश्य तेषां च चक्रे राजौर्ध्वदेहिकम्।
मूलम्
ये चान्ये पृथिवीपाला येषां नास्ति सुहृज्जनः ॥ ६ ॥
उद्दिश्योद्दिश्य तेषां च चक्रे राजौर्ध्वदेहिकम्।
अनुवाद (हिन्दी)
इनके सिवा जो दूसरे भूपाल थे, जिनके सुहृद् या सम्बन्धी जीवित नहीं थे, उन सबके उद्देश्यसे राजा युधिष्ठिरने श्राद्ध-कर्म किया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सभाः प्रपाश्च विविधास्तटाकानि च पाण्डवः ॥ ७ ॥
सुहृदां कारयामास सर्वेषामौर्ध्वदेहिकम् ।
मूलम्
सभाः प्रपाश्च विविधास्तटाकानि च पाण्डवः ॥ ७ ॥
सुहृदां कारयामास सर्वेषामौर्ध्वदेहिकम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
साथ ही उनके निमित्त पाण्डुपुत्र युधिष्ठिरने धर्मशालाएँ, प्याऊ-घर और पोखरे बनवाये। इस प्रकार उन्होंने सभी सुहृदोंके श्राद्ध-कर्म सम्पन्न कराये॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेषामनृणो भूत्वा गत्वा लोकेष्ववाच्यताम् ॥ ८ ॥
कृतकृत्योऽभवद् राजा प्रजा धर्मेण पालयन्।
मूलम्
स तेषामनृणो भूत्वा गत्वा लोकेष्ववाच्यताम् ॥ ८ ॥
कृतकृत्योऽभवद् राजा प्रजा धर्मेण पालयन्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन सबके ऋणसे मुक्त हो वे लोकमें किसीकी निन्दा या आक्षेपके पात्र नहीं रह गये। राजा युधिष्ठिर धर्मपूर्वक प्रजाका पालन करते हुए कृतकृत्यताका अनुभव करने लगे॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृतराष्ट्रं यथापूर्वं गान्धारीं विदुरं तथा ॥ ९ ॥
सर्वांश्च कौरवान् मान्यान् भृत्यांश्च समपूजयत्।
मूलम्
धृतराष्ट्रं यथापूर्वं गान्धारीं विदुरं तथा ॥ ९ ॥
सर्वांश्च कौरवान् मान्यान् भृत्यांश्च समपूजयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्र, गान्धारी, विदुर तथा अन्य आदरणीय कौरवोंकी वे पहलेकी ही भाँति सेवा करते और भृत्यजनोंका भी आदर-सत्कार करते थे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
याश्च तत्र स्त्रियः काश्चिद् हतवीरा हतात्मजाः ॥ १० ॥
सर्वास्ताः कौरवो राजा सम्पूज्यापालयद् घृणी।
मूलम्
याश्च तत्र स्त्रियः काश्चिद् हतवीरा हतात्मजाः ॥ १० ॥
सर्वास्ताः कौरवो राजा सम्पूज्यापालयद् घृणी।
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ जो कोई भी स्त्रियाँ थीं, जिनके पति और पुत्र मारे गये थे, उन सबका कृपालु कुरुवंशी राजा युधिष्ठिर बड़े आदरके साथ पालन-पोषण करते थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दीनान्धकृपणानां च गृहाच्छादनभोजनैः ॥ ११ ॥
आनृशंस्यपरो राजा चकारानुग्रहं प्रभुः।
मूलम्
दीनान्धकृपणानां च गृहाच्छादनभोजनैः ॥ ११ ॥
आनृशंस्यपरो राजा चकारानुग्रहं प्रभुः।
अनुवाद (हिन्दी)
दीन-दुखियों और अन्धोंके लिये घर एवं भोजन-वस्त्रकी व्यवस्था करके सबके प्रति कोमलताका बर्ताव करनेवाले सामर्थ्यशाली राजा युधिष्ठिर उनपर बड़ी कृपा रखते थे॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विजित्य महीं कृत्स्नामानृण्यं प्राप्य वैरिषु।
निःसपत्नः सुखी राजा विजहार युधिष्ठिरः ॥ १२ ॥
मूलम्
स विजित्य महीं कृत्स्नामानृण्यं प्राप्य वैरिषु।
निःसपत्नः सुखी राजा विजहार युधिष्ठिरः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस सारी पृथ्वीको जीतकर शत्रुओंसे उऋण हो शत्रुहीन राजा युधिष्ठिर सुखपूर्वक विहार करने लगे॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मानुशासनपर्वणि श्राद्धक्रियायां द्विचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वके अन्तर्गत राजधर्मानुशासनपर्वमें श्राद्धकर्मविषयक बयालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४२॥