भागसूचना
पञ्चविंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अन्यान्य वीरोंको मरा हुआ देखकर गान्धारीका शोकातुर होकर विलाप करना और क्रोधपूर्वक श्रीकृष्णको यदुवंशविनाशविषयक शाप देना
मूलम् (वचनम्)
गान्धार्युवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
काम्बोजं पश्य दुर्धर्षं काम्बोजास्तरणोचितम्।
शयानमृषभस्कन्धं हतं पांसुषु माधव ॥ १ ॥
मूलम्
काम्बोजं पश्य दुर्धर्षं काम्बोजास्तरणोचितम्।
शयानमृषभस्कन्धं हतं पांसुषु माधव ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गान्धारी बोलीं— माधव! जो काबुलके बने हुए मुलायम बिछौनोंपर सोनेके योग्य है, वह बैलके समान हृष्ट-पुष्ट कंधोंवाला दुर्जय वीर काम्बोजराज सुदक्षिण मरकर धूलमें पड़ा हुआ है॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य क्षतजसंदिग्धौ बाहू चन्दनभूषितौ।
अवेक्ष्य करुणं भार्या विलपत्यतिदुःखिता ॥ २ ॥
मूलम्
यस्य क्षतजसंदिग्धौ बाहू चन्दनभूषितौ।
अवेक्ष्य करुणं भार्या विलपत्यतिदुःखिता ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसकी चन्दनचर्चित भुजाओंको रक्तमें सनी हुई देख उसकी पत्नी अत्यन्त दुःखी हो करुणाजनक विलाप कर रही है॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इमौ तौ परिघप्रख्यौ बाहू शुभतलाङ्गुली।
ययोर्विवरमापन्नां न रतिर्मां पुराजहात् ॥ ३ ॥
कां गतिं तु गमिष्यामि त्वया हीना जनेश्वर।
मूलम्
इमौ तौ परिघप्रख्यौ बाहू शुभतलाङ्गुली।
ययोर्विवरमापन्नां न रतिर्मां पुराजहात् ॥ ३ ॥
कां गतिं तु गमिष्यामि त्वया हीना जनेश्वर।
अनुवाद (हिन्दी)
वह कहती है—‘प्राणनाथ! सुन्दर हथेली और अंगुलियोंसे युक्त तथा परिघके समान मोटी ये वे ही दोनों भुजाएँ हैं, जिनके भीतर आप मुझे अंकमें भर लेते थे और उस अवस्थामें मुझे जो प्रसन्नता प्राप्त होती थी, उसने पहले कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा था। जनेश्वर! अब आपके बिना मेरी क्या गति होगी?’॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतबन्धुरनाथा च वेपन्ती मधुरस्वरा ॥ ४ ॥
आतपे क्लाम्यमानानां विविधानामिव स्रजाम्।
क्लान्तानामपि नारीणां श्रीर्जहाति न वै तनूः ॥ ५ ॥
मूलम्
हतबन्धुरनाथा च वेपन्ती मधुरस्वरा ॥ ४ ॥
आतपे क्लाम्यमानानां विविधानामिव स्रजाम्।
क्लान्तानामपि नारीणां श्रीर्जहाति न वै तनूः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्ण! अपने जीवनबन्धुके मारे जानेसे अनाथ हुई यह रानी काँपती हुई मधुर स्वरसे विलाप कर रही है। घामसे मुरझाती हुई नाना प्रकारकी पुष्पमालाओंके समान ये राज-रानियाँ धूपसे तप गयीं हैं, तो भी इनके शरीरोंको सौन्दर्य—श्री छोड़ नहीं रही है॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शयानमभितः शूरं कालिङ्गं मधुसूदन।
पश्य दीप्ताङ्गदयुगप्रतिनद्धमहाभुजम् ॥ ६ ॥
मूलम्
शयानमभितः शूरं कालिङ्गं मधुसूदन।
पश्य दीप्ताङ्गदयुगप्रतिनद्धमहाभुजम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मधुसूदन! देखो, पास ही वह शूरवीर कलिंगराज सो रहा है, जिसकी दोनों विशाल भुजाओंमें चमकीले अंगद (बाजूबन्द) बँधे हुए हैं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मागधानामधिपतिं जयत्सेनं जनार्दन ।
आवार्य सर्वतः पत्न्यः प्ररुदत्यः सुविह्वलाः ॥ ७ ॥
मूलम्
मागधानामधिपतिं जयत्सेनं जनार्दन ।
आवार्य सर्वतः पत्न्यः प्ररुदत्यः सुविह्वलाः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनार्दन! उधर मगधराज जयत्सेन पड़ा है, जिसे चारों ओरसे घेरकर उसकी पत्नियाँ अत्यन्त व्याकुल हो फूट-फूटकर रो रही हैं॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आसामायतनेत्राणां सुस्वराणां जनार्दन ।
मनःश्रुतिहरो नादो मनो मोहयतीव मे ॥ ८ ॥
मूलम्
आसामायतनेत्राणां सुस्वराणां जनार्दन ।
मनःश्रुतिहरो नादो मनो मोहयतीव मे ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्ण! मधुर स्वरवाली इन विशाललोचना रानियोंका मन और कानोंको मोह लेनेवाला आर्तनाद मेरे मनको मूर्च्छित-सा किये देता है॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रकीर्णवस्त्राभरणा रुदत्यः शोककर्शिताः ।
स्वास्तीर्णशयनोपेता मागध्यः शेरते भुवि ॥ ९ ॥
मूलम्
प्रकीर्णवस्त्राभरणा रुदत्यः शोककर्शिताः ।
स्वास्तीर्णशयनोपेता मागध्यः शेरते भुवि ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनके वस्त्र और आभूषण अस्त-व्यस्त हो रहे हैं। सुन्दर बिछौनोंसे युक्त शय्याओंपर शयन करनेके योग्य ये मगधदेशकी रानियाँ शोकसे व्याकुल हो रोती हुई भूमिपर लोट रही हैं॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कोसलानामधिपतिं राजपुत्रं बृहद्बलम् ।
भर्तारं परिवार्यैताः पृथक् प्ररुदिताः स्त्रियः ॥ १० ॥
मूलम्
कोसलानामधिपतिं राजपुत्रं बृहद्बलम् ।
भर्तारं परिवार्यैताः पृथक् प्ररुदिताः स्त्रियः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने पति कोसलनरेश राजकुमार बृहद्बलको भी चारों ओरसे घेरकर उनकी रानियाँ अलग-अलग रो रही हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस्य गात्रगतान् बाणान् कार्ष्णिबाहुबलार्पितान्।
उद्धरन्त्यसुखाविष्टा मूर्च्छमानाः पुनः पुनः ॥ ११ ॥
मूलम्
अस्य गात्रगतान् बाणान् कार्ष्णिबाहुबलार्पितान्।
उद्धरन्त्यसुखाविष्टा मूर्च्छमानाः पुनः पुनः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अभिमन्युके बाहुबलसे प्रेरित होकर कोसल-नरेशके अंगोमें धँसे हुए बाणोंको ये रानियाँ अत्यन्त दुःखी होकर निकालती हैं और बारंबार मूर्च्छित हो जाती हैं॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आसां सर्वानवद्यानामातपेन परिश्रमात् ।
प्रम्लाननलिनाभानि भान्ति वक्त्राणि माधव ॥ १२ ॥
मूलम्
आसां सर्वानवद्यानामातपेन परिश्रमात् ।
प्रम्लाननलिनाभानि भान्ति वक्त्राणि माधव ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माधव! इन सर्वांगसुन्दरी राजमहिलाओंके सुन्दर मुख धूप और परिश्रमके कारण मुरझाये हुए कमलोंके समान प्रतीत होते हैं॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणेन निहताः शूराः शेरते रुचिराङ्गदाः।
धृष्टद्युम्नसुताः सर्वे शिशवो हेममालिनः ॥ १३ ॥
मूलम्
द्रोणेन निहताः शूराः शेरते रुचिराङ्गदाः।
धृष्टद्युम्नसुताः सर्वे शिशवो हेममालिनः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये द्रोणाचार्यके मारे हुए धृष्टद्युम्नके सभी छोटे-छोटे शूरवीर बालक सो रहे हैं। इनकी भुजाओंमें सुन्दर अंगद और गलेमें सोनेके हार शोभा पाते हैं॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथाग्न्यगारं चापार्चिःशरशक्तिगदेन्धनम् ।
द्रोणमासाद्य निर्दग्धाः शलभा इव पावकम् ॥ १४ ॥
मूलम्
रथाग्न्यगारं चापार्चिःशरशक्तिगदेन्धनम् ।
द्रोणमासाद्य निर्दग्धाः शलभा इव पावकम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणाचार्य प्रज्वलित अग्निके समान थे, उनका रथ ही अग्निशाला था, धनुष ही उस अग्निकी लपट था, बाण, शक्ति और गदाएँ समिधाका काम दे रही थीं, धृष्टद्युम्नके पुत्र पतंगोंके समान उस द्रोणरूपी अग्निमें चलकर भस्म हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव निहताः शूराः शेरते रुचिराङ्गदाः।
द्रोणेनाभिमुखाः सर्वे भ्रातरः पञ्च केकयाः ॥ १५ ॥
मूलम्
तथैव निहताः शूराः शेरते रुचिराङ्गदाः।
द्रोणेनाभिमुखाः सर्वे भ्रातरः पञ्च केकयाः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार सुन्दर अंगदोंसे विभूषित पाँचों शूरवीर भाई केकय राजकुमार समरांगणमें सम्मुख होकर जूझ रहे थे। वे सब-के-सब आचार्य द्रोणके हाथसे मारे जाकर सो रहे हैं॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तप्तकाञ्चनवर्माणस्तालध्वजरथव्रजाः ।
भासयन्ति महीं भासा ज्वलिता इव पावकाः ॥ १६ ॥
मूलम्
तप्तकाञ्चनवर्माणस्तालध्वजरथव्रजाः ।
भासयन्ति महीं भासा ज्वलिता इव पावकाः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन सबके कवच तपाये हुए सुवर्णके बने हैं और इनके रथसमूह तालचिह्नित ध्वजाओंसे सुशोभित हैं। ये राजकुमार अपनी प्रभासे प्रज्वलित अग्निके समान भूतलको प्रकाशित कर रहे हैं॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणेन द्रुपदं संख्ये पश्य माधव पातितम्।
महाद्विपमिवारण्ये सिंहेन महता हतम् ॥ १७ ॥
मूलम्
द्रोणेन द्रुपदं संख्ये पश्य माधव पातितम्।
महाद्विपमिवारण्ये सिंहेन महता हतम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माधव! देखो, युद्धस्थलमें द्रोणाचार्यने जिन्हें मार गिराया था, वे राजा द्रुपद सो रहे हैं, मानो किसी वनमें विशाल सिंहके द्वारा कोई महान् गजराज मारा गया हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाञ्चालराज्ञो विमलं पुण्डरीकाक्ष पाण्डुरम्।
आतपत्रं समाभाति शरदीव निशाकरः ॥ १८ ॥
मूलम्
पाञ्चालराज्ञो विमलं पुण्डरीकाक्ष पाण्डुरम्।
आतपत्रं समाभाति शरदीव निशाकरः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कमलनयन! पांचालराजका वह निर्मल श्वेत छत्र शरत्कालके चन्द्रमाकी भाँति सुशोभित हो रहा है॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतास्तु द्रुपदं वृद्धं स्नुषा भार्याश्च दुःखिताः।
दग्ध्वा गच्छन्ति पाञ्चाल्यं राजानमपसव्यतः ॥ १९ ॥
मूलम्
एतास्तु द्रुपदं वृद्धं स्नुषा भार्याश्च दुःखिताः।
दग्ध्वा गच्छन्ति पाञ्चाल्यं राजानमपसव्यतः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन बूढ़े पांचालराज द्रुपदको इनकी दुःखी रानियाँ और पुत्रवधुएँ चितामें जलाकर इनकी प्रदक्षिणा करके जा रही हैं॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टकेतुं महात्मानं चेदिपुङ्गवमङ्गनाः ।
द्रोणेन निहतं शूरं हरन्ति हृतचेतसः ॥ २० ॥
मूलम्
धृष्टकेतुं महात्मानं चेदिपुङ्गवमङ्गनाः ।
द्रोणेन निहतं शूरं हरन्ति हृतचेतसः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
चेदिराज महामना शूरवीर धृष्टकेतुको जो द्रोणाचार्यके हाथसे मारा गया है, उसकी रानियाँ अचेत-सी होकर दाह-संस्कारके लिये ले जा रही हैं॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणास्त्रमभिहत्यैष विमर्दे मधुसूदन ।
महेष्वासो हतः शेते नद्या हत इव द्रुमः ॥ २१ ॥
मूलम्
द्रोणास्त्रमभिहत्यैष विमर्दे मधुसूदन ।
महेष्वासो हतः शेते नद्या हत इव द्रुमः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मधुसूदन! यह महाधनुर्धर वीर संग्राममें द्रोणाचार्यके अस्त्र-शस्त्रोंका नाश करके नदीके वेगसे कटे हुए वृक्षके समान मरकर धराशायी हो गया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष चेदिपतिः शूरो धृष्टकेतुर्महारथः।
शेते विनिहतः संख्ये हत्वा शत्रून् सहस्रशः ॥ २२ ॥
मूलम्
एष चेदिपतिः शूरो धृष्टकेतुर्महारथः।
शेते विनिहतः संख्ये हत्वा शत्रून् सहस्रशः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह चेदिराज शूरवीर महारथी धृष्टकेतु सहस्रों शत्रुओंको मारकर मारा गया और रणशय्यापर सदाके लिये सो गया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वितुद्यमानं विहगैस्तं भार्याः पर्युपासिताः।
चेदिराजं हृषीकेश हतं सबलबान्धवम् ॥ २३ ॥
मूलम्
वितुद्यमानं विहगैस्तं भार्याः पर्युपासिताः।
चेदिराजं हृषीकेश हतं सबलबान्धवम् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हृषीकेश! सेना और बन्धुओंसहित मारे गये इस चेदिराजको पक्षी चोंच मार रहे हैं और उसकी स्त्रियाँ उसे चारों ओरसे घेरकर बैठी हैं॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दाशार्हीपुत्रजं वीरं शयानं सत्यविक्रमम्।
आरोप्याङ्के रुदन्त्येताश्चेदिराजवराङ्गनाः ॥ २४ ॥
मूलम्
दाशार्हीपुत्रजं वीरं शयानं सत्यविक्रमम्।
आरोप्याङ्के रुदन्त्येताश्चेदिराजवराङ्गनाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दशार्हकुलकी कन्या (श्रुतश्रवा)-के पुत्र शिशुपालका यह सत्यपराक्रमी वीर पुत्र रणभूमिमें सो रहा है और इसे अंकमें लेकर ये चेदिराजकी सुन्दरी रानियाँ रो रही हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस्य पुत्रं हृषीकेश सुवक्त्रं चारुकुण्डलम्।
द्रोणेन समरे पश्य निकृतं बहुधा शरैः ॥ २५ ॥
मूलम्
अस्य पुत्रं हृषीकेश सुवक्त्रं चारुकुण्डलम्।
द्रोणेन समरे पश्य निकृतं बहुधा शरैः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हृषीकेश! देखो तो सही, इस धृष्टकेतुके सुन्दर मुख और मनोहर कुण्डलोंवाले पुत्रको द्रोणाचार्यने समरांगणमें अपने बाणोंद्वारा मारकर उसके अनेक टुकड़े कर डाले हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितरं नूनमाजिस्थं युद्ध्यमानं परैः सह।
नाजहात् पितरं वीरमद्यापि मधुसूदन ॥ २६ ॥
मूलम्
पितरं नूनमाजिस्थं युद्ध्यमानं परैः सह।
नाजहात् पितरं वीरमद्यापि मधुसूदन ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मधुसूदन! रणभूमिमें स्थित होकर शत्रुओंके साथ जूझनेवाले अपने पिताका साथ इसने कभी नहीं छोड़ा था, आज युद्धके बाद भी वह पिताको नहीं छोड़ सका है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं ममापि पुत्रस्य पुत्रः पितरमन्वगात्।
दुर्योधनं महाबाहो लक्ष्मणः परवीरहा ॥ २७ ॥
मूलम्
एवं ममापि पुत्रस्य पुत्रः पितरमन्वगात्।
दुर्योधनं महाबाहो लक्ष्मणः परवीरहा ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहो! इसी प्रकार मेरे पुत्रके पुत्र शत्रुवीर-हन्ता लक्ष्मणने भी अपने पिता दुर्योधनका अनुसरण किया है॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ पतितौ पश्य माधव।
हिमान्ते पुप्पितौ शालौ मरुता गलिताविव ॥ २८ ॥
मूलम्
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ पतितौ पश्य माधव।
हिमान्ते पुप्पितौ शालौ मरुता गलिताविव ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माधव! जैसे ग्रीष्म-ऋतुमें हवाके वेगसे दो खिले हुए शालवृक्ष गिर गये हों, उसी प्रकार अवन्तीदेशके दोनों वीर राजपुत्र विन्द और अनुविन्द धराशायी हो गये हैं, इनपर दृष्टिपात करो॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
काञ्चनाङ्गदवर्माणौ बाणखड्गधनुर्धरौ ।
ऋषभप्रतिरूपाक्षौ शयानौ विमलस्रजौ ॥ २९ ॥
मूलम्
काञ्चनाङ्गदवर्माणौ बाणखड्गधनुर्धरौ ।
ऋषभप्रतिरूपाक्षौ शयानौ विमलस्रजौ ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन दोनोंने सोनेके कवच धारण किये हैं, बाण, खड्ग और धनुष लिये हैं तथा बैलके समान बड़ी-बड़ी आँखोंवाले ये दोनों वीर चमकीले हार पहने हुए सो रहे हैं॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवध्याः पाण्डवाः कृष्ण सर्व एव त्वया सह।
ये मुक्ता द्रोणभीष्माभ्यां कर्णाद् वैकर्तनात् कृपात् ॥ ३० ॥
दुर्योधनाद् द्रोणसुतात् सैन्धवाच्च जयद्रथात्।
सोमदत्ताद् विकर्णाच्च शूराच्च कृतवर्मणः ॥ ३१ ॥
मूलम्
अवध्याः पाण्डवाः कृष्ण सर्व एव त्वया सह।
ये मुक्ता द्रोणभीष्माभ्यां कर्णाद् वैकर्तनात् कृपात् ॥ ३० ॥
दुर्योधनाद् द्रोणसुतात् सैन्धवाच्च जयद्रथात्।
सोमदत्ताद् विकर्णाच्च शूराच्च कृतवर्मणः ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्ण! तुम्हारे साथ ही ये समस्त पाण्डव अवध्य जान पड़ते हैं, जो कि द्रोण, भीष्म, वैकर्तन कर्ण, कृपाचार्य, दुर्योधन, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, सिंधुराज जयद्रथ, सोमदत्त, विकर्ण और शूरवीर कृतवर्माके हाथसे जीवित बच गये हैं॥३०-३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये हन्युः शस्त्रवेगेन देवानपि नरर्षभाः।
त इमे निहताः संख्ये पश्य कालस्य पर्ययम् ॥ ३२ ॥
मूलम्
ये हन्युः शस्त्रवेगेन देवानपि नरर्षभाः।
त इमे निहताः संख्ये पश्य कालस्य पर्ययम् ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्रके वेगसे देवताओंको भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्धमें मार डाले गये हैं; यह कालका उलट-फेर तो देखो॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नातिभारोऽस्ति दैवस्य ध्रुवं माधव कश्चन।
यदिमे निहताः शूराः क्षत्रियैः क्षत्रियर्षभाः ॥ ३३ ॥
मूलम्
नातिभारोऽस्ति दैवस्य ध्रुवं माधव कश्चन।
यदिमे निहताः शूराः क्षत्रियैः क्षत्रियर्षभाः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माधव! निश्चय ही दैवके लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियोंद्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रियशिरोमणियोंका संहार कर डाला है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदैव निहताः कृष्ण मम पुत्रास्तरस्विनः।
यदैवाकृतकामस्त्वमुपप्लव्यं गतः पुनः ॥ ३४ ॥
मूलम्
तदैव निहताः कृष्ण मम पुत्रास्तरस्विनः।
यदैवाकृतकामस्त्वमुपप्लव्यं गतः पुनः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्ण! मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मार डाले गये, जब कि तुम अपूर्णमनोरथ होकर पुनः उपप्लव्यको लौट गये थे॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शान्तनोश्चैव पुत्रेण प्राज्ञेन विदुरेण च।
तदैवोक्तास्मि मा स्नेहं कुरुष्वात्मसुतेष्विति ॥ ३५ ॥
मूलम्
शान्तनोश्चैव पुत्रेण प्राज्ञेन विदुरेण च।
तदैवोक्तास्मि मा स्नेहं कुरुष्वात्मसुतेष्विति ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुरने उसी दिन कह दिया था ‘कि अब तुम अपने पुत्रोंपर स्नेह न करो’॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोर्हि दर्शनं नैतन्मिथ्या भवितुमर्हति।
अचिरेणैव मे पुत्रा भस्मीभूता जनार्दन ॥ ३६ ॥
मूलम्
तयोर्हि दर्शनं नैतन्मिथ्या भवितुमर्हति।
अचिरेणैव मे पुत्रा भस्मीभूता जनार्दन ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनार्दन! उन दोनोंकी यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी; अतः थोड़े ही समयमें मेरे सारे पुत्र युद्धकी आगमें जलकर भस्म हो गये॥३६॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्युक्त्वा न्यपतद् भूमौ गान्धारी शोकमूर्च्छिता।
दुःखोपहतविज्ञाना धैर्यमुत्सृज्य भारत ॥ ३७ ॥
मूलम्
इत्युक्त्वा न्यपतद् भूमौ गान्धारी शोकमूर्च्छिता।
दुःखोपहतविज्ञाना धैर्यमुत्सृज्य भारत ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— भारत! ऐसा कहकर शोकसे मूर्च्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वीपर गिर पड़ीं, दुःखसे उनकी विवेकशक्ति नष्ट हो गयी॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कोपपरीताङ्गी पुत्रशोकपरिप्लुता ।
जगाम शौरिं दोषेण गान्धारी व्यथितेन्द्रिया ॥ ३८ ॥
मूलम्
ततः कोपपरीताङ्गी पुत्रशोकपरिप्लुता ।
जगाम शौरिं दोषेण गान्धारी व्यथितेन्द्रिया ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर उनके सारे अंगोंमें क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्रशोकमें डूब जानेके कारण उनकी सारी इन्द्रियाँ व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारीने सारा दोष श्रीकृष्णके ही माथे मढ़ दिया॥३८॥
मूलम् (वचनम्)
गान्धार्युवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाण्डवा धार्तराष्ट्राश्च दग्धाः कृष्ण परस्परम्।
उपेक्षिता विनश्यन्तस्त्वया कस्माज्जनार्दन ॥ ३९ ॥
मूलम्
पाण्डवा धार्तराष्ट्राश्च दग्धाः कृष्ण परस्परम्।
उपेक्षिता विनश्यन्तस्त्वया कस्माज्जनार्दन ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गान्धारीने कहा— श्रीकृष्ण! जनार्दन! पाण्डव और धृतराष्ट्रके पुत्र आपसमें लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी?॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्तेन बहुभृत्येन विपुले तिष्ठता बले।
उभयत्र समर्थेन श्रुतवाक्येन चैव ह ॥ ४० ॥
इच्छतोपेक्षितो नाशः कुरूणां मधुसूदन।
यस्मात् त्वया महाबाहो फलं तस्मादवाप्नुहि ॥ ४१ ॥
मूलम्
शक्तेन बहुभृत्येन विपुले तिष्ठता बले।
उभयत्र समर्थेन श्रुतवाक्येन चैव ह ॥ ४० ॥
इच्छतोपेक्षितो नाशः कुरूणां मधुसूदन।
यस्मात् त्वया महाबाहो फलं तस्मादवाप्नुहि ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहु मधुसूदन! तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत-से सेवक और सैनिक थे। तुम महान् बलमें प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षोंसे अपनी बात मनवा लेनेकी सामर्थ्य तुममें मौजूद थी। तुमने वेद-शास्त्रों और महात्माओंकी बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छासे कुरुकुलके नाशकी उपेक्षा की—जानबूझकर इस वंशका विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो॥४०-४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पतिशुश्रूषया यन्मे
तपः किंचिदुपार्जितम्।
तेन त्वां दुरवापेन
शप्स्ये चक्रगदाधर ॥ ४२ ॥
मूलम्
पतिशुश्रूषया यन्मे तपः किंचिदुपार्जितम्।
तेन त्वां दुरवापेन शप्स्ये चक्रगदाधर ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
चक्र और गदा धारण करनेवाले केशव! मैंने पतिकी सेवासे जो कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबलसे तुम्हें शाप दे रही हूँ॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्मात् परस्परं घ्नन्तो
ज्ञातयः कुरुपाण्डवाः।
उपेक्षितास्ते गोविन्द
तस्माज् ज्ञातीन् वधिष्यसि ॥ ४३ ॥
मूलम्
यस्मात् परस्परं घ्नन्तो ज्ञातयः कुरुपाण्डवाः।
उपेक्षितास्ते गोविन्द तस्माज्ज्ञातीन् वधिष्यसि ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गोविन्द! तुमने आपसमें मारकाट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों और पाण्डवोंकी उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओंका भी विनाश कर डालोगे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वमप्युपस्थिते वर्षे
षट्त्रिंशे मधुसूदन।
हतज्ञातिर्हतामात्यो
हतपुत्रो वनेचरः ॥ ४४ ॥
अनाथवदविज्ञातो
लोकेष्वनभिलक्षितः ।
कुत्सितेनाभ्युपायेन
निधनं समवाप्स्यसि ॥ ४५ ॥
मूलम्
त्वमप्युपस्थिते वर्षे षट्त्रिंशे मधुसूदन।
हतज्ञातिर्हतामात्यो हतपुत्रो वनेचरः ॥ ४४ ॥
अनाथवदविज्ञातो लोकेष्वनभिलक्षितः ।
कुत्सितेनाभ्युपायेन निधनं समवाप्स्यसि ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मधुसूदन! आजसे छत्तीसवाँ वर्ष उपस्थित होनेपर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपसमें लड़कर मर जायँगे। तुम सबसे अपरिचित और लोगोंकी आँखोंसे ओझल होकर अनाथके समान वनमें विचरोगे और किसी निन्दित उपायसे मृत्युको प्राप्त होओगे॥४४-४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तवाप्येवं हतसुता
निहतज्ञातिबान्धवाः ।
स्त्रियः परिपतिष्यन्ति
यथैता भरतस्त्रियः ॥ ४६ ॥
मूलम्
तवाप्येवं हतसुता निहतज्ञातिबान्धवाः ।
स्त्रियः परिपतिष्यन्ति यथैता भरतस्त्रियः ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन भरतवंशकी स्त्रियोंके समान तुम्हारे कुलकी स्त्रियाँ भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओंके मारे जानेपर इसी तरह सगे-सम्बन्धियोंकी लाशोंपर गिरेंगी॥४६॥
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा वचनं घोरं
वासुदेवो महामनाः।
उवाच देवीं गान्धारीम्
ईषद् अभ्युत्स्मयन्निव ॥ ४७ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा वचनं घोरं वासुदेवो महामनाः।
उवाच देवीं गान्धारीमीषदभ्युत्स्मयन्निव ॥ ४७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! वह घोर वचन सुनकर महामनस्वी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्णने कुछ मुसकराते हुए-से गान्धारीदेवीसे कहा—॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जानेऽहमेतदप्येवं
चीर्णं चरसि क्षत्रिये।
दैवादेव विनश्यन्ति
वृष्णयो नात्र संशयः ॥ ४८ ॥
मूलम्
जानेऽहमेतदप्येवं चीर्णं चरसि क्षत्रिये।
दैवादेव विनश्यन्ति वृष्णयो नात्र संशयः ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘क्षत्राणी! मैं जानता हूँ, यह ऐसा ही होनेवाला है। तुम तो किये हुएको ही कर रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंशके यादव दैवसे ही नष्ट होंगे॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संहर्ता वृष्णिचक्रस्य
नान्यो मद् विद्यते शुभे।
अवध्यास्ते नरैरन्यैर्
अपि वा देवदानवैः ॥ ४९ ॥
परस्परकृतं नाशम्
अतः प्राप्स्यन्ति यादवाः। +++(5)+++
मूलम्
संहर्ता वृष्णिचक्रस्य नान्यो मद् विद्यते शुभे।
अवध्यास्ते नरैरन्यैरपि वा देवदानवैः ॥ ४९ ॥
परस्परकृतं नाशमतः प्राप्स्यन्ति यादवाः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘शुभे! वृष्णिकुलका संहार करनेवाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवोंके लिये भी अवध्य हैं; अतः आपसमें ही लड़कर नष्ट होंगे’॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्युक्तवति दाशार्हे
पाण्डवास् त्रस्तचेतसः ।
बभूवुर्भृशसंविग्ना
निराशाश्चापि जीविते ॥ ५० ॥
मूलम्
इत्युक्तवति दाशार्हे पाण्डवास्त्रस्तचेतसः ।
बभूवुर्भृशसंविग्ना निराशाश्चापि जीविते ॥ ५० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीकृष्णके ऐसा कहनेपर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। वे सब-के-सब अपने जीवनसे निराश हो गये॥५०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते स्त्रीपर्वणि स्त्रीविलापपर्वणि गान्धारीशापदाने पञ्चविंशोऽध्यायः ॥ २५ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्वके अन्तर्गत स्त्रीविलापपर्वमें गान्धारीका शापदानविषयक पचीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२५॥