०१९ गान्धारीवाक्ये

भागसूचना

एकोनविंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन, विविंशति तथा दुःसहको देखकर गान्धारीका श्रीकृष्णके सम्मुख विलाप

मूलम् (वचनम्)

गान्धार्युवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष माधव पुत्रो मे विकर्णः प्राज्ञसम्मतः।
भूमौ विनिहतः शेते भीमेन शतधा कृतः ॥ १ ॥

मूलम्

एष माधव पुत्रो मे विकर्णः प्राज्ञसम्मतः।
भूमौ विनिहतः शेते भीमेन शतधा कृतः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गान्धारी बोलीं— माधव! यह मेरा पुत्र विकर्ण, जो विद्वानोंद्वारा सम्मानित होता था, भूमिपर मरा पड़ा है। भीमसेनने इसके भी सौ-सौ टुकड़े कर डाले हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजमध्ये हतः शेते विकर्णो मधुसूदन।
नीलमेघपरिक्षिप्तः शरदीव निशाकरः ॥ २ ॥

मूलम्

गजमध्ये हतः शेते विकर्णो मधुसूदन।
नीलमेघपरिक्षिप्तः शरदीव निशाकरः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मधुसूदन! जैसे शरत्कालमें काले मेघोंकी घटासे घिरा हुआ चन्द्रमा शोभा पा रहा हो, उसी प्रकार भीमद्वारा मारा गया विकर्ण हाथियोंकी सेनाके बीचमें सो रहा है॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्य चापग्रहेणैव पाणिः कृतकिणो महान्।
कथञ्चिच्छिद्यते गृध्रैरत्तुकामैस्तलत्रवान् ॥ ३ ॥

मूलम्

अस्य चापग्रहेणैव पाणिः कृतकिणो महान्।
कथञ्चिच्छिद्यते गृध्रैरत्तुकामैस्तलत्रवान् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बराबर धनुष लिये रहनेसे इसकी विशाल हथेलीमें घट्ठा पड़ गया है। इसके हाथमें इस समय भी दस्ताना बँधा हुआ है; इसलिये इसे खानेकी इच्छावाले गीध बड़ी कठिनाईसे किसी-किसी तरह काट पाते हैं॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्य भार्याऽऽमिषप्रेप्सून् गृध्रकाकांस्तपस्विनी ।
वारयत्यनिशं बाला न च शक्नोति माधव ॥ ४ ॥

मूलम्

अस्य भार्याऽऽमिषप्रेप्सून् गृध्रकाकांस्तपस्विनी ।
वारयत्यनिशं बाला न च शक्नोति माधव ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माधव! उसकी तपस्विनी पत्नी जो अभी बालिका है, मांसलोलुप गीधों और कौओंको हटानेकी निरन्तर चेष्टा करती है; परंतु सफल नहीं हो पाती है॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युवा वृन्दारकः शूरो विकर्णः पुरुषर्षभ।
सुखोषितः सुखार्हश्च शेते पांसुषु माधव ॥ ५ ॥

मूलम्

युवा वृन्दारकः शूरो विकर्णः पुरुषर्षभ।
सुखोषितः सुखार्हश्च शेते पांसुषु माधव ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरुषप्रवर माधव! विकर्ण नवयुवक, देवताके समान कान्तिमान्, शूरवीर, सुखमें पला हुआ तथा सुख भोगनेके ही योग्य था; परंतु आज धूलमें लोट रहा है॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्णिनालीकनाराचैर्भिन्नमर्माणमाहवे ।
अद्यापि न जहात्येनं लक्ष्मीर्भरतसत्तमम् ॥ ६ ॥

मूलम्

कर्णिनालीकनाराचैर्भिन्नमर्माणमाहवे ।
अद्यापि न जहात्येनं लक्ष्मीर्भरतसत्तमम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें कर्णी, नालीक और नाराचोंके प्रहारसे इसके मर्मस्थल विदीर्ण हो गये हैं तो भी इस भरत-भूषण वीरको अभीतक लक्ष्मी (अंगकान्ति) छोड़ नहीं रही है॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष संग्रामशूरेण प्रतिज्ञां पालयिष्यता।
दुर्मुखोऽभिमुखः शेते हतोऽरिगणहा रणे ॥ ७ ॥

मूलम्

एष संग्रामशूरेण प्रतिज्ञां पालयिष्यता।
दुर्मुखोऽभिमुखः शेते हतोऽरिगणहा रणे ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो शत्रुसमूहोंका संहार करनेवाला था, वह दुर्मुख प्रतिज्ञा पालन करनेवाले संग्राम-शूर भीमसेनके हाथों मारा जाकर समरमें सम्मुख सो रहा है॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यैतद् वदनं कृष्ण श्वापदैरर्धभक्षितम्।
विभात्यभ्यधिकं तात सप्तम्यामिव चन्द्रमाः ॥ ८ ॥

मूलम्

तस्यैतद् वदनं कृष्ण श्वापदैरर्धभक्षितम्।
विभात्यभ्यधिकं तात सप्तम्यामिव चन्द्रमाः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात श्रीकृष्ण! इसका यह मुख हिंसक जन्तुओंद्वारा आधा खा लिया गया है, इसलिये सप्तमीके चन्द्रमाकी भाँति सुशोभित हो रहा है॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शूरस्य हि रणे कृष्ण पश्याननमथेदृशम्।
स कथं निहतोऽमित्रैः पांसून् ग्रसति मे सुतः ॥ ९ ॥

मूलम्

शूरस्य हि रणे कृष्ण पश्याननमथेदृशम्।
स कथं निहतोऽमित्रैः पांसून् ग्रसति मे सुतः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्ण! देखो, मेरे इस रणशूर पुत्रका मुख कैसा तेजस्वी है? पता नहीं, मेरा यह वीर पुत्र किस तरह शत्रुओंके हाथसे मारा जाकर धूल फाँक रहा है?॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्याहवमुखे सौम्य स्थाता नैवोपपद्यते।
स कथं दुर्मुखोऽमित्रैर्हतो विबुधलोकजित् ॥ १० ॥

मूलम्

यस्याहवमुखे सौम्य स्थाता नैवोपपद्यते।
स कथं दुर्मुखोऽमित्रैर्हतो विबुधलोकजित् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सौम्य! युद्धके मुहानेपर जिसके सामने कोई ठहर नहीं पाता था, उस देवलोकविजयी दुर्मुखको शत्रुओंने कैसे मार डाला?॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रसेनं हतं भूमौ शयानं मधुसूदन।
धार्तराष्ट्रमिमं पश्य प्रतिमानं धनुष्मताम् ॥ ११ ॥

मूलम्

चित्रसेनं हतं भूमौ शयानं मधुसूदन।
धार्तराष्ट्रमिमं पश्य प्रतिमानं धनुष्मताम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मधुसूदन! देखो, जो धनुर्धरोंका आदर्श था, वही यह धृतराष्ट्रका पुत्र चित्रसेन मारा जाकर पृथ्वीपर पड़ा हुआ है॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं चित्रमाल्याभरणं युवत्यः शोककर्शिताः।
क्रव्यादसंघैः सहिता रुदत्यः पर्युपासते ॥ १२ ॥

मूलम्

तं चित्रमाल्याभरणं युवत्यः शोककर्शिताः।
क्रव्यादसंघैः सहिता रुदत्यः पर्युपासते ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विचित्र माला और आभूषण धारण करनेवाले उस चित्रसेनको घेरकर शोकसे कातर हो रोती हुई युवतियाँ हिंसक जन्तुओंके साथ उसके पास बैठी हैं॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्त्रीणां रुदितनिर्घोषः श्वापदानां च गर्जितम्।
चित्ररूपमिदं कृष्ण विचित्रं प्रतिभाति मे ॥ १३ ॥

मूलम्

स्त्रीणां रुदितनिर्घोषः श्वापदानां च गर्जितम्।
चित्ररूपमिदं कृष्ण विचित्रं प्रतिभाति मे ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्ण! एक ओर स्त्रियोंके रोनेकी आवाज है तो दूसरी ओर हिंसक जन्तुओंकी गर्जना हो रही है। यह अद्भुत दृश्य मुझे विचित्र प्रतीत होता है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युवा वृन्दारको नित्यं प्रवरस्त्रीनिषेवितः।
विविंशतिरसौ शेते ध्वस्तः पांसुषु माधव ॥ १४ ॥

मूलम्

युवा वृन्दारको नित्यं प्रवरस्त्रीनिषेवितः।
विविंशतिरसौ शेते ध्वस्तः पांसुषु माधव ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माधव! देखो, वह देवतुल्य नवयुवक विविंशति, जिसकी सुन्दरी स्त्रियाँ सदा सेवा किया करती थीं, आज विध्वस्त होकर धूलमें पड़ा है॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरसंकृत्तवर्माणं वीरं विशसने हतम्।
परिवार्यासते गृध्राः पश्य कृष्ण विविंशतिम् ॥ १५ ॥

मूलम्

शरसंकृत्तवर्माणं वीरं विशसने हतम्।
परिवार्यासते गृध्राः पश्य कृष्ण विविंशतिम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्ण! देखो, बाणोंसे इसका कवच छिन्न-भिन्न हो गया है। युद्धमें मारे गये इस वीर विविंशतिको गीध चारों ओरसे घेरकर बैठे हैं॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रविश्य समरे शूरः पाण्डवानामनीकिनीम्।
स वीरशयने शेते परः सत्पुरुषोचिते ॥ १६ ॥

मूलम्

प्रविश्य समरे शूरः पाण्डवानामनीकिनीम्।
स वीरशयने शेते परः सत्पुरुषोचिते ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो शूरवीर समरांगणमें पाण्डवोंकी सेनाके भीतर घुसकर लोहा लेता था, वही आज सत्पुरुषोचित वीरशय्यापर शयन कर रहा है॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्मितोपपन्नं सुनसं सुभ्रु ताराधिपोपमम्।
अतीव शुभ्रं वदनं कृष्ण पश्य विविंशतेः ॥ १७ ॥

मूलम्

स्मितोपपन्नं सुनसं सुभ्रु ताराधिपोपमम्।
अतीव शुभ्रं वदनं कृष्ण पश्य विविंशतेः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्ण! देखो, विविंशतिका मुख अत्यन्त उज्ज्वल है, इसके अधरोंपर मुसकराहट खेल रही है, नासिका मनोहर और भौंहें सुन्दर हैं। यह मुख चन्द्रमाके समान शोभा पा रहा है॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एनं हि पर्युपासन्ते बहुधा वरयोषितः।
क्रीडन्तमिव गन्धर्वं देवकन्याः सहस्रशः ॥ १८ ॥

मूलम्

एनं हि पर्युपासन्ते बहुधा वरयोषितः।
क्रीडन्तमिव गन्धर्वं देवकन्याः सहस्रशः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे क्रीडा करते हुए गन्धर्वके साथ सहस्रों देवकन्याएँ होती हैं, उसी प्रकार इस विविंशतिकी सेवामें बहुत-सी सुन्दरी स्त्रियाँ रहा करती थीं॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हन्तारं परसैन्यानां शूरं समितिशोभनम्।
निबर्हणममित्राणां दुःसहं विषहेत कः ॥ १९ ॥

मूलम्

हन्तारं परसैन्यानां शूरं समितिशोभनम्।
निबर्हणममित्राणां दुःसहं विषहेत कः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुकी सेनाओंका संहार करनेमें समर्थ तथा युद्धमें शोभा पानेवाले शूरवीर शत्रुसूदन दुःसहका वेग कौन सह सकता था?॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःसहस्यैतदाभाति शरीरं संवृतं शरैः।
गिरिरात्मगतैः फुल्लैः कर्णिकारैरिवाचितः ॥ २० ॥

मूलम्

दुःसहस्यैतदाभाति शरीरं संवृतं शरैः।
गिरिरात्मगतैः फुल्लैः कर्णिकारैरिवाचितः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसी दुःसहका यह शरीर बाणोंसे खचाखच भरा हुआ है, जो अपने ऊपर खिले हुए कनेरके फूलोंसे व्याप्त पर्वतके समान सुशोभित होता है॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शातकौम्या स्रजा भाति कवचेन च भास्वता।
अग्निनेव गिरिः श्वेतो गतासुरपि दुःसहः ॥ २१ ॥

मूलम्

शातकौम्या स्रजा भाति कवचेन च भास्वता।
अग्निनेव गिरिः श्वेतो गतासुरपि दुःसहः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यद्यपि दुःसहके प्राण चले गये हैं तो भी वह सोनेकी माला और तेजस्वी कवचसे सुशोभित हो अग्नियुक्त श्वेत पर्वतके समान जान पड़ता है॥२१॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते स्त्रीपर्वणि स्त्रीविलापपर्वणि गान्धारीवाक्ये एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्वके अन्तर्गत स्त्रीविलापपर्वमें गान्धारीवाक्यविषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१९॥