भागसूचना
द्वादशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
पाण्डवोंका धृतराष्ट्रसे मिलना, धृतराष्ट्रके द्वारा भीमकी लोहमयी प्रतिमाका भंग होना और शोक करनेपर श्रीकृष्णका उन्हें समझाना
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतेषु सर्वसैन्येषु धर्मराजो युधिष्ठिरः।
शुश्रुवे पितरं वृद्धं निर्यान्तं गजसाह्वयात् ॥ १ ॥
सोऽभ्ययात् पुत्रशोकार्तः पुत्रशोकपरिप्लुतम् ।
शोचमानं महाराज भ्रातृभिः सहितस्तदा ॥ २ ॥
मूलम्
हतेषु सर्वसैन्येषु धर्मराजो युधिष्ठिरः।
शुश्रुवे पितरं वृद्धं निर्यान्तं गजसाह्वयात् ॥ १ ॥
सोऽभ्ययात् पुत्रशोकार्तः पुत्रशोकपरिप्लुतम् ।
शोचमानं महाराज भ्रातृभिः सहितस्तदा ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— महाराज जनमेजय! समस्त सेनाओंका संहार हो जानेपर धर्मराज युधिष्ठिरने जब सुना कि हमारे बूढ़े ताऊ संग्राममें मरे हुए वीरोंका अन्त्येष्टिकर्म करानेके लिये हस्तिनापुरसे चल दिये हैं, तब वे स्वयं पुत्रशोकसे आतुर हो पुत्रोंके ही शोकमें डूबकर चिन्तामग्न हुए राजा धृतराष्ट्रके पास अपने सब भाइयोंके साथ गये॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्वीयमानो वीरेण दाशार्हेण महात्मना।
युयुधानेन च तथा तथैव च युयुत्सुना ॥ ३ ॥
मूलम्
अन्वीयमानो वीरेण दाशार्हेण महात्मना।
युयुधानेन च तथा तथैव च युयुत्सुना ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय दशार्हकुलनन्दन वीर महात्मा श्रीकृष्ण, सात्यकि और युयुत्सु भी उनके पीछे-पीछे गये॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमन्वगात् सुदुःखार्ता द्रौपदी शोककर्शिता।
सह पाञ्चालयोषिद्भिर्यास्तत्रासन् समागताः ॥ ४ ॥
मूलम्
तमन्वगात् सुदुःखार्ता द्रौपदी शोककर्शिता।
सह पाञ्चालयोषिद्भिर्यास्तत्रासन् समागताः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अत्यन्त दुःखसे आतुर और शोकसे दुबली हुई द्रौपदीने भी वहाँ आयी हुई पांचाल-महिलाओंके साथ उनका अनुसरण किया॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स गङ्गामनु वृन्दानि स्त्रीणां भरतसत्तम।
कुररीणामिवार्तानां क्रोशन्तीनां ददर्श ह ॥ ५ ॥
मूलम्
स गङ्गामनु वृन्दानि स्त्रीणां भरतसत्तम।
कुररीणामिवार्तानां क्रोशन्तीनां ददर्श ह ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! गंगातटपर पहुँचकर युधिष्ठिरने कुररीकी तरह आर्तस्वरसे विलाप करती हुई स्त्रियोंके कई दल देखे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ताभिः परिवृतो राजा क्रोशन्तीभिः सहस्रशः।
ऊर्ध्वबाहुभिरार्ताभी रुदतीभिः प्रियाप्रियैः ॥ ६ ॥
मूलम्
ताभिः परिवृतो राजा क्रोशन्तीभिः सहस्रशः।
ऊर्ध्वबाहुभिरार्ताभी रुदतीभिः प्रियाप्रियैः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ पाण्डवोंके प्रिय और अप्रिय जनोंके लिये हाथ उठाकर आर्तस्वरसे रोती और करुण क्रन्दन करती हुई सहस्रों महिलाओंने राजा युधिष्ठिरको चारों ओरसे घेर लिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्व नु धर्मज्ञता राज्ञः क्व नु साद्यानृशंसता।
यच्चावधीत् पितॄन् भ्रातॄन् गुरुपुत्रान् सखीनपि ॥ ७ ॥
मूलम्
क्व नु धर्मज्ञता राज्ञः क्व नु साद्यानृशंसता।
यच्चावधीत् पितॄन् भ्रातॄन् गुरुपुत्रान् सखीनपि ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे बोलीं—‘अहो! राजाकी वह धर्मज्ञता और दयालुता कहाँ चली गयी कि इन्होंने ताऊ, चाचा, भाई, गुरुपुत्रों और मित्रोंका भी वध कर डाला॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घातयित्वा कथं द्रोणं भीष्मं चापि पितामहम्।
मनस्तेऽभून्महाबाहो हत्वा चापि जयद्रथम् ॥ ८ ॥
मूलम्
घातयित्वा कथं द्रोणं भीष्मं चापि पितामहम्।
मनस्तेऽभून्महाबाहो हत्वा चापि जयद्रथम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘महाबाहो! द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और जयद्रथका भी वध करके आपके मनकी कैसी अवस्था हुई?॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किं नु राज्येन ते कार्यं पितॄन् भ्रातॄनपश्यतः।
अभिमन्युं च दुर्धर्षं द्रौपदेयांश्च भारत ॥ ९ ॥
मूलम्
किं नु राज्येन ते कार्यं पितॄन् भ्रातॄनपश्यतः।
अभिमन्युं च दुर्धर्षं द्रौपदेयांश्च भारत ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भरतवंशी नरेश! अपने ताऊ, चाचा और भाइयोंको, दुर्जय वीर अभिमन्युको तथा द्रौपदीके सभी पुत्रोंको न देखनेपर इस राज्यसे आपका क्या प्रयोजन है?’॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अतीत्य ता महाबाहुः क्रोशन्तीः कुररीरिव।
ववन्दे पितरं ज्येष्ठं धर्मराजो युधिष्ठिरः ॥ १० ॥
मूलम्
अतीत्य ता महाबाहुः क्रोशन्तीः कुररीरिव।
ववन्दे पितरं ज्येष्ठं धर्मराजो युधिष्ठिरः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धर्मराज महाबाहु युधिष्ठिरने कुररीकी भाँति क्रन्दन करती हुई उन स्त्रियोंके घेरेको लाँघकर अपने ताऊ धृतराष्ट्रको प्रणाम किया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽभिवाद्य पितरं धर्मेणामित्रकर्षणाः ।
न्यवेदयन्त नामानि पाण्डवास्तेऽपि सर्वशः ॥ ११ ॥
मूलम्
ततोऽभिवाद्य पितरं धर्मेणामित्रकर्षणाः ।
न्यवेदयन्त नामानि पाण्डवास्तेऽपि सर्वशः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् सभी शत्रुसूदन पाण्डवोंने धर्मानुसार ताऊको प्रणाम करके अपने नाम बताये॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमात्मजान्तकरणं पिता पुत्रवधार्दितः ।
अप्रीयमाणः शोकार्तः पाण्डवं परिषस्वजे ॥ १२ ॥
मूलम्
तमात्मजान्तकरणं पिता पुत्रवधार्दितः ।
अप्रीयमाणः शोकार्तः पाण्डवं परिषस्वजे ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुत्रवधसे पीड़ित हुए पिताने शोकसे व्याकुल हो अपने पुत्रोंका अन्त करनेवाले पाण्डुपुत्र युधिष्ठिरको हृदयसे लगाया; परंतु उस समय उनका मन प्रसन्न नहीं था॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्मराजं परिष्वज्य सान्त्वयित्वा च भारत।
दुष्टात्मा भीममन्वैच्छद् दिधक्षुरिव पावकः ॥ १३ ॥
मूलम्
धर्मराजं परिष्वज्य सान्त्वयित्वा च भारत।
दुष्टात्मा भीममन्वैच्छद् दिधक्षुरिव पावकः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! धर्मराजको हृदयसे लगाकर उन्हें सान्त्वना दे धृतराष्ट्र भीमको इस प्रकार खोजने लगे, मानो आग बनकर उन्हें जला डालना चाहते हों। उस समय उनके मनमें दुर्भावना जाग उठी थी॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स कोपपावकस्तस्य शोकवायुसमीरितः ।
भीमसेनमयं दावं दिधक्षुरिव दृश्यते ॥ १४ ॥
मूलम्
स कोपपावकस्तस्य शोकवायुसमीरितः ।
भीमसेनमयं दावं दिधक्षुरिव दृश्यते ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शोकरूपी वायुसे बढ़ी हुई उनकी क्रोधमयी अग्नि ऐसी दिखायी दे रही थी, मानो वह भीमसेनरूपी वनको जलाकर भस्म कर देना चाहती हो॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य संकल्पमाज्ञाय भीमं प्रत्यशुभं हरिः।
भीममाक्षिप्य पाणिभ्यां प्रददौ भीममायसम् ॥ १५ ॥
मूलम्
तस्य संकल्पमाज्ञाय भीमं प्रत्यशुभं हरिः।
भीममाक्षिप्य पाणिभ्यां प्रददौ भीममायसम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनके प्रति उनके अशुभ संकल्पको जानकर श्रीकृष्णने भीमसेनको झटका देकर हटा दिया और दोनों हाथोंसे उनकी लोहमयी मूर्ति धृतराष्ट्रके सामने कर दी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रागेव तु महाबुद्धिर्बुद्ध्वा तस्येङ्गितं हरिः।
संविधानं महाप्राज्ञस्तत्र चक्रे जनार्दनः ॥ १६ ॥
मूलम्
प्रागेव तु महाबुद्धिर्बुद्ध्वा तस्येङ्गितं हरिः।
संविधानं महाप्राज्ञस्तत्र चक्रे जनार्दनः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाज्ञानी और परम बुद्धिमान् भगवान् श्रीकृष्णको पहलेसे ही उनका अभिप्राय ज्ञात हो गया था, इसलिये उन्होंने वहाँ यह व्यवस्था कर ली थी॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं गृहीत्वैव पाणिभ्यां भीमसेनमयस्मयम्।
बभञ्ज बलवान् राजा मन्यमानो वृकोदरम् ॥ १७ ॥
मूलम्
तं गृहीत्वैव पाणिभ्यां भीमसेनमयस्मयम्।
बभञ्ज बलवान् राजा मन्यमानो वृकोदरम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बलवान् राजा धृतराष्ट्रने उस लोहमय भीमसेन-को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बाँहोंसे दबाकर तोड़ डाला॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागायुतबलप्राणः स राजा भीममायसम्।
भङ्क्त्वा विमथितोरस्कः सुस्राव रुधिरं मुखात् ॥ १८ ॥
मूलम्
नागायुतबलप्राणः स राजा भीममायसम्।
भङ्क्त्वा विमथितोरस्कः सुस्राव रुधिरं मुखात् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा धृतराष्ट्रमें दस हजार हाथियोंका बल था तो भी भीमकी लोहमयी प्रतिमाको तोड़कर उनकी छाती व्यथित हो गयी और मुँहसे खून निकलने लगा॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पपात मेदिन्यां तथैव रुधिरोक्षितः।
प्रपुष्पिताग्रशिखरः पारिजात इव द्रुमः ॥ १९ ॥
मूलम्
ततः पपात मेदिन्यां तथैव रुधिरोक्षितः।
प्रपुष्पिताग्रशिखरः पारिजात इव द्रुमः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे उसी अवस्थामें खूनसे भींगकर पृथ्वीपर गिर पड़े, मानो ऊपरकी डालीपर खिले हुए लाल फूलोंसे सुशोभित पारिजातका वृक्ष धराशायी हो गया हो॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रत्यगृह्णाच्च तं विद्वान् सूतो गावल्गणिस्तदा।
मैवमित्यब्रवीच्चैनं शमयन् सान्त्वयन्निव ॥ २० ॥
मूलम्
प्रत्यगृह्णाच्च तं विद्वान् सूतो गावल्गणिस्तदा।
मैवमित्यब्रवीच्चैनं शमयन् सान्त्वयन्निव ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उनके विद्वान् सारथि गवल्गणपुत्र संजयने उन्हें पकड़कर उठाया और समझा-बुझाकर शान्त करते हुए कहा—‘आपको ऐसा नहीं करना चाहिये’॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु कोपं समुत्सृज्य गतमन्युर्महामनाः।
हा हा भीमेति चुक्रोश नृपः शोकसमन्वितः ॥ २१ ॥
मूलम्
स तु कोपं समुत्सृज्य गतमन्युर्महामनाः।
हा हा भीमेति चुक्रोश नृपः शोकसमन्वितः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब रोषका आवेश दूर हो गया, तब वे महामना नरेश क्रोध छोड़कर शोकमें डूब गये और ‘हा भीम! हा भीम!’ कहते हुए विलाप करने लगे॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं विदित्वा गतक्रोधं भीमसेनवधार्दितम्।
वासुदेवो वरः पुंसामिदं वचनमब्रवीत् ॥ २२ ॥
मूलम्
तं विदित्वा गतक्रोधं भीमसेनवधार्दितम्।
वासुदेवो वरः पुंसामिदं वचनमब्रवीत् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्हें भीमसेनके वधकी आशंकासे पीड़ित और क्रोध-शून्य हुआ जान पुरुषोत्तम श्रीकृष्णने इस प्रकार कहा—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मा शुचो धृतराष्ट्र त्वं नैष भीमस्त्वया हतः।
आयसी प्रतिमा ह्येषा त्वया निष्पातिता विभो ॥ २३ ॥
मूलम्
मा शुचो धृतराष्ट्र त्वं नैष भीमस्त्वया हतः।
आयसी प्रतिमा ह्येषा त्वया निष्पातिता विभो ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘महाराज धृतराष्ट्र! आप शोक न करें। ये भीम आपके हाथसे नहीं मारे गये हैं। प्रभो! यह तो लोहेकी एक प्रतिमा थी, जिसे आपने चूर-चूर कर डाला॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वां क्रोधवशमापन्नं विदित्वा भरतर्षभ।
मयापकृष्टः कौन्तेयो मृत्योर्दंष्ट्रान्तरं गतः ॥ २४ ॥
मूलम्
त्वां क्रोधवशमापन्नं विदित्वा भरतर्षभ।
मयापकृष्टः कौन्तेयो मृत्योर्दंष्ट्रान्तरं गतः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भरतश्रेष्ठ! आपको क्रोधके वशीभूत हुआ जान मैंने मृत्युकी दाढ़ोंमें फँसे हुए कुन्तीकुमार भीमसेनको पीछे खींच लिया था॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न हि ते राजशार्दूल बले तुल्योऽस्ति कश्चन।
कः सहेत महाबाहो बाह्वोर्विग्रहणं नरः ॥ २५ ॥
मूलम्
न हि ते राजशार्दूल बले तुल्योऽस्ति कश्चन।
कः सहेत महाबाहो बाह्वोर्विग्रहणं नरः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजसिंह! बलमें आपकी समानता करनेवाला कोई नहीं है। महाबाहो! आपकी दोनों भुजाओंकी पकड़ कौन मनुष्य सह सकता है?॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथान्तकमनुप्राप्य जीवन् कश्चिन्न मुच्यते।
एवं बाह्वन्तरं प्राप्य तव जीवेन्न कश्चन ॥ २६ ॥
मूलम्
यथान्तकमनुप्राप्य जीवन् कश्चिन्न मुच्यते।
एवं बाह्वन्तरं प्राप्य तव जीवेन्न कश्चन ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जैसे यमराजके पास पहुँचकर कोई भी जीवित नहीं छूट सकता, उसी प्रकार आपकी भुजाओंके बीचमें पड़ जानेपर किसीके प्राण नहीं बच सकते॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मात् पुत्रेण या तेऽसौ प्रतिमा कारिताऽऽयसी।
भीमस्य सेयं कौरव्य तवैवोपहृता मया ॥ २७ ॥
मूलम्
तस्मात् पुत्रेण या तेऽसौ प्रतिमा कारिताऽऽयसी।
भीमस्य सेयं कौरव्य तवैवोपहृता मया ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कुरुनन्दन! इसलिये आपके पुत्रने जो भीमसेनकी लोहमयी प्रतिमा बनवा रखी थी, वही मैंने आपको भेंट कर दी॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रशोकाभिसंतप्तं धर्मादपकृतं मनः ।
तव राजेन्द्र तेन त्वं भीमसेनं जिघांससि ॥ २८ ॥
मूलम्
पुत्रशोकाभिसंतप्तं धर्मादपकृतं मनः ।
तव राजेन्द्र तेन त्वं भीमसेनं जिघांससि ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजेन्द्र! आपका मन पुत्रशोकसे संतप्त हो धर्मसे विचलित हो गया है; इसीलिये आप भीमसेनको मार डालना चाहते हैं॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न त्वेतत् ते क्षमं राजन् हन्यास्त्वं यद् वृकोदरम्।
न हि पुत्रा महाराज जीवेयुस्ते कथंचन ॥ २९ ॥
मूलम्
न त्वेतत् ते क्षमं राजन् हन्यास्त्वं यद् वृकोदरम्।
न हि पुत्रा महाराज जीवेयुस्ते कथंचन ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजन्! आपके लिये यह कदापि उचित न होगा कि आप भीमका वध करें। महाराज! (भीमसेन न मारते तो भी) आपके पुत्र किसी तरह जीवित नहीं रह सकते थे (क्योंकि उनकी आयु पूरी हो चुकी थी)॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्माद् यत् कृतमस्माभिर्मन्यमानैः शमं प्रति।
अनुमन्यस्व तत् सर्वं मा च शोके मनः कृथाः॥३०॥
मूलम्
तस्माद् यत् कृतमस्माभिर्मन्यमानैः शमं प्रति।
अनुमन्यस्व तत् सर्वं मा च शोके मनः कृथाः॥३०॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अतः हमलोगोंने सर्वत्र शान्ति स्थापित करनेके उद्देश्यसे जो कुछ किया है, उन सब बातोंका आप भी अनुमोदन करें। मनको व्यर्थ शोकमें न डालें’॥३०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि आयसभीमभङ्गे द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्वके अन्तर्गत जलप्रदानिकपर्वमें भीमसेनकी लोहमयी प्रतिमाका भंग होनाविषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१२॥