०११ कृपद्रौणिभोजदर्शने

भागसूचना

एकादशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

राजा धृतराष्ट्रसे कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्माकी भेंट और कृपाचार्यका कौरव-पाण्डवोंकी सेनाके विनाशकी सूचना देना

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्रोशमात्रं ततो गत्वा ददृशुस्तान् महारथान्।
शारद्वतं कृपं द्रौणिं कृतवर्माणमेव च ॥ १ ॥

मूलम्

क्रोशमात्रं ततो गत्वा ददृशुस्तान् महारथान्।
शारद्वतं कृपं द्रौणिं कृतवर्माणमेव च ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— राजन्! वे सब लोग हस्तिनापुरसे एक ही कोसकी दूरीपर पहुँचे होंगे कि उन्हें शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा और कृतवर्मा—ये तीनों महारथी दिखायी दिये॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तु दृष्ट्वैव राजानं प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम्।
अश्रुकण्ठा विनिःश्वस्य रुदन्तमिदमब्रुवन् ॥ २ ॥

मूलम्

ते तु दृष्ट्वैव राजानं प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम्।
अश्रुकण्ठा विनिःश्वस्य रुदन्तमिदमब्रुवन् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रोते हुए ऐश्वर्यशाली प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्रको देखते ही आँसुओंसे उनका गला भर आया और वे इस प्रकार बोले—॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रस्तव महाराज कृत्वा कर्म सुदुष्करम्।
गतः सानुचरो राजन् शक्रलोकं महीपते ॥ ३ ॥

मूलम्

पुत्रस्तव महाराज कृत्वा कर्म सुदुष्करम्।
गतः सानुचरो राजन् शक्रलोकं महीपते ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पृथ्वीनाथ महाराज! आपका पुत्र अत्यन्त दुष्कर कर्म करके अपने सेवकोंसहित इन्द्रलोकमें जा पहुँचा है॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनबलान्मुक्ता वयमेव त्रयो रथाः।
सर्वमन्यत् परिक्षीणं सैन्यं ते भरतर्षभ ॥ ४ ॥

मूलम्

दुर्योधनबलान्मुक्ता वयमेव त्रयो रथाः।
सर्वमन्यत् परिक्षीणं सैन्यं ते भरतर्षभ ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भरतश्रेष्ठ! दुर्योधनकी सेनासे केवल हम तीन रथी ही जीवित बचे हैं। आपकी अन्य सारी सेना नष्ट हो गयी’॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येवमुक्त्वा राजानं कृपः शारद्वतस्ततः।
गान्धारीं पुत्रशोकार्तामिदं वचनमब्रवीत् ॥ ५ ॥

मूलम्

इत्येवमुक्त्वा राजानं कृपः शारद्वतस्ततः।
गान्धारीं पुत्रशोकार्तामिदं वचनमब्रवीत् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा धृतराष्ट्रसे ऐसा कहकर शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्य पुत्रशोकसे पीड़ित हुई गान्धारीसे इस प्रकार बोले—॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभीता युद्ध्यमानास्ते घ्नन्तः शत्रुगणान्‌ बहून्।
वीरकर्माणि कुर्वाणाः पुत्रास्ते निधनं गताः ॥ ६ ॥

मूलम्

अभीता युद्ध्यमानास्ते घ्नन्तः शत्रुगणान्‌ बहून्।
वीरकर्माणि कुर्वाणाः पुत्रास्ते निधनं गताः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देवि! आपके सभी पुत्र निर्भय होकर जूझते और बहुसंख्यक शत्रुओंका संहार करते हुए वीरोचित कर्म करके वीरगतिको प्राप्त हुए हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्रुवं सम्प्राप्य लोकांस्ते निर्मलान्‌ शस्त्रनिर्जितान्।
भास्वरं देहमास्थाय विहरन्त्यमरा इव ॥ ७ ॥

मूलम्

ध्रुवं सम्प्राप्य लोकांस्ते निर्मलान्‌ शस्त्रनिर्जितान्।
भास्वरं देहमास्थाय विहरन्त्यमरा इव ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘निश्चय ही वे शस्त्रोंद्वारा जीते हुए निर्मल लोकोंमें पहुँचकर तेजस्वी शरीर धारण करके वहाँ देवताओंके समान विहार करते होंगे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि कश्चिद्धि शूराणां युद्ध्यमानः पराङ्‌मुखः।
शस्त्रेण निधनं प्राप्तो न च कश्चित् कृताञ्जलिः ॥ ८ ॥

मूलम्

न हि कश्चिद्धि शूराणां युद्ध्यमानः पराङ्‌मुखः।
शस्त्रेण निधनं प्राप्तो न च कश्चित् कृताञ्जलिः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘उन शूरवीरोंमेंसे कोई भी युद्ध करते समय पीठ नहीं दिखा सका है। किसीने भी शत्रुके सामने हाथ नहीं जोड़े हैं। सभी शस्त्रके द्वारा मारे गये हैं॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं तां क्षत्रियस्याहुः पुराणाः परमां गतिम्।
शस्त्रेण निधनं संख्ये तन्न शोचितुमर्हसि ॥ ९ ॥

मूलम्

एवं तां क्षत्रियस्याहुः पुराणाः परमां गतिम्।
शस्त्रेण निधनं संख्ये तन्न शोचितुमर्हसि ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘इस प्रकार युद्धमें जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है, उसे प्राचीन महर्षि क्षत्रियके लिये उत्तम गति बताते हैं; अतः उनके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न चापि शत्रवस्तेषामृद्ध्यन्ते राज्ञि पाण्डवाः।
शृणु यत् कृतमस्माभिरश्वत्थामपुरोगमैः ॥ १० ॥

मूलम्

न चापि शत्रवस्तेषामृद्ध्यन्ते राज्ञि पाण्डवाः।
शृणु यत् कृतमस्माभिरश्वत्थामपुरोगमैः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महारानी! उनके शत्रु पाण्डव भी विशेष लाभमें नहीं हैं। अश्वत्थामाको आगे करके हमने जो कुछ किया है, उसे सुनिये॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अधर्मेण हतं श्रुत्वा भीमसेनेन ते सुतम्।
सुप्तं शिबिरमासाद्य पाण्डूनां कदनं कृतम् ॥ ११ ॥

मूलम्

अधर्मेण हतं श्रुत्वा भीमसेनेन ते सुतम्।
सुप्तं शिबिरमासाद्य पाण्डूनां कदनं कृतम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भीमसेनने आपके पुत्रको अधर्मसे मारा है, यह सुनकर हमलोग भी पाण्डवोंके सोते हुए शिविरमें जा पहुँचे और पाण्डववीरोंका संहार कर डाला॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चाला निहताः सर्वे धृष्टद्युम्नपुरोगमाः।
द्रुपदस्यात्मजाश्चैव द्रौपदेयाश्च पातिताः ॥ १२ ॥

मूलम्

पञ्चाला निहताः सर्वे धृष्टद्युम्नपुरोगमाः।
द्रुपदस्यात्मजाश्चैव द्रौपदेयाश्च पातिताः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘द्रुपदके पुत्र धृष्टद्युम्न आदि सारे पांचाल मार डाले गये और द्रौपदीके पाँचों पुत्रोंको भी हमने मार गिराया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा विशसनं कृत्वा पुत्रशत्रुगणस्य ते।
प्राद्रवाम रणे स्थातुं न हि शक्यामहे त्रयः ॥ १३ ॥

मूलम्

तथा विशसनं कृत्वा पुत्रशत्रुगणस्य ते।
प्राद्रवाम रणे स्थातुं न हि शक्यामहे त्रयः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘इस प्रकार आपके पुत्रके शत्रुओंका रणभूमिमें संहार करके हम तीनों भागे जा रहे हैं। अब यहाँ ठहर नहीं सकते॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते हि शूरा महेष्वासाः क्षिप्रमेष्यन्ति पाण्डवाः।
अमर्षवशमापन्ना वैरं प्रतिजिहीर्षवः ॥ १४ ॥

मूलम्

ते हि शूरा महेष्वासाः क्षिप्रमेष्यन्ति पाण्डवाः।
अमर्षवशमापन्ना वैरं प्रतिजिहीर्षवः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘क्योंकि अमर्षमें भरे हुए वे महाधनुर्धर वीर पाण्डव वैरका बदला लेनेकी इच्छासे शीघ्र यहाँ आयेंगे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते हतानात्मजान् श्रुत्वाप्रमत्ताः पुरुषर्षभाः।
निरीक्षन्तः पदं शूराः क्षिप्रमेव यशस्विनि ॥ १५ ॥

मूलम्

ते हतानात्मजान् श्रुत्वाप्रमत्ताः पुरुषर्षभाः।
निरीक्षन्तः पदं शूराः क्षिप्रमेव यशस्विनि ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘यशस्विनि! अपने पुत्रोंके मारे जानेका समाचार सुनकर सदा सावधान रहनेवाले पुरुषप्रवर पाण्डव हमारा चरणचिह्न देखते हुए शीघ्र ही हमलोगोंका पीछा करेंगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां तु कदनं कृत्वा संस्थातुं नोत्सहामहे।
अनुजानीहि नो राज्ञि मा च शोके मनः कृथाः॥१६॥

मूलम्

तेषां तु कदनं कृत्वा संस्थातुं नोत्सहामहे।
अनुजानीहि नो राज्ञि मा च शोके मनः कृथाः॥१६॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘रानीजी! उनके पुत्रों और सम्बन्धियोंका विनाश करके हम यहाँ ठहर नहीं सकते; अतः हमें जानेकी आज्ञा दीजिये और आप भी अपने मनसे शोकको निकाल दीजिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजंस्त्वमनुजानीहि धैर्यमातिष्ठ चोत्तमम् ।
दिष्टान्तं पश्य चापि त्वं क्षात्रं धर्मं च केवलम्॥१७॥

मूलम्

राजंस्त्वमनुजानीहि धैर्यमातिष्ठ चोत्तमम् ।
दिष्टान्तं पश्य चापि त्वं क्षात्रं धर्मं च केवलम्॥१७॥

अनुवाद (हिन्दी)

(फिर वे धृतराष्ट्रसे बोले—) ‘राजन्! आप भी हमें जानेकी आज्ञा प्रदान करें और महान् धैर्यका आश्रय लें, केवल क्षात्रधर्मपर दृष्टि रखकर इतना ही देखें कि उनकी मृत्यु कैसे हुई है?’॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येवमुक्त्वा राजानं कृत्वा चाभिप्रदक्षिणम्।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रोणपुत्रश्च भारत ॥ १८ ॥
अवेक्षमाणा राजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम्।
गङ्गामनु महाराज तूर्णमश्वानचोदयन् ॥ १९ ॥

मूलम्

इत्येवमुक्त्वा राजानं कृत्वा चाभिप्रदक्षिणम्।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रोणपुत्रश्च भारत ॥ १८ ॥
अवेक्षमाणा राजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम्।
गङ्गामनु महाराज तूर्णमश्वानचोदयन् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! राजासे ऐसा कहकर उनकी प्रदक्षिणा करके कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामाने मनीषी राजा धृतराष्ट्रकी ओर देखते हुए तुरंत ही गंगातटकी ओर अपने घोड़े हाँक दिये॥१८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपक्रम्य तु ते राजन् सर्व एव महारथाः।
आमन्त्र्यान्योन्यमुद्विग्नास्त्रिधा ते प्रययुस्तदा ॥ २० ॥

मूलम्

अपक्रम्य तु ते राजन् सर्व एव महारथाः।
आमन्त्र्यान्योन्यमुद्विग्नास्त्रिधा ते प्रययुस्तदा ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वहाँसे हटकर वे सभी महारथी उद्विग्न हो एक-दूसरेसे विदा ले तीन मार्गोंपर चल दिये॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जगाम हास्तिनपुरं कृपः शारद्वतस्तदा।
स्वमेव राष्ट्रं हार्दिक्यो द्रौणिर्व्यासाश्रमं ययौ ॥ २१ ॥

मूलम्

जगाम हास्तिनपुरं कृपः शारद्वतस्तदा।
स्वमेव राष्ट्रं हार्दिक्यो द्रौणिर्व्यासाश्रमं ययौ ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्य तो हस्तिनापुर चले गये, कृतवर्मा अपने ही देशकी ओर चल दिया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामाने व्यास-आश्रमकी राह ली॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं ते प्रययुर्वीरा वीक्षमाणाः परस्परम्।
भयार्ताः पाण्डुपुत्राणामागस्कृत्वा महात्मनाम् ॥ २२ ॥

मूलम्

एवं ते प्रययुर्वीरा वीक्षमाणाः परस्परम्।
भयार्ताः पाण्डुपुत्राणामागस्कृत्वा महात्मनाम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महात्मा पाण्डवोंका अपराध करके भयसे पीड़ित हुए वे तीनों वीर इस प्रकार एक-दूसरेकी ओर देखते हुए वहाँसे खिसक गये॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समेत्य वीरा राजानं तदा त्वनुदिते रवौ।
विप्रजग्मुर्महात्मानो यथेच्छकमरिंदमाः ॥ २३ ॥

मूलम्

समेत्य वीरा राजानं तदा त्वनुदिते रवौ।
विप्रजग्मुर्महात्मानो यथेच्छकमरिंदमाः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा धृतराष्ट्रसे मिलकर शत्रुओंका दमन करनेवाले वे तीनों महामनस्वी वीर सूर्योदयसे पहले ही अपने अभीष्ट स्थानोंकी ओर चल पड़े॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समासाद्याथ वै द्रौणिं पाण्डुपुत्रा महारथाः।
व्यजयंस्ते रणे राजन् विक्रम्य तदनन्तरम् ॥ २४ ॥

मूलम्

समासाद्याथ वै द्रौणिं पाण्डुपुत्रा महारथाः।
व्यजयंस्ते रणे राजन् विक्रम्य तदनन्तरम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर महारथी पाण्डवोंने द्रोणपुत्र अश्वत्थामाके पास पहुँचकर उसे बलपूर्वक युद्धमें पराजित किया॥२४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि कृपद्रौणिभोजदर्शने एकादशोऽध्यायः ॥ ११ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्वके अन्तर्गत जलप्रदानिकपर्वमें कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्माका दर्शनविषयक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११॥