००४ धृतराष्ट्रविशोककरणे

भागसूचना

चतुर्थोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दुःखमय संसारके गहन स्वरूपका वर्णन और उससे छूटनेका उपाय

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं संसारगहनं विज्ञेयं वदतां वर।
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तत्त्वमाख्याहि पृच्छतः ॥ १ ॥

मूलम्

कथं संसारगहनं विज्ञेयं वदतां वर।
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तत्त्वमाख्याहि पृच्छतः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने पूछा— वक्ताओंमें श्रेष्ठ विदुर! इस गहन संसारके स्वरूपका ज्ञान कैसे हो? यह मैं सुनना चाहता हूँ। मेरे प्रश्नके अनुसार तुम इस विषयका यथार्थरूपसे वर्णन करो॥१॥

मूलम् (वचनम्)

विदुर उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

जन्मप्रभृति भूतानां क्रिया सर्वोपलक्ष्यते।
पूर्वमेवेह कलिले वसते किंचिदन्तरम् ॥ २ ॥
ततः स पञ्चमेऽतीते मासे वासमकल्पयत्।
ततः सर्वाङ्गसम्पूर्णो गर्भो वै स तु जायते ॥ ३ ॥

मूलम्

जन्मप्रभृति भूतानां क्रिया सर्वोपलक्ष्यते।
पूर्वमेवेह कलिले वसते किंचिदन्तरम् ॥ २ ॥
ततः स पञ्चमेऽतीते मासे वासमकल्पयत्।
ततः सर्वाङ्गसम्पूर्णो गर्भो वै स तु जायते ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विदुरजीने कहा— महाराज! जब गर्भाशयमें वीर्य और रजका संयोग होता है तभीसे जीवोंकी गर्भवृद्धिरूप सारी क्रिया शास्त्रके अनुसार देखी जाती हैं।1 आरम्भमें जीव कलिल (वीर्य और रजके संयोग)-के रूपमें रहता है, फिर कुछ दिन बाद पाँचवाँ महीना बीतनेपर वह चैतन्यरूपसे प्रकट होकर पिण्डमें निवास करने लगता है। इसके बाद वह गर्भस्थ पिण्ड सर्वांगपूर्ण हो जाता है॥२-३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अमेध्यमध्ये वसति मांसशोणितलेपने ।
ततस्तु वायुवेगेन ऊर्ध्वपादो ह्यधःशिराः ॥ ४ ॥

मूलम्

अमेध्यमध्ये वसति मांसशोणितलेपने ।
ततस्तु वायुवेगेन ऊर्ध्वपादो ह्यधःशिराः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस समय उसे मांस और रुधिरसे लिपे हुए अत्यन्त अपवित्र गर्भाशयमें रहना पड़ता है। फिर वायुके वेगसे उसके पैर ऊपरकी ओर हो जाते हैं और सिर नीचेकी ओर॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

योनिद्वारमुपागम्य बहून् क्लेशान् समृच्छति।
योनिसम्पीडनाच्चैव पूर्वकर्मभिरन्वितः ॥ ५ ॥
तस्मान्मुक्तः स संसारादन्यान् पश्यत्युपद्रवान्।
ग्रहास्तमनुगच्छन्ति सारमेया इवामिषम् ॥ ६ ॥

मूलम्

योनिद्वारमुपागम्य बहून् क्लेशान् समृच्छति।
योनिसम्पीडनाच्चैव पूर्वकर्मभिरन्वितः ॥ ५ ॥
तस्मान्मुक्तः स संसारादन्यान् पश्यत्युपद्रवान्।
ग्रहास्तमनुगच्छन्ति सारमेया इवामिषम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस स्थितिमें योनिद्वारके समीप आ जानेसे उसे बड़े दुःख सहने पड़ते हैं। फिर पूर्व कर्मोंसे संयुक्त हुआ वह जीव योनिमार्गसे पीड़ित हो उससे छुटकारा पाकर बाहर आ जाता है और संसारमें आकर अन्यान्य प्रकारके उपद्रवोंका सामना करता है। जैसे कुत्ते मांसकी ओर झपटते हैं, उसी प्रकार बालग्रह उस शिशुके पीछे लगे रहते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्राप्तोत्तरे काले व्याधयश्चापि तं तथा।
उपसर्पन्ति जीवन्तं बध्यमानं स्वकर्मभिः ॥ ७ ॥

मूलम्

ततः प्राप्तोत्तरे काले व्याधयश्चापि तं तथा।
उपसर्पन्ति जीवन्तं बध्यमानं स्वकर्मभिः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता है, त्यों-ही-त्यों अपने कर्मोंसे बँधे हुए उस जीवको जीवित अवस्थामें नयी-नयी व्याधियाँ प्राप्त होने लगती हैं॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं बद्धमिन्द्रियैः पाशैः संगस्वादुभिरावृतम्।
व्यसनान्यपि वर्तन्ते विविधानि नराधिप ॥ ८ ॥

मूलम्

तं बद्धमिन्द्रियैः पाशैः संगस्वादुभिरावृतम्।
व्यसनान्यपि वर्तन्ते विविधानि नराधिप ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! फिर आसक्तिके कारण जिनमें रसकी प्रतीति होती है, उन विषयोंसे घिरे और इन्द्रियरूपी पाशोंसे बँधे हुए उस संसारी जीवको नाना प्रकारके संकट घेर लेते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बध्यमानश्च तैर्भूयो नैव तृप्तिमुपैति सः।
तदा नावैति चैवायं प्रकुर्वन् साध्वसाधु वा ॥ ९ ॥

मूलम्

बध्यमानश्च तैर्भूयो नैव तृप्तिमुपैति सः।
तदा नावैति चैवायं प्रकुर्वन् साध्वसाधु वा ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनसे बँध जानेपर पुनः इसे कभी तृप्ति ही नहीं होती है। उस अवस्थामें वह भले-बुरे कर्म करता हुआ भी उनके विषयमें कुछ समझ नहीं पाता॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव परिरक्षन्ति ये ध्यानपरिनिष्ठिताः।
अयं न बुध्यते तावद् यमलोकमथागतम् ॥ १० ॥

मूलम्

तथैव परिरक्षन्ति ये ध्यानपरिनिष्ठिताः।
अयं न बुध्यते तावद् यमलोकमथागतम् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग भगवान्‌के ध्यानमें लगे रहनेवाले हैं, वे ही शास्त्रके अनुसार चलकर अपनी रक्षा कर पाते हैं। साधारण जीव तो अपने सामने आये हुए यमलोकको भी नहीं समझ पाता है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यमदूतैर्विकृष्यंश्च मृत्युं कालेन गच्छति।
वाग्घीनस्य च यन्मात्रमिष्टानिष्टं कृतं मुखे।
भूय एवात्मनाऽऽत्मानं बध्यमानमुपेक्षते ॥ ११ ॥

मूलम्

यमदूतैर्विकृष्यंश्च मृत्युं कालेन गच्छति।
वाग्घीनस्य च यन्मात्रमिष्टानिष्टं कृतं मुखे।
भूय एवात्मनाऽऽत्मानं बध्यमानमुपेक्षते ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर कालसे प्रेरित हो यमदूत उसे शरीरसे बाहर खींच लेते हैं और वह मृत्युको प्राप्त हो जाता है। उस समय उसमें बोलनेकी भी शक्ति नहीं रहती। उसके जितने भी शुभ या अशुभ कर्म हैं वे सामने प्रकट होते हैं। उनके अनुसार पुनः अपने-आपको देहबन्धनमें बँधता हुआ देखकर भी वह उपेक्षा कर देता है—अपने उद्धारका प्रयत्न नहीं करता॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहो विनिकृतो लोको लोभेन च वशीकृतः।
लोभक्रोधभयोन्मत्तो नात्मानमवबुध्यते ॥ १२ ॥

मूलम्

अहो विनिकृतो लोको लोभेन च वशीकृतः।
लोभक्रोधभयोन्मत्तो नात्मानमवबुध्यते ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अहो! लोभके वशीभूत होकर यह सारा संसार ठगा जा रहा है। लोभ, क्रोध और भयसे यह इतना पागल हो गया है कि अपने-आपको भी नहीं जानता॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुलीनत्वे च रमते दुष्कुलीनान् विकुत्सयन्।
धनदर्पेण दृप्तश्च दरिद्रान् परिकुत्सयन् ॥ १३ ॥

मूलम्

कुलीनत्वे च रमते दुष्कुलीनान् विकुत्सयन्।
धनदर्पेण दृप्तश्च दरिद्रान् परिकुत्सयन् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग हीन कुलमें उत्पन्न हुए हैं, उनकी निन्दा करता हुआ कुलीन मनुष्य अपनी कुलीनतामें ही मस्त रहता है और धनी धनके घमंडसे चूर होकर दरिद्रोंके प्रति अपनी घृणा प्रकट करता है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मूर्खानिति परानाह नात्मानं समवेक्षते।
दोषान् क्षिपति चान्येषां नात्मानं शास्तुमिच्छति ॥ १४ ॥

मूलम्

मूर्खानिति परानाह नात्मानं समवेक्षते।
दोषान् क्षिपति चान्येषां नात्मानं शास्तुमिच्छति ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह दूसरोंको तो मूर्ख बताता है, पर अपनी ओर कभी नहीं देखता। दूसरोंके दोषोंके लिये उनपर आक्षेप करता है, परंतु उन्हीं दोषोंसे स्वयंको बचानेके लिये अपने मनको काबूमें नहीं रखना चाहता॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदा प्राज्ञाश्च मूर्खाश्च धनवन्तश्च निर्धनाः।
कुलीनाश्चाकुलीनाश्च मानिनोऽथाप्यमानिनः ॥ १५ ॥
सर्वे पितृवनं प्राप्ताः स्वपन्ति विगतत्वचः।
निर्मांसैरस्थिभूयिष्ठैर्गात्रैः स्नायुनिबन्धनैः ॥ १६ ॥
विशेषं न प्रपश्यन्ति तत्र तेषां परे जनाः।
येन प्रत्यवगच्छेयुः कुलरूपविशेषणम् ॥ १७ ॥

मूलम्

यदा प्राज्ञाश्च मूर्खाश्च धनवन्तश्च निर्धनाः।
कुलीनाश्चाकुलीनाश्च मानिनोऽथाप्यमानिनः ॥ १५ ॥
सर्वे पितृवनं प्राप्ताः स्वपन्ति विगतत्वचः।
निर्मांसैरस्थिभूयिष्ठैर्गात्रैः स्नायुनिबन्धनैः ॥ १६ ॥
विशेषं न प्रपश्यन्ति तत्र तेषां परे जनाः।
येन प्रत्यवगच्छेयुः कुलरूपविशेषणम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब ज्ञानी और मूर्ख, धनवान् और निर्धन, कुलीन और अकुलीन तथा मानी और मानरहित सभी मरघटमें जाकर सो जाते हैं, उनकी चमड़ी भी नष्ट हो जाती है और नाड़ियोंसे बँधे हुए मांसरहित हड्डियोंके ढेररूप उनके नग्न शरीर सामने आते हैं, तब वहाँ खड़े हुए दूसरे लोग उनमें कोई ऐसा अन्तर नहीं देख पाते हैं, जिससे एककी अपेक्षा दूसरेके कुल और रूपकी विशेषताको जान सकें॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदा सर्वे समं न्यस्ताः स्वपन्ति धरणीतले।
कस्मादन्योन्यमिच्छन्ति प्रलब्धुमिह दुर्बुधाः ॥ १८ ॥

मूलम्

यदा सर्वे समं न्यस्ताः स्वपन्ति धरणीतले।
कस्मादन्योन्यमिच्छन्ति प्रलब्धुमिह दुर्बुधाः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब मरनेके बाद श्मशानमें डाल दिये जानेपर सभी लोग समानरूपसे पृथ्वीकी गोदमें सोते हैं, तब वे मूर्ख मानव इस संसारमें क्यों एक-दूसरेको ठगनेकी इच्छा करते हैं?॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्यक्षं च परोक्षं च यो निशम्य श्रुतिं त्विमाम्।
अध्रुवे जीवलोकेऽस्मिन् यो धर्ममनुपालयन्।
जन्मप्रभृति वर्तेत प्राप्नुयात् परमां गतिम् ॥ १९ ॥

मूलम्

प्रत्यक्षं च परोक्षं च यो निशम्य श्रुतिं त्विमाम्।
अध्रुवे जीवलोकेऽस्मिन् यो धर्ममनुपालयन्।
जन्मप्रभृति वर्तेत प्राप्नुयात् परमां गतिम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस क्षणभंगुर जगत्‌में जो पुरुष इस वेदोक्त उपदेशको साक्षात् जानकर या किसीके द्वारा सुनकर जन्मसे ही निरन्तर धर्मका पालन करता है, वह परम गतिको प्राप्त होता है॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं सर्वं विदित्वा वै यस्तत्त्वमनुवर्तते।
स प्रमोक्षाय लभते पन्थानं मनुजेश्वर ॥ २० ॥

मूलम्

एवं सर्वं विदित्वा वै यस्तत्त्वमनुवर्तते।
स प्रमोक्षाय लभते पन्थानं मनुजेश्वर ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! जो इस प्रकार सब कुछ जानकर तत्त्वका अनुसरण करता है, वह मोक्षतक पहुँचनेके लिये मार्ग प्राप्त कर लेता है॥२०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि धृतराष्ट्रविशोककरणे चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्वके अन्तर्गत जलप्रदानिकपर्वमें धृतराष्ट्रके शोकका निवारणविषयक चौथा अध्याय पूरा हुआ॥४॥


  1. ‘एकरात्रोषितं कलिलं भवति पंचरात्राद् बुद‌्बुदः’ एक रातमें रज और वीर्य मिलकर ‘कलिल’ रूप होते हैं और पाँच रातमें ‘बुद‌्बुद’ के आकारमें परिणत हो जाते हैं। इत्यादि शास्त्रवचनोंके अनुसार गर्भके बढ़ने आदिकी सारी क्रिया ज्ञात होती है। ↩︎