भागसूचना
अष्टपञ्चाशत्तमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत तथा अर्जुनके संकेतके अनुसार भीमसेनका गदासे दुर्योधनकी जाँघें तोड़कर उसे धराशायी करना एवं भीषण उत्पातोंका प्रकट होना
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
समुद्रीर्णं ततो दृष्ट्वा संग्रामं कुरुमुख्ययोः।
अथाब्रवीदर्जुनस्तु वासुदेवं यशस्विनम् ॥ १ ॥
मूलम्
समुद्रीर्णं ततो दृष्ट्वा संग्रामं कुरुमुख्ययोः।
अथाब्रवीदर्जुनस्तु वासुदेवं यशस्विनम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! कुरुकुलके उन दोनों प्रमुख वीरोंके उस संग्रामको उत्तरोत्तर बढ़ता देख अर्जुनने यशस्वी भगवान् श्रीकृष्णसे पूछा—॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनयोर्वीरयोर्युद्धे को ज्यायान् भवतो मतः।
कस्य वा को गुणो भूयानेतद् वद जनार्दन ॥ २ ॥
मूलम्
अनयोर्वीरयोर्युद्धे को ज्यायान् भवतो मतः।
कस्य वा को गुणो भूयानेतद् वद जनार्दन ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जनार्दन! आपकी रायमें इन दोनों वीरोंमेंसे इस युद्धस्थलमें कौन बड़ा है अथवा किसमें कौन-सा गुण अधिक है? यह मुझे बताइये’॥२॥
मूलम् (वचनम्)
वासुदेव उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
उपदेशोऽनयोस्तुल्यो भीमस्तु बलवत्तरः ।
कृती यत्नपरस्त्वेष धार्तराष्ट्रो वृकोदरात् ॥ ३ ॥
मूलम्
उपदेशोऽनयोस्तुल्यो भीमस्तु बलवत्तरः ।
कृती यत्नपरस्त्वेष धार्तराष्ट्रो वृकोदरात् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् श्रीकृष्ण बोले— अर्जुन! इन दोनोंको शिक्षा तो एक-सी मिली है; परंतु भीमसेन बलमें अधिक हैं और यह दुर्योधन उनकी अपेक्षा अभ्यास और प्रयत्नमें बढ़ा-चढ़ा है॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु धर्मेण युद्ध्यमानो न जेष्यति।
अन्यायेन तु युध्यन् वै हन्यादेव सुयोधनम् ॥ ४ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु धर्मेण युद्ध्यमानो न जेष्यति।
अन्यायेन तु युध्यन् वै हन्यादेव सुयोधनम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि भीमसेन धर्मपूर्वक युद्ध करते रहे तो कदापि नहीं जीतेंगे और अन्यायपूर्वक युद्ध करनेपर निश्चय ही दुर्योधनका वध कर डालेंगे॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मायया निर्जिता देवैरसुरा इति नः श्रुतम्।
विरोचनस्तु शक्रेण मायया निर्जितः स वै ॥ ५ ॥
मूलम्
मायया निर्जिता देवैरसुरा इति नः श्रुतम्।
विरोचनस्तु शक्रेण मायया निर्जितः स वै ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हमने सुना है कि देवताओंने पूर्वकालमें मायासे ही असुरोंपर विजय पायी थी और इन्द्रने मायासे ही विरोचनको परास्त किया था॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मायया चाक्षिपत् तेजो वृत्रस्य बलसूदनः।
तस्मान्मायामयं भीम आतिष्ठतु पराक्रमम् ॥ ६ ॥
मूलम्
मायया चाक्षिपत् तेजो वृत्रस्य बलसूदनः।
तस्मान्मायामयं भीम आतिष्ठतु पराक्रमम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बलसूदन इन्द्रने मायासे वृत्रासुरके तेजको नष्ट कर दिया था, इसलिये भीमसेन भी यहाँ मायामय पराक्रमका ही आश्रय लें॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतिज्ञातं च भीमेन द्यूतकाले धनंजय।
ऊरू भेत्स्यामि ते संख्ये गदयेति सुयोधनम् ॥ ७ ॥
मूलम्
प्रतिज्ञातं च भीमेन द्यूतकाले धनंजय।
ऊरू भेत्स्यामि ते संख्ये गदयेति सुयोधनम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धनंजय! जूएके समय भीमने प्रतिज्ञा करते हुए दुर्योधनसे यह कहा था कि ‘मैं युद्धमें गदा मारकर तेरी दोनों जाँघें तोड़ डालूँगा’॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽयं प्रतिज्ञां तां चापि पालयत्वरिकर्षणः।
मायाविनं तु राजानं माययैव निकृन्ततु ॥ ८ ॥
मूलम्
सोऽयं प्रतिज्ञां तां चापि पालयत्वरिकर्षणः।
मायाविनं तु राजानं माययैव निकृन्ततु ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अतः शत्रुसूदन भीमसेन अपनी उस प्रतिज्ञाका पालन करें और मायावी राजा दुर्योधनको मायासे ही नष्ट कर डालें॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यद्येष बलमास्थाय न्यायेन प्रहरिष्यति।
विषमस्थस्ततो राजा भविष्यति युधिष्ठिरः ॥ ९ ॥
मूलम्
यद्येष बलमास्थाय न्यायेन प्रहरिष्यति।
विषमस्थस्ततो राजा भविष्यति युधिष्ठिरः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि ये बलका सहारा लेकर न्यायपूर्वक प्रहार करेंगे, तब राजा युधिष्ठिर पुनः बड़ी विषम परिस्थितिमें पड़ जायँगे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनरेव तु वक्ष्यामि पाण्डवेय निबोध मे।
धर्मराजापराधेन भयं नः पुनरागतम् ॥ १० ॥
मूलम्
पुनरेव तु वक्ष्यामि पाण्डवेय निबोध मे।
धर्मराजापराधेन भयं नः पुनरागतम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन! मैं पुनः यह बात कहे देता हूँ, तुम उसे ध्यान देकर सुनो। धर्मराजके अपराधसे हमलोगोंपर फिर भय आ पहुँचा है॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृत्वा हि सुमहत् कर्म हत्वा भीष्ममुखान् कुरून्।
जयः प्राप्तो यशः प्राग्र्यं वैरं च प्रतियातितम् ॥ ११ ॥
तदेवं विजयः प्राप्तः पुनः संशयितः कृतः।
मूलम्
कृत्वा हि सुमहत् कर्म हत्वा भीष्ममुखान् कुरून्।
जयः प्राप्तो यशः प्राग्र्यं वैरं च प्रतियातितम् ॥ ११ ॥
तदेवं विजयः प्राप्तः पुनः संशयितः कृतः।
अनुवाद (हिन्दी)
महान् प्रयास करके भीष्म आदि कौरवोंको मारकर विजय एवं श्रेष्ठ यशकी प्राप्ति की गयी और वैरका पूरा-पूरा बदला चुकाया गया था। इस प्रकार जो विजय प्राप्त हुई थी, उसे उन्होंने फिर संशयमें डाल दिया है॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अबुद्धिरेषा महती धर्मराजस्य पाण्डव ॥ १२ ॥
यदेकविजये युद्धं पणितं घोरमीदृशम्।
मूलम्
अबुद्धिरेषा महती धर्मराजस्य पाण्डव ॥ १२ ॥
यदेकविजये युद्धं पणितं घोरमीदृशम्।
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुनन्दन! एककी ही हार-जीतसे सबकी हार-जीतकी शर्त लगाकर जो इन्होंने इस भयंकर युद्धको जूएका दाँव बना डाला, यह धर्मराजकी बड़ी भारी नासमझी है॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुयोधनः कृती वीर एकायनगतस्तथा ॥ १३ ॥
अपि चोशनसा गीतः श्रूयतेऽयं पुरातनः।
श्लोकस्तत्त्वार्थसहितस्तन्मे निगदतः शृणु ॥ १४ ॥
मूलम्
सुयोधनः कृती वीर एकायनगतस्तथा ॥ १३ ॥
अपि चोशनसा गीतः श्रूयतेऽयं पुरातनः।
श्लोकस्तत्त्वार्थसहितस्तन्मे निगदतः शृणु ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्योधन युद्धकी कला जानता है, वीर है और एक निश्चयपर डटा हुआ है। इस विषयमें शुक्राचार्यका कहा हुआ यह एक प्राचीन श्लोक सुननेमें आता है, जो नीतिशास्त्रके तात्त्विक अर्थसे भरा हुआ है उसे सुना रहा हूँ, मेरे कहनेसे वह श्लोक सुनो॥१३-१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनरावर्तमानानां भग्नानां जीवितैषिणाम् ।
भेतव्यमरिशेषाणामेकायनगता हिते ॥ १५ ॥
मूलम्
पुनरावर्तमानानां भग्नानां जीवितैषिणाम् ।
भेतव्यमरिशेषाणामेकायनगता हिते ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मरनेसे बचे हुए शत्रुगण यदि युद्धमें जान बचानेकी इच्छासे भाग गये हों और पुनः युद्धके लिये लौटने लगे हों तो उनसे डरते रहना चाहिये; क्योंकि वे एक निश्चयपर पहुँचे हुए होते हैं (उस समय वे मृत्युसे भी नहीं डरते हैं)’॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
साहसोत्पतितानां च निराशानां च जीविते।
न शक्यमग्रतः स्थातुं शक्रेणापि धनंजय ॥ १६ ॥
मूलम्
साहसोत्पतितानां च निराशानां च जीविते।
न शक्यमग्रतः स्थातुं शक्रेणापि धनंजय ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धनंजय! जो जीवनकी आशा छोड़कर साहसपूर्वक युद्धमें कूद पड़े हों, उनके सामने इन्द्र भी नहीं ठहर सकते॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुयोधनमिमं भग्नं हतसैन्यं ह्रदं गतम्।
पराजितं वनप्रेप्सुं निराशं राज्यलम्भने ॥ १७ ॥
को न्वेष संयुगे प्राज्ञः पुनर्द्वन्द्वे समाह्वयेत्।
मूलम्
सुयोधनमिमं भग्नं हतसैन्यं ह्रदं गतम्।
पराजितं वनप्रेप्सुं निराशं राज्यलम्भने ॥ १७ ॥
को न्वेष संयुगे प्राज्ञः पुनर्द्वन्द्वे समाह्वयेत्।
अनुवाद (हिन्दी)
इस दुर्योधनकी सेना मारी गयी थी। यह परास्त हो गया था और अब राज्य पानेसे निराश हो वनमें चला जाना चाहता था; इसीलिये भागकर पोखरेमें छिपा था, ऐसे हताश शत्रुको कौन बुद्धिमान् पुरुष समरांगणमें द्वन्द्व-युद्धके लिये आमन्त्रित करेगा?॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अपि नो निर्जितं राज्यं न हरेत सुयोधनः ॥ १८ ॥
यस्त्रयोदशवर्षाणि गदया कृतनिश्रमः ।
चरत्यूर्ध्वं च तिर्यक् च भीमसेनजिघांसया ॥ १९ ॥
मूलम्
अपि नो निर्जितं राज्यं न हरेत सुयोधनः ॥ १८ ॥
यस्त्रयोदशवर्षाणि गदया कृतनिश्रमः ।
चरत्यूर्ध्वं च तिर्यक् च भीमसेनजिघांसया ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कहीं ऐसा न हो कि हमारे जीते हुए राज्यको दुर्योधन फिर हड़प ले। उसने तेरह वर्षोंतक गदाद्वारा युद्ध करनेका निरन्तर श्रम एवं अभ्यास किया है। देखो, यह भीमसेनके वधकी इच्छासे इधर-उधर और ऊपरकी ओर विचर रहा है॥१८-१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एनं चेन्न महाबाहुरन्यायेन हनिष्यति।
एष वः कौरवो राजा धार्तराष्ट्रो भविष्यति ॥ २० ॥
मूलम्
एनं चेन्न महाबाहुरन्यायेन हनिष्यति।
एष वः कौरवो राजा धार्तराष्ट्रो भविष्यति ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यदि महाबाहु भीमसेन इसे अन्यायपूर्वक नहीं मारेंगे तो यह धृतराष्ट्रका पुत्र दुर्योधन ही आपका तथा समस्त कुरुकुलका राजा होगा॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धनंजयस्तु श्रुत्वैतत् केशवस्य महात्मनः।
प्रेक्षतो भीमसेनस्य सव्यमूरुमताडयत् ॥ २१ ॥
मूलम्
धनंजयस्तु श्रुत्वैतत् केशवस्य महात्मनः।
प्रेक्षतो भीमसेनस्य सव्यमूरुमताडयत् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महात्मा भगवान् केशवका यह वचन सुनकर अर्जुनने भीमसेनके देखते हुए अपनी बायीं जाँघको ठोंका॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गृह्य संज्ञां ततो भीमो गदया व्यचरद् रणे।
मण्डलानि विचित्राणि यमकानीतराणि च ॥ २२ ॥
मूलम्
गृह्य संज्ञां ततो भीमो गदया व्यचरद् रणे।
मण्डलानि विचित्राणि यमकानीतराणि च ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे संकेत पाकर भीमसेन रणभूमिमें गदाद्वारा यमक तथा अन्य प्रकारके विचित्र मण्डल दिखाते हुए विचरने लगे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दक्षिणं मण्डलं सव्यं गोमूत्रकमथापि च।
व्यचरत् पाण्डवो राजन्नरिं सम्मोहयन्निव ॥ २३ ॥
मूलम्
दक्षिणं मण्डलं सव्यं गोमूत्रकमथापि च।
व्यचरत् पाण्डवो राजन्नरिं सम्मोहयन्निव ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! पाण्डुपुत्र भीमसेन आपके पुत्रको मोहित करते हुए-से दक्षिण, वाम और गोमूत्रक मण्डलसे विचरने लगे॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव तव पुत्रोऽपि गदामार्गविशारदः।
व्यचरल्लघु चित्रं च भीमसेनजिघांसया ॥ २४ ॥
मूलम्
तथैव तव पुत्रोऽपि गदामार्गविशारदः।
व्यचरल्लघु चित्रं च भीमसेनजिघांसया ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार गदायुद्धकी प्रणालीका विशेषज्ञ आपका पुत्र भी भीमसेनके वधकी इच्छासे शीघ्रतापूर्वक विचित्र पैंतरे देता हुआ विचरने लगा॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आधुन्वन्तो गदे घोरे चन्दनागरुरूषिते।
वैरस्यान्तं परीप्सन्तौ रणे क्रुद्धाविवान्तकौ ॥ २५ ॥
मूलम्
आधुन्वन्तो गदे घोरे चन्दनागरुरूषिते।
वैरस्यान्तं परीप्सन्तौ रणे क्रुद्धाविवान्तकौ ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैरका अन्त करनेकी इच्छावाले वे दोनों वीर रणभूमिमें चन्दन और अगुरुसे चर्चित भयंकर गदाएँ घुमाते हुए कुपित कालके समान प्रतीत होते थे॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्योन्यं तौ जिघांसन्तौ प्रवीरौ पुरुषर्षभौ।
युयुधाते गरुत्मन्तौ यथा नागामिषैषिणौ ॥ २६ ॥
मूलम्
अन्योन्यं तौ जिघांसन्तौ प्रवीरौ पुरुषर्षभौ।
युयुधाते गरुत्मन्तौ यथा नागामिषैषिणौ ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे दो गरुड़ किसी सर्पके मांसको पानेकी इच्छासे परस्पर लड़ रहे हों, उसी प्रकार एक-दूसरेके वधकी इच्छावाले वे दोनों पुरुषप्रवर प्रमुख वीर भीमसेन और दुर्योधन आपसमें जूझ रहे थे॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मण्डलानि विचित्राणि चरतोर्नृपभीमयोः ।
गदासम्पातजास्तत्र प्रजज्ञुः पावकार्चिषः ॥ २७ ॥
मूलम्
मण्डलानि विचित्राणि चरतोर्नृपभीमयोः ।
गदासम्पातजास्तत्र प्रजज्ञुः पावकार्चिषः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
विचित्र मण्डलों (पैंतरों)-से विचरते हुए राजा दुर्योधन और भीमसेनकी गदाओंके टकरानेसे वहाँ आगकी लपटें प्रकट होने लगीं॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समं प्रहरतोस्तत्र शूरयोर्बलिनोर्मृधे ।
क्षुब्धयोर्वायुना राजन् द्वयोरिव समुद्रयोः ॥ २८ ॥
तयोः प्रहरतोस्तुल्यं मत्तकुञ्जरयोरिव ।
गदानिर्घातसंह्रादः प्रहाराणामजायत ॥ २९ ॥
मूलम्
समं प्रहरतोस्तत्र शूरयोर्बलिनोर्मृधे ।
क्षुब्धयोर्वायुना राजन् द्वयोरिव समुद्रयोः ॥ २८ ॥
तयोः प्रहरतोस्तुल्यं मत्तकुञ्जरयोरिव ।
गदानिर्घातसंह्रादः प्रहाराणामजायत ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जैसे वायुसे विक्षुब्ध हुए दो समुद्र एक-दूसरेसे टकरा रहे हों अथवा दो मतवाले हाथी परस्पर चोट कर रहे हों, उसी प्रकार वहाँ एक-दूसरेपर समान रूपसे प्रहार करनेवाले दोनों बलवान् वीरोंके परस्पर चोट करनेपर गदाओंके टकरानेकी आवाज वज्रकी कड़कके समान प्रकट होती थी॥२८-२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिंस्तदा सम्प्रहारे दारुणे संकुले भृशम्।
उभावपि परिश्रान्तौ युध्यमानावरिंदमौ ॥ ३० ॥
मूलम्
तस्मिंस्तदा सम्प्रहारे दारुणे संकुले भृशम्।
उभावपि परिश्रान्तौ युध्यमानावरिंदमौ ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उस अत्यन्त भयंकर घमासान युद्धमें शत्रुओंका दमन करनेवाले वे दोनों वीर परस्पर युद्ध करते हुए बहुत थक गये॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ मुहूर्तं समाश्वस्य पुनरेव परंतप।
अभ्यहारयतां क्रुद्धौ प्रगृह्य महती गदे ॥ ३१ ॥
मूलम्
तौ मुहूर्तं समाश्वस्य पुनरेव परंतप।
अभ्यहारयतां क्रुद्धौ प्रगृह्य महती गदे ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंको संताप देनेवाले नरेश! तब दोनों दो घड़ीतक विश्राम करके पुनः विशाल गदाएँ हाथमें लेकर क्रोधपूर्वक एक-दूसरेपर प्रहार करने लगे॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोः समभवद् युद्धं घोररूपमसंवृतम्।
गदानिपातै राजेन्द्र तक्षतोर्वै परस्परम् ॥ ३२ ॥
मूलम्
तयोः समभवद् युद्धं घोररूपमसंवृतम्।
गदानिपातै राजेन्द्र तक्षतोर्वै परस्परम् ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! गदाकी चोटसे एक-दूसरेको घायल करते हुए उन दोनोंमें खुले तौरपर घोर युद्ध हो रहा था॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समरे प्रद्रुतौ तौ तु वृषभाक्षौ तरस्विनौ।
अन्योन्यं जघ्नतुर्वीरौ पङ्कस्थौ महिषाविव ॥ ३३ ॥
मूलम्
समरे प्रद्रुतौ तौ तु वृषभाक्षौ तरस्विनौ।
अन्योन्यं जघ्नतुर्वीरौ पङ्कस्थौ महिषाविव ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बैलके समान विशाल नेत्रोंवाले वे दोनों वेगशाली वीर समरांगणमें परस्पर धावा करके कीचड़में खड़े हुए दो भैंसोंके समान एक-दूसरेपर चोट करते थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जर्जरीकृतसर्वाङ्गौ रुधिरेणाभिसम्प्लुतौ ।
ददृशाते हिमवति पुष्पिताविव किंशुकौ ॥ ३४ ॥
मूलम्
जर्जरीकृतसर्वाङ्गौ रुधिरेणाभिसम्प्लुतौ ।
ददृशाते हिमवति पुष्पिताविव किंशुकौ ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनोंके सारे अंग गदाके प्रहारसे जर्जर हो गये थे और दोनों ही खूनसे लथपथ हो गये थे। उस दशामें वे हिमालयपर खिले हुए दो पलाशवृक्षोंके समान दिखायी देते थे॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनस्तु पार्थेन विवरे सम्प्रदर्शिते।
ईषदुन्मिषमाणस्तु सहसा प्रससार ह ॥ ३५ ॥
मूलम्
दुर्योधनस्तु पार्थेन विवरे सम्प्रदर्शिते।
ईषदुन्मिषमाणस्तु सहसा प्रससार ह ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब अर्जुनने छिद्रकी ओर संकेत किया, तब कनखियोंसे उसे देखकर दुर्योधन सहसा भीमसेनकी ओर बढ़ा॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमभ्याशगतं प्राज्ञो रणे प्रेक्ष्य वृकोदरः।
अवाक्षिपद् गदां तस्मिन् वेगेन महता बली ॥ ३६ ॥
मूलम्
तमभ्याशगतं प्राज्ञो रणे प्रेक्ष्य वृकोदरः।
अवाक्षिपद् गदां तस्मिन् वेगेन महता बली ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रणभूमिमें उसे निकट आया देख बुद्धिमान् एवं बलवान् भीमने उसपर बड़े वेगसे गदा चलायी॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आक्षिपन्तं तु तं दृष्ट्वा पुत्रस्तव विशाम्पते।
अवासर्पत्ततः स्थानात् सा मोघा न्यपतद् भुवि ॥ ३७ ॥
मूलम्
आक्षिपन्तं तु तं दृष्ट्वा पुत्रस्तव विशाम्पते।
अवासर्पत्ततः स्थानात् सा मोघा न्यपतद् भुवि ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उन्हें गदा चलाते देख आपका पुत्र सहसा उस स्थानसे हट गया और वह गदा व्यर्थ होकर पृथ्वीपर गिर पड़ी॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मोक्षयित्वा प्रहारं तं सुतस्तव सुसम्भ्रमात्।
भीमसेनं च गदया प्राहरत् कुरुसत्तम ॥ ३८ ॥
मूलम्
मोक्षयित्वा प्रहारं तं सुतस्तव सुसम्भ्रमात्।
भीमसेनं च गदया प्राहरत् कुरुसत्तम ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुश्रेष्ठ! उस प्रहारसे अपनेको बचाकर आपके पुत्रने भीमसेनपर बड़े वेगसे गदाद्वारा आघात किया॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य विस्यन्दमानेन रुधिरेणामितौजसः ।
प्रहारगुरुपाताच्च मूर्च्छेव समजायत ॥ ३९ ॥
मूलम्
तस्य विस्यन्दमानेन रुधिरेणामितौजसः ।
प्रहारगुरुपाताच्च मूर्च्छेव समजायत ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसकी चोटसे अमिततेजस्वी भीमके शरीरसे रक्तकी धारा बह चली। साथ ही उस प्रहारके गहरे आघातसे उन्हें मूर्च्छा-सी आ गयी॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनो न तं वेद पीडितं पाण्डवं रणे।
धारयामास भीमोऽपि शरीरमतिपीडितम् ॥ ४० ॥
मूलम्
दुर्योधनो न तं वेद पीडितं पाण्डवं रणे।
धारयामास भीमोऽपि शरीरमतिपीडितम् ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय दुर्योधन यह न जान सका कि रणभूमिमें पाण्डुपुत्र भीमसेन अधिक पीड़ित हो गये हैं। यद्यपि उनके शरीरमें अत्यन्त वेदना हो रही थी तो भी भीमसेन उसे सँभाले रहे॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अमन्यत स्थितं ह्येनं प्रहरिष्यन्तमाहवे।
अतो न प्राहरत् तस्मै पुनरेव तवात्मजः ॥ ४१ ॥
मूलम्
अमन्यत स्थितं ह्येनं प्रहरिष्यन्तमाहवे।
अतो न प्राहरत् तस्मै पुनरेव तवात्मजः ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने यही समझा कि रणक्षेत्रमें भीमसेन अब मुझपर प्रहार करनेके लिये खड़े हैं; अतः बचनेकी ही चेष्टामें संलग्न होकर आपके पुत्रने पुनः उनपर प्रहार नहीं किया॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो मुहूर्तमाश्वस्य दुर्योधनमुपस्थितम् ।
वेगेनाभ्यपतद् राजन् भीमसेनः प्रतापवान् ॥ ४२ ॥
मूलम्
ततो मुहूर्तमाश्वस्य दुर्योधनमुपस्थितम् ।
वेगेनाभ्यपतद् राजन् भीमसेनः प्रतापवान् ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर दो घड़ी सुस्ताकर प्रतापी भीमसेनने निकट आये हुए दुर्योधनपर बड़े वेगसे आक्रमण किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संरब्धममितौजसम् ।
मोघमस्य प्रहारं तं चिकीर्षुर्भरतर्षभ ॥ ४३ ॥
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संरब्धममितौजसम् ।
मोघमस्य प्रहारं तं चिकीर्षुर्भरतर्षभ ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! अमिततेजस्वी भीमको रोषपूर्वक धावा करते देख आपके पुत्रने उनके उस प्रहारको व्यर्थ कर देनेकी इच्छा की॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवस्थाने मतिं कृत्वा पुत्रस्तव महामनाः।
इयेषोत्पतितुं राजन् छलयिष्यन् वृकोदरम् ॥ ४४ ॥
मूलम्
अवस्थाने मतिं कृत्वा पुत्रस्तव महामनाः।
इयेषोत्पतितुं राजन् छलयिष्यन् वृकोदरम् ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! भीमसेनको छलनेके लिये आपके महामनस्वी पुत्रने पहले वहाँ स्थिरतापूर्वक खड़े रहनेका विचार करके फिर उछलकर दूर हट जानेकी इच्छा की॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अबुद्ध्यद् भीमसेनस्तु राज्ञस्तस्य चिकीर्षितम्।
अथास्य समभिद्रुत्य समुत्क्रुश्य च सिंहवत् ॥ ४५ ॥
सृत्या वञ्चयतो राजन् पुनरेवोत्पतिष्यतः।
ऊरुभ्यां प्राहिणोद् राजन् गदां वेगेन पाण्डवः ॥ ४६ ॥
मूलम्
अबुद्ध्यद् भीमसेनस्तु राज्ञस्तस्य चिकीर्षितम्।
अथास्य समभिद्रुत्य समुत्क्रुश्य च सिंहवत् ॥ ४५ ॥
सृत्या वञ्चयतो राजन् पुनरेवोत्पतिष्यतः।
ऊरुभ्यां प्राहिणोद् राजन् गदां वेगेन पाण्डवः ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन समझ गये कि राजा दुर्योधन क्या करना चाहता है। अतः पैंतरेसे छलने और ऊपर उछलनेकी इच्छावाले दुर्योधनके ऊपर आक्रमण करके भीमसेनने सिंहके समान गर्जना की और उसकी जाँघोंपर बड़े वेगसे गदा चलायी॥४५-४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा वज्रनिष्पेषसमा प्रहिता भीमकर्मणा।
ऊरू दुर्योधनस्याथ बभञ्ज प्रियदर्शनौ ॥ ४७ ॥
मूलम्
सा वज्रनिष्पेषसमा प्रहिता भीमकर्मणा।
ऊरू दुर्योधनस्याथ बभञ्ज प्रियदर्शनौ ॥ ४७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भयंकर कर्म करनेवाले भीमसेनके द्वारा चलायी हुई वह गदा वज्रपातके समान गिरी और दुर्योधनकी सुन्दर दिखायी देनेवाली जाँघोंको उसने तोड़ दिया॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पपात नरव्याघ्रो वसुधामनुनादयन्।
भग्नोरुर्भीमसेनेन पुत्रस्तव महीपते ॥ ४८ ॥
मूलम्
स पपात नरव्याघ्रो वसुधामनुनादयन्।
भग्नोरुर्भीमसेनेन पुत्रस्तव महीपते ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथ्वीनाथ! इस प्रकार जब भीमसेनने उसकी जाँघें तोड़ डालीं, तब आपका पुत्र पुरुषसिंह दुर्योधन पृथ्वीको प्रतिध्वनित करता हुआ गिर पड़ा॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ववुर्वाताः सनिर्घाताः पांशुवर्षं पपात च।
चचाल पृथिवी चापि सवृक्षक्षुपपर्वता ॥ ४९ ॥
तस्मिन् निपतिते वीरे पत्यौ सर्वमहीक्षिताम्।
मूलम्
ववुर्वाताः सनिर्घाताः पांशुवर्षं पपात च।
चचाल पृथिवी चापि सवृक्षक्षुपपर्वता ॥ ४९ ॥
तस्मिन् निपतिते वीरे पत्यौ सर्वमहीक्षिताम्।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो समस्त भूपालोंके स्वामी वीर राजा दुर्योधनके धराशायी होनेपर वहाँ बिजलीकी गड़गड़ाहटके साथ प्रचण्ड हवा चलने लगी, धूलिकी वर्षा होने लगी और वृक्षों, वनों एवं पर्वतोंसहित सारी पृथ्वी काँपने लगी॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महास्वना पुनर्दीप्ता सनिर्घाता भयंकरी ॥ ५० ॥
पपात चोल्का महती पतिते पृथिवीपतौ।
मूलम्
महास्वना पुनर्दीप्ता सनिर्घाता भयंकरी ॥ ५० ॥
पपात चोल्का महती पतिते पृथिवीपतौ।
अनुवाद (हिन्दी)
पृथ्वीपति दुर्योधनके गिर जानेपर आकाशसे पुनः महान् शब्द और बिजलीकी कड़कके साथ प्रज्वलित, भयंकर एवं विशाल उल्का भूमिपर गिरी॥५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा शोणितवर्षं च पांशुवर्षं च भारत ॥ ५१ ॥
ववर्ष मघवांस्तत्र तव पुत्रे निपातिते।
मूलम्
तथा शोणितवर्षं च पांशुवर्षं च भारत ॥ ५१ ॥
ववर्ष मघवांस्तत्र तव पुत्रे निपातिते।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! आपके पुत्रके धराशायी हो जानेपर इन्द्रने वहाँ रक्त और धूलिकी वर्षा की॥५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यक्षाणां राक्षसानां च पिशाचानां तथैव च ॥ ५२ ॥
अन्तरिक्षे महानादः श्रूयते भरतर्षभ।
मूलम्
यक्षाणां राक्षसानां च पिशाचानां तथैव च ॥ ५२ ॥
अन्तरिक्षे महानादः श्रूयते भरतर्षभ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उस समय आकाशमें यक्षों, राक्षसों तथा पिशाचोंका महान् कोलाहल सुनायी देने लगा॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेन शब्देन घोरेण मृगाणामथ पक्षिणाम् ॥ ५३ ॥
जज्ञे घोरतरः शब्दो बहूनां सर्वतोदिशम्।
मूलम्
तेन शब्देन घोरेण मृगाणामथ पक्षिणाम् ॥ ५३ ॥
जज्ञे घोरतरः शब्दो बहूनां सर्वतोदिशम्।
अनुवाद (हिन्दी)
उस घोर शब्दके साथ बहुत-से पशुओं और पक्षियों-की भयानक आवाज भी सम्पूर्ण दिशाओंमें गूँज उठी॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये तत्र वाजिनः शेषा गजाश्च मनुजैः सह ॥ ५४ ॥
मुमुचुस्ते महानादं तव पुत्रे निपातिते।
मूलम्
ये तत्र वाजिनः शेषा गजाश्च मनुजैः सह ॥ ५४ ॥
मुमुचुस्ते महानादं तव पुत्रे निपातिते।
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ जो घोड़े, हाथी और मनुष्य शेष रह गये थे, वे सभी आपके पुत्रके मारे जानेपर महान् कोलाहल करने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भेरीशङ्खमृदङ्गानामभवच्च स्वनो महान् ॥ ५५ ॥
अन्तर्भूमिगतश्चैव तव पुत्रे निपातिते।
मूलम्
भेरीशङ्खमृदङ्गानामभवच्च स्वनो महान् ॥ ५५ ॥
अन्तर्भूमिगतश्चैव तव पुत्रे निपातिते।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जब आपका पुत्र मार गिराया गया, उस समय इस भूतलपर भेरी, शंखों और मृदंगोंका गम्भीर घोष होने लगा॥५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बहुपादैर्बहुभुजैः कबन्धैर्घोरदर्शनैः ॥ ५६ ॥
नृत्यद्भिर्भयदैर्व्याप्ता दिशस्तत्राभवन् नृप ।
मूलम्
बहुपादैर्बहुभुजैः कबन्धैर्घोरदर्शनैः ॥ ५६ ॥
नृत्यद्भिर्भयदैर्व्याप्ता दिशस्तत्राभवन् नृप ।
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! वहाँ सम्पूर्ण दिशाओंमें नाचते हुए अनेक पैर और अनेक बाँहवाले घोर एवं भयंकर कबन्ध व्याप्त हो रहे थे॥५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ध्वजवन्तोऽस्त्रवन्तश्च शस्त्रवन्तस्तथैव च ॥ ५७ ॥
प्राकम्पन्त ततो राजंस्तव पुत्रे निपातिते।
मूलम्
ध्वजवन्तोऽस्त्रवन्तश्च शस्त्रवन्तस्तथैव च ॥ ५७ ॥
प्राकम्पन्त ततो राजंस्तव पुत्रे निपातिते।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आपके पुत्रके धराशायी हो जानेपर वहाँ अस्त्र-शस्त्र और ध्वजावाले सभी वीर काँपने लगे॥५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ह्रदाः कूपाश्च रुधिरमुद्वेमुर्नृपसत्तम ॥ ५८ ॥
नद्यश्च सुमहावेगाः प्रतिस्रोतोवहाभवन् ।
मूलम्
ह्रदाः कूपाश्च रुधिरमुद्वेमुर्नृपसत्तम ॥ ५८ ॥
नद्यश्च सुमहावेगाः प्रतिस्रोतोवहाभवन् ।
अनुवाद (हिन्दी)
नृपश्रेष्ठ! तालाबों और कूपोंमें रक्तका उफान आने लगा और महान् वेगशालिनी नदियाँ उलटी अपने उद्गमकी ओर बहने लगीं॥५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुल्ँलिङ्गा इव नार्यस्तु स्त्रीलिङ्गा पुरुषाभवन् ॥ ५९ ॥
दुर्योधने तदा राजन् पतिते तनये तव।
मूलम्
पुल्ँलिङ्गा इव नार्यस्तु स्त्रीलिङ्गा पुरुषाभवन् ॥ ५९ ॥
दुर्योधने तदा राजन् पतिते तनये तव।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आपके पुत्र दुर्योधनके धराशायी होनेपर स्त्रियोंमें पुरुषत्व और पुरुषोंमें स्त्रीत्वके सूचक लक्षण प्रकट होने लगे॥५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा तानद्भुतोत्पातान् पञ्चालाः पाण्डवैः सह ॥ ६० ॥
आविग्नमनसः सर्वे बभूवुर्भरतर्षभ ।
मूलम्
दृष्ट्वा तानद्भुतोत्पातान् पञ्चालाः पाण्डवैः सह ॥ ६० ॥
आविग्नमनसः सर्वे बभूवुर्भरतर्षभ ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उन अद्भुत उत्पातोंको देखकर पाण्डवोंसहित समस्त पाञ्चाल मन-ही-मन अत्यन्त उद्विग्न हो उठे॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ययुर्देवा यथाकामं गन्धर्वाप्सरसस्तथा ॥ ६१ ॥
कथयन्तोऽद्भुतं युद्धं सुतयोस्तव भारत।
मूलम्
ययुर्देवा यथाकामं गन्धर्वाप्सरसस्तथा ॥ ६१ ॥
कथयन्तोऽद्भुतं युद्धं सुतयोस्तव भारत।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तदनन्तर देवता, गन्धर्व और अप्सराओंके समूह आपके दोनों पुत्रोंके अद्भुत युद्धकी चर्चा करते हुए अपने अभीष्ट स्थानको चले गये॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव सिद्धा राजेन्द्र तथा वातिकचारणाः।
नरसिंहौ प्रशंसन्तौ विप्रजग्मुर्यथागतम् ॥ ६२ ॥
मूलम्
तथैव सिद्धा राजेन्द्र तथा वातिकचारणाः।
नरसिंहौ प्रशंसन्तौ विप्रजग्मुर्यथागतम् ॥ ६२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! उसी प्रकार सिद्ध, वातिक (वायुचारी) और चारण उन दोनों पुरुषसिंहोंकी प्रशंसा करते हुए जैसे आये थे, वैसे चले गये॥६२॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि गदापर्वणि दुर्योधनवधेऽष्टपञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वके अन्तर्गत गदापर्वमें दुर्योधनका वधविषयक अट्ठावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५८॥