भागसूचना
षट्चत्वारिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
मातृकाओंका परिचय तथा स्कन्ददेवकी रणयात्रा और उनके द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्योंका सेनासहित संहार
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शृणु मातृगणान् राजन् कुमारानुचरानिमान्।
कीर्त्यमानान् मया वीर सपत्नगणसूदनान् ॥ १ ॥
मूलम्
शृणु मातृगणान् राजन् कुमारानुचरानिमान्।
कीर्त्यमानान् मया वीर सपत्नगणसूदनान् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— वीर नरेश! अब मैं उन मातृकाओंके नाम बता रहा हूँ, जो शत्रुओंका संहार करनेवाली तथा कुमार कार्तिकेयकी अनुचरी हैं॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यशस्विनीनां मातॄणां शृणु नामानि भारत।
याभिर्व्याप्तास्त्रयो लोकाः कल्याणीभिश्च भागशः ॥ २ ॥
मूलम्
यशस्विनीनां मातॄणां शृणु नामानि भारत।
याभिर्व्याप्तास्त्रयो लोकाः कल्याणीभिश्च भागशः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! तुम उन यशस्वी मातृकाओंके नाम सुनो, जिन कल्याणकारिणी देवियोंने विभागपूर्वक तीनों लोकोंको व्याप्त कर रखा है॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभावती विशालाक्षी पालिता गोस्तनी तथा।
श्रीमती बहुला चैव तथैव बहुपुत्रिका ॥ ३ ॥
अप्सु जाता च गोपाली बृहदम्बालिका तथा।
जयावती मालतिका ध्रुवरत्ना भयंकरी ॥ ४ ॥
वसुदामा च दामा च विशोका नन्दिनी तथा।
एकचूडा महाचूडा चक्रनेमिश्च भारत ॥ ५ ॥
उत्तेजनी जयत्सेना कमलाक्ष्यथ शोभना।
शत्रुंजया तथा चैव क्रोधना शलभी खरी ॥ ६ ॥
माधवी शुभवक्त्रा च तीर्थनेमिश्च भारत।
गीतप्रिया च कल्याणी रुद्ररोमामिताशना ॥ ७ ॥
मेघस्वना भोगवती सुभ्रुश्च कनकावती।
अलाताक्षी वीर्यवती विद्युज्जिह्वा च भारत ॥ ८ ॥
पद्मावती सुनक्षत्रा कन्दरा बहुयोजना।
संतानिका च कौरव्य कमला च महाबला ॥ ९ ॥
सुदामा बहुदामा च सुप्रभा च यशस्विनी।
नृत्यप्रिया च राजेन्द्र शतोलूखलमेखला ॥ १० ॥
शतघण्टा शतानन्दा भगनन्दा च भाविनी।
वपुष्मती चन्द्रसीता भद्रकाली च भारत ॥ ११ ॥
ऋक्षाम्बिका निष्कुटिका वामा चत्वरवासिनी।
सुमङ्गला स्वस्तिमती बुद्धिकामा जयप्रिया ॥ १२ ॥
धनदा सुप्रसादा च भवदा च जलेश्वरी।
एडी भेडी समेडी च वेतालजननी तथा ॥ १३ ॥
कण्डूतिः कालिका चैव देवमित्रा च भारत।
वसुश्रीः कोटरा चैव चित्रसेना तथाचला ॥ १४ ॥
कुक्कुटिका शङ्खलिका तथा शकुनिका नृप।
कुण्डारिका कौकुलिका कुम्भिकाथ शतोदरी ॥ १५ ॥
उत्क्राथिनी जलेला च महावेगा च कङ्कणा।
मनोजवा कण्टकिनी प्रघसा पूतना तथा ॥ १६ ॥
केशयन्त्री त्रुटिर्वामा क्रोशनाथ तडित्प्रभा।
मन्दोदरी च मुण्डी च कोटरा मेघवाहिनी ॥ १७ ॥
सुभगा लम्बनी लम्बा ताम्रचूडा विकाशिनी।
ऊर्ध्ववेणीधरा चैव पिङ्गाक्षी लोहमेखला ॥ १८ ॥
पृथुवस्त्रा मधुलिका मधुकुम्भा तथैव च।
पक्षालिका मत्कुलिका जरायुर्जर्जरानना ॥ १९ ॥
ख्याता दहदहा चैव तथा धमधमा नृप।
खण्डखण्डा च राजेन्द्र पूषणा मणिकुट्टिका ॥ २० ॥
अमोघा चैव कौरव्य तथा लम्बपयोधरा।
वेणुवीणाधरा चैव पिङ्गाक्षी लोहमेखला ॥ २१ ॥
शशोलूकमुखी कृष्णा खरजङ्घा महाजवा।
शिशुमारमुखी श्वेता लोहिताक्षी विभीषणा ॥ २२ ॥
जटालिका कामचरी दीर्घजिह्वा बलोत्कटा।
कालेहिका वामनिका मुकुटा चैव भारत ॥ २३ ॥
लोहिताक्षी महाकाया हरिपिण्डा च भूमिप।
एकत्वचा सुकुसुमा कृष्णकर्णी च भारत ॥ २४ ॥
क्षुरकर्णी चतुष्कर्णी कर्णप्रावरणा तथा।
चतुष्यथनिकेता च गोकर्णी महिषानना ॥ २५ ॥
खरकर्णी महाकर्णी भेरीस्वनमहास्वना ।
शङ्खकुम्भश्रवाश्चैव भगदा च महाबला ॥ २६ ॥
गणा च सुगणा चैव तथा भीत्यथ कामदा।
चतुष्पथरता चैव भूतितीर्थान्यगोचरी ॥ २७ ॥
पशुदा वित्तदा चैव सुखदा च महायशाः।
पयोदा गोमहिषदा सुविशाला च भारत ॥ २८ ॥
प्रतिष्ठा सुप्रतिष्ठा च रोचमाना सुरोचना।
नौकर्णी मुखकर्णी च विशिरा मन्थिनी तथा ॥ २९ ॥
एकचन्द्रा मेघकर्णा मेघमाला विरोचना।
मूलम्
प्रभावती विशालाक्षी पालिता गोस्तनी तथा।
श्रीमती बहुला चैव तथैव बहुपुत्रिका ॥ ३ ॥
अप्सु जाता च गोपाली बृहदम्बालिका तथा।
जयावती मालतिका ध्रुवरत्ना भयंकरी ॥ ४ ॥
वसुदामा च दामा च विशोका नन्दिनी तथा।
एकचूडा महाचूडा चक्रनेमिश्च भारत ॥ ५ ॥
उत्तेजनी जयत्सेना कमलाक्ष्यथ शोभना।
शत्रुंजया तथा चैव क्रोधना शलभी खरी ॥ ६ ॥
माधवी शुभवक्त्रा च तीर्थनेमिश्च भारत।
गीतप्रिया च कल्याणी रुद्ररोमामिताशना ॥ ७ ॥
मेघस्वना भोगवती सुभ्रुश्च कनकावती।
अलाताक्षी वीर्यवती विद्युज्जिह्वा च भारत ॥ ८ ॥
पद्मावती सुनक्षत्रा कन्दरा बहुयोजना।
संतानिका च कौरव्य कमला च महाबला ॥ ९ ॥
सुदामा बहुदामा च सुप्रभा च यशस्विनी।
नृत्यप्रिया च राजेन्द्र शतोलूखलमेखला ॥ १० ॥
शतघण्टा शतानन्दा भगनन्दा च भाविनी।
वपुष्मती चन्द्रसीता भद्रकाली च भारत ॥ ११ ॥
ऋक्षाम्बिका निष्कुटिका वामा चत्वरवासिनी।
सुमङ्गला स्वस्तिमती बुद्धिकामा जयप्रिया ॥ १२ ॥
धनदा सुप्रसादा च भवदा च जलेश्वरी।
एडी भेडी समेडी च वेतालजननी तथा ॥ १३ ॥
कण्डूतिः कालिका चैव देवमित्रा च भारत।
वसुश्रीः कोटरा चैव चित्रसेना तथाचला ॥ १४ ॥
कुक्कुटिका शङ्खलिका तथा शकुनिका नृप।
कुण्डारिका कौकुलिका कुम्भिकाथ शतोदरी ॥ १५ ॥
उत्क्राथिनी जलेला च महावेगा च कङ्कणा।
मनोजवा कण्टकिनी प्रघसा पूतना तथा ॥ १६ ॥
केशयन्त्री त्रुटिर्वामा क्रोशनाथ तडित्प्रभा।
मन्दोदरी च मुण्डी च कोटरा मेघवाहिनी ॥ १७ ॥
सुभगा लम्बनी लम्बा ताम्रचूडा विकाशिनी।
ऊर्ध्ववेणीधरा चैव पिङ्गाक्षी लोहमेखला ॥ १८ ॥
पृथुवस्त्रा मधुलिका मधुकुम्भा तथैव च।
पक्षालिका मत्कुलिका जरायुर्जर्जरानना ॥ १९ ॥
ख्याता दहदहा चैव तथा धमधमा नृप।
खण्डखण्डा च राजेन्द्र पूषणा मणिकुट्टिका ॥ २० ॥
अमोघा चैव कौरव्य तथा लम्बपयोधरा।
वेणुवीणाधरा चैव पिङ्गाक्षी लोहमेखला ॥ २१ ॥
शशोलूकमुखी कृष्णा खरजङ्घा महाजवा।
शिशुमारमुखी श्वेता लोहिताक्षी विभीषणा ॥ २२ ॥
जटालिका कामचरी दीर्घजिह्वा बलोत्कटा।
कालेहिका वामनिका मुकुटा चैव भारत ॥ २३ ॥
लोहिताक्षी महाकाया हरिपिण्डा च भूमिप।
एकत्वचा सुकुसुमा कृष्णकर्णी च भारत ॥ २४ ॥
क्षुरकर्णी चतुष्कर्णी कर्णप्रावरणा तथा।
चतुष्यथनिकेता च गोकर्णी महिषानना ॥ २५ ॥
खरकर्णी महाकर्णी भेरीस्वनमहास्वना ।
शङ्खकुम्भश्रवाश्चैव भगदा च महाबला ॥ २६ ॥
गणा च सुगणा चैव तथा भीत्यथ कामदा।
चतुष्पथरता चैव भूतितीर्थान्यगोचरी ॥ २७ ॥
पशुदा वित्तदा चैव सुखदा च महायशाः।
पयोदा गोमहिषदा सुविशाला च भारत ॥ २८ ॥
प्रतिष्ठा सुप्रतिष्ठा च रोचमाना सुरोचना।
नौकर्णी मुखकर्णी च विशिरा मन्थिनी तथा ॥ २९ ॥
एकचन्द्रा मेघकर्णा मेघमाला विरोचना।
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुवंशी! भरतकुलनन्दन! राजेन्द्र! वे नाम इस प्रकार हैं—प्रभावती, विशालाक्षी, पालिता, गोस्तनी, श्रीमती, बहुला, बहुपुत्रिका, अप्सु जाता, गोपाली, बृहदम्बालिका, जयावती, मालतिका, ध्रुवरत्ना, भयंकरी, वसुदामा, दामा, विशोका, नन्दिनी, एकचूडा, महाचूडा, चक्रनेमि, उत्तेजनी, जयत्सेना, कमलाक्षी, शोभना, शत्रुंजया, क्रोधना, शलभी, खरी, माधवी, शुभवक्त्रा, तीर्थनेमि, गीतप्रिया, कल्याणी, रुद्ररोमा, अमिताशना, मेघस्वना, भोगवती, सुभ्रू, कनकावती, अलाताक्षी, वीर्यवती, विद्युज्जिह्वा, पद्मावती, सुनक्षत्रा, कन्दरा, बहुयोजना, संतानिका, कमला, महाबला, सुदामा, बहुदामा, सुप्रभा, यशस्विनी, नृत्यप्रिया, शतोलूखलमेखला, शतघण्टा, शतानन्दा, भगनन्दा, भाविनी, वपुष्मती, चन्द्रसीता, भद्रकाली, ऋक्षाम्बिका, निष्कुटिका, वामा, चत्वरवासिनी, सुमंगला, स्वस्तिमती, बुद्धिकामा, जयप्रिया, धनदा, सुप्रसादा, भवदा, जलेश्वरी, एडी, भेडी, समेडी, वेतालजननी, कण्डूतिकालिका, देवमित्रा, वसुश्री, कोटरा, चित्रसेना, अचला, कुक्कुटिका, शंखलिका, शकुनिका, कुण्डारिका, कौकुलिका, कुम्भिका, शतोदरी, उत्क्राथिनी, जलेला, महावेगा, कंकणा, मनोजवा, कण्टकिनी, प्रघसा, पूतना, केशयन्त्री, त्रुटि, वामा, क्रोशना तडित्प्रभा, मन्दोदरी, मुण्डी, कोटरा, मेघवाहिनी, सुभगा, लम्बिनी, लम्बा, ताम्रचूड़ा, विकाशिनी, ऊर्ध्ववेणीधरा, पिंगाक्षी, लोहमेखला, पृथुवस्त्रा, मधुलिका, मधुकुम्भा, पक्षालिका, मत्कुलिका, जरायु, जर्जरानना, ख्याता, दहदहा, धमधमा, खण्डखण्डा, पूषणा, मणिकुट्टिका, अमोला, लम्बपयोधरा, वेणुवीणाधरा, पिंगाक्षी, लोहमेखला, शशोलूकमुखी, कृष्णा, खरजंघा, महाजवा, शिशुमारमुखी, श्वेता, लोहिताक्षी, विभीषणा, जटालिका, कामचरी, दीर्घजिह्वा, बलोत्कटा, कालेहिका, वामनिका, मुकुटा, लोहिताक्षी, महाकाया, हरिपिण्डा, एकत्वचा, सुकुसुमा, कृष्णकर्णी, क्षुरकर्णी, चतुष्कर्णी, कर्णप्रावरणा, चतुष्पथनिकेता, गोकर्णी, महिषानना, खरकर्णी, महाकर्णी, भेरीस्वना, महास्वना, शंखश्रवा, कुम्भश्रवा, भगदा, महाबला, गणा, सुगणा, अभीति, कामदा, चतुष्पथरता, भूतितीर्था, अन्यगोचरी, पशुदा, वित्तदा, सुखदा, महायशा, पयोदा, गोदा, महिषदा, सुविशाला, प्रतिष्ठा, सुप्रतिष्ठा, रोचमाना, सुरोचना, नौकर्णी, मुखकर्णी, विशिरा, मन्थिनी, एकचन्द्रा, मेघकर्णा, मेघमाला और विरोचना॥३—२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एताश्चान्याश्च बहवो मातरो भरतर्षभ ॥ ३० ॥
कार्तिकेयानुयायिन्यो नानारूपाः सहस्रशः ।
मूलम्
एताश्चान्याश्च बहवो मातरो भरतर्षभ ॥ ३० ॥
कार्तिकेयानुयायिन्यो नानारूपाः सहस्रशः ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! ये तथा और भी नाना रूपधारिणी बहुत-सी सहस्रों मातृकाएँ हैं, जो कुमार कार्तिकेयका अनुसरण करती हैं॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दीर्घनख्यो दीर्घदन्त्यो दीर्घतुण्ड्यश्च भारत ॥ ३१ ॥
सबला मधुराश्चैव यौवनस्थाः स्वलंकृताः।
माहात्म्येन च संयुक्ताः कामरूपधरास्तथा ॥ ३२ ॥
मूलम्
दीर्घनख्यो दीर्घदन्त्यो दीर्घतुण्ड्यश्च भारत ॥ ३१ ॥
सबला मधुराश्चैव यौवनस्थाः स्वलंकृताः।
माहात्म्येन च संयुक्ताः कामरूपधरास्तथा ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! इनके नख, दाँत और मुख सभी विशाल हैं। वे सबला, मधुरा (सुन्दरी), युवावस्थासे सम्पन्न तथा वस्त्राभूषणोंसे विभूषित हैं। इनकी बड़ी महिमा है। ये अपनी इच्छाके अनुसार रूप धारण करनेवाली हैं॥३१-३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निर्मांसगात्र्यः श्वेताश्च तथा काञ्चनसंनिभाः।
कृष्णमेघनिभाश्चान्या धूम्राश्च भरतर्षभ ॥ ३३ ॥
मूलम्
निर्मांसगात्र्यः श्वेताश्च तथा काञ्चनसंनिभाः।
कृष्णमेघनिभाश्चान्या धूम्राश्च भरतर्षभ ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इनमेंसे कुछ मातृकाओंके शरीर केवल हड्डियोंके ढाँचे हैं। उनमें मांसका पता नहीं है। कुछ श्वेतवर्णकी हैं और कितनोंकी ही अंगकान्ति सुवर्णके समान है। भरतश्रेष्ठ! कुछ मातृकाएँ कृष्णमेघके समान काली तथा कुछ धूम्रवर्णकी हैं॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अरुणाभा महाभोगा दीर्घकेश्यः सिताम्बराः।
ऊर्ध्ववेणीधराश्चैव पिङ्गाक्ष्यो लम्बमेखलाः ॥ ३४ ॥
मूलम्
अरुणाभा महाभोगा दीर्घकेश्यः सिताम्बराः।
ऊर्ध्ववेणीधराश्चैव पिङ्गाक्ष्यो लम्बमेखलाः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कितनोंकी कान्ति अरुणवर्णकी है। वे सभी महान् भोगोंसे सम्पन्न हैं। उनके केश बड़े-बड़े और वस्त्र उज्ज्वल हैं। वे ऊपरकी ओर वेणी धारण करनेवाली, भूरी आँखोंसे सुशोभित तथा लम्बी मेखलासे अलंकृत हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लम्बोदर्यो लम्बकर्णास्तथा लम्बपयोधराः ।
ताम्राक्ष्यस्ताम्रवर्णाश्च हर्यक्ष्यश्च तथा पराः ॥ ३५ ॥
मूलम्
लम्बोदर्यो लम्बकर्णास्तथा लम्बपयोधराः ।
ताम्राक्ष्यस्ताम्रवर्णाश्च हर्यक्ष्यश्च तथा पराः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनमेंसे किन्हींके उदर, किन्हींके कान तथा किन्हींके दोनों स्तन लंबे हैं। कितनोंकी आँखें ताँबेके समान लाल रंगकी हैं। कुछ मातृकाओंके शरीरकी कान्ति भी ताम्रवर्णकी हैं। बहुतोंकी आँखें काले रंगकी हैं॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वरदाः कामचारिण्यो नित्यं प्रमुदितास्तथा।
याम्या रौद्रास्तथा सौम्याः कौबेर्योऽथ महाबलाः ॥ ३६ ॥
वारुण्योऽथ च माहेन्द्र्यस्तथाऽऽग्नेय्यः परंतप।
वायव्यश्चाथ कौमार्यो ब्राह्म्यश्च भरतर्षभ ॥ ३७ ॥
वैष्णव्यश्च तथा सौर्यो वाराह्यश्च महाबलाः।
रूपेणाप्सरसां तुल्या मनोहार्यो मनोरमाः ॥ ३८ ॥
मूलम्
वरदाः कामचारिण्यो नित्यं प्रमुदितास्तथा।
याम्या रौद्रास्तथा सौम्याः कौबेर्योऽथ महाबलाः ॥ ३६ ॥
वारुण्योऽथ च माहेन्द्र्यस्तथाऽऽग्नेय्यः परंतप।
वायव्यश्चाथ कौमार्यो ब्राह्म्यश्च भरतर्षभ ॥ ३७ ॥
वैष्णव्यश्च तथा सौर्यो वाराह्यश्च महाबलाः।
रूपेणाप्सरसां तुल्या मनोहार्यो मनोरमाः ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे वर देनेमें समर्थ, अपनी इच्छाके अनुसार चलनेवाली और सदा आनन्दमें निमग्न रहनेवाली हैं। शत्रुओंको संताप देनेवाले भरतश्रेष्ठ! उन मातृकाओंमेंसे कुछ यमकी शक्तियाँ हैं, कुछ रुद्रकी। कुछ सोमकी शक्तियाँ हैं और कुछ कुबेरकी। वे सब-की-सब महान् बलसे सम्पन्न हैं। इसी तरह कुछ वरुणकी, कुछ देवराज इन्द्रकी, कुछ अग्नि, वायु, कुमार, ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य तथा भगवान् वराहकी महाबलशालिनी शक्तियाँ हैं, जो रूपमें अप्सराओंके समान मनोहारिणी और मनोरमा हैं॥३६—३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परपुष्टोपमा वाक्ये तथद्ध्र्या धनदोपमाः।
शक्रवीर्योपमा युद्धे दीप्त्या वह्निसमास्तथा ॥ ३९ ॥
मूलम्
परपुष्टोपमा वाक्ये तथद्ध्र्या धनदोपमाः।
शक्रवीर्योपमा युद्धे दीप्त्या वह्निसमास्तथा ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे मीठी वाणी बोलनेमें कोयल और धनसमृद्धिमें कुबेरके समान हैं। युद्धमें इन्द्रके सदृश पराक्रम प्रकट करनेवाली तथा अग्निके समान तेजस्विनी हैं॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शत्रूणां विग्रहे नित्यं भयदास्ता भवन्त्युत।
कामरूपधराश्चैव जवे वायुसमास्तथा ॥ ४० ॥
मूलम्
शत्रूणां विग्रहे नित्यं भयदास्ता भवन्त्युत।
कामरूपधराश्चैव जवे वायुसमास्तथा ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्ध छिड़ जानेपर वे सदा शत्रुओंके लिये भयदायिनी होती हैं। वे इच्छानुसार रूप धारण करनेवाली तथा वायुके समान वेगशालिनी हैं॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अचिन्त्यबलवीर्याश्च तथाचिन्त्यपराक्रमाः ।
वृक्षचत्वरवासिन्यश्चतुष्पथनिकेतनाः ॥ ४१ ॥
मूलम्
अचिन्त्यबलवीर्याश्च तथाचिन्त्यपराक्रमाः ।
वृक्षचत्वरवासिन्यश्चतुष्पथनिकेतनाः ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके बल, वीर्य और पराक्रम अचिन्त्य हैं। वे वृक्षों, चबूतरों और चौराहोंपर निवास करती हैं॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गुहाश्मशानवासिन्यः शैलप्रस्रवणालयाः ।
नानाभरणधारिण्यो नानामाल्याम्बरास्तथा ॥ ४२ ॥
मूलम्
गुहाश्मशानवासिन्यः शैलप्रस्रवणालयाः ।
नानाभरणधारिण्यो नानामाल्याम्बरास्तथा ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गुफाएँ, श्मशान, पर्वत और झरने भी उनके निवासस्थान हैं। वे नाना प्रकारके आभूषण, पुष्पहार और वस्त्र धारण करती हैं॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नानाविचित्रवेषाश्च नानाभाषास्तथैव च ।
एते चान्ये च बहवो गणाः शत्रुभयंकराः ॥ ४३ ॥
अनुजग्मुर्महात्मानं त्रिदशेन्द्रस्य सम्मते ।
मूलम्
नानाविचित्रवेषाश्च नानाभाषास्तथैव च ।
एते चान्ये च बहवो गणाः शत्रुभयंकराः ॥ ४३ ॥
अनुजग्मुर्महात्मानं त्रिदशेन्द्रस्य सम्मते ।
अनुवाद (हिन्दी)
उनके वेश नाना प्रकारके और विचित्र हैं। वे अनेक प्रकारकी भाषाएँ बोलती हैं। ये तथा और भी बहुत-से शत्रुओंको भयभीत करनेवाले गण देवेन्द्रकी सम्मतिसे महात्मा स्कन्दका अनुसरण करने लगे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शक्त्यस्त्रमददद् भगवान् पाकशासनः ॥ ४४ ॥
गुहाय राजशार्दूल विनाशाय सुरद्विषाम्।
महास्वनां महाघण्टां द्योतमानां सितप्रभाम् ॥ ४५ ॥
मूलम्
ततः शक्त्यस्त्रमददद् भगवान् पाकशासनः ॥ ४४ ॥
गुहाय राजशार्दूल विनाशाय सुरद्विषाम्।
महास्वनां महाघण्टां द्योतमानां सितप्रभाम् ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नृपश्रेष्ठ! तदनन्तर भगवान् पाकशासनने देवद्रोहियोंके विनाशके लिये कुमार कार्तिकेयको शक्ति नामक अस्त्र प्रदान किया। साथ ही उन्होंने बड़े जोरसे आवाज करनेवाला एक विशाल घंटा भी दिया, जो अपनी उज्ज्वल प्रभासे प्रकाशित हो रहा था॥४४-४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अरुणादित्यवर्णां च पताकां भरतर्षभ।
ददौ पशुपतिस्तस्मै सर्वभूतमहाचमूम् ॥ ४६ ॥
मूलम्
अरुणादित्यवर्णां च पताकां भरतर्षभ।
ददौ पशुपतिस्तस्मै सर्वभूतमहाचमूम् ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! भगवान् पशुपतिने उन्हें अरुण और सूर्यके समान प्रकाशमान एक पताका और अपने सम्पूर्ण भूतगणोंकी विशाल सेना भी प्रदान की॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उग्रां नानाप्रहरणां तपोवीर्यबलान्विताम् ।
अजेयां स्वगणैर्युक्तां नाम्ना सेनां धनंजयाम् ॥ ४७ ॥
रुद्रतुल्यबलैर्युक्तां योधानामयुतैस्त्रिभिः ।
न सा विजानाति रणात् कदाचिद् विनिवर्तितुम् ॥ ४८ ॥
मूलम्
उग्रां नानाप्रहरणां तपोवीर्यबलान्विताम् ।
अजेयां स्वगणैर्युक्तां नाम्ना सेनां धनंजयाम् ॥ ४७ ॥
रुद्रतुल्यबलैर्युक्तां योधानामयुतैस्त्रिभिः ।
न सा विजानाति रणात् कदाचिद् विनिवर्तितुम् ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह भयंकर सेना धनंजय नामसे विख्यात थी। उसमें सभी सैनिक नाना प्रकारके अस्त्र, शस्त्र, तपस्या, बल और पराक्रमसे सम्पन्न थे। रुद्रके समान बलशाली तीस हजार रुद्रगणोंसे युक्त वह सेना शत्रुओंके लिये अजेय थी। वह कभी भी युद्धसे पीछे हटना जानती ही नहीं थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विष्णुर्ददौ वैजयन्तीं मालां बलविवर्धिनीम्।
उमा ददौ विरजसी वाससी रविसप्रभे ॥ ४९ ॥
मूलम्
विष्णुर्ददौ वैजयन्तीं मालां बलविवर्धिनीम्।
उमा ददौ विरजसी वाससी रविसप्रभे ॥ ४९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भगवान् विष्णुने कुमारको बल बढ़ानेवाली वैजयन्ती माला दी और उमाने सूर्यके समान चमकीले दो निर्मल वस्त्र प्रदान किये॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गङ्गा कमण्डलुं दिव्यममृतोद्भवमुत्तमम् ।
ददौ प्रीत्या कुमाराय दण्डं चैव बृहस्पतिः ॥ ५० ॥
मूलम्
गङ्गा कमण्डलुं दिव्यममृतोद्भवमुत्तमम् ।
ददौ प्रीत्या कुमाराय दण्डं चैव बृहस्पतिः ॥ ५० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गंगाने कुमारको प्रसन्नतापूर्वक एक दिव्य और उत्तम कमण्डलु दिया, जो अमृत प्रकट करनेवाला था। बृहस्पतिजीने दण्ड प्रदान किया॥५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गरुडो दयितं पुत्रं मयूरं चित्रबर्हिणम्।
अरुणस्ताम्रचूडं च प्रददौ चरणायुधम् ॥ ५१ ॥
मूलम्
गरुडो दयितं पुत्रं मयूरं चित्रबर्हिणम्।
अरुणस्ताम्रचूडं च प्रददौ चरणायुधम् ॥ ५१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरुडने विचित्र पंखोंसे सुशोभित अपना प्रिय पुत्र मयूर भेंट किया। अरुणने लाल शिखावाले अपने पुत्र ताम्रचूड (मुर्ग)-को समर्पित किया, जिसका पैर ही आयुध था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागं तु वरुणो राजा बलवीर्यसमन्वितम्।
कृष्णाजिनं ततो ब्रह्मा ब्रह्मण्याय ददौ प्रभुः ॥ ५२ ॥
समरेषु जयं चैव प्रददौ लोकभावनः।
मूलम्
नागं तु वरुणो राजा बलवीर्यसमन्वितम्।
कृष्णाजिनं ततो ब्रह्मा ब्रह्मण्याय ददौ प्रभुः ॥ ५२ ॥
समरेषु जयं चैव प्रददौ लोकभावनः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजा वरुणने बल और वीर्यसे सम्पन्न एक नाग भेंट किया और लोकस्रष्टा भगवान् ब्रह्माने ब्राह्मणहितैषी कुमारको काला मृगचर्म तथा युद्धमें विजयका आशीर्वाद प्रदान किया॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सैनापत्यमनुप्राप्य स्कन्दो देवगणस्य ह ॥ ५३ ॥
शुशुभे ज्वलितोऽर्चिष्मान् द्वितीय इव पावकः।
मूलम्
सैनापत्यमनुप्राप्य स्कन्दो देवगणस्य ह ॥ ५३ ॥
शुशुभे ज्वलितोऽर्चिष्मान् द्वितीय इव पावकः।
अनुवाद (हिन्दी)
देवताओंका सेनापतित्व पाकर तेजस्वी स्कन्द अपने तेजसे प्रज्वलित हो दूसरे अग्निदेवके समान सुशोभित होने लगे॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पारिषदैश्चैव मातृभिश्च समन्वितः ॥ ५४ ॥
ययौ दैत्यविनाशाय ह्लादयन् सुरपुङ्गवान्।
मूलम्
ततः पारिषदैश्चैव मातृभिश्च समन्वितः ॥ ५४ ॥
ययौ दैत्यविनाशाय ह्लादयन् सुरपुङ्गवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर अपने पार्षदों तथा मातृकागणोंके साथ कुमार कार्तिकेयने देवेश्वरोंको आनन्द प्रदान करते हुए दैत्योंके विनाशके लिये प्रस्थान किया॥५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा सेना नैर्ऋती भीमा सघण्टोच्छ्रितकेतना ॥ ५५ ॥
सभेरीशङ्खमुरजा सायुधा सपताकिनी ।
शारदी द्यौरिवाभाति ज्योतिर्भिरिव शोभिता ॥ ५६ ॥
मूलम्
सा सेना नैर्ऋती भीमा सघण्टोच्छ्रितकेतना ॥ ५५ ॥
सभेरीशङ्खमुरजा सायुधा सपताकिनी ।
शारदी द्यौरिवाभाति ज्योतिर्भिरिव शोभिता ॥ ५६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नैर्ऋतों (भूतगणों)-की वह भयंकर सेना घंटा, भेरी, शंख और मृदंगकी ध्वनिसे गूँज रही थी। उसकी ऊँचे उठी हुई पताकाएँ फहरा रही थीं। अस्त्र-शस्त्रों और पताकाओंसे सम्पन्न वह विशाल वाहिनी नक्षत्रोंसे सुशोभित शरत्कालके आकाशकी भाँति शोभा पा रही थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो देवनिकायास्ते नानाभूतगणास्तथा ।
वादयामासुरव्यग्रा भेरीः शङ्खांश्च पुष्कलान् ॥ ५७ ॥
पटहान् झर्झरांश्चैव क्रकचान् गोविषाणकान्।
आडम्बरान् गोमुखांश्च डिण्डिमांश्च महास्वनान् ॥ ५८ ॥
मूलम्
ततो देवनिकायास्ते नानाभूतगणास्तथा ।
वादयामासुरव्यग्रा भेरीः शङ्खांश्च पुष्कलान् ॥ ५७ ॥
पटहान् झर्झरांश्चैव क्रकचान् गोविषाणकान्।
आडम्बरान् गोमुखांश्च डिण्डिमांश्च महास्वनान् ॥ ५८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर वे देवसमूह तथा नाना प्रकारके भूतगण शान्तचित्त हो भेरी, बहुत-से शंख, पटह, झाँझ, क्रकच, गोशृंग, आडम्बर, गोमुख और भारी आवाज करनेवाले नगाड़े बजाने लगे॥५७-५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तुष्टुवुस्ते कुमारं तु सर्वे देवाः सवासवाः।
जगुश्च देवगन्धर्वा ननृतुश्चाप्सरोगणाः ॥ ५९ ॥
मूलम्
तुष्टुवुस्ते कुमारं तु सर्वे देवाः सवासवाः।
जगुश्च देवगन्धर्वा ननृतुश्चाप्सरोगणाः ॥ ५९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता कुमारकी स्तुति करने लगे। देव-गन्धर्व गाने और अप्सराएँ नाचने लगीं॥५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रीतो महासेनस्त्रिदशेभ्यो वरं ददौ।
रिपून् हन्तास्मि समरे ये वो वधचिकीर्षवः ॥ ६० ॥
मूलम्
ततः प्रीतो महासेनस्त्रिदशेभ्यो वरं ददौ।
रिपून् हन्तास्मि समरे ये वो वधचिकीर्षवः ॥ ६० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे प्रसन्न होकर कुमार महासेनने देवताओंको यह वर दिया कि ‘जो आपलोगोंका वध करना चाहते हैं, आपके उन समस्त शत्रुओंका मैं समरांगणमें संहार कर डालूँगा’॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतिगृहृ वरं देवास्तस्माद् विबुधसत्तमात्।
प्रीतात्मानो महात्मानो मेनिरे निहतान् रिपून् ॥ ६१ ॥
मूलम्
प्रतिगृहृ वरं देवास्तस्माद् विबुधसत्तमात्।
प्रीतात्मानो महात्मानो मेनिरे निहतान् रिपून् ॥ ६१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन सुरश्रेष्ठ कुमारसे वह वर पाकर महामनस्वी देवता बड़े प्रसन्न हुए और अपने शत्रुओंको मरा हुआ ही मानने लगे॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वेषां भूतसंघानां हर्षान्नादः समुत्थितः।
अपूरयत लोकांस्त्रीन् वरे दत्ते महात्मना ॥ ६२ ॥
मूलम्
सर्वेषां भूतसंघानां हर्षान्नादः समुत्थितः।
अपूरयत लोकांस्त्रीन् वरे दत्ते महात्मना ॥ ६२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महात्मा कुमारके वर देनेपर सम्पूर्ण भूतसमुदायोंने जो हर्षनाद किया, वह तीनों लोकोंमें गूँज उठा॥६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स निर्ययौ महासेनो महत्या सेनया वृतः।
वधाय युधि दैत्यानां रक्षार्थं च दिवौकसाम् ॥ ६३ ॥
मूलम्
स निर्ययौ महासेनो महत्या सेनया वृतः।
वधाय युधि दैत्यानां रक्षार्थं च दिवौकसाम् ॥ ६३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् विशाल सेनासे घिरे हुए स्वामी महासेन युद्धमें दैत्योंका वध और देवताओंकी रक्षा करनेके लिये आगे बढ़े॥६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यवसायो जयो धर्मः सिद्धिर्लक्ष्मीर्धृतिः स्मृतिः।
महासेनस्य सैन्यानामग्रे जग्मुर्नराधिप ॥ ६४ ॥
मूलम्
व्यवसायो जयो धर्मः सिद्धिर्लक्ष्मीर्धृतिः स्मृतिः।
महासेनस्य सैन्यानामग्रे जग्मुर्नराधिप ॥ ६४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! उस समय व्यवसाय (दृढ़ निश्चय), विजय, धर्म, सिद्धि, लक्ष्मी, धृति और स्मृति—ये सब-के-सब महासेनके सैनिकोंके आगे-आगे चलने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तया भीमया देवः शूलमुद्गरहस्तया।
ज्वलितालातधारिण्या चित्राभरणवर्मया ॥ ६५ ॥
गदामुसलनाराचशक्तितोमरहस्तया ।
दृप्तसिंहनिनादिन्या विनद्य प्रययौ गृहः ॥ ६६ ॥
मूलम्
स तया भीमया देवः शूलमुद्गरहस्तया।
ज्वलितालातधारिण्या चित्राभरणवर्मया ॥ ६५ ॥
गदामुसलनाराचशक्तितोमरहस्तया ।
दृप्तसिंहनिनादिन्या विनद्य प्रययौ गृहः ॥ ६६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह सेना बड़ी भयंकर थी। उसने हाथोंमें शूल, मुद्गर, जलते हुए काठ, गदा, मुसल, नाराच, शक्ति और तोमर धारण कर रखे थे। सारी सेना विचित्र आभूषणों और कवचोंसे सुसज्जित थी तथा दर्पयुक्त सिंहके समान दहाड़ रही थी, उस सेनाके साथ सिंहनाद करके कुमार कार्तिकेय युद्धके लिये प्रस्थित हुए॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वा सर्वदैतेया राक्षसा दानवास्तथा।
व्यद्रवन्त दिशः सर्वा भयोद्विग्नाः समन्ततः ॥ ६७ ॥
मूलम्
तं दृष्ट्वा सर्वदैतेया राक्षसा दानवास्तथा।
व्यद्रवन्त दिशः सर्वा भयोद्विग्नाः समन्ततः ॥ ६७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्हें देखकर सम्पूर्ण दैत्य, दानव और राक्षस भयसे उद्विग्न हो सारी दिशाओंमें सब ओर भाग गये॥६७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभ्यद्रवन्त देवास्तान् विविधायुधपाणयः ।
दृष्ट्वा च स ततः क्रुद्धः स्कन्दस्तेजोबलान्वितः ॥ ६८ ॥
शक्त्यस्त्रं भगवान् भीमं पुनः पुनरवाकिरत्।
आदधच्चात्मनस्तेजो हविषेद्ध इवानलः ॥ ६९ ॥
मूलम्
अभ्यद्रवन्त देवास्तान् विविधायुधपाणयः ।
दृष्ट्वा च स ततः क्रुद्धः स्कन्दस्तेजोबलान्वितः ॥ ६८ ॥
शक्त्यस्त्रं भगवान् भीमं पुनः पुनरवाकिरत्।
आदधच्चात्मनस्तेजो हविषेद्ध इवानलः ॥ ६९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
देवता अपने हाथोंमें नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र ले उन दैत्योंका पीछा करने लगे। यह सब देखकर तेज और बलसे सम्पन्न भगवान् स्कन्द कुपित हो उठे और शक्ति नामक भयानक अस्त्रका बारंबार प्रयोग करने लगे। उन्होंने उसमें अपना तेज स्थापित कर दिया था और वे उस समय घीसे प्रज्वलित हुई अग्निके समान प्रकाशित हो रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभ्यस्यमाने शक्त्यस्त्रे स्कन्देनामिततेजसा ।
उल्काज्वाला महाराज पपात वसुधातले ॥ ७० ॥
मूलम्
अभ्यस्यमाने शक्त्यस्त्रे स्कन्देनामिततेजसा ।
उल्काज्वाला महाराज पपात वसुधातले ॥ ७० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! अमित तेजस्वी स्कन्दके द्वारा शक्तिका बारंबार प्रयोग होनेसे पृथ्वीपर प्रज्वलित उल्का गिरने लगी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संह्रादयन्तश्च तथा निर्घाताश्चापतन् क्षितौ।
यथान्तकालसमये सुघोराः स्युस्तथा नृप ॥ ७१ ॥
मूलम्
संह्रादयन्तश्च तथा निर्घाताश्चापतन् क्षितौ।
यथान्तकालसमये सुघोराः स्युस्तथा नृप ॥ ७१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! जैसे प्रलयके समय अत्यन्त भयंकर वज्र भारी गड़गड़ाहटके साथ पृथ्वीपर गिरने लगते हैं, उसी प्रकार उस समय भी भीषण गर्जनाके साथ वज्रपात होने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षिप्ता ह्येका यदा शक्तिः सुघोरानलसूनुना।
ततः कोट्यो विनिष्पेतुः शक्तीनां भरतर्षभ ॥ ७२ ॥
मूलम्
क्षिप्ता ह्येका यदा शक्तिः सुघोरानलसूनुना।
ततः कोट्यो विनिष्पेतुः शक्तीनां भरतर्षभ ॥ ७२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! अग्निकुमारने जब एक बार अत्यन्त भयंकर शक्ति छोड़ी, तब उससे करोड़ों शक्तियाँ प्रकट होकर गिरने लगीं॥७२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रीतो महासेनो जघान भगवान् प्रभुः।
दैत्येन्द्रं तारकं नाम महाबलपराक्रमम् ॥ ७३ ॥
वृतं दैत्यायुतैर्वीरैर्बलिभिर्दशभिर्नृप ।
मूलम्
ततः प्रीतो महासेनो जघान भगवान् प्रभुः।
दैत्येन्द्रं तारकं नाम महाबलपराक्रमम् ॥ ७३ ॥
वृतं दैत्यायुतैर्वीरैर्बलिभिर्दशभिर्नृप ।
अनुवाद (हिन्दी)
इससे प्रभावशाली भगवान् महासेन बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने महान् बल एवं पराक्रमसे सम्पन्न उस दैत्यराज तारकको मार गिराया, जो एक लाख बलवान् एवं वीर दैत्योंसे घिरा हुआ था॥७३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महिषं चाष्टभिः पद्मैर्वृतं संख्ये निजघ्निवान् ॥ ७४ ॥
त्रिपादं चायुतशतैर्जघान दशभिर्वृतम् ।
ह्रदोदरं निखर्वैश्च वृतं दशभिरीश्वरः ॥ ७५ ॥
जघानानुचरैः सार्धं विविधायुधपाणिभिः ।
मूलम्
महिषं चाष्टभिः पद्मैर्वृतं संख्ये निजघ्निवान् ॥ ७४ ॥
त्रिपादं चायुतशतैर्जघान दशभिर्वृतम् ।
ह्रदोदरं निखर्वैश्च वृतं दशभिरीश्वरः ॥ ७५ ॥
जघानानुचरैः सार्धं विविधायुधपाणिभिः ।
अनुवाद (हिन्दी)
साथ ही उन्होंने युद्धस्थलमें आठ पद्म दैत्योंसे घिरे हुए महिषासुरका, दस लाख असुरोंसे सुरक्षित त्रिपादका और दस निखर्व दैत्य-योद्धाओंसे घिरे हुए ह्रदोदरका भी नाना प्रकारके आयुधधारी अनुचरोंसहित वध कर डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथाकुर्वन्त विपुलं नादं वध्यत्सु शत्रुषु ॥ ७६ ॥
कुमारानुचरा राजन् पूरयन्तो दिशो दश।
ननृतुश्च ववल्गुश्च जहसुश्च मुदान्विताः ॥ ७७ ॥
मूलम्
तथाकुर्वन्त विपुलं नादं वध्यत्सु शत्रुषु ॥ ७६ ॥
कुमारानुचरा राजन् पूरयन्तो दिशो दश।
ननृतुश्च ववल्गुश्च जहसुश्च मुदान्विताः ॥ ७७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जब शत्रु मारे जाने लगे, उस समय कुमारके अनुचर दसों दिशाओंको गुँजाते हुए बड़े जोर-जोरसे गर्जना करने लगे। इतना ही नहीं, वे आनन्दमग्न होकर नाचने, कूदने तथा जोर-जोरसे हँसने लगे॥७६-७७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्त्यस्त्रस्य तु राजेन्द्र ततोऽर्चिर्भिः समन्ततः।
त्रैलोक्यं त्रासितं सर्वं जृम्भमाणाभिरेव च ॥ ७८ ॥
मूलम्
शक्त्यस्त्रस्य तु राजेन्द्र ततोऽर्चिर्भिः समन्ततः।
त्रैलोक्यं त्रासितं सर्वं जृम्भमाणाभिरेव च ॥ ७८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! उस शक्तिनामक अस्त्रकी सब ओर फैलती हुई ज्वालाओंसे सारी त्रिलोकी थर्रा उठी॥७८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दग्धाः सहस्रशो दैत्या नादैः स्कन्दस्य चापरे।
पताकयावधूताश्च हताः केचित् सुरद्विषः ॥ ७९ ॥
मूलम्
दग्धाः सहस्रशो दैत्या नादैः स्कन्दस्य चापरे।
पताकयावधूताश्च हताः केचित् सुरद्विषः ॥ ७९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सहस्रों दैत्य उस शक्तिकी आगमें जलकर भस्म हो गये। कितने ही स्कन्दके सिंहनादोंसे ही डरकर अपने प्राण खो बैठे तथा कुछ देवद्रोही उनकी पताकासे ही कम्पित होकर मर गये॥७९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिद् घण्टारवत्रस्ता निषेदुर्वसुधातले ।
केचित् प्रहरणैश्छिन्ना विनिष्पेतुर्गतायुषः ॥ ८० ॥
मूलम्
केचिद् घण्टारवत्रस्ता निषेदुर्वसुधातले ।
केचित् प्रहरणैश्छिन्ना विनिष्पेतुर्गतायुषः ॥ ८० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ दैत्य उनके घंटानादसे संत्रस्त होकर धरतीपर बैठ गये और कुछ उनके आयुधोंसे छिन्न-भिन्न हो गतायु होकर पृथ्वीपर गिर पड़े॥८०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं सुरद्विषोऽनेकान् बलवानाततायिनः ।
जघान समरे वीरः कार्तिकेयो महाबलः ॥ ८१ ॥
मूलम्
एवं सुरद्विषोऽनेकान् बलवानाततायिनः ।
जघान समरे वीरः कार्तिकेयो महाबलः ॥ ८१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार महाबली शक्तिशाली वीर कार्तिकेयने समरांगणमें अनेक आततायी देवद्रोहियोंका संहार कर डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाणो नामाथ दैतेयो बलेः पुत्रो महाबलः।
क्रौञ्चं पर्वतमाश्रित्य देवसंघानबाधत ॥ ८२ ॥
मूलम्
बाणो नामाथ दैतेयो बलेः पुत्रो महाबलः।
क्रौञ्चं पर्वतमाश्रित्य देवसंघानबाधत ॥ ८२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा बलिका महाबली पुत्र बाणासुर क्रौंच पर्वतका आश्रय लेकर देवसमूहोंको कष्ट पहुँचाया करता था॥८२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमभ्ययान्महासेनः सुरशत्रुमुदारधीः ।
स कार्तिकेयस्य भयात् क्रौञ्चं शरणमीयिवान् ॥ ८३ ॥
मूलम्
तमभ्ययान्महासेनः सुरशत्रुमुदारधीः ।
स कार्तिकेयस्य भयात् क्रौञ्चं शरणमीयिवान् ॥ ८३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उदारबुद्धि महासेनने उस दैत्यपर भी आक्रमण किया। तब वह कार्तिकेयके भयसे क्रौंच पर्वतकी शरणमें जा छिपा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्रौञ्चं महामन्युः क्रौञ्चनादनिनादितम्।
शक्त्या बिभेद भगवान् कार्तिकेयोऽग्निदत्तया ॥ ८४ ॥
मूलम्
ततः क्रौञ्चं महामन्युः क्रौञ्चनादनिनादितम्।
शक्त्या बिभेद भगवान् कार्तिकेयोऽग्निदत्तया ॥ ८४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे भगवान् कार्तिकेयको महान् क्रोध हुआ। उन्होंने अग्निकी दी हुई शक्तिसे क्रौंच पक्षियोंके कोलाहलसे गूँजते हुए क्रौंच पर्वतको विदीर्ण कर डाला॥८४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शालस्कन्धशबलं त्रस्तवानरवारणम् ।
प्रोड्डीनोद्भ्रान्तविहगं विनिष्पतितपन्नगम् ॥ ८५ ॥
गोलाङ्गूलर्क्षसंघैश्च द्रवद्भिरनुनादितम् ।
कुरङ्गमविनिर्घोषनिनादितवनान्तरम् ॥ ८६ ॥
विनिष्पतद्भिः शरभैः सिंहैश्च सहसा द्रुतैः।
शोच्यामपि दशां प्राप्तो रराजेव स पर्वतः ॥ ८७ ॥
मूलम्
स शालस्कन्धशबलं त्रस्तवानरवारणम् ।
प्रोड्डीनोद्भ्रान्तविहगं विनिष्पतितपन्नगम् ॥ ८५ ॥
गोलाङ्गूलर्क्षसंघैश्च द्रवद्भिरनुनादितम् ।
कुरङ्गमविनिर्घोषनिनादितवनान्तरम् ॥ ८६ ॥
विनिष्पतद्भिः शरभैः सिंहैश्च सहसा द्रुतैः।
शोच्यामपि दशां प्राप्तो रराजेव स पर्वतः ॥ ८७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रौंच पर्वत शालवृक्षके तनोंसे भरा हुआ था। वहाँके वानर और हाथी संत्रस्त हो उठे थे, पक्षी भयसे व्याकुल होकर उड़ चले थे, सर्प धराशायी हो गये थे, गोलांगूल जातिके वानरों और रीछोंके समुदाय भाग रहे थे तथा उनके चीत्कारसे वह पर्वत गूँज उठा था, हरिणोंके आर्तनादसे उस पर्वतका वनप्रान्त प्रतिध्वनित हो रहा था, गुफासे निकलकर सहसा भागनेवाले सिंहों और शरभोंके कारण वह पर्वत बड़ी शोचनीय दशामें पड़ गया था तो भी वह सुशोभित-सा ही हो रहा था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विद्याधराः समुत्पेतुस्तस्य शृङ्गनिवासिनः ।
किन्नराश्च समुद्विग्नाः शक्तिपातरवोद्धताः ॥ ८८ ॥
मूलम्
विद्याधराः समुत्पेतुस्तस्य शृङ्गनिवासिनः ।
किन्नराश्च समुद्विग्नाः शक्तिपातरवोद्धताः ॥ ८८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस पर्वतके शिखरपर निवास करनेवाले विद्याधर और किन्नर शक्तिके आघातजनित शब्दसे उद्विग्न होकर आकाशमें उड़ गये॥८८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दैत्या विनिष्पेतुः शतशोऽथ सहस्रशः।
प्रदीप्तात् पर्वतश्रेष्ठाद् विचित्राभरणस्रजः ॥ ८९ ॥
मूलम्
ततो दैत्या विनिष्पेतुः शतशोऽथ सहस्रशः।
प्रदीप्तात् पर्वतश्रेष्ठाद् विचित्राभरणस्रजः ॥ ८९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् उस जलते हुए श्रेष्ठ पर्वतसे विचित्र आभूषण और माला धारण करनेवाले सैकड़ों और हजारों दैत्य निकल पड़े॥८९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् निजघ्नुरतिक्रम्य कुमारानुचरा मृधे।
स चैव भगवान् क्रुद्धो दैत्येन्द्रस्य सुतं तदा ॥ ९० ॥
सहानुजं जघानाशु वृत्रं देवपतिर्यथा।
मूलम्
तान् निजघ्नुरतिक्रम्य कुमारानुचरा मृधे।
स चैव भगवान् क्रुद्धो दैत्येन्द्रस्य सुतं तदा ॥ ९० ॥
सहानुजं जघानाशु वृत्रं देवपतिर्यथा।
अनुवाद (हिन्दी)
कुमारके पार्षदोंने युद्धमें आक्रमण करके उन सब दैत्योंको मार गिराया। साथ ही भगवान् कार्तिकेयने कुपित होकर वृत्रासुरको मारनेवाले देवराज इन्द्रके समान दैत्यराजके उस पुत्रको उसके छोटे भाईसहित शीघ्र ही मार डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बिभेद क्रौञ्चं शक्त्या च पावकिः परवीरहा ॥ ९१ ॥
बहुधा चैकधा चैव कृत्वाऽऽत्मानं महाबलः।
मूलम्
बिभेद क्रौञ्चं शक्त्या च पावकिः परवीरहा ॥ ९१ ॥
बहुधा चैकधा चैव कृत्वाऽऽत्मानं महाबलः।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले महाबली अग्निपुत्र कार्तिकेयने अपने-आपको एक और अनेक रूपोंमें प्रकट करके शक्तिद्वारा क्रौंच पर्वतको विदीर्ण कर डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्तिः क्षिप्ता रणे तस्य पाणिमेति पुनः पुनः ॥ ९२ ॥
एवंप्रभावो भगवांस्ततो भूयश्च पावकिः।
शौर्यादिगुणयोगेन तेजसा यशसा श्रिया ॥ ९३ ॥
क्रौञ्चस्तेन विनिर्भिन्नो दैत्याश्च शतशो हताः।
मूलम्
शक्तिः क्षिप्ता रणे तस्य पाणिमेति पुनः पुनः ॥ ९२ ॥
एवंप्रभावो भगवांस्ततो भूयश्च पावकिः।
शौर्यादिगुणयोगेन तेजसा यशसा श्रिया ॥ ९३ ॥
क्रौञ्चस्तेन विनिर्भिन्नो दैत्याश्च शतशो हताः।
अनुवाद (हिन्दी)
रणभूमिमें बार-बार चलायी हुई उनकी शक्ति शत्रुका संहार करके पुनः उनके हाथमें लौट आती थी। अग्निपुत्र कार्तिकेयका ऐसा ही प्रभाव है, बल्कि इससे भी बढ़कर है। वे शौर्यकी अपेक्षा उत्तरोत्तर दुगुने तेज, यश और श्रीसे सम्पन्न हैं। उन्होंने क्रौंच पर्वतको विदीर्ण करके सैकड़ों दैत्योंको मार गिराया॥९२-९३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स भगवान् देवो निहत्य विबुधद्विषः ॥ ९४ ॥
सभाज्यमानो विबुधैः परं हर्षमवाप ह।
मूलम्
ततः स भगवान् देवो निहत्य विबुधद्विषः ॥ ९४ ॥
सभाज्यमानो विबुधैः परं हर्षमवाप ह।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर भगवान् स्कन्ददेव देवशत्रुओंका संहार करके देवताओंसे सेवित हो अत्यन्त आनन्दित हुए॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुन्दुभयो राजन् नेदुः शङ्खाश्च भारत ॥ ९५ ॥
मुमुचुर्देवयोषाश्च पुष्पवर्षमनुत्तमम् ।
योगिनामीश्वरं देवं शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ९६ ॥
मूलम्
ततो दुन्दुभयो राजन् नेदुः शङ्खाश्च भारत ॥ ९५ ॥
मुमुचुर्देवयोषाश्च पुष्पवर्षमनुत्तमम् ।
योगिनामीश्वरं देवं शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ९६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतवंशी नरेश! तत्पश्चात् दुन्दुभियाँ बज उठीं, शंखोंकी ध्वनि होने लगी, सैकड़ों और हजारों देवांगनाएँ योगीश्वर स्कन्ददेवपर उत्तम फूलोंकी वर्षा करने लगीं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दिव्यगन्धमुपादाय ववौ पुण्यश्च मारुतः।
गन्धर्वास्तुष्टुवुश्चैनं यज्वानश्च महर्षयः ॥ ९७ ॥
मूलम्
दिव्यगन्धमुपादाय ववौ पुण्यश्च मारुतः।
गन्धर्वास्तुष्टुवुश्चैनं यज्वानश्च महर्षयः ॥ ९७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दिव्य फूलोंकी सुगन्ध लेकर पवित्र वायु चलने लगी। गन्धर्व और यज्ञपरायण महर्षि उनकी स्तुति करने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिदेनं व्यवस्यन्ति पितामहसुतं प्रभुम्।
सनत्कुमारं सर्वेषां ब्रह्मयोनिं तमग्रजम् ॥ ९८ ॥
मूलम्
केचिदेनं व्यवस्यन्ति पितामहसुतं प्रभुम्।
सनत्कुमारं सर्वेषां ब्रह्मयोनिं तमग्रजम् ॥ ९८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोई उनके विषयमें यह निश्चय करने लगे कि ‘ये ब्रह्माजीके पुत्र, सबके अग्रज एवं ब्रह्मयोनि सनत्कुमार हैं’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिन्महेश्वरसुतं केचित् पुत्रं विभावसोः।
उमायाः कृत्तिकानां च गङ्गायाश्च वदन्त्युत ॥ ९९ ॥
मूलम्
केचिन्महेश्वरसुतं केचित् पुत्रं विभावसोः।
उमायाः कृत्तिकानां च गङ्गायाश्च वदन्त्युत ॥ ९९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोई उन्हें महादेवजीका, कोई अग्निका, कोई पार्वतीका, कोई कृत्तिकाओंका और कोई गंगाजीका पुत्र बताने लगे॥९९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकधा च द्विधा चैव चतुर्धा च महाबलम्।
योगिनामीश्वरं देवं शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १०० ॥
मूलम्
एकधा च द्विधा चैव चतुर्धा च महाबलम्।
योगिनामीश्वरं देवं शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १०० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन महाबली योगेश्वर स्कन्ददेवको लोग एक, दो, चार, सौ तथा सहस्रों रूपोंमें देखते और जानते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतत् ते कथितं राजन् कार्तिकेयाभिषेचनम्।
शृणु चैव सरस्वत्यास्तीर्थवर्यस्य पुण्यताम् ॥ १०१ ॥
मूलम्
एतत् ते कथितं राजन् कार्तिकेयाभिषेचनम्।
शृणु चैव सरस्वत्यास्तीर्थवर्यस्य पुण्यताम् ॥ १०१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! यह मैंने तुम्हें कार्तिकेयके अभिषेकका प्रसंग सुनाया है। अब तुम सरस्वतीके उस श्रेष्ठ तीर्थकी पावनताका वर्णन सुनो॥१०१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बभूव तीर्थप्रवरं हतेषु सुरशत्रुषु।
कुमारेण महाराज त्रिविष्टपमिवापरम् ॥ १०२ ॥
मूलम्
बभूव तीर्थप्रवरं हतेषु सुरशत्रुषु।
कुमारेण महाराज त्रिविष्टपमिवापरम् ॥ १०२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! कुमार कार्तिकेयके द्वारा देवशत्रुओंके मारे जानेपर वह श्रेष्ठ तीर्थ दूसरे स्वर्गके समान सुखदायक हो गया॥१०२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ऐश्वर्याणि च तत्रस्थो ददावीशः पृथक् पृथक्।
ददौ नैर्ऋतमुख्येभ्यस्त्रैलोक्यं पावकात्मजः ॥ १०३ ॥
मूलम्
ऐश्वर्याणि च तत्रस्थो ददावीशः पृथक् पृथक्।
ददौ नैर्ऋतमुख्येभ्यस्त्रैलोक्यं पावकात्मजः ॥ १०३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहीं रहकर स्वामी स्कन्दने पृथक्-पृथक् ऐश्वर्य प्रदान किये। अग्निकुमारने अपनी सेनाके मुख्य-मुख्य अधिकारियोंको तीनों लोक सौंप दिये॥१०३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं स भगवांस्तस्मिंस्तीर्थे दैत्यकुलान्तकः।
अभिषिक्तो महाराज देवसेनापतिः सुरैः ॥ १०४ ॥
मूलम्
एवं स भगवांस्तस्मिंस्तीर्थे दैत्यकुलान्तकः।
अभिषिक्तो महाराज देवसेनापतिः सुरैः ॥ १०४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इस प्रकार दैत्यकुलविनाशक देवसेनापति भगवान् स्कन्दका उस तीर्थमें देवताओंद्वारा अभिषेक किया गया॥१०४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तैजसं नाम तत् तीर्थं यत्र पूर्वमपां पतिः।
अभिषिक्तः सुरगणैर्वरुणो भरतर्षभ ॥ १०५ ॥
मूलम्
तैजसं नाम तत् तीर्थं यत्र पूर्वमपां पतिः।
अभिषिक्तः सुरगणैर्वरुणो भरतर्षभ ॥ १०५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! वह तैजस नामका तीर्थ है, जहाँ पहले जलके स्वामी वरुणदेवका देवताओंद्वारा अभिषेक किया गया था॥१०५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस्मिंस्तीर्थवरे स्नात्वा स्कन्दं चाभ्यर्च्य लाङ्गली।
ब्राह्मणेभ्यो ददौ रुक्मं वासांस्याभरणानि च ॥ १०६ ॥
मूलम्
अस्मिंस्तीर्थवरे स्नात्वा स्कन्दं चाभ्यर्च्य लाङ्गली।
ब्राह्मणेभ्यो ददौ रुक्मं वासांस्याभरणानि च ॥ १०६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस श्रेष्ठ तीर्थमें हलधारी बलरामने स्नान करके स्कन्ददेवका पूजन किया और ब्राह्मणोंको सुवर्ण, वस्त्र एवं आभूषण दिये॥१०६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उषित्वा रजनीं तत्र माधवः परवीरहा।
पूज्य तीर्थवरं तच्च स्पृष्ट्वा तोयं च लाङ्गली ॥ १०७ ॥
हृष्टः प्रीतमनाश्चैव ह्यभवन्माधवोत्तमः ।
मूलम्
उषित्वा रजनीं तत्र माधवः परवीरहा।
पूज्य तीर्थवरं तच्च स्पृष्ट्वा तोयं च लाङ्गली ॥ १०७ ॥
हृष्टः प्रीतमनाश्चैव ह्यभवन्माधवोत्तमः ।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले मधुवंशी हलधर वहाँ रातभर रहे और उस श्रेष्ठ तीर्थका पूजन एवं उसके जलमें स्नान करके हर्षसे खिल उठे। उन यदुश्रेष्ठ बलरामका मन वहाँ प्रसन्न हो गया था॥१०७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतत् ते सर्वमाख्यातं यन्मां त्वं परिमृच्छसि।
यथाभिषिक्तो भगवान् स्कन्दो देवैः समागतैः ॥ १०८ ॥
(सेनानीश्च कृतो राजन् बाल एव महाबलः।)
मूलम्
एतत् ते सर्वमाख्यातं यन्मां त्वं परिमृच्छसि।
यथाभिषिक्तो भगवान् स्कन्दो देवैः समागतैः ॥ १०८ ॥
(सेनानीश्च कृतो राजन् बाल एव महाबलः।)
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तुम मुझसे जो कुछ पूछ रहे थे, वह सब प्रसंग मैंने तुम्हें कह सुनाया। समागत देवताओंद्वारा किस प्रकार भगवान् स्कन्दका अभिषेक हुआ और किस प्रकार बाल्यावस्थामें ही वे महाबली कुमार सेनापति बना दिये गये, यह सब कुछ बता दिया गया॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि गदापर्वणि बलदेवतीर्थयात्रायां सारस्वतोपाख्याने तारकवधे षट्चत्वारिंशोऽध्यायः॥४६॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वके अन्तर्गत गदापर्वमें बलदेवजीकी तीर्थयात्रा एवं सारस्वतोपाख्यानके प्रसंगमें तारकासुरका वधविषयक छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४६॥
Misc Detail
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल १०८ श्लोक हैं।)