भागसूचना
अष्टाविंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
सहदेवके द्वारा उलूक और शकुनिका वध एवं बची हुई सेनासहित दुर्योधनका पलायन
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् प्रवृत्ते संग्रामे गजवाजिनरक्षये।
शकुनिः सौबलो राजन् सहदेवं समभ्ययात् ॥ १ ॥
मूलम्
तस्मिन् प्रवृत्ते संग्रामे गजवाजिनरक्षये।
शकुनिः सौबलो राजन् सहदेवं समभ्ययात् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! हाथी-घोड़ों और मनुष्यों-का संहार करनेवाले उस युद्धका आरम्भ होनेपर सुबलपुत्र शकुनिने सहदेवपर धावा किया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽस्यापततस्तूर्णं सहदेवः प्रतापवान् ।
शरौघान् प्रेषयामास पतङ्गानिव शीघ्रगान् ॥ २ ॥
मूलम्
ततोऽस्यापततस्तूर्णं सहदेवः प्रतापवान् ।
शरौघान् प्रेषयामास पतङ्गानिव शीघ्रगान् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब प्रतापी सहदेवने भी अपने ऊपर आक्रमण करनेवाले शकुनिपर तुरंत ही बहुत-से शीघ्रगामी बाणसमूहोंकी वर्षा आरम्भ कर दी, जो आकाशमें टिड्डीदलोंके समान छा रहे थे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उलूकश्च रणे भीमं विव्याध दशभिः शरैः।
शकुनिश्च महाराज भीमं विद्ध्वा त्रिभिः शरैः ॥ ३ ॥
सायकानां नवत्या वै सहदेवमवाकिरत्।
मूलम्
उलूकश्च रणे भीमं विव्याध दशभिः शरैः।
शकुनिश्च महाराज भीमं विद्ध्वा त्रिभिः शरैः ॥ ३ ॥
सायकानां नवत्या वै सहदेवमवाकिरत्।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! शकुनिके साथ उलूक भी था, उसने भीमसेनको दस बाणोंसे बींध डाला। फिर शकुनिने भी तीन बाणोंसे भीमको घायल करके नब्बे बाणोंसे सहदेवको ढक दिया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते शूराः समरे राजन् समासाद्य परस्परम् ॥ ४ ॥
विव्यधुर्निशितैर्बाणैः कङ्कबर्हिणवाजितैः ।
स्वर्णपुङ्खैः शिलाधौतैराकर्णप्रहितैः शरैः ॥ ५ ॥
मूलम्
ते शूराः समरे राजन् समासाद्य परस्परम् ॥ ४ ॥
विव्यधुर्निशितैर्बाणैः कङ्कबर्हिणवाजितैः ।
स्वर्णपुङ्खैः शिलाधौतैराकर्णप्रहितैः शरैः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वे शूरवीर समरांगणमें एक-दूसरेसे टक्कर लेकर कंक और मोरके-से पंखवाले तीखे बाणोंद्वारा परस्पर आघात-प्रत्याघात करने लगे। उनके वे बाण सुनहरी पाँखोंसे सुशोभित, शिलापर साफ किये हुए और कानोंतक खींचकर छोड़े गये थे॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां चापभुजोत्सृष्टा शरवृष्टिर्विशाम्पते ।
आच्छादयद् दिशः सर्वा धारा इव पयोमुचः ॥ ६ ॥
मूलम्
तेषां चापभुजोत्सृष्टा शरवृष्टिर्विशाम्पते ।
आच्छादयद् दिशः सर्वा धारा इव पयोमुचः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उन वीरोंके धनुष और बाहुबलसे छोड़े गये बाणोंकी उस वर्षाने सम्पूर्ण दिशाओंको उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे मेघकी जलधारा सारी दिशाओंको ढक देती है॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्रुद्धो रणे भीमः सहदेवश्च भारत।
चेरतुः कदनं संख्ये कुर्वन्तौ सुमहाबलौ ॥ ७ ॥
मूलम्
ततः क्रुद्धो रणे भीमः सहदेवश्च भारत।
चेरतुः कदनं संख्ये कुर्वन्तौ सुमहाबलौ ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तदनन्तर क्रोधमें भरे हुए भीमसेन और सहदेव दोनों महाबली वीर युद्धस्थलमें भीषण संहार मचाते हुए विचरने लगे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ताभ्यां शरशतैश्छन्नं तद् बलं तव भारत।
सान्धकारमिवाकाशमभवत् तत्र तत्र ह ॥ ८ ॥
मूलम्
ताभ्यां शरशतैश्छन्नं तद् बलं तव भारत।
सान्धकारमिवाकाशमभवत् तत्र तत्र ह ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! उन दोनोंके सैकड़ों बाणोंसे ढकी हुई आपकी सेना जहाँ-तहाँ अन्धकारपूर्ण आकाशके समान प्रतीत होती थी॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अश्वैर्विपरिधावद्भिः शरच्छन्नैर्विशाम्पते ।
तत्र तत्र वृतो मार्गो विकर्षद्भिर्हतान् बहून् ॥ ९ ॥
मूलम्
अश्वैर्विपरिधावद्भिः शरच्छन्नैर्विशाम्पते ।
तत्र तत्र वृतो मार्गो विकर्षद्भिर्हतान् बहून् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! बाणोंसे ढके हुए भागते घोड़ोंने, जो बहुत-से मरे हुए वीरोंको अपने साथ इधर-उधर खींचे लिये जाते थे, यत्र-तत्र जानेका मार्ग अवरुद्ध कर दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निहतानां हयानां च सहैव हयसादिभिः।
वर्मभिर्विनिकृत्तैश्च प्रासैश्छिन्नैश्च मारिष ॥ १० ॥
ऋष्टिभिः शक्तिभिश्चैव सासिप्रासपरश्वधैः ।
संछन्ना पृथिवी जज्ञे कुसुमैः शबला इव ॥ ११ ॥
मूलम्
निहतानां हयानां च सहैव हयसादिभिः।
वर्मभिर्विनिकृत्तैश्च प्रासैश्छिन्नैश्च मारिष ॥ १० ॥
ऋष्टिभिः शक्तिभिश्चैव सासिप्रासपरश्वधैः ।
संछन्ना पृथिवी जज्ञे कुसुमैः शबला इव ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मान्यवर नरेश! घुड़सवारोंसहित मारे गये घोड़ोंके शरीरों, कटे हुए कवचों, टूक-टूक हुए प्रासों, ऋष्टियों, शक्तियों, खड्गों, भालों और फरसोंसे ढकी हुई पृथ्वी बहुरंगी फलोंसे आच्छादित हो चितकबरी हुई-सी जान पड़ती थी॥१०-११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
योधास्तत्र महाराज समासाद्य परस्परम्।
व्यचरन्त रणे क्रुद्धा विनिघ्नन्तः परस्परम् ॥ १२ ॥
मूलम्
योधास्तत्र महाराज समासाद्य परस्परम्।
व्यचरन्त रणे क्रुद्धा विनिघ्नन्तः परस्परम् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! वहाँ रणभूमिमें कुपित हुए योद्धा एक-दूसरेसे भिड़कर परस्पर चोट करते हुए घूम रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उद्वृत्तनयनै रोषात् संदष्टौष्ठपुटैर्मुखैः ।
सकुण्डलैर्मही च्छन्ना पद्मकिञ्जल्कसंनिभैः ॥ १३ ॥
मूलम्
उद्वृत्तनयनै रोषात् संदष्टौष्ठपुटैर्मुखैः ।
सकुण्डलैर्मही च्छन्ना पद्मकिञ्जल्कसंनिभैः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कमलकेसरकी-सी कान्तिवाले कुण्डलमण्डित कटे हुए मस्तकोंसे यह पृथ्वी ढक गयी थी। उनकी आँखें घूर रही थीं और उन्होंने रोषके कारण अपने ओठोंको दाँतोंसे दबा रखा था॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भुजैश्छिन्नैर्महाराज नागराजकरोपमैः ।
साङ्गदैः सतनुत्रैश्च सासिप्रासपरश्वधैः ॥ १४ ॥
कबन्धैरुत्थितैश्छिन्नैर्नृत्यद्भिश्चापरैर्युधि ।
क्रव्यादगणसंछन्ना घोराभूत् पृथिवी विभो ॥ १५ ॥
मूलम्
भुजैश्छिन्नैर्महाराज नागराजकरोपमैः ।
साङ्गदैः सतनुत्रैश्च सासिप्रासपरश्वधैः ॥ १४ ॥
कबन्धैरुत्थितैश्छिन्नैर्नृत्यद्भिश्चापरैर्युधि ।
क्रव्यादगणसंछन्ना घोराभूत् पृथिवी विभो ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! अंगद, कवच, खड्ग, प्रास और फरसोंसहित कटी हुई हाथीकी सूड़के समान भुजाओं, छिन्न-भिन्न एवं खड़े होकर नाचते हुए कबन्धों तथा अन्य लोगोंसे भरी और मांसभक्षी जीव-जन्तुओंसे आच्छादित हुई यह पृथ्वी बड़ी भयंकर प्रतीत होती थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अल्पावशिष्टे सैन्ये तु कौरवेयान् महाहवे।
प्रहृष्टाः पाण्डवा भूत्वा निन्यिरे यमसादनम् ॥ १६ ॥
मूलम्
अल्पावशिष्टे सैन्ये तु कौरवेयान् महाहवे।
प्रहृष्टाः पाण्डवा भूत्वा निन्यिरे यमसादनम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार उस महासमरमें जब कौरवोंके पास बहुत थोड़ी सेना शेष रह गयी, तब हर्ष और उत्साहमें भरकर पाण्डव वीर उन सबको यमलोक पहुँचाने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्मिन्नन्तरे शूरः सौवलेयः प्रतापवान्।
प्रासेन सहदेवस्य शिरसि प्राहरद् भृशम् ॥ १७ ॥
मूलम्
एतस्मिन्नन्तरे शूरः सौवलेयः प्रतापवान्।
प्रासेन सहदेवस्य शिरसि प्राहरद् भृशम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय प्रतापी वीर सुबलपुत्र शकुनिने अपने प्राससे सहदेवके मस्तकपर गहरी चोट पहुँचायी॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विह्वलो महाराज रथोपस्थ उपाविशत्।
सहदेवं तथा दृष्ट्वा भीमसेनः प्रतापवान् ॥ १८ ॥
सर्वसैन्यानि संक्रुद्धो वारयामास भारत।
निर्बिभेद च नाराचैः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १९ ॥
मूलम्
स विह्वलो महाराज रथोपस्थ उपाविशत्।
सहदेवं तथा दृष्ट्वा भीमसेनः प्रतापवान् ॥ १८ ॥
सर्वसैन्यानि संक्रुद्धो वारयामास भारत।
निर्बिभेद च नाराचैः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस चोटसे व्याकुल होकर सहदेव रथकी बैठकमें धम्मसे बैठ गये। उनकी वैसी अवस्था देख प्रतापी भीमसेन अत्यन्त कुपित हो उठे। भारत! उन्होंने आपकी सारी सेनाओंको आगे बढ़नेसे रोक दिया तथा सैकड़ों और हजारों नाराचोंकी वर्षा करके उन सबको विदीर्ण कर डाला॥१८-१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विनिर्भिद्याकरोच्चैव सिंहनादमरिंदमः ।
तेन शब्देन वित्रस्ताः सर्वे सहयवारणाः ॥ २० ॥
प्राद्रवन् सहसा भीताः शकुनेश्च पदानुगाः।
मूलम्
विनिर्भिद्याकरोच्चैव सिंहनादमरिंदमः ।
तेन शब्देन वित्रस्ताः सर्वे सहयवारणाः ॥ २० ॥
प्राद्रवन् सहसा भीताः शकुनेश्च पदानुगाः।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुदमन भीमसेनने शत्रुसेनाको विदीर्ण करके बड़े जोरसे सिंहनाद किया। उनकी उस गर्जनासे भयभीत हो शकुनिके पीछे चलनेवाले सारे सैनिक घोड़े और हाथियोंसहित सहसा भाग खड़े हुए॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभग्नानथ तान् दृष्ट्वा राजा दुर्योधनोऽब्रवीत् ॥ २१ ॥
निवर्तध्यमधर्मज्ञा युध्यध्वं किं सृतेन वः।
इह कीर्तिं समाधाय प्रेत्य लोकान् समश्नुते ॥ २२ ॥
प्राणान् जहाति यो धीरो युद्धे पृष्ठमदर्शयन्।
मूलम्
प्रभग्नानथ तान् दृष्ट्वा राजा दुर्योधनोऽब्रवीत् ॥ २१ ॥
निवर्तध्यमधर्मज्ञा युध्यध्वं किं सृतेन वः।
इह कीर्तिं समाधाय प्रेत्य लोकान् समश्नुते ॥ २२ ॥
प्राणान् जहाति यो धीरो युद्धे पृष्ठमदर्शयन्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन सबको भागते देख राजा दुर्योधनने इस प्रकार कहा—‘अरे पापियो! लौट आओ और युद्ध करो। भागनेसे तुम्हें क्या लाभ होगा? जो धीर वीर रणभूमिमें पीठ न दिखाकर प्राणोंका परित्याग करता है, वह इस लोकमें अपनी कीर्ति स्थापित करके मृत्युके पश्चात् उत्तम लोकोंमें सुख भोगता है’॥२१-२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तास्तु ते राज्ञा सौबलस्य पदानुगाः ॥ २३ ॥
पाण्डवानभ्यवर्तन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।
मूलम्
एवमुक्तास्तु ते राज्ञा सौबलस्य पदानुगाः ॥ २३ ॥
पाण्डवानभ्यवर्तन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
राजा दुर्योधनके ऐसा कहनेपर सुबलपुत्र शकुनिके पीछे चलनेवाले सैनिक ‘अब हमें मृत्यु ही युद्धसे लौटा सकती है’ ऐसा संकल्प लेकर पुनः पाण्डवोंपर टूट पड़े॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रवद्भिस्तत्र राजेन्द्र कृतः शब्दोऽतिदारुणः ॥ २४ ॥
क्षुब्धसागरसंकाशाः क्षुभिताः सर्वतोऽभवन् ।
मूलम्
द्रवद्भिस्तत्र राजेन्द्र कृतः शब्दोऽतिदारुणः ॥ २४ ॥
क्षुब्धसागरसंकाशाः क्षुभिताः सर्वतोऽभवन् ।
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! वहाँ धावा करते समय उन सैनिकोंने बड़ा भयंकर कोलाहल मचाया। वे विक्षुब्ध समुद्रके समान क्षोभमें भरकर सब ओर छा गये॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तांस्तथा पुरतो दृष्ट्वा सौबलस्य पदानुगान् ॥ २५ ॥
प्रत्युद्ययुर्महाराज पाण्डवा विजयोद्यताः ।
मूलम्
तांस्तथा पुरतो दृष्ट्वा सौबलस्य पदानुगान् ॥ २५ ॥
प्रत्युद्ययुर्महाराज पाण्डवा विजयोद्यताः ।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! शकुनिके सेवकोंको इस प्रकार सामने आया देख विजयके लिये उद्यत हुए पाण्डव वीर आगे बढ़े॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रत्याश्वस्य च दुर्धर्षः सहदेवो विशाम्पते ॥ २६ ॥
शकुनिं दशभिर्विद्ध्वा हयांश्चास्य त्रिभिः शरैः।
धनुश्चिच्छेद च शरैः सौबलस्य हसन्निव ॥ २७ ॥
मूलम्
प्रत्याश्वस्य च दुर्धर्षः सहदेवो विशाम्पते ॥ २६ ॥
शकुनिं दशभिर्विद्ध्वा हयांश्चास्य त्रिभिः शरैः।
धनुश्चिच्छेद च शरैः सौबलस्य हसन्निव ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! इतनेहीमें स्वस्थ होकर दुर्धर्ष वीर सहदेवने हँसते हुए-से दस बाणोंसे शकुनिको बींध डाला और तीन बाणोंसे उसके घोड़ोंको मारकर हँसते हुए-से अनेक बाणोंद्वारा सुबलपुत्रके धनुषको भी टूक-टूक कर डाला॥२६-२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्यद् धनुरादाय शकुनिर्युद्धदुर्मदः ।
विव्याध नकुलं षष्ट्या भीमसेनं च सप्तभिः ॥ २८ ॥
मूलम्
अथान्यद् धनुरादाय शकुनिर्युद्धदुर्मदः ।
विव्याध नकुलं षष्ट्या भीमसेनं च सप्तभिः ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर दूसरा धनुष हाथमें लेकर रणदुर्मद शकुनिने नकुलको साठ और भीमसेनको सात बाणोंसे घायल कर दिया॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उलूकोऽपि महाराज भीमं विव्याध सप्तभिः।
सहदेवं च सप्तत्या परीप्सन् पितरं रणे ॥ २९ ॥
मूलम्
उलूकोऽपि महाराज भीमं विव्याध सप्तभिः।
सहदेवं च सप्तत्या परीप्सन् पितरं रणे ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! रणभूमिमें पिताकी रक्षा करते हुए उलूकने भीमसेनको सात और सहदेवको सत्तर बाणोंसे क्षत-विक्षत कर दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं भीमसेनः समरे विव्याध नवभिः शरैः।
शकुनिं च चतुःषष्ट्या पार्श्वस्थांश्च त्रिभिस्त्रिभिः ॥ ३० ॥
मूलम्
तं भीमसेनः समरे विव्याध नवभिः शरैः।
शकुनिं च चतुःषष्ट्या पार्श्वस्थांश्च त्रिभिस्त्रिभिः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब भीमसेनने समरांगणमें नौ बाणोंसे उलूकको, चौसठ बाणोंसे शकुनिको और तीन-तीन बाणोंसे उसके पार्श्वरक्षकोंको भी घायल कर दिया॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते हन्यमाना भीमेन नाराचैस्तैलपायितैः।
सहदेवं रणे क्रुद्धाश्छादयन् शरवृष्टिभिः ॥ ३१ ॥
पर्वतं वारिधाराभिः सविद्युत इवाम्बुदाः।
मूलम्
ते हन्यमाना भीमेन नाराचैस्तैलपायितैः।
सहदेवं रणे क्रुद्धाश्छादयन् शरवृष्टिभिः ॥ ३१ ॥
पर्वतं वारिधाराभिः सविद्युत इवाम्बुदाः।
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनके नाराचोंको तेल पिलाया गया था। उनके द्वारा भीमसेनके हाथसे मार खाये हुए शत्रु-सैनिकोंने रणभूमिमें कुपित होकर सहदेवको अपने बाणोंकी वर्षासे ढक दिया, मानो बिजलीसहित मेघोंने जलकी धाराओंसे पर्वतको आच्छादित कर दिया हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽस्यापततः शूरः सहदेवः प्रतापवान् ॥ ३२ ॥
उलूकस्य महाराज भल्लेनापाहरच्छिरः ।
मूलम्
ततोऽस्यापततः शूरः सहदेवः प्रतापवान् ॥ ३२ ॥
उलूकस्य महाराज भल्लेनापाहरच्छिरः ।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तब प्रतापी शूरवीर सहदेवने एक भल्ल मारकर अपने ऊपर आक्रमण करनेवाले उलूकका मस्तक काट डाला॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स जगाम रथाद् भूमिं सहदेवेन पातितः ॥ ३३ ॥
रुधिराप्लुतसर्वाङ्गो नन्दयन् पाण्डवान् युधि।
मूलम्
स जगाम रथाद् भूमिं सहदेवेन पातितः ॥ ३३ ॥
रुधिराप्लुतसर्वाङ्गो नन्दयन् पाण्डवान् युधि।
अनुवाद (हिन्दी)
सहदेवके हाथसे मारा गया उलूक युद्धमें पाण्डवोंको आनन्दित करता हुआ रथसे पृथ्वीपर गिर पड़ा। उस समय उसके सारे अंग खूनसे लथपथ हो गये थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रं तु निहतं दृष्ट्वा शकुनिस्तत्र भारत ॥ ३४ ॥
साश्रुकण्ठो विनिःश्वस्य क्षत्तुर्वाक्यमनुस्मरन् ।
चिन्तयित्वा मुहूर्तं स बाष्पपूर्णेक्षणः श्वसन् ॥ ३५ ॥
मूलम्
पुत्रं तु निहतं दृष्ट्वा शकुनिस्तत्र भारत ॥ ३४ ॥
साश्रुकण्ठो विनिःश्वस्य क्षत्तुर्वाक्यमनुस्मरन् ।
चिन्तयित्वा मुहूर्तं स बाष्पपूर्णेक्षणः श्वसन् ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! अपने पुत्रको मारा गया देख वहाँ शकुनिका गला भर आया। वह लंबी साँस खींचकर विदुरजीकी बातोंको याद करने लगा। अपनी आँखोंमें आँसू भरकर उच्छ्वास लेता हुआ दो घड़ीतक चिन्तामें डूबा रहा॥३४-३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सहदेवं समासाद्य त्रिभिर्विव्याध सायकैः।
तानपास्य शरान् मुक्तान् शरसंघैः प्रतापवान् ॥ ३६ ॥
सहदेवो महाराज धनुश्चिच्छेद संयुगे।
मूलम्
सहदेवं समासाद्य त्रिभिर्विव्याध सायकैः।
तानपास्य शरान् मुक्तान् शरसंघैः प्रतापवान् ॥ ३६ ॥
सहदेवो महाराज धनुश्चिच्छेद संयुगे।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इसके बाद सहदेवके पास जाकर उसने तीन बाणोंद्वारा उनपर प्रहार किया। उसके छोड़े हुए उन बाणोंका अपने शरसमूहोंसे निवारण करके प्रतापी सहदेवने युद्धस्थलमें उसका धनुष काट डाला॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छिन्ने धनुषि राजेन्द्र शकुनिः सौबलस्तदा ॥ ३७ ॥
प्रगुह्य विपुलं खड्गं सहदेवाय प्राहिणोत्।
मूलम्
छिन्ने धनुषि राजेन्द्र शकुनिः सौबलस्तदा ॥ ३७ ॥
प्रगुह्य विपुलं खड्गं सहदेवाय प्राहिणोत्।
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! धनुष कट जानेपर उस समय सुबलपुत्र शकुनिने एक विशाल खड्ग लेकर उसे सहदेवपर दे मारा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सहसा घोररूपं विशाम्पते ॥ ३८ ॥
द्विधा चिच्छेद समरे सौबलस्य हसन्निव।
मूलम्
तमापतन्तं सहसा घोररूपं विशाम्पते ॥ ३८ ॥
द्विधा चिच्छेद समरे सौबलस्य हसन्निव।
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! शकुनिके उस घोर खड्गको सहसा आते देख समरांगणमें सहदेवने हँसते हुए-से उसके दो टुकड़े कर डाले॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
असिं दृष्ट्वा तथा च्छिन्नं प्रगृह्य महतीं गदाम् ॥ ३९ ॥
प्राहिणोत् सहदेवाय सा मोघा न्यपतद् भुवि।
मूलम्
असिं दृष्ट्वा तथा च्छिन्नं प्रगृह्य महतीं गदाम् ॥ ३९ ॥
प्राहिणोत् सहदेवाय सा मोघा न्यपतद् भुवि।
अनुवाद (हिन्दी)
उस खड्गको कटा हुआ देख शकुनिने सहदेवपर एक विशाल गदा चलायी; परंतु वह विफल होकर पृथ्वीपर गिर पड़ी॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शक्तिं महाघोरां कालरात्रिमिवोद्यताम् ॥ ४० ॥
प्रेषयामास संक्रुद्धः पाण्डवं प्रति सौबलः।
मूलम्
ततः शक्तिं महाघोरां कालरात्रिमिवोद्यताम् ॥ ४० ॥
प्रेषयामास संक्रुद्धः पाण्डवं प्रति सौबलः।
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख सुबलपुत्र क्रोधसे जल उठा। अबकी बार उसने उठी हुई कालरात्रिके समान एक महाभयंकर शक्ति सहदेवको लक्ष्य करके चलायी॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तामापतन्तीं सहसा शरैः कनकभूषणैः ॥ ४१ ॥
त्रिधा चिच्छेद समरे सहदेवो हसन्निव।
मूलम्
तामापतन्तीं सहसा शरैः कनकभूषणैः ॥ ४१ ॥
त्रिधा चिच्छेद समरे सहदेवो हसन्निव।
अनुवाद (हिन्दी)
अपने ऊपर आती हुई उस शक्तिको सुवर्णभूषित बाणोंद्वारा मारकर सहदेवने समरांगणमें हँसते हुए-से सहसा उसके तीन टुकड़े कर डाले॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा पपात त्रिधा च्छिन्ना भूमौ कनकभूषणा ॥ ४२ ॥
शीर्यमाणा यथा दीप्ता गगनाद् वै शतह्रदा।
मूलम्
सा पपात त्रिधा च्छिन्ना भूमौ कनकभूषणा ॥ ४२ ॥
शीर्यमाणा यथा दीप्ता गगनाद् वै शतह्रदा।
अनुवाद (हिन्दी)
तीन टुकड़ोंमें कटी हुई वह सुवर्णभूषित शक्ति आकाशसे गिरनेवाली चमकीली बिजलीके समान पृथ्वीपर बिखर गयी॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्तिं विनिहतां दृष्ट्वा सौबलं च भयार्दितम् ॥ ४३ ॥
दुद्रुवुस्तावकाः सर्वे भये जाते ससौबलाः।
मूलम्
शक्तिं विनिहतां दृष्ट्वा सौबलं च भयार्दितम् ॥ ४३ ॥
दुद्रुवुस्तावकाः सर्वे भये जाते ससौबलाः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस शक्तिको नष्ट हुई देख और सुबलपुत्र शकुनिको भी भयसे पीड़ित जान आपके सभी सैनिक भयभीत हो शकुनिसहित वहाँसे भाग खड़े हुए॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथोत्क्रुष्टं महच्चासीत् पाण्डवैर्जितकाशिभिः ॥ ४४ ॥
धार्तराष्ट्रास्ततः सर्वे प्रायशो विमुखाभवन्।
मूलम्
अथोत्क्रुष्टं महच्चासीत् पाण्डवैर्जितकाशिभिः ॥ ४४ ॥
धार्तराष्ट्रास्ततः सर्वे प्रायशो विमुखाभवन्।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय विजयसे उल्लसित होनेवाले पाण्डवोंने बड़े जोरसे सिंहनाद किया। इससे आपके सभी सैनिक प्रायः युद्धसे विमुख हो गये॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् वै विमनसो दृष्ट्वा माद्रीपुत्रः प्रतापवान् ॥ ४५ ॥
शरैरनेकसाहस्रैर्वारयामास संयुगे ।
मूलम्
तान् वै विमनसो दृष्ट्वा माद्रीपुत्रः प्रतापवान् ॥ ४५ ॥
शरैरनेकसाहस्रैर्वारयामास संयुगे ।
अनुवाद (हिन्दी)
उन सबको युद्धसे उदासीन देख प्रतापी माद्रीकुमार सहदेवने अनेक सहस्र बाणोंकी वर्षा करके उन्हें युद्धस्थलमें ही रोक दिया॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो गान्धारकैर्गुप्तं पुष्ठैरश्वैर्जये धृतम् ॥ ४६ ॥
आससाद रणे यान्तं सहदेवोऽथ सौबलम्।
मूलम्
ततो गान्धारकैर्गुप्तं पुष्ठैरश्वैर्जये धृतम् ॥ ४६ ॥
आससाद रणे यान्तं सहदेवोऽथ सौबलम्।
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद गन्धारदेशके हृष्ट-पुष्ट घोड़ों और घुड़सवारोंसे सुरक्षित तथा विजयके लिये दृढ़संकल्प होकर रणभूमिमें जाते हुए सुबलपुत्र शकुनिपर सहदेवने आक्रमण किया॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वमंशमवशिष्टं तं संस्मृत्य शकुनिं नृप ॥ ४७ ॥
रथेन काञ्चनाङ्गेन सहदेवः समभ्ययात्।
मूलम्
स्वमंशमवशिष्टं तं संस्मृत्य शकुनिं नृप ॥ ४७ ॥
रथेन काञ्चनाङ्गेन सहदेवः समभ्ययात्।
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! शकुनिको अपना अवशिष्ट भाग मानकर सहदेवने सुवर्णमय अंगोंवाले रथके द्वारा उसका पीछा किया॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अधिज्यं बलवत् कृत्वा व्याक्षिपन् सुमहद् धनुः ॥ ४८ ॥
स सौबलमभिद्रुत्य गार्ध्रपत्रैः शिलाशितैः।
भृशमभ्यहनत् क्रुद्धस्तोत्रैरिव महाद्विपम् ॥ ४९ ॥
मूलम्
अधिज्यं बलवत् कृत्वा व्याक्षिपन् सुमहद् धनुः ॥ ४८ ॥
स सौबलमभिद्रुत्य गार्ध्रपत्रैः शिलाशितैः।
भृशमभ्यहनत् क्रुद्धस्तोत्रैरिव महाद्विपम् ॥ ४९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने एक विशाल धनुषपर बलपूर्वक प्रत्यंचा चढ़ाकर शिलापर तेज किये हुए गीधके पंखोंवाले बाणोंद्वारा शकुनिपर आक्रमण किया और जैसे किसी विशाल गजराजको अंकुशोंसे मारा जाय, उसी प्रकार कुपित हो उसको गहरी चोट पहुँचायी॥४८-४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उवाच चैनं मेधावी विगृह्य स्मारयन्निव।
क्षत्रधर्मे स्थिरो भूत्वा युध्यस्व पुरुषो भव ॥ ५० ॥
यत् तदा ह्यष्यसे मूढ ग्लहन्नक्षैः सभातले।
फलमद्य प्रपश्यस्व कर्मणस्तस्य दुर्मते ॥ ५१ ॥
मूलम्
उवाच चैनं मेधावी विगृह्य स्मारयन्निव।
क्षत्रधर्मे स्थिरो भूत्वा युध्यस्व पुरुषो भव ॥ ५० ॥
यत् तदा ह्यष्यसे मूढ ग्लहन्नक्षैः सभातले।
फलमद्य प्रपश्यस्व कर्मणस्तस्य दुर्मते ॥ ५१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बुद्धिमान् सहदेवने उसपर आक्रमण करके कुछ याद दिलाते हुए-से इस प्रकार कहा—‘ओ मूढ़! क्षत्रियधर्ममें स्थित होकर युद्ध कर और पुरुष बन। खोटी बुद्धिवाले शकुनि! तू सभामें पासे फेंककर जूआ खेलते समय जो उस दिन बहुत खुश हो रहा था, आज उस दुष्कर्मका महान् फल प्राप्त कर ले॥५०-५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निहतास्ते दुरात्मानो येऽस्मानवहसन् पुरा।
दुर्योधनः कुलाङ्गारः शिष्टस्त्वं चास्य मातुलः ॥ ५२ ॥
अद्य ते निहनिष्यामि क्षरेणोन्मथितं शिरः।
वृक्षात् फलमिवाविद्धं लगुडेन प्रमाथिना ॥ ५३ ॥
मूलम्
निहतास्ते दुरात्मानो येऽस्मानवहसन् पुरा।
दुर्योधनः कुलाङ्गारः शिष्टस्त्वं चास्य मातुलः ॥ ५२ ॥
अद्य ते निहनिष्यामि क्षरेणोन्मथितं शिरः।
वृक्षात् फलमिवाविद्धं लगुडेन प्रमाथिना ॥ ५३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिन दुरात्माओंने पूर्वकालमें हमलोगोंकी हँसी उड़ायी थी, वे सब मारे गये। अब केवल कुलांगार दुर्योधन और उसका मामा तू—ये दो ही बच गये हैं। जैसे मथ डालनेवाले डंडेसे मारकर पेड़से फल तोड़ लिया जाता है, उसी प्रकार आज मैं क्षुरके द्वारा तेरा मस्तक काटकर तुझे मौतके हवाले कर दूँगा’॥५२-५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा महाराज सहदेवो महाबलः।
संक्रुद्धो रणशार्दूलो वेगेनाभिजगाम तम् ॥ ५४ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा महाराज सहदेवो महाबलः।
संक्रुद्धो रणशार्दूलो वेगेनाभिजगाम तम् ॥ ५४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! ऐसा कहकर रणक्षेत्रमें सिंहके समान पराक्रम दिखानेवाले महाबली सहदेवने अत्यन्त कुपित हो बड़े वेगसे उसपर आक्रमण किया॥५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिगम्य सुदुर्धर्षः सहदेवो युधां पतिः।
विकृष्य बलवच्चापं क्रोधेन प्रज्वलन्निव ॥ ५५ ॥
शकुनिं दशभिर्विद्ध्वा चतुर्भिश्चास्य वाजिनः।
छत्रं ध्वजं धनुश्चास्य च्छित्त्वा सिंह इवानदत् ॥ ५६ ॥
मूलम्
अभिगम्य सुदुर्धर्षः सहदेवो युधां पतिः।
विकृष्य बलवच्चापं क्रोधेन प्रज्वलन्निव ॥ ५५ ॥
शकुनिं दशभिर्विद्ध्वा चतुर्भिश्चास्य वाजिनः।
छत्रं ध्वजं धनुश्चास्य च्छित्त्वा सिंह इवानदत् ॥ ५६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
योद्धाओंमें श्रेष्ठ सहदेव अत्यन्त दुर्जय वीर हैं। उन्होंने क्रोधसे चलते हुए-से पास जाकर अपने धनुषको बलपूर्वक खींचा और दस बाणोंसे शकुनिको घायल करके चार बाणोंसे उसके घोड़ोंको भी बींध डाला। तत्पश्चात् उसके छत्र, ध्वज और धनुषको भी काटकर सिंहके समान गर्जना की॥५५-५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छिन्नध्वजधनुश्छत्रः सहदेवेन सौबलः ।
कृतो विद्धश्च बहुभिः सर्वमर्मसु सायकैः ॥ ५७ ॥
मूलम्
छिन्नध्वजधनुश्छत्रः सहदेवेन सौबलः ।
कृतो विद्धश्च बहुभिः सर्वमर्मसु सायकैः ॥ ५७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सहदेवने शकुनिके ध्वज, छत्र और धनुषको काट देनेके पश्चात् उसके सम्पूर्ण मर्मस्थानोंमें बाणोंद्वारा गहरी चोट पहुँचायी॥५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भूयो महाराज सहदेवः प्रतापवान्।
शकुनेः प्रेषयामास शरवृष्टिं दुरासदाम् ॥ ५८ ॥
मूलम्
ततो भूयो महाराज सहदेवः प्रतापवान्।
शकुनेः प्रेषयामास शरवृष्टिं दुरासदाम् ॥ ५८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तत्पश्चात् प्रतापी सहदेवने पुनः शकुनिपर दुर्जय बाणोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तु क्रुद्धः सुबलस्य पुत्रो
माद्रीसुतं सहदेवं विमर्दे ।
प्रासेन जाम्बूनदभूषणेन
जिघांसुरेकोऽभिपपात शीघ्रम् ॥ ५९ ॥
मूलम्
ततस्तु क्रुद्धः सुबलस्य पुत्रो
माद्रीसुतं सहदेवं विमर्दे ।
प्रासेन जाम्बूनदभूषणेन
जिघांसुरेकोऽभिपपात शीघ्रम् ॥ ५९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे सुबलपुत्र शकुनिको बड़ा क्रोध हुआ। उसने उस संग्राममें माद्रीकुमार सहदेवको सुवर्णभूषित प्रासके द्वारा मार डालनेकी इच्छासे अकेले ही उनपर तीव्र गतिसे आक्रमण किया॥५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
माद्रीसुतस्तस्य समुद्यतं तं
प्रासं सुवृत्तौ च भुजौ रणाग्रे।
भल्लैस्त्रिभिर्युगपत् संचकर्त
ननाद चोच्चैस्तरसाऽऽजिमध्ये ॥ ६० ॥
मूलम्
माद्रीसुतस्तस्य समुद्यतं तं
प्रासं सुवृत्तौ च भुजौ रणाग्रे।
भल्लैस्त्रिभिर्युगपत् संचकर्त
ननाद चोच्चैस्तरसाऽऽजिमध्ये ॥ ६० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माद्रीकुमारने शकुनिके उस उठे हुए प्रासको और उसकी दोनों सुन्दर गोल-गोल भुजाओंको भी युद्धके मुहानेपर तीन भल्लोंद्वारा एक साथ ही काट डाला और युद्धस्थलमें उच्चस्वरसे वेगपूर्वक गर्जना की॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याशुकारी सुसमाहितेन
सुवर्णपुङ्खेन दृढायसेन ।
भल्लेन सर्वावरणातिगेन
शिरः शरीरात् प्रममाथ भूयः ॥ ६१ ॥
मूलम्
तस्याशुकारी सुसमाहितेन
सुवर्णपुङ्खेन दृढायसेन ।
भल्लेन सर्वावरणातिगेन
शिरः शरीरात् प्रममाथ भूयः ॥ ६१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् शीघ्रता करनेवाले सहदेवने अच्छी तरह संधान करके छोड़े गये सुवर्णमय पंखवाले लोहेके बने हुए सुदृढ़ भल्लके द्वारा, जो समस्त आवरणोंको छेद डालनेवाला था, शकुनिके मस्तकको पुनः धड़से काट गिराया॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरेण कार्तस्वरभूषितेन
दिवाकराभेण सुसंहितेन ।
ह्यतोत्तमाङ्गो युधि पाण्डवेन
पपात भूमौ सुबलस्य पुत्रः ॥ ६२ ॥
मूलम्
शरेण कार्तस्वरभूषितेन
दिवाकराभेण सुसंहितेन ।
ह्यतोत्तमाङ्गो युधि पाण्डवेन
पपात भूमौ सुबलस्य पुत्रः ॥ ६२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह सुवर्णभूषित बाण सूर्यके समान तेजस्वी तथा अच्छी तरह संधान करके चलाया गया था। उसके द्वारा पाण्डुकुमार सहदेवने युद्धस्थलमें जब सुबलपुत्र शकुनिका मस्तक काट डाला, तब वह प्राणशून्य होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा॥६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तच्छिरो वेगवता शरेण
सुवर्णपुङ्खेन शिलाशितेन ।
प्रावेरयत् कुपितः पाण्डुपुत्रो
यत्तत् कुरूणामनयस्य मूलम् ॥ ६३ ॥
मूलम्
स तच्छिरो वेगवता शरेण
सुवर्णपुङ्खेन शिलाशितेन ।
प्रावेरयत् कुपितः पाण्डुपुत्रो
यत्तत् कुरूणामनयस्य मूलम् ॥ ६३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरे हुए पाण्डुपुत्र सहदेवने शिलापर तेज किये हुए और सुवर्णमय पंखवाले वेगवान् बाणसे शकुनिके उस मस्तकको काट गिराया, जो कौरवोंके अन्यायका मूल कारण था॥६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भुजौ सुवृत्तौ प्रचकर्त वीरः
पश्चात् कबन्धं रुधिरावसिक्तम् ।
विस्पन्दमानं निपपात घोरं
रथोत्तमात् पार्थिव पार्थिवस्य ॥ ६४ ॥
मूलम्
भुजौ सुवृत्तौ प्रचकर्त वीरः
पश्चात् कबन्धं रुधिरावसिक्तम् ।
विस्पन्दमानं निपपात घोरं
रथोत्तमात् पार्थिव पार्थिवस्य ॥ ६४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वीर सहदेवने जब उसकी गोल-गोल सुन्दर दोनों भुजाएँ काट दीं, उसके पश्चात् राजा शकुनिका भयंकर धड़ लहूलुहान होकर श्रेष्ठ रथसे नीचे गिर पड़ा और छटपटाने लगा॥६४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ह्यतोत्तमाङ्गं शकुनिं समीक्ष्य
भूमौ शयानं रुधिरार्द्रगात्रम् ।
योधास्त्वदीया भयनष्टसत्त्वा
दिशः प्रजग्मुः प्रगृहीतशस्त्राः ॥ ६५ ॥
मूलम्
ह्यतोत्तमाङ्गं शकुनिं समीक्ष्य
भूमौ शयानं रुधिरार्द्रगात्रम् ।
योधास्त्वदीया भयनष्टसत्त्वा
दिशः प्रजग्मुः प्रगृहीतशस्त्राः ॥ ६५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शकुनिको मस्तकसे रहित एवं खूनसे लथपथ होकर पृथ्वीपर पड़ा देख आपके योद्धा भयके कारण अपना धैर्य खो बैठे और हथियार लिये हुए सम्पूर्ण दिशाओंमें भाग गये॥६५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रविद्रुताः शुष्कमुखा विसंज्ञा
गाण्डीवघोषेण समाहताश्च ।
भयार्दिता भग्नरथाश्वनागाः
पदातयश्चैव सधार्तराष्ट्राः ॥ ६६ ॥
मूलम्
प्रविद्रुताः शुष्कमुखा विसंज्ञा
गाण्डीवघोषेण समाहताश्च ।
भयार्दिता भग्नरथाश्वनागाः
पदातयश्चैव सधार्तराष्ट्राः ॥ ६६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके मुख सूख गये थे। उनकी चेतना लुप्त-सी हो रही थी। वे गाण्डीवकी टंकारसे मृतप्राय हो रहे थे; उनके रथ, घोड़े और हाथी नष्ट हो गये थे; अतः वे भयसे पीड़ित हो आपके पुत्र दुर्योधनसहित पैदल ही भाग चले॥६६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो रथाच्छकुनिं पातयित्वा
मुदान्विता भारत पाण्डवेयाः ।
शङ्खान् प्रदध्मुः समरेऽतिहृष्टाः
सकेशवाः सैनिकान् हर्षयन्तः ॥ ६७ ॥
मूलम्
ततो रथाच्छकुनिं पातयित्वा
मुदान्विता भारत पाण्डवेयाः ।
शङ्खान् प्रदध्मुः समरेऽतिहृष्टाः
सकेशवाः सैनिकान् हर्षयन्तः ॥ ६७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! रथसे शकुनिको गिराकर समरांगणमें श्रीकृष्णसहित समस्त पाण्डव अत्यन्त हर्षमें भरकर सैनिकोंका हर्ष बढ़ाते हुए प्रसन्नतापूर्वक शंखनाद करने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं चापि सर्वे प्रतिपूजयन्तो
दृष्ट्वा ब्रुवाणाः सहदेवमाजौ ।
दिष्ट्या हतो नैकृतिको महात्मा
सहात्मजो वीर रणे त्वयेति ॥ ६८ ॥
मूलम्
तं चापि सर्वे प्रतिपूजयन्तो
दृष्ट्वा ब्रुवाणाः सहदेवमाजौ ।
दिष्ट्या हतो नैकृतिको महात्मा
सहात्मजो वीर रणे त्वयेति ॥ ६८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सहदेवको देखकर युद्धक्षेत्रमें सब लोग उनकी पूजा (प्रशंसा) करते हुए इस प्रकार कहने लगे—‘वीर! बड़े सौभाग्यकी बात है कि तुमने रणभूमिमें कपटद्यूतके विधायक महामना शकुनिको पुत्रसहित मार डाला है’॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि शकुन्युलूकवधेऽष्टाविंशोऽध्यायः ॥ २८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें शकुनि और उलूकका वधविषयक अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२८॥