०२७

भागसूचना

सप्तविंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

श्रीकृष्ण और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा सत्यकर्मा, सत्येषु तथा पैंतालीस पुत्रों और सेनासहित सुशर्माका वध तथा भीमके द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शनका अन्त

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनो महाराज सुदर्शश्चापि ते सुतः।
हतशेषौ तदा संख्ये वाजिमध्ये व्यवस्थितौ ॥ १ ॥

मूलम्

दुर्योधनो महाराज सुदर्शश्चापि ते सुतः।
हतशेषौ तदा संख्ये वाजिमध्ये व्यवस्थितौ ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! उस समय आपके पुत्र दुर्योधन और सुदर्शन ये—दो ही बच गये थे। दोनों ही घुड़सवारोंके बीचमें खड़े थे॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनं दृष्ट्वा वाजिमध्ये व्यवस्थितम्।
उवाच देवकीपुत्रः कुन्तीपुत्रं धनंजयम् ॥ २ ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनं दृष्ट्वा वाजिमध्ये व्यवस्थितम्।
उवाच देवकीपुत्रः कुन्तीपुत्रं धनंजयम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर दुर्योधनको घुड़सवारोंके बीचमें खड़ा देख देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्णने कुन्तीकुमार अर्जुनसे इस प्रकार कहा—॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शत्रवो हतभूयिष्ठा ज्ञातयः परिपालिताः।
गृहीत्वा संजयं चासौ निवृत्तः शिनिपुङ्गवः ॥ ३ ॥
परिश्रान्तश्च नकुलः सहदेवश्च भारत।
योधयित्वा रणे पापान् धार्तराष्ट्रान् सहानुगान् ॥ ४ ॥

मूलम्

शत्रवो हतभूयिष्ठा ज्ञातयः परिपालिताः।
गृहीत्वा संजयं चासौ निवृत्तः शिनिपुङ्गवः ॥ ३ ॥
परिश्रान्तश्च नकुलः सहदेवश्च भारत।
योधयित्वा रणे पापान् धार्तराष्ट्रान् सहानुगान् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भरतनन्दन! शत्रुओंके अधिकांश योद्धा मारे गये और अपने कुटुम्बी जनोंकी रक्षा हुई। उधर देखो, वे शिनिप्रवर सात्यकि संजयको कैद करके उसे साथ लिये लौटे आ रहे हैं। रणभूमिमें सेवकोंसहित धृतराष्ट्रके पापी पुत्रोंसे युद्ध करके दोनों भाई नकुल और सहदेव भी बहुत थक गये हैं॥३-४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनमभित्यज्य त्रय एते व्यवस्थिताः।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिश्चैव महारथः ॥ ५ ॥

मूलम्

दुर्योधनमभित्यज्य त्रय एते व्यवस्थिताः।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिश्चैव महारथः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘उधर कृपाचार्य, कृतवर्मा और महारथी अश्वत्थामा—ये तीनों युद्धभूमिमें दुर्योधनको छोड़कर कहीं अन्यत्र स्थित हैं॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

असौ तिष्ठति पाञ्चाल्यः श्रिया परमया युतः।
दुर्योधनबलं हत्वा सह सर्वैः प्रभद्रकैः ॥ ६ ॥

मूलम्

असौ तिष्ठति पाञ्चाल्यः श्रिया परमया युतः।
दुर्योधनबलं हत्वा सह सर्वैः प्रभद्रकैः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘इधर, सम्पूर्ण प्रभद्रकोंसहित दुर्योधनकी सेनाका संहार करके पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न अपनी सुन्दर कान्तिसे सुशोभित हो रहे हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

असौ दुर्योधनः पार्थ वाजिमध्ये व्यवस्थितः।
छत्रेण ध्रियमाणेन प्रेक्षमाणो मुहुर्मुहुः ॥ ७ ॥

मूलम्

असौ दुर्योधनः पार्थ वाजिमध्ये व्यवस्थितः।
छत्रेण ध्रियमाणेन प्रेक्षमाणो मुहुर्मुहुः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पार्थ! वह रहा दुर्योधन, जो छत्र धारण किये घुड़सवारोंके बीचमें खड़ा है और बारंबार इधर ही देख रहा है॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रतिव्यूह्य बलं सर्वं रणमध्ये व्यवस्थितः।
एनं हत्वा शितैर्बाणैः कृतकृत्यो भविष्यसि ॥ ८ ॥

मूलम्

प्रतिव्यूह्य बलं सर्वं रणमध्ये व्यवस्थितः।
एनं हत्वा शितैर्बाणैः कृतकृत्यो भविष्यसि ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘वह अपनी सारी सेनाका व्यूह बनाकर युद्धभूमिमें खड़ा है। तुम इसे पैने बाणोंसे मारकर कृतकृत्य हो जाओगे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजानीकं हतं दृष्ट्वा त्वां च प्राप्तमरिंदम।
यावन्न विद्रवन्त्येते तावज्जहि सुयोधनम् ॥ ९ ॥

मूलम्

गजानीकं हतं दृष्ट्वा त्वां च प्राप्तमरिंदम।
यावन्न विद्रवन्त्येते तावज्जहि सुयोधनम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘शत्रुदमन! गजसेनाका वध और तुम्हारा आगमन हुआ देख ये कौरव-योद्धा जबतक भाग नहीं जाते तभीतक दुर्योधनको मार डालो॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यातु कश्चित्तु पाञ्चाल्यं क्षिप्रमागम्यतामिति।
परिश्रान्तबलस्तात नैष मुच्येत किल्बिषी ॥ १० ॥

मूलम्

यातु कश्चित्तु पाञ्चाल्यं क्षिप्रमागम्यतामिति।
परिश्रान्तबलस्तात नैष मुच्येत किल्बिषी ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अपने दलका कोई पुरुष पांचालराज धृष्टद्युम्नके पास जाय और कहे कि ‘आप शीघ्रतापूर्वक चलें।’ तात! यह पापात्मा दुर्योधन अब बच नहीं सकता, क्योंकि इसकी सारी सेना थक गयी है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा तव बलं सर्वं संग्रामे धृतराष्ट्रजः।
जितान् पाण्डुसुतान् मत्वा रूपं धारयते महत् ॥ ११ ॥

मूलम्

हत्वा तव बलं सर्वं संग्रामे धृतराष्ट्रजः।
जितान् पाण्डुसुतान् मत्वा रूपं धारयते महत् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘दुर्योधन समझता है कि ‘संग्रामभूमिमें तुम्हारी सारी सेनाका संहार करके पाण्डवोंको पराजित कर दूँगा।’ इसीलिये वह अत्यन्त उग्र रूप धारण कर रहा है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निहतं स्वबलं दृष्ट्वा पीडितं चापि पाण्डवैः।
ध्रुवमेष्यति संग्रामे वधायैवात्मनो नृपः ॥ १२ ॥

मूलम्

निहतं स्वबलं दृष्ट्वा पीडितं चापि पाण्डवैः।
ध्रुवमेष्यति संग्रामे वधायैवात्मनो नृपः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘परंतु अपनी सेनाको पाण्डवोंद्वारा पीड़ित एवं मारी गयी देख राजा दुर्योधन निश्चय ही अपने विनाशके लिये ही युद्धस्थलमें पदार्पण करेगा’॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तः फाल्गुनस्तु कृष्णं वचनमब्रवीत्।
धृतराष्ट्रसुताः सर्वे हता भीमेन माधव ॥ १३ ॥
यावेतावास्थितौ कृष्ण तावद्य न भविष्यतः।

मूलम्

एवमुक्तः फाल्गुनस्तु कृष्णं वचनमब्रवीत्।
धृतराष्ट्रसुताः सर्वे हता भीमेन माधव ॥ १३ ॥
यावेतावास्थितौ कृष्ण तावद्य न भविष्यतः।

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् श्रीकृष्णके ऐसा कहनेपर अर्जुन उनसे इस प्रकार बोले—‘माधव! धृतराष्ट्रके प्रायः सभी पुत्र भीमसेनके हाथसे मारे गये हैं। श्रीकृष्ण! ये जो दो पुत्र खड़े हैं, इनका भी आज अन्त हो जायगा॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतो भीष्मो हतो द्रोणः कर्णो वैकर्तनो हतः ॥ १४ ॥
मद्रराजो हतः शल्यो हतः कृष्ण जयद्रथः।

मूलम्

हतो भीष्मो हतो द्रोणः कर्णो वैकर्तनो हतः ॥ १४ ॥
मद्रराजो हतः शल्यो हतः कृष्ण जयद्रथः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! भीष्म मारे जा चुके, द्रोणका भी अन्त हो गया, वैकर्तन कर्ण भी मार डाला गया, मद्रराज शल्यका भी वध हो गया और जयद्रथ भी यमलोक पहुँच गया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयाः पञ्चशताः शिष्टाः शकुनेः सौबलस्य च ॥ १५ ॥
रथानां तु शते शिष्टे द्वे एव तु जनार्दन।
दन्तिनां च शतं साग्रं त्रिसाहस्राः पदातयः ॥ १६ ॥

मूलम्

हयाः पञ्चशताः शिष्टाः शकुनेः सौबलस्य च ॥ १५ ॥
रथानां तु शते शिष्टे द्वे एव तु जनार्दन।
दन्तिनां च शतं साग्रं त्रिसाहस्राः पदातयः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सुबलपुत्र शकुनिके पास पाँच सौ घुड़सवारोंकी सेना अभी शेष है। जनार्दन! उसके पास दो सौ रथ, सौसे कुछ अधिक हाथी और तीन हजार पैदल सैनिक भी शेष रह गये हैं॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वत्थामा कृपश्चैव त्रिगर्ताधिपतिस्तथा ।
उलूकः शकुनिश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः ॥ १७ ॥
एतद् बलमभूच्छेषं धार्तराष्ट्रस्य माधव।

मूलम्

अश्वत्थामा कृपश्चैव त्रिगर्ताधिपतिस्तथा ।
उलूकः शकुनिश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः ॥ १७ ॥
एतद् बलमभूच्छेषं धार्तराष्ट्रस्य माधव।

अनुवाद (हिन्दी)

‘माधव! दुर्योधनकी सेनामें अश्वत्थामा, कृपाचार्य, त्रिगर्तराज सुशर्मा, उलूक, शकुनि और सात्वतवंशी कृतवर्मा—ये थोड़े-से ही वीर सैनिक शेष रह गये हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मोक्षो न नूनं कालात्‌ तु विद्यते भुवि कस्यचित्॥१८॥
तथा विनिहते सैन्ये पश्य दुर्योधनं स्थितम्।
अद्याह्ना हि महाराजो हतामित्रो भविष्यति ॥ १९ ॥

मूलम्

मोक्षो न नूनं कालात्‌ तु विद्यते भुवि कस्यचित्॥१८॥
तथा विनिहते सैन्ये पश्य दुर्योधनं स्थितम्।
अद्याह्ना हि महाराजो हतामित्रो भविष्यति ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘निश्चय ही इस पृथ्वीपर किसीको भी कालसे छुटकारा नहीं मिलता, तभी तो इस प्रकार अपनी सेनाका संहार होनेपर भी दुर्योधन युद्धके लिये खड़ा है, उसे देखिये। आजके दिन महाराज युधिष्ठिर शत्रुहीन हो जायँगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि मे मोक्ष्यते कश्चित् परेषामिह चिन्तये।
ये त्वद्य समरं कृष्ण न हास्यन्ति मदोत्कटाः ॥ २० ॥
तान्‌ वै सर्वान्‌ हनिष्यामि यद्यपि स्युर्न मानुषाः।

मूलम्

न हि मे मोक्ष्यते कश्चित् परेषामिह चिन्तये।
ये त्वद्य समरं कृष्ण न हास्यन्ति मदोत्कटाः ॥ २० ॥
तान्‌ वै सर्वान्‌ हनिष्यामि यद्यपि स्युर्न मानुषाः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! मैं सोचता हूँ कि आज शत्रुदलका कोई भी योद्धा यहाँ मेरे हाथसे बचकर नहीं जा सकेगा। जो मदोन्मत्त वीर आज युद्ध छोड़कर भाग नहीं जायँगे, उन सबको, वे मनुष्य न होकर देवता या दैत्य ही क्यों न हों, मैं मार डालूँगा॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य युद्धे सुसंक्रुद्धो दीर्घं राज्ञा प्रजागरम् ॥ २१ ॥
अपनेष्यामि गान्धारं घातयित्वा शितैः शरैः।

मूलम्

अद्य युद्धे सुसंक्रुद्धो दीर्घं राज्ञा प्रजागरम् ॥ २१ ॥
अपनेष्यामि गान्धारं घातयित्वा शितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज मैं अत्यन्त कुपित हो गान्धारराज शकुनिको पैने बाणोंसे मरवाकर राजा युधिष्ठिरके दीर्घकालीन जागरणरूपी रोगको दूर कर दूँगा॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निकृत्या वै दुराचारो यानि रत्नानि सौबलः ॥ २२ ॥
सभायामहरद् द्यूते पुनस्तान्याहराम्यहम् ।

मूलम्

निकृत्या वै दुराचारो यानि रत्नानि सौबलः ॥ २२ ॥
सभायामहरद् द्यूते पुनस्तान्याहराम्यहम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘दुराचारी सुबलपुत्र शकुनिने द्यूतसभामें छल करके जिन रत्नोंको हर लिया था, उन सबको मैं वापस ले लूँगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य ता अपि रोत्स्यन्ति सर्वा नागपुरे स्त्रियः ॥ २३ ॥
श्रुत्वा पतींश्च पुत्रांश्च पाण्डवैर्निहतान्‌ युधि।

मूलम्

अद्य ता अपि रोत्स्यन्ति सर्वा नागपुरे स्त्रियः ॥ २३ ॥
श्रुत्वा पतींश्च पुत्रांश्च पाण्डवैर्निहतान्‌ युधि।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज हस्तिनापुरकी वे सारी स्त्रियाँ भी युद्धमें पाण्डवोंके हाथसे अपने पतियों और पुत्रोंको मारा गया सुनकर फूट-फूटकर रोयेंगी॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समाप्तमद्य वै कर्म सर्वं कृष्ण भविष्यति ॥ २४ ॥
अद्य दुर्योधनो दीप्तां श्रियं प्राणांश्च मोक्ष्यति।

मूलम्

समाप्तमद्य वै कर्म सर्वं कृष्ण भविष्यति ॥ २४ ॥
अद्य दुर्योधनो दीप्तां श्रियं प्राणांश्च मोक्ष्यति।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज हमलोगोंका सारा कार्य समाप्त हो जायगा। आज दुर्योधन अपनी उज्ज्वल राजलक्ष्मी और प्राणोंको भी खो बैठेगा॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नापयाति भयात् कृष्ण संग्रामाद् यदि चेन्मम ॥ २५ ॥
निहतं विद्धि वार्ष्णेय धार्तराष्ट्रं सुबालिशम्।

मूलम्

नापयाति भयात् कृष्ण संग्रामाद् यदि चेन्मम ॥ २५ ॥
निहतं विद्धि वार्ष्णेय धार्तराष्ट्रं सुबालिशम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘वृष्णिनन्दन श्रीकृष्ण! यदि वह मेरे भयसे युद्धसे भाग न जाय, तो मेरे द्वारा उस मूढ़ दुर्योधनको आप मारा गया ही समझें॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मम ह्येतदशक्तं वै वाजिवृन्दमरिंदम ॥ २६ ॥
सोढुं ज्यातलनिर्घोषं याहि यावन्निहन्म्यहम्।

मूलम्

मम ह्येतदशक्तं वै वाजिवृन्दमरिंदम ॥ २६ ॥
सोढुं ज्यातलनिर्घोषं याहि यावन्निहन्म्यहम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘शत्रुदमन! यह घुड़सवारोंकी सेना मेरे गाण्डीव धनुषकी टंकारको नहीं सह सकेगी। आप घोड़े बढ़ाइये, मैं अभी इन सबको मारे डालता हूँ’॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्तु दाशार्हः पाण्डवेन यशस्विना ॥ २७ ॥
अचोदयद्धयान् राजन् दुर्योधनबलं प्रति।

मूलम्

एवमुक्तस्तु दाशार्हः पाण्डवेन यशस्विना ॥ २७ ॥
अचोदयद्धयान् राजन् दुर्योधनबलं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! यशस्वी पाण्डुपुत्र अर्जुनके ऐसा कहनेपर दशार्हकुलनन्दन श्रीकृष्णने दुर्योधनकी सेनाकी ओर घोड़े बढ़ा दिये॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदनीकमभिप्रेक्ष्य त्रयः सज्जा महारथाः ॥ २८ ॥
भीमसेनोऽर्जुनश्चैव सहदेवश्च मारिष ।
प्रययुः सिंहनादेन दुर्योधनजिघांसया ॥ २९ ॥

मूलम्

तदनीकमभिप्रेक्ष्य त्रयः सज्जा महारथाः ॥ २८ ॥
भीमसेनोऽर्जुनश्चैव सहदेवश्च मारिष ।
प्रययुः सिंहनादेन दुर्योधनजिघांसया ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मान्यवर! उस सेनाको देखकर तीन महारथी भीमसेन, अर्जुन और सहदेव युद्ध-सामग्रीसे सुसज्जित हो दुर्योधनके वधकी इच्छासे सिंहनाद करते हुए आगे बढ़े॥२८-२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् प्रेक्ष्य सहितान्‌ सर्वान्‌ जवेनोद्यतकार्मुकान्।
सौबलोऽभ्यद्रवद् युद्धे पाण्डवानाततायिनः ॥ ३० ॥

मूलम्

तान् प्रेक्ष्य सहितान्‌ सर्वान्‌ जवेनोद्यतकार्मुकान्।
सौबलोऽभ्यद्रवद् युद्धे पाण्डवानाततायिनः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन सबको बड़े वेगसे धनुष उठाये एक साथ आक्रमण करते देख सुबलपुत्र शकुनि रणभूमिमें आततायी पाण्डवोंकी ओर दौड़ा॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुदर्शनस्तव सुतो भीमसेनं समभ्ययात्।
सुशर्मा शकुनिश्चैव युयुधाते किरीटिना ॥ ३१ ॥

मूलम्

सुदर्शनस्तव सुतो भीमसेनं समभ्ययात्।
सुशर्मा शकुनिश्चैव युयुधाते किरीटिना ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपका पुत्र सुदर्शन भीमका सामना करने लगा। सुशर्मा और शकुनिने किरीटधारी अर्जुनके साथ युद्ध छेड़ दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवं तव सुतो हयपृष्ठगतोऽभ्ययात्।
ततो हि यत्नतः क्षिप्रं तव पुत्रो जनाधिप ॥ ३२ ॥
प्रासेन सहदेवस्य शिरसि प्राहरद् भृशम्।

मूलम्

सहदेवं तव सुतो हयपृष्ठगतोऽभ्ययात्।
ततो हि यत्नतः क्षिप्रं तव पुत्रो जनाधिप ॥ ३२ ॥
प्रासेन सहदेवस्य शिरसि प्राहरद् भृशम्।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! घोड़ेकी पीठपर बैठा हुआ आपका पुत्र दुर्योधन सहदेवके सामने आया। उसने बड़े यत्नसे सहदेवके मस्तकपर शीघ्रतापूर्वक प्रासका प्रहार किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोपाविशद् रथोपस्थे तव पुत्रेण ताडितः ॥ ३३ ॥
रुधिराप्लुतसर्वाङ्ग आशीविष इव श्वसन्।

मूलम्

सोपाविशद् रथोपस्थे तव पुत्रेण ताडितः ॥ ३३ ॥
रुधिराप्लुतसर्वाङ्ग आशीविष इव श्वसन्।

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्रद्वारा ताड़ित होकर सहदेव फुफकारते हुए विषधर सर्पके समान लंबी साँस खींचते हुए रथके पिछले भागमें बैठ गये। उनका सारा शरीर लहूलुहान हो गया॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रतिलभ्य ततः संज्ञां सहदेवो विशाम्पते ॥ ३४ ॥
दुर्योधनं शरैस्तीक्ष्णैः संक्रुद्धः समवाकिरत्।

मूलम्

प्रतिलभ्य ततः संज्ञां सहदेवो विशाम्पते ॥ ३४ ॥
दुर्योधनं शरैस्तीक्ष्णैः संक्रुद्धः समवाकिरत्।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! थोड़ी देरमें सचेत होनेपर क्रोधमें भरे हुए सहदेव दुर्योधनपर पैने बाणोंकी वर्षा करने लगे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पार्थोऽपि युधि विक्रम्य कुन्तीपुत्रो धनंजयः ॥ ३५ ॥
शूराणामश्वपृष्ठेभ्यः शिरांसि निचकर्त ह।

मूलम्

पार्थोऽपि युधि विक्रम्य कुन्तीपुत्रो धनंजयः ॥ ३५ ॥
शूराणामश्वपृष्ठेभ्यः शिरांसि निचकर्त ह।

अनुवाद (हिन्दी)

कुन्तीपुत्र अर्जुनने भी युद्धमें पराक्रम करके घोड़ोंकी पीठोंसे शूरवीरोंके मस्तक काट गिराये॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदनीकं तदा पार्थो व्यधमद् बहुभिः शरैः ॥ ३६ ॥
पातयित्वा हयान् सर्वांस्त्रिगर्तानां रथान् ययौ।

मूलम्

तदनीकं तदा पार्थो व्यधमद् बहुभिः शरैः ॥ ३६ ॥
पातयित्वा हयान् सर्वांस्त्रिगर्तानां रथान् ययौ।

अनुवाद (हिन्दी)

पार्थने अपने बहुसंख्यक बाणोंद्वारा घुड़सवारोंकी उस सेनाको छिन्न-भिन्न कर डाला तथा समस्त घोड़ोंको धराशायी करके त्रिगर्तदेशीय रथियोंपर चढ़ाई कर दी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्ते सहिता भूत्वा त्रिगर्तानां महारथाः ॥ ३७ ॥
अर्जुनं वासुदेवं च शरवर्षैरवाकिरन्।

मूलम्

ततस्ते सहिता भूत्वा त्रिगर्तानां महारथाः ॥ ३७ ॥
अर्जुनं वासुदेवं च शरवर्षैरवाकिरन्।

अनुवाद (हिन्दी)

तब वे त्रिगर्तदेशीय महारथी एक साथ होकर अर्जुन और श्रीकृष्णको अपने बाणोंकी वर्षासे आच्छादित करने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सत्यकर्माणमाक्षिप्य क्षुरप्रेण महायशाः ॥ ३८ ॥
ततोऽस्य स्यन्दनस्येषां चिच्छिदे पाण्डुनन्दनः।
शिलाशितेन च विभो क्षुरप्रेण महायशाः ॥ ३९ ॥
शिरश्चिच्छेद सहसा तप्तकुण्डलभूषणम् ।

मूलम्

सत्यकर्माणमाक्षिप्य क्षुरप्रेण महायशाः ॥ ३८ ॥
ततोऽस्य स्यन्दनस्येषां चिच्छिदे पाण्डुनन्दनः।
शिलाशितेन च विभो क्षुरप्रेण महायशाः ॥ ३९ ॥
शिरश्चिच्छेद सहसा तप्तकुण्डलभूषणम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! उस समय महायशस्वी पाण्डुनन्दन अर्जुनने क्षुरप्रद्वारा सत्यकर्मापर प्रहार करके उसके रथकी ईषा (हरसा) काट डाली। तत्पश्चात् उन महायशस्वी वीरने शिलापर तेज किये हुए क्षुरप्रद्वारा उसके तपाये हुए सुवर्णके कुण्डलोंसे विभूषित मस्तकको सहसा काट लिया॥३८-३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सत्येषुमथ चादत्त योधानां मिषतां ततः ॥ ४० ॥
यथा सिंहो वने राजन् मृगं परिबुभुक्षितः।

मूलम्

सत्येषुमथ चादत्त योधानां मिषतां ततः ॥ ४० ॥
यथा सिंहो वने राजन् मृगं परिबुभुक्षितः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जैसे वनमें भूखा सिंह किसी मृगको दबोच लेता है, उसी प्रकार अर्जुनने समस्त योद्धाओंके देखते-देखते सत्येषुके भी प्राण हर लिये॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं निहत्य ततः पार्थः सुशर्माणं त्रिभिः शरैः ॥ ४१ ॥
विद्ध्‌वा तानहनत्‌ सर्वान् रथान् रुक्मविभूषितान्।

मूलम्

तं निहत्य ततः पार्थः सुशर्माणं त्रिभिः शरैः ॥ ४१ ॥
विद्ध्‌वा तानहनत्‌ सर्वान् रथान् रुक्मविभूषितान्।

अनुवाद (हिन्दी)

सत्येषुका वध करके अर्जुनने सुशर्माको तीन बाणोंसे घायल कर दिया और उन समस्त स्वर्णभूषित रथोंका विध्वंस कर डाला॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रायात् त्वरन् पार्थो दीर्घकालं सुसंवृतम् ॥ ४२ ॥
मुञ्चन् क्रोधविषं तीक्ष्णं प्रस्थलाधिपतिं प्रति।

मूलम्

ततः प्रायात् त्वरन् पार्थो दीर्घकालं सुसंवृतम् ॥ ४२ ॥
मुञ्चन् क्रोधविषं तीक्ष्णं प्रस्थलाधिपतिं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् पार्थ अपने दीर्घकालसे संचित किये हुए तीखे क्रोधरूपी विषको प्रस्थलेश्वर सुशर्मापर छोड़नेके लिये तीव्र गतिसे आगे बढ़े॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमर्जुनः पृषत्कानां शतेन भरतर्षभ ॥ ४३ ॥
पूरयित्वा ततो बाहान् प्राहरत् तस्य धन्विनः।

मूलम्

तमर्जुनः पृषत्कानां शतेन भरतर्षभ ॥ ४३ ॥
पूरयित्वा ततो बाहान् प्राहरत् तस्य धन्विनः।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! अर्जुनने सौ बाणोंद्वारा उसे आच्छादित करके उस धनुर्धर वीरके घोड़ोंपर घातक प्रहार किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शरं समादाय यमदण्डोपमं तदा ॥ ४४ ॥
सुशर्माणं समुद्दिश्य चिक्षेपाशु हसन्निव।

मूलम्

ततः शरं समादाय यमदण्डोपमं तदा ॥ ४४ ॥
सुशर्माणं समुद्दिश्य चिक्षेपाशु हसन्निव।

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद यमदण्डके समान भयंकर बाण हाथमें लेकर सुशर्माको लक्ष्य करके हँसते हुए-से शीघ्र ही छोड़ दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स शरः प्रेषितस्तेन क्रोधदीप्तेन धन्विना ॥ ४५ ॥
सुशर्माणं समासाद्य बिभेद हृदयं रणे।

मूलम्

स शरः प्रेषितस्तेन क्रोधदीप्तेन धन्विना ॥ ४५ ॥
सुशर्माणं समासाद्य बिभेद हृदयं रणे।

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधसे तमतमाये हुए धनुर्धर अर्जुनके द्वारा चलाये गये उस बाणने सुशर्मापर चोट करके उसकी छाती छेद डाली॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स गतासुर्महाराज पपात धरणीतले ॥ ४६ ॥
नन्दयन् पाण्डवान् सर्वान् व्यथयंश्चापि तावकान्।

मूलम्

स गतासुर्महाराज पपात धरणीतले ॥ ४६ ॥
नन्दयन् पाण्डवान् सर्वान् व्यथयंश्चापि तावकान्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! सुशर्मा आपके पुत्रोंको व्यथित और समस्त पाण्डवोंको आनन्दित करता हुआ प्राणशून्य होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुशर्माणं रणे हत्वा पुत्रानस्य महारथान् ॥ ४७ ॥
सप्त चाष्टौ च त्रिंशच्च सायकैरनयत् क्षयम्।

मूलम्

सुशर्माणं रणे हत्वा पुत्रानस्य महारथान् ॥ ४७ ॥
सप्त चाष्टौ च त्रिंशच्च सायकैरनयत् क्षयम्।

अनुवाद (हिन्दी)

रणभूमिमें सुशर्माका वध करके अर्जुनने अपने बाणोंद्वारा उसके पैंतालीस महारथी पुत्रोंको भी यमलोक पहुँचा दिया॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽस्य निशितैर्बाणैः सर्वान् हत्वा पदानुगान् ॥ ४८ ॥
अभ्यगाद् भारतीं सेनां हतशेषां महारथः।

मूलम्

ततोऽस्य निशितैर्बाणैः सर्वान् हत्वा पदानुगान् ॥ ४८ ॥
अभ्यगाद् भारतीं सेनां हतशेषां महारथः।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर पैने बाणोंद्वारा उसके सारे सेवकोंका संहार करके महारथी अर्जुनने मरनेसे बची हुई कौरवी सेनापर आक्रमण किया॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमस्तु समरे क्रुद्धः पुत्रं तव जनाधिप ॥ ४९ ॥
सुदर्शनमदृश्यं तं शरैश्चक्रे हसन्निव।
ततोऽस्य प्रहसन् क्रुद्धः शिरः कायादपाहरत् ॥ ५० ॥
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन स हतः प्रापतद् भुवि।

मूलम्

भीमस्तु समरे क्रुद्धः पुत्रं तव जनाधिप ॥ ४९ ॥
सुदर्शनमदृश्यं तं शरैश्चक्रे हसन्निव।
ततोऽस्य प्रहसन् क्रुद्धः शिरः कायादपाहरत् ॥ ५० ॥
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन स हतः प्रापतद् भुवि।

अनुवाद (हिन्दी)

जनेश्वर! दूसरी ओर कुपित हुए भीमसेनने हँसते-हँसते बाणोंकी वर्षा करके सुदर्शनको ढक दिया। फिर क्रोधपूर्वक अट्टहास करते हुए उन्होंने उसके मस्तकको तीखे क्षुरप्रद्वारा धड़से काट लिया। सुदर्शन मरकर पृथ्वीपर गिर पड़ा॥४९-५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्तु निहते वीरे ततस्तस्य पदानुगाः ॥ ५१ ॥
परिवव्रू रणे भीमं किरन्तो विविधान् शरान्।

मूलम्

तस्मिंस्तु निहते वीरे ततस्तस्य पदानुगाः ॥ ५१ ॥
परिवव्रू रणे भीमं किरन्तो विविधान् शरान्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस वीरके मारे जानेपर उसके सेवकोंने नाना प्रकारके बाणोंकी वर्षा करते हुए रणभूमिमें भीमसेनको सब ओरसे घेर लिया॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तु निशितैर्बाणैस्तवानीकं वृकोदरः ॥ ५२ ॥
इन्द्राशनिसमस्पर्शैः समन्तात् पर्यवाकिरत् ।

मूलम्

ततस्तु निशितैर्बाणैस्तवानीकं वृकोदरः ॥ ५२ ॥
इन्द्राशनिसमस्पर्शैः समन्तात् पर्यवाकिरत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् भीमसेनने इन्द्रके वज्रकी भाँति कठोर स्पर्शवाले तीखे बाणोंद्वारा आपकी सेनाको चारों ओरसे ढक दिया॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्षणेन तद् भीमो न्यहनद् भरतर्षभ ॥ ५३ ॥
तेषु तूत्साद्यमानेषु सेनाध्यक्षा महारथाः।
भीमसेनं समासाद्य ततोऽयुद्ध्यन्त भारत ॥ ५४ ॥

मूलम्

ततः क्षणेन तद् भीमो न्यहनद् भरतर्षभ ॥ ५३ ॥
तेषु तूत्साद्यमानेषु सेनाध्यक्षा महारथाः।
भीमसेनं समासाद्य ततोऽयुद्ध्यन्त भारत ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! इसके बाद भीमसेनने क्षणभरमें आपकी सेनाका संहार कर डाला। भारत! जब उन कौरव-सैनिकोंका संहार होने लगा, तब महारथी सेनापतिगण भीमसेनपर आक्रमण करके उनके साथ युद्ध करने लगे॥५३-५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तान् सर्वान् शरैर्घोरैरवाकिरत पाण्डवः।
तथैव तावका राजन् पाण्डवेयान् महारथान् ॥ ५५ ॥
शरवर्षेण महता समन्तात् पर्यवारयन्।

मूलम्

स तान् सर्वान् शरैर्घोरैरवाकिरत पाण्डवः।
तथैव तावका राजन् पाण्डवेयान् महारथान् ॥ ५५ ॥
शरवर्षेण महता समन्तात् पर्यवारयन्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पाण्डुपुत्र भीमने उन सबपर भयंकर बाणोंकी वृष्टि की। इसी प्रकार आपके सैनिकोंने भी बड़ी भारी बाण-वर्षा करके पाण्डव महारथियोंको सब ओरसे आच्छादित कर दिया॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्याकुलं तदभूत् सर्वं पाण्डवानां परैः सह ॥ ५६ ॥
तावकानां च समरे पाण्डवेयैर्युयुत्सताम्।

मूलम्

व्याकुलं तदभूत् सर्वं पाण्डवानां परैः सह ॥ ५६ ॥
तावकानां च समरे पाण्डवेयैर्युयुत्सताम्।

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंके साथ जूझनेवाले पाण्डवोंका और पाण्डवोंके साथ युद्धकी इच्छा रखनेवाले आपके सैनिकोंका सारा सैन्यदल समरांगणमें परस्पर मिलकर एक-सा हो गया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र योधास्तदा पेतुः परस्परसमाहताः।
उभयोः सेनयो राजन् संशोचन्तः स्म बान्धवान् ॥ ५७ ॥

मूलम्

तत्र योधास्तदा पेतुः परस्परसमाहताः।
उभयोः सेनयो राजन् संशोचन्तः स्म बान्धवान् ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समय वहाँ एक-दूसरेकी मार खाकर दोनों दलोंके योद्धा अपने भाई-बन्धुओंके लिये शोक करते हुए धराशायी हो जाते थे॥५७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि सुशर्मवधे सप्तविंशोऽध्यायः ॥ २७ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें सुशर्माका वधविषयक सत्ताईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२७॥