भागसूचना
षड्विंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका और बहुत-सी चतुरंगिणी सेनाका वध
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजानीके हते तस्मिन् पाण्डुपुत्रेण भारत।
वध्यमाने बले चैव भीमसेनेन संयुगे ॥ १ ॥
चरन्तं च तथा दृष्ट्वा भीमसेनमरिंदमम्।
दण्डहस्तं यथा क्रुद्धमन्तकं प्राणहारिणम् ॥ २ ॥
समेत्य समरे राजन् हतशेषाः सुतास्तव।
अदृश्यमाने कौरव्ये पुत्रे दुर्योधने तव ॥ ३ ॥
सोदर्याः सहिता भूत्वा भीमसेनमुपाद्रवन्।
मूलम्
गजानीके हते तस्मिन् पाण्डुपुत्रेण भारत।
वध्यमाने बले चैव भीमसेनेन संयुगे ॥ १ ॥
चरन्तं च तथा दृष्ट्वा भीमसेनमरिंदमम्।
दण्डहस्तं यथा क्रुद्धमन्तकं प्राणहारिणम् ॥ २ ॥
समेत्य समरे राजन् हतशेषाः सुतास्तव।
अदृश्यमाने कौरव्ये पुत्रे दुर्योधने तव ॥ ३ ॥
सोदर्याः सहिता भूत्वा भीमसेनमुपाद्रवन्।
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! भरतनन्दन! पाण्डुपुत्र भीमसेनके द्वारा आपकी गजसेना तथा दूसरी सेनाका भी संहार हो जानेपर जब आपका पुत्र कुरुवंशी दुर्योधन कहीं दिखायी नहीं दिया, तब मरनेसे बचे हुए आपके सभी पुत्र एक साथ हो गये और समरांगणमें दण्डधारी, प्राणान्तकारी यमराजके समान कुपित हुए शत्रुदमन भीमसेनको विचरते देख सब मिलकर उनपर टूट पड़े॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्मर्षणः श्रुतान्तश्च जैत्रो भूरिबलो रविः ॥ ४ ॥
जयत्सेनः सुजातश्च तथा दुर्विषहोऽरिहा।
दुर्विमोचननामा च दुष्प्रधर्षस्तथैव च ॥ ५ ॥
श्रुतर्वा च महाबाहुः सर्वे युद्धविशारदाः।
इत्येते सहिता भूत्वा तव पुत्राः समन्ततः ॥ ६ ॥
भीमसेनमभिद्रुत्य रुरुधुः सर्वतोदिशम् ।
मूलम्
दुर्मर्षणः श्रुतान्तश्च जैत्रो भूरिबलो रविः ॥ ४ ॥
जयत्सेनः सुजातश्च तथा दुर्विषहोऽरिहा।
दुर्विमोचननामा च दुष्प्रधर्षस्तथैव च ॥ ५ ॥
श्रुतर्वा च महाबाहुः सर्वे युद्धविशारदाः।
इत्येते सहिता भूत्वा तव पुत्राः समन्ततः ॥ ६ ॥
भीमसेनमभिद्रुत्य रुरुधुः सर्वतोदिशम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्मर्षण, श्रुतान्त (चित्रांग), जैत्र, भूरिबल (भीमबल), रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विगाह), शत्रुनाशक दुर्विमोचन, दुष्प्रधर्ष (दुष्प्रधर्षण) और महाबाहु श्रुतर्वा—ये सभी आपके युद्धविशारद पुत्र एक साथ हो सब ओरसे भीमसेनपर धावा करके उनकी सम्पूर्ण दिशाओंको रोककर खड़े हो गये॥४—६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमो महाराज स्वरथं पुनरास्थितः ॥ ७ ॥
मुमोच निशितान् बाणान् पुत्राणां तव मर्मसु।
मूलम्
ततो भीमो महाराज स्वरथं पुनरास्थितः ॥ ७ ॥
मुमोच निशितान् बाणान् पुत्राणां तव मर्मसु।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तब भीम पुनः अपने रथपर आरूढ़ हो आपके पुत्रोंके मर्मस्थानोंमें तीखे बाणोंका प्रहार करने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते कीर्यमाणा भीमेन पुत्रास्तव महारणे ॥ ८ ॥
भीमसेनमपाकर्षन् प्रवणादिव कुञ्जरम् ।
मूलम्
ते कीर्यमाणा भीमेन पुत्रास्तव महारणे ॥ ८ ॥
भीमसेनमपाकर्षन् प्रवणादिव कुञ्जरम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
उस महासमरमें जब भीमसेन आपके पुत्रोंपर बाणोंका प्रहार करने लगे, तब वे भीमसेनको उसी प्रकार दूरतक खींच ले गये, जैसे शिकारी नीचे स्थानसे हाथीको खींचते हैं॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्रुद्धो रणे भीमः शिरो दुर्मर्षणस्य ह ॥ ९ ॥
क्षुरप्रेण प्रमथ्याशु पातयामास भूतले।
मूलम्
ततः क्रुद्धो रणे भीमः शिरो दुर्मर्षणस्य ह ॥ ९ ॥
क्षुरप्रेण प्रमथ्याशु पातयामास भूतले।
अनुवाद (हिन्दी)
तब रणभूमिमें क्रुद्ध हुए भीमसेनने एक क्षुरप्रसे दुर्मर्षणका मस्तक शीघ्रतापूर्वक पृथ्वीपर काट गिराया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽपरेण भल्लेन सर्वावरणभेदिना ॥ १० ॥
श्रुतान्तमवधीद् भीमस्तव पुत्रं महारथः।
मूलम्
ततोऽपरेण भल्लेन सर्वावरणभेदिना ॥ १० ॥
श्रुतान्तमवधीद् भीमस्तव पुत्रं महारथः।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् समस्त आवरणोंका भेदन करनेवाले दूसरे भल्लके द्वारा महारथी भीमसेनने आपके पुत्र श्रुतान्तका अन्त कर दिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जयत्सेनं ततो विद्ध्वा नाराचेन हसन्निव ॥ ११ ॥
पातयामास कौरव्यं रथोपस्थादरिंदमः ।
मूलम्
जयत्सेनं ततो विद्ध्वा नाराचेन हसन्निव ॥ ११ ॥
पातयामास कौरव्यं रथोपस्थादरिंदमः ।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर हँसते-हँसते उन शत्रुदमन वीरने कुरुवंशी जयत्सेनको नाराचसे घायल करके उसे रथकी बैठकसे नीचे गिरा दिया॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पपात रथाद् राजन् भूमौ तूर्णं ममार च॥१२॥
श्रुतर्वा तु ततो भीमं क्रुद्धो विव्याध मारिष।
शतेन गृध्रवाजानां शराणां नतपर्वणाम् ॥ १३ ॥
मूलम्
स पपात रथाद् राजन् भूमौ तूर्णं ममार च॥१२॥
श्रुतर्वा तु ततो भीमं क्रुद्धो विव्याध मारिष।
शतेन गृध्रवाजानां शराणां नतपर्वणाम् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जयत्सेन रथसे पृथ्वीपर गिरा और तुरंत मर गया। मान्यवर नरेश! तदनन्तर क्रोधमें भरे हुए श्रुतर्वाने गीधकी पाँख और झुकी हुई गाँठवाले सौ बाणोंसे भीमसेनको बींध डाला॥१२-१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्रुद्धो रणे भीमो जैत्रं भूरिबलं रविम्।
त्रीनेतांस्त्रिभिरानर्च्छद् विषाग्निप्रतिमैः शरैः ॥ १४ ॥
मूलम्
ततः क्रुद्धो रणे भीमो जैत्रं भूरिबलं रविम्।
त्रीनेतांस्त्रिभिरानर्च्छद् विषाग्निप्रतिमैः शरैः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख भीमसेन क्रोधसे जल उठे और उन्होंने रणभूमिमें विष और अग्निके समान भयंकर तीन बाणोंद्वारा जैत्र, भूरिबल और रवि—इन तीनोंपर प्रहार किया॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते हता न्यपतन् भूमौ स्वन्दनेभ्यो महारथाः।
वसन्ते पुष्पशबला निकृत्ता इव किंशुकाः ॥ १५ ॥
मूलम्
ते हता न्यपतन् भूमौ स्वन्दनेभ्यो महारथाः।
वसन्ते पुष्पशबला निकृत्ता इव किंशुकाः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन बाणोंद्वारा मारे गये वे तीनों महारथी वसन्त-ऋतुमें कटे हुए पुष्पयुक्त पलाशके वृक्षोंकी भाँति रथोंसे पृथ्वीपर गिर पड़े॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽपरेण भल्लेन तीक्ष्णेन च परंतपः।
दुर्विमोचनमाहत्य प्रेषयामास मृत्यवे ॥ १६ ॥
मूलम्
ततोऽपरेण भल्लेन तीक्ष्णेन च परंतपः।
दुर्विमोचनमाहत्य प्रेषयामास मृत्यवे ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद शत्रुओंको संताप देनेवाले भीमसेनने दूसरे तीखे भल्लसे दुर्विमोचनको मारकर मृत्युके लोकमें भेज दिया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स हतः प्रापतद् भूमौ स्वरथाद् रथिनां वरः।
गिरेस्तु कूटजो भग्नो मारुतेनेव पादपः ॥ १७ ॥
मूलम्
स हतः प्रापतद् भूमौ स्वरथाद् रथिनां वरः।
गिरेस्तु कूटजो भग्नो मारुतेनेव पादपः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रथियोंमें श्रेष्ठ दुर्विमोचन उस भल्लकी चोट खाकर अपने रथसे भूमिपर गिर पड़ा, मानो पर्वतके शिखरपर उत्पन्न हुआ वृक्ष वायुके वेगसे टूटकर धराशायी हो गया हो॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुष्प्रधर्षं ततश्चैव सुजातं च सुतं तव।
एकैकं न्यहनत् संख्ये द्वाभ्यां द्वाभ्यां चमूमुखे ॥ १८ ॥
मूलम्
दुष्प्रधर्षं ततश्चैव सुजातं च सुतं तव।
एकैकं न्यहनत् संख्ये द्वाभ्यां द्वाभ्यां चमूमुखे ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर भीमसेनने आपके पुत्र दुष्प्रधर्ष और सुजातको रणक्षेत्रमें सेनाके मुहानेपर दो-दो बाणोंसे मार गिराया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ शिलीमुखविद्धाङ्गौ पेततू रथसत्तमौ।
ततः पतन्तं समरे अभिवीक्ष्य सुतं तव ॥ १९ ॥
भल्लेन पातयामास भीमो दुर्विषहं रणे।
स पपात हतो वाहात् पश्यतां सर्वधन्विनाम् ॥ २० ॥
मूलम्
तौ शिलीमुखविद्धाङ्गौ पेततू रथसत्तमौ।
ततः पतन्तं समरे अभिवीक्ष्य सुतं तव ॥ १९ ॥
भल्लेन पातयामास भीमो दुर्विषहं रणे।
स पपात हतो वाहात् पश्यतां सर्वधन्विनाम् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों महारथी वीर बाणोंसे सारा शरीर बिंध जानेके कारण रणभूमिमें गिर पड़े। तत्पश्चात् आपके पुत्र दुर्विषहको संग्राममें चढ़ाई करते देख भीमसेनने एक भल्लसे मार गिराया। उस भल्लकी चोट खाकर दुर्विषह सम्पूर्ण धनुर्धरोंके देखते-देखते रथसे नीचे जा गिरा॥१९-२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा तु निहतान् भ्रातॄन् बहूनेकेन संयुगे।
अमर्षवशमापन्नः श्रुतर्वा भीममभ्ययात् ॥ २१ ॥
मूलम्
दृष्ट्वा तु निहतान् भ्रातॄन् बहूनेकेन संयुगे।
अमर्षवशमापन्नः श्रुतर्वा भीममभ्ययात् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धस्थलमें एकमात्र भीमके द्वारा अपने बहुत-से भाइयोंको मारा गया देख श्रुतर्वा अमर्षके वशीभूत हो भीमसेनका सामना करनेके लिये आ पहुँचा॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विक्षिपन् सुमहच्चापं कार्तस्वरविभूषितम् ।
विसृजन् सायकांश्चैव विषाग्निप्रतिमान् बहून् ॥ २२ ॥
मूलम्
विक्षिपन् सुमहच्चापं कार्तस्वरविभूषितम् ।
विसृजन् सायकांश्चैव विषाग्निप्रतिमान् बहून् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुषको खींचकर उसके द्वारा विष और अग्निके समान भयंकर बहुतेरे बाणोंकी वर्षा कर रहा था॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु राजन् धनुश्छित्त्वा पाण्डवस्य महामृधे।
अथैनं छिन्नधन्वानं विंशत्या समवाकिरत् ॥ २३ ॥
मूलम्
स तु राजन् धनुश्छित्त्वा पाण्डवस्य महामृधे।
अथैनं छिन्नधन्वानं विंशत्या समवाकिरत् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उसने उस महासमरमें पाण्डुपुत्रके धनुषको काटकर कटे हुए धनुषवाले भीमसेनको बीस बाणोंसे घायल कर दिया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽन्यद् धनुरादाय भीमसेनो महाबलः।
अवाकिरत् तव सुतं तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ २४ ॥
मूलम्
ततोऽन्यद् धनुरादाय भीमसेनो महाबलः।
अवाकिरत् तव सुतं तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महाबली भीमसेन दूसरा धनुष लेकर आपके पुत्रपर बाणोंकी वर्षा करने लगे और बोले—‘खड़ा रह, खड़ा रह’॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महदासीत् तयोर्युद्धं चित्ररूपं भयानकम्।
यादृशं समरे पूर्वं जम्भवासवयोर्युधि ॥ २५ ॥
मूलम्
महदासीत् तयोर्युद्धं चित्ररूपं भयानकम्।
यादृशं समरे पूर्वं जम्भवासवयोर्युधि ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उन दोनोंमें विचित्र, भयानक और महान् युद्ध होने लगा। पूर्वकालमें रणक्षेत्रमें जम्भ और इन्द्रका जैसा युद्ध हुआ था, वैसा ही उन दोनोंका भी हुआ॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोस्तत्र शितैर्मुक्तैर्यमदण्डनिभैः शरैः ।
समाच्छन्ना धरा सर्वा खं दिशो विदिशस्तथा ॥ २६ ॥
मूलम्
तयोस्तत्र शितैर्मुक्तैर्यमदण्डनिभैः शरैः ।
समाच्छन्ना धरा सर्वा खं दिशो विदिशस्तथा ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनोंके छोड़े हुए यमदण्डके समान तीखे बाणोंसे सारी पृथ्वी, आकाश, दिशाएँ और विदिशाएँ आच्छादित हो गयीं॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः श्रुतर्वा संक्रुद्धो धनुरादाय सायकैः।
भीमसेनं रणे राजन् बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ २७ ॥
मूलम्
ततः श्रुतर्वा संक्रुद्धो धनुरादाय सायकैः।
भीमसेनं रणे राजन् बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर क्रोधमें भरे हुए श्रुतर्वाने धनुष लेकर अपने बाणोंसे रणभूमिमें भीमसेनकी दोनों भुजाओं और छातीमें प्रहार किया॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽतिविद्धो महाराज तव पुत्रेण धन्विना।
भीमः संचुक्षुभे क्रुद्धः पर्वणीव महोदधिः ॥ २८ ॥
मूलम्
सोऽतिविद्धो महाराज तव पुत्रेण धन्विना।
भीमः संचुक्षुभे क्रुद्धः पर्वणीव महोदधिः ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! आपके धनुर्धर पुत्रद्वारा अत्यन्त घायल कर दिये जानेपर भीमसेनका क्रोध भड़क उठा और वे पूर्णिमाके दिन उमड़ते हुए महासागरके समान बहुत ही क्षुब्ध हो उठे॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमो रुषाविष्टः पुत्रस्य तव मारिष।
सारथिं चतुरश्चाश्वान् शरैर्निन्ये यमक्षयम् ॥ २९ ॥
मूलम्
ततो भीमो रुषाविष्टः पुत्रस्य तव मारिष।
सारथिं चतुरश्चाश्वान् शरैर्निन्ये यमक्षयम् ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! फिर रोषसे आविष्ट हुए भीमसेनने अपने बाणोंद्वारा आपके पुत्रके सारथि और चारों घोड़ोंको यमलोक पहुँचा दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विरथं तं समालक्ष्य विशिखैर्लोमवाहिभिः।
अवाकिरदमेयात्मा दर्शयन् पाणिलाघवम् ॥ ३० ॥
मूलम्
विरथं तं समालक्ष्य विशिखैर्लोमवाहिभिः।
अवाकिरदमेयात्मा दर्शयन् पाणिलाघवम् ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अमेय आत्मबलसे सम्पन्न भीमसेन श्रुतर्वाको रथहीन हुआ देख अपने हाथोंकी फुर्ती दिखाते हुए उसके ऊपर पक्षियोंके पंखसे युक्त होकर उड़नेवाले बाणोंकी वर्षा करने लगे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुतर्वा विरथो राजन्नाददे खड्गचर्मणी।
अथास्याददतः खड्गं शतचन्द्रं च भानुमत् ॥ ३१ ॥
क्षुरप्रेण शिरः कायात् पातयामास पाण्डवः।
मूलम्
श्रुतर्वा विरथो राजन्नाददे खड्गचर्मणी।
अथास्याददतः खड्गं शतचन्द्रं च भानुमत् ॥ ३१ ॥
क्षुरप्रेण शिरः कायात् पातयामास पाण्डवः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! रथहीन हुए श्रुतर्वाने अपने हाथोंमें ढाल और तलवार ले ली। वह सौ चन्द्राकार चिह्नोंसे युक्त ढाल तथा अपनी प्रभासे चमकती हुई तलवार ले ही रहा था कि पाण्डुपुत्र भीमसेनने एक क्षुरप्रद्वारा उसके मस्तकको धड़से काट गिराया॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छिन्नोत्तमाङ्गस्य ततः क्षुरप्रेण महात्मना ॥ ३२ ॥
पपात कायः स रथाद् वसुधामनुनादयन्।
मूलम्
छिन्नोत्तमाङ्गस्य ततः क्षुरप्रेण महात्मना ॥ ३२ ॥
पपात कायः स रथाद् वसुधामनुनादयन्।
अनुवाद (हिन्दी)
महामनस्वी भीमसेनके क्षुरप्रसे मस्तक कट जानेपर उसका धड़ वसुधाको प्रतिध्वनित करता हुआ रथसे नीचे गिर पड़ा॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् निपतिते वीरे तावका भयमोहिताः ॥ ३३ ॥
अभ्यद्रवन्त संग्रामे भीमसेनं युयुत्सवः।
मूलम्
तस्मिन् निपतिते वीरे तावका भयमोहिताः ॥ ३३ ॥
अभ्यद्रवन्त संग्रामे भीमसेनं युयुत्सवः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस वीरके गिरते ही आपके सैनिक भयसे व्याकुल होनेपर भी संग्राममें जूझनेकी इच्छासे भीमसेनकी ओर दौड़े॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तानापतत एवाशु हतशेषाद् बलार्णवात् ॥ ३४ ॥
दंशितान् प्रतिजग्राह भीमसेनः प्रतापवान्।
मूलम्
तानापतत एवाशु हतशेषाद् बलार्णवात् ॥ ३४ ॥
दंशितान् प्रतिजग्राह भीमसेनः प्रतापवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
मरनेसे बचे हुए सैन्यसमूहसे निकलकर शीघ्रतापूर्वक अपने ऊपर आक्रमण करते हुए उन कवचधारी योद्धाओंको प्रतापी भीमसेनने आगे बढ़नेसे रोक दिया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते तु तं वै समासाद्य परिवव्रुः समन्ततः ॥ ३५ ॥
ततस्तु संवृतो भीमस्तावकान् निशितैः शरैः।
पीडयामास तान् सर्वान् सहस्राक्ष इवासुरान् ॥ ३६ ॥
मूलम्
ते तु तं वै समासाद्य परिवव्रुः समन्ततः ॥ ३५ ॥
ततस्तु संवृतो भीमस्तावकान् निशितैः शरैः।
पीडयामास तान् सर्वान् सहस्राक्ष इवासुरान् ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे योद्धा भीमसेनके पास पहुँचकर उन्हें चारों ओरसे घेरकर खड़े हो गये। तब जैसे इन्द्र असुरोंको नष्ट करते हैं, उसी प्रकार घिरे हुए भीमसेनने पैने बाणोंद्वारा आपके उन समस्त सैनिकोंको पीड़ित करना आरम्भ किया॥३५-३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पञ्चशतान् हत्वा सवरूथान् महारथान्।
जघान कुञ्जरानीकं पुनः सप्तशतं युधि ॥ ३७ ॥
हत्वा शतसहस्राणि पत्तीनां परमेषुभिः।
वाजिनां च शतान्यष्टौ पाण्डवः स्म विराजते ॥ ३८ ॥
मूलम्
ततः पञ्चशतान् हत्वा सवरूथान् महारथान्।
जघान कुञ्जरानीकं पुनः सप्तशतं युधि ॥ ३७ ॥
हत्वा शतसहस्राणि पत्तीनां परमेषुभिः।
वाजिनां च शतान्यष्टौ पाण्डवः स्म विराजते ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर भीमसेनने आवरणोंसहित पाँच सौ विशाल रथोंका संहार करके युद्धमें सात सौ हाथियोंकी सेनाको पुनः मार गिराया। फिर उत्तम बाणोंद्वारा एक लाख पैदलों और सवारोंसहित आठ सौ घोड़ोंका वध करके पाण्डव भीमसेन विजयश्रीसे सुशोभित होने लगे॥३७-३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु कौन्तेयो हत्वा युद्धे सुतांस्तव।
मेने कृतार्थमात्मानं सफलं जन्म च प्रभो ॥ ३९ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु कौन्तेयो हत्वा युद्धे सुतांस्तव।
मेने कृतार्थमात्मानं सफलं जन्म च प्रभो ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! इस प्रकार कुन्तीपुत्र भीमसेनने युद्धमें आपके पुत्रोंका विनाश करके अपने-आपको कृतार्थ और जन्मको सफल हुआ समझा॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तथा युद्ध्यमानं च विनिघ्नन्तं च तावकान्।
ईक्षितुं नोत्सहन्ते स्म तव सैन्या नराधिप ॥ ४० ॥
मूलम्
तं तथा युद्ध्यमानं च विनिघ्नन्तं च तावकान्।
ईक्षितुं नोत्सहन्ते स्म तव सैन्या नराधिप ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! इस तरह युद्ध और आपके पुत्रोंका वध करते हुए भीमसेनको आपके सैनिक देखनेका भी साहस नहीं कर पाते थे॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विद्राव्य च कुरून् सर्वांस्तांश्च हत्वा पदानुगान्।
दोर्भ्यां शब्दं ततश्चक्रे त्रासयानो महाद्विपान् ॥ ४१ ॥
मूलम्
विद्राव्य च कुरून् सर्वांस्तांश्च हत्वा पदानुगान्।
दोर्भ्यां शब्दं ततश्चक्रे त्रासयानो महाद्विपान् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
समस्त कौरवोंको भगाकर और उनके अनुगामी सैनिकोंका संहार करके भीमसेनने बड़े-बड़े हाथियोंको डराते हुए अपनी दोनों भुजाओंद्वारा ताल ठोंकनेका शब्द किया॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतभूयिष्ठयोधा तु तव सेना विशाम्पते।
किंचिच्छेषा महाराज कृपणं समपद्यत ॥ ४२ ॥
मूलम्
हतभूयिष्ठयोधा तु तव सेना विशाम्पते।
किंचिच्छेषा महाराज कृपणं समपद्यत ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! महाराज! आपकी सेनाके अधिकांश योद्धा मारे गये और बहुत थोड़े सैनिक शेष रह गये; अतः वह सेना अत्यन्त दीन हो गयी थी॥४२॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि एकादशधार्तराष्ट्रवधे षड्विंशोऽध्यायः ॥ २६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें धृतराष्ट्रके ग्यारह पुत्रोंका वधविषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२६॥