भागसूचना
द्वाविंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
दुर्योधनका पराक्रम और उभयपक्षकी सेनाओंका घोर संग्राम
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रस्तु ते महाराज रथस्थो रथिनां वरः।
दुरुत्सहो बभौ युद्धे यथा रुद्रः प्रतापवान् ॥ १ ॥
मूलम्
पुत्रस्तु ते महाराज रथस्थो रथिनां वरः।
दुरुत्सहो बभौ युद्धे यथा रुद्रः प्रतापवान् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— महाराज! रथपर बैठा हुआ रथियोंमें श्रेष्ठ आपका प्रतापी पुत्र दुर्योधन रुद्रदेवके समान युद्धमें शत्रुओंके लिये दुःसह प्रतीत होने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य बाणसहस्रैस्तु प्रच्छन्ना ह्यभवन्मही।
परांश्च सिषिचे बाणैर्धाराभिरिव पर्वतान् ॥ २ ॥
मूलम्
तस्य बाणसहस्रैस्तु प्रच्छन्ना ह्यभवन्मही।
परांश्च सिषिचे बाणैर्धाराभिरिव पर्वतान् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके सहस्रों बाणोंसे वहाँकी सारी पृथ्वी आच्छादित हो गयी। जैसे मेघ जलकी धाराओंसे पर्वतको सींचते हैं, उसी प्रकार वह शत्रुओंको अपनी बाणधारासे नहलाने लगा॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न च सोऽस्ति पुमान् कश्चित् पाण्डवानां बलार्णवे।
हयो गजो रथो वापि यः स्याद् बाणैरविक्षतः ॥ ३ ॥
मूलम्
न च सोऽस्ति पुमान् कश्चित् पाण्डवानां बलार्णवे।
हयो गजो रथो वापि यः स्याद् बाणैरविक्षतः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डवोंके सैन्यसागरमें कोई भी ऐसा मनुष्य, घोड़ा, हाथी अथवा रथ नहीं था, जो दुर्योधनके बाणोंसे क्षत-विक्षत न हुआ हो॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यं यं हि समरे योधं प्रपश्यामि विशाम्पते।
स स बाणैश्चितोऽभूद् वै पुत्रेण तव भारत ॥ ४ ॥
मूलम्
यं यं हि समरे योधं प्रपश्यामि विशाम्पते।
स स बाणैश्चितोऽभूद् वै पुत्रेण तव भारत ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! भरतनन्दन! मैं समरांगणमें जिस-जिस योद्धाको देखता था, वही-वही आपके पुत्रके बाणोंसे व्याप्त हुआ दिखायी देता था॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा सैन्येन रजसा समुद्भूतेन वाहिनी।
प्रत्यदृश्यत संछन्ना तथा बाणैर्महात्मनः ॥ ५ ॥
मूलम्
यथा सैन्येन रजसा समुद्भूतेन वाहिनी।
प्रत्यदृश्यत संछन्ना तथा बाणैर्महात्मनः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे सैनिकोंद्वारा उड़ायी हुई धूलसे सारी सेना आच्छादित हो गयी थी, उसी प्रकार वह महामनस्वी दुर्योधनके बाणोंसे ढकी दिखायी देती थी॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाणभूतामपश्याम पृथिवीं पृथिवीपते ।
दुर्योधनेन प्रकृतां क्षिप्रहस्तेन धन्विना ॥ ६ ॥
मूलम्
बाणभूतामपश्याम पृथिवीं पृथिवीपते ।
दुर्योधनेन प्रकृतां क्षिप्रहस्तेन धन्विना ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथ्वीपते! हमने देखा कि शीघ्रतापूर्वक हाथ चलानेवाले धनुर्धर वीर दुर्योधनने सारी रणभूमिको बाणमयी कर दिया है॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषु योधसहस्रेषु तावकेषु परेषु च।
एको दुर्योधनो ह्यासीत् पुमानिति मतिर्मम ॥ ७ ॥
मूलम्
तेषु योधसहस्रेषु तावकेषु परेषु च।
एको दुर्योधनो ह्यासीत् पुमानिति मतिर्मम ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपके या शत्रुपक्षके सहस्रों योद्धाओंमें मुझे एकमात्र दुर्योधन ही वीर पुरुष जान पड़ता था॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य विक्रमम्।
यदेकं सहिताः पार्था नाभ्यवर्तन्त भारत ॥ ८ ॥
मूलम्
तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य विक्रमम्।
यदेकं सहिताः पार्था नाभ्यवर्तन्त भारत ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! हमने वहाँ आपके पुत्रका यह अद्भुत पराक्रम देखा कि समस्त पाण्डव एक साथ मिलकर भी उस एकाकी वीरका सामना नहीं कर सके॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरं शतेनाजौ विव्याध भरतर्षभ।
भीमसेनं च सप्तत्या सहदेवं च पञ्चभिः ॥ ९ ॥
नकुलं च चतुःषष्ट्या धृष्टद्युम्नं च पञ्चभिः।
सप्तभिर्द्रौपदेयांश्च त्रिभिर्विव्याध सात्यकिम् ॥ १० ॥
धनुश्चिच्छेद भल्लेन सहदेवस्य मारिष।
मूलम्
युधिष्ठिरं शतेनाजौ विव्याध भरतर्षभ।
भीमसेनं च सप्तत्या सहदेवं च पञ्चभिः ॥ ९ ॥
नकुलं च चतुःषष्ट्या धृष्टद्युम्नं च पञ्चभिः।
सप्तभिर्द्रौपदेयांश्च त्रिभिर्विव्याध सात्यकिम् ॥ १० ॥
धनुश्चिच्छेद भल्लेन सहदेवस्य मारिष।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उसने युद्धस्थलमें युधिष्ठिरको सौ, भीमसेनको सत्तर, सहदेवको पाँच, नकुलको चौंसठ, धृष्टद्युम्नको पाँच, द्रौपदीके पुत्रोंको सात तथा सात्यकिको तीन बाणोंसे घायल कर दिया। मान्यवर! साथ ही उसने एक भल्ल मारकर सहदेवका धनुष भी काट डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदपास्य धनुश्छिन्नं माद्रीपुत्रः प्रतापवान् ॥ ११ ॥
अभ्यद्रवत राजानं प्रगृह्यान्यन्महद् धनुः।
ततो दुर्योधनं संख्ये विव्याध दशभिः शरैः ॥ १२ ॥
मूलम्
तदपास्य धनुश्छिन्नं माद्रीपुत्रः प्रतापवान् ॥ ११ ॥
अभ्यद्रवत राजानं प्रगृह्यान्यन्महद् धनुः।
ततो दुर्योधनं संख्ये विव्याध दशभिः शरैः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रतापी माद्रीपुत्र सहदेवने उस कटे हुए धनुषको फेंककर दूसरा विशाल धनुष हाथमें ले राजा दुर्योधनपर धावा किया और युद्धस्थलमें दस बाणोंसे उसे घायल कर दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नकुलस्तु ततो वीरो राजानं नवभिः शरैः।
घोररूपैर्महेष्वासो विव्याध च ननाद च ॥ १३ ॥
मूलम्
नकुलस्तु ततो वीरो राजानं नवभिः शरैः।
घोररूपैर्महेष्वासो विव्याध च ननाद च ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद महाधनुर्धर वीर नकुलने नौ भयंकर बाणोंद्वारा राजा दुर्योधनको बींध डाला और उच्चस्वरसे गर्जना की॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सात्यकिश्चैव राजानं शरेणानतपर्वणा ।
द्रौपदेयास्त्रिसप्तत्या धर्मराजश्च पञ्चभिः ॥ १४ ॥
अशीत्या भीमसेनश्च शरै राजानमार्पयन्।
मूलम्
सात्यकिश्चैव राजानं शरेणानतपर्वणा ।
द्रौपदेयास्त्रिसप्तत्या धर्मराजश्च पञ्चभिः ॥ १४ ॥
अशीत्या भीमसेनश्च शरै राजानमार्पयन्।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर सात्यकिने भी झुकी हुई गाँठवाले एक बाणसे राजाको घायल कर दिया। तदनन्तर द्रौपदीके पुत्रोंने राजा दुर्योधनको तिहत्तर, धर्मराजने पाँच और भीमसेनने अस्सी बाण मारे॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समन्तात् कीर्यमाणस्तु बाणसंघैर्महात्मभिः ॥ १५ ॥
न चचाल महाराज सर्वसैन्यस्य पश्यतः।
मूलम्
समन्तात् कीर्यमाणस्तु बाणसंघैर्महात्मभिः ॥ १५ ॥
न चचाल महाराज सर्वसैन्यस्य पश्यतः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! वे महामनस्वी वीर सारी सेनाके देखते-देखते दुर्योधनपर चारों ओरसे बाणसमूहोंकी वर्षा कर रहे थे तो भी वह विचलित नहीं हुआ॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लाघवं सौष्ठवं चापि वीर्यं चापि महात्मनः ॥ १६ ॥
अति सर्वाणि भूतानि ददृशुः सर्वमानवाः।
मूलम्
लाघवं सौष्ठवं चापि वीर्यं चापि महात्मनः ॥ १६ ॥
अति सर्वाणि भूतानि ददृशुः सर्वमानवाः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस महामनस्वी वीरकी फुर्ती, अस्त्र-संचालनका सुन्दर ढंग तथा पराक्रम—इन सबको सब लोगोंने सम्पूर्ण प्राणियोंसे बढ़-चढ़कर देखा॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धार्तराष्ट्रा हि राजेन्द्र योधास्तु स्वल्पमन्तरम् ॥ १७ ॥
अपश्यमाना राजानं पर्यवर्तन्त दंशिताः।
मूलम्
धार्तराष्ट्रा हि राजेन्द्र योधास्तु स्वल्पमन्तरम् ॥ १७ ॥
अपश्यमाना राजानं पर्यवर्तन्त दंशिताः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! आपके योद्धा थोड़ा-सा भी अन्तर न देखकर कवच आदिसे सुसज्जित हो राजा दुर्योधनको चारों ओरसे घेरकर खड़े हो गये॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामापततां घोरस्तुमुलः समपद्यत ॥ १८ ॥
क्षुब्धस्य हि समुद्रस्य प्रावृट्काले यथा स्वनः।
मूलम्
तेषामापततां घोरस्तुमुलः समपद्यत ॥ १८ ॥
क्षुब्धस्य हि समुद्रस्य प्रावृट्काले यथा स्वनः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे वर्षाकालमें विक्षुब्ध हुए समुद्रकी भीषण गर्जना सुनायी देती है, उसी प्रकार उन आक्रमणकारी कौरवोंका घोर एवं भयंकर कोलाहल प्रकट होने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समासाद्य रणे ते तु राजानमपराजितम् ॥ १९ ॥
प्रत्युद्ययुर्महेष्वासाः पाण्डवानाततायिनः ।
मूलम्
समासाद्य रणे ते तु राजानमपराजितम् ॥ १९ ॥
प्रत्युद्ययुर्महेष्वासाः पाण्डवानाततायिनः ।
अनुवाद (हिन्दी)
वे महाधनुर्धर कौरवयोद्धा रणभूमिमें अपराजित राजा दुर्योधनके पास पहुँचकर आततायी पाण्डवोंपर जा चढ़े॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनं रणे क्रुद्धो द्रोणपुत्रो न्यवारयत् ॥ २० ॥
नानाबाणैर्महाराज प्रमुक्तैः सर्वतोदिशम् ।
नाज्ञायन्त रणे वीरा न दिशः प्रदिशः कुतः ॥ २१ ॥
मूलम्
भीमसेनं रणे क्रुद्धो द्रोणपुत्रो न्यवारयत् ॥ २० ॥
नानाबाणैर्महाराज प्रमुक्तैः सर्वतोदिशम् ।
नाज्ञायन्त रणे वीरा न दिशः प्रदिशः कुतः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! रणक्षेत्रमें कुपित हुए द्रोणपुत्र अश्वत्थामाने सम्पूर्ण दिशाओंमें छोड़े गये अनेक प्रकारके बाणोंद्वारा भीमसेनको आगे बढ़नेसे रोक दिया। उस समय संग्राममें न तो वीरोंकी पहचान होती थी और न दिशाओंकी, फिर अवान्तर-दिशाओं (कोणों)-की तो बात ही क्या है?॥२०-२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावुभौ क्रूरकर्माणावुभौ भारत दुःसहौ।
घोररूपमयुध्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ ॥ २२ ॥
मूलम्
तावुभौ क्रूरकर्माणावुभौ भारत दुःसहौ।
घोररूपमयुध्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! वे दोनों वीर क्रूरतापूर्ण कर्म करनेवाले और शत्रुओंके लिये दुःसह थे। अतः एक-दूसरेके प्रहारका भरपूर जवाब देनेकी इच्छा रखकर वे घोर युद्ध करने लगे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रासयन्तौ दिशः सर्वा ज्याक्षेपकठिनत्वचौ।
शकुनिस्तु रणे वीरो युधिष्ठिरमपीडयत् ॥ २३ ॥
मूलम्
त्रासयन्तौ दिशः सर्वा ज्याक्षेपकठिनत्वचौ।
शकुनिस्तु रणे वीरो युधिष्ठिरमपीडयत् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रत्यंचा खींचनेसे उनके हाथोंकी त्वचा बहुत कठोर हो गयी थी और वे सम्पूर्ण दिशाओंको आतंकित कर रहे थे। दूसरी ओर वीर शकुनि रणभूमिमें युधिष्ठिरको पीड़ा देने लगा॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याश्वांश्चतुरो हत्वा सुबलस्य सुतो विभो।
नादं चकार बलवत् सर्वसैन्यानि कोपयन् ॥ २४ ॥
मूलम्
तस्याश्वांश्चतुरो हत्वा सुबलस्य सुतो विभो।
नादं चकार बलवत् सर्वसैन्यानि कोपयन् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! सुबलके उस पुत्रने युधिष्ठिरके चारों घोड़ोंको मारकर सम्पूर्ण सेनाओंका क्रोध बढ़ाते हुए बड़े चोरसे सिंहनाद किया॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्मिन्नन्तरे वीरं राजानमपराजितम् ।
अपोवाह रथेनाजौ सहदेवः प्रतापवान् ॥ २५ ॥
मूलम्
एतस्मिन्नन्तरे वीरं राजानमपराजितम् ।
अपोवाह रथेनाजौ सहदेवः प्रतापवान् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी बीचमें प्रतापी सहदेव युद्धमें किसीसे परास्त न होनेवाले वीर राजा युधिष्ठिरको अपने रथपर बिठाकर दूर हटा ले गये॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्यं रथमास्थाय धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
शकुनिं नवभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः ॥ २६ ॥
मूलम्
अथान्यं रथमास्थाय धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
शकुनिं नवभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर धर्मपुत्र युधिष्ठिरने दूसरे रथपर आरूढ़ हो पुनः धावा किया और शकुनिको पहले नौ बाणोंसे घायल करके फिर पाँच बाणोंसे बींध डाला॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ननाद च महानादं प्रवरः सर्वधन्विनाम्।
तद् युद्धमभवच्चित्रं घोररूपं च मारिष ॥ २७ ॥
प्रेक्षतां प्रीतिजननं सिद्धचारणसेवितम् ।
मूलम्
ननाद च महानादं प्रवरः सर्वधन्विनाम्।
तद् युद्धमभवच्चित्रं घोररूपं च मारिष ॥ २७ ॥
प्रेक्षतां प्रीतिजननं सिद्धचारणसेवितम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद सम्पूर्ण धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ युधिष्ठिरने बड़े जोरसे सिंहनाद किया। मान्यवर! उनका वह युद्ध विचित्र, भयंकर, सिद्धों और चारणोंद्वारा सेवित तथा दर्शकोंका हर्ष बढ़ानेवाला था॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उलूकस्तु महेष्वासं नकुलं युद्धदुर्मदम् ॥ २८ ॥
अभ्यद्रवदमेयात्मा शरवर्षैः समन्ततः ।
मूलम्
उलूकस्तु महेष्वासं नकुलं युद्धदुर्मदम् ॥ २८ ॥
अभ्यद्रवदमेयात्मा शरवर्षैः समन्ततः ।
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरी ओर अमेय आत्मबलसे सम्पन्न उलूकने महाधनुर्धर रणदुर्मद नकुलपर चारों ओरसे बाणोंकी वर्षा करते हुए धावा किया॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव नकुलः शूरः सौबलस्य सुतं रणे ॥ २९ ॥
शरवर्षेण महता समन्तात् पर्यवारयत्।
मूलम्
तथैव नकुलः शूरः सौबलस्य सुतं रणे ॥ २९ ॥
शरवर्षेण महता समन्तात् पर्यवारयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार शूरवीर नकुलने रणभूमिमें शकुनिके पुत्रको बड़ी भारी बाणवर्षाके द्वारा सब ओरसे अवरुद्ध कर दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ तत्र समरे वीरौ कुलपुत्रौ महारथौ ॥ ३० ॥
योधयन्तावपश्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ ।
मूलम्
तौ तत्र समरे वीरौ कुलपुत्रौ महारथौ ॥ ३० ॥
योधयन्तावपश्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ ।
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों वीर महारथी उत्तम कुलमें उत्पन्न हुए थे! अतः समरांगणमें एक-दूसरेके प्रहारका प्रतीकार करनेकी इच्छा रखकर जूझते दिखायी देते थे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव कृतवर्माणं शैनेयः शत्रुतापनः ॥ ३१ ॥
योधयन् शुशुभे राजन् बलिं शक्र इवाहवे।
मूलम्
तथैव कृतवर्माणं शैनेयः शत्रुतापनः ॥ ३१ ॥
योधयन् शुशुभे राजन् बलिं शक्र इवाहवे।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी तरह शत्रुसंतापी सात्यकि कृतवर्माके साथ युद्ध करते हुए युद्धस्थलमें उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसे इन्द्र बलिके साथ॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनो धनुश्छित्त्वा धृष्टद्युम्नस्य संयुगे ॥ ३२ ॥
अथैनं छिन्नधन्वानं विव्याध निशितैः शरैः।
मूलम्
दुर्योधनो धनुश्छित्त्वा धृष्टद्युम्नस्य संयुगे ॥ ३२ ॥
अथैनं छिन्नधन्वानं विव्याध निशितैः शरैः।
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्योधनने युद्धस्थलमें धृष्टद्युम्नका धनुष काट दिया और धनुष कट जानेपर उन्हें पैने बाणोंसे बींध डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नोऽपि समरे प्रगृह्य परमायुधम् ॥ ३३ ॥
राजानं योधयामास पश्यतां सर्वधन्विनाम्।
मूलम्
धृष्टद्युम्नोऽपि समरे प्रगृह्य परमायुधम् ॥ ३३ ॥
राजानं योधयामास पश्यतां सर्वधन्विनाम्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब धृष्टद्युम्न भी दूसरा उत्तम धनुष लेकर समरभूमिमें सम्पूर्ण धनुर्धरोंके देखते-देखते राजा दुर्योधनके साथ युद्ध करने लगे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोर्युद्धं महच्चासीत् संग्रामे भरतर्षभ ॥ ३४ ॥
प्रभिन्नयोर्यथा सक्तं मत्तयोर्वरहस्तिनोः ।
मूलम्
तयोर्युद्धं महच्चासीत् संग्रामे भरतर्षभ ॥ ३४ ॥
प्रभिन्नयोर्यथा सक्तं मत्तयोर्वरहस्तिनोः ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! रणभूमिमें उन दोनोंका महान् युद्ध ऐसा जान पड़ता था, मानो मदकी धारा बहानेवाले दो उत्तम मतवाले हाथी आपसमें जूझ रहे हों॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गौतमस्तु रणे क्रुद्धो द्रौपदेयान् महाबलान् ॥ ३५ ॥
विव्याध बहुभिः शूरः शरैः संनतपर्वभिः।
मूलम्
गौतमस्तु रणे क्रुद्धो द्रौपदेयान् महाबलान् ॥ ३५ ॥
विव्याध बहुभिः शूरः शरैः संनतपर्वभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरी ओर शूरवीर कृपाचार्यने रणभूमिमें कुपित हो महाबली द्रौपदीपुत्रोंको झुकी हुई गाँठवाले बहुत-से बाणोंद्वारा घायल कर दिया॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य तैरभवद् युद्धमिन्द्रियैरिव देहिनः ॥ ३६ ॥
घोररूपमसंवार्यं निर्मर्यादमवर्तत ।
मूलम्
तस्य तैरभवद् युद्धमिन्द्रियैरिव देहिनः ॥ ३६ ॥
घोररूपमसंवार्यं निर्मर्यादमवर्तत ।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे देहधारी जीवात्माका पाँचों इन्द्रियोंके साथ युद्ध हो रहा हो, उसी प्रकार उन पाँचों भाइयोंके साथ कृपाचार्यका युद्ध हो रहा था। धीरे-धीरे वह युद्ध अत्यन्त घोर, अनिवार्य और अमर्यादित हो गया॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते च सम्पीडयामासुरिन्द्रियाणीव बालिशम् ॥ ३७ ॥
स च तान् प्रति संरब्धः प्रत्ययोधयदाहवे।
मूलम्
ते च सम्पीडयामासुरिन्द्रियाणीव बालिशम् ॥ ३७ ॥
स च तान् प्रति संरब्धः प्रत्ययोधयदाहवे।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे इन्द्रियाँ मूढ़ मनुष्यको पीड़ा देती हैं, उसी प्रकार वे पाँचों भाई कृपाचार्यको पीड़ित करने लगे। कृपाचार्य भी अत्यन्त रोषमें भरकर रणक्षेत्रमें उन सबके साथ युद्ध कर रहे थे॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं चित्रमभूद् युद्धं तस्य तैः सह भारत ॥ ३८ ॥
उत्थायोत्थाय हि यथा देहिनामिन्द्रियैर्विभो।
मूलम्
एवं चित्रमभूद् युद्धं तस्य तैः सह भारत ॥ ३८ ॥
उत्थायोत्थाय हि यथा देहिनामिन्द्रियैर्विभो।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! उनका उन द्रौपदीपुत्रोंके साथ ऐसा विचित्र युद्ध होने लगा, जैसे बारंबार उठ-उठकर विषयोंकी ओर प्रवृत्त होनेवाली इन्द्रियोंके साथ देहधारियोंका युद्ध होता रहता है॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नराश्चैव नरैः सार्धं दन्तिनो दन्तिभिस्तथा ॥ ३९ ॥
हया हयैः समासक्ता रथिनो रथिभिः सह।
संकुलं चाभवद् भूयो घोररूपं विशाम्पते ॥ ४० ॥
मूलम्
नराश्चैव नरैः सार्धं दन्तिनो दन्तिभिस्तथा ॥ ३९ ॥
हया हयैः समासक्ता रथिनो रथिभिः सह।
संकुलं चाभवद् भूयो घोररूपं विशाम्पते ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उस समय मनुष्य मनुष्योंसे, हाथी हाथियोंसे, घोड़े घोड़ोंसे और रथी रथियोंसे भिड़ गये थे। फिर उनमें अत्यन्त घोर घमासान युद्ध होने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इदं चित्रमिदं घोरमिदं रौद्रमिति प्रभो।
युद्धान्यासन् महाराज घोराणि च बहूनि च ॥ ४१ ॥
मूलम्
इदं चित्रमिदं घोरमिदं रौद्रमिति प्रभो।
युद्धान्यासन् महाराज घोराणि च बहूनि च ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! महाराज! यह विचित्र, यह घोर, यह रौद्र युद्ध—इस प्रकार बहुत-से भीषण युद्ध चलने लगे॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते समासाद्य समरे परस्परमरिंदमाः।
व्यनदंश्चैव जघ्नुश्च समासाद्य महाहवे ॥ ४२ ॥
मूलम्
ते समासाद्य समरे परस्परमरिंदमाः।
व्यनदंश्चैव जघ्नुश्च समासाद्य महाहवे ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंका दमन करनेवाले वे समस्त योद्धा समरांगणमें एक-दूसरेसे भिड़कर उस महायुद्धमें परस्पर टक्कर लेते हुए प्रहार और सिंहनाद करने लगे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां पत्रसमुद्भूतं रजस्तीव्रमदृश्यत ।
वातेन चोद्धतं राजन् धावद्भिश्चाश्वसादिभिः ॥ ४३ ॥
मूलम्
तेषां पत्रसमुद्भूतं रजस्तीव्रमदृश्यत ।
वातेन चोद्धतं राजन् धावद्भिश्चाश्वसादिभिः ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उनके वाहनोंसे, हवासे और दौड़ते हुए घुड़सवारोंसे उड़ायी गयी भयंकर धूल सब ओर व्याप्त दिखायी देती थी॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथनेमिसमुद्भूतं निःश्वासैश्चापि दन्तिनाम् ।
रजः संध्याभ्रकलिलं दिवाकरपथं ययौ ॥ ४४ ॥
मूलम्
रथनेमिसमुद्भूतं निःश्वासैश्चापि दन्तिनाम् ।
रजः संध्याभ्रकलिलं दिवाकरपथं ययौ ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रथके पहियों और हाथियोंके उच्छ्वासोंसे ऊपर उठायी हुई धूल संध्याकालके मेघोंके समान सूर्यके मार्गमें छा गयी थी॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रजसा तेन सम्पृक्तो भास्करो निष्प्रभः कृतः।
संछादिताभवद् भूमिस्ते च शूरा महारथाः ॥ ४५ ॥
मूलम्
रजसा तेन सम्पृक्तो भास्करो निष्प्रभः कृतः।
संछादिताभवद् भूमिस्ते च शूरा महारथाः ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस धूलके सम्पर्कमें आकर सूर्य प्रभाहीन हो गये थे तथा पृथ्वी और वे महारथी शूरवीर भी ढक गये थे॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुहूर्तादिव संवृत्तं नीरजस्कं समन्ततः।
वीरशोणितसिक्तायां भूमौ भरतसत्तम ॥ ४६ ॥
मूलम्
मुहूर्तादिव संवृत्तं नीरजस्कं समन्ततः।
वीरशोणितसिक्तायां भूमौ भरतसत्तम ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर दो ही घड़ीमें वीरोंके रक्तसे धरती सिंच उठी और सब ओरकी धूल बैठ जानेके कारण रणक्षेत्र निर्मल हो गया॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उपाशाम्यत् ततस्तीव्रं तद् रजो घोरदर्शनम्।
ततोऽपश्यमहं भूयो द्वन्द्वयुद्धानि भारत ॥ ४७ ॥
यथाप्राणं यथाश्रेष्ठं मध्याह्ने वै सुदारुणे।
वर्मणां तत्र राजेन्द्र व्यदृश्यन्तोज्ज्वलाः प्रभाः ॥ ४८ ॥
मूलम्
उपाशाम्यत् ततस्तीव्रं तद् रजो घोरदर्शनम्।
ततोऽपश्यमहं भूयो द्वन्द्वयुद्धानि भारत ॥ ४७ ॥
यथाप्राणं यथाश्रेष्ठं मध्याह्ने वै सुदारुणे।
वर्मणां तत्र राजेन्द्र व्यदृश्यन्तोज्ज्वलाः प्रभाः ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह भयंकर दिखायी देनेवाली तीव्र धूलि सर्वथा शान्त हो गयी। भारत! राजेन्द्र! तब मैं फिर उस दारुण मध्याह्नकालमें अपने बल और श्रेष्ठताके अनुसार अनेक द्वन्द्वयुद्ध देखने लगा। योद्धाओंके कवचोंकी प्रभा वहाँ अत्यन्त उज्ज्वल दिखायी देती थी॥४७-४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शब्दश्च तुमुलः संख्ये शराणां पततामभूत्।
महावेणुवनस्येव दह्यमानस्य पर्वते ॥ ४९ ॥
मूलम्
शब्दश्च तुमुलः संख्ये शराणां पततामभूत्।
महावेणुवनस्येव दह्यमानस्य पर्वते ॥ ४९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे पर्वतपर जलते हुए विशाल बाँसोंके वनसे प्रकट होनेवाला चटचट शब्द सुनायी देता है, उसी प्रकार युद्धस्थलमें बाणोंके गिरनेका भयंकर शब्द वहाँ गूँज रहा था॥४९॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि संकुलयुद्धे द्वाविंशोऽध्यायः ॥ २२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें संकुलयुद्धविषयक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२२॥