०१९

भागसूचना

एकोनविंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

पाण्डवसैनिकोंका आपसमें बातचीत करते हुए पाण्डवोंकी प्रशंसा और धृतराष्ट्रकी निन्दा करना तथा कौरव-सेनाका पलायन, भीमद्वारा इक्कीस हजार पैदलोंका संहार और दुर्योधनका अपनी सेनाको उत्साहित करना

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

पातिते युधि दुर्धर्षे मद्रराजे महारथे।
तावकास्तव पुत्राश्च प्रायशो विमुखाभवन् ॥ १ ॥

मूलम्

पातिते युधि दुर्धर्षे मद्रराजे महारथे।
तावकास्तव पुत्राश्च प्रायशो विमुखाभवन् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! दुर्जय महारथी मद्रराज शल्यके मारे जानेपर आपके सैनिक और पुत्र प्रायः संग्रामसे विमुख हो गये॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वणिजो नावि भिन्नायां यथागाधेऽप्लवेऽर्णवे।
अपारे पतिमच्छन्तो हते शूरे महात्मना ॥ २ ॥
मद्रराजे महाराज वित्रस्ताः शरविक्षताः।

मूलम्

वणिजो नावि भिन्नायां यथागाधेऽप्लवेऽर्णवे।
अपारे पतिमच्छन्तो हते शूरे महात्मना ॥ २ ॥
मद्रराजे महाराज वित्रस्ताः शरविक्षताः।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! जैसे अगाध महासागरमें नाव टूट जानेपर उस नौकारहित अपार समुद्रसे पार जानेकी इच्छावाले व्यापारी व्याकुल हो उठते हैं, उसी प्रकार महात्मा युधिष्ठिरके द्वारा शूरवीर मद्रराज शल्यके मारे जानेपर आपके सैनिक बाणोंसे क्षत-विक्षत एवं भयभीत हो बड़ी घबराहटमें पड़ गये॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनाथा नाथमिच्छन्तो मृगाः सिंहार्दिता इव ॥ ३ ॥
वृषा यथा भग्नशृङ्गाः शीर्णदन्ता यथा गजाः।

मूलम्

अनाथा नाथमिच्छन्तो मृगाः सिंहार्दिता इव ॥ ३ ॥
वृषा यथा भग्नशृङ्गाः शीर्णदन्ता यथा गजाः।

अनुवाद (हिन्दी)

वे अपनेको अनाथ समझते हुए किसी नाथ (सहायक) की इच्छा रखते थे और सिंहके सताये हुए मृगों, टूटे सींगवाले साँड़ों तथा जीर्ण-शीर्ण दाँतोंवाले हाथियोंके समान असमर्थ हो गये थे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मध्याह्ने प्रत्यपायाम निर्जिताजातशत्रुणा ॥ ४ ॥
न संधातुमनीकानि न च राजन् पराक्रमे।
आसीद्‌ बुद्धिर्हते शल्ये भूयो योधस्य कस्यचित् ॥ ५ ॥

मूलम्

मध्याह्ने प्रत्यपायाम निर्जिताजातशत्रुणा ॥ ४ ॥
न संधातुमनीकानि न च राजन् पराक्रमे।
आसीद्‌ बुद्धिर्हते शल्ये भूयो योधस्य कस्यचित् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! अजातशत्रु युधिष्ठिरसे पराजित हो दोपहरके समय हमलोग युद्धसे भाग चले थे। शल्यके मारे जानेसे किसी भी योद्धाके मनमें सेनाओंको संगठित करने तथा पराक्रम दिखानेका उत्साह नहीं होता था॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मे द्रोणे च निहते सूतपुत्रे च भारत।
यद् दुःखं तव योधानां भयं चासीद् विशाम्पते ॥ ६ ॥
तद् भयं स च नः शोको भय एवाभ्यवर्तत।

मूलम्

भीष्मे द्रोणे च निहते सूतपुत्रे च भारत।
यद् दुःखं तव योधानां भयं चासीद् विशाम्पते ॥ ६ ॥
तद् भयं स च नः शोको भय एवाभ्यवर्तत।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! प्रजानाथ! भीष्म, द्रोण और सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर आपके योद्धाओंको जो दुःख और भय प्राप्त हुआ था, वही भय और वही शोक पुनः (शल्यके मारे जानेपर) हमारे सामने उपस्थित हुआ॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निराशाश्च जये तस्मिन् हते शल्ये महारथे ॥ ७ ॥
हतप्रवीरा विध्वस्ता निकृत्ताश्च शितैः शरैः।

मूलम्

निराशाश्च जये तस्मिन् हते शल्ये महारथे ॥ ७ ॥
हतप्रवीरा विध्वस्ता निकृत्ताश्च शितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके प्रमुख वीर मारे गये थे, वे कौरवसैनिक महारथी शल्यका वध हो जानेपर पैने बाणोंसे क्षत-विक्षत और विध्वस्त हो विजयकी ओरसे निराश हो गये थे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मद्रराजे हते राजन् योधास्ते प्राद्रवन् भयात् ॥ ८ ॥
अश्वानन्ये गजानन्ये रथानन्ये महारथाः।
आरुह्य जवसम्पन्नाः पादाताः प्राद्रवंस्तथा ॥ ९ ॥

मूलम्

मद्रराजे हते राजन् योधास्ते प्राद्रवन् भयात् ॥ ८ ॥
अश्वानन्ये गजानन्ये रथानन्ये महारथाः।
आरुह्य जवसम्पन्नाः पादाताः प्राद्रवंस्तथा ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! मद्रराजकी मृत्यु हो जानेपर आपके वे सभी योद्धा भयके मारे भागने लगे। कुछ सैनिक घोड़ोंपर, कुछ हाथियोंपर और दूसरे महारथी रथोंपर आरूढ़ हो बड़े वेगसे भागे। पैदल सैनिक भी वहाँसे भाग खड़े हुए॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्विसाहस्राश्च मातङ्गा गिरिरूपाः प्रहारिणः।
सम्प्राद्रवन्‌ हते शल्ये अङ्कुशाङ्‌गुष्ठनोदिताः ॥ १० ॥

मूलम्

द्विसाहस्राश्च मातङ्गा गिरिरूपाः प्रहारिणः।
सम्प्राद्रवन्‌ हते शल्ये अङ्कुशाङ्‌गुष्ठनोदिताः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दो हजार प्रहारकुशल पर्वताकार मतवाले हाथी शल्यके मारे जानेपर अंकुशों और पैरके अँगूठोंसे प्रेरित हो तीव्र गतिसे पलायन करने लगे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते रणाद् भरतश्रेष्ठ तावकाः प्राद्रवन् दिशः।
धावतश्चाप्यपश्याम श्वसमानान् शराहतान् ॥ ११ ॥

मूलम्

ते रणाद् भरतश्रेष्ठ तावकाः प्राद्रवन् दिशः।
धावतश्चाप्यपश्याम श्वसमानान् शराहतान् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! आपके वे सैनिक रणभूमिसे सम्पूर्ण दिशाओंकी ओर भागे थे। हमने देखा, वे बाणोंसे क्षत-विक्षत हो हाँफते हुए दौड़े जा रहे हैं॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् प्रभग्नान्‌ द्रुतान्‌ दृष्ट्वा हतोत्साहान् पराजितान्।
अभ्यवर्तन्त पञ्चालाः पाण्डवाश्च जयैषिणः ॥ १२ ॥

मूलम्

तान् प्रभग्नान्‌ द्रुतान्‌ दृष्ट्वा हतोत्साहान् पराजितान्।
अभ्यवर्तन्त पञ्चालाः पाण्डवाश्च जयैषिणः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हें हतोत्साह, पराजित एवं हताश होकर भागते देख विजयकी अभिलाषा रखनेवाले पांचाल और पाण्डव उनका पीछा करने लगे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाणशब्दरवाश्चापि सिंहनादाश्च पुष्कलाः ।
शङ्खशब्दश्च शूराणां दारुणः समपद्यत ॥ १३ ॥

मूलम्

बाणशब्दरवाश्चापि सिंहनादाश्च पुष्कलाः ।
शङ्खशब्दश्च शूराणां दारुणः समपद्यत ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बाणोंकी सनसनाहट, शूरवीरोंका सिंहनाद और शंखध्वनि—इन सबकी मिली-जुली आवाज बड़ी भयानक जान पड़ती थी॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा तु कौरवं सैन्यं भयत्रस्तं प्रविद्रुतम्।
अन्योन्यं समभाषन्त पञ्चालाः पाण्डवैः सह ॥ १४ ॥

मूलम्

दृष्ट्वा तु कौरवं सैन्यं भयत्रस्तं प्रविद्रुतम्।
अन्योन्यं समभाषन्त पञ्चालाः पाण्डवैः सह ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौरव-सेनाको भयसे संत्रस्त होकर भागती देख पाण्डवोंसहित पांचालयोद्धा आपसमें इस प्रकार वार्तालाप करने लगे—॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य राजा सत्यधृतिर्हतामित्रो युधिष्ठिरः।
अद्य दुर्योधनो हीनो दीप्ताया नृपतिश्रियः ॥ १५ ॥

मूलम्

अद्य राजा सत्यधृतिर्हतामित्रो युधिष्ठिरः।
अद्य दुर्योधनो हीनो दीप्ताया नृपतिश्रियः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज सत्यपरायण राजा युधिष्ठिर शत्रुहीन हो गये और आज दुर्योधन अपनी देदीप्यमान राजलक्ष्मीसे भ्रष्ट हो गया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य श्रुत्वा हतं पुत्रं धृतराष्ट्रो जनेश्वरः।
विह्वलः पतितो भूमौ किल्बिषं प्रतिपद्यताम् ॥ १६ ॥

मूलम्

अद्य श्रुत्वा हतं पुत्रं धृतराष्ट्रो जनेश्वरः।
विह्वलः पतितो भूमौ किल्बिषं प्रतिपद्यताम् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्रको मारा गया सुनकर व्याकुल हो पृथ्वीपर पछाड़ खाकर गिरें और दुःख भोगें॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य जानातु कौन्तेयं समर्थं सर्वधन्विनाम्।
अद्यात्मानं च दुर्मेधा गर्हयिष्यति पापकृत् ॥ १७ ॥
अद्य क्षत्तुर्वचः सत्यं स्मरतां ब्रुवतो हितम्।

मूलम्

अद्य जानातु कौन्तेयं समर्थं सर्वधन्विनाम्।
अद्यात्मानं च दुर्मेधा गर्हयिष्यति पापकृत् ॥ १७ ॥
अद्य क्षत्तुर्वचः सत्यं स्मरतां ब्रुवतो हितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज वे समझ लें कि कुन्तीपुत्र अर्जुन सम्पूर्ण धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ एवं सामर्थ्यशाली हैं। आज पापाचारी दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र अपनी भरपेट निन्दा करें और विदुरजीने जो सत्य एवं हितकर वचन कहे थे, उन्हें याद करें॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्यप्रभृति पार्थं च प्रेष्यभूत इवाचरन् ॥ १८ ॥
विजानातु नृपो दुःखं यत् प्राप्तं पाण्डुनन्दनैः।

मूलम्

अद्यप्रभृति पार्थं च प्रेष्यभूत इवाचरन् ॥ १८ ॥
विजानातु नृपो दुःखं यत् प्राप्तं पाण्डुनन्दनैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आजसे वे स्वयं ही दासतुल्य होकर कुन्तीपुत्र युधिष्ठिरकी परिचर्या करते हुए अच्छी तरह समझ लें कि ‘पाण्डवोंने पहले कितना कष्ट उठाया था?’॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कृष्णस्य माहात्म्यं विजानातु महीपतिः ॥ १९ ॥
अद्यार्जुनधनुर्घोषं घोरं जानातु संयुगे।
अस्त्राणां च बलं सर्वं बाह्वोश्च बलमाहवे ॥ २० ॥

मूलम्

अद्य कृष्णस्य माहात्म्यं विजानातु महीपतिः ॥ १९ ॥
अद्यार्जुनधनुर्घोषं घोरं जानातु संयुगे।
अस्त्राणां च बलं सर्वं बाह्वोश्च बलमाहवे ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज राजा धृतराष्ट्र अनुभव करें कि भगवान् श्रीकृष्णका कैसा माहात्म्य है और आज वे यह भी जान लें कि युद्धस्थलमें अर्जुनके गाण्डीव धनुषकी टंकार कितनी भयंकर है? उनके अस्त्र-शस्त्रोंकी सारी शक्ति कैसी है तथा रणभूमिमें उनकी दोनों भुजाओंका बल कितना अद्भुत है?॥१९-२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य ज्ञास्यति भीमस्य बलं घोरं महात्मनः।
हते दुर्योधने युद्धे शक्रेणेवासुरे बले ॥ २१ ॥

मूलम्

अद्य ज्ञास्यति भीमस्य बलं घोरं महात्मनः।
हते दुर्योधने युद्धे शक्रेणेवासुरे बले ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जैसे इन्द्रने असुरोंकी सेनाका संहार किया था, उसी प्रकार युद्धमें भीमसेनके हाथसे दुर्योधनके मारे जानेपर आज धृतराष्ट्रको यह ज्ञात हो जायगा कि ‘महामनस्वी भीमका बल कैसा भयंकर है!’॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत् कृतं भीमसेनेन दुःशासनवधे तदा।
नान्यः कर्तास्ति लोकेऽस्मिनृते भीमान्महाबलात् ॥ २२ ॥

मूलम्

यत् कृतं भीमसेनेन दुःशासनवधे तदा।
नान्यः कर्तास्ति लोकेऽस्मिनृते भीमान्महाबलात् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘दुःशासनके वधके समय भीमसेनने जो कुछ किया था, उसे महाबली भीमसेनके सिवा इस संसारमें दूसरा कोई नहीं कर सकता॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य श्रेष्ठस्य जानीतां पाण्डवस्य पराक्रमम्।
मद्रराजं हतं श्रुत्वा देवैरपि सुदुःसहम् ॥ २३ ॥

मूलम्

अद्य श्रेष्ठस्य जानीतां पाण्डवस्य पराक्रमम्।
मद्रराजं हतं श्रुत्वा देवैरपि सुदुःसहम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देवताओंके लिये भी दुःसह मद्रराज शल्यके वधका वृत्तान्त सुनकर आज धृतराष्ट्र ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिरके पराक्रमको भी अच्छी तरह जान लें॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य ज्ञास्यति संग्रामे माद्रीपुत्रौ सुदुःसहौ।
निहते सौबले वीरे प्रवीरेषु च सर्वशः ॥ २४ ॥

मूलम्

अद्य ज्ञास्यति संग्रामे माद्रीपुत्रौ सुदुःसहौ।
निहते सौबले वीरे प्रवीरेषु च सर्वशः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज संग्राममें सुबलपुत्र वीर शकुनि तथा दूसरे समस्त प्रमुख वीरोंके मारे जानेपर उन्हें शत्रुके लिये अत्यन्त दुःसह माद्रीकुमार नकुल-सहदेवकी शक्तिका भी ज्ञान हो जायगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं जयो न तेषां स्याद् येषां योद्धा धनंजयः।
सात्यकिर्भीमसेनश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ २५ ॥
द्रौपद्यास्तनयाः पञ्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
शिखण्डी च महेष्वासो राजा चैव युधिष्ठिरः ॥ २६ ॥

मूलम्

कथं जयो न तेषां स्याद् येषां योद्धा धनंजयः।
सात्यकिर्भीमसेनश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ २५ ॥
द्रौपद्यास्तनयाः पञ्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
शिखण्डी च महेष्वासो राजा चैव युधिष्ठिरः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जिनकी ओरसे युद्ध करनेवाले धनंजय, सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, द्रौपदीके पाँचों पुत्र, माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल-सहदेव, महाधनुर्धर शिखण्डी तथा स्वयं राजा युधिष्ठिर-जैसे वीर हैं, उनकी विजय कैसे न हो?॥२५-२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येषां च जगतीनाथो नाथः कृष्णो जनार्दनः।
कथं तेषां जयो न स्याद् येषां धर्मो व्यपाश्रयः॥२७॥

मूलम्

येषां च जगतीनाथो नाथः कृष्णो जनार्दनः।
कथं तेषां जयो न स्याद् येषां धर्मो व्यपाश्रयः॥२७॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सम्पूर्ण जगत्‌के स्वामी जनार्दन श्रीकृष्ण जिनके रक्षक हैं और जिन्हें धर्मका आश्रय प्राप्त है, उनकी विजय क्यों न हो?॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराभवः।
येषां नाथो हृषीकेशः सर्वलोकविभुर्हरिः॥)

मूलम्

(लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराभवः।
येषां नाथो हृषीकेशः सर्वलोकविभुर्हरिः॥)

अनुवाद (हिन्दी)

‘अखिल विश्वके प्रभु और सबकी इन्द्रियोंके नियन्ता भगवान् श्रीहरि जिनके स्वामी और संरक्षक हैं, उन्हींको लाभ प्राप्त होता है और उन्हींकी विजय होती है। भला उनकी पराजय कैसे हो सकती है?।

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मं द्रोणं च कर्णं च मद्रराजानमेव च।
तथान्यान् नृपतीन् वीरान् शतशोऽथ सहस्रशः ॥ २८ ॥
कोऽन्यः शक्तो रणे जेतुमृते पार्थाद् युधिष्ठिरात्।
यस्य नाथो हृषीकेशः सदा सत्ययशोनिधिः ॥ २९ ॥

मूलम्

भीष्मं द्रोणं च कर्णं च मद्रराजानमेव च।
तथान्यान् नृपतीन् वीरान् शतशोऽथ सहस्रशः ॥ २८ ॥
कोऽन्यः शक्तो रणे जेतुमृते पार्थाद् युधिष्ठिरात्।
यस्य नाथो हृषीकेशः सदा सत्ययशोनिधिः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कुन्तीपुत्र युधिष्ठिरके सिवा दूसरा कौन ऐसा राजा है जो रणभूमिमें भीष्म, द्रोण, कर्ण, मद्रराज शल्य तथा अन्य सैकड़ों-हजारों नरपतियोंपर विजय प्राप्त कर सके। सदा सत्य और यशके सागर भगवान् श्रीकृष्ण जिनके स्वामी एवं रक्षक हैं, उन्हींको यह सफलता प्राप्त हो सकती है’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येवं वदमानास्ते हर्षेण महता युताः।
प्रभग्नांस्तावकान् योधान् सृञ्जयाः पृष्ठतोऽन्वयुः ॥ ३० ॥

मूलम्

इत्येवं वदमानास्ते हर्षेण महता युताः।
प्रभग्नांस्तावकान् योधान् सृञ्जयाः पृष्ठतोऽन्वयुः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस तरहकी बातें करते हुए सृंजयवीर अत्यन्त हर्षमें भरकर आपके भागते हुए योद्धाओंका पीछा करने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनंजयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान् ।
माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महारथः ॥ ३१ ॥

मूलम्

धनंजयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान् ।
माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महारथः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय पराक्रमी अर्जुनने आपकी रथसेनापर धावा किया। साथ ही नकुल-सहदेव और महारथी सात्यकिने शकुनिपर चढ़ाई की॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् प्रेक्ष्य द्रवतः सर्वान् भीमसेनभयार्दितान्।
दुर्योधनस्तदा सूतमब्रवीद् विजयाय च ॥ ३२ ॥

मूलम्

तान् प्रेक्ष्य द्रवतः सर्वान् भीमसेनभयार्दितान्।
दुर्योधनस्तदा सूतमब्रवीद् विजयाय च ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनके भयसे पीड़ित हुए अपने उन समस्त योद्धाओंको भागते देख दुर्योधनने विजयकी इच्छासे अपने सारथिसे कहा—॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मामतिक्रमते पार्थो धनुष्पाणिमवस्थितम् ।
जघने सर्वसैन्यानां ममाश्वान् प्रतिपादय ॥ ३३ ॥

मूलम्

मामतिक्रमते पार्थो धनुष्पाणिमवस्थितम् ।
जघने सर्वसैन्यानां ममाश्वान् प्रतिपादय ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सूत! मैं यहाँ हाथमें धनुष लिये खड़ा हूँ और अर्जुन मुझे लाँघ जानेकी चेष्टा कर रहे हैं। अतः तुम मेरे घोड़ोंको सारी सेनाके पिछले भागमें पहुँचा दो॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जघने युध्यमानं हि कौन्तेयो मां समन्ततः।
नोत्सहेदभ्यतिक्रान्तुं वेलामिव महोदधिः ॥ ३४ ॥

मूलम्

जघने युध्यमानं हि कौन्तेयो मां समन्ततः।
नोत्सहेदभ्यतिक्रान्तुं वेलामिव महोदधिः ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पृष्ठभागमें रहकर युद्ध करते समय मुझे अर्जुन किसी ओरसे भी लाँघनेका साहस नहीं कर सकते। ठीक वैसे ही, जैसे महासागर अपने तटप्रान्तको नहीं लाँघ पाता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पश्य सैन्यं महत् सूत पाण्डवैः समभिद्रुतम्।
सैन्यरेणुं समुद्भूतं पश्यस्वैनं समन्ततः ॥ ३५ ॥

मूलम्

पश्य सैन्यं महत् सूत पाण्डवैः समभिद्रुतम्।
सैन्यरेणुं समुद्भूतं पश्यस्वैनं समन्ततः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सारथे! देखो, पाण्डव मेरी विशाल सेनाको खदेड़ रहे हैं और सैनिकोंके दौड़नेसे उठी हुई धूल जो सब ओर छा गयी है उसपर भी दृष्टिपात करो॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिंहनादांश्च बहुशः शृणु घोरान् भयावहान्।
तस्माद् याहि शनैः सूत जघनं परिपालय ॥ ३६ ॥

मूलम्

सिंहनादांश्च बहुशः शृणु घोरान् भयावहान्।
तस्माद् याहि शनैः सूत जघनं परिपालय ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सूत! वह सुनो, बारंबार भय उत्पन्न करनेवाले घोर सिंहनाद हो रहे हैं। इसलिये तुम धीरे-धीरे चलो और सेनाके पृष्ठभागकी रक्षा करो॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मयि स्थिते च समरे निरुद्धेषु च पाण्डुषु।
पुनरावर्तते तूर्णं मापकं बलमोजसा ॥ ३७ ॥

मूलम्

मयि स्थिते च समरे निरुद्धेषु च पाण्डुषु।
पुनरावर्तते तूर्णं मापकं बलमोजसा ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जब मैं समरांगणमें खड़ा होऊँगा और पाण्डवोंका बढ़ाव रुक जायगा, तब मेरी सेना पुनः शीघ्र ही लौट आयेगी और सारी शक्ति लगाकर युद्ध करेगी’॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तच्छ्रुत्वा तव पुत्रस्य शूरार्यसदृशं वचः।
सारथिर्हेमसंछन्नान् शनैरश्वानचोदयत् ॥ ३८ ॥

मूलम्

तच्छ्रुत्वा तव पुत्रस्य शूरार्यसदृशं वचः।
सारथिर्हेमसंछन्नान् शनैरश्वानचोदयत् ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! आपके पुत्रका यह श्रेष्ठ वीरोचित वचन सुनकर सारथिने सोनेके साज-बाजसे सजे हुए घोड़ोंको धीरे-धीरे आगे बढ़ाया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजाश्वरथिभिर्हीनास्त्यक्तात्मानः पदातयः ।
एकविंशतिसाहस्राः संयुगायावतस्थिरे ॥ ३९ ॥

मूलम्

गजाश्वरथिभिर्हीनास्त्यक्तात्मानः पदातयः ।
एकविंशतिसाहस्राः संयुगायावतस्थिरे ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय वहाँ हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथियोंसे रहित इक्कीस हजार केवल पैदल योद्धा अपने जीवनका मोह छोड़कर युद्धके लिये डट गये॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानादेशसमुद्भूता नानानगरवासिनः ।
अवस्थितास्तदा योधाः प्रार्थयन्तो महद् यशः ॥ ४० ॥

मूलम्

नानादेशसमुद्भूता नानानगरवासिनः ।
अवस्थितास्तदा योधाः प्रार्थयन्तो महद् यशः ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे अनेक देशोंमें उत्पन्न और अनेक नगरोंके निवासी वीर सैनिक महान् यशकी अभिलाषा रखते हुए वहाँ युद्ध करनेके लिये खड़े हुए थे॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषामापततां तत्र संहृष्टानां परस्परम्।
सम्मर्दः सुमहान् जज्ञे घोररूपो भयानकः ॥ ४१ ॥

मूलम्

तेषामापततां तत्र संहृष्टानां परस्परम्।
सम्मर्दः सुमहान् जज्ञे घोररूपो भयानकः ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परस्पर हर्षमें भरकर एक-दूसरेपर आक्रमण करनेवाले उभयपक्षके सैनिकोंका वह घोर एवं महान् संघर्ष बड़ा भयंकर हुआ॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनस्तदा राजन् धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
बलेन चतुरङ्गेण नानादेश्यानवारयत् ॥ ४२ ॥

मूलम्

भीमसेनस्तदा राजन् धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
बलेन चतुरङ्गेण नानादेश्यानवारयत् ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समय भीमसेन और द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न चतुरंगिणी सेना साथ लेकर उन अनेकदेशीय सैनिकोंको रोकने लगे॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीममेवाभ्यवर्तन्त रणेऽन्ये तु पदातयः।
प्रक्ष्वेड्यास्फोट्य संहृष्टा वीरलोकं यियासवः ॥ ४३ ॥

मूलम्

भीममेवाभ्यवर्तन्त रणेऽन्ये तु पदातयः।
प्रक्ष्वेड्यास्फोट्य संहृष्टा वीरलोकं यियासवः ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब रणभूमिमें अन्य पैदल योद्धा हर्ष और उत्साहमें भरकर भुजाओंपर ताल ठोंकते और सिंहनाद करते हुए वीरलोकमें जानेकी इच्छासे भीमसेनके ही सामने आ पहुँचे॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आसाद्य भीमसेनं तु संरब्धा युद्धदुर्मदाः।
धार्तराष्ट्रा विनेदुर्हि नान्यामकथयन् कथाम् ॥ ४४ ॥

मूलम्

आसाद्य भीमसेनं तु संरब्धा युद्धदुर्मदाः।
धार्तराष्ट्रा विनेदुर्हि नान्यामकथयन् कथाम् ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनके पास पहुँचकर वे रोषभरे रणदुर्मद कौरवयोद्धा केवल गर्जना करने लगे, मुँहसे दूसरी कोई बात नहीं कहते थे॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परिवार्य रणे भीमं निजघ्नुस्ते समन्ततः।
स वध्यमानः समरे पदातिगणसंवृतः ॥ ४५ ॥
न चचाल ततः स्थानान्मैनाक इव पर्वतः।

मूलम्

परिवार्य रणे भीमं निजघ्नुस्ते समन्ततः।
स वध्यमानः समरे पदातिगणसंवृतः ॥ ४५ ॥
न चचाल ततः स्थानान्मैनाक इव पर्वतः।

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने रणभूमिमें भीमसेनको चारों ओरसे घेरकर उनपर प्रहार आरम्भ कर दिया। समरांगणमें पैदल सैनिकोंसे घिरे हुए भीमसेन उनके अस्त्र-शस्त्रोंकी चोट सहते हुए भी मैनाक पर्वतके समान अपने स्थानसे विचिलित नहीं हुए॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तु क्रुद्धा महाराज पाण्डवस्य महारथम् ॥ ४६ ॥
निग्रहीतुं प्रवृत्ता हि योधांश्चान्यानवारयन्।

मूलम्

ते तु क्रुद्धा महाराज पाण्डवस्य महारथम् ॥ ४६ ॥
निग्रहीतुं प्रवृत्ता हि योधांश्चान्यानवारयन्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वे सभी सैनिक कुपित हो पाण्डव महारथी भीमसेनको पकड़नेकी चेष्टामें संलग्न हो गये और दूसरे योद्धाओंको भी आगे बढ़नेसे रोकने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अक्रुध्यत रणे भीमस्तैस्तदा पर्यवस्थितैः ॥ ४७ ॥
सोऽवतीर्य रथात् तूर्णं पदातिः समवस्थितः।
जातरूपप्रतिच्छन्नां प्रगृह्य महतीं गदाम् ॥ ४८ ॥
अवधीत्‌ तावकान् योधान् दण्डपाणिरिवान्तकः।

मूलम्

अक्रुध्यत रणे भीमस्तैस्तदा पर्यवस्थितैः ॥ ४७ ॥
सोऽवतीर्य रथात् तूर्णं पदातिः समवस्थितः।
जातरूपप्रतिच्छन्नां प्रगृह्य महतीं गदाम् ॥ ४८ ॥
अवधीत्‌ तावकान् योधान् दण्डपाणिरिवान्तकः।

अनुवाद (हिन्दी)

उनके इस प्रकार सब ओर खड़े होनेपर उस समय रणभूमिमें भीमसेनको बड़ा क्रोध हुआ। वे तुरंत अपने रथसे उतरकर पैदल खड़े हो गये और सोनेसे जड़ी हुई विशाल गदा हाथमें लेकर दण्डधारी यमराजके समान आपके उन योद्धाओंका संहार करने लगे॥४७-४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विप्रहीणरथाश्वांस्तानवधीत् पुरुषर्षभः ॥ ४९ ॥
एकविंशतिसाहस्रान् पदातीन् समपोथयत् ।

मूलम्

विप्रहीणरथाश्वांस्तानवधीत् पुरुषर्षभः ॥ ४९ ॥
एकविंशतिसाहस्रान् पदातीन् समपोथयत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

रथ और घोड़ोंसे रहित उन इक्कीसों हजार पैदल सैनिकोंको पुरुषप्रवर भीमने गदासे मारकर धराशायी कर दिया॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा तत् पुरुषानीकं भीमः सत्यपराक्रमः ॥ ५० ॥
धृष्टद्युम्नं पुरस्कृत्य नचिरात् प्रत्यदृश्यत।

मूलम्

हत्वा तत् पुरुषानीकं भीमः सत्यपराक्रमः ॥ ५० ॥
धृष्टद्युम्नं पुरस्कृत्य नचिरात् प्रत्यदृश्यत।

अनुवाद (हिन्दी)

सत्यपराक्रमी भीमसेन उस पैदल सेनाका संहार करके थोड़ी ही देरमें धृष्टद्युम्नको आगे किये दिखायी दिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पादाता निहता भूमौ शिशियरे रुधिरोक्षिताः ॥ ५१ ॥
सम्भग्ना इव वातेन कर्णिकाराः सुपुष्पिताः।

मूलम्

पादाता निहता भूमौ शिशियरे रुधिरोक्षिताः ॥ ५१ ॥
सम्भग्ना इव वातेन कर्णिकाराः सुपुष्पिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

मारे गये पैदल सैनिक खूनसे लथपथ हो पृथ्वीपर सदाके लिये सो गये, मानो हवाके उखाड़े हुए सुन्दर लाल फूलोंसे भरे कनेरके वृक्ष पड़े हों॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानाशस्त्रसमायुक्ता नानाकुण्डलधारिणः ॥ ५२ ॥
नानाजात्या हतास्तत्र नानादेशसमागताः ।

मूलम्

नानाशस्त्रसमायुक्ता नानाकुण्डलधारिणः ॥ ५२ ॥
नानाजात्या हतास्तत्र नानादेशसमागताः ।

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ नाना देशोंसे आये हुए, नाना जातिके, नाना शस्त्र धारण किये और नाना प्रकारके कुण्डलधारी योद्धा मारे गये थे॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पताकाध्वजसंछन्नं पदातीनां महद् बलम् ॥ ५३ ॥
निकृत्तं विबभौ रौद्रं घोररूपं भयावहम्।

मूलम्

पताकाध्वजसंछन्नं पदातीनां महद् बलम् ॥ ५३ ॥
निकृत्तं विबभौ रौद्रं घोररूपं भयावहम्।

अनुवाद (हिन्दी)

ध्वज और पताकाओंसे आच्छादित पैदलोंकी वह विशाल सेना छिन्न-भिन्न होकर रौद्र, घोर एवं भयानक प्रतीत होती थी॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युधिष्ठिरपुरोगाश्च सहसैन्या महारथाः ॥ ५४ ॥
अभ्यधावन् महात्मानं पुत्रं दुर्योधनं तव।

मूलम्

युधिष्ठिरपुरोगाश्च सहसैन्या महारथाः ॥ ५४ ॥
अभ्यधावन् महात्मानं पुत्रं दुर्योधनं तव।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् सेनासहित युधिष्ठिर आदि महारथी आपके महामनस्वी पुत्र दुर्योधनकी ओर दौड़े॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते सर्वं तावकान्‌ दृष्ट्वा महेष्वासाः पराङ्‌मुखान् ॥ ५५ ॥
नात्यवर्तन्त ते पुत्रं वेलेव मकरालयम्।

मूलम्

ते सर्वं तावकान्‌ दृष्ट्वा महेष्वासाः पराङ्‌मुखान् ॥ ५५ ॥
नात्यवर्तन्त ते पुत्रं वेलेव मकरालयम्।

अनुवाद (हिन्दी)

आपके योद्धाओंको युद्धसे विमुख हो भागते देख वे सब महाधनुर्धर पाण्डव-महारथी आपके पुत्रको लाँघकर आगे नहीं बढ़ सके। जैसे तटभूमि समुद्रको आगे नहीं बढ़ने देती है (उसी प्रकार दुर्योधनने उन्हें अग्रसर नहीं होने दिया)॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम् ॥ ५६ ॥
यदेकं सहिताः पार्था न शेकुरतिवर्तितुम्।

मूलम्

तदद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम् ॥ ५६ ॥
यदेकं सहिताः पार्था न शेकुरतिवर्तितुम्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय हमलोगोंने आपके पुत्रका अद्भुत पराक्रम देखा कि कुन्तीके सभी पुत्र एक साथ प्रयत्न करनेपर भी उसे लाँघकर आगे न जा सके॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नातिदूरापयातं तु कृतबुद्धिं पलायने ॥ ५७ ॥
दुर्योधनः स्वकं सैन्यमब्रवीद् भृशविक्षतम्।

मूलम्

नातिदूरापयातं तु कृतबुद्धिं पलायने ॥ ५७ ॥
दुर्योधनः स्वकं सैन्यमब्रवीद् भृशविक्षतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

जब दुर्योधनने देखा कि मेरी सेना भागनेका निश्चय करके अभी अधिक दूर नहीं गयी है, तब उसने उन अत्यन्त घायल हुए सैनिकोंको पुकारकर कहा—॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तं देशं प्रपश्यामि पृथिव्यां पर्वतेषु च ॥ ५८ ॥
यत्र यातान्न वा हन्युः पाण्डवाः किं सृतेन वः।

मूलम्

न तं देशं प्रपश्यामि पृथिव्यां पर्वतेषु च ॥ ५८ ॥
यत्र यातान्न वा हन्युः पाण्डवाः किं सृतेन वः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘अरे! इस तरह भागनेसे क्या लाभ है? मैं पृथ्वीमें या पर्वतोंपर ऐसा कोई स्थान नहीं देखता, जहाँ जानेपर तुम्हें पाण्डव मार न सकें॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अल्पं च बलमेतेषां कृष्णौ च भृशविक्षतौ ॥ ५९ ॥
यदि सर्वेऽत्र तिष्ठामो ध्रुवं नो विजयो भवेत्।

मूलम्

अल्पं च बलमेतेषां कृष्णौ च भृशविक्षतौ ॥ ५९ ॥
यदि सर्वेऽत्र तिष्ठामो ध्रुवं नो विजयो भवेत्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘अब तो इनके पास बहुत थोड़ी सेना शेष रह गयी है और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन भी अत्यन्त घायल हो चुके हैं, ऐसी दशामें यदि हम सब लोग साहस करके डटे रहें तो हमारी विजय अवश्य होगी॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विप्रयातांस्तु वो भिन्नान् पाण्डवाः कृतविप्रियाः ॥ ६० ॥
अनुसृत्य हनिष्यन्ति श्रेयान्नः समरे वधः।

मूलम्

विप्रयातांस्तु वो भिन्नान् पाण्डवाः कृतविप्रियाः ॥ ६० ॥
अनुसृत्य हनिष्यन्ति श्रेयान्नः समरे वधः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘तुम पाण्डवोंके अपराध तो कर ही चुके हो। यदि अलग-अलग होकर भागोगे तो पाण्डव पीछा करके तुम्हें अवश्य मार डालेंगे। ऐसी दशामें हमारे लिये संग्राममें मारा जाना ही श्रेयस्कर है॥६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृण्वन्तु क्षत्रियाः सर्वे यावन्तोऽत्र समागताः ॥ ६१ ॥
यदा शूरं च भीरुं च मारयत्यन्तकः सदा।
को नु मूढो न युध्येत पुरुषः क्षत्रियो ध्रुवम्॥६२॥

मूलम्

शृण्वन्तु क्षत्रियाः सर्वे यावन्तोऽत्र समागताः ॥ ६१ ॥
यदा शूरं च भीरुं च मारयत्यन्तकः सदा।
को नु मूढो न युध्येत पुरुषः क्षत्रियो ध्रुवम्॥६२॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जितने क्षत्रिय यहाँ एकत्र हुए हैं, वे सब कान खोलकर सुन लें—जब शूरवीर और कायर सभीको सदा ही मौत मार डालती है, तब ऐसा कौन मूर्ख मनुष्य है, जो क्षत्रिय कहलाकर भी निश्चितरूपसे युद्ध नहीं करेगा॥६१-६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रेयो नो भीमसेनस्य क्रुद्धस्याभिमुखे स्थितम्।
सुखः सांग्रामिको मृत्युः क्षत्रधर्मेण युध्यताम् ॥ ६३ ॥

मूलम्

श्रेयो नो भीमसेनस्य क्रुद्धस्याभिमुखे स्थितम्।
सुखः सांग्रामिको मृत्युः क्षत्रधर्मेण युध्यताम् ॥ ६३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अतः क्रोधमें भरे हुए भीमसेनके सामने डटे रहना ही हमारे लिये कल्याणकारी होगा। क्षत्रियधर्मके अनुसार युद्ध करनेवाले वीर पुरुषोंके लिये संग्राममें होनेवाली मृत्यु ही सुखद है॥६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मर्त्येनावश्यमर्तव्यं गृहेष्वपि कदाचन ।
युध्यतः क्षत्रधर्मेण मृत्युरेष सनातनः ॥ ६४ ॥

मूलम्

मर्त्येनावश्यमर्तव्यं गृहेष्वपि कदाचन ।
युध्यतः क्षत्रधर्मेण मृत्युरेष सनातनः ॥ ६४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मरणधर्मा मनुष्यको कभी-न-कभी अवश्य मरना पड़ेगा। घरमें भी उससे छुटकारा नहीं है। अतः क्षत्रिय-धर्मके अनुसार युद्ध करते हुए ही जो मृत्यु होती है, यही क्षत्रियके लिये सनातन मृत्यु है॥६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वेह सुखमाप्नोति हतः प्रेत्य महत् फलम्।
न युद्धधर्माच्छ्रेयान् वै पन्थाः स्वर्गस्य कौरवाः ॥ ६५ ॥
अचिरेणैव ताल्ँलोकान् हतो युद्धे समश्नुते।

मूलम्

हत्वेह सुखमाप्नोति हतः प्रेत्य महत् फलम्।
न युद्धधर्माच्छ्रेयान् वै पन्थाः स्वर्गस्य कौरवाः ॥ ६५ ॥
अचिरेणैव ताल्ँलोकान् हतो युद्धे समश्नुते।

अनुवाद (हिन्दी)

‘कौरवो! वीर पुरुष शत्रुको मारकर इह लोकमें सुख भोगता है और यदि मारा गया तो वह परलोकमें जाकर महान् फलका भागी होता है; अतः युद्धधर्मसे बढ़कर स्वर्गकी प्राप्तिके लिये दूसरा कोई कल्याणकारी मार्ग नहीं है। युद्धमें मारा गया वीर पुरुष थोड़ी ही देरमें उन प्रसिद्ध पुण्यलोकोंमें जाकर सुख भोगता है’॥६५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुत्वा तद् वचनं तस्य पूजयित्वा च पार्थिवाः ॥ ६६ ॥
पुनरेवाभ्यवर्तन्त पाण्डवानाततायिनः ।

मूलम्

श्रुत्वा तद् वचनं तस्य पूजयित्वा च पार्थिवाः ॥ ६६ ॥
पुनरेवाभ्यवर्तन्त पाण्डवानाततायिनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधनकी यह बात सुनकर सब राजा उसका आदर करते हुए पुनः आततायी पाण्डवोंका सामना करनेके लिये लौट आये॥६६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तानापतत एवाशु व्यूढानीकाः प्रहारिणः ॥ ६७ ॥
प्रत्युद्ययुस्तदा पार्था जयगृद्धाः प्रमन्यवः।

मूलम्

तानापतत एवाशु व्यूढानीकाः प्रहारिणः ॥ ६७ ॥
प्रत्युद्ययुस्तदा पार्था जयगृद्धाः प्रमन्यवः।

अनुवाद (हिन्दी)

उनके आक्रमण करते ही अपनी सेनाका व्यूह बनाकर प्रहारकुशल, विजयाभिलाषी तथा बढ़े हुए क्रोधवाले पाण्डव शीघ्र ही उनका सामना करनेके लिये आगे बढ़े॥६७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनंजयो रथेनाजावभ्यवर्तत वीर्यवान् ॥ ६८ ॥
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु व्याक्षिपन् गाण्डिवं धनुः।

मूलम्

धनंजयो रथेनाजावभ्यवर्तत वीर्यवान् ॥ ६८ ॥
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु व्याक्षिपन् गाण्डिवं धनुः।

अनुवाद (हिन्दी)

पराक्रमी अर्जुन अपने त्रिलोकविख्यात गाण्डीव धनुषकी टंकार करते हुए रथके द्वारा युद्धके लिये वहाँ आ पहुँचे॥६८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महाबलः ॥ ६९ ॥
जवेनाभ्यपतन् हृष्टा यत्ता वै तावकं बलम् ॥ ७० ॥

मूलम्

माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महाबलः ॥ ६९ ॥
जवेनाभ्यपतन् हृष्टा यत्ता वै तावकं बलम् ॥ ७० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माद्रीपुत्र नकुल-सहदेव और महाबली सात्यकिने शकुनिपर धावा किया। ये सब लोग हर्ष और उत्साहमें भरकर बड़ी सावधानीके साथ आपकी सेनापर वेगपूर्वक टूट पड़े॥६९-७०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि संकुलयुद्धे एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें संकुलयुद्धविषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१९॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल ७१ श्लोक हैं।)