भागसूचना
पञ्चदशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
दुर्योधन और धृष्टद्युम्नका एवं अर्जुन और अश्वत्थामाका तथा शल्यके साथ नकुल और सात्यकि आदिका घोर संग्राम
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनो महाराज धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
चक्रतुः सुमहद् युद्धं शरशक्तिसमाकुलम् ॥ १ ॥
मूलम्
दुर्योधनो महाराज धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
चक्रतुः सुमहद् युद्धं शरशक्तिसमाकुलम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— महाराज! एक ओर दुर्योधन तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न महान् युद्ध कर रहे थे। वह युद्ध बाणों और शक्तियोंके प्रहारसे व्याप्त हो रहा था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोरासन् महाराज शरधाराः सहस्रशः।
अम्बुदानां यथा काले जलधाराः समन्ततः ॥ २ ॥
मूलम्
तयोरासन् महाराज शरधाराः सहस्रशः।
अम्बुदानां यथा काले जलधाराः समन्ततः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजाधिराज! जैसे वर्षाकालमें सब ओर मेघोंकी जलधाराएँ बरसती हैं, उसी प्रकार उन दोनोंकी ओरसे बाणोंकी सहस्रों धाराएँ गिर रही थीं॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राजा च पार्षतं विद्ध्वा शरैः पञ्चभिराशुगैः।
द्रोणहन्तारमुग्रेषुं पुनर्विव्याध सप्तभिः ॥ ३ ॥
मूलम्
राजा च पार्षतं विद्ध्वा शरैः पञ्चभिराशुगैः।
द्रोणहन्तारमुग्रेषुं पुनर्विव्याध सप्तभिः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा दुर्योधनने पाँच शीघ्रगामी बाणोंद्वारा भयंकर बाणवाले द्रोणहन्ता धृष्टद्युम्नको बींधकर पुनः सात बाणोंद्वारा उन्हें घायल कर दिया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नस्तु समरे बलवान् दृढविक्रमः।
सप्तत्या विशिखानां वै दुर्योधनमपीडयत् ॥ ४ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नस्तु समरे बलवान् दृढविक्रमः।
सप्तत्या विशिखानां वै दुर्योधनमपीडयत् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब सुदृढ़ पराक्रमी बलवान् धृष्टद्युम्नने संग्रामभूमिमें सत्तर बाण मारकर दुर्योधनको पीड़ित कर दिया॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पीडितं वीक्ष्य राजानं सोदर्या भरतर्षभ।
महत्या सेनया सार्धं परिवव्रुः स्म पार्षतम् ॥ ५ ॥
मूलम्
पीडितं वीक्ष्य राजानं सोदर्या भरतर्षभ।
महत्या सेनया सार्धं परिवव्रुः स्म पार्षतम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! राजा दुर्योधनको पीड़ित हुआ देख उसके सारे भाइयोंने विशाल सेनाके साथ आकर धृष्टद्युम्नको घेर लिया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तैः परिवृतः शूरः सर्वतोऽतिरथैर्भृशम्।
व्यचरत् समरे राजन् दर्शयन्नस्त्रलाघवम् ॥ ६ ॥
मूलम्
स तैः परिवृतः शूरः सर्वतोऽतिरथैर्भृशम्।
व्यचरत् समरे राजन् दर्शयन्नस्त्रलाघवम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उन अतिरथी वीरोंद्वारा सब ओरसे घिरे हुए धृष्टद्युम्न अपनी अस्त्रसंचालनकी फुर्ती दिखाते हुए समरभूमिमें विचरने लगे॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डी कृतवर्माणं गौतमं च महारथम्।
प्रभद्रकैः समायुक्तो योधयामास धन्विनौ ॥ ७ ॥
मूलम्
शिखण्डी कृतवर्माणं गौतमं च महारथम्।
प्रभद्रकैः समायुक्तो योधयामास धन्विनौ ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरी ओर शिखण्डीने प्रभद्रकोंकी सेना साथ लेकर कृतवर्मा और महारथी कृपाचार्य—इन दोनों धनुर्धरोंसे युद्ध छेड़ दिया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्रापि सुमहद् युद्धं घोररूपं विशाम्पते।
प्राणान् संत्यजतां युद्धे प्राणद्यूताभिदेवने ॥ ८ ॥
मूलम्
तत्रापि सुमहद् युद्धं घोररूपं विशाम्पते।
प्राणान् संत्यजतां युद्धे प्राणद्यूताभिदेवने ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! वहाँ भी जीवनका मोह छोड़कर प्राणोंकी बाजी लगाकर खेले जानेवाले युद्धरूपी जूएमें लगे हुए समस्त सैनिकोंमें घोर संग्राम हो रहा था॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यः सायकवर्षाणि विमुञ्चन् सर्वतोदिशम्।
पाण्डवान् पीडयामास ससात्यकिवृकोदरान् ॥ ९ ॥
मूलम्
शल्यः सायकवर्षाणि विमुञ्चन् सर्वतोदिशम्।
पाण्डवान् पीडयामास ससात्यकिवृकोदरान् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इधर शल्य सम्पूर्ण दिशाओंमें बाणोंकी वर्षा करते हुए युद्धमें सात्यकि और भीमसेनसहित पाण्डवोंको पीड़ा देने लगे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तौ तु यमौ युद्धे यमतुल्यपराक्रमौ।
योधयामास राजेन्द्र वीर्येणास्त्रबलेन च ॥ १० ॥
मूलम्
तथा तौ तु यमौ युद्धे यमतुल्यपराक्रमौ।
योधयामास राजेन्द्र वीर्येणास्त्रबलेन च ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! वे युद्धमें यमराजके तुल्य पराक्रमी नकुल और सहदेवके साथ भी अपने पराक्रम और अस्त्रबलसे युद्ध कर रहे थे॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यसायकनुन्नानां पाण्डवानां महामृधे ।
त्रातारं नाभ्यगच्छन्त केचित्तत्र महारथाः ॥ ११ ॥
मूलम्
शल्यसायकनुन्नानां पाण्डवानां महामृधे ।
त्रातारं नाभ्यगच्छन्त केचित्तत्र महारथाः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब शल्य अपने बाणोंसे पाण्डव महारथियोंको आहत कर रहे थे, उस समय उस महासमरमें उन्हें कोई अपना रक्षक नहीं मिलता था॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तु नकुलः शूरो धर्मराजे प्रपीडिते।
अभिदुद्राव वेगेन मातुलं मातृनन्दनः ॥ १२ ॥
मूलम्
ततस्तु नकुलः शूरो धर्मराजे प्रपीडिते।
अभिदुद्राव वेगेन मातुलं मातृनन्दनः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब धर्मराज युधिष्ठिर शल्यकी मारसे अत्यन्त पीड़ित हो गये, तब माताको आनन्दित करनेवाले शूरवीर नकुलने बड़े वेगसे अपने मामापर आक्रमण किया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संछाद्य समरे शल्यं नकुलः परवीरहा।
विव्याध चैनं दशभिः स्मयमानः स्तनान्तरे ॥ १३ ॥
मूलम्
संछाद्य समरे शल्यं नकुलः परवीरहा।
विव्याध चैनं दशभिः स्मयमानः स्तनान्तरे ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले नकुलने समरांगणमें शल्यको शरसमूहोंद्वारा आच्छादित करके मुसकराते हुए उनकी छातीमें दस बाण मारे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वपारसवैर्बाणैः कर्मारपरिमार्जितैः ।
स्वर्णपुङ्खैः शिलाधौतैर्धनुर्यन्त्रप्रचोदितैः ॥ १४ ॥
मूलम्
सर्वपारसवैर्बाणैः कर्मारपरिमार्जितैः ।
स्वर्णपुङ्खैः शिलाधौतैर्धनुर्यन्त्रप्रचोदितैः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे बाण सब-के-सब लोहेके बने थे। कारीगरने उन्हें अच्छी तरह माँज-धोकर स्वच्छ बनाया था। उनमें सोनेके पंख लगे थे और उन्हें सानपर चढ़ाकर तेज किया गया था। वे दसों बाण धनुषरूपी यन्त्रपर रखकर चलाये गये थे॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यस्तु पीडितस्तेन स्वस्रीयेण महात्मना।
नकुलं पीडयामास पत्रिभिर्नतपर्वभिः ॥ १५ ॥
मूलम्
शल्यस्तु पीडितस्तेन स्वस्रीयेण महात्मना।
नकुलं पीडयामास पत्रिभिर्नतपर्वभिः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने महामनस्वी भानजेके द्वारा पीड़ित हुए शल्यने झुकी हुई गाँठवाले बहुसंख्यक बाणोंद्वारा नकुलको गहरी चोट पहुँचायी॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो युधिष्ठिरो राजा भीमसेनोऽथ सात्यकिः।
सहदेवश्च माद्रेयो मद्रराजमुपाद्रवन् ॥ १६ ॥
मूलम्
ततो युधिष्ठिरो राजा भीमसेनोऽथ सात्यकिः।
सहदेवश्च माद्रेयो मद्रराजमुपाद्रवन् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर राजा युधिष्ठिर, भीमसेन, सात्यकि और माद्रीकुमार सहदेवने एक साथ मद्रराज शल्यपर आक्रमण किया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तानापतत एवाशु पूरयाणान् रथस्वनैः।
दिशश्च विदिशश्चैव कम्पयानांश्च मेदिनीम् ॥ १७ ॥
प्रतिजग्राह समरे सेनापतिरमित्रजित् ।
मूलम्
तानापतत एवाशु पूरयाणान् रथस्वनैः।
दिशश्च विदिशश्चैव कम्पयानांश्च मेदिनीम् ॥ १७ ॥
प्रतिजग्राह समरे सेनापतिरमित्रजित् ।
अनुवाद (हिन्दी)
वे अपने रथकी घर्घराहटसे सम्पूर्ण दिशाओं और विदिशाओंको गुँजाते हुए पृथ्वीको कम्पित कर रहे थे। सहसा आक्रमण करनेवाले उन वीरोंको शत्रुविजयी सेनापति शल्यने समरभूमिमें आगे बढ़नेसे रोक दिया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरं त्रिभिर्विद्ध्वा भीमसेनं च पञ्चभिः ॥ १८ ॥
सात्यकिं च शतेनाजौ सहदेवं त्रिभिः शरैः।
ततस्तु सशरं चापं नकुलस्य महात्मनः ॥ १९ ॥
मद्रेश्वरः क्षुरप्रेण तदा मारिष चिच्छिदे।
तदशीर्यत विच्छिन्नं धनुः शल्यस्य सायकैः ॥ २० ॥
मूलम्
युधिष्ठिरं त्रिभिर्विद्ध्वा भीमसेनं च पञ्चभिः ॥ १८ ॥
सात्यकिं च शतेनाजौ सहदेवं त्रिभिः शरैः।
ततस्तु सशरं चापं नकुलस्य महात्मनः ॥ १९ ॥
मद्रेश्वरः क्षुरप्रेण तदा मारिष चिच्छिदे।
तदशीर्यत विच्छिन्नं धनुः शल्यस्य सायकैः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माननीय नरेश! मद्रराज शल्यने युद्धस्थलमें युधिष्ठिरको तीन, भीमसेनको पाँच, सात्यकिको सौ और सहदेवको तीन बाणोंसे घायल करके महामनस्वी नकुलके बाणसहित धनुषको क्षुरप्रसे काट डाला। शल्यके बाणोंसे कटा हुआ वह धनुष टूक-टूक होकर बिखर गया॥१८—२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्यद् धनुरादाय माद्रीपुत्रो महारथः।
मद्रराजरथं तूर्णं पूरयामास पत्रिभिः ॥ २१ ॥
मूलम्
अथान्यद् धनुरादाय माद्रीपुत्रो महारथः।
मद्रराजरथं तूर्णं पूरयामास पत्रिभिः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद माद्रीपुत्र महारथी नकुलने तुरंत ही दूसरा धनुष हाथमें लेकर मद्रराजके रथको बाणोंसे भर दिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरस्तु मद्रेशं सहदेवश्च मारिष।
दशभिर्दशभिर्बाणैरुरस्येनमविध्यताम् ॥ २२ ॥
मूलम्
युधिष्ठिरस्तु मद्रेशं सहदेवश्च मारिष।
दशभिर्दशभिर्बाणैरुरस्येनमविध्यताम् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! साथ ही युधिष्ठिर और सहदेवने दस-दस बाणोंसे उनकी छाती छेद डाली॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु तं षष्ट्या सात्यकिर्दशभिः शरैः।
मद्रराजमभिद्रुत्य जघ्नतुः कङ्कपत्रिभिः ॥ २३ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु तं षष्ट्या सात्यकिर्दशभिः शरैः।
मद्रराजमभिद्रुत्य जघ्नतुः कङ्कपत्रिभिः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर भीमसेनने साठ और सात्यकिने कंकपत्रयुक्त दस बाणोंसे मद्रराजपर वेगपूर्वक प्रहार किया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मद्रराजस्ततः क्रुद्धः सात्यकिं नवभिः शरैः।
विव्याध भूयः सप्तत्या शराणां नतपर्वणाम् ॥ २४ ॥
मूलम्
मद्रराजस्ततः क्रुद्धः सात्यकिं नवभिः शरैः।
विव्याध भूयः सप्तत्या शराणां नतपर्वणाम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब कुपित हुए मद्रराज शल्यने सात्यकिको झुकी हुई गाँठवाले नौ बाणोंसे घायल करके फिर सत्तर बाणोंद्वारा क्षत-विक्षत कर दिया॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथास्य सशरं चापं मुष्टौ चिच्छेद मारिष।
हयांश्च चतुरः संख्ये प्रेषयामास मृत्यवे ॥ २५ ॥
मूलम्
अथास्य सशरं चापं मुष्टौ चिच्छेद मारिष।
हयांश्च चतुरः संख्ये प्रेषयामास मृत्यवे ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मान्यवर! इसके बाद शल्यने उनके बाणसहित धनुषको मुट्ठी पकड़नेकी जगहसे काट दिया और संग्राममें उनके चारों घोड़ोंको भी मौतके घर भेज दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विरथं सात्यकिं कृत्वा मद्रराजो महारथः।
विशिखानां शतेनैनमाजघान समन्ततः ॥ २६ ॥
मूलम्
विरथं सात्यकिं कृत्वा मद्रराजो महारथः।
विशिखानां शतेनैनमाजघान समन्ततः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सात्यकिको रथहीन करके महारथी मद्रराज शल्यने सौ बाणोंद्वारा उन्हें सब ओरसे घायल कर दिया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
माद्रीपुत्रौ च संरब्धौ भीमसेनं च पाण्डवम्।
युधिष्ठिरं च कौरव्य विव्याध दशभिः शरैः ॥ २७ ॥
मूलम्
माद्रीपुत्रौ च संरब्धौ भीमसेनं च पाण्डवम्।
युधिष्ठिरं च कौरव्य विव्याध दशभिः शरैः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! इतना ही नहीं, उन्होंने क्रोधमें भरे हुए माद्रीकुमार नकुल-सहदेव, पाण्डुपुत्र भीमसेन तथा युधिष्ठिरको भी दस बाणोंसे क्षत-विक्षत कर दिया॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राद्भुतमपश्याम मद्रराजस्य पौरुषम् ।
यदेनं सहिताः पार्था नाभ्यवर्तन्त संयुगे ॥ २८ ॥
मूलम्
तत्राद्भुतमपश्याम मद्रराजस्य पौरुषम् ।
यदेनं सहिताः पार्था नाभ्यवर्तन्त संयुगे ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महान् संग्राममें हमलोगोंने मद्रराज शल्यका यह अद्भुत पराक्रम देखा कि समस्त पाण्डव एक साथ होकर भी इन्हें युद्धमें पराजित न कर सके॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्यं रथमास्थाय सात्यकिः सत्यविक्रमः।
पीडितान् पाण्डवान् दृष्ट्वा मद्रराजवशंगतान् ॥ २९ ॥
अभिदुद्राव वेगेन मद्राणामधिपं बलात्।
मूलम्
अथान्यं रथमास्थाय सात्यकिः सत्यविक्रमः।
पीडितान् पाण्डवान् दृष्ट्वा मद्रराजवशंगतान् ॥ २९ ॥
अभिदुद्राव वेगेन मद्राणामधिपं बलात्।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् सत्यपराक्रमी सात्यकिने दूसरे रथपर आरूढ़ होकर पाण्डवोंको पीड़ित तथा मद्रराजके अधीन हुआ देख बड़े वेगसे बलपूर्वक उनपर धावा किया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आपतन्तं रथं तस्य शल्यः समितिशोभनः ॥ ३० ॥
प्रत्युद्ययौ रथेनैव मत्तो मत्तमिव द्विपम्।
मूलम्
आपतन्तं रथं तस्य शल्यः समितिशोभनः ॥ ३० ॥
प्रत्युद्ययौ रथेनैव मत्तो मत्तमिव द्विपम्।
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धमें शोभा पानेवाले शल्य उनके रथको अपनी ओर आते देख स्वयं भी रथके द्वारा ही उनकी ओर बढ़े। ठीक उसी तरह, जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मदमत्त हाथीका सामना करनेके लिये जाता है॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स संनिपातस्तुमुलो बभूवाद्भुतदर्शनः ॥ ३१ ॥
सात्यकेश्चैव शूरस्य मद्राणामधिपस्य च।
यादृशो वै पुरा वृत्तः शम्बरामरराजयोः ॥ ३२ ॥
मूलम्
स संनिपातस्तुमुलो बभूवाद्भुतदर्शनः ॥ ३१ ॥
सात्यकेश्चैव शूरस्य मद्राणामधिपस्य च।
यादृशो वै पुरा वृत्तः शम्बरामरराजयोः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शूरवीर सात्यकि और मद्रराज शल्य इन दोनोंका वह संग्राम बड़ा भयंकर और अद्भुत दिखायी देता था। वह वैसा ही था, जैसा कि पूर्वकालमें शम्बरासुर और देवराज इन्द्रका युद्ध हुआ था॥३१-३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सात्यकिः प्रेक्ष्य समरे मद्रराजमवस्थितम्।
विव्याध दशभिर्बाणैस्तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ३३ ॥
मूलम्
सात्यकिः प्रेक्ष्य समरे मद्रराजमवस्थितम्।
विव्याध दशभिर्बाणैस्तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सात्यकिने समरांगणमें खड़े हुए मद्रराजको देखकर उन्हें दस बाणोंसे बींध डाला और कहा—‘खड़े रहो, खड़े रहो’॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मद्रराजस्तु सुभृशं विद्धस्तेन महात्मना।
सात्यकिं प्रतिविव्याध चित्रपुङ्खैः शितैः शरैः ॥ ३४ ॥
मूलम्
मद्रराजस्तु सुभृशं विद्धस्तेन महात्मना।
सात्यकिं प्रतिविव्याध चित्रपुङ्खैः शितैः शरैः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महामनस्वी सात्यकिके द्वारा अत्यन्त घायल किये हुए मद्रराजने विचित्र पंखवाले पैने बाणोंसे सात्यकिको भी घायल करके बदला चुकाया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पार्था महेष्वासाः सात्वताभिसृतं नृपम्।
अभ्यवर्तन् रथैस्तूर्णं मातुलं वधकाङ्क्षया ॥ ३५ ॥
मूलम्
ततः पार्था महेष्वासाः सात्वताभिसृतं नृपम्।
अभ्यवर्तन् रथैस्तूर्णं मातुलं वधकाङ्क्षया ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महाधनुर्धर पृथापुत्रोंने सात्यकिके साथ उलझे हुए मामा मद्रराज शल्यके वधकी इच्छासे रथोंद्वारा उनपर आक्रमण किया॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत आसीत् परामर्दस्तुमुलः शोणितोदकः।
शूराणां युध्यमानानां सिंहानामिव नर्दताम् ॥ ३६ ॥
मूलम्
तत आसीत् परामर्दस्तुमुलः शोणितोदकः।
शूराणां युध्यमानानां सिंहानामिव नर्दताम् ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो वहाँ घोर संग्राम छिड़ गया। सिंहोंके समान गर्जते और जूझते हुए शूरवीरोंका खून पानीकी तरह बहाया जाने लगा॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामासीन्महाराज व्यतिक्षेपः परस्परम् ।
सिंहानामामिषेप्सूनां कूजतामिव संयुगे ॥ ३७ ॥
मूलम्
तेषामासीन्महाराज व्यतिक्षेपः परस्परम् ।
सिंहानामामिषेप्सूनां कूजतामिव संयुगे ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! जैसे मांसके लोभसे सिंह गर्जते हुए आपसमें लड़ते हों, उसी प्रकार उस युद्धस्थलमें उन समस्त योद्धाओंका एक-दूसरेके प्रति भयंकर प्रहार हो रहा था॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां बाणसहस्रौघैराकीर्णा वसुधाभवत् ।
अन्तरिक्षं च सहसा बाणभूतमभूत्तदा ॥ ३८ ॥
मूलम्
तेषां बाणसहस्रौघैराकीर्णा वसुधाभवत् ।
अन्तरिक्षं च सहसा बाणभूतमभूत्तदा ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उनके सहस्रों बाणसमूहोंसे रणभूमि आच्छादित हो गयी और आकाश भी सहसा बाणमय प्रतीत होने लगा॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरान्धकारं सहसा कृतं तत्र समन्ततः।
अभ्रच्छायेव संजज्ञे शरैर्मुक्तैर्महात्मभिः ॥ ३९ ॥
मूलम्
शरान्धकारं सहसा कृतं तत्र समन्ततः।
अभ्रच्छायेव संजज्ञे शरैर्मुक्तैर्महात्मभिः ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन महामनस्वी वीरोंके छोड़े हुए बाणोंसे सहसा चारों ओर अन्धकार छा गया। मेघोंकी छाया-सी प्रकट हो गयी॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र राजन् शरैर्मुक्तैर्निर्मुक्तैरिव पन्नगैः।
स्वर्णपुङ्खैः प्रकाशद्भिर्व्यरोचन्त दिशस्तदा ॥ ४० ॥
मूलम्
तत्र राजन् शरैर्मुक्तैर्निर्मुक्तैरिव पन्नगैः।
स्वर्णपुङ्खैः प्रकाशद्भिर्व्यरोचन्त दिशस्तदा ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! केंचुल छोड़कर निकले हुए सर्पोंके समान वहाँ छूटे हुए सुवर्णमय पंखवाले चमकीले बाणोंसे उस समय सम्पूर्ण दिशाएँ प्रकाशित हो उठी थीं॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राद्भुतं परं चक्रे शल्यः शत्रुनिबर्हणः।
यदेकः समरे शूरो योधयामास वै बहून् ॥ ४१ ॥
मूलम्
तत्राद्भुतं परं चक्रे शल्यः शत्रुनिबर्हणः।
यदेकः समरे शूरो योधयामास वै बहून् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस रणभूमिमें शत्रुसूदन शूरवीर शल्यने यह बड़ा अद्भुत पराक्रम किया कि अकेले ही वे उन बहुसंख्यक वीरोंके साथ युद्ध करते रहे॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मद्रराजभुजोत्सृष्टैः कङ्कबर्हिणवाजितैः ।
सम्पतद्भिः शरैर्घोरैरवाकीर्यत मेदिनी ॥ ४२ ॥
मूलम्
मद्रराजभुजोत्सृष्टैः कङ्कबर्हिणवाजितैः ।
सम्पतद्भिः शरैर्घोरैरवाकीर्यत मेदिनी ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मद्रराजकी भुजाओंसे छूटकर गिरनेवाले कंक और मोरकी पाँखोंसे युक्त भयानक बाणोंद्वारा वहाँकी सारी पृथ्वी ढक गयी थी॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र शल्यरथं राजन् विचरन्तं महाहवे।
अपश्याम यथापूर्वं शक्रस्यासुरसंक्षये ॥ ४३ ॥
मूलम्
तत्र शल्यरथं राजन् विचरन्तं महाहवे।
अपश्याम यथापूर्वं शक्रस्यासुरसंक्षये ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जैसे पूर्वकालमें असुरोंका विनाश करते समय इन्द्रका रथ आगे बढ़ता था, उसी प्रकार उस महासमरमें हमलोगोंने राजा शल्यके रथको विचरते देखा था॥४३॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि संकुलयुद्धे पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें संकुलयुद्धविषयक पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५॥