भागसूचना
अष्टमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
उभयपक्षकी सेनाओंका समरांगणमें उपस्थित होना एवं बची हुई दोनों सेनाओंकी संख्याका वर्णन
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यतीतायां रजन्यां तु राजा दुर्योधनस्तदा।
अब्रवीत् तावकान् सर्वान् संनह्यन्तां महारथाः ॥ १ ॥
मूलम्
व्यतीतायां रजन्यां तु राजा दुर्योधनस्तदा।
अब्रवीत् तावकान् सर्वान् संनह्यन्तां महारथाः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— जब रात व्यतीत हो गयी, तब राजा दुर्योधनने आपके समस्त सैनिकोंसे कहा—‘महारथीगण कवच बाँधकर युद्धके लिये तैयार हो जायँ’॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राज्ञश्च मतमाज्ञाय समनह्यत सा चमूः।
अयोजयन् रथांस्तूर्णं पर्यधावंस्तथा परे ॥ २ ॥
अकल्प्यन्त च मातङ्गाः समनह्यन्त पत्तयः।
रथानास्तरणोपेतांश्चक्रुरन्ये सहस्रशः ॥ ३ ॥
मूलम्
राज्ञश्च मतमाज्ञाय समनह्यत सा चमूः।
अयोजयन् रथांस्तूर्णं पर्यधावंस्तथा परे ॥ २ ॥
अकल्प्यन्त च मातङ्गाः समनह्यन्त पत्तयः।
रथानास्तरणोपेतांश्चक्रुरन्ये सहस्रशः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजाका यह अभिप्राय जानकर सारी सेना युद्धके लिये सुसज्जित होने लगी। कुछ लोगोंने तुरंत ही रथ जोत दिये। दूसरे चारों ओर दौड़ने लगे। हाथी सुसज्जित किये जाने लगे। पैदल सैनिक कवच बाँधने लगे तथा अन्य सहस्रों सैनिकोंने रथोंपर आवरण डाल दिये॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वादित्राणां च निनदः प्रादुरासीद् विशाम्पते।
आयोधनार्थं योधानां बलानां चाप्युदीर्यताम् ॥ ४ ॥
मूलम्
वादित्राणां च निनदः प्रादुरासीद् विशाम्पते।
आयोधनार्थं योधानां बलानां चाप्युदीर्यताम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उस समय सब ओरसे भाँति-भाँतिके वाद्योंकी गम्भीर ध्वनि प्रकट होने लगी। युद्धके लिये उद्यत योद्धाओं और आगे बढ़ती हुई सेनाओंका महान् कोलाहल सुनायी देने लगा॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो बलानि सर्वाणि हतशिष्टानि भारत।
प्रस्थितानि व्यदृश्यन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम् ॥ ५ ॥
मूलम्
ततो बलानि सर्वाणि हतशिष्टानि भारत।
प्रस्थितानि व्यदृश्यन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तत्पश्चात् मरनेसे बची हुई सारी सेनाएँ मृत्युको ही युद्धसे लौटनेका निमित्त बनाकर प्रस्थान करती दिखायी दीं॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यं सेनापतिं कृत्वा मद्रराजं महारथाः।
प्रविभज्य बलं सर्वमनीकेषु व्यवस्थिताः ॥ ६ ॥
मूलम्
शल्यं सेनापतिं कृत्वा मद्रराजं महारथाः।
प्रविभज्य बलं सर्वमनीकेषु व्यवस्थिताः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
समस्त महारथी मद्रराज शल्यको सेनापति बनाकर और सारी सेनाको अनेक भागोंमें विभक्त करके भिन्न-भिन्न दलोंमें खड़े हुए॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सर्वे समागम्य पुत्रेण तव सैनिकाः।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिः शल्योऽथ सौबलः ॥ ७ ॥
अन्ये च पार्थिवाः शेषाः समयं चक्रुरादृताः।
मूलम्
ततः सर्वे समागम्य पुत्रेण तव सैनिकाः।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिः शल्योऽथ सौबलः ॥ ७ ॥
अन्ये च पार्थिवाः शेषाः समयं चक्रुरादृताः।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर आपके सम्पूर्ण सैनिक कृपाचार्य, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, शल्य, शकुनि तथा बचे हुए अन्य नरेशोंने राजा दुर्योधनसे मिलकर आदरपूर्वक यह नियम बनाया—॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न न एकेन योद्धव्यं कथञ्चिदपि पाण्डवैः ॥ ८ ॥
यो ह्येकः पाण्डवैर्युध्येद् यो वा युध्यन्तमुत्सृजेत्।
स पञ्चभिर्भवेद् युक्तः पातकैश्चोपपातकैः ॥ ९ ॥
मूलम्
न न एकेन योद्धव्यं कथञ्चिदपि पाण्डवैः ॥ ८ ॥
यो ह्येकः पाण्डवैर्युध्येद् यो वा युध्यन्तमुत्सृजेत्।
स पञ्चभिर्भवेद् युक्तः पातकैश्चोपपातकैः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘हमलोगोंमेंसे कोई एक योद्धा अकेला रहकर किसी तरह भी पाण्डवोंके साथ युद्ध न करे। जो अकेला ही पाण्डवोंके साथ युद्ध करेगा अथवा जो पाण्डवोंके साथ जूझते हुए वीरको अकेला छोड़ देगा, वह पाँच पातकों और उपपातकोंसे युक्त होगा॥८-९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(अद्याचार्यसुतो द्रौणिर्नैको युध्येत शत्रुभिः।)
अन्योन्यं परिरक्षद्भिर्योद्धव्यं सहितैश्च ह।
एवं ते समयं कृत्वा सर्वे तत्र महारथाः ॥ १० ॥
मद्रराजं पुरस्कृत्य तूर्णमभ्यद्रवन् परान्।
मूलम्
(अद्याचार्यसुतो द्रौणिर्नैको युध्येत शत्रुभिः।)
अन्योन्यं परिरक्षद्भिर्योद्धव्यं सहितैश्च ह।
एवं ते समयं कृत्वा सर्वे तत्र महारथाः ॥ १० ॥
मद्रराजं पुरस्कृत्य तूर्णमभ्यद्रवन् परान्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज आचार्यपुत्र अश्वत्थामा शत्रुओंके साथ अकेले युद्ध न करें। हम सब लोगोंको एक साथ होकर एक-दूसरेकी रक्षा करते हुए युद्ध करना चाहिये। ऐसा नियम बनाकर वे सब महारथी मद्रराज शल्यको आगे करके तुरंत ही शत्रुओंपर टूट पड़े॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव पाण्डवा राजन् व्यूह्य सैन्यं महारणे ॥ ११ ॥
अभ्ययुः कौरवान् राजन् योत्स्यमानाः समन्ततः।
मूलम्
तथैव पाण्डवा राजन् व्यूह्य सैन्यं महारणे ॥ ११ ॥
अभ्ययुः कौरवान् राजन् योत्स्यमानाः समन्ततः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी प्रकार उस महासमरमें पाण्डव भी अपनी सेनाका व्यूह बनाकर सब ओरसे युद्धके लिये उद्यत हो कौरवोंपर चढ़ आये॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् बलं भरतश्रेष्ठ क्षुब्धार्णवसमस्वनम् ॥ १२ ॥
समुद्धूतार्णवाकारमुद्धूतरथकुञ्जरम् ।
मूलम्
तद् बलं भरतश्रेष्ठ क्षुब्धार्णवसमस्वनम् ॥ १२ ॥
समुद्धूतार्णवाकारमुद्धूतरथकुञ्जरम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! वह सेना विक्षुब्ध महासागरके समान कोलाहल कर रही थी। उसके रथ और हाथी बड़े वेगसे आगे बढ़ रहे थे, मानो किसी महासमुद्रमें ज्वार उठ रहा हो॥१२॥
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणस्य चैव भीष्मस्य राधेयस्य च मे श्रुतम् ॥ १३ ॥
पातनं शंस मे भूयः शल्यस्याथ सुतस्य मे।
मूलम्
द्रोणस्य चैव भीष्मस्य राधेयस्य च मे श्रुतम् ॥ १३ ॥
पातनं शंस मे भूयः शल्यस्याथ सुतस्य मे।
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्र बोले— संजय! मैंने द्रोणाचार्य, भीष्म तथा राधापुत्र कर्णके वधका सारा वृत्तान्त सुन लिया है। अब पुनः मुझे शल्य तथा मेरे पुत्र दुर्योधनके मारे जानेका सारा समाचार कह सुनाओ॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथं रणे हतः शल्यो धर्मराजेन संजय ॥ १४ ॥
भीमेन च महाबाहुः पुत्रो दुर्योधनो मम।
मूलम्
कथं रणे हतः शल्यो धर्मराजेन संजय ॥ १४ ॥
भीमेन च महाबाहुः पुत्रो दुर्योधनो मम।
अनुवाद (हिन्दी)
संजय! रणभूमिमें राजा शल्य धर्मराजके द्वारा कैसे मारे गये तथा भीमसेनने मेरे महाबाहु पुत्र दुर्योधनका वध कैसे किया?॥१४॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षयं मनुष्यदेहानां तथा नागाश्वसंक्षयम् ॥ १५ ॥
शृणु राजन् स्थिरो भूत्वा संग्रामं शंसतो मम।
मूलम्
क्षयं मनुष्यदेहानां तथा नागाश्वसंक्षयम् ॥ १५ ॥
शृणु राजन् स्थिरो भूत्वा संग्रामं शंसतो मम।
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— राजन्! जहाँ हाथी, घोड़े और मनुष्योंके शरीरोंका महान् संहार हुआ था, उस संग्रामका मैं वर्णन करता हूँ; आप सुस्थिर होकर सुनिये॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आशा बलवती राजन् पुत्राणां तेऽभवत्तदा ॥ १६ ॥
हते द्रोणे च भीष्मे च सूतपुत्रे च पातिते।
शल्यः पार्थान् रणे सर्वान् निहनिष्यति मारिष ॥ १७ ॥
मूलम्
आशा बलवती राजन् पुत्राणां तेऽभवत्तदा ॥ १६ ॥
हते द्रोणे च भीष्मे च सूतपुत्रे च पातिते।
शल्यः पार्थान् रणे सर्वान् निहनिष्यति मारिष ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माननीय नरेश! द्रोणाचार्य, भीष्म तथा सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर आपके पुत्रोंके मनमें यह प्रबल आशा हो गयी कि शल्य रणभूमिमें सम्पूर्ण कुन्तीकुमारोंका वध कर डालेंगे॥१६-१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तामाशां हृदये कृत्वा समाश्वस्य च भारत।
मद्रराजं च समरे समाश्रित्य महारथम् ॥ १८ ॥
नाथवन्तं तदाऽऽत्मानममन्यन्त सुतास्तव ।
मूलम्
तामाशां हृदये कृत्वा समाश्वस्य च भारत।
मद्रराजं च समरे समाश्रित्य महारथम् ॥ १८ ॥
नाथवन्तं तदाऽऽत्मानममन्यन्त सुतास्तव ।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! उसी आशाको हृदयमें रखकर आपके पुत्रोंको कुछ आश्वासन मिला और वे समरांगणमें महारथी मद्रराज शल्यका आश्रय ले अपने-आपको सनाथ मानने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदा कर्णे हते पार्थाः सिंहनादं प्रचक्रिरे ॥ १९ ॥
तदा तु तावकान् राजन्नाविवेश महद् भयम्।
मूलम्
यदा कर्णे हते पार्थाः सिंहनादं प्रचक्रिरे ॥ १९ ॥
तदा तु तावकान् राजन्नाविवेश महद् भयम्।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! कर्णके मारे जानेसे प्रसन्न हुए कुन्तीके पुत्र जब सिंहनाद करने लगे, उस समय आपके पुत्रोंके मनमें बड़ा भारी भय समा गया॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् समाश्वास्य योधांस्तु मद्रराजः प्रतापवान् ॥ २० ॥
व्यूह्य व्यूहं महाराज सर्वतोभद्रमृद्धिमत्।
प्रत्युद्ययौ रणे पार्थान् मद्रराजः प्रतापवान् ॥ २१ ॥
विधुन्वन् कार्मुकं चित्रं भारघ्नं वेगवत्तरम्।
रथप्रवरमास्थाय सैन्धवाश्वं महारथः ॥ २२ ॥
मूलम्
तान् समाश्वास्य योधांस्तु मद्रराजः प्रतापवान् ॥ २० ॥
व्यूह्य व्यूहं महाराज सर्वतोभद्रमृद्धिमत्।
प्रत्युद्ययौ रणे पार्थान् मद्रराजः प्रतापवान् ॥ २१ ॥
विधुन्वन् कार्मुकं चित्रं भारघ्नं वेगवत्तरम्।
रथप्रवरमास्थाय सैन्धवाश्वं महारथः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तब प्रतापी महारथी मद्रराज शल्यने उन योद्धाओंको आश्वासन दे समृद्धिशाली सर्वतोभद्रनामक व्यूह बनाकर भारनाशक, अत्यन्त वेगशाली और विचित्र धनुषको कँपाते हुए सिंधी घोड़ोंसे युक्त श्रेष्ठ रथपर आरूढ़ हो पाण्डवोंपर आक्रमण किया॥२०—२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य सूतो महाराज रथस्थोऽशोभयद् रथम्।
स तेन संवृतो वीरो रथेनामित्रकर्षणः ॥ २३ ॥
तस्थौ शूरो महाराज पुत्राणां ते भयप्रणुत्।
मूलम्
तस्य सूतो महाराज रथस्थोऽशोभयद् रथम्।
स तेन संवृतो वीरो रथेनामित्रकर्षणः ॥ २३ ॥
तस्थौ शूरो महाराज पुत्राणां ते भयप्रणुत्।
अनुवाद (हिन्दी)
राजाधिराज! शल्यके रथपर बैठा हुआ उनका सारथि उस रथकी शोभा बढ़ा रहा था। उस रथसे घिरे हुए शत्रुसूदन शूरवीर राजा शल्य आपके पुत्रोंका भय दूर करते हुए युद्धके लिये खड़े हो गये॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रयाणे मद्रराजोऽभून्मुखं व्यूहस्य दंशितः ॥ २४ ॥
मद्रकैः सहितो वीरैः कर्णपुत्रैश्च दुर्जयैः।
मूलम्
प्रयाणे मद्रराजोऽभून्मुखं व्यूहस्य दंशितः ॥ २४ ॥
मद्रकैः सहितो वीरैः कर्णपुत्रैश्च दुर्जयैः।
अनुवाद (हिन्दी)
प्रस्थानकालमें कवचधारी मद्रराज शल्य उस सैन्यव्यूहके मुखस्थानमें थे। उनके साथ मद्रदेशीय वीर तथा कर्णके दुर्जय पुत्र भी थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सव्येऽभूत् कृतवर्मा च त्रिगर्तैः परिवारितः ॥ २५ ॥
गौतमो दक्षिणे पार्श्वे शकैश्च यवनैः सह।
अश्वत्थामा पृष्ठतोऽभूत् काम्बोजैः परिवारितः ॥ २६ ॥
मूलम्
सव्येऽभूत् कृतवर्मा च त्रिगर्तैः परिवारितः ॥ २५ ॥
गौतमो दक्षिणे पार्श्वे शकैश्च यवनैः सह।
अश्वत्थामा पृष्ठतोऽभूत् काम्बोजैः परिवारितः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
व्यूहके वामभागमें त्रिगर्तोंसे घिरा हुआ कृतवर्मा खड़ा था। दक्षिण पार्श्वमें शकों और यवनोंकी सेनाके साथ कृपाचार्य थे और पृष्ठभागमें काम्बोजोंसे घिरकर अश्वत्थामा खड़ा था॥२५-२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनोऽभवन्मध्ये रक्षितः कुरुपुङ्गवैः ।
हयानीकेन महता सौबलश्चापि संवृतः ॥ २७ ॥
प्रययौ सर्वसैन्येन कैतव्यश्च महारथः।
मूलम्
दुर्योधनोऽभवन्मध्ये रक्षितः कुरुपुङ्गवैः ।
हयानीकेन महता सौबलश्चापि संवृतः ॥ २७ ॥
प्रययौ सर्वसैन्येन कैतव्यश्च महारथः।
अनुवाद (हिन्दी)
मध्यभागमें कुरुकुलके प्रमुख वीरोंद्वारा सुरक्षित दुर्योधन और घुड़सवारोंकी विशाल सेनासे घिरा हुआ शकुनि भी था। उसके साथ महारथी उलूक भी सम्पूर्ण सेनासहित युद्धके लिये आगे बढ़ रहा था॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाण्डवाश्च महेष्वासा व्यूह्य सैन्यमरिंदमाः ॥ २८ ॥
त्रिधा भूता महाराज तव सैन्यमुपाद्रवन्।
मूलम्
पाण्डवाश्च महेष्वासा व्यूह्य सैन्यमरिंदमाः ॥ २८ ॥
त्रिधा भूता महाराज तव सैन्यमुपाद्रवन्।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! शत्रुओंका दमन करनेवाले महाधनुर्धर पाण्डव भी सेनाका व्यूह बनाकर तीन भागोंमें विभक्त हो आपकी सेनापर चढ़ आये॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सात्यकिश्च महारथः ॥ २९ ॥
शल्यस्य वाहिनीं हन्तुमभिदुद्रुवुराहवे ।
मूलम्
धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सात्यकिश्च महारथः ॥ २९ ॥
शल्यस्य वाहिनीं हन्तुमभिदुद्रुवुराहवे ।
अनुवाद (हिन्दी)
(उन तीनोंके अध्यक्ष थे—) धृष्टद्युम्न, शिखण्डी और महारथी सात्यकि। इन लोगोंने युद्धस्थलमें शल्यकी सेनाका वध करनेके लिये उसपर धावा बोल दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो युधिष्ठिरो राजा स्वेनानीकेन संवृतः ॥ ३० ॥
शल्यमेवाभिदुद्राव जिघांसुर्भरतर्षभः ।
मूलम्
ततो युधिष्ठिरो राजा स्वेनानीकेन संवृतः ॥ ३० ॥
शल्यमेवाभिदुद्राव जिघांसुर्भरतर्षभः ।
अनुवाद (हिन्दी)
अपनी सेनासे घिरे हुए भरतश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिरने शल्यको मार डालनेकी इच्छासे उनपर ही आक्रमण किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हार्दिक्यं च महेष्वासमर्जुनः शत्रुसैन्यहा ॥ ३१ ॥
संशप्तकगणांश्चैव वेगितोऽभिविदुद्रुवे ।
मूलम्
हार्दिक्यं च महेष्वासमर्जुनः शत्रुसैन्यहा ॥ ३१ ॥
संशप्तकगणांश्चैव वेगितोऽभिविदुद्रुवे ।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुसेनाका संहार करनेवाले अर्जुनने महाधनुर्धर कृतवर्मा तथा संशप्तकगणोंपर बड़े वेगसे आक्रमण किया॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गौतमं भीमसेनो वै सोमकाश्च महारथाः ॥ ३२ ॥
अभ्यद्रवन्त राजेन्द्र जिघांसन्तः पराम् युधि।
मूलम्
गौतमं भीमसेनो वै सोमकाश्च महारथाः ॥ ३२ ॥
अभ्यद्रवन्त राजेन्द्र जिघांसन्तः पराम् युधि।
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! भीमसेन और महारथी सोमकगणोंने युद्धमें शत्रुओंका संहार करनेकी इच्छासे कृपाचार्यपर धावा बोल दिया॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
माद्रीपुत्रौ तु शकुनिमुलूकं च महारथम् ॥ ३३ ॥
ससैन्यौ सहसैन्यौ तावुपतस्थतुराहवे ।
मूलम्
माद्रीपुत्रौ तु शकुनिमुलूकं च महारथम् ॥ ३३ ॥
ससैन्यौ सहसैन्यौ तावुपतस्थतुराहवे ।
अनुवाद (हिन्दी)
सेनासहित माद्रीकुमार नकुल और सहदेव युद्धस्थलमें अपनी सेनाके साथ खड़े हुए महारथी शकुनि और उलूकका सामना करनेके लिये उपस्थित थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैवायुतशो योधास्तावकाः पाण्डवान् रणे ॥ ३४ ॥
अभ्यवर्तन्त संक्रुद्धा विविधायुधपाणयः ।
मूलम्
तथैवायुतशो योधास्तावकाः पाण्डवान् रणे ॥ ३४ ॥
अभ्यवर्तन्त संक्रुद्धा विविधायुधपाणयः ।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार रणभूमिमें नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र लिये क्रोधमें भरे हुए आपके पक्षके दस हजार योद्धा पाण्डवोंका सामना करने लगे॥३४॥
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
हते भीष्मे महेष्वासे द्रोणे कर्णे महारथे ॥ ३५ ॥
कुरुष्वल्पावशिष्टेषु पाण्डवेषु च संयुगे।
सुसंरब्धेषु पार्थेषु पराक्रान्तेषु संजय ॥ ३६ ॥
मामकानां परेषां च किं शिष्टमभवद् बलम्।
मूलम्
हते भीष्मे महेष्वासे द्रोणे कर्णे महारथे ॥ ३५ ॥
कुरुष्वल्पावशिष्टेषु पाण्डवेषु च संयुगे।
सुसंरब्धेषु पार्थेषु पराक्रान्तेषु संजय ॥ ३६ ॥
मामकानां परेषां च किं शिष्टमभवद् बलम्।
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! महाधनुर्धर भीष्म, द्रोण तथा महारथी कर्णके मारे जानेपर जब युद्धस्थलमें कौरव और पाण्डवयोद्धा थोड़े-से ही बच गये थे और कुन्तीके पुत्र अत्यन्त कुपित होकर पराक्रम दिखाने लगे थे, उस समय मेरे और शत्रुओंके पक्षमें कितनी सेना शेष रह गयी थी?॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा वयं परे राजन् युद्धाय समुपस्थिताः ॥ ३७ ॥
यावच्चासीद् बलं शिष्टं संग्रामे तन्निबोध मे।
मूलम्
यथा वयं परे राजन् युद्धाय समुपस्थिताः ॥ ३७ ॥
यावच्चासीद् बलं शिष्टं संग्रामे तन्निबोध मे।
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— राजन्! हम और हमारे शत्रु जिस प्रकार युद्धके लिये उपस्थित हुए और उस समय संग्राममें हमलोगोंके पास जितनी सेना शेष रह गयी थी, वह सब बताता हूँ, सुनिये॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकादश सहस्राणि रथानां भरतर्षभ ॥ ३८ ॥
दश दन्तिसहस्राणि सप्त चैव शतानि च।
पूर्णे शतसहस्रे द्वे हयानां तत्र भारत ॥ ३९ ॥
पत्तिकोट्यस्तथा तिस्रो बलमेतत्तवाभवत् ।
मूलम्
एकादश सहस्राणि रथानां भरतर्षभ ॥ ३८ ॥
दश दन्तिसहस्राणि सप्त चैव शतानि च।
पूर्णे शतसहस्रे द्वे हयानां तत्र भारत ॥ ३९ ॥
पत्तिकोट्यस्तथा तिस्रो बलमेतत्तवाभवत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! आपके पक्षमें ग्यारह हजार रथ, दस हजार सात सौ हाथी, दो लाख घोड़े तथा तीन करोड़ पैदल—इतनी सेना शेष रह गयी थी॥३८-३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथानां षट्सहस्राणि षट्सहस्राश्च कुञ्जराः ॥ ४० ॥
दश चाश्वसहस्राणि पत्तिकोटी च भारत।
एतद् बलं पाण्डवानामभवच्छेषमाहवे ॥ ४१ ॥
मूलम्
रथानां षट्सहस्राणि षट्सहस्राश्च कुञ्जराः ॥ ४० ॥
दश चाश्वसहस्राणि पत्तिकोटी च भारत।
एतद् बलं पाण्डवानामभवच्छेषमाहवे ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! उस युद्धमें पाण्डवोंके पास छः हजार रथ, छः हजार हाथी, दस हजार घोड़े और दो करोड़ पैदल—इतनी सेना शेष थी॥४०-४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एत एव समाजग्मुर्युद्धाय भरतर्षभ।
एवं विभज्य राजेन्द्र मद्रराजवशे स्थिताः ॥ ४२ ॥
पाण्डवान् प्रत्युदीयुस्ते जयगृद्धाः प्रमन्यवः।
मूलम्
एत एव समाजग्मुर्युद्धाय भरतर्षभ।
एवं विभज्य राजेन्द्र मद्रराजवशे स्थिताः ॥ ४२ ॥
पाण्डवान् प्रत्युदीयुस्ते जयगृद्धाः प्रमन्यवः।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! ये ही सैनिक युद्धके लिये उपस्थित हुए थे। राजेन्द्र! इस प्रकार सेनाका विभाग करके विजयकी अभिलाषासे क्रोधमें भरे हुए आपके सैनिक मद्रराज शल्यके अधीन हो पाण्डवोंपर चढ़ आये॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव पाण्डवाः शूराः समरे जितकाशिनः ॥ ४३ ॥
उपयाता नरव्याघ्राः पञ्चालाश्च यशस्विनः।
मूलम्
तथैव पाण्डवाः शूराः समरे जितकाशिनः ॥ ४३ ॥
उपयाता नरव्याघ्राः पञ्चालाश्च यशस्विनः।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार समरांगणमें विजयसे सुशोभित होनेवाले शूरवीर पुरुषसिंह पाण्डव और यशस्वी पांचाल वीर आपकी सेनाके समीप आ पहुँचे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इमे ते च बलौघेन परस्परवधैषिणः ॥ ४४ ॥
उपयाता नरव्याघ्राः पूर्वां संध्यां प्रति प्रभो।
मूलम्
इमे ते च बलौघेन परस्परवधैषिणः ॥ ४४ ॥
उपयाता नरव्याघ्राः पूर्वां संध्यां प्रति प्रभो।
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! इस प्रकार परस्पर वधकी इच्छावाले ये और वे पुरुषसिंह योद्धा प्रातःकाल एक-दूसरेके निकट आये॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रववृते युद्धं घोररूपं भयानकम्।
तावकानां परेषां च निघ्नतामितरेतरम् ॥ ४५ ॥
मूलम्
ततः प्रववृते युद्धं घोररूपं भयानकम्।
तावकानां परेषां च निघ्नतामितरेतरम् ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो परस्पर प्रहार करते हुए आपके और शत्रुपक्षके सैनिकोंमें अत्यन्त भयानक घोर युद्ध छिड़ गया॥४५॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि व्यूहनिर्माणेऽष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें व्यूह-निर्माणविषयक आठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥८॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल ४५ श्लोक हैं।)