००१

मूलम् (समाप्तिः)

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

सूचना (हिन्दी)

श्रीमहाभारतम्

भागसूचना

शल्यपर्व
प्रथमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

संजयके मुखसे शल्य और दुर्योधनके वधका वृत्तान्त सुनकर राजा धृतराष्ट्रका मूर्च्छित होना और सचेत होनेपर उन्हें विदुरका आश्वासन देना

विश्वास-प्रस्तुतिः

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥

मूलम्

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्॥

अनुवाद (हिन्दी)

अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण, (उनके नित्य सखा) नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करनेवाली) भगवती सरस्वती और (उन लीलाओंका संकलन करनेवाले) महर्षि वेदव्यासको नमस्कार करके जय (महाभारत)-का पाठ करना चाहिये।

मूलम् (वचनम्)

जनमेजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं निपातिते कर्णे समरे सव्यसाचिना।
अल्पावशिष्टाः कुरवः किमकुर्वत वै द्विज ॥ १ ॥

मूलम्

एवं निपातिते कर्णे समरे सव्यसाचिना।
अल्पावशिष्टाः कुरवः किमकुर्वत वै द्विज ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जनमेजयने पूछा— ब्रह्मन्! जब इस प्रकार समरांगणमें सव्यसाची अर्जुनने कर्णको मार गिराया, तब थोड़े-से बचे हुए कौरव-सैनिकोंने क्या किया?॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उदीर्यमाणं च बलं दृष्ट्वा राजा सुयोधनः।
पाण्डवैः प्राप्तकालं च किं प्रापद्यत कौरवः ॥ २ ॥

मूलम्

उदीर्यमाणं च बलं दृष्ट्वा राजा सुयोधनः।
पाण्डवैः प्राप्तकालं च किं प्रापद्यत कौरवः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंका बल बढ़ता देखकर कुरुवंशी राजा दुर्योधनने उनके साथ कौन-सा समयोचित बर्ताव करनेका निश्चय किया?॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तदाचक्ष्व द्विजोत्तम।
न हि तृप्यामि पूर्वेषां शृण्वानश्चरितं महत् ॥ ३ ॥

मूलम्

एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तदाचक्ष्व द्विजोत्तम।
न हि तृप्यामि पूर्वेषां शृण्वानश्चरितं महत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्विजश्रेष्ठ! मैं यह सब सुनना चाहता हूँ। मुझे अपने पूर्वजोंका महान् चरित्र सुनते-सुनते तृप्ति नहीं हो रही है, अतः आप इसका वर्णन कीजिये॥३॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कर्णे हते राजन् धार्तराष्ट्रः सुयोधनः।
भृशं शोकार्णवे मग्नो निराशः सर्वतोऽभवत् ॥ ४ ॥

मूलम्

ततः कर्णे हते राजन् धार्तराष्ट्रः सुयोधनः।
भृशं शोकार्णवे मग्नो निराशः सर्वतोऽभवत् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजीने कहा— राजन्! कर्णके मारे जानेपर धृतराष्ट्रपुत्र राजा दुर्योधन शोकके समुद्रमें डूब गया और सब ओरसे निराश हो गया॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हा कर्ण हा कर्ण इति शोचमानः पुनः पुनः।
कृच्छ्रात् स्वशिबिरं प्राप्तो हतशेषैर्नृपैः सह ॥ ५ ॥

मूलम्

हा कर्ण हा कर्ण इति शोचमानः पुनः पुनः।
कृच्छ्रात् स्वशिबिरं प्राप्तो हतशेषैर्नृपैः सह ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘हा कर्ण! हा कर्ण!’ ऐसा कहकर बारंबार शोकग्रस्त हो मरनेसे बचे हुए नरेशोंके साथ वह बड़ी कठिनाईसे अपने शिबिरमें आया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स समाश्वास्यमानोऽपि हेतुभिः शास्त्रनिश्चितैः।
राजभिर्नालभच्छर्म सूतपुत्रवधं स्मरन् ॥ ६ ॥

मूलम्

स समाश्वास्यमानोऽपि हेतुभिः शास्त्रनिश्चितैः।
राजभिर्नालभच्छर्म सूतपुत्रवधं स्मरन् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजाओंने शास्त्रनिश्चित युक्तियोंद्वारा उसे बहुत समझाया-बुझाया तो भी सूतपुत्रके वधका स्मरण करके उसे शान्ति नहीं मिली॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स दैवं बलवन्मत्वा भवितव्यं च पार्थिवः।
संग्रामे निश्चयं कृत्वा पुनर्युद्धाय निर्ययौ ॥ ७ ॥

मूलम्

स दैवं बलवन्मत्वा भवितव्यं च पार्थिवः।
संग्रामे निश्चयं कृत्वा पुनर्युद्धाय निर्ययौ ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस राजा दुर्योधनने दैव और भवितव्यताको प्रबल मानकर संग्राम जारी रखनेका ही दृढ़ निश्चय करके पुनः युद्धके लिये प्रस्थान किया॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शल्यं सेनापतिं कृत्वा विधिवद् राजपुङ्गवः।
रणाय निर्ययौ राजा हतशेषैर्नृपैः सह ॥ ८ ॥

मूलम्

शल्यं सेनापतिं कृत्वा विधिवद् राजपुङ्गवः।
रणाय निर्ययौ राजा हतशेषैर्नृपैः सह ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नृपश्रेष्ठ राजा दुर्योधन शल्यको विधिपूर्वक सेनापति बनाकर मरनेसे बचे हुए राजाओंके साथ युद्धके लिये निकला॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सुतुमुलं युद्धं कुरुपाण्डवसेनयोः।
बभूव भरतश्रेष्ठ देवासुररणोपमम् ॥ ९ ॥

मूलम्

ततः सुतुमुलं युद्धं कुरुपाण्डवसेनयोः।
बभूव भरतश्रेष्ठ देवासुररणोपमम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर कौरव-पाण्डव सेनाओंमें घोर युद्ध हुआ, जो देवासुर-संग्रामके समान भयंकर था॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शल्यो महाराज कृत्वा कदनमाहवे।
ससैन्योऽथ स मध्याह्ने धर्मराजेन घातितः ॥ १० ॥

मूलम्

ततः शल्यो महाराज कृत्वा कदनमाहवे।
ससैन्योऽथ स मध्याह्ने धर्मराजेन घातितः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तत्पश्चात् सेनासहित शल्य युद्धमें बड़ा भारी संहार मचाकर मध्याह्नकालमें धर्मराज युधिष्ठिरके हाथसे मारे गये॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो राजा हतबन्धू रणाजिरात्।
अपसृत्य ह्रदं घोरं विवेश रिपुजाद् भयात् ॥ ११ ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनो राजा हतबन्धू रणाजिरात्।
अपसृत्य ह्रदं घोरं विवेश रिपुजाद् भयात् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर राजा दुर्योधन अपने भाइयोंके मारे जानेपर समरांगणसे दूर जाकर शत्रुके भयसे भयंकर तालाबमें घुस गया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथापराह्णे तस्याह्नः परिवार्य सुयोधनः।
ह्रदादाहूय युद्धाय भीमसेनेन पातितः ॥ १२ ॥

मूलम्

अथापराह्णे तस्याह्नः परिवार्य सुयोधनः।
ह्रदादाहूय युद्धाय भीमसेनेन पातितः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद उसी दिन अपराह्णकालमें दुर्योधनपर घेरा डालकर उसे युद्धके लिये तालाबसे बुलाकर भीमसेनने मार गिराया॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् हते महेष्वासे हतशिष्टास्त्रयो रथाः।
संरम्भान्निशि राजेन्द्र जघ्नुः पांचालसोमकान् ॥ १३ ॥

मूलम्

तस्मिन् हते महेष्वासे हतशिष्टास्त्रयो रथाः।
संरम्भान्निशि राजेन्द्र जघ्नुः पांचालसोमकान् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! उस महाधनुर्धर दुर्योधनके मारे जानेपर मरनेसे बचे हुए तीन रथी—कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामाने रातमें सोते समय पांचालों और सोमकोंको रोषपूर्वक मार डाला॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पूर्वाह्णसमये शिबिरादेत्य संजयः।
प्रविवेश पुरीं दीनो दुःखशोकसमन्वितः ॥ १४ ॥

मूलम्

ततः पूर्वाह्णसमये शिबिरादेत्य संजयः।
प्रविवेश पुरीं दीनो दुःखशोकसमन्वितः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् पूर्वाह्णकालमें दुःख और शोकमें डूबे हुए संजयने शिबिरसे आकर दीनभावसे हस्तिनापुरमें प्रवेश किया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स प्रविश्य पुरीं सूतो भुजावुच्छ्रित्य दुःखितः।
वेपमानस्ततो राज्ञः प्रविवेश निकेतनम् ॥ १५ ॥

मूलम्

स प्रविश्य पुरीं सूतो भुजावुच्छ्रित्य दुःखितः।
वेपमानस्ततो राज्ञः प्रविवेश निकेतनम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरीमें प्रवेश करके दोनों बाँहें ऊपर उठाकर दुःखमग्न हो काँपते हुए संजय राजभवनके भीतर गये॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रुरोद च नरव्याघ्र हा राजन्निति दुःखितः।
अहो बत विनष्टाः स्म निधनेन महात्मनः ॥ १६ ॥

मूलम्

रुरोद च नरव्याघ्र हा राजन्निति दुःखितः।
अहो बत विनष्टाः स्म निधनेन महात्मनः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

और रोते हुए दुःखी होकर बोले—‘हा नरव्याघ्र नरेश! हा राजन्! बड़े शोककी बात है! महामनस्वी कुरुराजके निधनसे हम सर्वथा नष्टप्राय हो गये!॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विधिश्च बलवानत्र पौरुषं तु निरर्थकम्।
शक्रतुल्यबलाः सर्वे यथावध्यन्त पापडवैः ॥ १७ ॥

मूलम्

विधिश्च बलवानत्र पौरुषं तु निरर्थकम्।
शक्रतुल्यबलाः सर्वे यथावध्यन्त पापडवैः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘इस जगत्‌में भाग्य ही बलवान् है। पुरुषार्थ तो निरर्थक है, क्योंकि आपके सभी पुत्र इन्द्रके तुल्य बलवान् होनेपर भी पाण्डवोंके हाथसे मारे गये!’॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वैव च पुरे राजञ्जनः सर्वः स संजयम्।
क्लेशेन महता युक्तं सर्वतो राजसत्तम ॥ १८ ॥
रुरोद च भृशोद्विग्नो हा राजन्निति विस्वरम्।
आकुमारं नरव्याघ्र तत्र तत्र समन्ततः ॥ १९ ॥
आर्तनादं ततश्चक्रे श्रुत्वा विनिहतं नृपम्।

मूलम्

दृष्ट्वैव च पुरे राजञ्जनः सर्वः स संजयम्।
क्लेशेन महता युक्तं सर्वतो राजसत्तम ॥ १८ ॥
रुरोद च भृशोद्विग्नो हा राजन्निति विस्वरम्।
आकुमारं नरव्याघ्र तत्र तत्र समन्ततः ॥ १९ ॥
आर्तनादं ततश्चक्रे श्रुत्वा विनिहतं नृपम्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! नृपश्रेष्ठ! हस्तिनापुरके सभी लोग संजयको सर्वथा महान् क्लेशसे युक्त देखकर अत्यन्त उद्विग्न हो ‘हा राजन्!’ ऐसा कहते हुए फूट-फूटकर रोने लगे। नरव्याघ्र! वहाँ चारों ओर बच्चोंसे लेकर बूढ़ोंतक सब लोग राजाको मारा गया सुन आर्तनाद करने लगे॥१८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धावतश्चाप्यपश्यामस्तत्र तान् पुरुषर्षभान् ॥ २० ॥
नष्टचित्तानिवोन्मत्तान् शोकेन भृशपीडितान् ।

मूलम्

धावतश्चाप्यपश्यामस्तत्र तान् पुरुषर्षभान् ॥ २० ॥
नष्टचित्तानिवोन्मत्तान् शोकेन भृशपीडितान् ।

अनुवाद (हिन्दी)

हमलोगोंने देखा कि वे नगरके श्रेष्ठ पुरुष अचेत और उन्मत्त-से होकर शोकसे अत्यन्त पीड़ित हो वहाँ दौड़ रहे हैं॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा स विह्वलः सूतः प्रविश्य नृपतिक्षयम् ॥ २१ ॥
ददर्श नृपतिश्रेष्ठं प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम् ।

मूलम्

तथा स विह्वलः सूतः प्रविश्य नृपतिक्षयम् ॥ २१ ॥
ददर्श नृपतिश्रेष्ठं प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार व्याकुल हुए संजयने राजभवनमें प्रवेश करके अपने स्वामी प्रज्ञाचक्षु नृपश्रेष्ठ धृतराष्ट्रका दर्शन किया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा चासीनमनघं समन्तात् परिवारितम् ॥ २२ ॥
स्नुषाभिर्भरतश्रेष्ठ गान्धार्या विदुरेण च।
तथान्यैश्च सुहृद्भिश्च ज्ञातिभिश्च हितैषिभिः ॥ २३ ॥
तमेव चार्थं ध्यायन्तं कर्णस्य निधनं प्रति।

मूलम्

तथा चासीनमनघं समन्तात् परिवारितम् ॥ २२ ॥
स्नुषाभिर्भरतश्रेष्ठ गान्धार्या विदुरेण च।
तथान्यैश्च सुहृद्भिश्च ज्ञातिभिश्च हितैषिभिः ॥ २३ ॥
तमेव चार्थं ध्यायन्तं कर्णस्य निधनं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! वे निष्पाप नरेश अपनी पुत्रवधुओं, गान्धारी, विदुर तथा अन्य हितैषी सुहृदों एवं बन्धु-बान्धवोंद्वारा सब ओरसे घिरे हुए बैठे थे और कर्णके मारे जानेसे होनेवाले परिणामका चिन्तन कर रहे थे॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रुदन्नेवाब्रवीद् वाक्यं राजानं जनमेजय ॥ २४ ॥
नातिहृष्टमनाः सूतो वाक्यसंदिग्धया गिरा।
संजयोऽहं नरव्याघ्र नमस्ते भरतर्षभ ॥ २५ ॥

मूलम्

रुदन्नेवाब्रवीद् वाक्यं राजानं जनमेजय ॥ २४ ॥
नातिहृष्टमनाः सूतो वाक्यसंदिग्धया गिरा।
संजयोऽहं नरव्याघ्र नमस्ते भरतर्षभ ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जनमेजय! उस समय संजयने खिन्नचित्त होकर रोते हुए ही संदिग्ध वाणीमें कहा—‘नरव्याघ्र! भरतश्रेष्ठ! मैं संजय हूँ। आपको नमस्कार है॥२४-२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मद्राधिपो हतः शल्यः शकुनिः सौबलस्तथा।
उलूकः पुरुषव्याघ्र कैतव्यो दृढविक्रमः ॥ २६ ॥

मूलम्

मद्राधिपो हतः शल्यः शकुनिः सौबलस्तथा।
उलूकः पुरुषव्याघ्र कैतव्यो दृढविक्रमः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पुरुषसिंह! मद्रराज शल्य, सुबलपुत्र शकुनि तथा जुआरीका पुत्र सुदृढ़पराक्रमी उलूक—ये सब-के-सब मारे गये॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संशप्तका हताः सर्वे काम्बोजाश्च शकैः सह।
म्लेच्छाश्च पर्वतीयाश्च यवना विनिपातिताः ॥ २७ ॥

मूलम्

संशप्तका हताः सर्वे काम्बोजाश्च शकैः सह।
म्लेच्छाश्च पर्वतीयाश्च यवना विनिपातिताः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘समस्त संशप्तक वीर, काम्बोज, शक, म्लेच्छ, पर्वतीय योद्धा और यवनसैनिक मार गिराये गये॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्राच्या हता महाराज दाक्षिणात्याश्च सर्वशः।
उदीच्याश्च हताः सर्वे प्रतीच्याश्च नरोत्तमाः ॥ २८ ॥

मूलम्

प्राच्या हता महाराज दाक्षिणात्याश्च सर्वशः।
उदीच्याश्च हताः सर्वे प्रतीच्याश्च नरोत्तमाः ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाराज! पूर्वदेशके योद्धा मारे गये, समस्त दाक्षिणात्योंका संहार हो गया तथा उत्तर और पश्चिमके सभी श्रेष्ठ मनुष्य मार डाले गये॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजानो राजपुत्राश्च सर्वे ते निहता नृप।
दुर्योधनो हतो राजा यथोक्तं पाण्डवेन ह ॥ २९ ॥
भग्नसक्थो महाराज शेते पांसुषु रूषितः।

मूलम्

राजानो राजपुत्राश्च सर्वे ते निहता नृप।
दुर्योधनो हतो राजा यथोक्तं पाण्डवेन ह ॥ २९ ॥
भग्नसक्थो महाराज शेते पांसुषु रूषितः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘नरेश्वर! समस्त राजा और राजकुमार कालके गालमें चले गये। महाराज! जैसा पाण्डुपुत्र भीमसेनने कहा था, उसके अनुसार राजा दुर्योधन भी मारा गया। उसकी जाँघ टूट गयी और वह धूल-धूसर होकर पृथ्वीपर पड़ा है॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नो महाराज शिखण्डी चापराजितः ॥ ३० ॥
उत्तमौजा युधामन्युस्तथा राजन् प्रभद्रकाः।
पञ्चालाश्च नरव्याघ्र चेदयश्च निषूदिताः ॥ ३१ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नो महाराज शिखण्डी चापराजितः ॥ ३० ॥
उत्तमौजा युधामन्युस्तथा राजन् प्रभद्रकाः।
पञ्चालाश्च नरव्याघ्र चेदयश्च निषूदिताः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाराज! नरव्याघ्र नरेश! धृष्टद्युम्न, अपराजित वीर शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, प्रभद्रकगण, पांचाल और चेदिदेशीय योद्धाओंका भी संहार हो गया’॥३०-३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तव पुत्रा हताः सर्वे द्रौपदेयाश्च भारत।
कर्णपुत्रो हतः शूरो वृषसेनः प्रतापवान् ॥ ३२ ॥

मूलम्

तव पुत्रा हताः सर्वे द्रौपदेयाश्च भारत।
कर्णपुत्रो हतः शूरो वृषसेनः प्रतापवान् ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भारत! आपके तथा द्रौपदीके भी सभी पुत्र मारे गये। कर्णका प्रतापी एवं शूरवीर पुत्र वृषसेन भी नष्ट हो गया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नरा विनिहताः सर्वे गजाश्च विनिपातिताः।
रथिनश्च नरव्याघ्र हयाश्च निहता युधि ॥ ३३ ॥

मूलम्

नरा विनिहताः सर्वे गजाश्च विनिपातिताः।
रथिनश्च नरव्याघ्र हयाश्च निहता युधि ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘नरव्याघ्र! युद्धस्थलमें समस्त पैदल मनुष्य, हाथीसवार, रथी और घुड़सवार भी मार गिराये गये॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किञ्चिच्छेषं च शिबिरं तावकानां कृतं प्रभो।
पाण्डवानां कुरूणां च समासाद्य परस्परम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

किञ्चिच्छेषं च शिबिरं तावकानां कृतं प्रभो।
पाण्डवानां कुरूणां च समासाद्य परस्परम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘प्रभो! पाण्डवों तथा कौरवोंमें परस्पर संघर्ष होकर आपके पुत्रों तथा पाण्डवोंके शिबिरमें किंचिन्मात्र ही शेष रह गया है॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रायः स्त्रीशेषमभवज्जगत् कालेन मोहितम्।
सप्त पाण्डवतः शेषा धार्तराष्ट्रास्त्रयो रथाः ॥ ३५ ॥

मूलम्

प्रायः स्त्रीशेषमभवज्जगत् कालेन मोहितम्।
सप्त पाण्डवतः शेषा धार्तराष्ट्रास्त्रयो रथाः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘प्रायः कालसे मोहित हुए सारे जगत्‌में स्त्रियाँ ही शेष रह गयी हैं। पाण्डवपक्षमें सात और आपके पक्षमें तीन रथी मरनेसे बचे हैं॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते चैव भ्रातरः पञ्च वासुदेवोऽथ सात्यकिः।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिश्च जयतां वरः ॥ ३६ ॥

मूलम्

ते चैव भ्रातरः पञ्च वासुदेवोऽथ सात्यकिः।
कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिश्च जयतां वरः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘उधर पाँचों भाई पाण्डव, वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण और सात्यकि शेष हैं तथा इधर कृपाचार्य, कृतवर्मा और विजयी वीरोंमें श्रेष्ठ अश्वत्थामा जीवित हैं॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथाप्येते महाराज रथिनो नृपसत्तम।
अक्षौहिणीनां सर्वासां समेतानां जनेश्वर ॥ ३७ ॥
एते शेषा महाराज सर्वेऽन्ये निधनं गताः।

मूलम्

तथाप्येते महाराज रथिनो नृपसत्तम।
अक्षौहिणीनां सर्वासां समेतानां जनेश्वर ॥ ३७ ॥
एते शेषा महाराज सर्वेऽन्ये निधनं गताः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘नृपश्रेष्ठ! जनेश्वर! महाराज! उभय पक्षमें जो समस्त अक्षौहिणी सेनाएँ एकत्र हुई थीं, उनमेंसे ये ही रथी शेष रह गये हैं, अन्य सब लोग कालके गालमें चले गये॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कालेन निहतं सर्वं जगद् वै भरतर्षभ ॥ ३८ ॥
दुर्योधनं वै पुरतः कृत्वा वैरं च भारत।

मूलम्

कालेन निहतं सर्वं जगद् वै भरतर्षभ ॥ ३८ ॥
दुर्योधनं वै पुरतः कृत्वा वैरं च भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

‘भरतश्रेष्ठ! भरतनन्दन! कालने दुर्योधन और उसके वैरको आगे करके सम्पूर्ण जगत्‌को नष्ट कर दिया’॥३८॥

मूलम् (वचनम्)

वैशम्पायन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतच्छ्रुत्वा वचः क्रूरं धृतराष्ट्रो जनेश्वरः ॥ ३९ ॥
निपपात स राजेन्द्रो गतसत्त्वो महीतले।

मूलम्

एतच्छ्रुत्वा वचः क्रूरं धृतराष्ट्रो जनेश्वरः ॥ ३९ ॥
निपपात स राजेन्द्रो गतसत्त्वो महीतले।

अनुवाद (हिन्दी)

वैशम्पायनजी कहते हैं— जनमेजय! यह क्रूर वचन सुनकर राजाधिराज जनेश्वर धृतराष्ट्र प्राणहीन-से होकर पृथ्वीपर गिर पड़े॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् निपतिते भूमौ विदुरोऽपि महायशाः ॥ ४० ॥
निपपात महाराज शोकव्यसनकर्षितः ।

मूलम्

तस्मिन् निपतिते भूमौ विदुरोऽपि महायशाः ॥ ४० ॥
निपपात महाराज शोकव्यसनकर्षितः ।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उनके गिरते ही महायशस्वी विदुरजी भी शोकसंतापसे दुर्बल हो धड़ामसे गिर पड़े॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गान्धारी च नृपश्रेष्ठ सर्वाश्च कुरुयोषितः ॥ ४१ ॥
पतिताः सहसा भूमौ श्रुत्वा क्रूरं वचस्तदा।
निःसंज्ञं पतितं भूमौ तदासीद् राजमण्डलम् ॥ ४२ ॥
प्रलापयुक्तं महति चित्रन्यस्तं पटे यथा।

मूलम्

गान्धारी च नृपश्रेष्ठ सर्वाश्च कुरुयोषितः ॥ ४१ ॥
पतिताः सहसा भूमौ श्रुत्वा क्रूरं वचस्तदा।
निःसंज्ञं पतितं भूमौ तदासीद् राजमण्डलम् ॥ ४२ ॥
प्रलापयुक्तं महति चित्रन्यस्तं पटे यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

नृपश्रेष्ठ! उस समय वह क्रूरतापूर्ण वचन सुनकर कुरुकुलकी समस्त स्त्रियाँ और गान्धारी देवी सहसा पृथ्वीपर गिर गयीं, राजपरिवारके सभी लोग अपनी सुध-बुध खोकर धरतीपर गिर पड़े और प्रलाप करने लगे। वे ऐसे जान पड़ते थे मानो विशाल पटपर अंकित किये गये चित्र हों॥४१-४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृच्छ्रेण तु ततो राजा धृतराष्ट्रो महीपतिः ॥ ४३ ॥
शनैरलभत प्राणान् पुत्रव्यसनकर्शितः ।

मूलम्

कृच्छ्रेण तु ततो राजा धृतराष्ट्रो महीपतिः ॥ ४३ ॥
शनैरलभत प्राणान् पुत्रव्यसनकर्शितः ।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् पुत्रशोकसे पीड़ित हुए पृथ्वीपति राजा धृतराष्ट्रमें बड़ी कठिनाईसे धीरे-धीरे प्राणोंका संचार हुआ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

लब्ध्वा तु स नृपः संज्ञां वेपमानः सुदुःखितः ॥ ४४ ॥
उदीक्ष्य च दिशः सर्वाः क्षत्तारं वाक्यमब्रवीत्।
विद्वत् क्षत्तर्महाप्राज्ञ त्वं गतिर्भरतर्षभ ॥ ४५ ॥
ममानाथस्य सुभृशं पुत्रैर्हीनस्य सर्वशः।
एवमुक्त्वा ततो भूयो विसंज्ञो निपपात ह ॥ ४६ ॥

मूलम्

लब्ध्वा तु स नृपः संज्ञां वेपमानः सुदुःखितः ॥ ४४ ॥
उदीक्ष्य च दिशः सर्वाः क्षत्तारं वाक्यमब्रवीत्।
विद्वत् क्षत्तर्महाप्राज्ञ त्वं गतिर्भरतर्षभ ॥ ४५ ॥
ममानाथस्य सुभृशं पुत्रैर्हीनस्य सर्वशः।
एवमुक्त्वा ततो भूयो विसंज्ञो निपपात ह ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चेतना पाकर राजा धृतराष्ट्र अत्यन्त दुःखी हो थर-थर काँपने लगे और सम्पूर्ण दिशाओंकी ओर देखकर विदुरसे इस प्रकार बोले—‘विद्वन्! महाज्ञानी विदुर! भरतभूषण! अब तुम्हीं मुझ पुत्रहीन और अनाथके सर्वथा आश्रय हो।’ इतना कहकर वे पुनः अचेत हो पृथ्वीपर गिर पड़े॥४४—४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं तथा पतितं दृष्ट्वा बान्धवा येऽस्य केचन।
शीतैस्ते सिषिचुस्तोयैर्विव्यजुर्व्यजनैरपि ॥ ४७ ॥

मूलम्

तं तथा पतितं दृष्ट्वा बान्धवा येऽस्य केचन।
शीतैस्ते सिषिचुस्तोयैर्विव्यजुर्व्यजनैरपि ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हें इस प्रकार गिरा हुआ देख उनके जो कोई बन्धु-बान्धव वहाँ मौजूद थे, उन्होंने राजाके शरीरपर ठंडे जलके छींटे दिये और व्यजन डुलाये॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु दीर्घेण कालेन प्रत्याश्वस्तो नराधिपः।
तूष्णीं दध्यौ महीपालः पुत्रव्यसनकर्शितः ॥ ४८ ॥

मूलम्

स तु दीर्घेण कालेन प्रत्याश्वस्तो नराधिपः।
तूष्णीं दध्यौ महीपालः पुत्रव्यसनकर्शितः ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर बहुत देरके बाद जब राजा धृतराष्ट्रको होश हुआ, तब वे पुत्रशोकसे पीड़ित हो चिन्तामग्न हो गये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निःश्वसन् जिह्मग इव कुम्भक्षिप्तो विशाम्पते।
संजयोऽप्यरुदत् तत्र दृष्ट्वा राजानमातुरम् ॥ ४९ ॥

मूलम्

निःश्वसन् जिह्मग इव कुम्भक्षिप्तो विशाम्पते।
संजयोऽप्यरुदत् तत्र दृष्ट्वा राजानमातुरम् ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! उस समय वे घड़ेमें रखे हुए सर्पके समान लंबी साँस खींचने लगे। राजाको इस प्रकार आतुर देखकर संजय भी वहाँ रोने लगे॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा सर्वाः स्त्रियश्चैव गान्धारी च यशस्विनी।
ततो दीर्घेण कालेन विदुरं वाक्यमब्रवीत् ॥ ५० ॥
धृतराष्ट्रो नरश्रेष्ठ मुह्यमानो मुहुर्मुहुः।
गच्छन्तु योषितः सर्वा गान्धारी च यशस्विनी ॥ ५१ ॥
तथेमे सुहृदः सर्वे भ्राम्यते मे मनो भृशम्।

मूलम्

तथा सर्वाः स्त्रियश्चैव गान्धारी च यशस्विनी।
ततो दीर्घेण कालेन विदुरं वाक्यमब्रवीत् ॥ ५० ॥
धृतराष्ट्रो नरश्रेष्ठ मुह्यमानो मुहुर्मुहुः।
गच्छन्तु योषितः सर्वा गान्धारी च यशस्विनी ॥ ५१ ॥
तथेमे सुहृदः सर्वे भ्राम्यते मे मनो भृशम्।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर सारी स्त्रियाँ और यशस्विनी गान्धारी देवी भी फूट-फूटकर रोने लगीं। नरश्रेष्ठ! तत्पश्चात् बहुत देरके बाद बारंबार मोहित होते हुए धृतराष्ट्रने विदुरसे कहा—‘ये सारी स्त्रियाँ और यशस्विनी गान्धारी देवी भी यहाँसे चली जायँ। ये समस्त सुहृद् भी अब यहाँसे पधारें; क्योंकि मेरा चित्त अत्यन्त भ्रान्त हो रहा है’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्ततः क्षत्ता ताः स्त्रियो भरतर्षभ ॥ ५२ ॥
विसर्जयामास शनैर्वेपमानः पुनः पुनः।

मूलम्

एवमुक्तस्ततः क्षत्ता ताः स्त्रियो भरतर्षभ ॥ ५२ ॥
विसर्जयामास शनैर्वेपमानः पुनः पुनः।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! उनके ऐसा कहनेपर बारंबार काँपते हुए विदुरजीने उन सब स्त्रियोंको धीरे-धीरे बिदा कर दिया॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निश्चक्रमुस्ततः सर्वाः स्त्रियो भरतसत्तम ॥ ५३ ॥
सुहृदश्च तथा सर्वे दृष्ट्वा राजानमातुरम्।

मूलम्

निश्चक्रमुस्ततः सर्वाः स्त्रियो भरतसत्तम ॥ ५३ ॥
सुहृदश्च तथा सर्वे दृष्ट्वा राजानमातुरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतभूषण! फिर वे सारी स्त्रियाँ और समस्त सुहृद्‌गण राजाको आतुर देखकर वहाँसे चले गये॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो नरपतिं तत्र लब्धसंज्ञं परंतप ॥ ५४ ॥
अवैक्षत् संजयो दीनं रोदमानं भृशातुरम्।

मूलम्

ततो नरपतिं तत्र लब्धसंज्ञं परंतप ॥ ५४ ॥
अवैक्षत् संजयो दीनं रोदमानं भृशातुरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंको संताप देनेवाले नरेश! तदनन्तर होशमें आकर अत्यन्त आतुर हो दीनभावसे विलाप करते हुए राजा धृतराष्ट्रकी ओर संजयने देखा॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्राञ्जलिर्निःश्वसन्तं च तं नरेन्द्रं मुहुर्मुहुः।
समाश्वासयत क्षत्ता वचसा मधुरेण च ॥ ५५ ॥

मूलम्

प्राञ्जलिर्निःश्वसन्तं च तं नरेन्द्रं मुहुर्मुहुः।
समाश्वासयत क्षत्ता वचसा मधुरेण च ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय बारंबार लंबी साँस खींचते हुए राजा धृतराष्ट्रको विदुरजीने हाथ जोड़कर अपनी मधुर वाणीद्वारा आश्वासन दिया॥५५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते शल्यपर्वणि धृतराष्ट्रप्रमोहे प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्वमें धृतराष्ट्रका मोहविषयक पहला अध्याय पूरा हुआ॥१॥