०९३

भागसूचना

त्रिनवतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेनद्वारा पचीस हजार पैदल सैनिकोंका वध, अर्जुनद्वारा रथसेनाका विध्वंस, कौरव-सेनाका पलायन और दुर्योधनका उसे रोकनेके लिये विफल प्रयास

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्तु कर्णार्जुनयोर्विमर्दे
दग्धस्य रौद्रेऽहनि विद्रुतस्य ।
बभूव रूपं कुरुसृञ्जयानां
बलस्य बाणोन्मथितस्य कीदृक् ॥ १ ॥

मूलम्

तस्मिंस्तु कर्णार्जुनयोर्विमर्दे
दग्धस्य रौद्रेऽहनि विद्रुतस्य ।
बभूव रूपं कुरुसृञ्जयानां
बलस्य बाणोन्मथितस्य कीदृक् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! कर्ण और अर्जुनके उस संग्राममें, जबकि सबके लिये भयानक दिन उपस्थित हुआ था, बाणोंकी आगसे दग्ध और उन्मथित होकर भागती हुई कौरव-सेना तथा सृंजय-सेनाकी कैसी अवस्था हुई?॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणु राजन्नवहितो यथा वृत्तो महाक्षयः।
घोरो मनुष्यदेहानामाजौ च गजवाजिनाम् ॥ २ ॥

मूलम्

शृणु राजन्नवहितो यथा वृत्तो महाक्षयः।
घोरो मनुष्यदेहानामाजौ च गजवाजिनाम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजयने कहा— राजन्! उस युद्धस्थलमें मनुष्यके शरीरों, हाथियों और घोड़ोंका जैसा घोर एवं महान् विनाश हुआ, वह सब सावधान होकर सुनिये॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्र कर्णे हते पार्थः सिंहनादमथाकरोत्।
तदा तव सुतान् राजन्नाविवेश महद् भयम् ॥ ३ ॥

मूलम्

यत्र कर्णे हते पार्थः सिंहनादमथाकरोत्।
तदा तव सुतान् राजन्नाविवेश महद् भयम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! कर्णके मारे जानेपर अर्जुनने महान् सिंहनाद किया, उस समय आपके पुत्रोंके मनमें बड़ा भारी भय समा गया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न संधातुमनीकानि न चैवाशु पराक्रमे।
आसीद् बुद्धिर्हते कर्णे तव योधस्य कर्हिचित् ॥ ४ ॥

मूलम्

न संधातुमनीकानि न चैवाशु पराक्रमे।
आसीद् बुद्धिर्हते कर्णे तव योधस्य कर्हिचित् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब कर्णका वध हो गया, तब आपके किसी भी योद्धाका मन कदापि जल्दी पराक्रम दिखानेमें नहीं लगा और न सेनाको संगठित रखनेकी ओर ही किसीका ध्यान गया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वणिजो नावि भिन्नायामगाधे विप्लवे यथा।
अपारे पारमिच्छन्तो हते द्वीपे किरीटिना ॥ ५ ॥

मूलम्

वणिजो नावि भिन्नायामगाधे विप्लवे यथा।
अपारे पारमिच्छन्तो हते द्वीपे किरीटिना ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अगाध एवं अपार समुद्रमें तूफान उठनेपर जब जहाज फट जाता है, उस समय पार जानेकी इच्छावाले व्यापारियोंकी जैसी अवस्था होती है, वही दशा किरीटधारी अर्जुनके द्वारा द्वीपस्वरूप कर्णके मारे जानेपर कौरवोंकी हुई॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूतपुत्रे हते राजन् वित्रस्ताः शस्त्रविक्षताः।
अनाथा नाथमिच्छन्तो मृगाः सिंहैरिवार्दिताः ॥ ६ ॥

मूलम्

सूतपुत्रे हते राजन् वित्रस्ताः शस्त्रविक्षताः।
अनाथा नाथमिच्छन्तो मृगाः सिंहैरिवार्दिताः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! सूतपुत्रका वध हो जानेपर सिंहसे पीड़ित हुए मृगोंके समान कौरव-सैनिक भयभीत हो उठे। वे अस्त्र-शस्त्रोंसे घायल हो गये थे और अनाथ होकर अपने लिये कोई रक्षक चाहते थे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भग्नशृङ्गा वृषा यद्वद् भग्नदंष्ट्रा इवोरगाः।
प्रत्यपायाम सायाह्ने निर्जिताः सव्यसचिना ॥ ७ ॥

मूलम्

भग्नशृङ्गा वृषा यद्वद् भग्नदंष्ट्रा इवोरगाः।
प्रत्यपायाम सायाह्ने निर्जिताः सव्यसचिना ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हम सब लोग सायंकालमें सव्यसाची अर्जुनसे परास्त होकर शिबिरकी ओर लौटे थे। उस समय हमारी दशा उन बैलोंके समान हो रही थी, जिनके सींग तोड़ दिये गये हों। हम उन सर्पोंके समान हो गये थे, जिनके विषैले दाँत नष्ट कर दिये गये हों॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतप्रवीरा विध्वस्ता निकृत्ता निशितैः शरैः।
सूतपुत्रे हते राजन् पुत्रास्ते दुद्रुवुर्भयात् ॥ ८ ॥

मूलम्

हतप्रवीरा विध्वस्ता निकृत्ता निशितैः शरैः।
सूतपुत्रे हते राजन् पुत्रास्ते दुद्रुवुर्भयात् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! सूतपुत्रके मारे जानेपर पैने बाणोंसे क्षत-विक्षत एवं पराजित हुए आपके पुत्र भयके मारे भागने लगे। उनके प्रमुख वीर रणभूमिमें मारे जा चुके थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विस्रस्तयन्त्रकवचाः कांदिग्भूता विचेतसः ।
अन्योन्यमवमृद्नन्तो वीक्षमाणा भयार्दिताः ॥ ९ ॥

मूलम्

विस्रस्तयन्त्रकवचाः कांदिग्भूता विचेतसः ।
अन्योन्यमवमृद्नन्तो वीक्षमाणा भयार्दिताः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके यन्त्र और कवच गिर गये थे। वे अचेत होकर यह भी नहीं सोच पाते थे कि हम भागकर किस दिशामें जायँ? एक-दूसरेको कुचलते और चारों ओर देखते हुए भयसे पीड़ित हो गये थे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मामेव नूनं बीभत्सुर्मामेव च वृकोदरः।
अभियातीति मन्वानाः पेतुर्मम्लुश्च सम्भ्रमात् ॥ १० ॥

मूलम्

मामेव नूनं बीभत्सुर्मामेव च वृकोदरः।
अभियातीति मन्वानाः पेतुर्मम्लुश्च सम्भ्रमात् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘निश्चय अर्जुन मेरा ही पीछा कर रहे हैं। भीमसेन मेरी ही ओर चढ़े आ रहे हैं’ ऐसा मानते हुए कौरव-सैनिक घबराहटमें पड़कर गिर जाते थे। वे सब-के-सब उदास हो गये थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयानन्ये गजानन्ये रथानन्ये महारथाः।
आरुह्य जवसम्पन्नाः पदातीन् प्रजहुर्भयात् ॥ ११ ॥

मूलम्

हयानन्ये गजानन्ये रथानन्ये महारथाः।
आरुह्य जवसम्पन्नाः पदातीन् प्रजहुर्भयात् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुछ लोग घोड़ोंपर, कुछ हाथियोंपर और कुछ दूसरे महारथी रथोंपर आरूढ़ हो भयके मारे बड़े वेगसे भागने लगे। उन्होंने पैदल सैनिकोंको वहीं छोड़ दिया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुञ्जरैः स्यन्दनाः क्षुण्णाः सादिनश्च महारथैः।
पदातिसंघाश्चाश्वौघैः पलायद्भिर्भयार्दितैः ॥ १२ ॥

मूलम्

कुञ्जरैः स्यन्दनाः क्षुण्णाः सादिनश्च महारथैः।
पदातिसंघाश्चाश्वौघैः पलायद्भिर्भयार्दितैः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भयभीत होकर भागते हुए हाथियोंने रथोंको चकनाचूर कर दिया। विशाल रथपर बैठे हुए महारथियोंने घुड़सवारोंको कुचल दिया और अश्वसमुदायोंने पैदलसमूहोंके कचूमर निकाल दिये॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यालतस्करसंकीर्णे सार्थहीना यथा वने।
सूतपुत्रे हते राजंस्तव योधास्तथाभवन् ॥ १३ ॥

मूलम्

व्यालतस्करसंकीर्णे सार्थहीना यथा वने।
सूतपुत्रे हते राजंस्तव योधास्तथाभवन् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जैसे सर्पों और चोरों-बटमारोंसे भरे हुए वनमें अपने दलसे बिछुड़े हुए लोग अनाथ हो भारी विपत्तिमें पड़ जाते हैं, सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर आपके योद्धाओंकी भी वैसी ही दशा हो गयी॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतारोहा यथा नागाश्छिन्नहस्ता यथा नराः।
सर्वे पार्थमयं लोकं सम्पश्यन्तो भयार्दिताः ॥ १४ ॥

मूलम्

हतारोहा यथा नागाश्छिन्नहस्ता यथा नराः।
सर्वे पार्थमयं लोकं सम्पश्यन्तो भयार्दिताः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके सवार मारे गये हों वे हाथी और जिनके हाथ काट लिये गये हों वे मनुष्य जैसी दुरवस्थामें पड़ जाते हैं वैसी ही दशामें पड़कर समस्त कौरव भयसे पीड़ित हो सारे जगत्‌को अर्जुनमय देखने लगे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सम्प्रेक्ष्य द्रवतः सर्वान् भीमसेनभयार्दितान्।
दुर्योधनोऽथ स्वं सूतं हा हा कृत्वेदमब्रवीत् ॥ १५ ॥

मूलम्

सम्प्रेक्ष्य द्रवतः सर्वान् भीमसेनभयार्दितान्।
दुर्योधनोऽथ स्वं सूतं हा हा कृत्वेदमब्रवीत् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस समय अपने समस्त योद्धाओंको भीमसेनके भयसे व्याकुल हो भागते देख दुर्योधनने हाहाकार करके अपने सारथिसे कहा—॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नातिक्रमेच्च मां पार्थो धनुष्पाणिमवस्थितम्।
जघने सर्वसैन्यानां शनैरश्वान् प्रचोदय ॥ १६ ॥

मूलम्

नातिक्रमेच्च मां पार्थो धनुष्पाणिमवस्थितम्।
जघने सर्वसैन्यानां शनैरश्वान् प्रचोदय ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सूत! तुम धीरे-धीरे रथ आगे बढ़ाओ। मैं सम्पूर्ण सेनाओंके पीछे जब हाथमें धनुष लेकर खड़ा होऊँगा, उस समय अर्जुन मुझे लाँघकर आगे नहीं बढ़ सकते॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युध्यमानं हि कौन्तेयं हनिष्यामि न संशयः।
नोत्सहेन्मामतिक्रान्तुं वेलामिव महोदधिः ॥ १७ ॥

मूलम्

युध्यमानं हि कौन्तेयं हनिष्यामि न संशयः।
नोत्सहेन्मामतिक्रान्तुं वेलामिव महोदधिः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘यदि वे मुझसे युद्ध करेंगे तो मैं उन्हें निःसंदेह मार गिराऊँगा। जैसे महासागर अपनी तटभूमिको लाँघकर आगे नहीं बढ़ता, उसी प्रकार वे भी मुझे लाँघ नहीं सकते॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्यार्जुनं सगोविन्दं मानिनं च वृकोदरम्।
हन्यां शिष्टांस्तथा शत्रून् कर्णस्यानृण्यमाप्नुयाम् ॥ १८ ॥

मूलम्

अद्यार्जुनं सगोविन्दं मानिनं च वृकोदरम्।
हन्यां शिष्टांस्तथा शत्रून् कर्णस्यानृण्यमाप्नुयाम् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज मैं अर्जुन, श्रीकृष्ण और उस घमंडी भीमसेनको तथा बचे-खुचे दूसरे शत्रुओंको भी मार डालूँ, तभी कर्णके ऋणसे मुक्त हो सकता हूँ’॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तच्छ्रुत्वा कुरुराजस्य शूरार्यसदृशं वचः।
सूतो हेमपरिच्छन्नान् शनैरश्वानचोदयत् ॥ १९ ॥

मूलम्

तच्छ्रुत्वा कुरुराजस्य शूरार्यसदृशं वचः।
सूतो हेमपरिच्छन्नान् शनैरश्वानचोदयत् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुराज दुर्योधनकी वह श्रेष्ठ शूरवीरोंके योग्य बात सुनकर सारथिने सोनेके साज-बाजसे सजे हुए घोड़ोंको धीरे-धीरे आगे बढ़ाया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथाश्वनागहीनास्तु पादातास्तव मारिष ।
पञ्चविंशतिसाहस्रा युद्धायैव व्यवस्थिताः ॥ २० ॥

मूलम्

रथाश्वनागहीनास्तु पादातास्तव मारिष ।
पञ्चविंशतिसाहस्रा युद्धायैव व्यवस्थिताः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! उस समय रथों, घोड़ों और हाथियोंसे रहित आपके केवल पचीस हजार पैदल सैनिक ही युद्धके लिये डटे हुए थे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् भीमसेनः संक्रुद्धो धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
बलेन चतुरङ्गेण संवृत्याजघ्नतुः शरैः ॥ २१ ॥

मूलम्

तान् भीमसेनः संक्रुद्धो धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
बलेन चतुरङ्गेण संवृत्याजघ्नतुः शरैः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन सबको क्रोधमें भरे हुए भीमसेन और द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्नने अपनी चतुरंगिणी सेनाद्वारा चारों ओरसे घेरकर बाणोंसे मारना आरम्भ किया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्ययुध्यन्त समरे भीमसेनं सपार्षतम्।
पार्थपार्षतयोश्चान्ये जगृहुस्तत्र नामनी ॥ २२ ॥

मूलम्

प्रत्ययुध्यन्त समरे भीमसेनं सपार्षतम्।
पार्थपार्षतयोश्चान्ये जगृहुस्तत्र नामनी ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे भी समरांगणमें भीमसेन और धृष्टद्युम्नका डटकर सामना करने लगे। उनमेंसे कितने ही योद्धा भीमसेन और धृष्टद्युम्नके नाम ले-लेकर उन्हें युद्धके लिये ललकारने लगे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अक्रुध्यत रणे भीमस्तैस्तदा पर्यवस्थितैः।
सोऽवतीर्य रथात्तूर्णं गदापाणिरयुध्यत ॥ २३ ॥

मूलम्

अक्रुध्यत रणे भीमस्तैस्तदा पर्यवस्थितैः।
सोऽवतीर्य रथात्तूर्णं गदापाणिरयुध्यत ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भीमसेन रणमें कुपित हो उठे और तुरंत ही रथसे नीचे उतरकर हाथमें गदा ले वहाँ खड़े हुए पैदल-सैनिकोंके साथ युद्ध करने लगे॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तान् रथस्थो भूमिष्ठान् धर्मापेक्षी वृकोदरः।
योधयामास कौन्तेयो भुजवीर्यव्यपाश्रयः ॥ २४ ॥

मूलम्

न तान् रथस्थो भूमिष्ठान् धर्मापेक्षी वृकोदरः।
योधयामास कौन्तेयो भुजवीर्यव्यपाश्रयः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुन्तीनन्दन भीमसेन युद्धधर्मका पालन करनेवाले थे, इसलिये उन्होंने स्वयं रथपर बैठकर भूमिपर खड़े हुए पैदल-सैनिकोंके साथ युद्ध नहीं किया। उन्हें अपने बाहुबलका पूरा भरोसा था॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जातरूपपरिच्छन्नां प्रगृह्य महतीं गदाम्।
अवधीत्तावकान् सर्वान् दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ २५ ॥

मूलम्

जातरूपपरिच्छन्नां प्रगृह्य महतीं गदाम्।
अवधीत्तावकान् सर्वान् दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दण्डपाणि यमराजके समान सुवर्णजटित विशाल गदा हाथमें लेकर आपके समस्त सैनिकोंका वध करने लगे॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पदातिनोऽपि संत्यज्य प्रियं जीवितमात्मनः।
भीममभ्यद्रवन् संख्ये पतङ्गा ज्वलनं यथा ॥ २६ ॥

मूलम्

पदातिनोऽपि संत्यज्य प्रियं जीवितमात्मनः।
भीममभ्यद्रवन् संख्ये पतङ्गा ज्वलनं यथा ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे पैदल सैनिक भी अपने प्यारे प्राणोंका मोह छोड़कर उस युद्धस्थलमें भीमसेनकी ओर उसी प्रकार दौड़े, जैसे पतंग आगपर टूट पड़ते हैं॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आसाद्य भीमसेनं तु संरब्धा युद्धदुर्मदाः।
विनेशुः सहसा दृष्ट्वा भूतग्रामा इवान्तकम् ॥ २७ ॥

मूलम्

आसाद्य भीमसेनं तु संरब्धा युद्धदुर्मदाः।
विनेशुः सहसा दृष्ट्वा भूतग्रामा इवान्तकम् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे प्राणियोंके समुदाय यमराजको देखते ही प्राण त्याग देते हैं, उसी प्रकार वे रोषभरे रणदुर्मद सैनिक भीमसेनसे टक्कर लेकर सहसा नष्ट हो गये॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्येनवद् विचरन् भीमो गदाहस्तो महाबलः।
पञ्चविंशतिसाहस्रांस्तावकान् समपोथयत् ॥ २८ ॥

मूलम्

श्येनवद् विचरन् भीमो गदाहस्तो महाबलः।
पञ्चविंशतिसाहस्रांस्तावकान् समपोथयत् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाथमें गदा लिये बाजके समान विचरते हुए महाबली भीमसेनने आपके उन पचीसों हजार सैनिकोंको मार गिराया॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा तत्पुरुषानीकं भीमः सत्यपराक्रमः।
धृष्टद्युम्नं पुरस्कृत्य तस्थौ तत्र महाबलः ॥ २९ ॥

मूलम्

हत्वा तत्पुरुषानीकं भीमः सत्यपराक्रमः।
धृष्टद्युम्नं पुरस्कृत्य तस्थौ तत्र महाबलः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सत्यपराक्रमी महाबली भीमसेन उस पैदल सेनाका संहार करके धृष्टद्युम्नको आगे किये वहीं खड़े रहे॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनंजयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान् ।
माद्रीपुत्रौ तु शकुनिं सात्यकिश्च महारथः ॥ ३० ॥
जवेनाभ्यपतन् हृष्टा घ्नन्तो दौर्योधनं बलम्।

मूलम्

धनंजयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान् ।
माद्रीपुत्रौ तु शकुनिं सात्यकिश्च महारथः ॥ ३० ॥
जवेनाभ्यपतन् हृष्टा घ्नन्तो दौर्योधनं बलम्।

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरी ओर पराक्रमी अर्जुनने रथसेनापर आक्रमण किया। माद्रीकुमार नकुल-सहदेव और महारथी सात्यकि हर्षमें भरकर दुर्योधनकी सेनाका संहार करते हुए बड़े वेगसे शकुनिपर टूट पड़े॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याश्वसादीन् सुबहूंस्ते निहत्य शितैः शरैः ॥ ३१ ॥
समभ्यधावंस्त्वरितास्तत्र युद्धमभून्महत् ।

मूलम्

तस्याश्वसादीन् सुबहूंस्ते निहत्य शितैः शरैः ॥ ३१ ॥
समभ्यधावंस्त्वरितास्तत्र युद्धमभून्महत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

वे अपने पैने बाणोंद्वारा उसके बहुत-से घुड़सवारोंको मारकर तुरंत ही उसकी ओर भी दौड़े। फिर तो वहाँ बड़ा भारी युद्ध होने लगा॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनंजयोऽपि चाभ्येत्य रथानीकं तव प्रभो ॥ ३२ ॥
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु गाण्डीवं व्याक्षिपद् धनुः।

मूलम्

धनंजयोऽपि चाभ्येत्य रथानीकं तव प्रभो ॥ ३२ ॥
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु गाण्डीवं व्याक्षिपद् धनुः।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! अर्जुन भी आपकी रथसेनाके समीप जाकर त्रिभुवनविख्यात गाण्डीव धनुषकी टंकार करने लगे॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृष्णसारथिमायान्तं दृष्ट्वा श्वेतहयं रथम् ॥ ३३ ॥
अर्जुनं चापि योद्धारं त्वदीयाः प्राद्रवन् भयात्।

मूलम्

कृष्णसारथिमायान्तं दृष्ट्वा श्वेतहयं रथम् ॥ ३३ ॥
अर्जुनं चापि योद्धारं त्वदीयाः प्राद्रवन् भयात्।

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्ण जिसके सारथि हैं, उस श्वेत घोड़ोंवाले रथ और अर्जुन-जैसे रथी योद्धाको आते देख आपके सैनिक भयसे भागने लगे॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विप्रहीणरथाश्चैव शरैश्च परिकर्षिताः ॥ ३४ ॥
पञ्चविंशतिसाहस्राः कालमार्छन् पदातयः ।

मूलम्

विप्रहीणरथाश्चैव शरैश्च परिकर्षिताः ॥ ३४ ॥
पञ्चविंशतिसाहस्राः कालमार्छन् पदातयः ।

अनुवाद (हिन्दी)

बहुतोंके रथ नष्ट हो गये और कितने ही बाणोंकी मारसे अत्यन्त घायल हो गये। इस प्रकार पचीस हजार पैदल सैनिक कालके गालमें चले गये॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा तान् पुरुषव्याघ्रः पञ्चालानां महारथः ॥ ३५ ॥
पुत्रः पाञ्चालराजस्य धृष्टद्युम्नो महामनाः।
भीमसेनं पुरस्कृत्य नचिरात् प्रत्यदृश्यत ॥ ३६ ॥
महाधनुर्धरः श्रीमानमित्रगणतापनः ।

मूलम्

हत्वा तान् पुरुषव्याघ्रः पञ्चालानां महारथः ॥ ३५ ॥
पुत्रः पाञ्चालराजस्य धृष्टद्युम्नो महामनाः।
भीमसेनं पुरस्कृत्य नचिरात् प्रत्यदृश्यत ॥ ३६ ॥
महाधनुर्धरः श्रीमानमित्रगणतापनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

पांचालराजकुमार, पांचाल महारथी और महामनस्वी पुरुषसिंह धृष्टद्युम्न उन पैदल सैनिकोंका संहार करके भीमसेनको आगे किये शीघ्र ही वहाँ दिखायी दिये। वे महाधनुर्धर, तेजस्वी और शत्रुसमूहोंको संताप देनेवाले हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पारावतसवर्णाश्वं कोविदारमयध्वजम् ॥ ३७ ॥
धृष्टद्युम्नं रणे दृष्ट्वा त्वदीयाः प्रादवन् भयात्।

मूलम्

पारावतसवर्णाश्वं कोविदारमयध्वजम् ॥ ३७ ॥
धृष्टद्युम्नं रणे दृष्ट्वा त्वदीयाः प्रादवन् भयात्।

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्नके रथके घोड़े कबूतरके समान रंगवाले थे, उनकी ध्वजापर कचनारके वृक्षका चिह्नन था। धृष्टद्युम्नको रणमें उपस्थित देख आपके योद्धा भयसे भाग खड़े हुए॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गान्धारराजं शीघ्रास्त्रमनुसृत्य यशस्विनौ ॥ ३८ ॥
नचिरात् प्रत्यदृश्येतां माद्रीपुत्रौ ससात्यकी।

मूलम्

गान्धारराजं शीघ्रास्त्रमनुसृत्य यशस्विनौ ॥ ३८ ॥
नचिरात् प्रत्यदृश्येतां माद्रीपुत्रौ ससात्यकी।

अनुवाद (हिन्दी)

गान्धारराज शकुनि शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चला रहा था, यशस्वी माद्रीकुमार नकुल-सहदेव और सात्यकि तुरंत ही उसका पीछा करते दिखायी दिये॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेकितानः शिखण्डी च द्रौपदेयाश्च मारिष ॥ ३९ ॥
हत्वा त्वदीयं सुमहत् सैन्यं शङ्खांस्तथाधमन्।

मूलम्

चेकितानः शिखण्डी च द्रौपदेयाश्च मारिष ॥ ३९ ॥
हत्वा त्वदीयं सुमहत् सैन्यं शङ्खांस्तथाधमन्।

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! चेकितान, शिखण्डी और द्रौपदीके पाँचों पुत्र आपकी विशाल सेनाका विनाश करके शंख बजाने लगे॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते सर्वे तावकान् प्रेक्ष्य द्रवतोऽपि पराङ्‌मुखान् ॥ ४० ॥
अभ्यवर्तन्त संरब्धान् वृषाञ्जित्वा यथा वृषाः।

मूलम्

ते सर्वे तावकान् प्रेक्ष्य द्रवतोऽपि पराङ्‌मुखान् ॥ ४० ॥
अभ्यवर्तन्त संरब्धान् वृषाञ्जित्वा यथा वृषाः।

अनुवाद (हिन्दी)

उन सबने आपके सैनिकोंको पीठ दिखाकर भागते देख उनका उसी प्रकार पीछा किया, जैसे साँड़ रोषमें भरे हुए दूसरे साँड़ोंको जीतकर उन्हें खदेड़ने लगते हैं॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेनावशेषं तं दृष्ट्वा तव सैन्यस्य पाण्डवः ॥ ४१ ॥
व्यवस्थितः सव्यसाची चुक्रोध बलवान् नृप।
धनंजयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान् ॥ ४२ ॥
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु व्याक्षिपद् गाण्डिवं धनुः।

मूलम्

सेनावशेषं तं दृष्ट्वा तव सैन्यस्य पाण्डवः ॥ ४१ ॥
व्यवस्थितः सव्यसाची चुक्रोध बलवान् नृप।
धनंजयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान् ॥ ४२ ॥
विश्रुतं त्रिषु लोकेषु व्याक्षिपद् गाण्डिवं धनुः।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! उस समय वहाँ खड़े हुए बलवान् पराक्रमी सव्यसाची पाण्डुपुत्र अर्जुन आपकी सेनाका कुछ भाग अवशिष्ट देखकर कुपित हो उठे और अपने त्रिलोकविख्यात गाण्डीवधनुषकी टंकार करते हुए आपकी रथसेनापर जा चढ़े॥४१-४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत एनाञ्शरव्रातैः सहसा समवाकिरत् ॥ ४३ ॥
तमसा संवृतेनाथ न स्म किंचिद् व्यदृश्यत।

मूलम्

तत एनाञ्शरव्रातैः सहसा समवाकिरत् ॥ ४३ ॥
तमसा संवृतेनाथ न स्म किंचिद् व्यदृश्यत।

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने अपने बाणसमूहोंद्वारा उन सबको सहसा आच्छादित कर दिया। उस समय सब ओर अन्धकार फैल गया; अतः कुछ भी दिखायी नहीं देता था॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्धकारीकृते लोके रजोभूते महीतले ॥ ४४ ॥
योधाः सर्वे महाराज तावकाः प्राद्रवन् भयात्।

मूलम्

अन्धकारीकृते लोके रजोभूते महीतले ॥ ४४ ॥
योधाः सर्वे महाराज तावकाः प्राद्रवन् भयात्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! इस प्रकार जब जगत्‌में अँधेरा छा गया और भूतलपर धूल-ही-धूल उड़ने लगी, तब आपके समस्त योद्धा भयभीत होकर भाग गये॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सम्भज्यमाने सैन्ये तु कुरुराजो विशाम्पते ॥ ४५ ॥
परानभिमुखांश्चैव सुतस्ते समुपाद्रवत् ।
ततो दुर्योधनः सर्वानाजुहावाथ पाण्डवान् ॥ ४६ ॥
युद्धाय भरतश्रेष्ठ देवानिव पुरा बलिः।

मूलम्

सम्भज्यमाने सैन्ये तु कुरुराजो विशाम्पते ॥ ४५ ॥
परानभिमुखांश्चैव सुतस्ते समुपाद्रवत् ।
ततो दुर्योधनः सर्वानाजुहावाथ पाण्डवान् ॥ ४६ ॥
युद्धाय भरतश्रेष्ठ देवानिव पुरा बलिः।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! आपकी सेनामें भगदड़ मच जानेपर आपके पुत्र कुरुराज दुर्योधनने अपने सामने खड़े हुए शत्रुओंपर धावा किया। भरतश्रेष्ठ! जैसे पूर्वकालमें राजा बलिने देवताओंको युद्धके लिये ललकारा था, उसी प्रकार दुर्योधनने भी समस्त पाण्डवोंका युद्धके लिये आह्वान किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त एनमभिगर्जन्तः सहिताः समुपाद्रवन् ॥ ४७ ॥
नानाशस्त्रभृतः क्रुद्धा भर्त्सयन्तो मुहुर्मुहुः।

मूलम्

त एनमभिगर्जन्तः सहिताः समुपाद्रवन् ॥ ४७ ॥
नानाशस्त्रभृतः क्रुद्धा भर्त्सयन्तो मुहुर्मुहुः।

अनुवाद (हिन्दी)

तब नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र धारण किये कुपित पाण्डव-सैनिक एक साथ गर्जना करते हुए वहाँ दुर्योधनपर टूट पड़े और बारंबार उसे फटकारने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनोऽप्यसम्भ्रान्तस्तान् रणे निशितैः शरैः ॥ ४८ ॥
तत्रावधीत्ततः क्रुद्धः शतशोऽथ सहस्रशः।
तत् सैन्यं पाण्डवेयानां योधयामास सर्वतः ॥ ४९ ॥

मूलम्

दुर्योधनोऽप्यसम्भ्रान्तस्तान् रणे निशितैः शरैः ॥ ४८ ॥
तत्रावधीत्ततः क्रुद्धः शतशोऽथ सहस्रशः।
तत् सैन्यं पाण्डवेयानां योधयामास सर्वतः ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इससे दुर्योधनको तनिक भी घबराहट नहीं हुई। वह रणभूमिमें कुपित हो पैने बाणोंसे शत्रुपक्षके सैकड़ों और हजारों योद्धाओंका संहार करने लगा। वह सब ओर घूम-घूमकर पाण्डव-सेनाके साथ जूझ रहा था॥४८-४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम्।
यदेकः सहितान् सर्वान् रणेऽयुध्यत पाण्डवान् ॥ ५० ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम्।
यदेकः सहितान् सर्वान् रणेऽयुध्यत पाण्डवान् ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वहाँ हमलोगोंने आपके पुत्रका यह अद्भुत पुरुषार्थ देखा कि उसने अकेले ही रणभूमिमें एक साथ आये हुए समस्त पाण्डवोंका डटकर सामना किया॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽपश्यन्महात्मा स स्वसैन्यं भृशदुःखितम्।
ततोऽवस्थाप्य राजेन्द्र कृतबुद्धिस्तवात्मजः ॥ ५१ ॥
हर्षयन्निव तान् योधानिदं वचनमब्रवीत्।

मूलम्

ततोऽपश्यन्महात्मा स स्वसैन्यं भृशदुःखितम्।
ततोऽवस्थाप्य राजेन्द्र कृतबुद्धिस्तवात्मजः ॥ ५१ ॥
हर्षयन्निव तान् योधानिदं वचनमब्रवीत्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! उस समय आपके बुद्धिमान् पुत्र महामनस्वी दुर्योधनने अपनी सेनाको जब बहुत दुःखी देखा, तब उन सबको सुस्थिर करके उनका हर्ष बढ़ाते हुए इस प्रकार कहा—॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तं देशं प्रपश्यामि यत्र याता भयार्दिताः ॥ ५२ ॥
गतानां यत्र वै मोक्षः पाण्डवात् किं गतेन वः।
अल्पं च बलमेतेषां कृष्णौ च भृशविक्षतौ ॥ ५३ ॥
अद्य सर्वान् हनिष्यामि ध्रुवो हि विजयो भवेत्।

मूलम्

न तं देशं प्रपश्यामि यत्र याता भयार्दिताः ॥ ५२ ॥
गतानां यत्र वै मोक्षः पाण्डवात् किं गतेन वः।
अल्पं च बलमेतेषां कृष्णौ च भृशविक्षतौ ॥ ५३ ॥
अद्य सर्वान् हनिष्यामि ध्रुवो हि विजयो भवेत्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘योद्धाओ! तुम भयसे पीड़ित हो रहे हो। परंतु मैं ऐसा कोई स्थान नहीं देखता, जहाँ तुम भागकर जाओ और वहाँ जानेपर तुम्हें पाण्डुपुत्र अर्जुन या भीमसेनसे छुटकारा मिल जाय। ऐसी दशामें तुम्हारे भागनेसे क्या लाभ है? इन शत्रुओंके पास थोड़ी-सी ही सेना बच गयी है। श्रीकृष्ण और अर्जुन भी बहुत घायल हो चुके हैं; अतः आज मैं इन सब लोगोंको मार डालूँगा। हमारी विजय अवश्य होगी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विप्रयातांस्तु वो भिन्नान् पाण्डवाः कृतकिल्बिषान् ॥ ५४ ॥
अनुसृत्य वधिष्यन्ति श्रेयान् नः समरे वधः।

मूलम्

विप्रयातांस्तु वो भिन्नान् पाण्डवाः कृतकिल्बिषान् ॥ ५४ ॥
अनुसृत्य वधिष्यन्ति श्रेयान् नः समरे वधः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘यदि तुम अलग-अलग होकर भागोगे तो पाण्डव तुम सब अपराधियोंका पीछा करके तुम्हें मार डालेंगे। ऐसी दशामें युद्धमें मारा जाना ही हमारे लिये श्रेयस्कर है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुखं सांग्रामिको मृत्युः क्षत्रधर्मेण युध्यताम् ॥ ५५ ॥
मृतो दुःखं न जानीते प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते।

मूलम्

सुखं सांग्रामिको मृत्युः क्षत्रधर्मेण युध्यताम् ॥ ५५ ॥
मृतो दुःखं न जानीते प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते।

अनुवाद (हिन्दी)

‘क्षत्रियधर्मके अनुसार युद्ध करनेवाले वीरोंकी संग्राममें सुखपूर्वक मृत्यु होती है। वहाँ मरे हुएको मृत्युके दुःखका अनुभव नहीं होता और परलोकमें जानेपर उसे अक्षय सुखकी प्राप्ति होती है॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शृणुध्वं क्षत्रियाः सर्वे यावन्तः स्थ समागताः ॥ ५६ ॥
यदा शूरं च भीरुं च मारयत्यन्तको यमः।
को नु मूढो न युध्येत मादृशः क्षत्रियव्रतः ॥ ५७ ॥

मूलम्

शृणुध्वं क्षत्रियाः सर्वे यावन्तः स्थ समागताः ॥ ५६ ॥
यदा शूरं च भीरुं च मारयत्यन्तको यमः।
को नु मूढो न युध्येत मादृशः क्षत्रियव्रतः ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘तुम जितने क्षत्रिय वीर यहाँ आये हो सभी कान खोलकर सुन लो। जब प्राणियोंका अन्त करनेवाला यमराज शूरवीर और कायर दोनोंको ही मार डालता है, तब मेरे-जैसा क्षत्रियव्रतका पालन करनेवाला होकर भी कौन ऐसा मूर्ख होगा, जो युद्ध नहीं करेगा?॥५६-५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्विषतो भीमसेनस्य क्रुद्धस्य वशमेष्यथ।
पितामहैराचरितं न धर्मं हातुमर्हथ ॥ ५८ ॥

मूलम्

द्विषतो भीमसेनस्य क्रुद्धस्य वशमेष्यथ।
पितामहैराचरितं न धर्मं हातुमर्हथ ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘हमारा शत्रु भीमसेन क्रोधमें भरा हुआ है। यदि भागोगे तो उसके वशमें पड़कर मारे जाओगे; अतः अपने बाप-दादोंके द्वारा आचरणमें लाये हुए क्षत्रिय-धर्मका परित्याग न करो॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न ह्यधर्मोऽस्ति पापीयान् क्षत्रियस्य पलायनात्।
न युद्धधर्माच्छ्रेयो हि पन्थाः स्वर्गस्य कौरवाः।
अचिरेण हता लोकान् सद्यो योधाः समश्नुत ॥ ५९ ॥

मूलम्

न ह्यधर्मोऽस्ति पापीयान् क्षत्रियस्य पलायनात्।
न युद्धधर्माच्छ्रेयो हि पन्थाः स्वर्गस्य कौरवाः।
अचिरेण हता लोकान् सद्यो योधाः समश्नुत ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कौरववीरो! क्षत्रियके लिये युद्धसे पीठ दिखाकर भागनेसे बढ़कर दूसरा कोई महान् पाप नहीं है तथा युद्धधर्मके पालनसे बढ़कर दूसरा कोई स्वर्गकी प्राप्तिका कल्याणकारी मार्ग भी नहीं है; अतः योद्धाओ! तुम युद्धमें मारे जाकर शीघ्र ही उत्तम लोकोंके सुखका अनुभव करो’॥५९॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं ब्रुवति पुत्रे ते सैनिका भृशविक्षताः।
अनवेक्ष्यैव तद्वाक्यं प्राद्रवन् सर्वतो दिशः ॥ ६० ॥

मूलम्

एवं ब्रुवति पुत्रे ते सैनिका भृशविक्षताः।
अनवेक्ष्यैव तद्वाक्यं प्राद्रवन् सर्वतो दिशः ॥ ६० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! आपका पुत्र इस प्रकार व्याख्यान देता ही रह गया; किंतु अत्यन्त घायल हुए सैनिक उसकी बातपर ध्यान दिये बिना ही सम्पूर्ण दिशाओंमें भाग गये॥६०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि कौरवसैन्यपलायने त्रिनवतितमोऽध्यायः ॥ ९३ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें कौरवसेनाका पलायनविषयक तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९३॥