भागसूचना
द्विनवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कौरवोंका शोक, भीम आदि पाण्डवोंका हर्ष, कौरव-सेनाका पलायन और दुःखित शल्यका दुर्योधनको सान्त्वना देना
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यस्तु कर्णार्जुनयोर्विमर्दे
बलानि दृष्ट्वा मृदितानि बाणैः।
ययौ हते चाधिरथौ पदानुगे
रथेन संछिन्नपरिच्छदेन ॥ १ ॥
मूलम्
शल्यस्तु कर्णार्जुनयोर्विमर्दे
बलानि दृष्ट्वा मृदितानि बाणैः।
ययौ हते चाधिरथौ पदानुगे
रथेन संछिन्नपरिच्छदेन ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! कर्ण और अर्जुनके संग्राममें बाणोंद्वारा सारी सेनाएँ रौंद डाली गयी थीं और अधिरथपुत्र कर्ण पैदल होकर मारा गया था। यह सब देखकर राजा शल्य, जिसका आवरण एवं अन्य सारी सामग्री नष्ट कर दी गयी थी, उस रथके द्वारा वहाँसे चल दिये॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निपातितस्यन्दनवाजिनागं
बलं च दृष्ट्वा हतसूतपुत्रम्।
दुर्योधनोऽश्रुप्रतिपूर्णनेत्रो
दीनो मुहुर्निःश्वसंश्चार्तरूपः ॥ २ ॥
मूलम्
निपातितस्यन्दनवाजिनागं
बलं च दृष्ट्वा हतसूतपुत्रम्।
दुर्योधनोऽश्रुप्रतिपूर्णनेत्रो
दीनो मुहुर्निःश्वसंश्चार्तरूपः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कौरव-सेनाके रथ, घोड़े और हाथी मार डाले गये थे। सूतपुत्रका भी वध कर दिया गया था। उस अवस्थामें उस सेनाको देखकर दुर्योधनकी आँखोंमें आँसू भर आये और वह बारंबार लंबी साँस खींचता हुआ दीन एवं दुःखी हो गया॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कर्णं तु शूरं पतितं पृथिव्यां
शराचितं शोणितदिग्धगात्रम् ।
यदृच्छया सूर्यमिवावनिस्थं
दिदृक्षवः सम्परिवार्य तस्थुः ॥ ३ ॥
मूलम्
कर्णं तु शूरं पतितं पृथिव्यां
शराचितं शोणितदिग्धगात्रम् ।
यदृच्छया सूर्यमिवावनिस्थं
दिदृक्षवः सम्परिवार्य तस्थुः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शूरवीर कर्ण पृथ्वीपर पड़ा हुआ था। उसके शरीरमें बहुत-से बाण व्याप्त हो रहे थे तथा सारा अंग खूनसे लथपथ हो रहा था। उस अवस्थामें दैवेच्छासे पृथ्वीपर उतरे हुए सूर्यके समान उसे देखनेके लिये सब लोग उसकी लाशको घेरकर खड़े हो गये॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रहृष्टवित्रस्तविषण्णविस्मिता-
स्तथा परे शोकहता इवाभवन्।
परे त्वदीयाश्च परस्परेण
यथायथैषां प्रकृतिस्तथाभवन् ॥ ४ ॥
मूलम्
प्रहृष्टवित्रस्तविषण्णविस्मिता-
स्तथा परे शोकहता इवाभवन्।
परे त्वदीयाश्च परस्परेण
यथायथैषां प्रकृतिस्तथाभवन् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कोई प्रसन्न था तो कोई भयभीत। कोई विषादग्रस्त था तो कोई आश्चर्यचकित तथा दूसरे बहुत-से लोग शोकसे मृतप्राय हो रहे थे। आपके और शत्रुपक्षके सैनिकोंमेंसे जिसकी जैसी प्रकृति थी, वे परस्पर उसी भावमें मग्न थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रविद्धवर्माभरणाम्बरायुधं
धनंजयेनाभिहतं महौजसम् ।
निशाम्य कर्णं कुरवः प्रदुद्रुवु-
र्हतर्षभा गाव इवाजने वने ॥ ५ ॥
मूलम्
प्रविद्धवर्माभरणाम्बरायुधं
धनंजयेनाभिहतं महौजसम् ।
निशाम्य कर्णं कुरवः प्रदुद्रुवु-
र्हतर्षभा गाव इवाजने वने ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसके कवच, आभूषण, वस्त्र और अस्त्र-शस्त्र छिन्न-भिन्न होकर पड़े थे, उस महाबली कर्णको अर्जुनद्वारा मारा गया देख कौरव-सैनिक निर्जन वनमें साँड़के मारे जानेपर भागनेवाली गायोंके समान इधर-उधर भाग चले॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमश्च भीमेन तदा स्वनेन
नादं कृत्वा रोदसीः कम्पयानः।
आस्फोटयन् वल्गते नृत्यते च
हते कर्णे त्रासयन् धार्तराष्ट्रान् ॥ ६ ॥
मूलम्
भीमश्च भीमेन तदा स्वनेन
नादं कृत्वा रोदसीः कम्पयानः।
आस्फोटयन् वल्गते नृत्यते च
हते कर्णे त्रासयन् धार्तराष्ट्रान् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कर्णके मारे जानेपर धृतराष्ट्रके पुत्रोंको भयभीत करते हुए भीमसेन भयंकर स्वरसे सिंहनाद करके आकाश और पृथ्वीको कँपाने तथा ताल ठोंककर नाचने-कूदने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव राजन् सोमकाः सृञ्जयाश्च
शङ्खान् दध्मुः सस्वजुश्चापि सर्वे।
परस्परं क्षत्रिया हृष्टरूपाः
सूतात्मजे वै निहते तदानीम् ॥ ७ ॥
मूलम्
तथैव राजन् सोमकाः सृञ्जयाश्च
शङ्खान् दध्मुः सस्वजुश्चापि सर्वे।
परस्परं क्षत्रिया हृष्टरूपाः
सूतात्मजे वै निहते तदानीम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी प्रकार समस्त सोमक और सृंजय भी शंख बजाने और एक-दूसरेको छातीसे लगाने लगे। सूतपुत्रके मारे जानेपर उस समय पाण्डवदलके सभी क्षत्रिय परस्पर हर्षमग्न हो रहे थे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृत्वा विमर्दं महदर्जुनेन
कर्णो हतः केसरिणेव नागः।
तीर्णा प्रतिज्ञा पुरुषर्षभेण
वैरस्यान्तं गतवांश्चापि पार्थः ॥ ८ ॥
मूलम्
कृत्वा विमर्दं महदर्जुनेन
कर्णो हतः केसरिणेव नागः।
तीर्णा प्रतिज्ञा पुरुषर्षभेण
वैरस्यान्तं गतवांश्चापि पार्थः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे सिंह हाथीको पछाड़ देता है, उसी प्रकार पुरुषप्रवर अर्जुनने बड़ी भारी मार-काट मचाकर कर्णका वध किया, अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और उन्होंने वैरका अन्त कर दिया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मद्राधिपश्चापि विमूढचेता-
स्तूर्णं रथेनापकृतध्वजेन ।
दुर्योधनस्यान्तिकमेत्य राजन्
सबाष्पदुःखाद् वचनं बभाषे ॥ ९ ॥
मूलम्
मद्राधिपश्चापि विमूढचेता-
स्तूर्णं रथेनापकृतध्वजेन ।
दुर्योधनस्यान्तिकमेत्य राजन्
सबाष्पदुःखाद् वचनं बभाषे ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जिसकी ध्वजा काट दी गयी थी, उस रथके द्वारा मद्रराज शल्य भी विमूढ़चित्त होकर तुरंत दुर्योधनके पास गये और दुःखसे आँसू बहाते हुए इस प्रकार बोले—॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशीर्णनागाश्वरथप्रवीरं
बलं त्वदीयं यमराष्ट्रकल्पम् ।
अन्योन्यमासाद्य हतं महद्भि-
र्नराश्वनागैर्गिरिकूटकल्पैः ॥ १० ॥
मूलम्
विशीर्णनागाश्वरथप्रवीरं
बलं त्वदीयं यमराष्ट्रकल्पम् ।
अन्योन्यमासाद्य हतं महद्भि-
र्नराश्वनागैर्गिरिकूटकल्पैः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘नरेश्वर! तुम्हारी सेनाके हाथी, घोड़े, रथ और प्रमुख वीर नष्ट-भ्रष्ट हो गये। सारी सेनामें यमराजका राज्य-सा हो गया है। पर्वतशिखरोंके समान विशाल हाथी, घोड़े और पैदल मनुष्य एक-दूसरेसे टक्कर लेकर अपने प्राण खो बैठे हैं॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नैतादृशं भारत युद्धमासीद्
यथा तु कर्णार्जुनयोर्बभूव ।
ग्रस्तौ हि कर्णेन समेत्य कृष्णा-
वन्ये च सर्वे तव शत्रवो ये ॥ ११ ॥
मूलम्
नैतादृशं भारत युद्धमासीद्
यथा तु कर्णार्जुनयोर्बभूव ।
ग्रस्तौ हि कर्णेन समेत्य कृष्णा-
वन्ये च सर्वे तव शत्रवो ये ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भारत! आज कर्ण और अर्जुनमें जैसा युद्ध हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। कर्णने धावा करके श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा तुम्हारे अन्य सब शत्रुओंको भी प्रायः प्राणोंके संकटमें डाल दिया था; परंतु कोई फल नहीं निकला॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दैवं ध्रुवं पार्थवशात् प्रवृत्तं
यत् पाण्डवान् पाति हिनस्ति चास्मान्।
तवार्थसिद्ध्यर्थकरास्तु सर्वे
प्रसह्य वीरा निहता द्विषद्भिः ॥ १२ ॥
मूलम्
दैवं ध्रुवं पार्थवशात् प्रवृत्तं
यत् पाण्डवान् पाति हिनस्ति चास्मान्।
तवार्थसिद्ध्यर्थकरास्तु सर्वे
प्रसह्य वीरा निहता द्विषद्भिः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘निश्चय ही दैव कुन्तीपुत्रोंके अधीन होकर काम कर रहा है; क्योंकि वह पाण्डवोंकी तो रक्षा करता है और हमारा विनाश। यही कारण है कि तुम्हारे अर्थकी सिद्धिके लिये प्रयत्न करनेवाले प्रायः सभी वीर शत्रुओंके हाथसे बलपूर्वक मारे गये॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुबेरवैवस्वतवासवानां
तुल्यप्रभावा नृपते सुवीराः ।
वीर्येण शौर्येण बलेन तेजसा
तैस्तैस्तु युक्ता विविधैर्गुणौघैः ॥ १३ ॥
मूलम्
कुबेरवैवस्वतवासवानां
तुल्यप्रभावा नृपते सुवीराः ।
वीर्येण शौर्येण बलेन तेजसा
तैस्तैस्तु युक्ता विविधैर्गुणौघैः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजन्! तुम्हारी सेनाके श्रेष्ठ वीर कुबेर, यम और इन्द्रके समान प्रभावशाली तथा बल, पराक्रम, शौर्य, तेज एवं अन्य नाना प्रकारके गुणसमूहोंसे सम्पन्न थे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवध्यकल्पा निहता नरेन्द्रा-
स्तवार्थकामा युधि पाण्डवेयैः ।
तन्मा शुचो भारत दिष्टमेतत्
पर्याश्वस त्वं न सदास्ति सिद्धिः ॥ १४ ॥
मूलम्
अवध्यकल्पा निहता नरेन्द्रा-
स्तवार्थकामा युधि पाण्डवेयैः ।
तन्मा शुचो भारत दिष्टमेतत्
पर्याश्वस त्वं न सदास्ति सिद्धिः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो-जो राजा तुम्हारे स्वार्थकी सिद्धि चाहनेवाले और अवध्यके समान थे, उन सबको पाण्डवोंने युद्धमें मार डाला। अतः भारत! तुम शोक न करो। यह सब प्रारब्धका खेल है। सबको सदा ही सिद्धि नहीं मिलती, ऐसा जानकर धैर्य धारण करो’॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतद् वचो मद्रपतेर्निशम्य
स्वं चाप्यनीतं मनसा निरीक्ष्य।
दुर्योधनो दीनमना विसंज्ञः
पुनः पुनर्न्यश्वसदार्तरूपः ॥ १५ ॥
मूलम्
एतद् वचो मद्रपतेर्निशम्य
स्वं चाप्यनीतं मनसा निरीक्ष्य।
दुर्योधनो दीनमना विसंज्ञः
पुनः पुनर्न्यश्वसदार्तरूपः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मद्रराज शल्यकी ये बातें सुनकर और अपने अन्यायपर भी मन-ही-मन दृष्टि डालकर दुर्योधन बहुत उदास एवं दुःखी हो गया। वह अत्यन्त पीड़ित और अचेत-सा होकर बारंबार लंबी उसाँसें भरने लगा॥१५॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि शल्यप्रत्यागमने द्विनवतितमोऽध्यायः ॥ ९२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें शल्यका युद्धसे प्रत्यागमनविषयक बानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९२॥