०८२

भागसूचना

द्व्यशीतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

सात्यकिके द्वारा कर्णपुत्र प्रसेनका वध, कर्णका पराक्रम और दुःशासन एवं भीमसेनका युद्ध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कर्णः कुरुषु प्रद्रुतेषु
वरूथिना श्वेतहयेन राजन् ।
पाञ्चालपुत्रान् व्यधमत् सूतपुत्रो
महेषुभिर्वात इवाभ्रसंघान् ॥ १ ॥

मूलम्

ततः कर्णः कुरुषु प्रद्रुतेषु
वरूथिना श्वेतहयेन राजन् ।
पाञ्चालपुत्रान् व्यधमत् सूतपुत्रो
महेषुभिर्वात इवाभ्रसंघान् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! जब कौरव-सैनिक बड़े वेगसे भागने लगे, उस समय जैसे वायु मेघोंके समूहको छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार सूतपुत्र कर्णने श्वेत घोड़ोंवाले रथके द्वारा आक्रमण करके अपने विशाल बाणोंसे पांचालराजकुमारोंका संहार आरम्भ किया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूतं रथादञ्जलिकैर्निपात्य
जघान चाश्वाञ्जनमेजयस्य ।
शतानीकं सुतसोमं च भल्लै-
रवाकिरद् धनुषी चाप्यकृन्तत् ॥ २ ॥

मूलम्

सूतं रथादञ्जलिकैर्निपात्य
जघान चाश्वाञ्जनमेजयस्य ।
शतानीकं सुतसोमं च भल्लै-
रवाकिरद् धनुषी चाप्यकृन्तत् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसने अंजलिक नामवाले बाणोंसे जनमेजयके सारथिको रथसे नीचे गिराकर उसके घोड़ोंको भी मार डाला। फिर शतानीक तथा सुतसोमको भल्लोंसे ढक दिया और उन दोनोंके धनुष भी काट डाले॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नं निर्बिभेदाथ षड्भि-
र्जघानाश्वांस्तरसा तस्य संख्ये ।
हत्वा चाश्वान् सात्यकेः सूतपुत्रः
कैकेयपुत्रं न्यवधीद् विशोकम् ॥ ३ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नं निर्बिभेदाथ षड्भि-
र्जघानाश्वांस्तरसा तस्य संख्ये ।
हत्वा चाश्वान् सात्यकेः सूतपुत्रः
कैकेयपुत्रं न्यवधीद् विशोकम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् छः बाणोंसे युद्धस्थलमें धृष्टद्युम्नको घायल कर दिया और उनके घोड़ोंको भी वेगपूर्वक मार डाला। इसके बाद सूतपुत्रने सात्यकिके घोड़ोंको नष्ट करके केकयराजकुमार विशोकका भी वध कर डाला॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमभ्यधावन्निहते कुमारे
कैकेयसेनापतिरुग्रकर्मा ।
शरैर्विधुन्वन् भृशमुग्रवेगैः
कर्णात्मजं चाप्यहनत् प्रसेनम् ॥ ४ ॥

मूलम्

तमभ्यधावन्निहते कुमारे
कैकेयसेनापतिरुग्रकर्मा ।
शरैर्विधुन्वन् भृशमुग्रवेगैः
कर्णात्मजं चाप्यहनत् प्रसेनम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

केकयराजकुमारके मारे जानेपर वहाँके सेनापति उग्रकर्माने कर्णपर धावा किया। उसने धनुषको तीव्रवेगसे संचालित करते हुए भयंकर वेगवाले बाणोंद्वारा कर्णके पुत्र प्रसेनको भी घायल कर दिया॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यार्धचन्द्रैस्त्रिभिरुच्चकर्त
प्रहस्य बाहू च शिरश्च कर्णः।
स स्यन्दनाद् गामगमद् गतासुः
परश्वधैः शाल इवावरुग्णः ॥ ५ ॥

मूलम्

तस्यार्धचन्द्रैस्त्रिभिरुच्चकर्त
प्रहस्य बाहू च शिरश्च कर्णः।
स स्यन्दनाद् गामगमद् गतासुः
परश्वधैः शाल इवावरुग्णः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब कर्णने हँसकर तीन अर्धचन्द्राकार बाणोंसे उग्रकर्माकी दोनों भुजाएँ और मस्तक काट डाले। वह प्राणशून्य होकर कुल्हाड़ीके काटे हुए शाखूके पेड़के समान रथसे पृथ्वीपर गिर पड़ा॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हताश्वमञ्जोगतिभिः प्रसेनः
शिनिप्रवीरं निशितैः पृषत्कैः ।
प्रच्छाद्य नृत्यन्निव कर्णपुत्रः
शैनेयबाणाभिहतः पपात ॥ ६ ॥

मूलम्

हताश्वमञ्जोगतिभिः प्रसेनः
शिनिप्रवीरं निशितैः पृषत्कैः ।
प्रच्छाद्य नृत्यन्निव कर्णपुत्रः
शैनेयबाणाभिहतः पपात ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उधर कर्णने जब सात्यकिके घोड़े मार डाले, तब कर्णपुत्र प्रसेनने तीव्रगामी पैने बाणोंद्वारा शिनिप्रवर सात्यकिको ढक दिया। इसके बाद सात्यकिके बाणोंकी चोट खाकर वह नाचता हुआ-सा पृथ्वीपर गिर पड़ा॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रे हते क्रोधपरीतचेताः
कर्णः शिनीनामृषभं जिघांसुः ।
हतोऽसि शैनेय इति ब्रुवन् स
व्यवासृजद् बाणममित्रसाहम् ॥ ७ ॥

मूलम्

पुत्रे हते क्रोधपरीतचेताः
कर्णः शिनीनामृषभं जिघांसुः ।
हतोऽसि शैनेय इति ब्रुवन् स
व्यवासृजद् बाणममित्रसाहम् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्रके मारे जानेपर क्रोधसे व्याकुलचित्त हुए कर्णने शिनिप्रवर सात्यकिका वध करनेके लिये उनपर एक शत्रु-नाशक बाण छोड़ा और कहा—‘सात्यके! अब तू मारा गया’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमस्य चिच्छेद शरं शिखण्डी
त्रिभिस्त्रिभिश्च प्रतुतोद कर्णम् ।
शिखण्डिनः कार्मुकं च ध्वजं च
छित्त्वा क्षुराभ्यां न्यपतत् सुजातः ॥ ८ ॥

मूलम्

तमस्य चिच्छेद शरं शिखण्डी
त्रिभिस्त्रिभिश्च प्रतुतोद कर्णम् ।
शिखण्डिनः कार्मुकं च ध्वजं च
छित्त्वा क्षुराभ्यां न्यपतत् सुजातः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु उसके उस बाणको शिखण्डीने तीन बाणोंद्वारा काट दिया और उसे भी तीन बाणोंसे पीड़ित कर दिया। तब कर्णने दो छुरोंसे शिखण्डीकी ध्वजा और धनुष काटकर नीचे गिरा दिये॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डिनं षड्भिरविध्यदुग्रो
धार्ष्टद्युम्नेः स शिरश्चोच्चकर्त ।
तथाभिनत् सुतसोमं शरेण
सुसंशितेनाधिरथिर्महात्मा ॥ ९ ॥

मूलम्

शिखण्डिनं षड्भिरविध्यदुग्रो
धार्ष्टद्युम्नेः स शिरश्चोच्चकर्त ।
तथाभिनत् सुतसोमं शरेण
सुसंशितेनाधिरथिर्महात्मा ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर भयंकर वीर कर्णने छः बाणोंसे शिखण्डीको घायल कर दिया और धृष्टद्युम्नके पुत्रका मस्तक काट डाला। साथ ही महामनस्वी अधिरथपुत्रने अत्यन्त तीखे बाणसे सुतसोमको भी क्षत-विक्षत कर दिया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथाक्रन्दे तुमुले वर्तमाने
धार्ष्टद्युम्ने निहते तत्र कृष्णः।
अपाञ्चाल्यं क्रियते याहि पार्थ
कर्णं जहीत्यब्रवीद् राजसिंह ॥ १० ॥

मूलम्

अथाक्रन्दे तुमुले वर्तमाने
धार्ष्टद्युम्ने निहते तत्र कृष्णः।
अपाञ्चाल्यं क्रियते याहि पार्थ
कर्णं जहीत्यब्रवीद् राजसिंह ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजसिंह! इस प्रकार जब वह भयंकर घमासान युद्ध चलने लगा और धृष्टद्युम्नका पुत्र मारा गया, तब भगवान् श्रीकृष्णने वहाँ अर्जुनसे कहा—‘पार्थ! कर्ण पांचालोंका संहार कर रहा है, अतः आगे बढ़ो और उसे मार डालो’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रहस्याशु नरप्रवीरो
रथं रथेनाधिरथेर्जगाम ।
भये तेषां त्राणमिच्छन् सुबाहु-
रभ्याहतानां रथयूथपेन ॥ ११ ॥

मूलम्

ततः प्रहस्याशु नरप्रवीरो
रथं रथेनाधिरथेर्जगाम ।
भये तेषां त्राणमिच्छन् सुबाहु-
रभ्याहतानां रथयूथपेन ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर सुन्दर भुजाओंवाले नरवीर अर्जुन हँसकर भयके अवसरपर उन घायल सैनिकोंकी रक्षाके लिये रथसमूहोंके अधिपति विशाल रथके द्वारा सूतपुत्रके रथकी ओर शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़े॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विस्फार्य गाण्डीवमथोग्रघोषं
ज्यया समाहत्य तले भृशं च।
बाणान्धकारं सहसैव कृत्वा
जघान नागाश्वरथध्वजांश्च ॥ १२ ॥

मूलम्

विस्फार्य गाण्डीवमथोग्रघोषं
ज्यया समाहत्य तले भृशं च।
बाणान्धकारं सहसैव कृत्वा
जघान नागाश्वरथध्वजांश्च ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने भयानक टंकार करनेवाले गाण्डीव धनुषको फैलाकर उसकी प्रत्यंचाद्वारा अपनी हथेलीमें आघात करते हुए सहसा बाणोंद्वारा अन्धकार फैला दिया और शत्रुपक्षके हाथी, घोड़े, रथ एवं ध्वज नष्ट कर दिये॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रतिश्रुतिः प्राचरदन्तरिक्षे
गुहा गिरीणामपतन् वयांसि ।
यन्मण्डलज्येन विजृम्भमाणो
रौद्रे मुहूर्तेऽभ्यपतत् किरीटी ॥ १३ ॥

मूलम्

प्रतिश्रुतिः प्राचरदन्तरिक्षे
गुहा गिरीणामपतन् वयांसि ।
यन्मण्डलज्येन विजृम्भमाणो
रौद्रे मुहूर्तेऽभ्यपतत् किरीटी ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस भयंकर मुहूर्तमें गाण्डीव धनुषकी प्रत्यंचाको मण्डलाकार करके जब किरीटधारी अर्जुन शत्रुसेनापर टूट पड़े तथा बल और प्रतापमें बढ़ने लगे, उस समय धनुषकी टंकारकी प्रतिध्वनि आकाशमें गूँज उठी, जिससे डरे हुए पक्षी पर्वतोंकी कन्दराओंमें छिप गये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीमसेनोऽनुययौ रथेन
पृष्टे रक्षन् पाण्डवमेकवीरः ।
तौ राजपुत्रौ त्वरितौ रथाभ्यां
कर्णाय यातावरिभिर्विषक्तौ ॥ १४ ॥

मूलम्

तं भीमसेनोऽनुययौ रथेन
पृष्टे रक्षन् पाण्डवमेकवीरः ।
तौ राजपुत्रौ त्वरितौ रथाभ्यां
कर्णाय यातावरिभिर्विषक्तौ ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रमुख वीर भीमसेन पीछेसे पाण्डुनन्दन अर्जुनकी रक्षा करते हुए रथके द्वारा उनका अनुसरण करने लगे। वे दोनों पाण्डवराजकुमार बड़ी उतावलीके साथ शत्रुओंसे जूझते हुए कर्णकी ओर बढ़ने लगे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्रान्तरे सुमहत् सूतपुत्र-
श्चक्रे युद्धं सोमकान् सम्प्रमृद्नन्।
रथाश्वमातङ्गगणान् जघान
प्रच्छादयामास शरैर्दिशश्च ॥ १५ ॥

मूलम्

तत्रान्तरे सुमहत् सूतपुत्र-
श्चक्रे युद्धं सोमकान् सम्प्रमृद्नन्।
रथाश्वमातङ्गगणान् जघान
प्रच्छादयामास शरैर्दिशश्च ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी बीचमें सूतपुत्र कर्णने सोमकोंका संहार करते हुए उनके साथ महान् युद्ध किया। उनके बहुत-से घोड़े, रथ और हाथियोंका वध कर डाला और बाणोंद्वारा सम्पूर्ण दिशाओंको आच्छादित कर दिया॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमुत्तमौजा जनमेजयश्च
क्रुद्धौ युधामन्युशिखण्डिनौ च ।
कर्णं बिभेदुः सहिताः पृषत्कैः
संनर्दमानाः सह पार्षतेन ॥ १६ ॥

मूलम्

तमुत्तमौजा जनमेजयश्च
क्रुद्धौ युधामन्युशिखण्डिनौ च ।
कर्णं बिभेदुः सहिताः पृषत्कैः
संनर्दमानाः सह पार्षतेन ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय धृष्टद्युम्नके साथ गर्जते हुए उत्तमौजा, जनमेजय, कुपित युधामन्यु और शिखण्डी—से सब संगठित होकर अपने बाणोंद्वारा कर्णको घायल करने लगे॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते पञ्च पाञ्चालरथप्रवीरा
वैकर्तनं कर्णमभिद्रवन्तः ।
तस्माद् रथाच्च्यावयितुं न शेकु-
र्धैर्यात् कृतात्मानमिवेन्द्रियार्थाः ॥ १७ ॥

मूलम्

ते पञ्च पाञ्चालरथप्रवीरा
वैकर्तनं कर्णमभिद्रवन्तः ।
तस्माद् रथाच्च्यावयितुं न शेकु-
र्धैर्यात् कृतात्मानमिवेन्द्रियार्थाः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पांचाल रथियोंमें प्रमुख ये पाँचों वीर वैकर्तन कर्णपर आक्रमण करके भी उसे उस रथसे नीचे न गिरा सके। ठीक उसी तरह, जैसे जिसने अपने मनको वशमें कर रखा है उस योगीको शब्द, स्पर्श आदि विषय धैर्यसे विचलित नहीं कर पाते हैं॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां धनूंषि ध्वजवाजिसूतां-
स्तूर्णं पताकाश्च निकृत्य बाणैः।
तान् पञ्चभिस्त्वभ्यहनत् पृषत्कैः
कर्णस्ततः सिंह इवोन्ननाद ॥ १८ ॥

मूलम्

तेषां धनूंषि ध्वजवाजिसूतां-
स्तूर्णं पताकाश्च निकृत्य बाणैः।
तान् पञ्चभिस्त्वभ्यहनत् पृषत्कैः
कर्णस्ततः सिंह इवोन्ननाद ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कर्णने अपने बार्णोद्वारा तुरंत ही उनके धनुष, ध्वज, घोड़े, सारथि और पताकाएँ काट डालीं और पाँच बाणोंसे उन पाँचों वीरोंको भी घायल कर दिया। तत्पश्चात् वह सिंहके समान दहाड़ने लगा॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यास्यतस्तानभिनिघ्नतश्च
ज्याबाणहस्तस्य धनुःस्वनेन ।
साद्रिद्रुमा स्यात् पृथिवी विशीर्णे-
त्यतीव मत्वा जनता व्यषीदत् ॥ १९ ॥

मूलम्

तस्यास्यतस्तानभिनिघ्नतश्च
ज्याबाणहस्तस्य धनुःस्वनेन ।
साद्रिद्रुमा स्यात् पृथिवी विशीर्णे-
त्यतीव मत्वा जनता व्यषीदत् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कर्ण बाण छोड़ता और शत्रुओंका संहार करता जा रहा था। उसके हाथमें धनुषकी प्रत्यंचा और बाण सदा मौजूद रहते थे। उसके धनुषकी टंकारसे पर्वतों और वृक्षोंसहित यह सारी पृथ्वी विदीर्ण हो जायगी, ऐसा समझकर सब लोग अत्यन्त खिन्न हो उठे थे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स शक्रचापप्रतिमेन धन्वना
भृशायतेनाधिरथिः शरान् सृजन् ।
बभौ रणे दीप्तमरीचिमण्डलो
यथांशुमाली परिवेषवांस्तथा ॥ २० ॥

मूलम्

स शक्रचापप्रतिमेन धन्वना
भृशायतेनाधिरथिः शरान् सृजन् ।
बभौ रणे दीप्तमरीचिमण्डलो
यथांशुमाली परिवेषवांस्तथा ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इन्द्रधनुषके समान खींचे हुए मण्डलाकार विशाल धनुषके द्वारा बाणोंकी वर्षा करता हुआ अधिरथपुत्र कर्ण रणभूमिमें प्रकाशमान किरणोंवाले परिधियुक्त अंशुमाली सूर्यके समान शोभा पा रहा था॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डिनं द्वादशभिः पराभिन-
च्छितैः शरैः षड्भिरथोत्तमौजसम् ।
त्रिभिर्युधामन्युमविध्यदाशुगै-
स्त्रिभिस्त्रिभिः सोमकपार्षतात्मजौ ॥ २१ ॥

मूलम्

शिखण्डिनं द्वादशभिः पराभिन-
च्छितैः शरैः षड्भिरथोत्तमौजसम् ।
त्रिभिर्युधामन्युमविध्यदाशुगै-
स्त्रिभिस्त्रिभिः सोमकपार्षतात्मजौ ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसने शिखण्डीको बारह, उत्तमौजाको छः, युधामन्युको तीन तथा जनमेजय और धृष्टद्युम्नको भी तीन-तीन पैने बाणोंसे अत्यन्त घायल कर दिया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पराजिताः पञ्च महारथास्तु ते
महाहवे सूतसुतेन मारिष ।
निरुद्यमास्तस्थुरमित्रनन्दना
यथेन्द्रियार्थात्मवता पराजिताः ॥ २२ ॥

मूलम्

पराजिताः पञ्च महारथास्तु ते
महाहवे सूतसुतेन मारिष ।
निरुद्यमास्तस्थुरमित्रनन्दना
यथेन्द्रियार्थात्मवता पराजिताः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! जैसे मनको वशमें रखनेवाले जितेन्द्रिय पुरुषके द्वारा पराजित हुए विषय उसे आकृष्ट नहीं कर पाते, उसी प्रकार महासमरमें सूतपुत्र कर्णके द्वारा परास्त हुए वे पाँचों पांचाल वीर निश्चेष्टभावसे खड़े हो गये और शत्रुओंका आनन्द बढ़ाने लगे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निमज्जतस्तानथ कर्णसागरे
विपन्ननावो वणिजो यथार्णवे ।
उद्दध्रिरे नौभिरिवार्णवाद् रथैः
सुकल्पितैर्द्रौपदिजाः स्वमातुलान् ॥ २३ ॥

मूलम्

निमज्जतस्तानथ कर्णसागरे
विपन्ननावो वणिजो यथार्णवे ।
उद्दध्रिरे नौभिरिवार्णवाद् रथैः
सुकल्पितैर्द्रौपदिजाः स्वमातुलान् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे समुद्रमें जिनकी नाव डूब गयी हो, उन डूबते हुए व्यापारियोंको दूसरी नौकाओंद्वारा लोग बचा लेते हैं, उसी प्रकार द्रौपदीके पुत्रोंने कर्णरूपी सागरमें डूबनेवाले अपने उन मामाओंको रण-सामग्रीसे सजे-सजाये रथोंद्वारा बचाया॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शिनीनामृषभः शितैः शरै-
र्निकृत्य कर्णप्रहितानिषून् बहून् ।
विदार्य कर्णं निशितैरयस्मयै-
स्तवात्मजं ज्येष्ठमविध्यदष्टभिः ॥ २४ ॥

मूलम्

ततः शिनीनामृषभः शितैः शरै-
र्निकृत्य कर्णप्रहितानिषून् बहून् ।
विदार्य कर्णं निशितैरयस्मयै-
स्तवात्मजं ज्येष्ठमविध्यदष्टभिः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् शिनिप्रवर सात्यकिने कर्णके छोड़े हुए बहुत-से बाणोंको अपने तीखे बाणोंसे काटकर लोहेके पैने बाणोंसे कर्णको घायल करनेके पश्चात् आपके ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधनको आठ बाण मारकर बींध डाला॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृपोऽथ भोजश्च तवात्मजस्तथा
स्वयं च कर्णो निशितैरताडयत्।
स तैश्चतुर्भिर्युयुधे यदूत्तमो
दिगीश्वरैर्दैत्यपतिर्यथा तथा ॥ २५ ॥

मूलम्

कृपोऽथ भोजश्च तवात्मजस्तथा
स्वयं च कर्णो निशितैरताडयत्।
स तैश्चतुर्भिर्युयुधे यदूत्तमो
दिगीश्वरैर्दैत्यपतिर्यथा तथा ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब कृपाचार्य, कृतवर्मा, आपका पुत्र दुर्योधन तथा स्वयं कर्ण भी सात्यकिको तीखे बाणोंसे घायल करने लगे। यदुकुलतिलक सात्यकिने अकेले ही उन चारों वीरोंके साथ उसी प्रकार युद्ध किया, जैसे दैत्यराज हिरण्यकशिपुने चारों दिक्पालोंके साथ किया था॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समाततेनेष्वसनेन कूजता
भृशायतेनामितबाणवर्षिणा ।
बभूव दुर्धर्षतरः स सात्यकिः
शरन्नभोमध्यगतो यथा रविः ॥ २६ ॥

मूलम्

समाततेनेष्वसनेन कूजता
भृशायतेनामितबाणवर्षिणा ।
बभूव दुर्धर्षतरः स सात्यकिः
शरन्नभोमध्यगतो यथा रविः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे शरद्-ऋतुके आकाशमण्डलके बीचमें आये हुए मध्याह्नकालिक सूर्य प्रचण्ड हो उठते हैं, उसी प्रकार असंख्य बाणोंकी वर्षा करनेवाले तथा कानतक खींचे जानेके कारण गम्भीर टंकार करनेवाले अपने विशाल धनुषके द्वारा सात्यकि उस समय शत्रुओंके लिये अत्यन्त दुर्जय हो उठे॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनः समास्थाय रथान् सुदंशिताः
शिनिप्रवीरं जुगुपुः परंतपाः ।
समेत्य पाञ्चालमहारथा रणे
मरुद्‌गणाः शक्रमिवारिनिग्रहे ॥ २७ ॥

मूलम्

पुनः समास्थाय रथान् सुदंशिताः
शिनिप्रवीरं जुगुपुः परंतपाः ।
समेत्य पाञ्चालमहारथा रणे
मरुद्‌गणाः शक्रमिवारिनिग्रहे ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर शत्रुओंको तपानेवाले पूर्वोक्त पांचाल महारथी कवच पहन रथोंपर आरूढ़ हो पुनः आकर शिनिप्रवर सात्यकिकी रणभूमिमें उसी तरह रक्षा करने लगे, जैसे मरुद्‌गण शत्रुओंके दमनकालमें देवराज इन्द्रकी रक्षा करते हैं॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽभवद् युद्धमतीव दारुणं
तवाहितानां तव सैनिकैः सह।
रथाश्वमातङ्गविनाशनं तथा
यथा सुराणामसुरैः पुराभवत् ॥ २८ ॥

मूलम्

ततोऽभवद् युद्धमतीव दारुणं
तवाहितानां तव सैनिकैः सह।
रथाश्वमातङ्गविनाशनं तथा
यथा सुराणामसुरैः पुराभवत् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद आपके शत्रुओंका आपके सैनिकोंके साथ अत्यन्त दारुण युद्ध होने लगा, जो रथों, घोड़ों और हाथियोंका विनाश करनेवाला था। वह युद्ध प्राचीन कालके देवासुर-संग्रामके समान जान पड़ता था॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथा द्विपा वाजिपदातयस्तथा
भवन्ति नानाविधशस्त्रवेष्टिताः ।
परस्परेणाभिहताश्च चस्खलु-
र्विनेदुरार्ता व्यसवोऽपतंस्तथा ॥ २९ ॥

मूलम्

रथा द्विपा वाजिपदातयस्तथा
भवन्ति नानाविधशस्त्रवेष्टिताः ।
परस्परेणाभिहताश्च चस्खलु-
र्विनेदुरार्ता व्यसवोऽपतंस्तथा ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुत-से रथी, सवारोंसहित हाथी, घोड़े तथा पैदल सैनिक नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे आच्छादित हो एक-दूसरेसे टकराकर लड़खड़ाने लगते, आर्तनाद करते और प्राणशून्य होकर गिर पड़ते थे॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथागते भीममभीस्तवात्मजः
ससार राजावरजः किरन् शरैः।
तमभ्यधावत् त्वरितो वृकोदरो
महारुरुं सिंह इवाभिपेदिवान् ॥ ३० ॥

मूलम्

तथागते भीममभीस्तवात्मजः
ससार राजावरजः किरन् शरैः।
तमभ्यधावत् त्वरितो वृकोदरो
महारुरुं सिंह इवाभिपेदिवान् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार जब वह भयंकर संग्राम चल रहा था, उसी समय राजा दुर्योधनका छोटा भाई आपका पुत्र दुःशासन निर्भय हो बाणोंकी वर्षा करता हुआ भीमसेनपर चढ़ आया। उसे देखते ही भीमसेन भी बड़े उतावले होकर उसकी ओर दौड़े और जिस प्रकार सिंह महारुरु नामक मृगपर आक्रमण करता है, उसी प्रकार उसके पास जा पहुँचे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तयोर्युद्धमतीव दारुणं
प्रदीव्यतोः प्राणदुरोदरं द्वयोः ।
परस्परेणाभिनिविष्टरोषयो-
रुदग्रयोः शम्बरशक्रयोर्यथा ॥ ३१ ॥

मूलम्

ततस्तयोर्युद्धमतीव दारुणं
प्रदीव्यतोः प्राणदुरोदरं द्वयोः ।
परस्परेणाभिनिविष्टरोषयो-
रुदग्रयोः शम्बरशक्रयोर्यथा ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंके मनमें एक-दूसरेके प्रति महान् रोष भरा हुआ था। दोनों ही प्राणोंकी बाजी लगाकर अत्यन्त भयंकर युद्धका जूआ खेल रहे थे। उन प्रचण्ड वीरोंका वह संग्राम शम्बरासुर और इन्द्रके समान हो रहा था॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरैः शरीरार्तिकरैः सुतेजनै-
र्निजघ्नतुस्तावितरेतरं भृशम् ।
सकृत्प्रभिन्नाविव वासितान्तरे
महागजौ मन्मथसक्तचेतसौ ॥ ३२ ॥

मूलम्

शरैः शरीरार्तिकरैः सुतेजनै-
र्निजघ्नतुस्तावितरेतरं भृशम् ।
सकृत्प्रभिन्नाविव वासितान्तरे
महागजौ मन्मथसक्तचेतसौ ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शरीरको पीड़ा देनेवाले अत्यन्त पैने बाणोंद्वारा वे दोनों वीर एक-दूसरेको गहरी चोट पहुँचाने लगे; मानो मैथुनकी इच्छावाली हथिनीके लिये कामासक्त चित्त होकर दो मदस्रावी गजराज परस्पर आघात करते हों॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(आलोक्य तौ तत्र परस्परं ततः
समं च शूरौ च ससारथी तदा।
भीमोऽब्रवीद् याहि दुःशासनाय
दुःशासनो याहि वृकोदराय ॥

मूलम्

(आलोक्य तौ तत्र परस्परं ततः
समं च शूरौ च ससारथी तदा।
भीमोऽब्रवीद् याहि दुःशासनाय
दुःशासनो याहि वृकोदराय ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सारथिसहित उन दोनों शूरवीरोंने जब वहाँ एक-दूसरेको एक साथ देखा तब भीमने अपने सारथिसे कहा—‘दुःशासनकी ओर चलो’ और दुःशासनने अपने सारथिसे कहा—‘भीमसेनकी ओर चलो’।

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोरथौ सारथिभ्यां प्रचोदितौ
समं रणे तौ सहसा समीयतुः।
नानायुधौ चित्रपताकिनौ ध्वजौ
दिवीव पूर्वं बलशक्रयो रणे॥

मूलम्

तयोरथौ सारथिभ्यां प्रचोदितौ
समं रणे तौ सहसा समीयतुः।
नानायुधौ चित्रपताकिनौ ध्वजौ
दिवीव पूर्वं बलशक्रयो रणे॥

अनुवाद (हिन्दी)

सारथियोंद्वारा एक साथ हाँके गये उन दोनोंके रथ रणभूमिमें दोनोंके पास सहसा जा पहुँचे। वे दोनों ही रथ नाना प्रकारके आयुधोंसे सम्पन्न तथा विचित्र पताकाओं और ध्वजाओंसे सुशोभित थे। जैसे पूर्वकालमें स्वर्गके निमित्त होनेवाले युद्धमें बलासुर और इन्द्रके रथ थे, उसी प्रकार दुःशासन और भीमसेनके भी थे।

मूलम् (वचनम्)

भीम उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिष्ट्यासि दुःशासन मेऽद्य दृष्टः
ऋणं प्रतीच्छे सहवृद्धिमूलम् ।
चिरोद्यतं यन्मया ते सभायां
कृष्णाभिमर्शेन गृहाण मत्तः ॥

मूलम्

दिष्ट्यासि दुःशासन मेऽद्य दृष्टः
ऋणं प्रतीच्छे सहवृद्धिमूलम् ।
चिरोद्यतं यन्मया ते सभायां
कृष्णाभिमर्शेन गृहाण मत्तः ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेन बोले— दुःशासन! बड़े सौभाग्यकी बात है कि तू आज मुझे दिखायी दिया है। कौरव-सभामें द्रौपदीका स्पर्श करनेके कारण दीर्घकालसे जो तेरा ऋण मेरे ऊपर चढ़ गया है, उसे मैं आज ब्याज और मूलसहित चुकाना चाहता हूँ। तू मुझसे वह सब ग्रहण कर।

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

स एवमुक्तस्तु ततो महात्मा
दुःशासनो वाक्यमुवाच वीरः ।

मूलम्

स एवमुक्तस्तु ततो महात्मा
दुःशासनो वाक्यमुवाच वीरः ।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! भीमसेनके ऐसा कहनेपर महामनस्वी वीर दुःशासनने इस प्रकार कहा।

मूलम् (वचनम्)

दुःशासन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वं स्मरे नैव च विस्मरामि
उदीर्यमाणं शृणु भीमसेन ॥
स्मरामि चात्मप्रभवं चिराय
यज्जातुषे वेश्मनि रात्र्यहानि ।
विश्वासहीना मृगयां चरन्तो
वसन्ति सर्वत्र निराकृतास्तु ॥

मूलम्

सर्वं स्मरे नैव च विस्मरामि
उदीर्यमाणं शृणु भीमसेन ॥
स्मरामि चात्मप्रभवं चिराय
यज्जातुषे वेश्मनि रात्र्यहानि ।
विश्वासहीना मृगयां चरन्तो
वसन्ति सर्वत्र निराकृतास्तु ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुःशासन बोला— भीमसेन! मुझे सब कुछ याद है। मैं भूलता नहीं हूँ। तुम मेरी कही हुई बात सुनो। मैं अपनी की हुई सारी बातोंको चिरकालसे याद रखता हूँ। पहले तुमलोग लाक्षागृहमें रात-दिन सशंक होकर निवास करते थे। फिर वहाँसे निकाले जाकर वनमें सर्वत्र शिकार खेलते हुए रहने लगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

महाभये रात्र्यहनी स्मरन्त-
स्तथोपभोगाच्च सुखाच्च हीनाः ।
वनेष्वटन्तो गिरिगह्वराणि
पाञ्चालराजस्य पुरं प्रविष्टाः ॥
मायां यूयं कामपि सम्प्रविष्टा
यतो वृतः कृष्णया फाल्गुनो वः।

मूलम्

महाभये रात्र्यहनी स्मरन्त-
स्तथोपभोगाच्च सुखाच्च हीनाः ।
वनेष्वटन्तो गिरिगह्वराणि
पाञ्चालराजस्य पुरं प्रविष्टाः ॥
मायां यूयं कामपि सम्प्रविष्टा
यतो वृतः कृष्णया फाल्गुनो वः।

अनुवाद (हिन्दी)

रात-दिन महान् भयमें डूबे रहकर तुम चिन्तामें पड़े रहते और सुख एवं उपभोगसे वंचित हो जंगलों तथा पर्वतकी कन्दराओंमें घूमते थे। इसी अवस्थामें तुम सब लोग एक दिन पांचालराजके नगरमें जा घुसे। वहाँ तुम लोगोंने किसी मायामें प्रविष्ट होकर अपने स्वरूपको छिपा लिया था; इसलिये द्रौपदीने तुमलोगोंमेंसे अर्जुनका वरण कर लिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सम्भूय पापैस्तदनार्यवृत्तं
कृतं तदा मातृकृतानुरूपम् ॥
एको वृतः पञ्चभिः साभिपन्ना
ह्यलज्जमानैश्च परस्परस्य ।
स्मरे सभायां सुबलात्मजेन
दासीकृताः स्थ सह कृष्णया च॥)

मूलम्

सम्भूय पापैस्तदनार्यवृत्तं
कृतं तदा मातृकृतानुरूपम् ॥
एको वृतः पञ्चभिः साभिपन्ना
ह्यलज्जमानैश्च परस्परस्य ।
स्मरे सभायां सुबलात्मजेन
दासीकृताः स्थ सह कृष्णया च॥)

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु तुम सब पापियोंने मिलकर उसके साथ वह नीचोंका-सा बर्ताव किया, जो तुम्हारी माताकी करनीके अनुरूप था। द्रौपदीने तो एकहीका वरण किया, परंतु तुम पाँचोंने उसे अपनी पत्नी बनाया और इस कार्यमें तुम्हें एक-दूसरेसे तनिक भी लज्जा नहीं हुई। मुझे यह भी याद है कि कौरवसभामें शकुनिने द्रौपदीसहित तुम सब लोगोंको दास बना लिया था।

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

(इत्येवमुक्तस्तु तवात्मजेन
पाण्डोः सुतः कोपवशं जगाम।)
तवात्मजस्याथ वृकोदरस्त्वरन्
धनुःक्षुराभ्यां ध्वजमेव चाच्छिनत् ।
ललाटमप्यस्य बिभेद पत्रिणा
शिरश्च कायात् प्रजहार सारथेः ॥ ३३ ॥

मूलम्

(इत्येवमुक्तस्तु तवात्मजेन
पाण्डोः सुतः कोपवशं जगाम।)
तवात्मजस्याथ वृकोदरस्त्वरन्
धनुःक्षुराभ्यां ध्वजमेव चाच्छिनत् ।
ललाटमप्यस्य बिभेद पत्रिणा
शिरश्च कायात् प्रजहार सारथेः ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! आपके पुत्रके ऐसा कहनेपर पाण्डुकुमार भीमसेन क्रोधके वशीभूत हो गये। वृकोदरने बड़ी उतावलीके साथ दो क्षुरोंके द्वारा आपके पुत्र दुःशासनके धनुष और ध्वजको काट दिया, एक बाणसे उसके ललाटमें घाव कर दिया और दूसरेसे उसके सारथिका मस्तक भी धड़से अलग कर दिया॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स राजपुत्रोऽन्यदवाप्य कार्मुकं
वृकोदरं द्वादशभिः पराभिनत् ।
स्वयं नियच्छंस्तुरगानजिह्मगैः
शरैश्च भीमं पुनरप्यवीवृषत् ॥ ३४ ॥

मूलम्

स राजपुत्रोऽन्यदवाप्य कार्मुकं
वृकोदरं द्वादशभिः पराभिनत् ।
स्वयं नियच्छंस्तुरगानजिह्मगैः
शरैश्च भीमं पुनरप्यवीवृषत् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब राजकुमार दुःशासनने भी दूसरा धनुष लेकर भीमसेनको बारह बाणोंसे बींध डाला और स्वयं ही घोड़ोंको काबूमें रखते हुए उसने पुनः उनके ऊपर सीधे जानेवाले बाणोंकी झड़ी लगा दी॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शरं सूर्यमरीचिसप्रभं
सुवर्णवज्रोत्तमरत्नभूषितम् ।
महेन्द्रवज्राशनिपातदुःसहं
मुमोच भीमाङ्गविदारणक्षमम् ॥ ३५ ॥

मूलम्

ततः शरं सूर्यमरीचिसप्रभं
सुवर्णवज्रोत्तमरत्नभूषितम् ।
महेन्द्रवज्राशनिपातदुःसहं
मुमोच भीमाङ्गविदारणक्षमम् ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद दुःशासनने सूर्यकी किरणोंके समान कान्तिमान्, सुवर्ण और हीरे आदि उत्तम रत्नोंसे विभूषित तथा देवराज इन्द्रके वज्र एवं विद्युत्पातके समान दुःसह एक ऐसा भयंकर बाण छोड़ा, जो भीमसेनके अंगोंको विदीर्ण कर देनेमें समर्थ था॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तेन निर्विद्धतनुर्वृकोदरो
निपातितः स्रस्ततनुर्गतासुवत् ।
प्रसार्य बाहू रथवर्यमाश्रितः
पुनः स संज्ञामुपलभ्य चानदत् ॥ ३६ ॥

मूलम्

स तेन निर्विद्धतनुर्वृकोदरो
निपातितः स्रस्ततनुर्गतासुवत् ।
प्रसार्य बाहू रथवर्यमाश्रितः
पुनः स संज्ञामुपलभ्य चानदत् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उससे भीमसेनका शरीर छिद गया। वे बहुत शिथिल हो गये और प्राणहीनके समान दोनों बाँहें फैलाकर अपने श्रेष्ठ रथपर लुढ़क गये। फिर थोड़ी ही देरमें होशमें आकर भीमसेन सिंहके समान दहाड़ने लगे॥३६॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि दुःशासनभीमसेनयुद्धे द्व‌्यशीतितमोऽध्यायः ॥ ८२ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें दुःशासन और भीमसेनका युद्धविषयक बयासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥८२॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ८ श्लोक मिलाकर कुल ४४ श्लोक हैं।)