०८०

भागसूचना

अशीतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अर्जुनका कौरव-सेनाको नष्ट करके आगे बढ़ना

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजन् कुरूणां प्रवरैर्बलैर्भीममभिद्रुतम् ।
मज्जन्तमिव कौन्तेयमुज्जिहीर्षुर्धनंजयः ॥ १ ॥
विसृज्य सूतपुत्रस्य सेनां भारत सायकैः।
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय परवीरान् धनंजयः ॥ २ ॥

मूलम्

राजन् कुरूणां प्रवरैर्बलैर्भीममभिद्रुतम् ।
मज्जन्तमिव कौन्तेयमुज्जिहीर्षुर्धनंजयः ॥ १ ॥
विसृज्य सूतपुत्रस्य सेनां भारत सायकैः।
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय परवीरान् धनंजयः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! कौरव-सेनाके प्रमुख वीरोंने कुन्तीपुत्र भीमसेनपर धावा किया था और वे उस सैन्यसागरमें डूबते-से जान पड़ते थे। भारत! उस समय उनका उद्धार करनेके लिये अर्जुनने सूतपुत्रकी सेनाको छोड़कर उधर ही आक्रमण किया और बाणोंद्वारा शत्रुपक्षके बहुत-से वीरोंको यमलोक भेज दिया॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽस्याम्बरमाश्रित्य शरजालानि भागशः ।
अदृश्यन्त तथान्ये च निघ्नन्तस्तव वाहिनीम् ॥ ३ ॥

मूलम्

ततोऽस्याम्बरमाश्रित्य शरजालानि भागशः ।
अदृश्यन्त तथान्ये च निघ्नन्तस्तव वाहिनीम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर अर्जुनके बाणजाल आकाशके विभिन्न भागोंमें छा गये, वे तथा और भी बहुत-से बाण आपकी सेनाका संहार करते दिखायी दिये॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स पक्षिसंघाचरितमाकाशं पूरयन् शरैः।
धनंजयो महाबाहुः कुरूणामन्तकोऽभवत् ॥ ४ ॥

मूलम्

स पक्षिसंघाचरितमाकाशं पूरयन् शरैः।
धनंजयो महाबाहुः कुरूणामन्तकोऽभवत् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जहाँ पक्षियोंके झुंड उड़ा करते थे, उस आकाशको बाणोंसे भरते हुए महाबाहु धनंजय वहाँ कौरव-सैनिकोंके काल बन गये॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भल्लैः क्षुरप्रैश्च नाराचैर्विमलैरपि।
गात्राणि प्राच्छिनत् पार्थः शिरांसि च चकर्त ह ॥ ५ ॥

मूलम्

ततो भल्लैः क्षुरप्रैश्च नाराचैर्विमलैरपि।
गात्राणि प्राच्छिनत् पार्थः शिरांसि च चकर्त ह ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पार्थने भल्लों, क्षुरप्रों तथा निर्मल नाराचोंद्वारा शत्रुओंका अंग-अंग काट डाला और उनके मस्तक भी धड़से अलग कर दिये॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छिन्नगात्रैर्विकवचैर्विशिरस्कैः समन्ततः ।
पातितैश्च पतद्भिश्च योधैरासीत् समावृता ॥ ६ ॥

मूलम्

छिन्नगात्रैर्विकवचैर्विशिरस्कैः समन्ततः ।
पातितैश्च पतद्भिश्च योधैरासीत् समावृता ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके शरीरोंके टुकड़े-टुकड़े हो गये थे, कवच कटकर गिर गये थे और मस्तक भी काट डाले गये थे, ऐसे बहुत-से योद्धा वहाँ पृथ्वीपर गिरे थे और गिरते जा रहे थे, उन सबकी लाशोंसे वहाँकी भूमि सब ओरसे पट गयी थी॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनंजयशराभ्यस्तैः स्यन्दनाश्वरथद्विपैः ।
संछिन्नभिन्नविध्वस्तैर्व्यङ्गाङ्गावयवैः स्तृता ॥ ७ ॥

मूलम्

धनंजयशराभ्यस्तैः स्यन्दनाश्वरथद्विपैः ।
संछिन्नभिन्नविध्वस्तैर्व्यङ्गाङ्गावयवैः स्तृता ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनपर अर्जुनके बाणोंकी बारंबार मार पड़ी थी, वे रथके घोड़े, रथ और हाथी छिन्न-भिन्न और विध्वस्त हो गये थे; उनका एक-एक अंग अथवा अवयव कटकर अलग हो गया था। इन सबके द्वारा वहाँकी भूमि आच्छादित हो गयी थी॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुदुर्गमा सुविषमा घोरात्यर्थं सुदुर्दृशा।
रणभूमिरभूद् राजन् महावैतरणी यथा ॥ ८ ॥

मूलम्

सुदुर्गमा सुविषमा घोरात्यर्थं सुदुर्दृशा।
रणभूमिरभूद् राजन् महावैतरणी यथा ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समय रणभूमि महावैतरणी नदीके समान अत्यन्त दुर्गम, बहुत ऊँची-नीची और भयंकर हो गयी थी, उसकी ओर देखना भी अत्यन्त कठिन जान पड़ता था॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ईषाचक्राक्षभग्नैश्च व्यश्वैः साश्वैश्च युध्यताम्।
ससूतैर्हतसूतैश्च रथैस्तीर्णाभवन्मही ॥ ९ ॥

मूलम्

ईषाचक्राक्षभग्नैश्च व्यश्वैः साश्वैश्च युध्यताम्।
ससूतैर्हतसूतैश्च रथैस्तीर्णाभवन्मही ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

योद्धाओंके टूटे-फूटे रथोंसे रणभूमि ढक गयी थी। उन रथोंके ईषादण्ड, पहिये और धुरे खण्डित हो गये थे। कुछ रथोंके घोड़े और सारथि जीवित थे और कुछके अश्व एवं सारथि मार डाले गये थे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुवर्णवर्णसंनाहैर्योधैः कनकभूषणैः ।
आस्थिताः क्लृप्तवर्माणो भद्रा नित्यमदा द्विपाः ॥ १० ॥
क्रुद्धाः क्रूरैर्महामात्रैः पार्ष्ण्यङ्‌गुष्ठप्रचोदिताः ।
चतुःशताः शरवरैर्हताः पेतुः किरीटिना ॥ ११ ॥
पर्यस्तानीव शृङ्गाणि ससत्त्वानि महागिरेः।
धनंजयशराभ्यस्तैः स्तीर्णा भूर्वरवारणैः ॥ १२ ॥

मूलम्

सुवर्णवर्णसंनाहैर्योधैः कनकभूषणैः ।
आस्थिताः क्लृप्तवर्माणो भद्रा नित्यमदा द्विपाः ॥ १० ॥
क्रुद्धाः क्रूरैर्महामात्रैः पार्ष्ण्यङ्‌गुष्ठप्रचोदिताः ।
चतुःशताः शरवरैर्हताः पेतुः किरीटिना ॥ ११ ॥
पर्यस्तानीव शृङ्गाणि ससत्त्वानि महागिरेः।
धनंजयशराभ्यस्तैः स्तीर्णा भूर्वरवारणैः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किरीटधारी अर्जुनके उत्तम बाणोंसे आहत होकर नित्य मद बहानेवाले, कवचधारी एवं मंगलमय लक्षणोंसे युक्त चार सौ रोषभरे हाथी धराशायी हो गये। उन हाथियोंपर सुवर्णमय कवच और सोनेके आभूषण धारण करनेवाले योद्धा बैठे थे और क्रूर स्वभाववाले महावत उन्हें अपने पैरोंकी एड़ियों तथा अँगूठोंसे आगे बढ़नेकी प्रेरणा दे रहे थे। उन सबके साथ गिरे हुए वे हाथी जीव-जन्तुओंसहित धराशायी हुए महान् पर्वतके शिखरोंके समान सब ओर पड़े थे। अर्जुनके बाणोंसे विशेष घायल होकर गिरे हुए उन गजराजोंके शरीरोंसे रणभूमि ढक गयी थी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समन्ताज्जलदप्रख्यान् वारणान् मदवर्षिणः ।
अभिपेदेऽर्जुनरथो घनान् भिन्दन्निवांशुमान् ॥ १३ ॥

मूलम्

समन्ताज्जलदप्रख्यान् वारणान् मदवर्षिणः ।
अभिपेदेऽर्जुनरथो घनान् भिन्दन्निवांशुमान् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे अंशुमाली सूर्य बादलोंको छिन्न-भिन्न करते हुए प्रकाशित हो उठते हैं, उसी प्रकार अर्जुनका रथ सब ओरसे मेघोंकी घटाके समान काले मदस्रावी गजराजोंको विदीर्ण करता हुआ वहाँ आ पहुँचा था॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हतैर्गजमनुष्याश्वैर्भिन्नैश्च बहुधा रथैः ।
विशस्त्रयन्त्रकवचैर्युद्धशौण्डैर्गतासुभिः ॥ १४ ॥
अपविद्धायुधैर्मार्गः स्तीर्णोऽभूत् फाल्गुनेन वै।

मूलम्

हतैर्गजमनुष्याश्वैर्भिन्नैश्च बहुधा रथैः ।
विशस्त्रयन्त्रकवचैर्युद्धशौण्डैर्गतासुभिः ॥ १४ ॥
अपविद्धायुधैर्मार्गः स्तीर्णोऽभूत् फाल्गुनेन वै।

अनुवाद (हिन्दी)

मारे गये हाथियों, मनुष्यों और घोड़ोंसे; टूट-फूटकर बिखरे हुए अनेकानेक रथोंसे; शस्त्र, यन्त्र तथा कवचोंसे रहित हुए युद्धकुशल प्राणशून्य योद्धाओंसे और इधर-उधर फेंके हुए आयुधोंसे अर्जुनने वहाँके मार्गको आच्छादित कर दिया था॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यस्फारयद् वै गाण्डीवं सुमहद् भैरवारवम् ॥ १५ ॥
घोरवज्रविनिष्पेषं स्तनयित्नुरिवाम्बरे ।

मूलम्

व्यस्फारयद् वै गाण्डीवं सुमहद् भैरवारवम् ॥ १५ ॥
घोरवज्रविनिष्पेषं स्तनयित्नुरिवाम्बरे ।

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने आकाशमें मेघके समान भयानक वज्रपातके शब्दको तिरस्कृत करनेवाले भयंकर स्वरमें अपने विशाल गाण्डीव धनुषकी टंकार की॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रादीर्यत चमूर्धनंजयशराहता ॥ १६ ॥
महावातसमाविद्धा महानौरिव सागरे ।

मूलम्

ततः प्रादीर्यत चमूर्धनंजयशराहता ॥ १६ ॥
महावातसमाविद्धा महानौरिव सागरे ।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर अर्जुनके बाणोंसे आहत हुई कौरव-सेना समुद्रमें उठे तूफानसे टकराये हुए जहाजके समान विदीर्ण हो उठी॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानारूपाः प्राणहराः शरा गाण्डीवचोदिताः ॥ १७ ॥
अलातोल्काशनिप्रख्यास्तव सैन्यं विनिर्दहन् ।

मूलम्

नानारूपाः प्राणहराः शरा गाण्डीवचोदिताः ॥ १७ ॥
अलातोल्काशनिप्रख्यास्तव सैन्यं विनिर्दहन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

गाण्डीव धनुषसे छूटे हुए प्राण लेनेवाले नाना प्रकारके बाण जो अलात, उल्का और बिजलीके समान प्रकाशित हो रहे थे, आपकी सेनाको दग्ध करने लगे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महागिरौ वेणुवनं निशि प्रज्वलितं यथा ॥ १८ ॥
तथा तव महासैन्यं प्रास्फुरच्छरपीडितम्।

मूलम्

महागिरौ वेणुवनं निशि प्रज्वलितं यथा ॥ १८ ॥
तथा तव महासैन्यं प्रास्फुरच्छरपीडितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे रात्रिकालमें किसी महान् पर्वतपर बाँसोंका वन जल रहा हो, उसी प्रकार अर्जुनके बाणोंसे पीड़ित हुई आपकी विशाल सेना आगकी लपटोंसे घिरी हुई-सी प्रतीत हो रही थी॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संपिष्टदग्धविध्वस्तं तव सैन्यं किरीटिना ॥ १९ ॥
कृतं प्रविहतं बाणैः सर्वतः प्रद्रुतं दिशः।

मूलम्

संपिष्टदग्धविध्वस्तं तव सैन्यं किरीटिना ॥ १९ ॥
कृतं प्रविहतं बाणैः सर्वतः प्रद्रुतं दिशः।

अनुवाद (हिन्दी)

किरीटधारी अर्जुनने आपकी सेनाको पीस डाला, चला दिया, विध्वस्त कर दिया, बाणोंसे बींध डाला और सम्पूर्ण दिशाओंमें भगा दिया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महावने मृगगणा दावाग्नित्रासिता यथा ॥ २० ॥
कुरवः पर्यवर्तन्त निर्दग्धाः सव्यसाचिना।

मूलम्

महावने मृगगणा दावाग्नित्रासिता यथा ॥ २० ॥
कुरवः पर्यवर्तन्त निर्दग्धाः सव्यसाचिना।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे विशाल वनमें दावानलसे डरे हुए मृगोंके समूह इधर-उधर भागते हैं, उसी प्रकार सव्यसाची अर्जुनके बाणरूपी अग्निसे चलते हुए कौरव-सैनिक चारों ओर चक्कर काट रहे थे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्सृज्य च महाबाहुं भीमसेनं तथा रणे ॥ २१ ॥
बलं कुरूणामुद्विग्नं सर्वमासीत् पराङ्‌मुखम्।

मूलम्

उत्सृज्य च महाबाहुं भीमसेनं तथा रणे ॥ २१ ॥
बलं कुरूणामुद्विग्नं सर्वमासीत् पराङ्‌मुखम्।

अनुवाद (हिन्दी)

रणभूमिमें उद्विग्न हुई सारी कौरव-सेनाने महाबाहु भीमसेनको छोड़कर युद्धसे मुँह मोड़ लिया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कुरुषु भग्नेषु बीभत्सुरपराजितः ॥ २२ ॥
भीमसेनं समासाद्य मुहूर्तं सोऽभ्यवर्तत।

मूलम्

ततः कुरुषु भग्नेषु बीभत्सुरपराजितः ॥ २२ ॥
भीमसेनं समासाद्य मुहूर्तं सोऽभ्यवर्तत।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार कौरव-सैनिकोंके भाग जानेपर कभी पराजित न होनेवाले अर्जुन भीमसेनके पास पहुँचकर दो घड़ीतक रुके रहे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समागम्य च भीमेन मन्त्रयित्वा च फाल्गुनः ॥ २३ ॥
विशल्यमरुजं चास्मै कथयित्वा युधिष्ठिरम्।

मूलम्

समागम्य च भीमेन मन्त्रयित्वा च फाल्गुनः ॥ २३ ॥
विशल्यमरुजं चास्मै कथयित्वा युधिष्ठिरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर भीमसे मिलकर उन्होंने कुछ सलाह की और यह बताया कि राजा युधिष्ठिरके शरीरसे बाण निकाल दिये गये हैं, अतः वे इस समय स्वस्थ हैं॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनाभ्यनुज्ञातस्ततः प्रायाद् धनंजयः ॥ २४ ॥
नादयन् रथघोषेण पृथिवीं द्यां च भारत।

मूलम्

भीमसेनाभ्यनुज्ञातस्ततः प्रायाद् धनंजयः ॥ २४ ॥
नादयन् रथघोषेण पृथिवीं द्यां च भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तत्पश्चात् भीमसेनकी आज्ञा ले अर्जुन अपने रथकी घर्घराहटसे पृथ्वी और आकाशको गुँजाते हुए वहाँसे चल दिये॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः परिवृतो वीरैर्दशभिर्योधपुङ्गवैः ॥ २५ ॥
दुःशासनादवरजैस्तव पुत्रैर्धनंजयः ।

मूलम्

ततः परिवृतो वीरैर्दशभिर्योधपुङ्गवैः ॥ २५ ॥
दुःशासनादवरजैस्तव पुत्रैर्धनंजयः ।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय आपके दस वीर पुत्रोंने, जो योद्धाओंमें श्रेष्ठ और दुःशासनसे छोटे थे, अर्जुनको चारों ओरसे घेर लिया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तमभ्यर्दयन् बाणैरुल्काभिरिव कुञ्जरम् ॥ २६ ॥
आततेष्वसनाः शूरा नृत्यन्त इव भारत।

मूलम्

ते तमभ्यर्दयन् बाणैरुल्काभिरिव कुञ्जरम् ॥ २६ ॥
आततेष्वसनाः शूरा नृत्यन्त इव भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! जैसे शिकारी लुआठोंसे हाथीको मारते हैं, उसी प्रकार अपने धनुषको ताने हुए उन शूर-वीरोंने नाचते हुए-से वहाँ अर्जुनको बाणोंद्वारा व्यथित कर डाला॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपसव्यांस्तु तांश्चक्रे रथेन मधुसूदनः ॥ २७ ॥
न युक्तान् हि स तान् मेने यमायाशु किरीटिना।

मूलम्

अपसव्यांस्तु तांश्चक्रे रथेन मधुसूदनः ॥ २७ ॥
न युक्तान् हि स तान् मेने यमायाशु किरीटिना।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भगवान् श्रीकृष्णने यह सोचकर कि अर्जुन-द्वारा इन सबको यमलोकमें भेज देना उचित नहीं है, रथके द्वारा उन्हें शीघ्र ही अपने दाहिने भागमें कर दिया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथान्ये प्राद्रवन् मूढाः पराङ्‌मुखरथेऽर्जुने ॥ २८ ॥
तेषामापततां केतूनश्वांश्चापानि सायकान् ।
नाराचैरर्धचन्द्रैश्च क्षिप्रं पार्थो न्यपातयत् ॥ २९ ॥

मूलम्

तथान्ये प्राद्रवन् मूढाः पराङ्‌मुखरथेऽर्जुने ॥ २८ ॥
तेषामापततां केतूनश्वांश्चापानि सायकान् ।
नाराचैरर्धचन्द्रैश्च क्षिप्रं पार्थो न्यपातयत् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब अर्जुनका रथ दूसरी ओर जाने लगा, तब दूसरे मूढ़ कौरव योद्धा लोग उनपर टूट पड़े। उस समय कुन्तीकुमार अर्जुनने उन आक्रमणकारियोंके ध्वज, अश्व, धनुष और बाणोंको नाराचों और अर्धचन्द्रोंद्वारा शीघ्र ही काट गिराया॥२८-२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यैर्बहुभिर्भल्लैः शिरांस्येषामपातयत् ।
रोषसंरक्तनेत्राणि संदष्टौष्ठानि भूतले ॥ ३० ॥
तानि वक्त्राणि विबभुः कमलानीव भूरिशः।

मूलम्

अथान्यैर्बहुभिर्भल्लैः शिरांस्येषामपातयत् ।
रोषसंरक्तनेत्राणि संदष्टौष्ठानि भूतले ॥ ३० ॥
तानि वक्त्राणि विबभुः कमलानीव भूरिशः।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर अन्य बहुत-से भल्लोंद्वारा उन सबके मस्तक काट डाले। वे मस्तक रोषसे लाल हुए नेत्रोंसे युक्त थे और उनके ओठ दाँतोंतले दबे हुए थे। पृथ्वीपर
गिरे हुए उनके वे मुख बहुसंख्यक कमलपुष्पोंके समान सुशोभित हो रहे थे॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तांस्तु भल्लैर्महावेगैर्दशभिर्दश भारत ॥ ३१ ॥
रुक्माङ्गदान् रुक्मपुङ्खैर्हत्वा प्रायादमित्रहा ॥ ३२ ॥

मूलम्

तांस्तु भल्लैर्महावेगैर्दशभिर्दश भारत ॥ ३१ ॥
रुक्माङ्गदान् रुक्मपुङ्खैर्हत्वा प्रायादमित्रहा ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! शत्रुओंका संहार करनेवाले अर्जुन सुवर्णमय पंखवाले महान् वेगशाली दस भल्लोंद्वारा सोनेके अंगदोंसे विभूषित उन दसों वीरोंको बींधकर आगे बढ़ गये॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि संकुलयुद्धेऽशीतितमोऽध्यायः ॥ ८० ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें संकुलयुद्धविषयक अस्सीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥८०॥