०७४

भागसूचना

चतुःसप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अर्जुनके वीरोचित उद्‌गार

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

स केशवस्य बीभत्सुः श्रुत्वा भारत भाषितम्।
विशोकः सम्प्रहृष्टश्च क्षणेन समपद्यत ॥ १ ॥

मूलम्

स केशवस्य बीभत्सुः श्रुत्वा भारत भाषितम्।
विशोकः सम्प्रहृष्टश्च क्षणेन समपद्यत ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— भरतनन्दन! भगवान् श्रीकृष्णका यह भाषण सुनकर अर्जुन एक ही क्षणमें शोकरहित एवं हर्ष और उत्साहसे सम्पन्न हो गये॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो ज्यामभिमृज्याशु व्याक्षिपद् गाण्डिवं धनुः।
दध्रे कर्णविनाशाय केशवं चाभ्यभाषत ॥ २ ॥

मूलम्

ततो ज्यामभिमृज्याशु व्याक्षिपद् गाण्डिवं धनुः।
दध्रे कर्णविनाशाय केशवं चाभ्यभाषत ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् धनुषकी प्रत्यंचाको साफ करके उन्होंने शीघ्र ही गाण्डीवधनुषकी टंकार की और कर्णके विनाशका दृढ़ निश्चय कर लिया। फिर वे भगवान् श्रीकृष्णसे इस प्रकार बोले—॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वया नाथेन गोविन्द ध्रुव एव जयो मम।
प्रसन्नो यस्य मेऽद्य त्वं लोके भूतभविष्यकृत् ॥ ३ ॥

मूलम्

त्वया नाथेन गोविन्द ध्रुव एव जयो मम।
प्रसन्नो यस्य मेऽद्य त्वं लोके भूतभविष्यकृत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘गोविन्द! जब आप मेरे स्वामी और संरक्षक हैं, तब युद्धमें मेरी विजय निश्चित ही है। संसारके भूत और भविष्यका निर्माण करनेवाले आप ही हैं। जिसके ऊपर आप प्रसन्न हैं, उसकी (अर्थात् मेरी) विजयमें आज क्या संदेह है॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वत्सहायो ह्यहं कृष्ण त्रील्ँलोकान्‌ वै समागतान्।
प्रापयेयं परं लोकं किमु कर्णं महाहवे ॥ ४ ॥

मूलम्

त्वत्सहायो ह्यहं कृष्ण त्रील्ँलोकान्‌ वै समागतान्।
प्रापयेयं परं लोकं किमु कर्णं महाहवे ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आपकी सहायता मिलनेपर तो मैं युद्धके लिये सामने आये हुए तीनों लोकोंको भी परलोकका पथिक बना सकता हूँ, फिर इस महासमरमें कर्णको जीतना कौन बड़ी बात है?॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पश्यामि द्रवतीं सेनां पञ्चालानां जनार्दन।
पश्यामि कर्णं समरे विचरन्तमभीतवत् ॥ ५ ॥

मूलम्

पश्यामि द्रवतीं सेनां पञ्चालानां जनार्दन।
पश्यामि कर्णं समरे विचरन्तमभीतवत् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जनार्दन! मैं समरभूमिमें निर्भय-से विचरते हुए कर्णको और भागती हुई पांचालोंकी सेनाको भी देख रहा हूँ॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भार्गवास्त्रं च पश्यामि ज्वलन्तं कृष्ण सर्वशः।
सृष्टं कर्णेन वार्ष्णेय शक्रेणेव यथाशनिम् ॥ ६ ॥

मूलम्

भार्गवास्त्रं च पश्यामि ज्वलन्तं कृष्ण सर्वशः।
सृष्टं कर्णेन वार्ष्णेय शक्रेणेव यथाशनिम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! वार्ष्णेय! सब ओरसे प्रज्वलित होनेवाले भार्गवास्त्रपर भी मेरी दृष्टि है, जिसे कर्णने उसी तरह प्रकट किया है, जैसे इन्द्र वज्रका प्रयोग करते हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अयं खलु स संग्रामो यत्र कर्णं मया हतम्।
कथयिष्यन्ति भूतानि यावद् भूमिर्धरिष्यति ॥ ७ ॥

मूलम्

अयं खलु स संग्रामो यत्र कर्णं मया हतम्।
कथयिष्यन्ति भूतानि यावद् भूमिर्धरिष्यति ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘निश्चय ही यह वह संग्राम है, जहाँ कर्ण मेरे हाथसे मारा जायगा और जबतक यह पृथ्वी विद्यमान रहेगी, तबतक समस्त प्राणी इसकी चर्चा करेंगे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कृष्ण विकर्णा मे कर्णं नेष्यन्ति मृत्यवे।
गाण्डीवमुक्ताः क्षिण्वन्तो मम हस्तप्रचोदिताः ॥ ८ ॥

मूलम्

अद्य कृष्ण विकर्णा मे कर्णं नेष्यन्ति मृत्यवे।
गाण्डीवमुक्ताः क्षिण्वन्तो मम हस्तप्रचोदिताः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज मेरे हाथसे प्रेरित और गाण्डीव-धनुषसे मुक्त हुए विकर्ण नामक बाण कर्णको क्षत-विक्षत करते हुए उसे यमलोक पहुँचा देंगे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य राजा धृतराष्ट्रः स्वां बुद्धिमवमंस्यते।
दुर्योधनमराज्यार्हं यया राज्येऽभ्यषेचयत् ॥ ९ ॥

मूलम्

अद्य राजा धृतराष्ट्रः स्वां बुद्धिमवमंस्यते।
दुर्योधनमराज्यार्हं यया राज्येऽभ्यषेचयत् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज राजा धृतराष्ट्र अपनी उस बुद्धिका अनादर करेंगे, जिसके द्वारा उन्होंने राज्यके अनधिकारी दुर्योधनको राजाके पदपर अभिषिक्त कर दिया था॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य राज्यात् सुखाच्चैव श्रियो राष्ट्रात् तथा पुरात्।
पुत्रेभ्यश्च महाबाहो धृतराष्ट्रो विमोक्ष्यति ॥ १० ॥

मूलम्

अद्य राज्यात् सुखाच्चैव श्रियो राष्ट्रात् तथा पुरात्।
पुत्रेभ्यश्च महाबाहो धृतराष्ट्रो विमोक्ष्यति ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाबाहो! आज धृतराष्ट्र अपने राज्यसे, सुखसे, लक्ष्मीसे, राष्ट्रसे, नगरसे और अपने पुत्रोंसे भी बिछुड़ जायँगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गुणवन्तं हि यो द्वेष्टि निर्गुणं कुरुते प्रभुम्।
स शोचति नृपः कृष्ण क्षिप्रमेवागते क्षये ॥ ११ ॥

मूलम्

गुणवन्तं हि यो द्वेष्टि निर्गुणं कुरुते प्रभुम्।
स शोचति नृपः कृष्ण क्षिप्रमेवागते क्षये ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! जो गुणवान्‌से द्वेष करता और गुणहीनको राजा बनाता है, वह नरेश विनाशकाल उपस्थित होनेपर शोकमग्न हो पश्चात्ताप करता है॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा च पुरुषः कश्चिच्छित्त्वा चाम्रवणं महत्।
फलं दृष्ट्‌वा भृशं दुःखी भविष्यति जनार्दन।
सूतपुत्रे हते त्वद्य निराशो भविता प्रभुः ॥ १२ ॥

मूलम्

यथा च पुरुषः कश्चिच्छित्त्वा चाम्रवणं महत्।
फलं दृष्ट्‌वा भृशं दुःखी भविष्यति जनार्दन।
सूतपुत्रे हते त्वद्य निराशो भविता प्रभुः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जनार्दन! जैसे कोई पुरुष आमके विशाल वनको काटकर उसके दुष्परिणामको उपस्थित देख अत्यन्त दुःखी हो जाता है, उसी प्रकार आज सूतपुत्रके मारे जानेपर राजा दुर्योधन निराश हो जायगा॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य दुर्योधनो राज्याज्जीविताच्च निराशकः।
भविष्यति हते कर्णे कृष्ण सत्यं ब्रवीमि ते ॥ १३ ॥

मूलम्

अद्य दुर्योधनो राज्याज्जीविताच्च निराशकः।
भविष्यति हते कर्णे कृष्ण सत्यं ब्रवीमि ते ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! मैं आपसे सच्ची बात कहता हूँ। आज कर्णका वध हो जानेपर दुर्योधन अपने राज्य और जीवन दोनोंसे निराश हो जायगा॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य दृष्ट्‌वा मया कर्णं शरैर्विशकलीकृतम्।
स्मरतां तव वाक्यानि शमं प्रति जनेश्वरः ॥ १४ ॥

मूलम्

अद्य दृष्ट्‌वा मया कर्णं शरैर्विशकलीकृतम्।
स्मरतां तव वाक्यानि शमं प्रति जनेश्वरः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज मेरे बाणोंसे कर्णके शरीरको टूक-टूक हुआ देखकर राजा दुर्योधन सन्धिके लिये कहे हुए आपके वचनोंका स्मरण करे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्यासौ सौबलः कृष्ण ग्लहाञ्जानातु वै शरान्।
दुरोदरं च गाण्डीवं मण्डलं च रथं प्रति ॥ १५ ॥

मूलम्

अद्यासौ सौबलः कृष्ण ग्लहाञ्जानातु वै शरान्।
दुरोदरं च गाण्डीवं मण्डलं च रथं प्रति ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज सुबलपुत्र जुआरी शकुनिको यह मालूम हो जाय कि मेरे बाण ही दाँव हैं, गाण्डीवधनुष ही पासा है और मेरा रथ ही मण्डल (चौपड़के खाने) है॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कुन्तीसुतस्याहं दृढं राज्ञः प्रजागरम्।
व्यपनेष्यामि गोविन्द हत्वा कर्णं शितैः शरैः ॥ १६ ॥

मूलम्

अद्य कुन्तीसुतस्याहं दृढं राज्ञः प्रजागरम्।
व्यपनेष्यामि गोविन्द हत्वा कर्णं शितैः शरैः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘गोविन्द! आज मैं अपने पैने बाणोंसे कर्णको मारकर कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिरके चिन्ताजनित जागरणके स्थायी रोगको दूर कर दूँगा॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कुन्तीसुतो राजा हते सूतसुते मया।
सुप्रहृष्टमनाः प्रीतश्चिरं सुखमवाप्स्यति ॥ १७ ॥

मूलम्

अद्य कुन्तीसुतो राजा हते सूतसुते मया।
सुप्रहृष्टमनाः प्रीतश्चिरं सुखमवाप्स्यति ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर मेरे द्वारा सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर प्रसन्नचित्त हो दीर्घकालके लिये संतुष्ट एवं सुखी हो जायँगे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य चाहमनाधृष्यं केशवाप्रतिमं शरम्।
उत्स्रक्ष्यामीह यः कर्णं जीविताद् भ्रंशयिष्यति ॥ १८ ॥

मूलम्

अद्य चाहमनाधृष्यं केशवाप्रतिमं शरम्।
उत्स्रक्ष्यामीह यः कर्णं जीविताद् भ्रंशयिष्यति ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज मैं ऐसा अनुपम और अजेय बाण छोड़ूँगा, जो कर्णको उसके प्राणोंसे वंचित कर देगा॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्य चैतद् व्रतं मह्यं वधे किल दुरात्मनः।
पादौ न धावये तावद् यावद्धन्यां न फाल्गुनम् ॥ १९ ॥
मृषा कृत्वा व्रतं तस्य पापस्य मधुसूदन।
पातयिष्ये रथात् कायं शरैः संनतपर्वभिः ॥ २० ॥

मूलम्

यस्य चैतद् व्रतं मह्यं वधे किल दुरात्मनः।
पादौ न धावये तावद् यावद्धन्यां न फाल्गुनम् ॥ १९ ॥
मृषा कृत्वा व्रतं तस्य पापस्य मधुसूदन।
पातयिष्ये रथात् कायं शरैः संनतपर्वभिः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मधुसूदन! जिस दुरात्माने मेरे वधके लिये यह व्रत लिया है कि जबतक अर्जुनको मार न लूंगा, तबतक दूसरोंसे पैर न धुलाऊँगा। उस पापीके इस व्रतको मिथ्या करके झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा उसके इस शरीरको रथसे नीचे गिरा दूँगा॥१९-२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

योऽसौ रणे नरं नान्यं पृथिव्यामनुमन्यते।
तस्याद्य सूतपुत्रस्य भूमिः पास्यति शोणितम् ॥ २१ ॥

मूलम्

योऽसौ रणे नरं नान्यं पृथिव्यामनुमन्यते।
तस्याद्य सूतपुत्रस्य भूमिः पास्यति शोणितम् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जो भूमण्डलमें दूसरे किसी पुरुषको रणभूमिमें अपने समान नहीं मानता है, आज यह पृथ्वी उस सूतपुत्रके रक्तका पान करेगी॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपतिर्ह्यसि कृष्णेति सूतपुत्रो यदब्रवीत्।
धृतराष्ट्रमते कर्णः श्लाघमानः स्वकान् गुणान् ॥ २२ ॥
अनृतं तत् करिष्यन्ति मामका निशिताः शराः।
आशीविषा इव क्रुद्धास्तस्य पास्यन्ति शोणितम् ॥ २३ ॥

मूलम्

अपतिर्ह्यसि कृष्णेति सूतपुत्रो यदब्रवीत्।
धृतराष्ट्रमते कर्णः श्लाघमानः स्वकान् गुणान् ॥ २२ ॥
अनृतं तत् करिष्यन्ति मामका निशिताः शराः।
आशीविषा इव क्रुद्धास्तस्य पास्यन्ति शोणितम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सूतपुत्र कर्णने धृतराष्ट्रके मतमें होकर अपने गुणोंकी प्रशंसा करते हुए जो द्रौपदीसे यह कहा था कि ‘कृष्णे! तू पतिहीन है’ उसके इस कथनको मेरे तीखे बाण असत्य कर दिखायेंगे और क्रोधमें भरे हुए विषधर सर्पोंके समान उसके रक्तका पान करेंगे॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मया हस्तवता मुक्ता नाराचा वैद्युतत्विषः।
गाण्डीवसृष्टा दास्यन्ति कर्णस्य परमां गतिम् ॥ २४ ॥

मूलम्

मया हस्तवता मुक्ता नाराचा वैद्युतत्विषः।
गाण्डीवसृष्टा दास्यन्ति कर्णस्य परमां गतिम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं बाण चलानेमें सिद्धहस्त हूँ। मेरे द्वारा गाण्डीव धनुषसे छोड़े गये बिजलीके समान चमकते हुए नाराच कर्णको परम गति प्रदान करेंगे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य तप्स्यति राधेयः पाञ्चालीं यत्तदाब्रवीत्।
सभामध्ये वचः क्रूरं कुत्सयन् पाण्डवान् प्रति ॥ २५ ॥

मूलम्

अद्य तप्स्यति राधेयः पाञ्चालीं यत्तदाब्रवीत्।
सभामध्ये वचः क्रूरं कुत्सयन् पाण्डवान् प्रति ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘राधापुत्र कर्णने भरी सभामें पाण्डवोंकी निन्दा करते हुए द्रौपदीसे जो क्रूरतापूर्ण वचन कहा था, उसके लिये उसे बड़ा पश्चात्ताप होगा॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये वै षण्ढतिलास्तत्र भवितारोऽद्य ते तिलाः।
हते वैकर्तने कर्णे सूतपुत्रे दुरात्मनि ॥ २६ ॥

मूलम्

ये वै षण्ढतिलास्तत्र भवितारोऽद्य ते तिलाः।
हते वैकर्तने कर्णे सूतपुत्रे दुरात्मनि ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जो पाण्डव वहाँ थोथे तिलोंके समान नपुंसक कहे गये थे, वे दुरात्मा सूतपुत्र वैकर्तन कर्णके मारे जानेपर आज अच्छे तिल और शूरवीर सिद्ध होंगे॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहं वः पाण्डुपुत्रेभ्यस्त्रास्यामीति यदब्रवीत्।
धृतराष्ट्रसुतान् कर्णः श्लाघमानोऽऽत्मनो गुणान् ॥ २७ ॥
अनृतं तत् करिष्यन्ति मामका निशिताः शराः।
उद्योगः पाण्डुपुत्राणां समाप्तिमुपयास्यति ॥ २८ ॥

मूलम्

अहं वः पाण्डुपुत्रेभ्यस्त्रास्यामीति यदब्रवीत्।
धृतराष्ट्रसुतान् कर्णः श्लाघमानोऽऽत्मनो गुणान् ॥ २७ ॥
अनृतं तत् करिष्यन्ति मामका निशिताः शराः।
उद्योगः पाण्डुपुत्राणां समाप्तिमुपयास्यति ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अपने गुणोंकी प्रशंसा करते हुए सूतपुत्र कर्णने धृतराष्ट्रके पुत्रोंसे जो यह कहा था कि ‘मैं पाण्डवोंसे तुम्हारी रक्षा करूँगा’ उसके इस कथनको मेरे तीखे बाण असत्य कर देंगे और पाण्डवोंका युद्धविषयक उद्योग समाप्त हो जायगा॥२७-२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हन्ताहं पाण्डवान्‌ सर्वान् सपुत्रानिति योऽब्रवीत्।
तमद्य कर्णं हन्तास्मि मिषतां सर्वधन्विनाम् ॥ २९ ॥

मूलम्

हन्ताहं पाण्डवान्‌ सर्वान् सपुत्रानिति योऽब्रवीत्।
तमद्य कर्णं हन्तास्मि मिषतां सर्वधन्विनाम् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जिसने यह कहा था कि मैं ‘पुत्रोंसहित समस्त पाण्डवोंको मार डालूँगा’ उस कर्णको आज समस्त धनुर्धरोंके देखते-देखते मैं नष्ट कर दूँगा॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्य वीर्यं समाश्रित्य धार्तराष्ट्रो महामनाः।
अवामन्यत दुर्बुद्धिर्नित्यमस्मान् दुरात्मवान् ॥ ३० ॥
हत्वाहं कर्णमाजौ हि तोषयिष्यामि भ्रातरम्।

मूलम्

यस्य वीर्यं समाश्रित्य धार्तराष्ट्रो महामनाः।
अवामन्यत दुर्बुद्धिर्नित्यमस्मान् दुरात्मवान् ॥ ३० ॥
हत्वाहं कर्णमाजौ हि तोषयिष्यामि भ्रातरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘जिसके बल-पराक्रमका भरोसा करके महामनस्वी दुर्बुद्धि एवं दुरात्मा दुर्योधन सदा हमलोगोंका अपमान करता आया है, उस कर्णका आज युद्धस्थलमें वध करके मैं अपने भाई युधिष्ठिरको संतुष्ट करूँगा॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरान् नानाविधान् मुक्त्वा त्रासयिष्यामि शात्रवान्।
आकर्णमुक्तैरिषुभिर्यमराष्ट्रविवर्धनैः ॥ ३१ ॥
भूमिशोभां करिष्यामि पातितै रथकुञ्जरैः।

मूलम्

शरान् नानाविधान् मुक्त्वा त्रासयिष्यामि शात्रवान्।
आकर्णमुक्तैरिषुभिर्यमराष्ट्रविवर्धनैः ॥ ३१ ॥
भूमिशोभां करिष्यामि पातितै रथकुञ्जरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘नाना प्रकारके बाणोंका प्रहार करके मैं शत्रुसैनिकोंको भयभीत कर दूँगा। धनुषको कानतक खींचकर छोड़े गये यमराष्ट्रवर्धक बाणोंद्वारा धराशायी किये गये रथों और हाथियोंसे रणभूमिकी शोभा बढ़ाऊँगा॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राहं वै महासंख्ये सम्पन्नं युद्धदुर्मदम् ॥ ३२ ॥
अद्य कर्णमहं घोरं सूदयिष्यामि सायकैः।

मूलम्

तत्राहं वै महासंख्ये सम्पन्नं युद्धदुर्मदम् ॥ ३२ ॥
अद्य कर्णमहं घोरं सूदयिष्यामि सायकैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं महासमरमें शक्तिसम्पन्न रणदुर्मद एवं भयंकर कर्णको आज अपने बाणोंद्वारा मार डालूँगा॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कर्णे हते कृष्ण धार्तराष्ट्राः सराजकाः ॥ ३३ ॥
विद्रवन्तु दिशो भीताः सिंहत्रस्ता मृगा इव।

मूलम्

अद्य कर्णे हते कृष्ण धार्तराष्ट्राः सराजकाः ॥ ३३ ॥
विद्रवन्तु दिशो भीताः सिंहत्रस्ता मृगा इव।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज कर्णके मारे जानेपर राजासहित धृतराष्ट्रके सभी पुत्र सिंहसे डरे हुए मृगोंके समान भयभीत हो सम्पूर्ण दिशाओंमें भाग जायँ॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य दुर्योधनो राजा आत्मानं चानुशोचताम् ॥ ३४ ॥
हते कर्णे मया संख्ये सपुत्रे ससुहृज्जने।

मूलम्

अद्य दुर्योधनो राजा आत्मानं चानुशोचताम् ॥ ३४ ॥
हते कर्णे मया संख्ये सपुत्रे ससुहृज्जने।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज युद्धस्थलमें पुत्रों और सुहृदोंसहित कर्णके मेरे द्वारा मारे जानेपर राजा दुर्योधन अपने लिये निरन्तर शोक करे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कर्णं हतं दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रोऽत्यमर्षणः ॥ ३५ ॥
जानातु मां रणे कृष्ण प्रवरं सर्वधन्विनाम्।

मूलम्

अद्य कर्णं हतं दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रोऽत्यमर्षणः ॥ ३५ ॥
जानातु मां रणे कृष्ण प्रवरं सर्वधन्विनाम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! अमर्षशील दुर्योधन आज कर्णको रणभूमिमें मारा गया देख मुझे सम्पूर्ण धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ समझ ले॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सपुत्रपौत्रं सामात्यं सभृत्यं च निराशिषम् ॥ ३६ ॥
अद्य राज्ये करिष्यामि धृतराष्ट्रं जनेश्वरम्।

मूलम्

सपुत्रपौत्रं सामात्यं सभृत्यं च निराशिषम् ॥ ३६ ॥
अद्य राज्ये करिष्यामि धृतराष्ट्रं जनेश्वरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं आज ही पुत्र, पौत्र, मन्त्री और सेवकोंसहित राजा धृतराष्ट्रको राज्यकी ओरसे निराश कर दूँगा॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कर्णस्य चक्राङ्गाः क्रव्यादाश्च पृथग्विधाः ॥ ३७ ॥
शरैश्छिन्नानि गात्राणि विहरिष्यन्ति केशव।

मूलम्

अद्य कर्णस्य चक्राङ्गाः क्रव्यादाश्च पृथग्विधाः ॥ ३७ ॥
शरैश्छिन्नानि गात्राणि विहरिष्यन्ति केशव।

अनुवाद (हिन्दी)

‘केशव! आज चक्रवाक तथा भिन्न-भिन्न मांसभोजी पक्षी बाणोंसे कटे हुए कर्णके अंगोंको उठा ले जायँगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य राधासुतस्याहं संग्रामे मधुसूदन ॥ ३८ ॥
शिरश्छेत्स्यामि कर्णस्य मिषतां सर्वधन्विनाम्।

मूलम्

अद्य राधासुतस्याहं संग्रामे मधुसूदन ॥ ३८ ॥
शिरश्छेत्स्यामि कर्णस्य मिषतां सर्वधन्विनाम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘मधुसूदन! आज संग्राममें समस्त धनुर्धरोंके देखते-देखते मैं राधापुत्र कर्णका मस्तक काट डालूँगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य तीक्ष्णैर्विपाठैश्च क्षुरैश्च मधुसूदन ॥ ३९ ॥
रणे छेत्स्यामि गात्राणि राधेयस्य दुरात्मनः।

मूलम्

अद्य तीक्ष्णैर्विपाठैश्च क्षुरैश्च मधुसूदन ॥ ३९ ॥
रणे छेत्स्यामि गात्राणि राधेयस्य दुरात्मनः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज तीखे विपाठों और क्षुरोंसे रणभूमिमें दुरात्मा राधापुत्रके अंगोंको काट डालूँगा॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य राजा महत् कृच्छ्रं संत्यक्ष्यति युधिष्ठिरः ॥ ४० ॥
संतापं मानसं वीरश्चिरसम्भृतमात्मनः ।

मूलम्

अद्य राजा महत् कृच्छ्रं संत्यक्ष्यति युधिष्ठिरः ॥ ४० ॥
संतापं मानसं वीरश्चिरसम्भृतमात्मनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज वीर राजा युधिष्ठिर महान् कष्ट और अपने चिरसंचित मानसिक संतापसे छुटकारा पा जायँगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य केशव राधेयमहं हत्वा सबान्धवम् ॥ ४१ ॥
नन्दयिष्यामि राजानं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।

मूलम्

अद्य केशव राधेयमहं हत्वा सबान्धवम् ॥ ४१ ॥
नन्दयिष्यामि राजानं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘केशव! आज मैं बन्धु-बान्धवोंसहित राधापुत्रको मारकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिरको आनन्दित करूँगा॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्याहमनुगान् कृष्ण कर्णस्य कृपणान् युधि ॥ ४२ ॥
हन्ता ज्वलनसंकाशैः शरैः सर्पविषोपमैः।

मूलम्

अद्याहमनुगान् कृष्ण कर्णस्य कृपणान् युधि ॥ ४२ ॥
हन्ता ज्वलनसंकाशैः शरैः सर्पविषोपमैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज मैं युद्धस्थलमें कर्णके पीछे चलनेवाले दीन-हीन सैनिकोंको सर्पविष और अग्निके समान बाणोंद्वारा भस्म कर डालूँगा॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्याहं हेमकवचैराबद्धमणिकुण्डलैः ॥ ४३ ॥
संस्तरिष्यामि गोविन्द वसुधां वसुधाधिपैः।

मूलम्

अद्याहं हेमकवचैराबद्धमणिकुण्डलैः ॥ ४३ ॥
संस्तरिष्यामि गोविन्द वसुधां वसुधाधिपैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘गोविन्द! आज मैं सुवर्णमय कवच और मणिमय कुण्डल धारण करनेवाले भूपतियोंकी लाशोंसे रणभूमिको पाट दूँगा॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्याभिमन्योः शत्रूणां सर्वेषां मधुसूदन ॥ ४४ ॥
प्रमथिष्यामि गात्राणि शिरांसि च शितैः शरैः।

मूलम्

अद्याभिमन्योः शत्रूणां सर्वेषां मधुसूदन ॥ ४४ ॥
प्रमथिष्यामि गात्राणि शिरांसि च शितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘मधुसूदन! आज पैने बाणोंसे मैं अभिमन्युके समस्त शत्रुओंके शरीरों और मस्तकोंको मथ डालूँगा॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य निर्धार्तराष्ट्रां च भ्रात्रे दास्यामि मेदिनीम् ॥ ४५ ॥
निरर्जुनां वा पृथिवीं केशवानुचरिष्यसि।

मूलम्

अद्य निर्धार्तराष्ट्रां च भ्रात्रे दास्यामि मेदिनीम् ॥ ४५ ॥
निरर्जुनां वा पृथिवीं केशवानुचरिष्यसि।

अनुवाद (हिन्दी)

‘केशव! या तो आज इस पृथ्वीको धृतराष्ट्रपुत्रोंसे सूनी करके अपने भाईके अधिकारमें दे दूँगा या आप अर्जुनरहित पृथ्वीपर विचरेंगे॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्याहमनृणः कृष्ण भविष्यामि धनुर्भृताम् ॥ ४६ ॥
कोपस्य च कुरूणां च शराणां गाण्डिवस्य च।

मूलम्

अद्याहमनृणः कृष्ण भविष्यामि धनुर्भृताम् ॥ ४६ ॥
कोपस्य च कुरूणां च शराणां गाण्डिवस्य च।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! आज मैं सम्पूर्ण धनुर्धरोंके, क्रोधके, कौरवोंके, बाणोंके तथा गाण्डीव धनुषके भी ऋणसे मुक्त हो जाऊँगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य दुःखमहं मोक्ष्ये त्रयोदशसमार्जितम् ॥ ४७ ॥
हत्वा कर्णं रणे कृष्ण शम्बरं मघवानिव।

मूलम्

अद्य दुःखमहं मोक्ष्ये त्रयोदशसमार्जितम् ॥ ४७ ॥
हत्वा कर्णं रणे कृष्ण शम्बरं मघवानिव।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण! जैसे इन्द्रने शम्बरासुरका वध किया था, उसी प्रकार मैं रणभूमिमें कर्णको मारकर आज तेरह वर्षोंसे संचित किये हुए दुःखका परित्याग कर दूँगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कर्णे हते युद्धे सोमकानां महारथाः ॥ ४८ ॥
कृतं कार्यं च मन्यन्तां मित्रकार्येप्सवो युधि।

मूलम्

अद्य कर्णे हते युद्धे सोमकानां महारथाः ॥ ४८ ॥
कृतं कार्यं च मन्यन्तां मित्रकार्येप्सवो युधि।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज युद्धमें कर्णके मारे जानेपर मित्रके कार्यकी सिद्धि चाहनेवाले सोमकवंशी महारथी अपनेको कृतकार्य समझ लें॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न जाने च कथं प्रीतिः शैनेयस्याद्य माधव ॥ ४९ ॥
भविष्यति हते कर्णे मयि चापि जयाधिके।

मूलम्

न जाने च कथं प्रीतिः शैनेयस्याद्य माधव ॥ ४९ ॥
भविष्यति हते कर्णे मयि चापि जयाधिके।

अनुवाद (हिन्दी)

‘माधव! आज कर्णके मारे जाने और विजयके कारण मेरी प्रतिष्ठा बढ़ जानेपर न जाने शिनिपौत्र सात्यकिको कितनी प्रसन्नता होगी?॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहं हत्वा रणे कर्णं पुत्रं चास्य महारथम् ॥ ५० ॥
प्रीतिं दास्यामि भीमस्य यमयोः सात्यकस्य च।

मूलम्

अहं हत्वा रणे कर्णं पुत्रं चास्य महारथम् ॥ ५० ॥
प्रीतिं दास्यामि भीमस्य यमयोः सात्यकस्य च।

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं रणभूमिमें कर्ण और उसके महारथी पुत्रको मारकर भीमसेन, नकुल, सहदेव तथा सात्यकिको प्रसन्न करूँगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नशिखण्डिभ्यां पञ्चालानां च माधव ॥ ५१ ॥
अद्यानृण्यं गमिष्यामि हत्वा कर्णं महाहवे।

मूलम्

धृष्टद्युम्नशिखण्डिभ्यां पञ्चालानां च माधव ॥ ५१ ॥
अद्यानृण्यं गमिष्यामि हत्वा कर्णं महाहवे।

अनुवाद (हिन्दी)

‘माधव! आज महासमरमें कर्णका वध करके मैं धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा पांचालोंके ऋणसे छुटकारा पा जाऊँगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य पश्यन्तु संग्रामे धनंजयममर्षणम् ॥ ५२ ॥
युध्यन्तं कौरवान् संख्ये घातयन्तं च सूतजम्।

मूलम्

अद्य पश्यन्तु संग्रामे धनंजयममर्षणम् ॥ ५२ ॥
युध्यन्तं कौरवान् संख्ये घातयन्तं च सूतजम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘आज समस्त सैनिक देखें कि संग्रामभूमिमें अमर्षशील धनंजय किस प्रकार कौरवोंसे युद्ध करता और सूतपुत्र कर्णको मारता है॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भवत्सकाशे वक्ष्ये च पुनरेवात्मसंस्तवम् ॥ ५३ ॥
धनुर्वेदे मत्समो नास्ति लोके
पराक्रमे वा मम कोऽस्ति तुल्यः।
को वाप्यन्यो मत्समोऽस्ति क्षमावां-
स्तथा क्रोधे सदृशोऽन्यो न मेऽस्ति ॥ ५४ ॥

मूलम्

भवत्सकाशे वक्ष्ये च पुनरेवात्मसंस्तवम् ॥ ५३ ॥
धनुर्वेदे मत्समो नास्ति लोके
पराक्रमे वा मम कोऽस्ति तुल्यः।
को वाप्यन्यो मत्समोऽस्ति क्षमावां-
स्तथा क्रोधे सदृशोऽन्यो न मेऽस्ति ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं आपके निकट पुनः अपनी प्रशंसासे भरी हुई बात कहता हूँ, धनुर्वेदमें मेरी समानता करनेवाला इस संसारमें दूसरा कोई नहीं है। फिर पराक्रममें मेरे-जैसा कौन है? मेरे समान क्षमाशील भी दूसरा कौन है तथा क्रोधमें भी मेरे-जैसा दूसरा कोई नहीं है॥५३-५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहं धनुष्मान् ससुरासुरांश्च
सर्वाणि भूतानि च सङ्गतानि।
स्वबाहुवीर्याद् गमये पराभवं
मत्पौरुषं विद्धि परं परेभ्यः ॥ ५५ ॥

मूलम्

अहं धनुष्मान् ससुरासुरांश्च
सर्वाणि भूतानि च सङ्गतानि।
स्वबाहुवीर्याद् गमये पराभवं
मत्पौरुषं विद्धि परं परेभ्यः ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं धनुष लेकर अपने बाहुबलसे एक साथ आये हुए देवताओं, असुरों तथा सम्पूर्ण प्राणियोंको परास्त कर सकता हूँ। मेरे पुरुषार्थको उत्कृष्टसे भी उत्कृष्ट समझो॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरार्चिषा गाण्डिवेनाहमेकः
सर्वान्‌ कुरून् बाह्लिकांश्चाभिहत्य ।
हिमात्यये कक्षगतो यथाग्नि-
स्तथा दहेयं सगणान् प्रसह्य ॥ ५६ ॥

मूलम्

शरार्चिषा गाण्डिवेनाहमेकः
सर्वान्‌ कुरून् बाह्लिकांश्चाभिहत्य ।
हिमात्यये कक्षगतो यथाग्नि-
स्तथा दहेयं सगणान् प्रसह्य ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं अकेला ही बाणोंकी ज्वालासे युक्त गाण्डीव धनुषके द्वारा समस्त कौरवों और बाह्लिकोंको दल-बलसहित मारकर ग्रीष्म-ऋतुमें सूखे काठमें लगी हुई आगके समान सबको भस्म कर डालूँगा॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाणौ पृषत्का लिखिता ममैते
धनुश्च दिव्यं विततं सबाणम्।
पादौ च मे सरथौ सध्वजौ च
न माटृशं युद्धगतं जयन्ति ॥ ५७ ॥

मूलम्

पाणौ पृषत्का लिखिता ममैते
धनुश्च दिव्यं विततं सबाणम्।
पादौ च मे सरथौ सध्वजौ च
न माटृशं युद्धगतं जयन्ति ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मेरे एक हाथमें बाणके चिह्न हैं और दूसरेमें फैले हुए बाणसहित दिव्य धनुषकी रेखा है। इसी प्रकार मेरे पैरोंमें भी रथ और ध्वजाके चिह्न हैं। मेरे-जैसे लक्षणोंवाला योद्धा जब युद्धमें उपस्थित होता है, तब उसे शत्रु जीत नहीं सकते हैं’॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येवमुक्त्वार्जुन एकवीरः
क्षिप्रं रिपुघ्नः क्षतजोपमाक्षः ।
भीमं मुमुक्षुः समरे प्रयातः
कर्णस्य कायाच्च शिरो जिहीर्षुः ॥ ५८ ॥

मूलम्

इत्येवमुक्त्वार्जुन एकवीरः
क्षिप्रं रिपुघ्नः क्षतजोपमाक्षः ।
भीमं मुमुक्षुः समरे प्रयातः
कर्णस्य कायाच्च शिरो जिहीर्षुः ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान्‌से ऐसा कहकर अद्वितीय वीर शत्रुसूदन अर्जुन क्रोधसे लाल आँखें किये समरभूमिमें भीमसेनको संकटसे छुड़ाने और कर्णके मस्तकको धड़से अलग करनेके लिये शीघ्रतापूर्वक वहाँसे चल दिये॥५८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि अर्जुनवाक्ये चतुःसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें अर्जुनवाक्यविषयक चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७४॥