भागसूचना
चतुष्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कृपाचार्यके द्वारा शिखण्डीकी पराजय और सुकेतुका वध तथा धृष्टद्युम्नके द्वारा कृतवर्माका परास्त होना
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृतवर्मा कृपो द्रौणिः सूतपुत्रश्च मारिष।
उलूकः सौबलश्चैव राजा च सह सोदरैः ॥ १ ॥
सीदमानां चमूं दृष्ट्वा पाण्डुपुत्रभयार्दिताम्।
समुज्जह्रुः स्म वेगेन भिन्नां नावमिवार्णवे ॥ २ ॥
मूलम्
कृतवर्मा कृपो द्रौणिः सूतपुत्रश्च मारिष।
उलूकः सौबलश्चैव राजा च सह सोदरैः ॥ १ ॥
सीदमानां चमूं दृष्ट्वा पाण्डुपुत्रभयार्दिताम्।
समुज्जह्रुः स्म वेगेन भिन्नां नावमिवार्णवे ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— मान्यवर! नरेश! कृतवर्मा, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, सूतपुत्र कर्ण, उलूक, शकुनि तथा भाइयोंसहित राजा दुर्योधनने समुद्रमें टूटी हुई नावकी भाँति आपकी सेनाको पाण्डुपुत्र अर्जुनके भयसे पीड़ित और शिथिल होती देख बड़े वेगसे आकर उसका उद्धार किया॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो युद्धमतीवासीन्मुहूर्तमिव भारत ।
भीरूणां त्रासजननं शूराणां हर्षवर्धनम् ॥ ३ ॥
मूलम्
ततो युद्धमतीवासीन्मुहूर्तमिव भारत ।
भीरूणां त्रासजननं शूराणां हर्षवर्धनम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तदनन्तर दो घड़ीतक वहाँ घोर युद्ध होता रहा, जो कायरोंके लिये त्रासजनक और शूरवीरोंका हर्ष बढ़ानेवाला था॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृपेण शरवर्षाणि प्रतिमुक्तानि संयुगे।
सृञ्जयांश्छादयामासुः शलभानां व्रजा इव ॥ ४ ॥
मूलम्
कृपेण शरवर्षाणि प्रतिमुक्तानि संयुगे।
सृञ्जयांश्छादयामासुः शलभानां व्रजा इव ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कृपाचार्यने युद्धस्थलमें बाणोंकी बड़ी भारी वर्षा की। उन बाणोंने टिड्डीदलोंके समान सृंजयोंको आच्छादित कर दिया॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डी च ततः क्रुद्धो गौतमं त्वरितो ययौ।
ववर्ष शरवर्षाणि समन्ताद् द्विजपुङ्गवम् ॥ ५ ॥
मूलम्
शिखण्डी च ततः क्रुद्धो गौतमं त्वरितो ययौ।
ववर्ष शरवर्षाणि समन्ताद् द्विजपुङ्गवम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे शिखण्डीको बड़ा क्रोध हुआ। वह तुरंत ही विप्रवर गौतमगोत्रीय कृपाचार्यपर चढ़ आया और उनके ऊपर सब ओरसे बाणोंकी वर्षा करने लगा॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृपस्तु शरवर्षं तद् विनिहत्य महास्त्रवित्।
शिखण्डिनं रणे क्रुद्धो विव्याध दशभिः शरैः ॥ ६ ॥
मूलम्
कृपस्तु शरवर्षं तद् विनिहत्य महास्त्रवित्।
शिखण्डिनं रणे क्रुद्धो विव्याध दशभिः शरैः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महान् अस्त्रवेत्ता कृपाचार्यने शिखण्डीकी उस बाण-वर्षाका निवारण करके कुपित हो उसे दस बाणोंद्वारा घायल कर दिया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(महदासीत् तयोर्युद्धं मुहूर्तमिव दारुणम्।
क्रुद्धयोः समरे राजन् रामरावणयोरिव॥)
मूलम्
(महदासीत् तयोर्युद्धं मुहूर्तमिव दारुणम्।
क्रुद्धयोः समरे राजन् रामरावणयोरिव॥)
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! समरभूमिमें कुपित हुए राम और रावणके समान उन दोनों वीरोंमें दो घड़ीतक बड़ा भयंकर युद्ध चलता रहा।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शिखण्डी कुपितः शरैः सप्तभिराहवे।
कृपं विव्याध कुपितं कङ्कपत्रैरजिह्मगैः ॥ ७ ॥
मूलम्
ततः शिखण्डी कुपितः शरैः सप्तभिराहवे।
कृपं विव्याध कुपितं कङ्कपत्रैरजिह्मगैः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् शिखण्डीने क्रोधमें भरकर युद्धस्थलमें कंकपत्रयुक्त सात सीधे बाणोंद्वारा कुपित कृपाचार्यको क्षत-विक्षत कर दिया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कृपः शरैस्तीक्ष्णैः सोऽतिविद्धो महारथः।
व्यश्वसूतरथं चक्रे शिखण्डिनमथो द्विजः ॥ ८ ॥
मूलम्
ततः कृपः शरैस्तीक्ष्णैः सोऽतिविद्धो महारथः।
व्यश्वसूतरथं चक्रे शिखण्डिनमथो द्विजः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन तीखे बाणोंसे अत्यन्त घायल हुए महारथी विप्रवर कृपाचार्यने शिखण्डीको घोड़े, सारथि एवं रथसे रहित कर दिया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हताश्वात् तु ततो यानादवप्लुत्य महारथः।
खड्गं चर्म तथा गृह्य सत्वरं ब्राह्मणं ययौ ॥ ९ ॥
मूलम्
हताश्वात् तु ततो यानादवप्लुत्य महारथः।
खड्गं चर्म तथा गृह्य सत्वरं ब्राह्मणं ययौ ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महारथी शिखण्डी उस अश्वहीन रथसे कूदकर हाथोंमें ढाल और तलवार ले तुरंत ही ब्राह्मण कृपाचार्यकी ओर चला॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सहसा शरैः संनतपर्वभिः।
छादयामास समरे तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १० ॥
मूलम्
तमापतन्तं सहसा शरैः संनतपर्वभिः।
छादयामास समरे तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसे अपने ऊपर सहसा आक्रमण करते देख कृपाचार्यने झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा समरांगणमें शिखण्डीको ढक दिया, यह अद्भुत-सी बात हुई॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राद्भुतमपश्याम शिलानां प्लवनं यथा।
निश्चेष्टस्तद् रणे राजन् शिखण्डी समतिष्ठत ॥ ११ ॥
मूलम्
तत्राद्भुतमपश्याम शिलानां प्लवनं यथा।
निश्चेष्टस्तद् रणे राजन् शिखण्डी समतिष्ठत ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! रणक्षेत्रमें शिखण्डी निश्चेष्ट होकर खड़ा रहा, यह वहाँ पत्थरके तैरनेके समान हमलोगोंने अद्भुत बात देखी॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृपेणच्छादितं हृष्ट्वा नृपोत्तम शिखण्डिनम्।
प्रत्युद्ययौ कृपं तूर्णं धृष्टद्युम्नो महारथः ॥ १२ ॥
मूलम्
कृपेणच्छादितं हृष्ट्वा नृपोत्तम शिखण्डिनम्।
प्रत्युद्ययौ कृपं तूर्णं धृष्टद्युम्नो महारथः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नृपश्रेष्ठ! शिखण्डीको कृपाचार्यके बाणोंसे आच्छादित हुआ देख महारथी धृष्टद्युम्न तुरंत ही उनका सामना करनेके लिये आये॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नं ततो यान्तं शारद्वतरथं प्रति।
प्रतिजग्राह वेगेन कृतवर्मा महारथः ॥ १३ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नं ततो यान्तं शारद्वतरथं प्रति।
प्रतिजग्राह वेगेन कृतवर्मा महारथः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टद्युम्नको कृपाचार्यके रथकी ओर जाते देख महारथी कृतवर्माने वेगपूर्वक उन्हें रोक दिया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरमथायान्तं शारद्वतरथं प्रति ।
सपुत्रं सहसैन्यं च द्रोणपुत्रो न्यवारयत् ॥ १४ ॥
मूलम्
युधिष्ठिरमथायान्तं शारद्वतरथं प्रति ।
सपुत्रं सहसैन्यं च द्रोणपुत्रो न्यवारयत् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार पुत्र और सेनासहित युधिष्ठिरको कृपाचार्यके रथपर चढ़ाई करते देख द्रोणपुत्र अश्वत्थामाने रोका॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नकुलं सहदेवं च त्वरमाणौ महारथौ।
प्रतिजग्राह ते पुत्रः शरवर्षेण वारयन् ॥ १५ ॥
मूलम्
नकुलं सहदेवं च त्वरमाणौ महारथौ।
प्रतिजग्राह ते पुत्रः शरवर्षेण वारयन् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महारथी नकुल और सहदेव भी बड़ी उतावलीके साथ चढ़े आ रहे थे, उन्हें भी आपके पुत्रने बाण-वर्षासे रोक दिया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनं करूषांश्च केकयान् सह सृञ्जयैः।
कर्णो वैकर्तनो युद्धे वारयामास भारत ॥ १६ ॥
मूलम्
भीमसेनं करूषांश्च केकयान् सह सृञ्जयैः।
कर्णो वैकर्तनो युद्धे वारयामास भारत ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! भीमसेनको तथा करूष, केकय और सृंजय योद्धाओंको वैकर्तन कर्णने युद्धमें आगे बढ़नेसे रोका॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डिनस्ततो बाणान् कृपः शारद्वतो युधि।
प्राहिणोत् त्वरया युक्तो दिधक्षुरिव मारिष ॥ १७ ॥
मूलम्
शिखण्डिनस्ततो बाणान् कृपः शारद्वतो युधि।
प्राहिणोत् त्वरया युक्तो दिधक्षुरिव मारिष ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मान्यवर! शरद्वान्के पुत्र कृपाचार्य युद्धस्थलमें, मानो वे शिखण्डीको दग्ध कर डालना चाहते हों, बड़ी उतावलीके साथ उसके ऊपर बाण चलाये॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ताञ्छरान् प्रेषितांस्तेन समन्तात् स्वर्णभूषितान्।
चिच्छेद खड्गमाविध्य भ्रामयंश्च पुनः पुनः ॥ १८ ॥
मूलम्
ताञ्छरान् प्रेषितांस्तेन समन्तात् स्वर्णभूषितान्।
चिच्छेद खड्गमाविध्य भ्रामयंश्च पुनः पुनः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके चलाये हुए उन सुवर्णभूषित बाणोंको शिखण्डीने बारंबार तलवार घुमाकर सब ओरसे काट डाला॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शतचन्द्रं च तच्चर्म गौतमस्तस्य भारत।
व्यधमत् सायकैस्तूर्णं तत उच्चुक्रुशुर्जनाः ॥ १९ ॥
मूलम्
शतचन्द्रं च तच्चर्म गौतमस्तस्य भारत।
व्यधमत् सायकैस्तूर्णं तत उच्चुक्रुशुर्जनाः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! तब कृपाचार्यने अपने बाणोंसे शिखण्डीकी सौ चन्द्राकार चिह्नोंसे युक्त ढालको तुरंत ही छिन्न-भिन्न कर डाला। इससे सब लोग कोलाहल करने लगे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विचर्मा महाराज खड्गपाणिरुपाद्रवत्।
कृपस्य वशमापन्नो मृत्योरास्यमिवातुरः ॥ २० ॥
मूलम्
स विचर्मा महाराज खड्गपाणिरुपाद्रवत्।
कृपस्य वशमापन्नो मृत्योरास्यमिवातुरः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! जैसे रोगी मौतके मुँहमें पहुँच गया हो, उसी प्रकार कृपाचार्यके वशमें पड़ा हुआ शिखण्डी अपनी ढाल कट जानेपर केवल तलवार हाथमें लिये उनकी ओर दौड़ा॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शारद्वतशरैर्ग्रस्तं क्लिश्यमानं महाबलः ।
चित्रकेतुसुतो राजन् सुकेतुस्त्वरितो ययौ ॥ २१ ॥
मूलम्
शारद्वतशरैर्ग्रस्तं क्लिश्यमानं महाबलः ।
चित्रकेतुसुतो राजन् सुकेतुस्त्वरितो ययौ ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! शिखण्डीको कृपाचार्यके बाणोंका ग्रास बनकर पीड़ित होते देख चित्रकेतुका पुत्र महाबली सुकेतु उसकी सहायताके लिये तुरंत आगे बढ़ा॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विकिरन् ब्राह्मणं युद्धे बहुभिर्निशितैः शरैः।
अभ्यापतदमेयात्मा गौतमस्य रथं प्रति ॥ २२ ॥
मूलम्
विकिरन् ब्राह्मणं युद्धे बहुभिर्निशितैः शरैः।
अभ्यापतदमेयात्मा गौतमस्य रथं प्रति ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुकेतु अमेय आत्मबलसे सम्पन्न था। वह युद्धस्थलमें बहुसंख्यक पैने बाणोंद्वारा ब्राह्मण कृपाचार्यको आच्छादित करता हुआ उनके रथके समीप आ पहुँचा॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा च युक्तं तं युद्धे ब्राह्मणं चरितव्रतम्।
अपयातस्ततस्तूर्णं शिखण्डी राजसत्तम ॥ २३ ॥
मूलम्
दृष्ट्वा च युक्तं तं युद्धे ब्राह्मणं चरितव्रतम्।
अपयातस्ततस्तूर्णं शिखण्डी राजसत्तम ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नृपश्रेष्ठ! ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करनेवाले ब्राह्मण कृपाचार्यको सुकेतुके साथ युद्धमें तत्पर देख शिखण्डी तुरंत वहाँसे भाग निकला॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुकेतुस्तु ततो राजन् गौतमं नवभिः शरैः।
विद्ध्वा विव्याध सप्तत्या पुनश्चैनं त्रिभिः शरैः ॥ २४ ॥
मूलम्
सुकेतुस्तु ततो राजन् गौतमं नवभिः शरैः।
विद्ध्वा विव्याध सप्तत्या पुनश्चैनं त्रिभिः शरैः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर सुकेतुने कृपाचार्यको पहले नौ बाणोंसे बींधकर फिर तिहत्तर तीरोंसे उन्हें घायल कर दिया॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथास्य सशरं चापं पुनश्चिच्छेद मारिष।
सारथिं च शरेणास्य भृशं मर्मस्वताडयत् ॥ २५ ॥
मूलम्
अथास्य सशरं चापं पुनश्चिच्छेद मारिष।
सारथिं च शरेणास्य भृशं मर्मस्वताडयत् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! तत्पश्चात् बाणसहित उनके धनुषको काट दिया और एक बाणद्वारा उनके सारथिके मर्मस्थानोंमें गहरी चोट पहुँचायी॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गौतमस्तु ततः क्रुद्धो धनुर्गृह्य नवं दृढम्।
सुकेतुं त्रिंशता बाणैः सर्वमर्मस्वताडयत् ॥ २६ ॥
मूलम्
गौतमस्तु ततः क्रुद्धो धनुर्गृह्य नवं दृढम्।
सुकेतुं त्रिंशता बाणैः सर्वमर्मस्वताडयत् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे कृपाचार्य अत्यन्त कुपित हो उठे। उन्होंने दूसरा नूतन सुदृढ़ धनुष लेकर सुकेतुके सम्पूर्ण मर्मस्थानोंमें तीस बाणोंद्वारा प्रहार किया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विह्वलितसर्वाङ्गः प्रचचाल रथोत्तमे।
भूमिकम्पे यथा वृक्षश्चचाल कम्पितो भृशम् ॥ २७ ॥
मूलम्
स विह्वलितसर्वाङ्गः प्रचचाल रथोत्तमे।
भूमिकम्पे यथा वृक्षश्चचाल कम्पितो भृशम् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इससे सुकेतुका सारा शरीर विह्वल होकर उस उत्तम रथपर काँपने लगा; मानो भूकम्प आनेपर कोई वृक्ष जोर-जोरसे काँपने और झूमने लगा हो॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चलतस्तस्य कायात् तु शिरो ज्वलितकुण्डलम्।
सोष्णीषं सशिरस्त्राणं क्षुरप्रेण त्वपातयद् ॥ २८ ॥
मूलम्
चलतस्तस्य कायात् तु शिरो ज्वलितकुण्डलम्।
सोष्णीषं सशिरस्त्राणं क्षुरप्रेण त्वपातयद् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसी अवस्थामें कृपाचार्यने एक क्षुरप्रद्वारा सुकेतुके जगमगाते हुए कुण्डलोंसे युक्त पगड़ी और शिरस्त्राणसहित मस्तकको उसकी काँपती हुई कायासे काट गिराया॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छिरः प्रापतद् भूमौ श्येनाहृतमिवामिषम्।
ततोऽस्य कायो वसुधां पश्चात् प्रापतदच्युत ॥ २९ ॥
मूलम्
तच्छिरः प्रापतद् भूमौ श्येनाहृतमिवामिषम्।
ततोऽस्य कायो वसुधां पश्चात् प्रापतदच्युत ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वह सिर बाजके लाये हुए मांसके टुकड़ेके समान पृथ्वीपर गिर पड़ा। उसके बाद सुकेतुका धड़ भी धराशायी हो गया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् हते महाराज त्रस्तास्तस्य पुरोगमाः।
गौतमं समरे त्यक्त्वा दुद्रुवुस्ते दिशो दश ॥ ३० ॥
मूलम्
तस्मिन् हते महाराज त्रस्तास्तस्य पुरोगमाः।
गौतमं समरे त्यक्त्वा दुद्रुवुस्ते दिशो दश ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! सुकेतुके मारे जानेपर उसके अग्रगामी सैनिक भयभीत हो समरांगणमें कृपाचार्यको छोड़कर दसों दिशाओंकी ओर भाग निकले॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नं तु समरे संनिवार्य महारथः।
कृतवर्माब्रवीद्धृष्टस्तिष्ठ तिष्ठेति भारत ॥ ३१ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नं तु समरे संनिवार्य महारथः।
कृतवर्माब्रवीद्धृष्टस्तिष्ठ तिष्ठेति भारत ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! दूसरी ओर महारथी कृतवर्माने समरांगणमें धृष्टद्युम्नको रोककर बड़े हर्षके साथ कहा—‘खड़ा रह, खड़ा रह’॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदभूत् तुमुलं युद्धं वृष्णिपार्षतयो रणे।
आमिषार्थे यथा युद्धं श्येनयोः क्रुद्धयोर्नृप ॥ ३२ ॥
मूलम्
तदभूत् तुमुलं युद्धं वृष्णिपार्षतयो रणे।
आमिषार्थे यथा युद्धं श्येनयोः क्रुद्धयोर्नृप ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! जैसे मांसके टुकड़ेके लिये दो बाज क्रोधपूर्वक लड़ रहे हों, उसी प्रकार उस रणक्षेत्रमें कृतवर्मा और धृष्टद्युम्नका घोर युद्ध होने लगा॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नस्तु समरे हार्दिक्यं नवभिः शरैः।
आजघानोरसि क्रुद्धः पीडयन् हृदिकात्मजम् ॥ ३३ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नस्तु समरे हार्दिक्यं नवभिः शरैः।
आजघानोरसि क्रुद्धः पीडयन् हृदिकात्मजम् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टद्युम्नने कुपित होकर कृतवर्माको पीड़ा देते हुए उसकी छातीमें नौ बाण मारे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृतवर्मा तु समरे पार्षतेन दृढाहतः।
पार्षतं सरथं साश्वं छादयामास सायकैः ॥ ३४ ॥
मूलम्
कृतवर्मा तु समरे पार्षतेन दृढाहतः।
पार्षतं सरथं साश्वं छादयामास सायकैः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टद्युम्नका गहरा आघात पाकर समरभूमिमें कृतवर्माने बाणोंकी वर्षा करके घोड़ों और रथसहित धृष्टद्युम्नको आच्छादित कर दिया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सरथश्छादितो राजन् धृष्टद्युम्नो न दृश्यते।
मेघैरिव परिच्छन्नो भास्करो जलधारिभिः ॥ ३५ ॥
मूलम्
सरथश्छादितो राजन् धृष्टद्युम्नो न दृश्यते।
मेघैरिव परिच्छन्नो भास्करो जलधारिभिः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जैसे जलकी धारा गिरानेवाले मेघोंसे आच्छन्न हुए सूर्यका दर्शन नहीं होता, उसी प्रकार कृतवर्माके बाणोंसे रथसहित आच्छादित हुए धृष्टद्युम्न दिखायी नहीं देते थे॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विधूय तं बाणगणं शरैः कनकभूषणैः।
व्यरोचत रणे राजन् धृष्टद्युम्नः कृतव्रणः ॥ ३६ ॥
मूलम्
विधूय तं बाणगणं शरैः कनकभूषणैः।
व्यरोचत रणे राजन् धृष्टद्युम्नः कृतव्रणः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! यद्यपि धृष्टद्युम्न घायल हो गये थे तो भी अपने सुवर्णभूषित बाणोंद्वारा कृतवर्माके शरसमूहको छिन्न-भिन्न करके प्रकाशित होने लगे॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तु पार्षतः क्रुद्धः शस्त्रवृष्टिं सुदारुणाम्।
कृतवर्माणमासाद्य व्यसृजत् पृतनापतिः ॥ ३७ ॥
मूलम्
ततस्तु पार्षतः क्रुद्धः शस्त्रवृष्टिं सुदारुणाम्।
कृतवर्माणमासाद्य व्यसृजत् पृतनापतिः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर क्रोधमें भरे हुए सेनापति धृष्टद्युम्नने कृतवर्माके निकट जाकर उसके ऊपर अस्त्र-शस्त्रोंकी भयंकर वर्षा आरम्भ कर दी॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तामापतन्तीं सहसा शस्त्रवृष्टिं सुदारुणाम्।
शरैरनेकसाहस्रैर्हार्दिक्योऽवारयद् युधि ॥ ३८ ॥
मूलम्
तामापतन्तीं सहसा शस्त्रवृष्टिं सुदारुणाम्।
शरैरनेकसाहस्रैर्हार्दिक्योऽवारयद् युधि ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने ऊपर सहसा आती हुई उस भयंकर बाण-वर्षाको युद्धस्थलमें कृतवर्माने कई हजार बाण मारकर रोक दिया॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा तु वारितां युद्धे शस्त्रवृष्टिं दुरासदाम्।
कृतवर्माणमासाद्य वारयामास पार्षतः ॥ ३९ ॥
सारथिं चास्य तरसा प्राहिणोद् यमसादनम्।
भल्लेन शितधारेण स हतः प्रापतद् रथात् ॥ ४० ॥
मूलम्
दृष्ट्वा तु वारितां युद्धे शस्त्रवृष्टिं दुरासदाम्।
कृतवर्माणमासाद्य वारयामास पार्षतः ॥ ३९ ॥
सारथिं चास्य तरसा प्राहिणोद् यमसादनम्।
भल्लेन शितधारेण स हतः प्रापतद् रथात् ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रणभूमिमें उस दुर्जय शस्त्रवर्षाको रोकी गयी देख धृष्टद्युम्नने कृतवर्मापर आक्रमण करके उसे आगे बढ़नेसे रोक दिया और उसके सारथिको तीखी धारवाले भल्लसे वेगपूर्वक मारकर यमलोक भेज दिया। मारा गया सारथि रथसे नीचे गिर पड़ा॥३९-४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(कृतवर्मा तु संक्रुद्धो दिधक्षुरिव पावकः।
धृष्टद्युम्नमुखान् सर्वान् पाण्डवान् पर्यवारयत्॥
मूलम्
(कृतवर्मा तु संक्रुद्धो दिधक्षुरिव पावकः।
धृष्टद्युम्नमुखान् सर्वान् पाण्डवान् पर्यवारयत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
कृतवर्मा अत्यन्त क्रोधमें भरकर जलानेको उद्यत हुई आगके समान धृष्टद्युम्न आदि समस्त पाण्डवोंको रोकने लगा।
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो राजन् महेष्वासं कृतवर्माणमाशु वै।
गदां गुह्य पुनर्वेगात् कृतवर्माणमाहनत्॥
मूलम्
ततो राजन् महेष्वासं कृतवर्माणमाशु वै।
गदां गुह्य पुनर्वेगात् कृतवर्माणमाहनत्॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तब धृष्टद्युम्नने गदा हाथमें लेकर पुनः बड़े वेगसे महाधनुर्धर कृतवर्मापर शीघ्र ही आघात किया।
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽतिविद्धो बलवता न्यपतन्मूर्च्छया हतः।
श्रुतर्वा रथमारोप्य अपोवाह रणाजिरात्॥)
मूलम्
सोऽतिविद्धो बलवता न्यपतन्मूर्च्छया हतः।
श्रुतर्वा रथमारोप्य अपोवाह रणाजिरात्॥)
अनुवाद (हिन्दी)
उस बलवान् वीरके गहरे आघातसे अत्यन्त पीड़ित एवं मूर्छित हो कृतवर्मा गिर पड़ा। तब श्रुतर्वा उसे अपने रथपर बिठाकर रणभूमिसे दूर हटा ले गया।
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नस्तु बलवाञ्जित्वा शत्रुं महाबलम्।
कौरवान् समरे तूर्णं वारयामास सायकैः ॥ ४१ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नस्तु बलवाञ्जित्वा शत्रुं महाबलम्।
कौरवान् समरे तूर्णं वारयामास सायकैः ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार बलवान् धृष्टद्युम्नने उस महाबली शत्रुको जीतकर बाणोंकी वर्षा करके समरांगणमें समस्त कौरवोंको तुरंत आगे बढ़नेसे रोक दिया॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्ते तावका योधा धृष्टद्युम्नमुपाद्रवन्।
सिंहनादरवं कृत्वा ततो युद्धमवर्तत ॥ ४२ ॥
मूलम्
ततस्ते तावका योधा धृष्टद्युम्नमुपाद्रवन्।
सिंहनादरवं कृत्वा ततो युद्धमवर्तत ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब आपके समस्त योद्धा सिंहनाद करके धृष्टद्युम्नपर टूट पड़े। फिर वहाँ घोर युद्ध होने लगा॥४२॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि संकुलयुद्धे चतुष्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें संकुलयुद्धविषयक चौवनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५४॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ४ श्लोक मिलाकर कुल ४६ श्लोक हैं)