भागसूचना
त्रिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
सात्यकि और कर्णका युद्ध तथा अर्जुनके द्वारा कौरव-सेनाका संहार और पाण्डवोंकी विजय
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कर्णं पुरस्कृत्य त्वदीया युद्धदुर्मदाः।
पुनरावृत्य संग्रामं चक्रुर्देवासुरोपमम् ॥ १ ॥
मूलम्
ततः कर्णं पुरस्कृत्य त्वदीया युद्धदुर्मदाः।
पुनरावृत्य संग्रामं चक्रुर्देवासुरोपमम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! तदनन्तर आपके रणदुर्मद योद्धा कर्णको आगे करके पुनः लौटकर देवताओं और असुरोंके समान संग्राम करने लगे॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्विरदनररथाश्वशङ्खशब्दैः
परिहृषिता विविधैश्च शस्त्रपातैः ।
द्विरदरथपदातिसादिसंघाः
परिकुपिताभिमुखाः प्रजघ्निरे ते ॥ २ ॥
मूलम्
द्विरदनररथाश्वशङ्खशब्दैः
परिहृषिता विविधैश्च शस्त्रपातैः ।
द्विरदरथपदातिसादिसंघाः
परिकुपिताभिमुखाः प्रजघ्निरे ते ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथी, मनुष्य, रथ, घोड़ों और शंखके शब्दोंसे अत्यन्त हर्ष और उत्साहमें भरे हाथीसवार, रथी, पैदल और घुड़सवारोंके समुदाय क्रोधपूर्वक सामना करते हुए नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार करके एक-दूसरेको मारने लगे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शितपरश्वधसासिपट्टिशै-
रिषुभिरनेकविधैश्च सूदिताः ।
द्विरदरथहया महाहवे
वरपुरुषैः पुरुषाश्च वाहनैः ॥ ३ ॥
मूलम्
शितपरश्वधसासिपट्टिशै-
रिषुभिरनेकविधैश्च सूदिताः ।
द्विरदरथहया महाहवे
वरपुरुषैः पुरुषाश्च वाहनैः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महायुद्धमें श्रेष्ठ वीर पुरुषोंने वाहनों तथा तीखे फरसों, तलवारों, पट्टिशों और अनेक प्रकारके बाणोंद्वारा सवारोंसहित हाथियों, रथों, घोड़ों एवं पैदल मनुष्योंका संहार कर डाला॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कमलदिनकरेन्दुसंनिभैः
सितदशनैः सुमुखाक्षिनासिकः ।
रुचिरमुकुटकुण्डलैर्मही
पुरुषशिरोभिरुपस्तृता बभौ ॥ ४ ॥
मूलम्
कमलदिनकरेन्दुसंनिभैः
सितदशनैः सुमुखाक्षिनासिकः ।
रुचिरमुकुटकुण्डलैर्मही
पुरुषशिरोभिरुपस्तृता बभौ ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय नरमुण्डोंसे ढकी हुई रणभूमिकी अद्भुत शोभा हो रही थी। वीरोंके वे कटे हुए मस्तक कमल, सूर्य और चन्द्रमाके समान कान्तिमान् थे। उनके सफेद दाँत चमक रहे थे। उनके मुख, नेत्र और नासिकाएँ भी बड़ी सुन्दर थीं और वे मनोहर मुकुट तथा कुण्डलोंसे मण्डित थे॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिघमुसलशक्तितोमरै-
र्नखरभुशुण्डिगदाशतैर्हताः ।
द्विरदनरहयाः सहस्रशो
रुधिरनदीप्रवहास्तदाभवन् ॥ ५ ॥
मूलम्
परिघमुसलशक्तितोमरै-
र्नखरभुशुण्डिगदाशतैर्हताः ।
द्विरदनरहयाः सहस्रशो
रुधिरनदीप्रवहास्तदाभवन् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय परिघ, मूसल, शक्ति, तोमर, नखर, भुशुण्डी और गदाओंकी सौ-सौ चोटें खाकर हजारों हाथी, मनुष्य और घोड़े खूनकी नदी बहाने लगे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रहतरथनराश्वकुञ्जरं
प्रतिभयदर्शनमुल्बणव्रणम् ।
तदहितहतमाबभौ बलं
पितृपतिराष्ट्रमिव प्रजाक्षये ॥ ६ ॥
मूलम्
प्रहतरथनराश्वकुञ्जरं
प्रतिभयदर्शनमुल्बणव्रणम् ।
तदहितहतमाबभौ बलं
पितृपतिराष्ट्रमिव प्रजाक्षये ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नष्ट हुए रथ, मनुष्य, घोड़े और हाथियोंसे भरी एवं शत्रुओंकी मारी हुई वह सेना गहरे आघातोंसे युक्त हो प्रलयकालमें यमराजके राज्यकी भाँति बड़ी भयंकर दिखायी देती थी॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ तव नरदेव सैनिका-
स्तव च सुताः सुरसूनुसंनिभाः।
अमितबलपुरःसरा रणे
कुरुवृषभाः शिनिपौत्रमभ्ययुः ॥ ७ ॥
मूलम्
अथ तव नरदेव सैनिका-
स्तव च सुताः सुरसूनुसंनिभाः।
अमितबलपुरःसरा रणे
कुरुवृषभाः शिनिपौत्रमभ्ययुः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरदेव! तदनन्तर आपके सैनिक तथा देवकुमारोंके समान तेजस्वी कुरुकुलभूषण आपके पुत्र असंख्य सेना साथ लेकर रणभूमिमें शिनिपौत्र सात्यकिपर चढ़ आये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदतिरुधिरभीममाबभौ
पुरुषवराश्वरथद्विपाकुलम् ।
लवणजलसमुद्धतस्वनं
बलमसुरामरसैन्यसप्रभम् ॥ ८ ॥
मूलम्
तदतिरुधिरभीममाबभौ
पुरुषवराश्वरथद्विपाकुलम् ।
लवणजलसमुद्धतस्वनं
बलमसुरामरसैन्यसप्रभम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पैदल मनुष्यों, श्रेष्ठ घोड़ों, रथों और हाथियोंसे भरी और खारे पानीके समुद्रके समान भयंकर गर्जना करनेवाली वह सेना अत्यन्त रक्तरंजित होकर देवताओं और असुरोंकी सेनाके समान भयानक प्रतीत होती थी॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुरपतिसमविक्रमस्तत-
स्त्रिदशवरावरजोपमं युधि ।
दिनकरकिरणप्रभैः पृषत्कै
रवितनयोऽभ्यहनच्छिनिप्रवीरम् ॥ ९ ॥
मूलम्
सुरपतिसमविक्रमस्तत-
स्त्रिदशवरावरजोपमं युधि ।
दिनकरकिरणप्रभैः पृषत्कै
रवितनयोऽभ्यहनच्छिनिप्रवीरम् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय देवराज इन्द्रके समान पराक्रमी सूर्यपुत्र कर्णने युद्धस्थलमें इन्द्रके छोटे भाई उपेन्द्रके समान शक्तिशाली शिनिवंशके प्रमुख वीर सात्यकिको सूर्यकी किरणोंके समान तेजस्वी बाणोंद्वारा घायल कर दिया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमपि सरथवाजिसारथिं
शिनिवृषभो विविधैः शरैस्त्वरन् ।
भुजगविषसमप्रभै रणे
पुरुषवरं समवास्तृणोत् तदा ॥ १० ॥
मूलम्
तमपि सरथवाजिसारथिं
शिनिवृषभो विविधैः शरैस्त्वरन् ।
भुजगविषसमप्रभै रणे
पुरुषवरं समवास्तृणोत् तदा ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब शिनिवंशशिरोमणि सात्यकिने बड़ी उतावलीके साथ विषधर सर्पोंके समान विषैले नाना प्रकारके बाणोंद्वारा रथ, घोड़े और सारथिसहित नरश्रेष्ठ कर्णको भी आच्छादित कर दिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिनिवृषभशरैर्निपीडितं
तव सुहृदो वसुषेणमभ्ययुः ।
त्वरितमतिरथा रथर्षभं
द्विरदरथाश्वपदातिभिः सह ॥ ११ ॥
मूलम्
शिनिवृषभशरैर्निपीडितं
तव सुहृदो वसुषेणमभ्ययुः ।
त्वरितमतिरथा रथर्षभं
द्विरदरथाश्वपदातिभिः सह ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय आपके हितैषी सुहृद् अतिरथी वीर वहाँ शिनिवंशशिरोमणि सात्यकिके शरोंसे अत्यन्त पीड़ित हुए महारथी कर्णके पास हाथी, घोड़े, रथ और पैदलोंकी चतुरंगिणी सेना साथ लेकर तुरंत आ पहुँचे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदुदधिनिभमाद्रवद् बलं
त्वरिततरैः समभिद्रुतं परैः ।
द्रुपदसुतमुखैस्तदाभवत्
पुरुषरथाश्वगजक्षयो महान् ॥ १२ ॥
मूलम्
तदुदधिनिभमाद्रवद् बलं
त्वरिततरैः समभिद्रुतं परैः ।
द्रुपदसुतमुखैस्तदाभवत्
पुरुषरथाश्वगजक्षयो महान् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् धृष्टद्युम्न आदि शीघ्रकारी शत्रुओंने आपकी समुद्र-सदृश विशाल वाहिनीपर आक्रमण किया और आपकी सेना भी शत्रुओंकी ओर दौड़ी। फिर तो वहाँ मनुष्यों, रथों, घोड़ों और हाथियोंका महान् संहार होने लगा॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ पुरुषवरौ कृताह्निकौ
भवमभिपूज्य यथाविधि प्रभुम् ।
अरिवधकृतनिश्चयौ द्रुतं
तव बलमर्जुनकेशवौ सृतौ ॥ १३ ॥
मूलम्
अथ पुरुषवरौ कृताह्निकौ
भवमभिपूज्य यथाविधि प्रभुम् ।
अरिवधकृतनिश्चयौ द्रुतं
तव बलमर्जुनकेशवौ सृतौ ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर अपराह्णकालके कृत्य समाप्त करके विधिपूर्वक भगवान् शंकरकी पूजा करनेके पश्चात् नरश्रेष्ठ अर्जुन और श्रीकृष्ण शत्रुओंके वधका निश्चय करके तुरंत आपकी सेनापर चढ़ आये॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जलदनिनदनिःस्वनं रथं
पवनविधूतपताककेतनम् ।
सितहयमुपयान्तमन्तिकं
हृतमनसो ददृशुस्तदारयः ॥ १४ ॥
मूलम्
जलदनिनदनिःस्वनं रथं
पवनविधूतपताककेतनम् ।
सितहयमुपयान्तमन्तिकं
हृतमनसो ददृशुस्तदारयः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके रथसे मेघकी गर्जनाके समान गम्भीर ध्वनि हो रही थी, पवनकी प्रेरणा पाकर उसकी ऊँची पताका फहरा रही थी और उसमें श्वेत घोड़े जुते हुए थे। उस समय शत्रुओंने उत्साहशून्य हृदयसे उस रथको समीप आते देखा॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ विस्फार्य गाण्डीवं रथे नृत्यन्निवार्जुनः।
शरसम्बाधमकरोत् खं दिशः प्रदिशस्तथा ॥ १५ ॥
मूलम्
अथ विस्फार्य गाण्डीवं रथे नृत्यन्निवार्जुनः।
शरसम्बाधमकरोत् खं दिशः प्रदिशस्तथा ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद रथपर नृत्य करते हुए-से अर्जुनने गाण्डीव धनुषको फैलाकर आकाश, दिशा और विदिशाओंको बाणोंसे भर दिया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथान् विमानप्रतिमान् मज्जयन् सायुधध्वजान्।
स सारथींस्तदा बाणैरभ्राणीवानिलोऽवधीत् ॥ १६ ॥
मूलम्
रथान् विमानप्रतिमान् मज्जयन् सायुधध्वजान्।
स सारथींस्तदा बाणैरभ्राणीवानिलोऽवधीत् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे वायु मेघोंकी घटाको छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उस समय अर्जुनने अपने बाणोंद्वारा विमान-जैसे रथोंको आयुध, ध्वज और सारथियोंसहित नष्ट कर दिया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजान् गजप्रयन्तॄंश्च वैजयन्त्यायुधध्वजान् ।
सादिनोऽश्वांश्च पत्तींश्च शरैर्निन्ये यमक्षयम् ॥ १७ ॥
मूलम्
गजान् गजप्रयन्तॄंश्च वैजयन्त्यायुधध्वजान् ।
सादिनोऽश्वांश्च पत्तींश्च शरैर्निन्ये यमक्षयम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने अपने तीखे बाणोंसे पताका, ध्वज और आयुधोंसहित गजों एवं गजारोहियोंको, घोड़ों और घुड़सवारोंको तथा पैदल मनुष्योंको भी यमलोक भेज दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमन्तकमिव क्रुद्धमनिवार्यं महारथम् ।
दुर्योधनोऽभ्ययादेको निघ्नन् बाणैरजिह्मगैः ॥ १८ ॥
मूलम्
तमन्तकमिव क्रुद्धमनिवार्यं महारथम् ।
दुर्योधनोऽभ्ययादेको निघ्नन् बाणैरजिह्मगैः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार क्रोधमें भरे हुए यमराजके समान अबाध गतिवाले महारथी अर्जुनपर सीधे जानेवाले बाणोंसे प्रहार करता हुआ अकेला दुर्योधन उनका सामना करनेके लिये गया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यार्जुनो धनुः सूतमश्वान् केतुं च सायकैः।
हत्वा सप्तभिरेकेन छत्रं चिच्छेद पत्रिणा ॥ १९ ॥
मूलम्
तस्यार्जुनो धनुः सूतमश्वान् केतुं च सायकैः।
हत्वा सप्तभिरेकेन छत्रं चिच्छेद पत्रिणा ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनने सात बाणोंसे दुर्योधनके धनुष, सारथि, घोड़ों और ध्वजको नष्ट करके एक बाणसे उसका छत्र भी काट डाला॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नवमं च समाधाय व्यसृजत् प्राणघातिनम्।
दुर्योधनायेषुवरं तं द्रौणिः सप्तधाच्छिनत् ॥ २० ॥
मूलम्
नवमं च समाधाय व्यसृजत् प्राणघातिनम्।
दुर्योधनायेषुवरं तं द्रौणिः सप्तधाच्छिनत् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर नवें प्राणघातक बाणको धनुषपर रखकर उन्होंने दुर्योधनकी ओर चला दिया; परंतु अश्वत्थामाने उस उत्तम बाणके सात टुकड़े कर डाले॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो द्रौणेर्धनुश्छित्त्वा हत्वा चाश्वरथान् शरैः।
कृपस्यापि तदत्युग्रं धनुश्चिच्छेद पाण्डवः ॥ २१ ॥
मूलम्
ततो द्रौणेर्धनुश्छित्त्वा हत्वा चाश्वरथान् शरैः।
कृपस्यापि तदत्युग्रं धनुश्चिच्छेद पाण्डवः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब पाण्डुकुमार अर्जुनने अश्वत्थामाका धनुष काटकर उसके रथ और घोड़ोंको नष्ट करके अपने बाणोंद्वारा कृपाचार्यके अत्यन्त भयंकर धनुषको भी खण्डित कर दिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हार्दिक्यस्य धनुश्छित्त्वा
ध्वजं चाश्वांस्तदावधीत् ।
दुःशासनस्येष्वसनं
छित्त्वा राधेयमभ्ययात् ॥ २२ ॥
मूलम्
हार्दिक्यस्य धनुश्छित्त्वा
ध्वजं चाश्वांस्तदावधीत् ।
दुःशासनस्येष्वसनं
छित्त्वा राधेयमभ्ययात् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद उन्होंने कृतवर्माका धनुष काटकर उसके ध्वज और घोड़ोंको भी तत्काल नष्ट कर दिया। फिर दुःशासनके धनुषके टुकड़े-टुकड़े करके राधापुत्र कर्णपर आक्रमण किया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ सात्यकिमुत्सृज्य
त्वरन् कर्णोऽर्जुनं त्रिभिः ।
विद्ध्वा विव्याध विंशत्या
कृष्णं पार्थं पुनः पुनः ॥ २३ ॥
मूलम्
अथ सात्यकिमुत्सृज्य
त्वरन् कर्णोऽर्जुनं त्रिभिः ।
विद्ध्वा विव्याध विंशत्या
कृष्णं पार्थं पुनः पुनः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर कर्णने सात्यकिको छोड़कर अर्जुनको तीन बाणोंसे बींध डाला। फिर बीस बाण मारकर श्रीकृष्णको भी घायल कर दिया। इस प्रकार वह दोनोंको बारंबार चोट पहुँचाने लगा॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न ग्लानिरासीत् कर्णस्य
क्षिपतः सायकान् बहून् ।
रणे विनिघ्नतः शत्रून्
क्रुद्धस्येव शतक्रतोः ॥ २४ ॥
मूलम्
न ग्लानिरासीत् कर्णस्य
क्षिपतः सायकान् बहून् ।
रणे विनिघ्नतः शत्रून्
क्रुद्धस्येव शतक्रतोः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय कर्ण क्रोधमें भरे हुए इन्द्रके समान रणभूमिमें बहुत-से बाणोंकी वर्षा करके शत्रुओंका संहार कर रहा था; परंतु उसे इस कार्यमें तनिक भी क्लेश अथवा थकावटका अनुभव नहीं होता था॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ सात्यकिरागत्य कर्णं विद्ध्वा शितैः शरैः।
नवत्या नवभिश्चोग्रैः शतेन पुनरार्पयत् ॥ २५ ॥
मूलम्
अथ सात्यकिरागत्य कर्णं विद्ध्वा शितैः शरैः।
नवत्या नवभिश्चोग्रैः शतेन पुनरार्पयत् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर सात्यकिने भी लौटकर कर्णको तीखे बाणोंसे घायल करके पुनः उसे एक सौ निन्यानबे भयंकर बाण मारे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रवीराः पार्थानां सर्वे कर्णमपीडयन्।
युधामन्युः शिखण्डी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः ॥ २६ ॥
उत्तमौजा युयुत्सुश्च यमौ पार्षत एव च।
चेदिकारूषमत्स्यानां केकयानां च यद् बलम् ॥ २७ ॥
चेकितानश्च बलवान् धर्मराजश्च सुव्रतः।
एते रथाश्वद्विरदैः पत्तिभिश्चोग्रविक्रमैः ॥ २८ ॥
परिवार्य रणे कर्णं नानाशस्त्रैरवाकिरन्।
भाषन्तो वाग्भिरुग्राभिः सर्वे कर्णवधे धृताः ॥ २९ ॥
मूलम्
ततः प्रवीराः पार्थानां सर्वे कर्णमपीडयन्।
युधामन्युः शिखण्डी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः ॥ २६ ॥
उत्तमौजा युयुत्सुश्च यमौ पार्षत एव च।
चेदिकारूषमत्स्यानां केकयानां च यद् बलम् ॥ २७ ॥
चेकितानश्च बलवान् धर्मराजश्च सुव्रतः।
एते रथाश्वद्विरदैः पत्तिभिश्चोग्रविक्रमैः ॥ २८ ॥
परिवार्य रणे कर्णं नानाशस्त्रैरवाकिरन्।
भाषन्तो वाग्भिरुग्राभिः सर्वे कर्णवधे धृताः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद कुन्तीपुत्रोंकी सेनाके सभी प्रमुख वीर कर्णको पीड़ा देने लगे। युधामन्यु, शिखण्डी, द्रौपदीके पाँचों पुत्र, प्रभद्रकगण, उत्तमौजा, युयुत्सु, नकुल-सहदेव, धृष्टद्युम्न, चेदि, कारूष, मत्स्य और केकय देशोंकी सेनाएँ, बलवान् चेकितान तथा उत्तम व्रतका पालन करनेवाले धर्मराज युधिष्ठिर—ये भयंकर पराक्रम प्रकट करनेवाले रथी, घुड़सवार, हाथीसवार और पैदल सैनिकोंद्वारा रणभूमिमें कर्णको चारों ओरसे घेरकर उसके ऊपर नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करने लगे। सभी भयंकर वचन बोलते हुए वहाँ कर्णके वधका निश्चय कर चुके थे॥२६—२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तां शस्त्रवृष्टिं बहुधा कर्णश्छित्त्वा शितैः शरैः।
अपोवाहास्त्रवीर्येण द्रुमं भङ्क्त्वेव मारुतः ॥ ३० ॥
मूलम्
तां शस्त्रवृष्टिं बहुधा कर्णश्छित्त्वा शितैः शरैः।
अपोवाहास्त्रवीर्येण द्रुमं भङ्क्त्वेव मारुतः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे प्रचण्ड वायु वृक्षको तोड़कर गिरा देती है, उसी प्रकार कर्ण अपने तीखे बाणोंसे शत्रुओंकी उस शस्त्रवर्षाको बहुधा छिन्न-भिन्न करके अपने अस्त्रबलसे दूर हटा दिया॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथिनः समहामात्रान् गजानश्वान् ससादिनः।
पत्तिव्रातांश्च संक्रुद्धो निघ्नन् कर्णो व्यदृश्यत ॥ ३१ ॥
मूलम्
रथिनः समहामात्रान् गजानश्वान् ससादिनः।
पत्तिव्रातांश्च संक्रुद्धो निघ्नन् कर्णो व्यदृश्यत ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरा हुआ कर्ण रथियों, महावतोंसहित हाथियों, सवारोंसहित घोड़ों तथा पैदलसमूहोंका वध करता देखा जा रहा था॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् वध्यमानं पाण्डूनां बलं कर्णास्त्रतेजसा।
विशस्त्रपत्रदेहासु प्राय आसीत् पराङ्मुखम् ॥ ३२ ॥
मूलम्
तद् वध्यमानं पाण्डूनां बलं कर्णास्त्रतेजसा।
विशस्त्रपत्रदेहासु प्राय आसीत् पराङ्मुखम् ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कर्णके अस्त्रोंके तेजसे मारी जाती हुई पाण्डवोंकी सेना शस्त्र, वाहन, शरीर और प्राणोंसे रहित हो प्रायः रणभूमिसे विमुख होकर भाग चली॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ कर्णास्त्रमस्त्रेण प्रतिहत्यार्जुनः स्मयन्।
दिशं खं चैव भूमिं च प्रावृणोच्छरवृष्टिभिः ॥ ३३ ॥
मूलम्
अथ कर्णास्त्रमस्त्रेण प्रतिहत्यार्जुनः स्मयन्।
दिशं खं चैव भूमिं च प्रावृणोच्छरवृष्टिभिः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने मुसकराते हुए अपने अस्त्रसे कर्णके अस्त्रको नष्ट करके बाणोंकी वर्षाद्वारा आकाश, दिशा और पृथ्वीको आच्छादित कर दिया॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुसलानीव सम्पेतुः परिघा इव चेषवः।
शतघ्न्य इव चाप्यन्ये वज्राण्युग्राणि चापरे ॥ ३४ ॥
मूलम्
मुसलानीव सम्पेतुः परिघा इव चेषवः।
शतघ्न्य इव चाप्यन्ये वज्राण्युग्राणि चापरे ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके कुछ बाण मूसलोंके समान गिरते थे, कुछ परिघोंके समान, कुछ शतघ्नियोंके तुल्य तथा कुछ दूसरे बाण भयंकर वज्रोंके समान शत्रुओंपर पड़ते थे॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तैर्वध्यमानं तत् सैन्यं सपत्त्यश्वरथद्विपम्।
निमीलिताक्षमत्यर्थं बभ्राम च ननाद च ॥ ३५ ॥
मूलम्
तैर्वध्यमानं तत् सैन्यं सपत्त्यश्वरथद्विपम्।
निमीलिताक्षमत्यर्थं बभ्राम च ननाद च ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन बाणोंसे हताहत होती हुई पैदल, घोड़े, रथ और हाथियोंसे युता कौरव-सेना आँख मूँदकर जोर-जोरसे चिल्लाने और चक्कर काटने लगी॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निष्कैवल्यं तदा युद्धं प्रापुरश्वनरद्विपाः।
हन्यमानाः शरैरार्तास्तदा भीताः प्रदुद्रुवुः ॥ ३६ ॥
मूलम्
निष्कैवल्यं तदा युद्धं प्रापुरश्वनरद्विपाः।
हन्यमानाः शरैरार्तास्तदा भीताः प्रदुद्रुवुः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय घोड़े, हाथी और मनुष्योंको ऐसा युद्ध प्राप्त हुआ, जिसमें मृत्यु निश्चित है। उन सब लोगोंपर जब बाणोंकी मार पड़ने लगी, तब वे सब-के-सब आर्त और भयभीत होकर भाग चले॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वदीयानां तदा युद्धे संसक्तानां जयैषिणाम्।
गिरिमस्तं समासाद्य प्रत्यपद्यत भानुमान् ॥ ३७ ॥
मूलम्
त्वदीयानां तदा युद्धे संसक्तानां जयैषिणाम्।
गिरिमस्तं समासाद्य प्रत्यपद्यत भानुमान् ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार जब आपके विजयाभिलाषी सैनिक युद्धमें संलग्न हो रहे थे, उसी समय सूर्यदेव अस्ताचल पहुँचकर डूब गये॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमसा च महाराज रजसा च विशेषतः।
न किंचित् प्रत्यपश्याम शुभं वा यदि वाशुभम् ॥ ३८ ॥
मूलम्
तमसा च महाराज रजसा च विशेषतः।
न किंचित् प्रत्यपश्याम शुभं वा यदि वाशुभम् ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस समय अन्धकार और विशेषतः धूलसे सब कुछ आच्छादित होनेके कारण हमलोग किसी भी शुभ या अशुभ वस्तुको देख नहीं पाते थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते त्रसन्तो महेष्वासा रात्रियुद्धस्य भारत।
अपयानं ततश्चक्रुः सहिताः सर्वयोधिभिः ॥ ३९ ॥
मूलम्
ते त्रसन्तो महेष्वासा रात्रियुद्धस्य भारत।
अपयानं ततश्चक्रुः सहिताः सर्वयोधिभिः ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! वे महाधनुर्धर योद्धा रात्रियुद्धसे डरते थे। इसलिये समस्त सैनिकोंके साथ उन्होंने वहाँसे शिविरको प्रस्थान कर दिया॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कौरवेष्वपयातेषु तदा राजन् दिनक्षये।
जयं सुमनसः प्राप्य पार्थाः स्वशिबिरं ययुः ॥ ४० ॥
वादित्रशब्दैर्विविधैः सिंहनादैः सगर्जितैः ।
परानुपहसन्तश्च स्तुवन्तश्चाच्युतार्जुनौ ॥ ४१ ॥
मूलम्
कौरवेष्वपयातेषु तदा राजन् दिनक्षये।
जयं सुमनसः प्राप्य पार्थाः स्वशिबिरं ययुः ॥ ४० ॥
वादित्रशब्दैर्विविधैः सिंहनादैः सगर्जितैः ।
परानुपहसन्तश्च स्तुवन्तश्चाच्युतार्जुनौ ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! दिनके अन्तमें कौरवोंके हट जानेपर पाण्डव भी विजय पाकर प्रसन्नचित्त हो भाँति-भाँतिके बाजोंकी आवाज, सिंहनाद और गर्जनाके द्वारा शत्रुओंका उपहास और श्रीकृष्ण तथा अर्जुनकी स्तुति करते हुए अपने शिविरको लौट गये॥४०-४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृतेऽवहारे तैर्वीरैः सैनिकाः सर्व एव ते।
आशीर्वाचः पाण्डवेषु प्रायुञ्जन्त नरेश्वराः ॥ ४२ ॥
मूलम्
कृतेऽवहारे तैर्वीरैः सैनिकाः सर्व एव ते।
आशीर्वाचः पाण्डवेषु प्रायुञ्जन्त नरेश्वराः ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन वीरोंके द्वारा युद्धका उपसंहार कर दिये जानेपर समस्त सैनिक और नरेश पाण्डवोंको आशीर्वाद देने लगे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कृतेऽवहारे च प्रहृष्टास्तत्र पाण्डवाः।
निशायां शिबिरं गत्वा न्यवसन्त नरेश्वराः ॥ ४३ ॥
मूलम्
ततः कृतेऽवहारे च प्रहृष्टास्तत्र पाण्डवाः।
निशायां शिबिरं गत्वा न्यवसन्त नरेश्वराः ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार सैनिकोंके लौटा लिये जानेपर हर्षमें भरे हुए पाण्डव-पक्षीय नरेश रातको शिविरमें जाकर सो रहे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो रक्षः पिशाचाश्च श्वापदाश्चैव संघशः।
जग्मुरायोधनं घोरं रुद्रस्याक्रीडसंनिभम् ॥ ४४ ॥
मूलम्
ततो रक्षः पिशाचाश्च श्वापदाश्चैव संघशः।
जग्मुरायोधनं घोरं रुद्रस्याक्रीडसंनिभम् ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर रुद्रके क्रीडास्थल (श्मशान)-सदृश उस भयंकर युद्धभूमिमें राक्षस, पिशाच और झुंड-के-झुंड हिंसक जीव-जन्तु जा पहुँचे॥४४॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि प्रथमे युद्धदिवसे त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३० ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें प्रथम दिनका युद्धविषयक तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥३०॥