०२३

भागसूचना

त्रयोविंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

सहदेवके द्वारा दुःशासनकी पराजय

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवं तथा क्रुद्धं दहन्तं तव वाहिनीम्।
दुःशासनो महाराज भ्राता भ्रातरमभ्ययात् ॥ १ ॥

मूलम्

सहदेवं तथा क्रुद्धं दहन्तं तव वाहिनीम्।
दुःशासनो महाराज भ्राता भ्रातरमभ्ययात् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! सहदेव क्रोधमें भरकर आपकी विशाल सेनाको दग्ध करने लगे। उस समय भाई दुःशासनने अपने उस भ्राताका सामना किया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ समेतौ महायुद्धे दृष्ट्वा तत्र महारथाः।
सिंहनादरवांश्चक्रुर्वासांस्यादुधुवुश्च ह ॥ २ ॥

मूलम्

तौ समेतौ महायुद्धे दृष्ट्वा तत्र महारथाः।
सिंहनादरवांश्चक्रुर्वासांस्यादुधुवुश्च ह ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस महायुद्धमें उन दोनों भाइयोंको एकत्र हुआ देख वहाँ खड़े हुए महारथी योद्धा सिंहनाद करने और वस्त्र हिलाने लगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भारत क्रुद्धेन तव पुत्रेण धन्विना।
पाण्डुपुत्रस्त्रिभिर्बाणैर्वक्षस्यभिहतो बली ॥ ३ ॥

मूलम्

ततो भारत क्रुद्धेन तव पुत्रेण धन्विना।
पाण्डुपुत्रस्त्रिभिर्बाणैर्वक्षस्यभिहतो बली ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! उस समय कुपित हुए आपके धनुर्धर पुत्रने अपने तीन बाणोंद्वारा बलवान् पाण्डुपुत्र सहदेवकी छातीमें गहरा आघात किया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवस्ततो राजन् नाराचेन तवात्मजम्।
विद्‌ध्वा विव्याध सप्तत्या सारथिं च त्रिभिः शरैः ॥ ४ ॥

मूलम्

सहदेवस्ततो राजन् नाराचेन तवात्मजम्।
विद्‌ध्वा विव्याध सप्तत्या सारथिं च त्रिभिः शरैः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब सहदेवने आपके पुत्रको एक नाराचसे घायल करके पुनः सत्तर बाणोंसे बींध डाला। तत्पश्चात् उनके सारथिको भी तीन बाण मारे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनस्ततश्चापं छित्त्वा राजन् महाहवे।
सहदेवं त्रिसप्तत्या बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ ५ ॥

मूलम्

दुःशासनस्ततश्चापं छित्त्वा राजन् महाहवे।
सहदेवं त्रिसप्तत्या बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस महासमरमें दुःशासनने सहदेवका धनुष काटकर उनकी दोनों भुजाओं और छातीमें तिहत्तर बाण मारे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवस्तु संक्रुद्धः खड्गं गृह्य महाहवे।
आविध्य प्रासृजत् तूर्णं तव पुत्ररथं प्रति ॥ ६ ॥

मूलम्

सहदेवस्तु संक्रुद्धः खड्गं गृह्य महाहवे।
आविध्य प्रासृजत् तूर्णं तव पुत्ररथं प्रति ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब सहदेवने अत्यन्त कुपित होकर उस महासमरमें तलवार उठा ली और उसे घुमाकर तुरंत ही आपके पुत्रके रथकी ओर फेंका॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समार्गणगुणं चापं छित्त्वा तस्य महानसिः।
निपपात ततो भूमौ च्युतः सर्प इवाम्बरात् ॥ ७ ॥

मूलम्

समार्गणगुणं चापं छित्त्वा तस्य महानसिः।
निपपात ततो भूमौ च्युतः सर्प इवाम्बरात् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनकी वह लंबी तलवार दुःशासनके धनुष, बाण और प्रत्यंचाको काटकर आकाशसे भ्रष्ट हुए सर्पकी भाँति वहाँ पृथ्वीपर गिर पड़ी॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यद् धनुरादाय सहदेवः प्रतापवान्।
दुःशासनाय चिक्षेप बाणमन्तकरं ततः ॥ ८ ॥

मूलम्

अथान्यद् धनुरादाय सहदेवः प्रतापवान्।
दुःशासनाय चिक्षेप बाणमन्तकरं ततः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर प्रतापी सहदेवने दूसरा धनुष लेकर दुःशासनपर एक विनाशकारी बाणका प्रहार किया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं विशिखं यमदण्डोपमत्विषम् ।
खड्गेन शितधारेण द्विधा चिच्छेद कौरवः ॥ ९ ॥

मूलम्

तमापतन्तं विशिखं यमदण्डोपमत्विषम् ।
खड्गेन शितधारेण द्विधा चिच्छेद कौरवः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यमदण्डके समान प्रकाशित होनेवाले उस बाणको आते देख कुरुवंशी दुःशासनने तीखी धारवाले खड्गसे उसके दो टुकड़े कर डाले॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तं निशितं खड्‌गमाविध्य युधि सत्वरः।
धनुश्चान्यत् समादाय शरं जग्राह वीर्यवान् ॥ १० ॥

मूलम्

ततस्तं निशितं खड्‌गमाविध्य युधि सत्वरः।
धनुश्चान्यत् समादाय शरं जग्राह वीर्यवान् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् दुःशासनने युद्धस्थलमें तुरंत ही तीखी तलवार घुमाकर सहदेवपर दे मारी; फिर उस पराक्रमी वीरने दूसरा धनुष लेकर उसपर बाणका संधान किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं सहसा निस्त्रिंशं निशितैः शरैः।
पातयामास समरे सहदेवो हसन्निव ॥ ११ ॥

मूलम्

तमापतन्तं सहसा निस्त्रिंशं निशितैः शरैः।
पातयामास समरे सहदेवो हसन्निव ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सहदेवने हँसते हुए-से सहसा अपनी ओर आती हुई उस तलवारको तीखे बाणोंसे समरभूमिमें गिरा दिया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो बाणांश्चतुःषष्टिं तव पुत्रो महारणे।
सहदेवरथं तूर्णं प्रेषयामास भारत ॥ १२ ॥

मूलम्

ततो बाणांश्चतुःषष्टिं तव पुत्रो महारणे।
सहदेवरथं तूर्णं प्रेषयामास भारत ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! इतनेहीमें आपके पुत्रने उस महासमरमें सहदेवपर तुरंत ही चौंसठ बाण चलाये॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् शरान् समरे राजन् वेगेनापततो बहून्।
एकैकं पञ्चभिर्बाणैः सहदेवो न्यकृन्तत ॥ १३ ॥

मूलम्

तान् शरान् समरे राजन् वेगेनापततो बहून्।
एकैकं पञ्चभिर्बाणैः सहदेवो न्यकृन्तत ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! सहदेवने रणभूमिमें वेगसे आते हुए उन बहुसंख्यक बाणोंमेंसे प्रत्येकको पाँच-पाँच बाण मारकर काट गिराया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संनिवार्य महाबाणांस्तव पुत्रेण प्रेषितान्।
अथास्मै सुबहून् बाणान् प्रेषयामास संयुगे ॥ १४ ॥

मूलम्

संनिवार्य महाबाणांस्तव पुत्रेण प्रेषितान्।
अथास्मै सुबहून् बाणान् प्रेषयामास संयुगे ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार आपके पुत्रके चलाये हुए उन महाबाणोंका निवारण करके युद्धस्थलमें सहदेवने उसके ऊपर भी बहुत-से बाण छोड़े॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् बाणांस्तव पुत्रोऽपि छित्त्वैकैकं त्रिभिः शरैः।
ननाद सुमहानादं दारयाणो वसुन्धराम् ॥ १५ ॥

मूलम्

तान् बाणांस्तव पुत्रोऽपि छित्त्वैकैकं त्रिभिः शरैः।
ननाद सुमहानादं दारयाणो वसुन्धराम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्रने भी सहदेवके उन बाणोंमेंसे प्रत्येकको तीन-तीन बाणोंसे काटकर पृथ्वीको विदीर्ण-सी करते हुए बड़े जोरसे गर्जना की॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुःशासनो राजन् विद्‌ध्वा पाण्डुसुतं रणे।
सारथिं नवभिर्बाणैर्माद्रेयस्य समार्पयत् ॥ १६ ॥

मूलम्

ततो दुःशासनो राजन् विद्‌ध्वा पाण्डुसुतं रणे।
सारथिं नवभिर्बाणैर्माद्रेयस्य समार्पयत् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसके बाद दुःशासनने रणभुमिमें पाण्डुकुमार सहदेवको घायल करके उन माद्रीकुमारके सारथिको भी नौ बाण मारे॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रुद्धो महाराज सहदेवः प्रतापवान्।
समाधत्त शरं घोरं मृत्युकालान्तकोपमम् ॥ १७ ॥

मूलम्

ततः क्रुद्धो महाराज सहदेवः प्रतापवान्।
समाधत्त शरं घोरं मृत्युकालान्तकोपमम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! इससे कुपित होकर प्रतापी सहदेवने अपने धनुषपर मृत्यु, काल और यमराजके समान भयंकर बाण रखा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विकृष्य बलवच्चापं तव पुत्राय सोऽसृजत्।
स तं निर्भिद्य वेगेन भित्त्वा च कवचं महत्॥१८॥
प्राविशद् धरणीं राजन् वल्मीकमिव पन्नगः।
ततः सम्मुमुहे राजंस्तव पुत्रो महारथः ॥ १९ ॥

मूलम्

विकृष्य बलवच्चापं तव पुत्राय सोऽसृजत्।
स तं निर्भिद्य वेगेन भित्त्वा च कवचं महत्॥१८॥
प्राविशद् धरणीं राजन् वल्मीकमिव पन्नगः।
ततः सम्मुमुहे राजंस्तव पुत्रो महारथः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर उस धनुषको बलपूर्वक खींचकर उसने आपके पुत्रपर वह बाण छोड़ दिया। राजन्! वह बाण दुःशासनको तथा उसके विशाल कवचको भी वेगपूर्वक विदीर्ण करके बाँबीमें घुसनेवाले सर्पके समान धरतीमें समा गया। महाराज! इससे आपका महारथी पुत्र मूर्च्छित हो गया॥१८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मूढं चैनं समालोक्य सारथिस्त्वरितो रथम्।
अपोवाह भृशं त्रस्तो वध्यमानः शितैः शरैः ॥ २० ॥

मूलम्

मूढं चैनं समालोक्य सारथिस्त्वरितो रथम्।
अपोवाह भृशं त्रस्तो वध्यमानः शितैः शरैः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसे मूर्च्छित देख उसका सारथि तीखे बाणोंकी मार खाकर अत्यन्त भयभीत हो तुरंत ही रथको रणभूमिसे दूर हटा ले गया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पराजित्य रणे तं तु कौरव्यं पाण्डुनन्दनः।
दुर्योधनबलं दृष्ट्वा प्रममाथ समन्ततः ॥ २१ ॥

मूलम्

पराजित्य रणे तं तु कौरव्यं पाण्डुनन्दनः।
दुर्योधनबलं दृष्ट्वा प्रममाथ समन्ततः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुवंशी दुःशासनको रणभूमिमें पराजित करके पाण्डुनन्दन सहदेवने दुर्योधनकी सेनाको वहाँ उपस्थित देख उसे सब ओरसे मथ डाला॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पिपीलिकपुटं राजन् यथा मृद्‌नन्नरो रुषा।
तथा सा कौरवी सेना मृदिता तेन भारत ॥ २२ ॥

मूलम्

पिपीलिकपुटं राजन् यथा मृद्‌नन्नरो रुषा।
तथा सा कौरवी सेना मृदिता तेन भारत ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतवंशी नरेश! जैसे मनुष्य रोषमें आकर चींटियोंके दलको मसल डालता है, उसी प्रकार सहदेवने उस कौरव-सेनाको धूलमें मिला दिया॥२२॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि सहदेवदुःशासनयुद्धे त्रयोविंशोऽध्यायः ॥ २३ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें सहदेव और दुःशासनका युद्धविषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२३॥