०१९

भागसूचना

एकोनविंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अर्जुनके द्वारा संशप्तक-सेनाका संहार, श्रीकृष्णका अर्जुनको युद्धस्थलका दृश्य दिखाते हुए उनके पराक्रमकी प्रशंसा करना तथा पाण्ड्‌यनरेशका कौरव-सेनाके साथ युद्धारम्भ

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्यागत्य पुनर्जिष्णुर्जघ्ने संशप्तकान् बहून्।
वक्रातिवक्रगमनादङ्गारक इव ग्रहः ॥ १ ॥

मूलम्

प्रत्यागत्य पुनर्जिष्णुर्जघ्ने संशप्तकान् बहून्।
वक्रातिवक्रगमनादङ्गारक इव ग्रहः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! जैसे मंगल नामक ग्रह वक्र और अतिचार गतिसे चलकर लोकके लिये अनिष्टकारी होता है, उसी प्रकार विजयशील अर्जुनने दण्डधारकी सेनासे पुनः लौटकर बहुत-से संशप्तकोंका संहार आरम्भ कर दिया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पार्थबाणहता राजन् नराश्वरथकुञ्जराः ।
विचेलुर्बभ्रमुर्नेशुः पेतुर्मम्लुश्च भारत ॥ २ ॥

मूलम्

पार्थबाणहता राजन् नराश्वरथकुञ्जराः ।
विचेलुर्बभ्रमुर्नेशुः पेतुर्मम्लुश्च भारत ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतवंशी नरेश! अर्जुनके बाणोंसे आहत हो हाथी, घोड़े, रथ और पैदल मनुष्य विचलित, भ्रान्त, पतित, मलिन तथा नष्ट होने लगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धुर्यान् धुर्यगतान् सूतान् ध्वजांश्चापासिसायकान्।
पाणीन् पाणिगतं शस्त्रं बाहूनपि शिरांसि च ॥ ३ ॥
भल्लैः क्षुरैरर्धचन्द्रैर्वत्सदन्तैश्च पाण्डवः ।
चिच्छेदामित्रवीराणां समरे प्रतियुध्यताम् ॥ ४ ॥

मूलम्

धुर्यान् धुर्यगतान् सूतान् ध्वजांश्चापासिसायकान्।
पाणीन् पाणिगतं शस्त्रं बाहूनपि शिरांसि च ॥ ३ ॥
भल्लैः क्षुरैरर्धचन्द्रैर्वत्सदन्तैश्च पाण्डवः ।
चिच्छेदामित्रवीराणां समरे प्रतियुध्यताम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुनन्दन अर्जुनने भल्ल, क्षुर, अर्धचन्द्र और वत्सदन्त नामक अस्त्रोंद्वारा समरांगणमें सामना करनेवाले विपक्षी वीरोंके रथोंमें जुते हुए धुरंधर अश्वों, सारथियों, ध्वजों, धनुषों, सायकों, तलवारों, हाथों, हाथमें रखे हुए शस्त्रों, भुजाओं तथा मस्तकोंको भी काट डाला॥३-४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वासितार्थे युयुत्सन्तो वृषभा वृषभं यथा।
निपतन्त्यर्जुनं शूराः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ५ ॥

मूलम्

वासितार्थे युयुत्सन्तो वृषभा वृषभं यथा।
निपतन्त्यर्जुनं शूराः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे मैथुनकी वासनावाली गायके लिये युद्धकी इच्छासे बहुतेरे साँड़ किसी एक साँड़पर टूट पड़ते हों, उसी प्रकार सैकड़ों और हजारों शूरवीर अर्जुनपर धावा बोलने लगे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां तस्य च तद् युद्धमभवल्लोमहर्षणम्।
त्रैलोक्यविजये यादृग् दैत्यानां सह वज्रिणा ॥ ६ ॥

मूलम्

तेषां तस्य च तद् युद्धमभवल्लोमहर्षणम्।
त्रैलोक्यविजये यादृग् दैत्यानां सह वज्रिणा ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन योद्धाओं तथा अर्जुनका वह युद्ध वैसा ही रोमांचकारी था, जैसा कि त्रैलोक्य-विजयके समय वज्रधारी इन्द्रके साथ दैत्योंका हुआ था॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमविध्यत् त्रिभिर्बाणैर्दन्दशूकैरिवाहिभिः ।
उग्रायुधसुतस्तस्य शिरः कायादपाहरत् ॥ ७ ॥

मूलम्

तमविध्यत् त्रिभिर्बाणैर्दन्दशूकैरिवाहिभिः ।
उग्रायुधसुतस्तस्य शिरः कायादपाहरत् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय उग्रायुधके पुत्रने अत्यन्त डँस लेनेके स्वभाववाले सर्पोंके समान तीन बाणोंद्वारा अर्जुनको बींध डाला। तब अर्जुनने उसके सिरको धड़से उतार लिया॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेऽर्जुनं सर्वतः क्रुद्धा नानाशस्त्रैरवीवृषन्।
मरुद्भिः प्रेरिता मेघा हिमवन्तमिवोष्णगे ॥ ८ ॥

मूलम्

तेऽर्जुनं सर्वतः क्रुद्धा नानाशस्त्रैरवीवृषन्।
मरुद्भिः प्रेरिता मेघा हिमवन्तमिवोष्णगे ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे संशप्तक योद्धा कुपित हो अर्जुनपर सब ओरसे नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करने लगे, मानो वर्षाकालमें पवनप्रेरित मेघ हिमालयपर जलकी वृष्टि कर रहे हों॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य द्विषतां सर्वतोऽर्जुनः।
सम्यगस्तैः शरैः सर्वानहितानहनद् बहून् ॥ ९ ॥

मूलम्

अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य द्विषतां सर्वतोऽर्जुनः।
सम्यगस्तैः शरैः सर्वानहितानहनद् बहून् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनने अपने अस्त्रोंद्वारा शत्रुओंके अस्त्रोंका सब ओरसे निवारण करके अच्छी तरह चलाये हुए बाणोंद्वारा समस्त विपक्षियोंमेंसे बहुतोंको मार डाला॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छिन्नत्रिवेणुसंघातान् हताश्वान्‌ पार्ष्णिसारथीन् ।
विस्रस्तहस्ततूणीरान् विचक्ररथकेतनान् ॥ १० ॥
संछिन्नरश्मियोक्त्राक्षान् व्यनुकर्षयुगान् रथान् ।
विध्वस्तसर्वसंनाहान् बाणैश्चक्रेऽर्जुनस्तदा ॥ ११ ॥

मूलम्

छिन्नत्रिवेणुसंघातान् हताश्वान्‌ पार्ष्णिसारथीन् ।
विस्रस्तहस्ततूणीरान् विचक्ररथकेतनान् ॥ १० ॥
संछिन्नरश्मियोक्त्राक्षान् व्यनुकर्षयुगान् रथान् ।
विध्वस्तसर्वसंनाहान् बाणैश्चक्रेऽर्जुनस्तदा ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनने उस समय अपने बाणोंद्वारा शत्रुओंके रथोंकी बड़ी बुरी दशा कर डाली। उनके त्रिवेणुसमूह काट डाले, घोड़ों और पार्श्वरक्षकोंको मार डाला। उन योद्धाओंके हाथोंसे खिसककर तूणीर गिर गये तथा उनके रथोंके पहिये और ध्वज भी नष्ट हो गये। घोड़ोंकी बागडोर, जोत और रथके धुरे भी काट डाले गये। उनके अनुकर्ष और जूए भी चौपट हो गये थे॥१०-११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते रथास्तत्र विध्वस्ताः परार्घ्या भान्त्यनेकशः।
धनिनामिव वेश्मानि हतान्यग्न्यनिलाम्बुभिः ॥ १२ ॥

मूलम्

ते रथास्तत्र विध्वस्ताः परार्घ्या भान्त्यनेकशः।
धनिनामिव वेश्मानि हतान्यग्न्यनिलाम्बुभिः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे बहुमूल्य और बहुसंख्यक रथ, जो वहाँ टूट-फूटकर गिरे पड़े थे, आग, हवा और पानीसे नष्ट हुए धनवानोंके घरोंके समान जान पड़ते थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्विपाः सम्भिन्नवर्माणो वज्राशनिसमैः शरैः।
पेतुर्गिर्यग्रवेश्मानि वज्रवाताग्निभिर्यथा ॥ १३ ॥

मूलम्

द्विपाः सम्भिन्नवर्माणो वज्राशनिसमैः शरैः।
पेतुर्गिर्यग्रवेश्मानि वज्रवाताग्निभिर्यथा ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वज्र और बिजलीके समान तेजस्वी बाणोंसे कवच विदीर्ण हो जानेके कारण हाथी वज्र, वायु तथा आगसे नष्ट हुए पर्वत-शिखरोंपर बने हुए गृहोंके समान गिर पड़ते थे॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सारोहास्तुरगाः पेतुर्बहवोऽर्जुनताडिताः ।
निर्जिह्वान्त्राः क्षितौ क्षीणा रुधिरार्द्राः सुदुर्दृशः ॥ १४ ॥

मूलम्

सारोहास्तुरगाः पेतुर्बहवोऽर्जुनताडिताः ।
निर्जिह्वान्त्राः क्षितौ क्षीणा रुधिरार्द्राः सुदुर्दृशः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनके मारे हुए बहुसंख्यक घोड़े और घुड़सवार पृथ्वीपर क्षत-विक्षत होकर पड़े थे। उनकी जीभ तथा आँतें बाहर निकल आयी थीं। वे खूनसे लथपथ हो रहे थे। उनकी ओर देखना अत्यन्त कठिन हो गया था॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नराश्वनागा नाराचैः संस्यूताः सव्यसाचिना।
बभ्रमुश्चस्खलुः पेतुर्नेदुर्मम्लुश्च मारिष ॥ १५ ॥

मूलम्

नराश्वनागा नाराचैः संस्यूताः सव्यसाचिना।
बभ्रमुश्चस्खलुः पेतुर्नेदुर्मम्लुश्च मारिष ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मान्यवर! सव्यसाची अर्जुनके नाराचोंसे गुथे हुए हाथी, घोड़े और मनुष्य चक्कर काटते, लड़खड़ाते, गिरते, चिल्लाते और मन मारकर रह जाते थे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनेकैश्च शिलाधौतैर्वज्राशनिविषोपमैः ।
शरैर्निजघ्निवान् पार्थो महेन्द्र इव दानवान् ॥ १६ ॥

मूलम्

अनेकैश्च शिलाधौतैर्वज्राशनिविषोपमैः ।
शरैर्निजघ्निवान् पार्थो महेन्द्र इव दानवान् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे देवराज इन्द्र दानवोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार कुन्तीकुमार अर्जुनने शिलापर तेज किये हुए वज्र, अशनि तथा विषके तुल्य अनेक भयंकर बाणोंद्वारा उन संशप्तक वीरोंका वध कर डाला॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महार्हवर्माभरणा नानारूपाम्बरायुधाः ।
सरथाः सध्वजा वीरा हताः पार्थेन शेरते ॥ १७ ॥

मूलम्

महार्हवर्माभरणा नानारूपाम्बरायुधाः ।
सरथाः सध्वजा वीरा हताः पार्थेन शेरते ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनद्वारा मारे गये संशप्तक वीर बहुमूल्य कवच, आभूषण, भाँति-भाँतिके वस्त्र, आयुध, रथ और ध्वजोंसहित रणभूमिमें सो रहे थे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विजिताः पुण्यकर्माणो विशिष्टाभिजनश्रुताः ।
गताः शरीरैर्वसुधामूर्जितैः कर्मभिर्दिवम् ॥ १८ ॥

मूलम्

विजिताः पुण्यकर्माणो विशिष्टाभिजनश्रुताः ।
गताः शरीरैर्वसुधामूर्जितैः कर्मभिर्दिवम् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे पुण्यात्मा, उत्तम कुलमें उत्पन्न तथा विशिष्ट शास्त्रज्ञानसे सम्पन्न वीर पराजित होकर अपने शरीरोंसे तो पृथ्वीपर गिरे, परंतु प्रबल उत्तम कर्मोंके द्वारा स्वर्गलोकमें जा पहुँचे॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथार्जुनं रथवरं त्वदीयाः समभिद्रवन्।
नानाजनपदाध्यक्षाः सगणा जातमन्यवः ॥ १९ ॥

मूलम्

अथार्जुनं रथवरं त्वदीयाः समभिद्रवन्।
नानाजनपदाध्यक्षाः सगणा जातमन्यवः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर आपके सैनिक रथियोंमें श्रेष्ठ अर्जुनपर टूट पड़े। वे विभिन्न जनपदोंके अधिपति थे और अपने दलबलके साथ कुपित होकर चढ़ आये थे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उह्यमाना रथाश्वेभैः पत्तयश्च जिघांसवः।
समभ्यधावन्नस्यन्तो विविधं क्षिप्रमायुधम् ॥ २० ॥

मूलम्

उह्यमाना रथाश्वेभैः पत्तयश्च जिघांसवः।
समभ्यधावन्नस्यन्तो विविधं क्षिप्रमायुधम् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथों, घोड़ों और हाथियोंके सवार तथा पैदल सैनिक उन्हें मार डालनेकी इच्छासे नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार करते हुए शीघ्रतापूर्वक धावा बोलने लगे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदायुधमहावर्षं मुक्तं योधमहाम्बुदैः ।
व्यधमन्निशितैर्बाणैः क्षिप्रमर्जुनमारुतः ॥ २१ ॥

मूलम्

तदायुधमहावर्षं मुक्तं योधमहाम्बुदैः ।
व्यधमन्निशितैर्बाणैः क्षिप्रमर्जुनमारुतः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु अर्जुनरूपी वायुने संशप्तक सैनिकरूपी महामेघोंद्वारा की हुई अस्त्र-शस्त्रोंकी उस महावृष्टिको तीखे बाणोंद्वारा छिन्न-भिन्न कर डाला॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

साश्वपत्तिद्विपरथं महाशस्त्रौघसम्प्लवम् ।
सहसा संतितीर्षन्तं पार्थ शस्त्रास्त्रसेतुना ॥ २२ ॥
अथाब्रवीद् वासुदेवः पार्थ किं क्रीडसेऽनघ।
संशप्तकान् प्रमथ्यैनांस्ततः कर्णवधे त्वर ॥ २३ ॥

मूलम्

साश्वपत्तिद्विपरथं महाशस्त्रौघसम्प्लवम् ।
सहसा संतितीर्षन्तं पार्थ शस्त्रास्त्रसेतुना ॥ २२ ॥
अथाब्रवीद् वासुदेवः पार्थ किं क्रीडसेऽनघ।
संशप्तकान् प्रमथ्यैनांस्ततः कर्णवधे त्वर ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुन हाथी, घोड़े, रथ और पैदलसमूहोंसे युक्त तथा महान् अस्त्र-शस्त्रोंके प्रवाहसे परिपूर्ण उस सैन्य-समुद्रको अपने अस्त्र-शस्त्ररूपी पुलके द्वारा सहसा पार कर जाना चाहते थे। उस समय भगवान् श्रीकृष्णने उनसे कहा—‘निष्पाप पार्थ! यह क्या खिलवाड़ कर रहे हो? इन संशप्तकोंका संहार करके कर्णके वधका शीघ्रतापूर्वक प्रयत्न करो’॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथेत्युक्त्वार्जुनः कृष्णं शिष्टान् संशप्तकांस्तदा।
आक्षिप्य शस्त्रेण बलाद् दैत्यानिन्द्र इवावधीत् ॥ २४ ॥

मूलम्

तथेत्युक्त्वार्जुनः कृष्णं शिष्टान् संशप्तकांस्तदा।
आक्षिप्य शस्त्रेण बलाद् दैत्यानिन्द्र इवावधीत् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब श्रीकृष्णसे ‘बहुत अच्छा’ कहकर अर्जुन दैत्योंका वध करनेवाले इन्द्रके समान उस समय शेष संशप्तक-सेनाको अस्त्र-शस्त्रोंसे छिन्न-भिन्न करके उसका बलपूर्वक विनाश करने लगे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आददत् संदधन्नेषून् दृष्टः कैश्चिद् रणेऽर्जुनः।
विमुञ्चन् वा शरान् शीघ्रं दृश्यन्ते वै नरा हताः॥२५॥

मूलम्

आददत् संदधन्नेषून् दृष्टः कैश्चिद् रणेऽर्जुनः।
विमुञ्चन् वा शरान् शीघ्रं दृश्यन्ते वै नरा हताः॥२५॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय रणभूमिमें किसीने यह नहीं देखा कि अर्जुन कब बाण लेते, कब उनका संधान करते अथवा कब उन्हें छोड़ते हैं? केवल उनके द्वारा शीघ्रतापूर्वक मारे गये मनुष्य ही दृष्टिगोचर होते थे॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आश्चर्यमिति गोविन्दो ब्रुवन्नश्वानचोदयत् ।
हंसांशुगौरास्ते सेनां हंसाः सर इवाविशन् ॥ २६ ॥

मूलम्

आश्चर्यमिति गोविन्दो ब्रुवन्नश्वानचोदयत् ।
हंसांशुगौरास्ते सेनां हंसाः सर इवाविशन् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आश्चर्य है’ ऐसा कहकर भगवान् श्रीकृष्णने घोड़ोंको आगे बढ़ाया। हंस तथा चन्द्र-किरणोंके समान श्वेतवर्णवाले वे घोड़े शत्रुसेनामें उसी प्रकार घुस गये, जैसे हंस तालाबमें प्रवेश करते हैं॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः संग्रामभूमिं च वर्तमाने जनक्षये।
अवेक्षमाणो गोविन्दः सव्यसाचिनमब्रवीत् ॥ २७ ॥

मूलम्

ततः संग्रामभूमिं च वर्तमाने जनक्षये।
अवेक्षमाणो गोविन्दः सव्यसाचिनमब्रवीत् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब इस प्रकार जनसंहार होने लगा, उस समय रणभूमिकी ओर देखते हुए भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुनसे इस प्रकार बोले—॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष पार्थ महारौद्रो वर्तते भरतक्षयः।
पृथिव्यां पार्थिवानां वै दुर्योधनकृते महान् ॥ २८ ॥

मूलम्

एष पार्थ महारौद्रो वर्तते भरतक्षयः।
पृथिव्यां पार्थिवानां वै दुर्योधनकृते महान् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पार्थ! दुर्योधनके कारण यह भूमण्डलके भूपालों तथा भरतवंशियोंकी सेनाका महाभयंकर एवं महान् संहार हो रहा है॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पश्य भारत चापानि रुक्मपृष्ठानि धन्विनाम्।
महतां चापविद्धानि कलापानिषुधींस्तथा ॥ २९ ॥

मूलम्

पश्य भारत चापानि रुक्मपृष्ठानि धन्विनाम्।
महतां चापविद्धानि कलापानिषुधींस्तथा ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भरतनन्दन! देखो, बड़े-बड़े धनुर्धरोंके ये सुवर्णजटित पृष्ठभागवाले धनुष, आभूषण और तरकस पड़े हुए हैं॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जातरूपमयैः पुङ्खैः शरांश्च नतपर्वणः।
तैलधौतांश्च नाराचान् विमुक्तानिव पन्नगान् ॥ ३० ॥

मूलम्

जातरूपमयैः पुङ्खैः शरांश्च नतपर्वणः।
तैलधौतांश्च नाराचान् विमुक्तानिव पन्नगान् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सुनहरी पाँखोंसे युक्त झुकी हुई गाँठवाले ये बाण तथा तेलमें धोकर साफ किये हुए नाराच धनुषसे छूटकर सर्पोंके समान पड़े हुए हैं, इनपर दृष्टिपात करो॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आकीर्णांस्तोमरांश्चापि विचित्रान् हेमभूषितान् ।
चर्माणि चापविद्धानि रुक्मपृष्ठानि भारत ॥ ३१ ॥

मूलम्

आकीर्णांस्तोमरांश्चापि विचित्रान् हेमभूषितान् ।
चर्माणि चापविद्धानि रुक्मपृष्ठानि भारत ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भारत! देखो, ये सुवर्णभूषित विचित्र तोमर चारों ओर बिखरे पड़े हैं और ये फेंकी हुई ढालें हैं, जिनके पृष्ठभागपर सोना जड़ा हुआ था॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुवर्णविकृतान् प्रासाञ्शक्तीः कनकभूषिताः ।
जाम्बूनदमयैः पट्टैर्बद्धाश्च विपुला गदाः ॥ ३२ ॥
जातरूपमयीश्चर्ष्टीः पट्टिशान् हेमभूषितान् ।
दण्डैः कनकचित्रैश्च विप्रविद्धान् परश्वधान् ॥ ३३ ॥

मूलम्

सुवर्णविकृतान् प्रासाञ्शक्तीः कनकभूषिताः ।
जाम्बूनदमयैः पट्टैर्बद्धाश्च विपुला गदाः ॥ ३२ ॥
जातरूपमयीश्चर्ष्टीः पट्टिशान् हेमभूषितान् ।
दण्डैः कनकचित्रैश्च विप्रविद्धान् परश्वधान् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सोनेके बने हुए प्रास, सुवर्णभूषित शक्तियाँ, सोनेके पत्रोंसे जड़ी हुई विशाल गदाएँ, स्वर्णमयी ऋष्टि, सुवर्णभूषित पट्टिश तथा स्वर्णचित्रित दंडोंके साथ बहुत-से फरसे फेंके पड़े हैं, इनपर दृष्टिपात करो॥३२-३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परिघान् भिन्दिपालांश्च भुशुण्डीः कुणपानपि।
अयस्कुन्तांश्च पतितान् मुसलानि गुरूणि च ॥ ३४ ॥

मूलम्

परिघान् भिन्दिपालांश्च भुशुण्डीः कुणपानपि।
अयस्कुन्तांश्च पतितान् मुसलानि गुरूणि च ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देखो, ये परिघ, भिन्दिपाल, भुशुण्डी, कुणप, लोहेके बने हुए भाले तथा भारी-भारी मुसल पड़े हुए हैं॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानाविधानि शस्त्राणि प्रगृह्य जयगृद्धिनः।
जीवन्त इव दृश्यन्ते गतसत्त्वास्तरस्विनः ॥ ३५ ॥

मूलम्

नानाविधानि शस्त्राणि प्रगृह्य जयगृद्धिनः।
जीवन्त इव दृश्यन्ते गतसत्त्वास्तरस्विनः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘विजयकी अभिलाषा रखनेवाले वेगशाली वीर सैनिक हाथोंमें नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र लिये प्राणशून्य हो गये हैं तो भी जीवित-से दिखायी देते हैं॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदाविमथितैर्गात्रैर्मुसलैर्भिन्नमस्तकान् ।
गजवाजिरथैः क्षुण्णान् पश्य योधान् सहस्रशः ॥ ३६ ॥

मूलम्

गदाविमथितैर्गात्रैर्मुसलैर्भिन्नमस्तकान् ।
गजवाजिरथैः क्षुण्णान् पश्य योधान् सहस्रशः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देखो, ये सहस्रों योद्धा हाथी, घोड़ों और रथोंसे कुचल गये हैं। गदाओंके आघातसे इनके अंग चूर-चूर हो गये हैं और मुसलोंकी मारसे मस्तक फट गये हैं॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मनुष्यगजवाजीनां शरशक्त्यृष्टितोमरैः ।
निस्त्रिंशैः पट्टिशैः प्रासैर्नखरैर्लगुडैरपि ॥ ३७ ॥
शरीरैर्बहुधा छिन्नैः शोणितौघपरिप्लुतैः ।
गतासुभिरमित्रघ्न संवृता रणभूमयः ॥ ३८ ॥

मूलम्

मनुष्यगजवाजीनां शरशक्त्यृष्टितोमरैः ।
निस्त्रिंशैः पट्टिशैः प्रासैर्नखरैर्लगुडैरपि ॥ ३७ ॥
शरीरैर्बहुधा छिन्नैः शोणितौघपरिप्लुतैः ।
गतासुभिरमित्रघ्न संवृता रणभूमयः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘शत्रुसूदन अर्जुन! बाण, शक्ति, ऋष्टि, तोमर, खड्ग, पट्टिश, प्रास, नखर और लगुडोंकी मारसे हाथी, घोड़े और मनुष्योंके शरीरोंके कई टुकड़े हो गये हैं। वे सब-के-सब खूनसे लथपथ हो प्राणशून्य होकर पड़े हैं और उनके द्वारा सारी रणभूमि पट गयी है॥३७-३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाहुभिश्चन्दनादिग्धैः साङ्गदैः शुभभूषणैः ।
सतलत्रैः सकेयूरैर्भाति भारत मेदिनी ॥ ३९ ॥

मूलम्

बाहुभिश्चन्दनादिग्धैः साङ्गदैः शुभभूषणैः ।
सतलत्रैः सकेयूरैर्भाति भारत मेदिनी ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भारत! बाजूबंद और सुन्दर आभूषणोंसे विभूषित, चन्दनसे चर्चित, दस्ताने और केयूरोंसे सुशोभित कटी भुजाओंद्वारा रणभूमिकी अद्भुत शोभा हो रही है॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

साङ्‌गुलित्रैर्भुजाग्रैश्च विप्रविद्धैरलंकृतैः ।
हस्तिहस्तोपमैश्छिन्नैरूरुभिश्च तरस्विनाम् ॥ ४० ॥
बद्धचूडामणिवरैः शिरोभिश्च सकुण्डलैः ।

मूलम्

साङ्‌गुलित्रैर्भुजाग्रैश्च विप्रविद्धैरलंकृतैः ।
हस्तिहस्तोपमैश्छिन्नैरूरुभिश्च तरस्विनाम् ॥ ४० ॥
बद्धचूडामणिवरैः शिरोभिश्च सकुण्डलैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘अंगुलित्र और अलंकारोंसे अलंकृत हाथ फेंके पड़े हैं। वेगवान् वीरोंकी हाथीकी सूँड़के समान मोटी जाँघें कटकर गिरी हैं और जिनपर सुन्दर चूड़ामणि बँधी है वे योद्धाओंके कुण्डल-मण्डित मस्तक भी खण्डित होकर इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। उन सबसे रणभूमिकी अपूर्व शोभा हो रही है॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथांश्च बहुधा भग्नान्‌ हेमकिङ्किणिनः शुभान् ॥ ४१ ॥
अश्वांश्च बहुधा पश्य शोणितेन परिप्लुतान्।
अनुकर्षानुपासङ्गान् पताका विविधान् ध्वजान् ॥ ४२ ॥
योधानां च महाशङ्खान् पाण्डुरांश्च प्रकीर्णकान्।
निरस्तजिह्वान्‌ मातङ्गान्‌ शयानान् पर्वतोपमान् ॥ ४३ ॥

मूलम्

रथांश्च बहुधा भग्नान्‌ हेमकिङ्किणिनः शुभान् ॥ ४१ ॥
अश्वांश्च बहुधा पश्य शोणितेन परिप्लुतान्।
अनुकर्षानुपासङ्गान् पताका विविधान् ध्वजान् ॥ ४२ ॥
योधानां च महाशङ्खान् पाण्डुरांश्च प्रकीर्णकान्।
निरस्तजिह्वान्‌ मातङ्गान्‌ शयानान् पर्वतोपमान् ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देखो, सोनेकी छोटी-छोटी घंटियोंसे सुशोभित बहुसंख्यक रथोंके कितने ही टुकड़े हो गये हैं और नाना प्रकारके घोड़े लहूलुहान होकर पड़े हैं। अनुकर्ष, उपासंग, पताका, नाना प्रकारके ध्वज, योद्धाओंके सब ओर बिखरे हुए बड़े-बड़े श्वेत शंख तथा कितने ही पर्वताकार हाथी जीभ निकाले सोये पड़े हैं॥४१—४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैजयन्तीर्विचित्राश्च हतांश्च गजयोधिनः ।
वारणानां परिस्तोमान् संयुक्तानेककम्बलान् ॥ ४४ ॥

मूलम्

वैजयन्तीर्विचित्राश्च हतांश्च गजयोधिनः ।
वारणानां परिस्तोमान् संयुक्तानेककम्बलान् ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कहीं विचित्र वैजयन्ती पताकाएँ पड़ी हैं, कहीं हाथी-सवार मरकर गिरे हैं और कहीं अनेक कम्बलोंसे युक्त हाथियोंके झूल बिखरे पड़े हैं। इनकी ओर दृष्टिपात करो॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विपाटितविचित्राश्च रूपचित्राः कुथास्तथा ।
भिन्नाश्च बहुधा घण्टाः पतद्भिश्चूर्णिता गजैः ॥ ४५ ॥

मूलम्

विपाटितविचित्राश्च रूपचित्राः कुथास्तथा ।
भिन्नाश्च बहुधा घण्टाः पतद्भिश्चूर्णिता गजैः ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘हाथीकी पीठपर बिछाये जानेवाले कितने ही विचित्र कम्बल फट जानेके कारण विचित्र दशाको पहुँच गये हैं। कटकर गिरे हुए नाना प्रकारके घंटे गिरते हुए हाथियोंसे दबकर चूर-चूर हो गये हैं॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैदूर्यमणिदण्डांश्च पतितांश्चाङ्कुशान् भुवि ।
अश्वानां च युगापीडान् रत्नचित्रानुरश्छदान् ॥ ४६ ॥

मूलम्

वैदूर्यमणिदण्डांश्च पतितांश्चाङ्कुशान् भुवि ।
अश्वानां च युगापीडान् रत्नचित्रानुरश्छदान् ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘देखो, वैदूर्यमणिके बने हुए दण्ड और अंकुश भूतलपर पड़े हैं, घोड़ोंके युगापीड तथा रत्नचित्रित कवच इधर-उधर गिरे हैं॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विद्धाः सादिध्वजाग्रेषु सुवर्णविकृताः कुथाः।
विचित्रान् मणिचित्रांश्च जातरूपपरिष्कृतान् ॥ ४७ ॥
अश्वास्तरपरिस्तोमान् राङ्कवान् पतितान् भुवि।

मूलम्

विद्धाः सादिध्वजाग्रेषु सुवर्णविकृताः कुथाः।
विचित्रान् मणिचित्रांश्च जातरूपपरिष्कृतान् ॥ ४७ ॥
अश्वास्तरपरिस्तोमान् राङ्कवान् पतितान् भुवि।

अनुवाद (हिन्दी)

‘घुड़सवारोंकी ध्वजाओंके अग्रभागमें हाथियोंके सुनहरे कंबल उलझ गये हैं। घोड़ोंकी पीठपर बिछाये जानेवाले विचित्र, मणिजटित एवं सुवर्णभूषित रंकुमृगके चमड़ेके बने हुए झूल और जीन धरतीपर पड़े हैं, इन्हें देखो॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चूडामणीन् नरेन्द्राणां विचित्राः काञ्चनस्रजः ॥ ४८ ॥
छत्राणि चापविद्धानि चामरव्यजनानि च।

मूलम्

चूडामणीन् नरेन्द्राणां विचित्राः काञ्चनस्रजः ॥ ४८ ॥
छत्राणि चापविद्धानि चामरव्यजनानि च।

अनुवाद (हिन्दी)

‘राजाओंकी चूड़ामणियाँ, विचित्र स्वर्णमालाएँ, छत्र, चँवर और व्यजन फेंके पड़े हैं॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चन्द्रनक्षत्रभासैश्च वदनैश्चारुकुण्डलैः ॥ ४९ ॥
क्लृप्तश्मश्रुभिराकीर्णां पूर्णचन्द्रनिभैर्महीम् ।

मूलम्

चन्द्रनक्षत्रभासैश्च वदनैश्चारुकुण्डलैः ॥ ४९ ॥
क्लृप्तश्मश्रुभिराकीर्णां पूर्णचन्द्रनिभैर्महीम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘यहाँकी भूमि राजाओंके मनोहर कुण्डलयुक्त, चन्द्रमा और नक्षत्रोंके समान कान्तिमान् एवं दाढ़ी-मूँछवाले पूर्ण चन्द्रतुल्य मुखोंसे ढक गयी है॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुमुदोत्पलपद्मानां खण्डैः फुल्लं यथा सरः ॥ ५० ॥
तथा महीभृतां वक्त्रैः कुमुदोत्पलसंनिभैः।

मूलम्

कुमुदोत्पलपद्मानां खण्डैः फुल्लं यथा सरः ॥ ५० ॥
तथा महीभृतां वक्त्रैः कुमुदोत्पलसंनिभैः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘जैसे तालाब कुमुद, उत्पल और कमलोंके समूहसे विकसित दिखायी देता है, उसी प्रकार राजाओंके कुमुद और उत्पल-सदृश मुखोंसे यह रणभूमि सुशोभित हो रही है॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तारागणविचित्रस्य निर्मलेन्दुद्युतित्विषः ॥ ५१ ॥
पश्येमां नभसस्तुल्यां शरन्नक्षत्रमालिनीम् ।

मूलम्

तारागणविचित्रस्य निर्मलेन्दुद्युतित्विषः ॥ ५१ ॥
पश्येमां नभसस्तुल्यां शरन्नक्षत्रमालिनीम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘तारागणोंसे जिसकी विचित्र शोभा होती है तथा जहाँ निर्मल चन्द्रमाकी चाँदनी छिटकी रहती है, उस आकाशके समान इस रणभूमिकी शोभाको देखो। जान पड़ता है कि यह शरद्-ऋतुके नक्षत्रोंकी मालाओंसे अलंकृत है॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतत् तवैवानुरूपं कर्मार्जुन महाहवे ॥ ५२ ॥
दिवि वा देवराजस्य त्वया यत् कृतमाहवे।

मूलम्

एतत् तवैवानुरूपं कर्मार्जुन महाहवे ॥ ५२ ॥
दिवि वा देवराजस्य त्वया यत् कृतमाहवे।

अनुवाद (हिन्दी)

‘अर्जुन! महासमरमें ऐसा पराक्रम, जो तूने किया है, या तो तुम्हारे ही योग्य है या स्वर्गमें देवराज इन्द्रके योग्य’॥५२ ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं तां दर्शयन् कृष्णो युद्धभूमिं किरीटिने ॥ ५३ ॥
गच्छन्नेवाशृणोच्छब्दं दुर्योधनबले महत् ।
शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषं भेरीपणवनिःस्वनम् ॥ ५४ ॥
रथाश्वगजनादांश्च शस्त्रशब्दांश्च दारुणान् ।

मूलम्

एवं तां दर्शयन् कृष्णो युद्धभूमिं किरीटिने ॥ ५३ ॥
गच्छन्नेवाशृणोच्छब्दं दुर्योधनबले महत् ।
शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषं भेरीपणवनिःस्वनम् ॥ ५४ ॥
रथाश्वगजनादांश्च शस्त्रशब्दांश्च दारुणान् ।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार किरीटधारी अर्जुनको उस युद्धभूमिका दर्शन कराते हुए श्रीकृष्णने जाते-जाते ही दुर्योधनकी सेनामें महान् कोलाहल सुना। वहाँ शंखों और दुन्दुभियोंकी ध्वनि छा रही थी। भेरी और पणव आदि बाजे बज रहे थे। रथके घोड़ों और हाथियोंके हींसने एवं चिग्घाड़नेके तथा शस्त्रोंके परस्पर टकरानेके भयानक शब्द भी सुनायी पड़ते थे॥५३-५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रविश्य तद् बलं कृष्णस्तुरगैर्वातवेगितैः ॥ ५५ ॥
पाण्ड्‌येनाभ्यर्दितं सैन्यं त्वदीयं वीक्ष्य विस्मितः।

मूलम्

प्रविश्य तद् बलं कृष्णस्तुरगैर्वातवेगितैः ॥ ५५ ॥
पाण्ड्‌येनाभ्यर्दितं सैन्यं त्वदीयं वीक्ष्य विस्मितः।

अनुवाद (हिन्दी)

तब श्रीकृष्णने वायुके समान वेगशाली अश्वोंद्वारा उस सेनामें प्रवेश करके देखा कि पाण्ड्‌यनरेशने आपकी सेनाको अत्यन्त पीड़ित कर दिया है; यह देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स हि नानाविधैर्बाणैरिष्वस्त्रप्रवरो युधि ॥ ५६ ॥
न्यहनद् द्विषतां पूगान् गतासूनन्तको यथा।

मूलम्

स हि नानाविधैर्बाणैरिष्वस्त्रप्रवरो युधि ॥ ५६ ॥
न्यहनद् द्विषतां पूगान् गतासूनन्तको यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे यमराज आयुरहित प्राणियोंके प्राण हर लेते हैं, उसी प्रकार धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ पाण्ड्‌य युद्धस्थलमें नाना प्रकारके बाणोंद्वारा शत्रुसमूहोंका नाश कर रहे थे॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजवाजिमनुष्याणां शरीराणि शितैः शरैः ॥ ५७ ॥
भित्त्वा प्रहरतां श्रेष्ठो विदेहासूनपातयत्।

मूलम्

गजवाजिमनुष्याणां शरीराणि शितैः शरैः ॥ ५७ ॥
भित्त्वा प्रहरतां श्रेष्ठो विदेहासूनपातयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रहार करनेवाले योद्धाओंमें श्रेष्ठ पाण्ड्‌य अपने तीखे बाणोंसे हाथी, घोड़े और मनुष्योंके शरीरोंको विदीर्ण करके उन्हें देह और प्राणोंसे शून्य एवं धराशायी कर देते थे॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शत्रुप्रवीरैरस्त्राणि नानाशस्त्राणि सायकैः ।
छित्त्वा तानवधीच्छत्रून् पाण्ड्‌यः शक्र इवासुरान् ॥ ५८ ॥

मूलम्

शत्रुप्रवीरैरस्त्राणि नानाशस्त्राणि सायकैः ।
छित्त्वा तानवधीच्छत्रून् पाण्ड्‌यः शक्र इवासुरान् ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे इन्द्र असुरोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार पाण्ड्‌यनरेश शत्रुवीरोंद्वारा चलाये गये नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंको अपने बाणोंद्वारा नष्ट करके उन शत्रुओंका वध कर डालते थे॥५८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि संकुलयुद्धे एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें संकुलयुद्धविषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१९॥