०१२

भागसूचना

द्वादशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दोनों सेनाओंका घोर युद्ध और भीमसेनके द्वारा क्षेमधूर्तिका वध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते सेनेऽन्योन्यमासाद्य प्रहृष्टाश्वनरद्विपे ।
बृहत्यौ सम्प्रजह्राते देवासुरसमप्रभे ॥ १ ॥

मूलम्

ते सेनेऽन्योन्यमासाद्य प्रहृष्टाश्वनरद्विपे ।
बृहत्यौ सम्प्रजह्राते देवासुरसमप्रभे ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! उन दोनों सेनाओंके हाथी, घोड़े और मनुष्य बहुत प्रसन्न थे। देवताओं तथा असुरोंके समान प्रकाशित होनेवाली वे दोनों विशाल सेनाएँ परस्पर भिड़कर अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार करने लगीं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो नररथाश्वेभाः पत्तयश्चोग्रविक्रमाः ।
सम्प्रहारान् भृशं चक्रुर्देहपाप्मासुनाशनान् ॥ २ ॥

मूलम्

ततो नररथाश्वेभाः पत्तयश्चोग्रविक्रमाः ।
सम्प्रहारान् भृशं चक्रुर्देहपाप्मासुनाशनान् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् भयंकर पराक्रमी रथी, हाथीसवार, घुड़सवार और पैदल सैनिक शरीर, प्राण और पापोंका विनाश करनेवाले घोर प्रहार बड़े जोर-जोरसे करने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्णचन्द्रार्कपद्मानां कान्तिभिर्गन्धतः समैः ।
उत्तमाङ्गैर्नृसिंहानां नृसिंहास्तस्तरुर्महीम् ॥ ३ ॥

मूलम्

पूर्णचन्द्रार्कपद्मानां कान्तिभिर्गन्धतः समैः ।
उत्तमाङ्गैर्नृसिंहानां नृसिंहास्तस्तरुर्महीम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्योंमें सिंहके समान पराक्रमी वीरोंने विपक्षी पुरुषसिंहोंके मस्तकोंको काट-काटकर उनके द्वारा धरतीको पाटने लगे। उनके वे मस्तक पूर्ण चन्द्रमा और सूर्यके समान कान्तिमान् तथा कमलोंके समान सुगन्धित थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्धचन्द्रैस्तथा भल्लैः क्षुरप्रैरसिपट्टिशैः ।
परश्वधैश्चाप्यकृन्तन्नुत्तमाङ्गानि युध्यताम् ॥ ४ ॥

मूलम्

अर्धचन्द्रैस्तथा भल्लैः क्षुरप्रैरसिपट्टिशैः ।
परश्वधैश्चाप्यकृन्तन्नुत्तमाङ्गानि युध्यताम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्द्धचन्द्र, भल्ल, क्षुरप्र, खड्‌ग, पट्टिश और फरसोंद्वारा वे योद्धाओंके मस्तक काटने लगे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यायतायतबाहूनां व्यायतायतबाहुभिः ।
बाहवः पातिता रेजुर्धरण्यां सायुधाङ्गदाः ॥ ५ ॥

मूलम्

व्यायतायतबाहूनां व्यायतायतबाहुभिः ।
बाहवः पातिता रेजुर्धरण्यां सायुधाङ्गदाः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हृष्ट-पुष्ट और लंबी भुजाओंवाले वीरोंने, हृष्ट-पुष्ट और लंबी बाँहोंवाले योद्धाओंकी बाँहें पृथ्वीपर काट गिरायीं। वे भुजाएँ आयुधों और अंगदोंसहित शोभा पा रही थीं॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तैः स्फुरद्भिर्मही भाति रक्ताङ्‌गुलितलैस्तथा।
गरुडप्रहितैरुग्रैः पञ्चास्यैरुरगैरिव ॥ ६ ॥

मूलम्

तैः स्फुरद्भिर्मही भाति रक्ताङ्‌गुलितलैस्तथा।
गरुडप्रहितैरुग्रैः पञ्चास्यैरुरगैरिव ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके तलवे और अंगुलियाँ लाल रंगकी थीं, उन तड़पती हुई भुजाओंसे रणभूमिकी वैसी ही शोभा हो रही थी, मानो वहाँ गरुडके गिराये हुए भयंकर पंचमुख सर्प छटपटा रहे हों॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्विरदस्यन्दनाश्वेभ्यः पेतुर्वीरा द्विषद्धताः ।
विमानेभ्यो यथा क्षीणे पुण्ये स्वर्गसदस्तथा ॥ ७ ॥

मूलम्

द्विरदस्यन्दनाश्वेभ्यः पेतुर्वीरा द्विषद्धताः ।
विमानेभ्यो यथा क्षीणे पुण्ये स्वर्गसदस्तथा ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंद्वारा मारे गये वीर हाथी, रथ और घोड़ोंसे उसी प्रकार गिर रहे थे, जैसे स्वर्गवासी जीव पुण्य क्षीण होनेपर वहाँके विमानोंसे नीचे गिर पड़ते हैं॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदाभिरन्ये गुर्वीभिः परिघैर्मुसलैरपि ।
पोथिताः शतशः पेतुर्वीरा वीरतरै रणे ॥ ८ ॥

मूलम्

गदाभिरन्ये गुर्वीभिः परिघैर्मुसलैरपि ।
पोथिताः शतशः पेतुर्वीरा वीरतरै रणे ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अन्य सैकड़ों वीर बड़े-बड़े वीरोंद्वारा भारी गदाओं, परिघों और मुसलोंसे कुचले जाकर रणभूमिमें गिर रहे थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथा रथैर्विमथिता मत्ता मत्तैर्द्विपा द्विपैः।
सादिनः सादिभिश्चैव तस्मिन् परमसंकुले ॥ ९ ॥

मूलम्

रथा रथैर्विमथिता मत्ता मत्तैर्द्विपा द्विपैः।
सादिनः सादिभिश्चैव तस्मिन् परमसंकुले ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस भारी घमासान युद्धमें रथोंने रथोंको मथ डाला, मतवाले हाथियोंने मदमत्त गजराजोंको धराशायी कर दिया और घुड़सवारोंने घुड़सवारोंको कुचल डाला॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथैर्नरा रथा नागैरश्वारोहाश्च पत्तिभिः।
अश्वारोहैः पदाताश्च निहता युधि शेरते ॥ १० ॥

मूलम्

रथैर्नरा रथा नागैरश्वारोहाश्च पत्तिभिः।
अश्वारोहैः पदाताश्च निहता युधि शेरते ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंद्वारा मारे गये पैदल मनुष्य, हाथियोंद्वारा कुचले गये रथ और रथी, पैदलोंद्वारा मारे गये घुड़सवार और घुड़सवारोंद्वारा कालके गालमें भेजे गये पैदल सिपाही उस युद्धभूमिमें सो रहे थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथाश्वपत्तयो नागै रथाश्वेभाश्च पत्तिभिः।
रथपत्तिद्विपाश्चाश्वै रथैश्चापि नरद्विपाः ॥ ११ ॥

मूलम्

रथाश्वपत्तयो नागै रथाश्वेभाश्च पत्तिभिः।
रथपत्तिद्विपाश्चाश्वै रथैश्चापि नरद्विपाः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गजों और गजारोहियोंने रथियों, घुड़सवारों और पैदलोंको मार गिराया, पैदलोंने रथियों, घुड़सवारों और हाथीसवारोंको धराशायी कर दिया, घुड़सवारोंने रथियों, पैदलों और गजारोहियोंको मार डाला तथा रथियोंने भी पैदल मनुष्यों और गजारोहियोंको मार गिराया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथाश्वेभनराणां तु नराश्वेभरथैः कृतम्।
पाणिपादैश्च शस्त्रैश्च रथैश्च कदनं महत् ॥ १२ ॥

मूलम्

रथाश्वेभनराणां तु नराश्वेभरथैः कृतम्।
पाणिपादैश्च शस्त्रैश्च रथैश्च कदनं महत् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पैदल, घुड़सवार, हाथीसवार तथा रथियोंने रथियों, घुड़सवारों, हाथीसवारों और पैदलोंका हाथों, पैरों, अस्त्र-शस्त्रों एवं रथोंद्वारा महान् संहार कर डाला॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा तस्मिन् बले शूरैर्वध्यमाने हतेऽपि च।
अस्मानभ्याययुः पार्था वृकोदरपुरोगमाः ॥ १३ ॥

मूलम्

तथा तस्मिन् बले शूरैर्वध्यमाने हतेऽपि च।
अस्मानभ्याययुः पार्था वृकोदरपुरोगमाः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार जब शूरवीरोंद्वारा वह सेना मारी जाने लगी और मारी गयी, तब कुन्तीके पुत्रोंने भीमसेनको आगे रखकर हमलोगोंपर आक्रमण किया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः।
सात्यकिश्चेकितानश्च द्राविडैः सैनिकैः सह ॥ १४ ॥
वृता व्यूहेन महता पाण्ड्याश्चोलाः सकेरलाः।

मूलम्

धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः।
सात्यकिश्चेकितानश्च द्राविडैः सैनिकैः सह ॥ १४ ॥
वृता व्यूहेन महता पाण्ड्याश्चोलाः सकेरलाः।

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, द्रौपदीके पुत्र, प्रभद्रक, सात्यकि, चेकितान, द्राविड सैनिकोंसहित महान् व्यूहसे घिरे हुए पाण्ड्य, चोल तथा केरल योद्धाओंने धावा किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यूढोरस्का दीर्घभुजाः प्रांशवः पृथुलोचनाः ॥ १५ ॥
आपीडिनो रक्तदन्ता मत्तमातङ्गविक्रमाः ।

मूलम्

व्यूढोरस्का दीर्घभुजाः प्रांशवः पृथुलोचनाः ॥ १५ ॥
आपीडिनो रक्तदन्ता मत्तमातङ्गविक्रमाः ।

अनुवाद (हिन्दी)

इन सबकी छाती चौड़ी और भुजाएँ तथा आँखें बड़ी थीं। वे सब-के-सब ऊँचे कदके थे। उन्होंने भाँति-भाँतिके शिरोभूषण एवं हार धारण किये थे। उनके दाँत लाल थे और वे मतवाले हाथीके समान पराक्रमी थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानाविरागवसना गन्धचूर्णावचूर्णिताः ॥ १६ ॥
बद्धासयः पाशहस्ता वारणप्रतिवारणाः ।

मूलम्

नानाविरागवसना गन्धचूर्णावचूर्णिताः ॥ १६ ॥
बद्धासयः पाशहस्ता वारणप्रतिवारणाः ।

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने अनेक प्रकारके रंगीन वस्त्र पहन रखे थे और अपने अंगोंमें सुगन्धित चूर्ण लगा रखा था। उनकी कमरमें तलवार बँधी थी, वे हाथमें पाश लिये हुए थे और हाथियोंको भी रोक देनेकी शक्ति रखते थे॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समानमृत्यवो राजन् नात्यजन्त परस्परम् ॥ १७ ॥
कलापिनश्चापहस्ता दीर्घकेशाः प्रियंवदाः ।
पत्तयः सादिनश्चान्ये घोररूपपराक्रमाः ॥ १८ ॥

मूलम्

समानमृत्यवो राजन् नात्यजन्त परस्परम् ॥ १७ ॥
कलापिनश्चापहस्ता दीर्घकेशाः प्रियंवदाः ।
पत्तयः सादिनश्चान्ये घोररूपपराक्रमाः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वे सभी सैनिक समानरूपसे मृत्युको वरण करनेकी प्रतिज्ञा करके एक-दूसरेका साथ नहीं छोड़ते थे। वे मस्तकपर मोरपंख धारण किये हुए थे। उनके हाथोंमें धनुष शोभा पाता था। उनके केश बहुत बड़े थे और वे प्रिय वचन बोलते थे। अन्यान्य पैदल और घुड़सवार भी बड़े भयंकर पराक्रमी थे॥१७-१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथापरे पुनः शूराश्चेदिपञ्चालकेकयाः ।
कारूषाः कोसलाः काञ्च्या मागधाश्चापि दुद्रुवुः ॥ १९ ॥

मूलम्

अथापरे पुनः शूराश्चेदिपञ्चालकेकयाः ।
कारूषाः कोसलाः काञ्च्या मागधाश्चापि दुद्रुवुः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर पुनः दूसरे शूरवीर चेदि, पांचाल, केकय, कारूष, कोसल, कांचीनिवासी और मागध सैनिक भी हमी लोगोंपर चढ़ आये॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां रथाश्वनागाश्च प्रवराश्चोग्रपत्तयः ।
नानावाद्यधरैर्हृष्टा नृत्यन्ति च हसन्ति च ॥ २० ॥

मूलम्

तेषां रथाश्वनागाश्च प्रवराश्चोग्रपत्तयः ।
नानावाद्यधरैर्हृष्टा नृत्यन्ति च हसन्ति च ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके रथ, घोड़े और हाथी उत्तम कोटिके थे। पैदल सैनिक भी बड़े भयंकर थे। वे नाना प्रकारके बाजे बजाने-वालोंके साथ हर्षमें भरकर नाचते-कूदते और हँसते थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य सैन्यस्य महतो महामात्रवरैर्वृतः।
मध्ये वृकोदरोऽभ्यायात् त्वदीयान् नागधूर्गतः ॥ २१ ॥

मूलम्

तस्य सैन्यस्य महतो महामात्रवरैर्वृतः।
मध्ये वृकोदरोऽभ्यायात् त्वदीयान् नागधूर्गतः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस विशाल सेनाके मध्यभागमें हाथीकी पीठपर बड़े-बड़े महावतोंसे घिरकर बैठे हुए भीमसेन आपके सैनिकोंकी ओर बढ़े आ रहे थे॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स नागप्रवरोऽत्युग्रो विधिवत् कल्पितो बभौ।
उदयाद्र्यग्र्यभवनं यथाभ्युदितभास्करम् ॥ २२ ॥

मूलम्

स नागप्रवरोऽत्युग्रो विधिवत् कल्पितो बभौ।
उदयाद्र्यग्र्यभवनं यथाभ्युदितभास्करम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस अत्यन्त भयंकर गजराजको विधिपूर्वक सजाया गया था, वह सूर्योदयसे युक्त उदयाचलके उच्चतम शिखरके समान सुशोभित होता था॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यायसं वर्म वरं वररत्नविभूषितम्।
ताराव्याप्तस्य नभसः शारदस्य समत्विषम् ॥ २३ ॥

मूलम्

तस्यायसं वर्म वरं वररत्नविभूषितम्।
ताराव्याप्तस्य नभसः शारदस्य समत्विषम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसका लोहेका बना हुआ उत्तम कवच श्रेष्ठ रत्नोंसे विभूषित होकर ताराओंसे भरे हुए शरत्कालीन आकाशके समान प्रकाशित हो रहा था॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तोमरव्यग्रकरश्चारुमौलिः स्वलंकृतः ।
शरन्मध्यंदिनार्काभस्तेजसा व्यदहद् रिपून् ॥ २४ ॥

मूलम्

स तोमरव्यग्रकरश्चारुमौलिः स्वलंकृतः ।
शरन्मध्यंदिनार्काभस्तेजसा व्यदहद् रिपून् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय सुन्दर मुकुट और आभूषणोंसे विभूषित हो हाथमें तोमर लेकर शरत्कालके मध्याह्न सूर्यके समान प्रकाशित होनेवाले भीमसेन अपने तेजसे शत्रुओंको दग्ध करने लगे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं दृष्ट्‌वा द्विरदं दूरात् क्षेमधूर्तिर्द्विपस्थितः।
आह्वयन्नभिदुद्राव प्रमनाः प्रमनस्तरम् ॥ २५ ॥

मूलम्

तं दृष्ट्‌वा द्विरदं दूरात् क्षेमधूर्तिर्द्विपस्थितः।
आह्वयन्नभिदुद्राव प्रमनाः प्रमनस्तरम् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके उस हाथीको दूरसे ही देखकर हाथीपर ही बैठे हुए महामना क्षेमधूर्तिने महामनस्वी भीमसेनको ललकारते हुए उनपर धावा किया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः समभवद् युद्धं द्विपयोरुग्ररूपयोः।
यदृच्छया द्रुमवतोर्महापर्वतयोरिव ॥ २६ ॥

मूलम्

तयोः समभवद् युद्धं द्विपयोरुग्ररूपयोः।
यदृच्छया द्रुमवतोर्महापर्वतयोरिव ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे वृक्षोंसे भरे हुए दो महान् पर्वत दैवेच्छासे परस्पर टकरा रहे हों, उसी प्रकार उन भयानक रूपधारी दोनों गजराजोंमें भारी युद्ध छिड़ गया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संसक्तनागौ तौ वीरौ तोमरैरितरेतरम्।
बलवत् सूर्यरश्म्याभैर्भित्त्वान्योन्यं विनेदतुः ॥ २७ ॥

मूलम्

संसक्तनागौ तौ वीरौ तोमरैरितरेतरम्।
बलवत् सूर्यरश्म्याभैर्भित्त्वान्योन्यं विनेदतुः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनके हाथी एक-दूसरेसे उलझे हुए थे, वे दोनों वीर क्षेमधूर्ति और भीमसेन सूर्यकी किरणोंके समान चमकीले तोमरोंद्वारा एक-दूसरेको बलपूर्वक विदीर्ण करते हुए जोर-जोरसे गर्जने लगे॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यपसृत्य तु नागाभ्यां मण्डलानि विचेरतुः।
प्रगृह्य चोभौ धनुषी जघ्नतुर्वै परस्परम् ॥ २८ ॥

मूलम्

व्यपसृत्य तु नागाभ्यां मण्डलानि विचेरतुः।
प्रगृह्य चोभौ धनुषी जघ्नतुर्वै परस्परम् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर हाथियोंद्वारा ही पीछे हटकर वे दोनों मण्डलाकार विचरने और धनुष लेकर एक-दूसरेपर बाणोंका प्रहार करने लगे॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्ष्वेडितास्फोटितरवैर्बाणशब्दैस्तु सर्वतः ।
तौ जनं हर्षयन्तौ च सिंहनादं प्रचक्रतुः ॥ २९ ॥

मूलम्

क्ष्वेडितास्फोटितरवैर्बाणशब्दैस्तु सर्वतः ।
तौ जनं हर्षयन्तौ च सिंहनादं प्रचक्रतुः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे गर्जने, ताल ठोंकने और बाणोंके शब्दसे चारों ओरके योद्धाओंको हर्ष प्रदान करते हुए सिंहनाद कर रहे थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समुद्यतकराभ्यां तौ द्विपाभ्यां कृतिनावुभौ।
वातोद्‌धूतपताकाभ्यां युयुधाते महाबलौ ॥ ३० ॥

मूलम्

समुद्यतकराभ्यां तौ द्विपाभ्यां कृतिनावुभौ।
वातोद्‌धूतपताकाभ्यां युयुधाते महाबलौ ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों महाबली और विद्वान् योद्धा उन सूँड़ उठाये हुए दोनों हाथियोंद्वारा युद्ध कर रहे थे। उस समय उन हाथियोंके ऊपर लगी हुई पताकाएँ हवाके वेगसे फहरा रही थीं॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावन्योन्यस्य धनुषी छित्त्वान्योन्यं विनेदतुः।
शक्तितोमरवर्षेण प्रावृण्मेघाविवाम्बुभिः ॥ ३१ ॥

मूलम्

तावन्योन्यस्य धनुषी छित्त्वान्योन्यं विनेदतुः।
शक्तितोमरवर्षेण प्रावृण्मेघाविवाम्बुभिः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे वर्षाकालके दो मेघ पानी बरसा रहे हों, उसी प्रकार शक्ति और तोमरोंकी वर्षासे एक-दूसरेके धनुषको काटकर वे दोनों ही परस्पर गर्जन-तर्जन करने लगे॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षेमधूर्तिस्तदा भीमं तोमरेण स्तनान्तरे।
निर्बिभेदातिवेगेन षड्‌भिश्चाप्यपरैर्नदन् ॥ ३२ ॥

मूलम्

क्षेमधूर्तिस्तदा भीमं तोमरेण स्तनान्तरे।
निर्बिभेदातिवेगेन षड्‌भिश्चाप्यपरैर्नदन् ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय क्षेमधूर्तिने भीमसेनकी छातीमें बड़े वेगसे एक तोमर धँसा दिया। फिर गर्जना करते हुए उसने उन्हें छः तोमर और मारे॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स भीमसेनः शुशुभे तोमरै रङ्गमाश्रितैः।
क्रोधदीप्तवपुर्मेघैः सप्तसप्तिरिवांशुमान् ॥ ३३ ॥

मूलम्

स भीमसेनः शुशुभे तोमरै रङ्गमाश्रितैः।
क्रोधदीप्तवपुर्मेघैः सप्तसप्तिरिवांशुमान् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने शरीरमें धँसे हुए उन तोमरोंद्वारा क्रोधसे उद्दीप्त शरीरवाले भीमसेन मेघोंद्वारा सात घोड़ोंवाले सूर्यके समान सुशोभित हो रहे थे॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भास्करवर्णाभमञ्जोगतिमयस्मयम् ।
ससर्ज तोमरं भीमः प्रत्यमित्राय यत्नवान् ॥ ३४ ॥

मूलम्

ततो भास्करवर्णाभमञ्जोगतिमयस्मयम् ।
ससर्ज तोमरं भीमः प्रत्यमित्राय यत्नवान् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीमसेनने सूर्यके समान प्रकाशमान तथा सीधी गतिसे जानेवाले एक लोहमय तोमरको अपने शत्रुपर प्रयत्नपूर्वक छोड़ा॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कुलूताधिपतिश्चापमानम्य सायकैः ।
दशभिस्तोमरं भित्त्वा षष्ट्या विव्याध पाण्डवम् ॥ ३५ ॥

मूलम्

ततः कुलूताधिपतिश्चापमानम्य सायकैः ।
दशभिस्तोमरं भित्त्वा षष्ट्या विव्याध पाण्डवम् ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख कुलूतदेशके राजा क्षेमधूर्तिने अपने धनुषको नवाकर दस सायकोंसे उस तोमरको काट डाला और साठ बाण मारकर भीमसेनको भी घायल कर दिया॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ कार्मुकमादाय भीमो जलदनिःस्वनम्।
रिपोरभ्यर्दयन्नागमुन्नदन् पाण्डवः शरैः ॥ ३६ ॥

मूलम्

अथ कार्मुकमादाय भीमो जलदनिःस्वनम्।
रिपोरभ्यर्दयन्नागमुन्नदन् पाण्डवः शरैः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् गर्जते हुए पाण्डुपुत्र भीमसेनने मेघ-गर्जनाके समान गम्भीर घोष करनेवाले धनुषको लेकर अपने बाणोंद्वारा शत्रुके हाथीको पीड़ित कर दिया॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स शरौघार्दितो नागो भीमसेनेन संयुगे।
गृह्यमाणोऽपि नातिष्ठद् वातोद्‌धूत इवाम्बुदः ॥ ३७ ॥

मूलम्

स शरौघार्दितो नागो भीमसेनेन संयुगे।
गृह्यमाणोऽपि नातिष्ठद् वातोद्‌धूत इवाम्बुदः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धस्थलमें भीमसेनके बाणसमूहोंसे पीड़ित हुआ वह गजराज हवाके उड़ाये हुए बादलोंके समान रोकनेपर भी वहाँ रुक न सका॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमभ्यधावद् द्विरदं भीमो भीमस्य नागराट्।
महावातेरितं मेघं वातोद्‌धूत इवाम्बुदः ॥ ३८ ॥

मूलम्

तमभ्यधावद् द्विरदं भीमो भीमस्य नागराट्।
महावातेरितं मेघं वातोद्‌धूत इवाम्बुदः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे आँधीके उड़ाये हुए मेघके पीछे वायुप्रेरित दूसरा मेघ जा रहा हो, उसी प्रकार भीमसेनका भयंकर गजराज क्षेमधूर्तिके उस हाथीका पीछा करने लगा॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संनिवार्यात्मनो नागं क्षेमधूर्तिः प्रतापवान्।
विव्याधाभिद्रुतं बाणैर्भीमसेनस्य कुञ्जरम् ॥ ३९ ॥

मूलम्

संनिवार्यात्मनो नागं क्षेमधूर्तिः प्रतापवान्।
विव्याधाभिद्रुतं बाणैर्भीमसेनस्य कुञ्जरम् ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय प्रतापी क्षेमधूर्तिने अपने हाथीको किसी प्रकार रोककर सामने आते हुए भीमसेनके हाथीको बाणोंसे बींध डाला॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः साधुविसृष्टेन क्षुरेणानतपर्वणा ।
छित्त्वा शरासनं शत्रोर्नागमामित्रमार्दयत् ॥ ४० ॥

मूलम्

ततः साधुविसृष्टेन क्षुरेणानतपर्वणा ।
छित्त्वा शरासनं शत्रोर्नागमामित्रमार्दयत् ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद अच्छी तरह छोड़े हुए झुकी हुई गाँठवाले क्षुर नामक बाणसे भीमसेनने शत्रुके धनुषको काटकर उसके हाथीको पुनः अच्छी तरह पीड़ित किया॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रुद्धो रणे भीमं क्षेमधूर्तिः पराभिनत्।
जघान चास्य द्विरदं नाराचैः सर्वमर्मसु ॥ ४१ ॥

मूलम्

ततः क्रुद्धो रणे भीमं क्षेमधूर्तिः पराभिनत्।
जघान चास्य द्विरदं नाराचैः सर्वमर्मसु ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब क्षेमधूर्तिने कुपित हो रणभूमिमें भीमसेनको गहरी चोट पहुँचायी और अनेक नाराचोंद्वारा उनके हाथीके सम्पूर्ण मर्मस्थानोंमें आघात किया॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स पपात महानागो भीमसेनस्य भारत।
पुरा नागस्य पतनादवप्लुत्य स्थितो महीम् ॥ ४२ ॥

मूलम्

स पपात महानागो भीमसेनस्य भारत।
पुरा नागस्य पतनादवप्लुत्य स्थितो महीम् ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! इससे भीमसेनका महान् गजराज पृथ्वीपर गिर पड़ा। उसके गिरनेसे पहले ही भीमसेन कूदकर भूमिपर खड़े हो गये॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

‌तस्य भीमोऽपि द्विरदं गदया समपोथयत्।
तस्मात् प्रमथितान्नागात् क्षेमधूर्तिमवप्लुतम् ॥ ४३ ॥
उद्यतायुधमायान्तं गदयाहन् वृकोदरः ।
स पपात हतः सासिर्व्यसुस्तमभितो द्विपम् ॥ ४४ ॥

मूलम्

‌तस्य भीमोऽपि द्विरदं गदया समपोथयत्।
तस्मात् प्रमथितान्नागात् क्षेमधूर्तिमवप्लुतम् ॥ ४३ ॥
उद्यतायुधमायान्तं गदयाहन् वृकोदरः ।
स पपात हतः सासिर्व्यसुस्तमभितो द्विपम् ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर भीमने भी अपनी गदासे क्षेमधूर्तिके हाथीको मार डाला। फिर जब उस मरे हुए हाथीसे कूदकर क्षेमधूर्ति तलवार उठाये सामने आने लगा, उस समय भीमसेनने उसपर भी गदासे प्रहार किया। गदाकी चोट खाकर उसके प्राणपखेरू उड़ गये और वह तलवार लिये हुए अपने हाथीके पास ही गिर पड़ा॥४३-४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वज्रप्रभग्नमचलं सिंहो वज्रहतो यथा।
तं हतं नृपतिं दृष्ट्‌वा कुलूतानां यशस्करम्।
प्राद्रवद् व्यथिता सेना त्वदीया भरतर्षभ ॥ ४५ ॥

मूलम्

वज्रप्रभग्नमचलं सिंहो वज्रहतो यथा।
तं हतं नृपतिं दृष्ट्‌वा कुलूतानां यशस्करम्।
प्राद्रवद् व्यथिता सेना त्वदीया भरतर्षभ ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! जैसे वज्रके आघातसे टूट-फूटकर गिरे हुए पर्वतके समीप वज्रका मारा हुआ सिंह गिरा हो, उसी प्रकार उस हाथीके समीप क्षेमधूर्ति धराशायी हो रहे थे। कुलूतोंका यश बढ़ानेवाले राजा क्षेमधूर्तिको मारा गया देख आपकी सेना व्यथित होकर भागने लगी॥४५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि क्षेमधूर्तिवधे द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें क्षेमधूर्तिका वधविषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१२॥