भागसूचना
षष्ठोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कौरवोंद्वारा मारे गये प्रधान-प्रधान पाण्डव-पक्षके वीरोंका परिचय
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
आख्याता मामकास्तात निहता युधि पाण्डवैः।
हतांश्च पाण्डवेयानां मामकैर्ब्रूहि संजय ॥ १ ॥
मूलम्
आख्याता मामकास्तात निहता युधि पाण्डवैः।
हतांश्च पाण्डवेयानां मामकैर्ब्रूहि संजय ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्रने कहा— तात संजय! तुमने युद्धमें पाण्डवोंद्वारा मारे गये मेरे पक्षके वीरोंके नाम बताये हैं। अब मेरे योद्धाओंद्वारा मारे गये पाण्डव-योद्धाओंका परिचय दो॥१॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुन्तयो युधि विक्रान्ता महासत्त्वा महाबलाः।
सानुबन्धाः सहामात्या गाङ्गेयेन निपातिताः ॥ २ ॥
मूलम्
कुन्तयो युधि विक्रान्ता महासत्त्वा महाबलाः।
सानुबन्धाः सहामात्या गाङ्गेयेन निपातिताः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— राजन्! अत्यन्त धीर, महान् बलवान् और पराक्रमी जो कुन्तिभोजदेशके योद्धा थे, उन्हें गंगानन्दन भीष्मने मन्त्रियों तथा सगे-सम्बन्धियोंसहित मार गिराया॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नारायणा बलभद्राः शूराश्च शतशोऽपरे।
अनुरक्ताश्च वीरेण भीष्मेण युधि पातिताः ॥ ३ ॥
मूलम्
नारायणा बलभद्राः शूराश्च शतशोऽपरे।
अनुरक्ताश्च वीरेण भीष्मेण युधि पातिताः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डवोंमें अनुराग रखनेवाले जो नारायण और बलभद्र नामवाले सैकड़ों शूरवीर थे, उन्हें भी वीरवर भीष्मने युद्धमें धराशायी कर दिया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समः किरीटिना संख्ये वीर्येण च बलेन च।
सत्यजित् सत्यसंधेन द्रोणेन निहतो युधि ॥ ४ ॥
मूलम्
समः किरीटिना संख्ये वीर्येण च बलेन च।
सत्यजित् सत्यसंधेन द्रोणेन निहतो युधि ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सत्यजित् संग्राममें किरीटधारी अर्जुनके समान बल और पराक्रमसे सम्पन्न था, जिसे युद्धस्थलमें सत्यप्रतिज्ञ द्रोणाचार्यने मार डाला॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पञ्चालानां महेष्वासाः सर्वे युद्धविशारदाः।
द्रोणेन सह संगम्य गता वैवस्वतक्षयम् ॥ ५ ॥
मूलम्
पञ्चालानां महेष्वासाः सर्वे युद्धविशारदाः।
द्रोणेन सह संगम्य गता वैवस्वतक्षयम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धकी कलामें कुशल सम्पूर्ण पांचाल महाधनुर्धर द्रोणाचार्यसे टक्कर लेकर यमलोकमें जा पहुँचे हैं॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा विराटद्रुपदौ वृद्धौ सहसुतौ नृपौ।
पराक्रमन्तौ मित्रार्थे द्रोणेन निहतौ रणे ॥ ६ ॥
मूलम्
तथा विराटद्रुपदौ वृद्धौ सहसुतौ नृपौ।
पराक्रमन्तौ मित्रार्थे द्रोणेन निहतौ रणे ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मित्रके लिये पराक्रम करनेवाले बूढ़े राजा विराट और द्रुपद अपने पुत्रोंसहित द्रोणाचार्यके द्वारा रणभूमिमें मारे गये हैं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यो बाल एव समरे सम्मितः सव्यसाचिना।
केशवेन च दुर्धर्षो बलदेवेन वा विभो ॥ ७ ॥
परेषां कदनं कृत्वा महारथविशारदः।
परिवार्य महामात्रैः षड्भिः परमकै रथैः ॥ ८ ॥
अशक्नुवद्भिर्बीभत्सुमभिमन्युर्निपातितः ।
मूलम्
यो बाल एव समरे सम्मितः सव्यसाचिना।
केशवेन च दुर्धर्षो बलदेवेन वा विभो ॥ ७ ॥
परेषां कदनं कृत्वा महारथविशारदः।
परिवार्य महामात्रैः षड्भिः परमकै रथैः ॥ ८ ॥
अशक्नुवद्भिर्बीभत्सुमभिमन्युर्निपातितः ।
अनुवाद (हिन्दी)
जो बाल्यावस्थामें ही दुर्धर्ष वीर था और सव्यसाची अर्जुन, भगवान् श्रीकृष्ण अथवा बलदेवजीके समान समझा जाता था तथा जो महान् रथयुद्धमें विशेष कुशल था, वह अभिमन्यु शत्रुओंका संहार करके छः बड़े-बड़े महारथियोंद्वारा, जिनका अर्जुनपर वश नहीं चलता था, चारों ओरसे घेरकर मार डाला गया॥७-८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृतं तं विरथं वीरं क्षत्रधर्मे व्यवस्थितम् ॥ ९ ॥
दौःशासनिर्महाराज सौभद्रं हतवान् रणे।
मूलम्
कृतं तं विरथं वीरं क्षत्रधर्मे व्यवस्थितम् ॥ ९ ॥
दौःशासनिर्महाराज सौभद्रं हतवान् रणे।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! क्षत्रिय-धर्ममें तत्पर रहनेवाला वीर सुभद्राकुमार अभिमन्यु रथहीन कर दिया गया था, उस अवस्थामें दुःशासनके पुत्रने उसे रणभूमिमें मारा था॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सपत्नानां निहन्ता च महत्या सेनया वृतः ॥ १० ॥
अम्बष्ठस्य सुतः श्रीमान् मित्रहेतोः पराक्रमन्।
आसाद्य लक्ष्मणं वीरं दुर्योधनसुतं रणे ॥ ११ ॥
सुमहत् कदनं कृत्वा गतो वैवस्वतक्षयम्।
मूलम्
सपत्नानां निहन्ता च महत्या सेनया वृतः ॥ १० ॥
अम्बष्ठस्य सुतः श्रीमान् मित्रहेतोः पराक्रमन्।
आसाद्य लक्ष्मणं वीरं दुर्योधनसुतं रणे ॥ ११ ॥
सुमहत् कदनं कृत्वा गतो वैवस्वतक्षयम्।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुहन्ता श्रीमान् अम्बष्ठपुत्र अपनी विशाल सेनासे घिरकर मित्रोंके लिये पराक्रम दिखा रहा था। वह शत्रु-सेनाका महान् संहार करके रणभूमिमें दुर्योधनके वीर पुत्र लक्ष्मणसे टक्कर ले यमलोकमें जा पहुँचा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बृहन्तः सुमहेष्वासः कृतास्त्रो युद्धदुर्मदः ॥ १२ ॥
दुःशासनेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।
मूलम्
बृहन्तः सुमहेष्वासः कृतास्त्रो युद्धदुर्मदः ॥ १२ ॥
दुःशासनेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
अस्त्र-विद्याके विशेषज्ञ रणदुर्मद महाधनुर्धर बृहन्तको दुःशासनने बलपूर्वक यमलोक पहुँचाया था॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मणिमान् दण्डधारश्च राजानौ युद्धदुर्मदौ ॥ १३ ॥
पराक्रमन्तौ मित्रार्थे द्रोणेन युधि पातितौ।
मूलम्
मणिमान् दण्डधारश्च राजानौ युद्धदुर्मदौ ॥ १३ ॥
पराक्रमन्तौ मित्रार्थे द्रोणेन युधि पातितौ।
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धमें उन्मत्त होकर जूझनेवाले राजा मणिमान् और दण्डधार मित्रोंके लिये पराक्रम दिखाते थे। उन दोनोंको द्रोणाचार्यने युद्धमें मार गिराया है॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अंशुमान् भोजराजस्तु सहसैन्यो महारथः ॥ १४ ॥
भारद्वाजेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।
मूलम्
अंशुमान् भोजराजस्तु सहसैन्यो महारथः ॥ १४ ॥
भारद्वाजेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
सेनासहित भोजराज महारथी अंशुमान्को भरद्वाजनन्दन द्रोणने पराक्रम करके यमलोक पहुँचाया है॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सामुद्रश्चित्रसेनश्च सह पुत्रेण भारत ॥ १५ ॥
समुद्रसेनेन बलाद् गमितो यमसादनम्।
मूलम्
सामुद्रश्चित्रसेनश्च सह पुत्रेण भारत ॥ १५ ॥
समुद्रसेनेन बलाद् गमितो यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! समुद्रतटवर्ती राज्यके अधिपति चित्रसेन अपने पुत्रके साथ युद्धमें आकर समुद्रसेनके द्वारा बलपूर्वक यमलोक भेज दिया गया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अनूपवासी नीलश्च व्याघ्रदत्तश्च वीर्यवान् ॥ १६ ॥
अश्वत्थाम्ना विकर्णेन गमितो यमसादनम्।
मूलम्
अनूपवासी नीलश्च व्याघ्रदत्तश्च वीर्यवान् ॥ १६ ॥
अश्वत्थाम्ना विकर्णेन गमितो यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
समुद्रतटवासी नील और पराक्रमी व्याघ्रदत्त—इन दोनोंको क्रमशः अश्वत्थामा और विकर्णने यमलोक पहुँचा दिया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चित्रायुधश्चित्रयोधी कृत्वा च कदनं महत् ॥ १७ ॥
चित्रमार्गेण विक्रम्य विकर्णेन हतो मृधे।
मूलम्
चित्रायुधश्चित्रयोधी कृत्वा च कदनं महत् ॥ १७ ॥
चित्रमार्गेण विक्रम्य विकर्णेन हतो मृधे।
अनुवाद (हिन्दी)
विचित्र युद्ध करनेवाले चित्रायुध समरमें विचित्र रीतिसे पराक्रम करते हुए कौरव-सेनाका महान् संहार करके अन्तमें विकर्णके हाथसे मारे गये॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृकोदरसमो युद्धे वृतः कैकेययोधिभिः ॥ १८ ॥
कैकेयेन च विक्रम्य भ्रात्रा भ्राता निपातितः।
मूलम्
वृकोदरसमो युद्धे वृतः कैकेययोधिभिः ॥ १८ ॥
कैकेयेन च विक्रम्य भ्रात्रा भ्राता निपातितः।
अनुवाद (हिन्दी)
केकयदेशीय योद्धाओंसे घिरे हुए भीमके समान पराक्रमी केकयराजकुमारको उन्हींके भाई दूसरे केकयराजकुमारने बलपूर्वक मार गिराया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जनमेजयो गदायोधी पर्वतीयः प्रतापवान् ॥ १९ ॥
दुर्मुखेन महाराज तव पुत्रेण पातितः।
मूलम्
जनमेजयो गदायोधी पर्वतीयः प्रतापवान् ॥ १९ ॥
दुर्मुखेन महाराज तव पुत्रेण पातितः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! प्रतापी पर्वतीय राजा जनमेजय गदायुद्धमें कुशल थे। उन्हें आपके पुत्र दुर्मुखने धराशायी कर दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रोचमानौ नरव्याघ्रौ रोचमानौ ग्रहाविव ॥ २० ॥
द्रोणेन युगपद् राजन् दिवं सम्प्रापितौ शरैः।
मूलम्
रोचमानौ नरव्याघ्रौ रोचमानौ ग्रहाविव ॥ २० ॥
द्रोणेन युगपद् राजन् दिवं सम्प्रापितौ शरैः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! दो चमकते हुए ग्रहोंके समान नरश्रेष्ठ रोचमान, जो एक ही नामके दो भाई थे, द्रोणाचार्यके द्वारा बाणोंसे एक साथ ही स्वर्गलोक पहुँचा दिये गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नृपाश्च प्रतियुध्यन्तः पराक्रान्ता विशाम्पते ॥ २१ ॥
कृत्वा नसुकरं कर्म गता वैवस्वतक्षयम्।
मूलम्
नृपाश्च प्रतियुध्यन्तः पराक्रान्ता विशाम्पते ॥ २१ ॥
कृत्वा नसुकरं कर्म गता वैवस्वतक्षयम्।
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! और भी बहुत-से पराक्रमी नरेश आपकी सेनाका सामना करते हुए दुष्कर पराक्रम करके यमलोकमें जा पहुँचे हैं॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरुजित् कुन्तिभोजश्च मातुलौ सव्यसाचिनः ॥ २२ ॥
संग्रामनिर्जिताल्ँलोकान् गमितौ द्रोणसायकैः ।
मूलम्
पुरुजित् कुन्तिभोजश्च मातुलौ सव्यसाचिनः ॥ २२ ॥
संग्रामनिर्जिताल्ँलोकान् गमितौ द्रोणसायकैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
पुरुजित् और कुन्तिभोज दोनों सव्यसाची अर्जुनके मामा थे। द्रोणाचार्यके सायकोंने उन्हें भी उन लोकोंमें पहुँचा दिया, जो संग्राममें मारे जानेवाले वीरोंको प्राप्त होते हैं॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिभूः काशिराजश्च काशिकैर्बहुभिर्वृतः ॥ २३ ॥
वसुदानस्य पुत्रेण न्यासितो देहमाहवे।
मूलम्
अभिभूः काशिराजश्च काशिकैर्बहुभिर्वृतः ॥ २३ ॥
वसुदानस्य पुत्रेण न्यासितो देहमाहवे।
अनुवाद (हिन्दी)
काशिराज अभिभू बहुतेरे काशीनिवासी योद्धाओंसे घिरे हुए थे। वसुदानके पुत्रने युद्धस्थलमें उनसे उनके शरीरका परित्याग करवा दिया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अमितौजा युधामन्युरुत्तमौजाश्च वीर्यवान् ॥ २४ ॥
निहत्य शतशः शूरानस्मदीयैर्निपातिताः ।
मूलम्
अमितौजा युधामन्युरुत्तमौजाश्च वीर्यवान् ॥ २४ ॥
निहत्य शतशः शूरानस्मदीयैर्निपातिताः ।
अनुवाद (हिन्दी)
अमितौजा, युधामन्यु तथा पराक्रमी उत्तमौजा ये सैकड़ों शूरवीरोंका संहार करके हमारे सैनिकोंद्वारा मारे गये॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मित्रवर्मा च पाञ्चाल्यः क्षत्रधर्मा च भारत ॥ २५ ॥
द्रोणेन परमेष्वासौ गमितौ यमसादनम्।
मूलम्
मित्रवर्मा च पाञ्चाल्यः क्षत्रधर्मा च भारत ॥ २५ ॥
द्रोणेन परमेष्वासौ गमितौ यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! पांचालयोद्धा मित्रवर्मा और क्षत्रधर्मा महाधनुर्धर थे। उन्हें भी द्रोणाचार्यने यमलोक पहुँचा दिया॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डितनयो युद्धे क्षत्रदेवो युधां पतिः ॥ २६ ॥
लक्ष्मणेन हतो राजंस्तव पौत्रेण भारत।
मूलम्
शिखण्डितनयो युद्धे क्षत्रदेवो युधां पतिः ॥ २६ ॥
लक्ष्मणेन हतो राजंस्तव पौत्रेण भारत।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतवंशी नरेश! आपके पौत्र लक्ष्मणने युद्धमें योद्धाओंके स्वामी क्षत्रदेवको, जो शिखण्डीका पुत्र था, मार डाला॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुचित्रश्चित्रवर्मा च पितापुत्रौ महारथौ ॥ २७ ॥
प्रचरन्तौ महावीरौ द्रोणेन निहतौ रणे।
मूलम्
सुचित्रश्चित्रवर्मा च पितापुत्रौ महारथौ ॥ २७ ॥
प्रचरन्तौ महावीरौ द्रोणेन निहतौ रणे।
अनुवाद (हिन्दी)
सुचित्र और चित्रवर्मा ये दो महावीर महारथी परस्पर पिता-पुत्र थे। रणभूमिमें विचरते हुए इन दोनोंको द्रोणाचार्यने मार डाला॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वार्द्धक्षेमिर्महाराज समुद्र इव पर्वणि ॥ २८ ॥
आयुधक्षयमासाद्य प्रशान्तिं परमां गतः।
मूलम्
वार्द्धक्षेमिर्महाराज समुद्र इव पर्वणि ॥ २८ ॥
आयुधक्षयमासाद्य प्रशान्तिं परमां गतः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! जैसे पूर्णिमाके दिन समुद्र उमड़ पड़ता है, उसी प्रकार वृद्धक्षेमका पुत्र भी युद्धमें उद्धत हो उठा था, परंतु उसके सारे अस्त्र-शस्त्र नष्ट हो गये थे, इसलिये वह प्राणशून्य हो सदाके लिये परम शान्त हो गया॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सेनाविन्दुसुतः श्रेष्ठः शात्रवान् प्रहरन् युधि ॥ २९ ॥
बाह्लिकेन महाराज कौरवेन्द्रेण पातितः।
मूलम्
सेनाविन्दुसुतः श्रेष्ठः शात्रवान् प्रहरन् युधि ॥ २९ ॥
बाह्लिकेन महाराज कौरवेन्द्रेण पातितः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजाधिराज! सेनाविन्दुका श्रेष्ठ पुत्र रणभूमिमें शत्रुओंपर प्रहार कर रहा था। उस समय कौरवेन्द्र बाह्लीकने उसे मार गिराया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टकेतुर्महाराज चेदीनां प्रवरो रथः ॥ ३० ॥
कृत्वा नसुकरं कर्म गतो वैवस्वतक्षयम्।
मूलम्
धृष्टकेतुर्महाराज चेदीनां प्रवरो रथः ॥ ३० ॥
कृत्वा नसुकरं कर्म गतो वैवस्वतक्षयम्।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! चेदिदेशका श्रेष्ठ रथी धृष्टकेतु भी युद्धमें दुष्कर कर्म करके यमलोकका पथिक हो गया॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा सत्यधृतिर्वीरः कृत्वा कदनमाहवे ॥ ३१ ॥
पाण्डवार्थे पराक्रान्तो गमितो यमसादनम्।
मूलम्
तथा सत्यधृतिर्वीरः कृत्वा कदनमाहवे ॥ ३१ ॥
पाण्डवार्थे पराक्रान्तो गमितो यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डवोंके लिये पराक्रम प्रकट करनेवाले वीर सत्यधृतिने भी रणभूमिमें शत्रुओंका संहार करके यमलोककी राह ली॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सेनाबिन्दुः कुरुश्रेष्ठ कृत्वा कदनमाहवे ॥ ३२ ॥
पुत्रस्तु शिशुपालस्य सुकेतुः पृथिवीपतिः।
निहत्य शात्रवान् संख्ये द्रोणेन निहतो युधि ॥ ३३ ॥
मूलम्
सेनाबिन्दुः कुरुश्रेष्ठ कृत्वा कदनमाहवे ॥ ३२ ॥
पुत्रस्तु शिशुपालस्य सुकेतुः पृथिवीपतिः।
निहत्य शात्रवान् संख्ये द्रोणेन निहतो युधि ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुश्रेष्ठ! सेनाविन्दु भी युद्धमें शत्रुओंका संहार करके कालके गालमें चला गया। शिशुपालका पुत्र राजा सुकेतु भी युद्धमें शत्रुसैनिकोंका वध करके स्वयं भी द्रोणाचार्यके हाथसे मारा गया॥३२-३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा सत्यधृतिर्वीरो मदिराश्वश्च वीर्यवान्।
सूर्यदत्तश्च विक्रान्तो निहतो द्रोणसायकैः ॥ ३४ ॥
मूलम्
तथा सत्यधृतिर्वीरो मदिराश्वश्च वीर्यवान्।
सूर्यदत्तश्च विक्रान्तो निहतो द्रोणसायकैः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार वीर सत्यधृति, पराक्रमी मदिराश्व और बल-विक्रमशाली सूर्यदत्त भी द्रोणाचार्यके बाणोंसे मारे गये हैं॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रेणिमांश्च महाराज युध्यमानः पराक्रमी।
कृत्वा नसुकरं कर्म गतो वैवस्वतक्षयम् ॥ ३५ ॥
मूलम्
श्रेणिमांश्च महाराज युध्यमानः पराक्रमी।
कृत्वा नसुकरं कर्म गतो वैवस्वतक्षयम् ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! पराक्रमपूर्वक युद्ध करनेवाले श्रेणिमान्ने युद्धमें दुष्कर कर्म करके यमलोकके मार्गका आश्रय लिया है॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव युधि विक्रान्तो मागधः परमास्त्रवित्।
भीष्मेण निहतो राजञ्शेतेऽद्य परवीरहा ॥ ३६ ॥
मूलम्
तथैव युधि विक्रान्तो मागधः परमास्त्रवित्।
भीष्मेण निहतो राजञ्शेतेऽद्य परवीरहा ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी प्रकार शत्रुवीरोंका संहार करनेवाला और उत्तम अस्त्रोंका ज्ञाता पराक्रमी मागध वीर भी भीष्मजीके हाथसे मारा जाकर आज रणभूमिमें सो रहा है॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विराटपुत्रः शङ्खस्तु उत्तरश्च महारथः।
कुर्वन्तौ सुमहत् कर्म गतौ वैवस्वतक्षयम् ॥ ३७ ॥
मूलम्
विराटपुत्रः शङ्खस्तु उत्तरश्च महारथः।
कुर्वन्तौ सुमहत् कर्म गतौ वैवस्वतक्षयम् ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा विराटके पुत्र शंख और महारथी उत्तर ये दोनों युद्धमें महान् कर्म करके यमलोकमें जा पहुँचे हैं॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वसुदानश्च कदनं कुर्वाणोऽतीव संयुगे।
भारद्वाजेन विक्रम्य गमितो यमसादनम् ॥ ३८ ॥
मूलम्
वसुदानश्च कदनं कुर्वाणोऽतीव संयुगे।
भारद्वाजेन विक्रम्य गमितो यमसादनम् ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वसुदान भी युद्धस्थलमें बड़ा भारी संहार मचा रहा था। परंतु भरद्वाजनन्दन द्रोणने पराक्रम करके उसे यमलोक पहुँचा दिया॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(पाण्ड्यराजश्च विक्रान्तो बलवान् बाहुशालिना।
अश्वत्थाम्ना हतस्तत्र गमितो वै यमक्षयम्॥)
मूलम्
(पाण्ड्यराजश्च विक्रान्तो बलवान् बाहुशालिना।
अश्वत्थाम्ना हतस्तत्र गमितो वै यमक्षयम्॥)
अनुवाद (हिन्दी)
अपने बाहुबलसे सुशोभित होनेवाले अश्वत्थामाने बलवान् एवं पराक्रमी पाण्ड्यराजको मारकर यमलोक पहुँचा दिया।
विश्वास-प्रस्तुतिः
एते चान्ये च बहवः पाण्डवानां महारथाः।
हता द्रोणेन विक्रम्य यन्मां त्वं परिपृच्छसि ॥ ३९ ॥
मूलम्
एते चान्ये च बहवः पाण्डवानां महारथाः।
हता द्रोणेन विक्रम्य यन्मां त्वं परिपृच्छसि ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये तथा और भी बहुत-से पाण्डव महारथी, जिनके बारेमें आप मुझसे पूछ रहे थे, द्रोणाचार्यके द्वारा बलपूर्वक मार डाले गये॥३९॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि संजयवाक्ये षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें संजय-वाक्यविषयक छठा अध्याय पूरा हुआ॥६॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल ४० श्लोक हैं।)