भागसूचना
चतुर्थोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
धृतराष्ट्रका शोक और समस्त स्त्रियोंकी व्याकुलता
मूलम् (वचनम्)
वैशम्पायन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतच्छ्रुत्वा महाराज धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः ।
शोकस्यान्तमपश्यन् वै हतं मेने सुयोधनम् ॥ १ ॥
विह्वलः पतितो भूमौ नष्टचेता इव द्विपः।
मूलम्
एतच्छ्रुत्वा महाराज धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः ।
शोकस्यान्तमपश्यन् वै हतं मेने सुयोधनम् ॥ १ ॥
विह्वलः पतितो भूमौ नष्टचेता इव द्विपः।
अनुवाद (हिन्दी)
वैशम्पायनजी कहते हैं— महाराज! यह सुनकर अम्बिकानन्दन धृतराष्ट्रने यह मान लिया कि अब दुर्योधन भी मारा ही गया। उन्हें अपने शोकका कहीं अन्त नहीं दिखायी देता था। वे अचेत हुए हाथीके समान व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिर पड़े॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् निपतिते भूमौ विह्वले राजसत्तमे ॥ २ ॥
आर्तनादो महानासीत् स्त्रीणां भरतसत्तम।
मूलम्
तस्मिन् निपतिते भूमौ विह्वले राजसत्तमे ॥ २ ॥
आर्तनादो महानासीत् स्त्रीणां भरतसत्तम।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ जनमेजय! राजाओंमें सर्वश्रेष्ठ धृतराष्ट्रके व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिर जानेसे महलमें स्त्रियोंका महान् आर्तनाद गूँज उठा॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शब्दः पृथिवीं कृत्स्नां पूरयामास सर्वशः ॥ ३ ॥
शोकार्णवे महाघोरे निमग्ना भरतस्त्रियः।
रुरुदुर्दुःखशोकार्ता भृशमुद्विग्नचेतसः ॥ ४ ॥
मूलम्
स शब्दः पृथिवीं कृत्स्नां पूरयामास सर्वशः ॥ ३ ॥
शोकार्णवे महाघोरे निमग्ना भरतस्त्रियः।
रुरुदुर्दुःखशोकार्ता भृशमुद्विग्नचेतसः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रोदनका वह शब्द वहाँके समूचे भूमण्डलमें व्याप्त हो गया। भरतकुलकी स्त्रियाँ अत्यन्त घोर शोक-समुद्रमें डूब गयीं, उनका चित्त अत्यन्त उद्विग्न हो गया और वे दुःख-शोकसे कातर हो फूट-फूटकर रोने लगीं॥३-४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राजानं च समासाद्य गान्धारी भरतर्षभ।
निःसंज्ञा पतिता भूमौ सर्वाण्यन्तःपुराणि च ॥ ५ ॥
मूलम्
राजानं च समासाद्य गान्धारी भरतर्षभ।
निःसंज्ञा पतिता भूमौ सर्वाण्यन्तःपुराणि च ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतभूषण! गान्धारी देवी राजा धृतराष्ट्रके समीप आकर बेहोश हो भूमिपर गिर गयीं। अन्तःपुरकी सारी स्त्रियोंकी यही दशा हुई॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्ताः संजयो राजन् समाश्वासयदातुराः।
मुह्यमानाः सुबहुशो मुञ्चन्त्यो वारि नेत्रजम् ॥ ६ ॥
मूलम्
ततस्ताः संजयो राजन् समाश्वासयदातुराः।
मुह्यमानाः सुबहुशो मुञ्चन्त्यो वारि नेत्रजम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तब संजयने नेत्रोंसे आँसूओंकी धारा बहाती हुई राजमहलकी उन बहुसंख्यक महिलाओंको, जो आतुर एवं मूर्च्छित हो रही थीं, धीरे-धीरे धीरज बँधाया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समाश्वस्ताः स्त्रियस्तास्तु वेपमाना मुहुर्मुहुः।
कदल्य इव वातेन धूयमानाः समन्ततः ॥ ७ ॥
मूलम्
समाश्वस्ताः स्त्रियस्तास्तु वेपमाना मुहुर्मुहुः।
कदल्य इव वातेन धूयमानाः समन्ततः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आश्वासन पाकर भी वे स्त्रियाँ चारों ओरसे वायु-द्वारा हिलाये जाते हुए केलेके वृक्षोंकी भाँति बारंबार काँप रही थीं॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राजानं विदुरश्चापि प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम् ।
आश्वासयामास तदा सिञ्चंस्तोयेन कौरवम् ॥ ८ ॥
मूलम्
राजानं विदुरश्चापि प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम् ।
आश्वासयामास तदा सिञ्चंस्तोयेन कौरवम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् विदुरने भी ऐश्वर्यशाली कुरुवंशी प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्रके ऊपर जल छिड़ककर उन्हें होशमें लानेकी चेष्टा की॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स लब्ध्वा शनकैः संज्ञां ताश्च दृष्ट्वा स्त्रियो नृपः।
उन्मत्त इव राजेन्द्र स्थितस्तूष्णीं विशाम्पते ॥ ९ ॥
मूलम्
स लब्ध्वा शनकैः संज्ञां ताश्च दृष्ट्वा स्त्रियो नृपः।
उन्मत्त इव राजेन्द्र स्थितस्तूष्णीं विशाम्पते ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! प्रजानाथ! धीरे-धीरे होशमें आनेपर धृतराष्ट्र अपने घरकी स्त्रियोंको वहाँ उपस्थित जान पागलके समान चुपचाप बैठे रह गये॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो ध्यात्वा चिरं कालं निःश्वस्य च पुनः पुनः।
स्वान् पुत्रान् गर्हयामास बहु मेने च पाण्डवान् ॥ १० ॥
मूलम्
ततो ध्यात्वा चिरं कालं निःश्वस्य च पुनः पुनः।
स्वान् पुत्रान् गर्हयामास बहु मेने च पाण्डवान् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर दीर्घकालतक चिन्ता करनेके पश्चात् वे बारंबार लंबी साँस खींचते हुए अपने पुत्रोंकी निन्दा और पाण्डवोंकी अधिक प्रशंसा करने लगे॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गर्हयंश्चात्मनो बुद्धिं शकुनेः सौबलस्य च।
ध्यात्वा तु सुचिरं कालं वेपमानो मुहुर्मुहुः ॥ ११ ॥
मूलम्
गर्हयंश्चात्मनो बुद्धिं शकुनेः सौबलस्य च।
ध्यात्वा तु सुचिरं कालं वेपमानो मुहुर्मुहुः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने अपनी और सुबलपुत्र शकुनिकी बुद्धिको भी कोसा। फिर बहुत देरतक चिन्तामग्न रहनेके पश्चात् वे बारंबार काँपने लगे॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संस्तभ्य च मनो भूयो राजा धैर्यसमन्वितः।
पुनर्गावल्गणिं सूतं पर्यपृच्छत संजयम् ॥ १२ ॥
मूलम्
संस्तभ्य च मनो भूयो राजा धैर्यसमन्वितः।
पुनर्गावल्गणिं सूतं पर्यपृच्छत संजयम् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर मनको किसी तरह स्थिर करके राजाने धैर्य धारण किया और गवल्गणके पुत्र सारथि संजयसे इस प्रकार पूछा—॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत् त्वया कथितं वाक्यं श्रुतं संजय तन्मया।
कच्चिद् दुर्योधनः सूत न गतो वै यमक्षयम् ॥ १३ ॥
जये निराशः पुत्रो मे सततं जयकामुकः।
ब्रूहि संजय तत्त्वेन पुनरुक्तां कथामिमाम् ॥ १४ ॥
मूलम्
यत् त्वया कथितं वाक्यं श्रुतं संजय तन्मया।
कच्चिद् दुर्योधनः सूत न गतो वै यमक्षयम् ॥ १३ ॥
जये निराशः पुत्रो मे सततं जयकामुकः।
ब्रूहि संजय तत्त्वेन पुनरुक्तां कथामिमाम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘संजय! तुमने जो बात कही है, वह तो मैंने सुन ली, किंतु एक बात बताओ। निरन्तर विजयकी इच्छा रखनेवाला मेरा पुत्र दुर्योधन अपनी विजयसे निराश हो कहीं यमराजके लोकमें तो नहीं चला गया? संजय! तुम इस कही हुई बातको भी फिर यथार्थरूपसे कह सुनाओ’॥१३-१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तोऽब्रवीत् सूतो राजानं जनमेजय।
हतो वैकर्तनो राजन् सह पुत्रैर्महारथः ॥ १५ ॥
भ्रातृभिश्च महेष्वासैः सूतपुत्रैस्तनुत्यजैः ।
मूलम्
एवमुक्तोऽब्रवीत् सूतो राजानं जनमेजय।
हतो वैकर्तनो राजन् सह पुत्रैर्महारथः ॥ १५ ॥
भ्रातृभिश्च महेष्वासैः सूतपुत्रैस्तनुत्यजैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
जनमेजय! उनके ऐसा कहनेपर सारथि संजय राजासे इस प्रकार बोला—‘राजन्! महारथी वैकर्तन कर्ण अपने पुत्रों तथा शरीरका मोह छोड़कर युद्ध करनेवाले महाधनुर्धर सूतजातीय भाइयोंके साथ मार डाला गया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुःशासनश्च निहतः पाण्डवेन यशस्विना।
पीतं च रुधिरं कोपाद् भीमसेनेन संयुगे ॥ १६ ॥
मूलम्
दुःशासनश्च निहतः पाण्डवेन यशस्विना।
पीतं च रुधिरं कोपाद् भीमसेनेन संयुगे ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘साथ ही यशस्वी पाण्डुपुत्र भीमसेनने रणभूमिमें दुःशासनको मार दिया और क्रोधपूर्वक उसका खून भी पी लिया’॥१६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते कर्णपर्वणि धृतराष्ट्रशोको नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्वमें धृतराष्ट्रका शोक नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ॥४॥