भागसूचना
नवनवत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अश्वत्थामाके द्वारा नारायणास्त्रका प्रयोग, राजा युधिष्ठिरका खेद, भगवान् श्रीकृष्णके बताये हुए उपायसे सैनिकोंकी रक्षा, भीमसेनका वीरोचित उद्गार और उनपर उस अस्त्रका प्रबल आक्रमण
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स कदनं चक्रे रिपूणां द्रोणनन्दनः।
युगान्ते सर्वभूतानां कालसृष्ट इवान्तकः ॥ १ ॥
मूलम्
ततः स कदनं चक्रे रिपूणां द्रोणनन्दनः।
युगान्ते सर्वभूतानां कालसृष्ट इवान्तकः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! तदनन्तर द्रोणकुमार अश्वत्थामाने प्रलयकालमें कालसे प्रेरित हो समस्त प्राणियोंका संहार करनेवाले यमराजके समान शत्रुओंका विनाश आरम्भ किया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ध्वजद्रुमं शस्त्रशृङ्गं हतनागमहाशिलम् ।
अश्वकिम्पुरुषाकीर्णं शरासनलतावृतम् ॥ २ ॥
क्रव्यादपक्षिसंघुष्टं भूतयक्षगणाकुलम् ।
निहत्य शात्रवान् भल्लैः सोऽचिनोद् देहपर्वतम् ॥ ३ ॥
मूलम्
ध्वजद्रुमं शस्त्रशृङ्गं हतनागमहाशिलम् ।
अश्वकिम्पुरुषाकीर्णं शरासनलतावृतम् ॥ २ ॥
क्रव्यादपक्षिसंघुष्टं भूतयक्षगणाकुलम् ।
निहत्य शात्रवान् भल्लैः सोऽचिनोद् देहपर्वतम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने शत्रु-सैनिकोंको भल्लोंसे मार-मारकर उनकी लाशोंका पहाड़-जैसा ढेर लगा दिया। ध्वजाएँ उस पहाड़के वृक्ष, शस्त्र उसके शिखर और मारे गये हाथी उसकी बड़ी-बड़ी शिलाओंके समान थे। घोड़े मानो उस पर्वतपर निवास करनेवाले किम्पुरुष थे। धनुष लताओंके समान फैलकर उसपर छाये हुए थे। मांसभक्षी जीव-जन्तु मानो वहाँ चहचहानेवाले पक्षी थे और भूतोंके समुदाय उसपर विहार करनेवाले यक्ष जान पड़ते थे॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो वेगेन महता विनद्य स नरर्षभः।
प्रतिज्ञां श्रावयामास पुनरेव तवात्मजम् ॥ ४ ॥
मूलम्
ततो वेगेन महता विनद्य स नरर्षभः।
प्रतिज्ञां श्रावयामास पुनरेव तवात्मजम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरश्रेष्ठ अश्वत्थामाने फिर बड़े वेगसे गर्जना करके आपके पुत्रको पुनः अपनी प्रतिज्ञा सुनायी॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्माद् युध्यन्तमाचार्यं धर्मकञ्चुकमास्थितः ।
मुञ्च शस्त्रमिति प्राह कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ५ ॥
तस्मात् सम्पश्यतस्तस्य द्रावयिष्यामि वाहिनीम्।
विद्राव्य सर्वान् हन्तास्मि जाल्मं पाञ्चाल्यमेव तु ॥ ६ ॥
मूलम्
यस्माद् युध्यन्तमाचार्यं धर्मकञ्चुकमास्थितः ।
मुञ्च शस्त्रमिति प्राह कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ५ ॥
तस्मात् सम्पश्यतस्तस्य द्रावयिष्यामि वाहिनीम्।
विद्राव्य सर्वान् हन्तास्मि जाल्मं पाञ्चाल्यमेव तु ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘धर्मका चोला पहने हुए कुन्तीपुत्र युधिष्ठिरने युद्धपरायण आचार्यसे ‘शस्त्र त्याग दीजिये’ ऐसा कहा था और शस्त्र रखवा दिया; इसलिये मैं उसके देखते-देखते उनकी सारी सेनाको खदेड़ दूँगा और समस्त सैनिकोंको भगाकर उस नीच पांचालपुत्रको मार डालूँगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वानेतान् हनिष्यामि यदि योत्स्यन्ति मां रणे।
सत्यं ते प्रतिजानामि परिवर्तय वाहिनीम् ॥ ७ ॥
मूलम्
सर्वानेतान् हनिष्यामि यदि योत्स्यन्ति मां रणे।
सत्यं ते प्रतिजानामि परिवर्तय वाहिनीम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यदि ये रणभूमिमें मेरे साथ युद्ध करेंगे तो मैं इन सबका वध कर डालूँगा, यह मैं तुमसे सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूँ। अतः तुम अपनी सेनाको लौटाओ’॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छ्रुत्वा तव पुत्रस्तु वाहिनीं पर्यवर्तयत्।
सिंहनादेन महता व्यपोह्य सुमहद् भयम् ॥ ८ ॥
मूलम्
तच्छ्रुत्वा तव पुत्रस्तु वाहिनीं पर्यवर्तयत्।
सिंहनादेन महता व्यपोह्य सुमहद् भयम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह सुनकर आपके पुत्रने महान् सिंहनादके द्वारा अपनी सेनाका भारी भय दूर करके फिर उसे लौटाया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः समागमो राजन् कुरुपाण्डवसेनयोः।
पुनरेवाभवत् तीव्रः पूर्णसागरयोरिव ॥ ९ ॥
मूलम्
ततः समागमो राजन् कुरुपाण्डवसेनयोः।
पुनरेवाभवत् तीव्रः पूर्णसागरयोरिव ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! फिर भरे हुए दो महासागरोंके समान कौरव-पाण्डव-सेनाओंमें घोर संग्राम आरम्भ हो गया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संरब्धा हि स्थिरीभूता द्रोणपुत्रेण कौरवाः।
उदग्राः पाण्डुपञ्चाला द्रोणस्य निधनेन च ॥ १० ॥
मूलम्
संरब्धा हि स्थिरीभूता द्रोणपुत्रेण कौरवाः।
उदग्राः पाण्डुपञ्चाला द्रोणस्य निधनेन च ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणपुत्रसे आश्वासन पाकर कौरव-सैनिक स्थिर हो युद्धके लिये रोष और उत्साहमें भर गये थे। उधर द्रोणाचार्यके मारे जानेसे पाण्डव और पांचाल वीर पहलेसे ही उद्धत हो रहे थे॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां परमहृष्टानां जयमात्मनि पश्यताम्।
संरब्धानां महावेगः प्रादुरासीद् विशाम्पते ॥ ११ ॥
मूलम्
तेषां परमहृष्टानां जयमात्मनि पश्यताम्।
संरब्धानां महावेगः प्रादुरासीद् विशाम्पते ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! वे अत्यन्त हर्षोत्फुल्ल होकर अपनी ही विजय देख रहे थे। रोषावेषमें भरे हुए उन सैनिकोंका महान् वेग प्रकट हुआ॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा शिलोच्चये शैलः सागरे सागरो यथा।
प्रतिहन्येत राजेन्द्र तथाऽऽसन् कुरुपाण्डवाः ॥ १२ ॥
मूलम्
यथा शिलोच्चये शैलः सागरे सागरो यथा।
प्रतिहन्येत राजेन्द्र तथाऽऽसन् कुरुपाण्डवाः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! जैसे एक पहाड़ दूसरे पहाड़से टकरा जाय तथा एक समुद्र दूसरे समुद्रसे टक्कर ले, वही अवस्था कौरव-पाण्डव योद्धाओंकी भी थी॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शङ्खसहस्राणि भेरीणामयुतानि च।
अवादयन्त संहृष्टाः कुरुपाण्डवसैनिकाः ॥ १३ ॥
मूलम्
ततः शङ्खसहस्राणि भेरीणामयुतानि च।
अवादयन्त संहृष्टाः कुरुपाण्डवसैनिकाः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर हर्षमग्न हुए कौरव-पाण्डव-सैनिक सहस्रों शंख और हजारों रणभेरियाँ बजाने लगे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा निर्मथ्यमानस्य सागरस्य तु निःस्वनः।
अभवत् तव सैन्यस्य सुमहानद्भुतोपमः ॥ १४ ॥
मूलम्
यथा निर्मथ्यमानस्य सागरस्य तु निःस्वनः।
अभवत् तव सैन्यस्य सुमहानद्भुतोपमः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे मथे जाते हुए समुद्रका महान् शब्द सब ओर गूँज उठा था, उसी प्रकार आपकी सेनाका महान् कोलाहल भी अद्भुत एवं अनुपम था॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रादुश्चक्रे ततो द्रौणिरस्त्रं नारायणं तदा।
अभिसंधाय पाण्डूनां पञ्चालानां च वाहिनीम् ॥ १५ ॥
प्रादुरासंस्ततो बाणा दीप्ताग्राः खे सहस्रशः।
पाण्डवान् क्षपयिष्यन्तो दीप्तास्याः पन्नगा इव ॥ १६ ॥
मूलम्
प्रादुश्चक्रे ततो द्रौणिरस्त्रं नारायणं तदा।
अभिसंधाय पाण्डूनां पञ्चालानां च वाहिनीम् ॥ १५ ॥
प्रादुरासंस्ततो बाणा दीप्ताग्राः खे सहस्रशः।
पाण्डवान् क्षपयिष्यन्तो दीप्तास्याः पन्नगा इव ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् द्रोणपुत्र अश्वत्थामाने पाण्डवों और पांचालोंकी सेनाको लक्ष्य करके नारायणास्त्र प्रकट किया। उससे आकाशमें हजारों बाण प्रकट हुए। उन सबके अग्रभाग प्रज्वलित हो रहे थे। वे सभी बाण प्रज्वलित मुखवाले सर्पोंके समान आकर पाण्डव-सैनिकोंका विनाश करनेको उद्यत थे॥१५-१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते दिशः खं च सैन्यं च समावृण्वन् महाहवे।
मुहूर्ताद् भास्करस्येव लोके राजन् गभस्तयः ॥ १७ ॥
मूलम्
ते दिशः खं च सैन्यं च समावृण्वन् महाहवे।
मुहूर्ताद् भास्करस्येव लोके राजन् गभस्तयः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जैसे दो ही घड़ीमें सूर्यकी किरणें सारे संसारमें फैल जाती हैं, उसी प्रकार उस महासमरमें वे बाण सम्पूर्ण दिशाओं, आकाश और समस्त सेनाओंमें छा गये॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथापरे द्योतमाना ज्योतींषीवामलाम्बरे ।
प्रादुरासन् महाराज कार्ष्णायसमया गुडाः ॥ १८ ॥
मूलम्
तथापरे द्योतमाना ज्योतींषीवामलाम्बरे ।
प्रादुरासन् महाराज कार्ष्णायसमया गुडाः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इसी प्रकार वहाँ निर्मल आकाशमें प्रकाशित होनेवाले ज्योतिर्मय ग्रह-नक्षत्रोंके समान काले लोहेके चलते हुए गोले भी प्रकट हो-होकर गिरने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुश्चक्रा द्विचक्राश्च शतघ्न्यो बहुला गदाः।
चक्राणि च क्षुरान्तानि मण्डलानीव भास्वतः ॥ १९ ॥
मूलम्
चतुश्चक्रा द्विचक्राश्च शतघ्न्यो बहुला गदाः।
चक्राणि च क्षुरान्तानि मण्डलानीव भास्वतः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर चार या दो पहियोंवाली शतघ्नियाँ (तोपें), बहुत-सी गदाएँ तथा जिनके प्रान्तभागमें छुरे लगे हुए थे, ऐसे सूर्यमण्डलके समान कितने ही चक्र प्रकट होने लगे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शस्त्राकृतिभिराकीर्णमतीव पुरुषर्षभ ।
दृष्ट्वान्तरिक्षमाविग्नाः पाण्डुपाञ्चालसृञ्जयाः ॥ २० ॥
मूलम्
शस्त्राकृतिभिराकीर्णमतीव पुरुषर्षभ ।
दृष्ट्वान्तरिक्षमाविग्नाः पाण्डुपाञ्चालसृञ्जयाः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुरुषश्रेष्ठ! उस समय आकाशको विभिन्न शस्त्रोंके आकारवाले पदार्थोंसे अत्यन्त व्याप्त हुआ-सा देख पाण्डव, पांचाल और सृंजय योद्धा उद्विग्न हो उठे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा यथा ह्ययुध्यन्त पाण्डवानां महारथाः।
तथा तथा तदस्त्रं वै व्यवर्धत जनाधिप ॥ २१ ॥
मूलम्
यथा यथा ह्ययुध्यन्त पाण्डवानां महारथाः।
तथा तथा तदस्त्रं वै व्यवर्धत जनाधिप ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जनेश्वर! पाण्डव-महारथी जैसे-जैसे युद्ध करते थे, वैसे-ही-वैसे उस अस्त्रका वेग बढ़ता जाता था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वध्यमानास्तदास्त्रेण तेन नारायणेन वै।
दह्यमानानलेनेव सर्वतोऽभ्यर्दिता रणे ॥ २२ ॥
मूलम्
वध्यमानास्तदास्त्रेण तेन नारायणेन वै।
दह्यमानानलेनेव सर्वतोऽभ्यर्दिता रणे ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस नारायणास्त्रसे घायल हुए सैनिक रणभूमिमें ऐसे पीड़ित हुए मानो सब ओरसे आगमें झुलस रहे हों॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा हि शिशिरापाये दहेत् कक्षं हुताशनः।
तथा तदस्त्रं पाण्डूनां ददाह ध्वजिनीं प्रभो ॥ २३ ॥
मूलम्
यथा हि शिशिरापाये दहेत् कक्षं हुताशनः।
तथा तदस्त्रं पाण्डूनां ददाह ध्वजिनीं प्रभो ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! जैसे सर्दी बीतनेपर गर्मीमें लगी हुई आग सूखे काठ या जंगलको जला डाले, उसी प्रकार वह अस्त्र पाण्डव-सेनाको भस्म करने लगा॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आपूर्यमाणेनास्त्रेण सैन्ये क्षीयति च प्रभो।
जगाम परमं त्रासं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ २४ ॥
मूलम्
आपूर्यमाणेनास्त्रेण सैन्ये क्षीयति च प्रभो।
जगाम परमं त्रासं धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जब वह अस्त्र सब ओर व्याप्त हो गया और उसके द्वारा पाण्डव-सेना क्षीण होने लगी, तब धर्मपुत्र युधिष्ठिरको बड़ा भय हुआ॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रवमाणं तु तत् सैन्यं दृष्ट्वा विगतचेतनम्।
मध्यस्थतां च पार्थस्य धर्मपुत्रोऽब्रवीदिदम् ॥ २५ ॥
मूलम्
द्रवमाणं तु तत् सैन्यं दृष्ट्वा विगतचेतनम्।
मध्यस्थतां च पार्थस्य धर्मपुत्रोऽब्रवीदिदम् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने अपनी उस सेनाको जब अचेत होकर भागती और कुन्तीपुत्र अर्जुनको तटस्थभावसे खड़ा देखा, तब इस प्रकार कहा—॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्न पलायस्व सह पाञ्चालसेनया।
सात्यके त्वं च गच्छस्व वृष्ण्यन्धकवृतो गृहान् ॥ २६ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्न पलायस्व सह पाञ्चालसेनया।
सात्यके त्वं च गच्छस्व वृष्ण्यन्धकवृतो गृहान् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘धृष्टद्युम्न! तुम पांचालोंकी सेनाके साथ भाग जाओ। सात्यके! तुम भी वृष्णिवंशी और अन्धकवंशी वीरोंको साथ लेकर घर चले जाओ॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वासुदेवोऽपि धर्मात्मा करिष्यत्यात्मनः क्षमम्।
श्रेयो ह्यपदिशत्येष लोकस्य किमुतात्मनः ॥ २७ ॥
मूलम्
वासुदेवोऽपि धर्मात्मा करिष्यत्यात्मनः क्षमम्।
श्रेयो ह्यपदिशत्येष लोकस्य किमुतात्मनः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘धर्मात्मा भगवान् श्रीकृष्ण भी अपने लिये जो उचित समझेंगे, करेंगे। ये सारे जगत्को कल्याणका उपदेश देते हैं, फिर अपना भला क्यों नहीं करेंगे?॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संग्रामस्तु न कर्तव्यः सर्वसैन्यान् ब्रवीमि वः।
अहं हि सह सोदर्यैः प्रवेक्ष्ये हव्यवाहनम् ॥ २८ ॥
मूलम्
संग्रामस्तु न कर्तव्यः सर्वसैन्यान् ब्रवीमि वः।
अहं हि सह सोदर्यैः प्रवेक्ष्ये हव्यवाहनम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मैं तुम सभी सैनिकोंसे कह रहा हूँ, कोई भी युद्ध न करे। अब मैं भाइयोंके साथ अग्निमें प्रवेश कर जाऊँगा॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीष्मद्रोणार्णवं तीर्त्वा संग्रामे भीरुदुस्तरे।
विमज्जिष्यामि सलिले सगणो द्रौणिगोष्पदे ॥ २९ ॥
मूलम्
भीष्मद्रोणार्णवं तीर्त्वा संग्रामे भीरुदुस्तरे।
विमज्जिष्यामि सलिले सगणो द्रौणिगोष्पदे ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कायरोंके लिये दुस्तर संग्राममें भीष्म और द्रोणाचार्यरूपी महासागरको पार करके मैं सगे-सम्बन्धियोंके साथ अश्वत्थामारूपी गायकी खुरीके जलमें डूब जाऊँगा॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कामः सम्पद्यतामस्य बीभत्सोराशु मां प्रति।
कल्याणवृत्तिराचार्यो मया युधि निपातितः ॥ ३० ॥
मूलम्
कामः सम्पद्यतामस्य बीभत्सोराशु मां प्रति।
कल्याणवृत्तिराचार्यो मया युधि निपातितः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अर्जुनकी मेरे प्रति जो शुभ कामना है, वह शीघ्र पूरी हो जानी चाहिये; क्योंकि सदा अपने कल्याणमें संलग्न रहनेवाले आचार्यको मैंने युद्धमें मरवा दिया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येन बालः स सौभद्रो युद्धानामविशारदः।
समर्थैर्बहुभिः क्रूरैर्घातितो नाभिपालितः ॥ ३१ ॥
मूलम्
येन बालः स सौभद्रो युद्धानामविशारदः।
समर्थैर्बहुभिः क्रूरैर्घातितो नाभिपालितः ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिन्होंने युद्धकौशलसे रहित बालक सुभद्राकुमारको क्रूर स्वभाववाले बहुसंख्यक शक्तिशाली महारथियोंद्वारा मरवा दिया और उसकी रक्षा नहीं की॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येनाविब्रुवता प्रश्नं तथा कृष्णा सभां गता।
उपेक्षिता सपुत्रेण दासभावं नियच्छती ॥ ३२ ॥
मूलम्
येनाविब्रुवता प्रश्नं तथा कृष्णा सभां गता।
उपेक्षिता सपुत्रेण दासभावं नियच्छती ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘पुत्रसहित जिन्होंने सभामें लायी गयी द्रौपदीके प्रश्नका उत्तर न देकर उसके प्रति उपेक्षा दिखायी, उस समय वह बेचारी हमारे दासभावके निवारणका प्रयत्न कर रही थी॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(रक्षणे च महान् यत्नः सैन्धवस्य कृतो युधि।
अर्जुनस्य विघातार्थं प्रतिज्ञा येन रक्षिता॥
मूलम्
(रक्षणे च महान् यत्नः सैन्धवस्य कृतो युधि।
अर्जुनस्य विघातार्थं प्रतिज्ञा येन रक्षिता॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिन्होंने अर्जुनके विनाशके लिये युद्धमें सिंधुराजकी रक्षाके निमित्त महान् प्रयत्न किया और अपनी प्रतिज्ञा रखी।
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यूहद्वारि वयं चैव धृता येन जिगीषवः।
वारितं च महत् सैन्यं प्रविशत् तद् यथाबलम्॥)
मूलम्
व्यूहद्वारि वयं चैव धृता येन जिगीषवः।
वारितं च महत् सैन्यं प्रविशत् तद् यथाबलम्॥)
अनुवाद (हिन्दी)
‘हमलोग विजयकी अभिलाषासे आगे बढ़ना चाहते थे; किंतु जिन्होंने हमें व्यूहके दरवाजेपर रोक रखा था, यथाशक्ति उसके भीतर प्रवेश करनेकी चेष्टामें लगी हुई हमारी विशाल सेनाको भी जिन्होंने रोक ही दिया था।
विश्वास-प्रस्तुतिः
जिघांसुर्धार्तराष्ट्रश्च श्रान्तेष्वश्वेषु फाल्गुनम् ।
कवचेन तथा गुप्तो रक्षार्थं सैन्धवस्य च ॥ ३३ ॥
मूलम्
जिघांसुर्धार्तराष्ट्रश्च श्रान्तेष्वश्वेषु फाल्गुनम् ।
कवचेन तथा गुप्तो रक्षार्थं सैन्धवस्य च ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अर्जुनके घोड़े जब थक गये थे और धृष्टराष्ट्रपुत्र दुर्योधन जब अर्जुनके वधकी इच्छासे उनपर आक्रमण कर रहा था, उस समय जिन्होंने उसकी तथा सिंधुराजकी रक्षाके लिये उसे दिव्य कवचद्वारा सुरक्षित कर दिया था॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येन ब्रह्मास्त्रविदुषा पञ्चालाः सत्यजिन्मुखाः।
कुर्वाणा मज्जये यत्नं समूला विनिपातिताः ॥ ३४ ॥
मूलम्
येन ब्रह्मास्त्रविदुषा पञ्चालाः सत्यजिन्मुखाः।
कुर्वाणा मज्जये यत्नं समूला विनिपातिताः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘ब्रह्मास्त्रको जाननेवाले जिन आचार्यदेवने मेरी विजयके लिये प्रयत्न करनेवाले सत्यजित् आदि पांचालवीरोंको समूल नष्ट कर दिया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येन प्रव्राज्यमानाश्च राज्याद् वयमधर्मतः।
निवार्यमाणा नु वयं नानुयातास्तदैषिणः ॥ ३५ ॥
मूलम्
येन प्रव्राज्यमानाश्च राज्याद् वयमधर्मतः।
निवार्यमाणा नु वयं नानुयातास्तदैषिणः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जब कौरव अधर्मपूर्वक हमें राज्यसे निर्वासित कर रहे थे, तब जिन्होंने हमें रोकने (शान्त करने)-की ही चेष्टा की थी; किंतु उनका हित चाहनेवाले हमलोगोंका उस समय उन्होंने साथ नहीं दिया था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
योऽसावत्यन्तमस्मासु कुर्वाणः सौहृदं परम्।
हतस्तदर्थे मरणं गमिष्यामि सबान्धवः ॥ ३६ ॥
मूलम्
योऽसावत्यन्तमस्मासु कुर्वाणः सौहृदं परम्।
हतस्तदर्थे मरणं गमिष्यामि सबान्धवः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो (इस प्रकार) हमलोगोंपर अत्यन्त स्नेह करनेवाले थे वे द्रोणाचार्य मारे गये हैं; अतः उनके लिये अपने भाइयोंसहित मैं भी मर जाऊँगा’॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं ब्रुवति कौन्तेये दाशार्हस्त्वरितस्ततः।
निवार्य सैन्यं बाहुभ्यामिदं वचनमब्रवीत् ॥ ३७ ॥
मूलम्
एवं ब्रुवति कौन्तेये दाशार्हस्त्वरितस्ततः।
निवार्य सैन्यं बाहुभ्यामिदं वचनमब्रवीत् ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर इस प्रकार कह रहे थे, उसी समय दशार्हकुलभूषण भगवान् श्रीकृष्णने तुरंत ही अपनी दोनों भुजाओंके संकेतसे सारी सेनाको रोककर इस प्रकार कहा—॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शीघ्रं न्यस्यत शस्त्राणि वाहेभ्यश्चावरोहत।
एष योगोऽत्र विहितः प्रतिषेधे महात्मना ॥ ३८ ॥
मूलम्
शीघ्रं न्यस्यत शस्त्राणि वाहेभ्यश्चावरोहत।
एष योगोऽत्र विहितः प्रतिषेधे महात्मना ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘योद्धाओ! अपने अस्त्र-शस्त्र शीघ्र नीचे डाल दो और सवारियोंसे उतर जाओ। परमात्मा नारायणने इस अस्त्रके निवारणके लिये यही उपाय निश्चित किया है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्विपाश्वस्यन्दनेभ्यश्च क्षितिं सर्वेऽवरोहत ।
एवमेतन्न वो हन्यादस्त्रं भूमौ निरायुधान् ॥ ३९ ॥
मूलम्
द्विपाश्वस्यन्दनेभ्यश्च क्षितिं सर्वेऽवरोहत ।
एवमेतन्न वो हन्यादस्त्रं भूमौ निरायुधान् ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम सब लोग हाथी, घोड़े और रथोंसे उतरकर पृथ्वीपर आ जाओ। इस प्रकार भूमिपर निहत्थे खड़े हुए तुमलोगोंको यह अस्त्र नहीं मार सकेगा॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा यथा हि युध्यन्ते योधा ह्यस्त्रमिदं प्रति।
तथा तथा भवन्त्येते कौरवा बलवत्तराः ॥ ४० ॥
मूलम्
यथा यथा हि युध्यन्ते योधा ह्यस्त्रमिदं प्रति।
तथा तथा भवन्त्येते कौरवा बलवत्तराः ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘हमारे योद्धा जैसे-जैसे इस अस्त्रके विरुद्ध युद्ध करते हैं, वैसे-ही-वैसे ये कौरव अत्यन्त प्रबल होते जा रहे हैं’॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निक्षेप्स्यन्ति च शस्त्राणि वाहनेभ्योऽवरुह्य ये।
(येऽञ्जलिं कुर्वते वीरा नमन्ति च विवाहनाः।)
तान्नैतदस्त्रं संग्रामे निहनिष्यति मानवान् ॥ ४१ ॥
मूलम्
निक्षेप्स्यन्ति च शस्त्राणि वाहनेभ्योऽवरुह्य ये।
(येऽञ्जलिं कुर्वते वीरा नमन्ति च विवाहनाः।)
तान्नैतदस्त्रं संग्रामे निहनिष्यति मानवान् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो लोग अपने वाहनोंसे उतरकर हथियार नीचे डाल देंगे और जो वीर वाहनरहित हो इसके सामने हाथ जोड़कर नमस्कार करेंगे, उन मनुष्योंको संग्रामभूमिमें यह अस्त्र नहीं मारेगा॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ये त्वेतत्प्रतियोत्स्यन्ति मनसापीह केचन।
निहनिष्यति तान् सर्वान् रसातलगतानपि ॥ ४२ ॥
मूलम्
ये त्वेतत्प्रतियोत्स्यन्ति मनसापीह केचन।
निहनिष्यति तान् सर्वान् रसातलगतानपि ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो कोई मनसे भी इस अस्त्रका सामना करेंगे, वे रसातलमें चले गये हों तो भी यह अस्त्र वहाँ पहुँचकर उन सबको मार डालेगा’॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते वचस्तस्य तच्छ्रुत्वा वासुदेवस्य भारत।
ईषुः सर्वे समुत्स्रष्टुं मनोभिः करणेन च ॥ ४३ ॥
मूलम्
ते वचस्तस्य तच्छ्रुत्वा वासुदेवस्य भारत।
ईषुः सर्वे समुत्स्रष्टुं मनोभिः करणेन च ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! भगवान् वासुदेवका यह वचन सुनकर सब योद्धाओंने अन्यान्य इन्द्रियों तथा मनसे भी अस्त्रको त्याग देनेका विचार कर लिया॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत उत्स्रष्टुकामांस्तानस्त्राण्यालक्ष्य पाण्डवः ।
भीमसेनोऽब्रवीद् राजन्निदं संहर्षयन् वचः ॥ ४४ ॥
मूलम्
तत उत्स्रष्टुकामांस्तानस्त्राण्यालक्ष्य पाण्डवः ।
भीमसेनोऽब्रवीद् राजन्निदं संहर्षयन् वचः ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तब उन सबको अस्त्र त्यागनेके लिये उद्यत हुआ देख पाण्डुनन्दन भीमसेनने उनमें हर्ष और उत्साह पैदा करते हुए इस प्रकार कहा—॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न कथंचन शस्त्राणि मोक्तव्यानीह केनचित्।
अहमावारयिष्यामि द्रोणपुत्रास्त्रमाशुगैः ॥ ४५ ॥
मूलम्
न कथंचन शस्त्राणि मोक्तव्यानीह केनचित्।
अहमावारयिष्यामि द्रोणपुत्रास्त्रमाशुगैः ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘किसी भी वीरको किसी तरह भी अपने हथियार नहीं डालने चाहिये। मैं अपने शीघ्रगामी बाणोंद्वारा द्रोणपुत्रके अस्त्रका निवारण करूँगा॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गदयाप्यनया गुर्व्या हेमविग्रहया रणे।
कालवत् प्रहरिष्यामि द्रौणेरस्त्रं विशातयन् ॥ ४६ ॥
मूलम्
गदयाप्यनया गुर्व्या हेमविग्रहया रणे।
कालवत् प्रहरिष्यामि द्रौणेरस्त्रं विशातयन् ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘इस सुवर्णमयी भारी गदासे रणभूमिमें द्रोणपुत्रके अस्त्रोंको चूर-चूर करनेके लिये मैं कालके समान प्रहार करूँगा॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न हि मे विक्रमे तुल्यः कश्चिदस्ति पुमानिह।
यथैव सवितुस्तुल्यं ज्योतिरन्यन्न विद्यते ॥ ४७ ॥
मूलम्
न हि मे विक्रमे तुल्यः कश्चिदस्ति पुमानिह।
यथैव सवितुस्तुल्यं ज्योतिरन्यन्न विद्यते ॥ ४७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘इस संसारमें मेरे पराक्रमकी समानता करनेवाला दूसरा कोई पुरुष नहीं है। ठीक वैसे ही, जैसे सूर्यके समान दूसरा कोई ज्योतिर्मय ग्रह नहीं है॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पश्यतेमौ हि मे बाहू नागराजकरोपमौ।
समर्थौ पर्वतस्यापि शैशिरस्य निपातने ॥ ४८ ॥
मूलम्
पश्यतेमौ हि मे बाहू नागराजकरोपमौ।
समर्थौ पर्वतस्यापि शैशिरस्य निपातने ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘गजराजके शुण्डोंके समान मोटी मेरी इन भुजाओंको देखो तो सही, ये हिमालयपर्वतको भी धराशायी करनेमें समर्थ हैं॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागायुतसमप्राणो ह्यहमेको नरेष्विह ।
शक्रो यथाप्रतिद्वन्द्वो दिवि देवेषु विश्रुतः ॥ ४९ ॥
मूलम्
नागायुतसमप्राणो ह्यहमेको नरेष्विह ।
शक्रो यथाप्रतिद्वन्द्वो दिवि देवेषु विश्रुतः ॥ ४९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यहाँके मनुष्योंमें एक मैं ही ऐसा हूँ, जिसमें दस हजार हाथियोंके समान बल है। जैसे स्वर्गलोक और देवताओंमें केवल इन्द्र ही ऐसे हैं, जिनका दूसरा कोई प्रतिद्वन्द्वी योद्धा नहीं है॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अद्य पश्यत मे वीर्यं बाह्वोः पीनांसयोर्युधि।
ज्वलमानस्य दीप्तस्य द्रौणेरस्त्रस्य वारणे ॥ ५० ॥
मूलम्
अद्य पश्यत मे वीर्यं बाह्वोः पीनांसयोर्युधि।
ज्वलमानस्य दीप्तस्य द्रौणेरस्त्रस्य वारणे ॥ ५० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज युद्धस्थलमें मोटे कंधेवाली मेरी इन दोनों भुजाओंका बल देखो कि ये किस प्रकार अश्वत्थामाके प्रज्वलित एवं दीप्तिमान् अस्त्रके निवारणमें समर्थ होती हैं॥५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदि नारायणास्त्रस्य प्रतियोद्धा न विद्यते।
अद्यैतत् प्रतियोत्स्यामि पश्यत्सु कुरुपाण्डुषु ॥ ५१ ॥
मूलम्
यदि नारायणास्त्रस्य प्रतियोद्धा न विद्यते।
अद्यैतत् प्रतियोत्स्यामि पश्यत्सु कुरुपाण्डुषु ॥ ५१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यदि इस नारायणास्त्रका सामना करनेवाला दूसरा कोई योद्धा अबतक नहीं हुआ है, तो आज मैं कौरवों और पाण्डवोंके देखते-देखते इसका सामना करूँगा॥५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनार्जुन बीभत्सो न न्यस्यं गाण्डिवं त्वया।
शशाङ्कस्येव ते पङ्को नैर्मल्यं पातयिष्यति ॥ ५२ ॥
मूलम्
अर्जुनार्जुन बीभत्सो न न्यस्यं गाण्डिवं त्वया।
शशाङ्कस्येव ते पङ्को नैर्मल्यं पातयिष्यति ॥ ५२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अर्जुन! अर्जुन! वीभत्सो! कहीं तुम भी न अपने गाण्डीव धनुषको नीचे डाल देना; नहीं तो तुममें भी चन्द्रमाके समान कलंक लग जायगा और वह तुम्हारी निर्मलताको नष्ट कर देगा’॥५२॥
मूलम् (वचनम्)
अर्जुन उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीम नारायणास्त्रे मे गोषु च ब्राह्मणेषु च।
एतेषु गाण्डिवं न्यस्यमेतद्धि व्रतमुत्तमम् ॥ ५३ ॥
मूलम्
भीम नारायणास्त्रे मे गोषु च ब्राह्मणेषु च।
एतेषु गाण्डिवं न्यस्यमेतद्धि व्रतमुत्तमम् ॥ ५३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुन बोले— भैया भीमसेन! नारायणास्त्र, गौ और ब्राह्मण—इनके समक्ष गाण्डीव धनुषको नीचे डाल दिया जाय; यही मेरा उत्तम व्रत है॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तस्ततो भीमो द्रोणपुत्रमरिंदमम् ।
अभ्ययान्मेघघोषेण रथेनादित्यवर्चसा ॥ ५४ ॥
मूलम्
एवमुक्तस्ततो भीमो द्रोणपुत्रमरिंदमम् ।
अभ्ययान्मेघघोषेण रथेनादित्यवर्चसा ॥ ५४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके ऐसा कहनेपर भीमसेन अकेले ही सूर्यके समान तेजस्वी तथा मेघगर्जनाके समान गम्भीर घोष करनेवाले रथके द्वारा शत्रुदमन द्रोणपुत्रका सामना करनेके लिये चल दिये॥५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
(कम्पयन् मेदिनीं सर्वां त्रासयंश्च चमूं तव।
शङ्खशब्दं महत् कृत्वा भुजशब्दं च पाण्डवः॥
मूलम्
(कम्पयन् मेदिनीं सर्वां त्रासयंश्च चमूं तव।
शङ्खशब्दं महत् कृत्वा भुजशब्दं च पाण्डवः॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डुपुत्र भीम बड़े जोरसे शंख बजाकर और भुजाओंद्वारा ताल ठोंककर सारी पृथ्वीको कँपाते और आपकी सेनाको भयभीत करते हुए चले।
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य शङ्खस्वनं श्रुत्वा बाहुशब्दं च तावकाः।
समन्तात् कोष्ठकीकृत्य शरव्रातैरवाकिरन् ॥)
मूलम्
तस्य शङ्खस्वनं श्रुत्वा बाहुशब्दं च तावकाः।
समन्तात् कोष्ठकीकृत्य शरव्रातैरवाकिरन् ॥)
अनुवाद (हिन्दी)
उनकी शंखध्वनि तथा भुजाओंद्वारा ताल ठोंकनेका शब्द सुनकर आपके सैनिकोंने उन्हें चारों ओरसे घेर लिया और उनपर बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी।
विश्वास-प्रस्तुतिः
स एनमिषुजालेन लघुत्वाच्छीघ्रविक्रमः ।
निमेषमात्रेणासाद्य कुन्तीपुत्रोऽभ्यवाकिरत् ॥ ५५ ॥
मूलम्
स एनमिषुजालेन लघुत्वाच्छीघ्रविक्रमः ।
निमेषमात्रेणासाद्य कुन्तीपुत्रोऽभ्यवाकिरत् ॥ ५५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करनेवाले कुन्तीकुमार भीमसेनने पलक मारते-मारते अश्वत्थामाके पास पहुँचकर बड़ी फुर्तीसे अपने बाणोंका जाल-सा बिछाते हुए उसे ढक दिया॥५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो द्रौणिः प्रहस्यैनं द्रवन्तमभिभाष्य च।
अवाकिरत् प्रदीप्ताग्रैः शरैस्तैरभिमन्त्रितैः ॥ ५६ ॥
मूलम्
ततो द्रौणिः प्रहस्यैनं द्रवन्तमभिभाष्य च।
अवाकिरत् प्रदीप्ताग्रैः शरैस्तैरभिमन्त्रितैः ॥ ५६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अश्वत्थामाने धावा करनेवाले भीमसेनसे हँसकर बात की और उनपर नारायणास्त्रसे अभिमन्त्रित प्रज्वलित अग्रभागवाले बाणोंकी झड़ी लगा दी॥५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पन्नगैरिव दीप्तास्यैर्वमद्भिर्ज्वलनं रणे ।
अवकीर्णोऽभवत् पार्थः स्फुलिङ्गैरिव काञ्चनैः ॥ ५७ ॥
मूलम्
पन्नगैरिव दीप्तास्यैर्वमद्भिर्ज्वलनं रणे ।
अवकीर्णोऽभवत् पार्थः स्फुलिङ्गैरिव काञ्चनैः ॥ ५७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रणभूमिमें वे बाण प्रज्वलित मुखवाले सर्पोंके समान आग उगल रहे थे; कुन्तीकुमार भीम उनसे ढक गये, मानो उनके ऊपर स्वर्णमयी चिनगारियाँ पड़ रही हों॥५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य रूपमभूद् राजन् भीमसेनस्य संयुगे।
खद्योतैरावृतस्येव पर्वतस्य दिनक्षये ॥ ५८ ॥
मूलम्
तस्य रूपमभूद् राजन् भीमसेनस्य संयुगे।
खद्योतैरावृतस्येव पर्वतस्य दिनक्षये ॥ ५८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उस समय युद्धस्थलमें भीमसेनका रूप संध्याके समय जुगुनुओंसे भरे हुए पर्वतके समान प्रतीत हो रहा था॥५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदस्त्रं द्रोणपुत्रस्य तस्मिन् प्रतिसमस्यति।
अवर्धत महाराज यथाग्निरनिलोद्धतः ॥ ५९ ॥
मूलम्
तदस्त्रं द्रोणपुत्रस्य तस्मिन् प्रतिसमस्यति।
अवर्धत महाराज यथाग्निरनिलोद्धतः ॥ ५९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! भीमसेन जब द्रोणपुत्रके उस अस्त्रके सामने बाण मारने लगे, तब वह हवाका सहारा पाकर धधक उठनेवाली आगके समान प्रचण्ड वेगसे बढ़ने लगा॥५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विवर्धमानमालक्ष्य तदस्त्रं भीमविक्रमम् ।
पाण्डुसैन्यमृते भीमं सुमहद् भयमाविशत् ॥ ६० ॥
मूलम्
विवर्धमानमालक्ष्य तदस्त्रं भीमविक्रमम् ।
पाण्डुसैन्यमृते भीमं सुमहद् भयमाविशत् ॥ ६० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस अस्त्रको बढ़ते देख भयंकर पराक्रमी भीमसेनको छोड़कर शेष सारी पाण्डव-सेनापर महान् भय छा गया॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शस्त्राणि ते सर्वे समुत्सृज्य महीतले।
अवारोहन् रथेभ्यश्च हस्त्यश्वेभ्यश्च सर्वशः ॥ ६१ ॥
मूलम्
ततः शस्त्राणि ते सर्वे समुत्सृज्य महीतले।
अवारोहन् रथेभ्यश्च हस्त्यश्वेभ्यश्च सर्वशः ॥ ६१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब वे समस्त सैनिक अपने अस्त्र-शस्त्रोंको धरतीपर डालकर रथ, हाथी और घोड़े आदि सभी वाहनोंसे उतर गये॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषु निक्षिप्तशस्त्रेषु वाहनेभ्यश्च्युतेषु च।
तदस्त्रवीर्यं विपुलं भीममूर्धन्यथापतत् ॥ ६२ ॥
मूलम्
तेषु निक्षिप्तशस्त्रेषु वाहनेभ्यश्च्युतेषु च।
तदस्त्रवीर्यं विपुलं भीममूर्धन्यथापतत् ॥ ६२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके हथियार डाल देने और वाहनोंसे उतर जानेपर उस अस्त्रकी विशाल शक्ति केवल भीमसेनके माथेपर आ पड़ी॥६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हाहाकृतानि भूतानि पाण्डवाश्च विशेषतः।
भीमसेनमपश्यन्त तेजसा संवृतं तथा ॥ ६३ ॥
मूलम्
हाहाकृतानि भूतानि पाण्डवाश्च विशेषतः।
भीमसेनमपश्यन्त तेजसा संवृतं तथा ॥ ६३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब सभी प्राणी विशेषतः पाण्डव हाहाकार कर उठे। उन्होंने देखा, भीमसेन उस अस्त्रके तेजसे आच्छादित हो गये हैं॥६३॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि नारायणास्त्रमोक्षपर्वणि पाण्डवसैन्यास्त्रत्यागे नवनवत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १९९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत नारायणास्त्रमोक्षपर्वमें पाण्डव-सेनाका अस्त्र-त्यागविषयक एक सौ निन्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१९९॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ४ श्लोक मिलाकर कुल ६७ श्लोक हैं।)