१७७ रात्रियुद्धेऽलायुधयुद्धे

भागसूचना

सप्तसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेन और अलायुधका घोर युद्ध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमागतमभिप्रेक्ष्य भीमकर्माणमाहवे ।
हर्षमाहारयांचक्रुः कुरवः सर्व एव ते ॥ १ ॥

मूलम्

तमागतमभिप्रेक्ष्य भीमकर्माणमाहवे ।
हर्षमाहारयांचक्रुः कुरवः सर्व एव ते ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! युद्धस्थलमें भयंकर कर्म करनेवाले अलायुधको आया हुआ देख सभी कौरव-योद्धा बड़े प्रसन्न हुए॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव तव पुत्रास्ते दुर्योधनपुरोगमाः।
अप्लवाः प्लवमासाद्य तर्तुकामा इवार्णवम् ॥ २ ॥

मूलम्

तथैव तव पुत्रास्ते दुर्योधनपुरोगमाः।
अप्लवाः प्लवमासाद्य तर्तुकामा इवार्णवम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसी प्रकार आपके दुर्योधन आदि पुत्रोंको भी बड़ा हर्ष हुआ, मानो समुद्रके पार जानेकी इच्छावाले नौकाहीन पुरुषोंको जहाज मिल गया हो॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनर्जातमिवात्मानं मन्वानाः पुरुषर्षभाः ।
अलायुधं राक्षसेन्द्रं स्वागतेनाभ्यपूजयन् ॥ ३ ॥

मूलम्

पुनर्जातमिवात्मानं मन्वानाः पुरुषर्षभाः ।
अलायुधं राक्षसेन्द्रं स्वागतेनाभ्यपूजयन् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे पुरुषप्रवर कौरव अपना नया जन्म हुआ मानने लगे। उन्होंने राक्षसराज अलायुधका स्वागतपूर्वक सत्कार किया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्त्वमानुषे युद्धे वर्तमाने महाभये।
कर्णराक्षसयोर्नक्तं दारुणप्रतिदर्शने ॥ ४ ॥
(न द्रौणिर्न कृपो द्रोणो न शल्यो न च माधवः।
एक एव तु तेनासीद् योद्धा कर्णो रणे वृषा॥)

मूलम्

तस्मिंस्त्वमानुषे युद्धे वर्तमाने महाभये।
कर्णराक्षसयोर्नक्तं दारुणप्रतिदर्शने ॥ ४ ॥
(न द्रौणिर्न कृपो द्रोणो न शल्यो न च माधवः।
एक एव तु तेनासीद् योद्धा कर्णो रणे वृषा॥)

अनुवाद (हिन्दी)

उस रात्रिकालमें जब कर्ण और घटोत्कचका अत्यन्त भयंकर और दारुण अमानुषिक युद्ध चल रहा था। उस समय न तो अश्वत्थामा, न कृपाचार्य, न द्रोणाचार्य, न शल्य और न कृतवर्मा ही घटोत्कचका सामना कर सके। अकेला दानवीर कर्ण ही रणभूमिमें उसके साथ जूझ रहा था॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उपप्रैक्षन्त पञ्चालाः स्मयमानाः सराजकाः।
तथैव तावका राजन् वीक्षमाणास्ततस्ततः ॥ ५ ॥

मूलम्

उपप्रैक्षन्त पञ्चालाः स्मयमानाः सराजकाः।
तथैव तावका राजन् वीक्षमाणास्ततस्ततः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पांचाल योद्धा अन्यान्य राजाओंके साथ विस्मित होकर वह युद्ध देखने लगे। उसी प्रकार आपके सैनिक भी इधर-उधरसे उसी युद्धका दृश्य देख रहे थे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चुक्रुशुर्नेदमस्तीति द्रोणद्रौणिकृपादयः ।
तत् कर्म दृष्ट्वा सम्भ्रान्ता हैडिम्बस्य रणाजिरे ॥ ६ ॥

मूलम्

चुक्रुशुर्नेदमस्तीति द्रोणद्रौणिकृपादयः ।
तत् कर्म दृष्ट्वा सम्भ्रान्ता हैडिम्बस्य रणाजिरे ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

समरांगणमें हिडिम्बाकुमार घटोत्कचका वह अलौकिक कर्म देखकर घबराये हुए द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा और कृपाचार्य आदि चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे कि ‘अब हमारी यह सेना नहीं बचेगी’॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वमाविग्नमभवद्धाहाभूतमचेतनम् ।
तव सैन्यं महाराज निराशं कर्णजीविते ॥ ७ ॥

मूलम्

सर्वमाविग्नमभवद्धाहाभूतमचेतनम् ।
तव सैन्यं महाराज निराशं कर्णजीविते ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! कर्णके जीवनसे निराश होकर आपकी सारी सेना उद्विग्न हो उठी थी। सर्वत्र हाहाकार मचा था। सबके होश उड़ गये थे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनस्तु सम्प्रेक्ष्य कर्णमार्तिं परां गतम्।
अलायुधं राक्षसेन्द्रं समाहूयेदमब्रवीत् ॥ ८ ॥

मूलम्

दुर्योधनस्तु सम्प्रेक्ष्य कर्णमार्तिं परां गतम्।
अलायुधं राक्षसेन्द्रं समाहूयेदमब्रवीत् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय कर्णको बड़े भारी संकटमें पड़ा देख दुर्योधनने राक्षसराज अलायुधको बुलाकर इस प्रकार कहा—॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष वैकर्तनः कर्णो हैडिम्बेन समागतः।
कुरुते कर्म सुमहद् यदस्यौपयिकं मृधे ॥ ९ ॥

मूलम्

एष वैकर्तनः कर्णो हैडिम्बेन समागतः।
कुरुते कर्म सुमहद् यदस्यौपयिकं मृधे ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘वीरवर! देखो, यह सूर्यपुत्र कर्ण हिडिम्बाकुमार घटोत्कचके साथ जूझ रहा है। युद्धस्थलमें जहाँतक इसके प्रयत्नसे होना सम्भव है, वहाँतक यह महान् पराक्रम प्रकट कर रहा है॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पश्यैतान् पार्थिवान् शूरान् निहतान् भैमसेनिना।
नानाशस्त्रैरभिहतान् पादपानिव दन्तिना ॥ १० ॥

मूलम्

पश्यैतान् पार्थिवान् शूरान् निहतान् भैमसेनिना।
नानाशस्त्रैरभिहतान् पादपानिव दन्तिना ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भीमसेनके पुत्रने नाना प्रकारके शस्त्रोंद्वारा जिन शूरवीर नरेशोंको घायल करके मार डाला है, वे हाथीके गिराये हुए वृक्षोंके समान यहाँ पड़े हैं, इन्हें देखो॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तवैष भागः समरे राजमध्ये मया कृतः।
तवैवानुमते वीर तं विक्रम्य निबर्हय ॥ ११ ॥

मूलम्

तवैष भागः समरे राजमध्ये मया कृतः।
तवैवानुमते वीर तं विक्रम्य निबर्हय ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘वीर! तुम्हारी अनुमतिसे ही समरांगणमें सम्पूर्ण राजाओंके बीच इस घटोत्कचको मैंने तुम्हारा भाग नियत किया है, अतः तुम पराक्रम करके इसे मार डालो॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुरा वैकर्तनं कर्णमेष पापो घटोत्कचः।
मायाबलं समाश्रित्य कर्षयत्यरिकर्शन ॥ १२ ॥

मूलम्

पुरा वैकर्तनं कर्णमेष पापो घटोत्कचः।
मायाबलं समाश्रित्य कर्षयत्यरिकर्शन ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘शत्रुसूदन! कहीं ऐसा न हो कि यह पापी घटोत्कच मायाबलका आश्रय ले वैकर्तन कर्णको पहले ही नष्ट कर दे’॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तः स राज्ञा तु राक्षसो भीमविक्रमः।
तथेत्युक्त्वा महाबाहुर्घटोत्कचमुपाद्रवत् ॥ १३ ॥

मूलम्

एवमुक्तः स राज्ञा तु राक्षसो भीमविक्रमः।
तथेत्युक्त्वा महाबाहुर्घटोत्कचमुपाद्रवत् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा दुर्योधनके ऐसा कहनेपर उस भयंकर पराक्रमी महाबाहु राक्षसने ‘बहुत अच्छा’ कहकर घटोत्कचपर धावा किया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कर्णं समुत्सृज्य भैमसेनिरपि प्रभो।
प्रत्यमित्रमुपायान्तमर्दयामास मार्गणैः ॥ १४ ॥

मूलम्

ततः कर्णं समुत्सृज्य भैमसेनिरपि प्रभो।
प्रत्यमित्रमुपायान्तमर्दयामास मार्गणैः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! तब घटोत्कचने भी कर्णको छोड़कर अपने समीप आते हुए शत्रुको बाणोंद्वारा पीड़ित करना आरम्भ किया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः समभवद् युद्धं क्रुद्धयो राक्षसेन्द्रयोः।
मत्तयोर्वासिताहेतोर्द्विपयोरिव कानने ॥ १५ ॥

मूलम्

तयोः समभवद् युद्धं क्रुद्धयो राक्षसेन्द्रयोः।
मत्तयोर्वासिताहेतोर्द्विपयोरिव कानने ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर तो क्रोधमें भरे हुए उन दोनों राक्षसराजोंमें वनके भीतर हथिनीके लिये लड़नेवाले दो मतवाले हाथियोंके समान घोर युद्ध होने लगा॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्षसा विप्रमुक्तस्तु कर्णोऽपि रथिनां वरः।
अभ्यद्रवद् भीमसेनं रथेनादित्यवर्चसा ॥ १६ ॥

मूलम्

रक्षसा विप्रमुक्तस्तु कर्णोऽपि रथिनां वरः।
अभ्यद्रवद् भीमसेनं रथेनादित्यवर्चसा ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राक्षससे छूटनेपर रथियोंमें श्रेष्ठ कर्णने भी सूर्यके समान तेजस्वी रथके द्वारा भीमसेनपर धावा किया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमायान्तमनादृत्य दृष्ट्वा ग्रस्तं घटोत्कचम्।
अलायुधेन समरे सिंहेनेव गवां पतिम् ॥ १७ ॥
रथेनादित्यवपुषा भीमः प्रहरतां वरः।
किरन् शरौघान् प्रययावलायुधरथं प्रति ॥ १८ ॥

मूलम्

तमायान्तमनादृत्य दृष्ट्वा ग्रस्तं घटोत्कचम्।
अलायुधेन समरे सिंहेनेव गवां पतिम् ॥ १७ ॥
रथेनादित्यवपुषा भीमः प्रहरतां वरः।
किरन् शरौघान् प्रययावलायुधरथं प्रति ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आते हुए कर्णकी उपेक्षा करके समरांगणमें सिंहके चंगुलमें फँसे हुए साँड़की भाँति घटोत्कचको अलायुधका ग्रास बनते देख योद्धाओंमें श्रेष्ठ भीमसेन सूर्यके समान तेजस्वी रथके द्वारा बाणसमूहोंकी वर्षा करते हुए अलायुधके रथकी ओर बड़े वेगसे बढ़े॥१७-१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमायान्तमभिप्रेक्ष्य स तदालायुधः प्रभो।
घटोत्कचं समुत्सृज्य भीमसेनं समाह्वयत् ॥ १९ ॥

मूलम्

तमायान्तमभिप्रेक्ष्य स तदालायुधः प्रभो।
घटोत्कचं समुत्सृज्य भीमसेनं समाह्वयत् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! उस समय उन्हें आते देख अलायुधने घटोत्कचको छोड़कर भीमसेनको ललकारा॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीमः सहसाभ्येत्य राक्षसान्तकरः प्रभो।
सगणं राक्षसेन्द्रं तं शरवर्षैरवाकिरत् ॥ २० ॥

मूलम्

तं भीमः सहसाभ्येत्य राक्षसान्तकरः प्रभो।
सगणं राक्षसेन्द्रं तं शरवर्षैरवाकिरत् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! राक्षसोंका विनाश करनेवाले भीमने सहसा निकट जाकर सैनिकगणोंसहित राक्षसराज अलायुधको अपने बाणोंकी वर्षासे ढक दिया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैवालायुधो राजन् शिलाधौतैरजिह्मगैः ।
अभ्यवर्षत कौन्तेयं पुनः पुनररिंदम ॥ २१ ॥

मूलम्

तथैवालायुधो राजन् शिलाधौतैरजिह्मगैः ।
अभ्यवर्षत कौन्तेयं पुनः पुनररिंदम ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंका दमन करनेवाले नरेश! उसी प्रकार अलायुध भी कुन्तीकुमार भीमसेनपर शिलापर तेज किये हुए बाणोंकी बारंबार वर्षा करने लगा॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा ते राक्षसाः सर्वे भीमसेनमुपाद्रवन्।
नानाप्रहरणा भीमास्त्वत्सुतानां जयैषिणः ॥ २२ ॥

मूलम्

तथा ते राक्षसाः सर्वे भीमसेनमुपाद्रवन्।
नानाप्रहरणा भीमास्त्वत्सुतानां जयैषिणः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्रोंकी विजय चाहनेवाले वे समस्त भयंकर राक्षस हाथोंमें नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र लेकर भीमसेनपर टूट पड़े॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स ताड्यमानो बहुभिर्भीमसेनो महाबलः।
पञ्चभिः पञ्चभिः सर्वांस्तानविध्यच्छितैः शरैः ॥ २३ ॥

मूलम्

स ताड्यमानो बहुभिर्भीमसेनो महाबलः।
पञ्चभिः पञ्चभिः सर्वांस्तानविध्यच्छितैः शरैः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुत-से योद्धाओंकी मार खाकर महाबली भीमसेनने उन सबको पाँच-पाँच तीखे बाणोंसे घायल कर दिया॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वध्यमाना भीमेन राक्षसाः क्रूरबुद्धयः।
विनेदुस्तुमुलान्नादान् दुद्रुवुस्ते दिशो दश ॥ २४ ॥

मूलम्

ते वध्यमाना भीमेन राक्षसाः क्रूरबुद्धयः।
विनेदुस्तुमुलान्नादान् दुद्रुवुस्ते दिशो दश ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनके बाणोंकी चोट खाकर वे क्रूरबुद्धि राक्षस भयंकर चीत्कार करने और दसों दिशाओंमें भागने लगे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तांस्त्रास्यमानान् भीमेन दृष्ट्वा रक्षो महाबलम्।
अभिदुद्राव वेगेन शरैश्चैनमवाकिरत् ॥ २५ ॥

मूलम्

तांस्त्रास्यमानान् भीमेन दृष्ट्वा रक्षो महाबलम्।
अभिदुद्राव वेगेन शरैश्चैनमवाकिरत् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमके द्वारा उन राक्षसोंको भयभीत होते देख महाबली राक्षस अलायुधने बड़े वेगसे भीमसेनपर धावा किया और उन्हें बाणोंसे ढक दिया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीमसेनः समरे तीक्ष्णाग्रैरक्षिणोच्छरैः।
अलायुधस्तु तानस्तान् भीमेन विशिखान् रणे ॥ २६ ॥
चिच्छेद कांश्चित् समरे त्वरया कांश्चिदग्रहीत्।

मूलम्

तं भीमसेनः समरे तीक्ष्णाग्रैरक्षिणोच्छरैः।
अलायुधस्तु तानस्तान् भीमेन विशिखान् रणे ॥ २६ ॥
चिच्छेद कांश्चित् समरे त्वरया कांश्चिदग्रहीत्।

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीमसेनने समरांगणमें तीखी धारवाले बाणोंसे अलायुधको क्षत-विक्षत कर दिया। अलायुधने भीमसेनके चलाये हुए कुछ बाणोंको रणभूमिमें काट दिया और कुछ बाणोंको बड़ी शीघ्रताके साथ हाथसे पकड़ लिया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तं दृष्ट्वा राक्षसेन्द्रं भीमो भीमपराक्रमः ॥ २७ ॥
गदां चिक्षेप वेगेन वज्रपातोपमां तदा।

मूलम्

स तं दृष्ट्वा राक्षसेन्द्रं भीमो भीमपराक्रमः ॥ २७ ॥
गदां चिक्षेप वेगेन वज्रपातोपमां तदा।

अनुवाद (हिन्दी)

भयंकर पराक्रमी भीमसेनने राक्षसराज अलायुधको ऐसा पराक्रम करते देख उस समय उसके ऊपर वज्रपातके समान अपनी भयंकर गदा बड़े वेगसे चलायी॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तामापतन्तीं वेगेन गदां ज्वालाकुलां ततः ॥ २८ ॥
गदया ताडयामास सा गदा भीममाव्रजत्।

मूलम्

तामापतन्तीं वेगेन गदां ज्वालाकुलां ततः ॥ २८ ॥
गदया ताडयामास सा गदा भीममाव्रजत्।

अनुवाद (हिन्दी)

ज्वालासे व्याप्त हुई उस गदाको वेगसे आती देख अलायुधने उसपर अपनी गदासे आघात किया। फिर वह गदा भीमके पास ही लौट आयी॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स राक्षसेन्द्रं कौन्तेयः शरवर्षैरवाकिरत् ॥ २९ ॥
तानप्यस्याकरोन्मोघान् राक्षसो निशितैः शरैः।

मूलम्

स राक्षसेन्द्रं कौन्तेयः शरवर्षैरवाकिरत् ॥ २९ ॥
तानप्यस्याकरोन्मोघान् राक्षसो निशितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर कुन्तीकुमार भीमसेनने राक्षसराज अलायुधपर बाणोंकी झड़ी लगा दी; परंतु उस राक्षसने अपने तीखे बाणोंद्वारा उनके वे सभी बाण व्यर्थ कर दिये॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते चापि राक्षसाः सर्वे रजन्यां भीमरूपिणः ॥ ३० ॥
शासनाद् राक्षसेन्द्रस्य निजघ्नू रथकुञ्जरान्।

मूलम्

ते चापि राक्षसाः सर्वे रजन्यां भीमरूपिणः ॥ ३० ॥
शासनाद् राक्षसेन्द्रस्य निजघ्नू रथकुञ्जरान्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस रातमें भयंकर रूपधारी सम्पूर्ण राक्षसोंने भी राक्षसराज अलायुधकी आज्ञासे कितने ही रथों और हाथियोंको नष्ट कर दिया॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चालाः सृञ्जयाश्चैव वाजिनः परमद्विपाः ॥ ३१ ॥
न शान्तिं लेभिरे तत्र राक्षसैर्भृशपीडिताः।

मूलम्

पञ्चालाः सृञ्जयाश्चैव वाजिनः परमद्विपाः ॥ ३१ ॥
न शान्तिं लेभिरे तत्र राक्षसैर्भृशपीडिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

उन राक्षसोंसे अत्यन्त पीड़ित होकर पांचाल और सृंजयवंशी क्षत्रिय तथा उनके घोड़े और बड़े-बड़े हाथी भी शान्ति न पा सके॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं तु दृष्ट्वा महाघोरं वर्तमानं महाहवम् ॥ ३२ ॥
अब्रवीत् पुण्डरीकाक्षो धनंजयमिदं वचः।
पश्य भीमं महाबाहुं राक्षसेन्द्रवशं गतम् ॥ ३३ ॥
पदमस्यानुगच्छ त्वं मा विचारय पाण्डव।

मूलम्

तं तु दृष्ट्वा महाघोरं वर्तमानं महाहवम् ॥ ३२ ॥
अब्रवीत् पुण्डरीकाक्षो धनंजयमिदं वचः।
पश्य भीमं महाबाहुं राक्षसेन्द्रवशं गतम् ॥ ३३ ॥
पदमस्यानुगच्छ त्वं मा विचारय पाण्डव।

अनुवाद (हिन्दी)

उस महाभयंकर वर्तमान महायुद्धको देखकर कमलनयन भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनसे इस प्रकार कहा—‘पाण्डुनन्दन! देखो, महाबाहु भीमसेन राक्षसराज अलायुधके वशमें पड़ गये हैं। तुम शीघ्र उन्हींके मार्गपर चलो। कोई दूसरा विचार मनमें न लाओ॥३२-३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च युधामन्यूत्तमौजसौ ॥ ३४ ॥
सहितौ द्रौपदेयाश्च कर्णं यान्तु महारथाः।

मूलम्

धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च युधामन्यूत्तमौजसौ ॥ ३४ ॥
सहितौ द्रौपदेयाश्च कर्णं यान्तु महारथाः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, साथ रहनेवाले युधामन्यु और उत्तमौजा तथा द्रौपदीके पाँचों पुत्र—ये सभी महारथी एक साथ होकर कर्णपर धावा करें॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलः सहदेवश्च युयुधानश्च वीर्यवान् ॥ ३५ ॥
इतरान् राक्षसान् घ्नन्तु शासनात् तव पाण्डव।

मूलम्

नकुलः सहदेवश्च युयुधानश्च वीर्यवान् ॥ ३५ ॥
इतरान् राक्षसान् घ्नन्तु शासनात् तव पाण्डव।

अनुवाद (हिन्दी)

‘पाण्डुपुत्र! नकुल, सहदेव और पराक्रमी सात्यकि—ये तुम्हारे आदेशसे अन्य राक्षसोंका वध करें॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वमपीमां महाबाहो चमूं द्रोणपुरस्कृताम् ॥ ३६ ॥
वारयस्व नरव्याघ्र महद्धि भयमागतम्।

मूलम्

त्वमपीमां महाबाहो चमूं द्रोणपुरस्कृताम् ॥ ३६ ॥
वारयस्व नरव्याघ्र महद्धि भयमागतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाबाहु! तुम भी द्रोण जिसके अगुआ हैं, इस कौरव-सेनाको आगे बढ़नेसे रोको; क्योंकि नरव्याघ्र! पाण्डव-सेनापर महान् भय आ पहुँचा है’॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्ते तु कृष्णेन यथोद्दिष्टा महारथाः ॥ ३७ ॥
जग्मुर्वैकर्तनं कर्णं राक्षसांश्चैव तान् रणे।

मूलम्

एवमुक्ते तु कृष्णेन यथोद्दिष्टा महारथाः ॥ ३७ ॥
जग्मुर्वैकर्तनं कर्णं राक्षसांश्चैव तान् रणे।

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीकृष्णके ऐसा कहनेपर वे सभी महारथी उनके आदेशके अनुसार रणभूमिमें वैकर्तन कर्ण तथा उन राक्षसोंका सामना करनेके लिये चले गये॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ पूर्णायतोत्सृष्टैः शरैराशीविषोपमैः ॥ ३८ ॥
धनुश्चिच्छेद भीमस्य राक्षसेन्द्रः प्रतापवान्।

मूलम्

अथ पूर्णायतोत्सृष्टैः शरैराशीविषोपमैः ॥ ३८ ॥
धनुश्चिच्छेद भीमस्य राक्षसेन्द्रः प्रतापवान्।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर प्रतापी राक्षसराज अलायुधने धनुषको पूर्णतः खींचकर छोड़े गये विषधर सर्पके समान भयंकर बाणोंद्वारा भीमसेनके धनुषको काट डाला॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयांश्चास्य शितैर्बाणैः सारथिं च महाबलः ॥ ३९ ॥
जघान मिषतः संख्ये भीमसेनस्य राक्षसः।

मूलम्

हयांश्चास्य शितैर्बाणैः सारथिं च महाबलः ॥ ३९ ॥
जघान मिषतः संख्ये भीमसेनस्य राक्षसः।

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही, उस महाबली निशाचरने युद्धमें भीमसेनके देखते-देखते पैने बाणोंद्वारा उनके सारथि और घोड़ोंको भी मार डाला॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽवतीर्य रथोपस्थाद्धताश्वो हतसारथिः ॥ ४० ॥
तस्मै गुर्वीं गदां घोरां विनदन्नुत्ससर्ज ह।

मूलम्

सोऽवतीर्य रथोपस्थाद्धताश्वो हतसारथिः ॥ ४० ॥
तस्मै गुर्वीं गदां घोरां विनदन्नुत्ससर्ज ह।

अनुवाद (हिन्दी)

घोड़ों और सारथिके मारे जानेपर रथकी बैठकसे नीचे उतरकर गर्जते हुए भीमसेनने उस राक्षसपर अपनी भारी एवं भयंकर गदा दे मारी॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तां भीमनिर्घोषामापतन्तीं महागदाम् ॥ ४१ ॥
गदया राक्षसो घोरो निजघान ननाद च।

मूलम्

ततस्तां भीमनिर्घोषामापतन्तीं महागदाम् ॥ ४१ ॥
गदया राक्षसो घोरो निजघान ननाद च।

अनुवाद (हिन्दी)

भयानक शब्द करनेवाली उस विशाल गदाको आती देख भयंकर राक्षस अलायुधने अपनी गदासे उसपर आघात किया और बड़े जोरसे गर्जना की॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् दृष्ट्वा राक्षसेन्द्रस्य घोरं कर्म भयावहम् ॥ ४२ ॥
भीमसेनः प्रहृष्टात्मा गदामाशु परामृशत्।

मूलम्

तद् दृष्ट्वा राक्षसेन्द्रस्य घोरं कर्म भयावहम् ॥ ४२ ॥
भीमसेनः प्रहृष्टात्मा गदामाशु परामृशत्।

अनुवाद (हिन्दी)

राक्षसराज अलायुधके उस भयदायक घोर कर्मको देखकर भीमसेनका हृदय हर्ष और उत्साहसे भर गया और उन्होंने शीघ्र ही गदा हाथमें ले ली॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः समभवद् युद्धं तुमुलं नररक्षसोः ॥ ४३ ॥
गदानिपातसंह्रादैर्भुवं कम्पयतोर्भृशम् ।

मूलम्

तयोः समभवद् युद्धं तुमुलं नररक्षसोः ॥ ४३ ॥
गदानिपातसंह्रादैर्भुवं कम्पयतोर्भृशम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर गदाओंके टकरानेकी आवाजसे भूतलको अत्यन्त कम्पित करते हुए उन दोनों मनुष्य और राक्षसोंमें वहाँ भयंकर युद्ध होने लगा॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदाविमुक्तौ तौ भूयः समासाद्येतरेतरम् ॥ ४४ ॥
मुष्टिभिर्वज्रसंह्रादैरन्योन्यमभिजघ्नतुः ।

मूलम्

गदाविमुक्तौ तौ भूयः समासाद्येतरेतरम् ॥ ४४ ॥
मुष्टिभिर्वज्रसंह्रादैरन्योन्यमभिजघ्नतुः ।

अनुवाद (हिन्दी)

गदासे छूटते ही वे दोनों फिर एक-दूसरेसे गुथ गये और वज्रपातकी-सी आवाज करनेवाले मुक्कोंसे एक-दूसरेको मारने लगे॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथचक्रैर्युगैरक्षैरधिष्ठानैरुपस्करैः ॥ ४५ ॥
यथासन्नमुपादाय निजघ्नतुरमर्षणौ ।

मूलम्

रथचक्रैर्युगैरक्षैरधिष्ठानैरुपस्करैः ॥ ४५ ॥
यथासन्नमुपादाय निजघ्नतुरमर्षणौ ।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् अमर्षमें भरकर वे दोनों रथके पहियों, जूओं, धुरों, बैठकों और अन्य उपकरणोंसे तथा जो भी वस्तु समीप मिल जाती, उसीको लेकर एक-दूसरेपर चोट करने लगे॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ विक्षरन्तौ रुधिरं समासाद्येतरेतरम् ॥ ४६ ॥
मत्ताविव महानागौ चकृषाते पुनः पुनः।

मूलम्

तौ विक्षरन्तौ रुधिरं समासाद्येतरेतरम् ॥ ४६ ॥
मत्ताविव महानागौ चकृषाते पुनः पुनः।

अनुवाद (हिन्दी)

वे मदस्रावी मतवाले गजराजोंके समान अपने अंगोंसे रुधिरकी धारा बहाते हुए एक-दूसरेसे भिड़कर बारंबार खींचातानी करने लगे॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदपश्यद्हृषीकेशः पाण्डवानां हिते रतः।
स भीमसेनरक्षार्थं हैडिम्बिं पर्यचोदयत् ॥ ४७ ॥

मूलम्

तदपश्यद्हृषीकेशः पाण्डवानां हिते रतः।
स भीमसेनरक्षार्थं हैडिम्बिं पर्यचोदयत् ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंके हितमें तत्पर रहनेवाले भगवान् श्रीकृष्णने जब वह युद्ध देखा, तब भीमसेनकी रक्षाके लिये हिडिम्बाकुमार घटोत्कचको भेजा॥४७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धेऽलायुधयुद्धे सप्तसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १७७ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत घटोत्कचवधपर्वमें रात्रियुद्धके प्रसंगमें अलायुधयुद्धविषयक एक सौ सतहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१७७॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल ४८ श्लोक हैं।)