१७६ रात्रियुद्धेऽलायुधयुद्धे

भागसूचना

षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अलायुधका युद्धस्थलमें प्रवेश तथा उसके स्वरूप और रथ आदिका वर्णन

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्तथा वर्तमाने कर्णराक्षसयोर्मृधे ।
अलायुधो राक्षसेन्द्रो वीर्यवानभ्यवर्तत ॥ १ ॥

मूलम्

तस्मिंस्तथा वर्तमाने कर्णराक्षसयोर्मृधे ।
अलायुधो राक्षसेन्द्रो वीर्यवानभ्यवर्तत ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! इस प्रकार कर्ण और घटोत्कचका वह युद्ध चल ही रहा था कि पराक्रमी राक्षसराज अलायुध वहाँ उपस्थित हुआ॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महत्या सेनया युक्तो दुर्योधनमुपागमत्।
राक्षसानां विरूपाणां सहस्रैः परिवारितः ॥ २ ॥

मूलम्

महत्या सेनया युक्तो दुर्योधनमुपागमत्।
राक्षसानां विरूपाणां सहस्रैः परिवारितः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह सहस्रों विकराल रूपवाले राक्षसोंसे घिरकर अपनी विशाल सेनाके साथ दुर्योधनके पास आया॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानारूपधरैर्वीरैः पूर्ववैरमनुस्मरन् ।
तस्य ज्ञातिर्हि विक्रान्तो ब्राह्मणादो बको हतः ॥ ३ ॥

मूलम्

नानारूपधरैर्वीरैः पूर्ववैरमनुस्मरन् ।
तस्य ज्ञातिर्हि विक्रान्तो ब्राह्मणादो बको हतः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके साथ अनेक रूप धारण करनेवाले वीर राक्षस मौजूद थे। वह पहलेके वैरका स्मरण करके वहाँ आया था। उसका कुटुम्बी बन्धु ब्राह्मणभक्षी पराक्रमी बकासुर भीमसेनके द्वारा मारा गया था॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किर्मीरश्च महातेजा हैडिम्बश्च सखा तदा।
स दीर्घकालाध्युषितं पूर्ववैरमनुस्मरन् ॥ ४ ॥

मूलम्

किर्मीरश्च महातेजा हैडिम्बश्च सखा तदा।
स दीर्घकालाध्युषितं पूर्ववैरमनुस्मरन् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके सखा हिडिम्ब और महातेजस्वी किर्मीर भी उन्हींके हाथसे मारे गये थे। इस प्रकार दीर्घकालसे मनमें रखे हुए पहलेके वैरको उस समय वह बारंबार स्मरण कर रहा था॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विज्ञायैतन्निशायुद्धं जिघांसुर्भीममाहवे ।
स मत्त इव मातङ्गः संक्रुद्ध इव चोरगः ॥ ५ ॥
दुर्योधनमिदं वाक्यमब्रवीद् युद्धलालसः ।

मूलम्

विज्ञायैतन्निशायुद्धं जिघांसुर्भीममाहवे ।
स मत्त इव मातङ्गः संक्रुद्ध इव चोरगः ॥ ५ ॥
दुर्योधनमिदं वाक्यमब्रवीद् युद्धलालसः ।

अनुवाद (हिन्दी)

रात्रिमें होनेवाले इस संग्रामका समाचार पाकर रणभूमिमें भीमसेनको मार डालनेकी इच्छासे वह मतवाले हाथी और क्रोधमें भरे हुए सर्पकी भाँति युद्धकी लालसा मनमें रखकर दुर्योधनसे इस प्रकार बोला—॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विदितं ते महाराज यथा भीमेन राक्षसाः ॥ ६ ॥
हिडिम्बबककिर्मीरा निहता मम बान्धवाः।

मूलम्

विदितं ते महाराज यथा भीमेन राक्षसाः ॥ ६ ॥
हिडिम्बबककिर्मीरा निहता मम बान्धवाः।

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाराज! आपको तो मालूम ही होगा कि भीमसेनने हमारे राक्षस भाई-बन्धु हिडिम्ब, बक और किर्मीरका किस प्रकार वध कर डाला है॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परामर्शश्च कन्याया हिडिम्बायाः कृतः पुरा ॥ ७ ॥
किमन्यद् राक्षसानन्यानस्मांश्च परिभूय ह।

मूलम्

परामर्शश्च कन्याया हिडिम्बायाः कृतः पुरा ॥ ७ ॥
किमन्यद् राक्षसानन्यानस्मांश्च परिभूय ह।

अनुवाद (हिन्दी)

‘इतना ही नहीं, उन्होंने मेरा तथा दूसरे राक्षसोंका अपमान करके पूर्वकालमें राक्षसकन्या हिडिम्बाके साथ भी बलात्कार किया था। इससे बढ़कर दूसरा अपराध क्या हो सकता है?॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमहं सगणं राजन् सवाजिरथकुञ्जरम् ॥ ८ ॥
हैडिम्बिं च सहामात्यं हन्तुमभ्यागतः स्वयम्।

मूलम्

तमहं सगणं राजन् सवाजिरथकुञ्जरम् ॥ ८ ॥
हैडिम्बिं च सहामात्यं हन्तुमभ्यागतः स्वयम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘अतः राजन्! मैं सैन्यसमूह, घोड़े, हाथी और रथोंसहित भीमसेनको तथा मन्त्रियोंसहित हिडिम्बापुत्र घटोत्कचको मार डालनेके लिये स्वयं यहाँ आया हूँ॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य कुन्तीसुतान् सर्वान् वासुदेवपुरोगमान् ॥ ९ ॥
हत्वा सम्भक्षयिष्यामि सर्वैरनुचरैः सह।

मूलम्

अद्य कुन्तीसुतान् सर्वान् वासुदेवपुरोगमान् ॥ ९ ॥
हत्वा सम्भक्षयिष्यामि सर्वैरनुचरैः सह।

अनुवाद (हिन्दी)

‘श्रीकृष्ण जिनके अगुआ हैं, उन सभी कुन्तीपुत्रोंको मारकर आज मैं समस्त अनुचरोंके साथ उन्हें खा जाऊँगा॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निवारय बलं सर्वं वयं योत्स्याम पाण्डवान् ॥ १० ॥
तस्यैतद् वचनं श्रुत्वा हृष्टो दुर्योधनस्तदा।
प्रतिगृह्याब्रवीद् वाक्यं भ्रातृभिः परिवारितः ॥ ११ ॥

मूलम्

निवारय बलं सर्वं वयं योत्स्याम पाण्डवान् ॥ १० ॥
तस्यैतद् वचनं श्रुत्वा हृष्टो दुर्योधनस्तदा।
प्रतिगृह्याब्रवीद् वाक्यं भ्रातृभिः परिवारितः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अतः आप अपनी सारी सेनाको रोक दीजिये। पाण्डवोंके साथ हमलोग युद्ध करेंगे।’ उसकी यह बात सुनकर भाइयोंसे घिरे हुए राजा दुर्योधनको बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने अलायुधका प्रस्ताव स्वीकार करते हुए कहा—॥१०-११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वां पुरस्कृत्य सगणं वयं योत्स्यामहे परान्।
न हि वैरान्तमनसः स्थास्यन्ति मम सैनिकाः ॥ १२ ॥

मूलम्

त्वां पुरस्कृत्य सगणं वयं योत्स्यामहे परान्।
न हि वैरान्तमनसः स्थास्यन्ति मम सैनिकाः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘राक्षसराज! सैनिकोंसहित तुम्हें आगे रखकर हमलोग भी शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे; क्योंकि जिनका मन वैरका अन्त करनेमें लगा हुआ है, वे मेरे सैनिक चुपचाप खड़े नहीं रहेंगे’॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमस्त्विति राजानमुक्त्वा राक्षसपुङ्गवः ।
अभ्ययात् त्वरितो भैमिं सहितः पुरुषादकैः ॥ १३ ॥

मूलम्

एवमस्त्विति राजानमुक्त्वा राक्षसपुङ्गवः ।
अभ्ययात् त्वरितो भैमिं सहितः पुरुषादकैः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अच्छा, ऐसा ही हो।’ राजा दुर्योधनसे इस प्रकार कहकर राक्षसराज अलायुध तुरंत ही राक्षसोंके साथ भीमसेनपुत्र घटोत्कचके सामने गया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीप्यमानेन वपुषा रथेनादित्यवर्चसा ।
तादृशेनैव राजेन्द्र यादृशेन घटोत्कचः ॥ १४ ॥

मूलम्

दीप्यमानेन वपुषा रथेनादित्यवर्चसा ।
तादृशेनैव राजेन्द्र यादृशेन घटोत्कचः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! उसका शरीर देदीप्यमान हो रहा था। वह भी सूर्यके समान तेजस्वी वैसे ही रथपर आरूढ़ होकर गया, जैसे रथसे घटोत्कच आया था॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याप्यतुलनिर्घोषो बहुतोरणचित्रितः ।
ऋक्षचर्मावनद्धाङ्गो नल्वमात्रो महारथः ॥ १५ ॥

मूलम्

तस्याप्यतुलनिर्घोषो बहुतोरणचित्रितः ।
ऋक्षचर्मावनद्धाङ्गो नल्वमात्रो महारथः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसका विशाल रथ भी अनेक तोरणोंसे विचित्र शोभा पा रहा था। उसकी घर्घराहट भी अनुपम थी। उसके ऊपर भी रीछका चाम मढ़ा हुआ था और उसकी लंबाई-चौड़ाई भी चार सौ हाथ थी॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यापि तुरगाः शीघ्रा हस्तिकायाः खरस्वनाः।
शतं युक्ता महाकाया मांसशोणितभोजनाः ॥ १६ ॥

मूलम्

तस्यापि तुरगाः शीघ्रा हस्तिकायाः खरस्वनाः।
शतं युक्ता महाकाया मांसशोणितभोजनाः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके रथमें जुते हुए घोड़े भी हाथीके समान मोटे शरीरवाले, शीघ्रगामी और गदहोंके समान उच्चस्वरसे हिनहिनानेवाले थे। उनकी संख्या सौ थी। वे विशालकाय अश्व मांस और रक्त भोजन करते थे॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यापि रथनिर्घोषो महामेघरवोपमः ।
तस्यापि सुमहच्चापं दृढज्यं कनकोज्ज्वलम् ॥ १७ ॥

मूलम्

तस्यापि रथनिर्घोषो महामेघरवोपमः ।
तस्यापि सुमहच्चापं दृढज्यं कनकोज्ज्वलम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके रथका गम्भीर घोष भी महामेघकी गर्जनाके समान जान पड़ता था। उसका धनुष भी विशाल, सुदृढ़ प्रत्यंचासे युक्त तथा सुवर्णजटित होनेके कारण प्रकाशमान था॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याप्यक्षसमा बाणा रुक्मपुङ्खाः शिलाशिताः।
सोऽपि वीरो महाबाहुर्यथैव स घटोत्कचः ॥ १८ ॥

मूलम्

तस्याप्यक्षसमा बाणा रुक्मपुङ्खाः शिलाशिताः।
सोऽपि वीरो महाबाहुर्यथैव स घटोत्कचः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके बाण भी शिलापर तेज किये हुए थे। वे भी धुरेके समान मोटे और सुवर्णमय पंखोंसे सुशोभित थे। अलायुध भी वैसा ही महाबाहु वीर था, जैसा कि घटोत्कच था॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यापि गोमायुबलाभिगुप्तो
बभूव केतुर्ज्वलनार्कतुल्यः ।
स चापि रूपेण घटोत्कचस्य
श्रीमत्तमो व्याकुलदीपितास्यः ॥ १९ ॥

मूलम्

तस्यापि गोमायुबलाभिगुप्तो
बभूव केतुर्ज्वलनार्कतुल्यः ।
स चापि रूपेण घटोत्कचस्य
श्रीमत्तमो व्याकुलदीपितास्यः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अलायुधका ध्वज भी अग्नि और सूर्यके समान तेजस्वी था। वह गीदड़-समूहसे चिह्नित दिखायी देता था। उसका स्वरूप भी घटोत्कचके ही समान अत्यन्त कान्तिमान् था। उसका मुख भी विकराल एवं प्रज्वलित जान पड़ता था॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीप्ताङ्गदो दीप्तकिरीटमाली
बद्धस्रगुष्णीषनिबद्धखड्‌गः ।
गदी भुशुण्डी मुसली हली च
शरासनी वारणतुल्यवर्ष्मा ॥ २० ॥

मूलम्

दीप्ताङ्गदो दीप्तकिरीटमाली
बद्धस्रगुष्णीषनिबद्धखड्‌गः ।
गदी भुशुण्डी मुसली हली च
शरासनी वारणतुल्यवर्ष्मा ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसकी भुजाओंमें बाजूबंद चमक रहे थे। मस्तकपर दीप्तिमान् मुकुट प्रकाशित हो रहा था। उसने हार पहन रखे थे। उसकी पगड़ीमें तलवार बँधी हुई थी। उसका शरीर हाथीके समान था तथा वह गदा, भुशुण्डी, मुसल, हल और धनुष आदि अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न था॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथेन तेनानलवर्चसा तदा
विद्रावयन् पाण्डववाहिनीं ताम् ।
रराज संख्ये परिवर्तमानो
विद्युन्माली मेघ इवान्तरिक्षे ॥ २१ ॥

मूलम्

रथेन तेनानलवर्चसा तदा
विद्रावयन् पाण्डववाहिनीं ताम् ।
रराज संख्ये परिवर्तमानो
विद्युन्माली मेघ इवान्तरिक्षे ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अग्निके समान तेजस्वी पूर्वोक्त रथके द्वारा उस समय पाण्डव-सेनाको खदेड़ता हुआ अलायुध युद्धस्थलमें सब ओर घूमकर आकाशमें विद्युन्मालासे प्रकाशित मेघके समान सुशोभित हो रहा था॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते चापि सर्वप्रवरा नरेन्द्रा
महाबला वर्मिणश्चर्मिणश्च ।
हर्षान्विता युयुधुस्तस्य राजन्
समन्ततः पाण्डवयोधवीराः ॥ २२ ॥

मूलम्

ते चापि सर्वप्रवरा नरेन्द्रा
महाबला वर्मिणश्चर्मिणश्च ।
हर्षान्विता युयुधुस्तस्य राजन्
समन्ततः पाण्डवयोधवीराः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब पाण्डवपक्षके सर्वश्रेष्ठ महाबली वीर योद्धा नरेश भी कवच और ढालसे सुसज्जित हो हर्ष और उत्साहमें भरकर सब ओरसे उस राक्षसके साथ युद्ध करने लगे॥२२॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धेऽलायुधयुद्धे षट्‌सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १७६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत घटोत्कचवधपर्वमें रात्रियुद्धके प्रसंगमें अलायुधयुद्धविषयक एक सौ छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१७६॥