भागसूचना
चतुःसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
घटोत्कच और जटासुरके पुत्र अलम्बुषका घोर युद्ध तथा अलम्बुषका वध
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा घटोत्कचं राजन् सूतपुत्ररथं प्रति।
आयान्तं तु तथा युक्तं जिघांसुं कर्णमाहवे ॥ १ ॥
अब्रवीत् तत्र पुत्रस्ते दुःशासनमिदं वचः।
एतद् रक्षो रणे तूर्णं दृष्ट्वा कर्णस्य विक्रमम् ॥ २ ॥
अभियाति द्रुतं कर्णं तद् वारय महारथम्।
मूलम्
दृष्ट्वा घटोत्कचं राजन् सूतपुत्ररथं प्रति।
आयान्तं तु तथा युक्तं जिघांसुं कर्णमाहवे ॥ १ ॥
अब्रवीत् तत्र पुत्रस्ते दुःशासनमिदं वचः।
एतद् रक्षो रणे तूर्णं दृष्ट्वा कर्णस्य विक्रमम् ॥ २ ॥
अभियाति द्रुतं कर्णं तद् वारय महारथम्।
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! युद्धस्थलमें इस प्रकार कर्णका वध करनेकी इच्छासे उद्यत हुए घटोत्कचको सूतपुत्रके रथकी ओर आते देख आपके पुत्र दुर्योधनने दुःशासनसे इस प्रकार कहा—‘भाई! यह राक्षस रणभूमिमें कर्णका वेगपूर्वक पराक्रम देखकर तीव्र गतिसे उसपर आक्रमण कर रहा है; अतः उस महारथी घटोत्कचको रोको॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वृतः सैन्येन महता याहि यत्र महाबलः ॥ ३ ॥
कर्णो वैकर्तनो युद्धे राक्षसेन युयुत्सति।
मूलम्
वृतः सैन्येन महता याहि यत्र महाबलः ॥ ३ ॥
कर्णो वैकर्तनो युद्धे राक्षसेन युयुत्सति।
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम विशाल सेनासे घिरकर वहीं जाओ, जहाँ महाबली वैकर्तन कर्ण रणभूमिमें उस राक्षसके साथ युद्ध करना चाहता है॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रक्ष कर्णं रणे यत्तो वृतः सैन्येन मानद ॥ ४ ॥
मा कर्णं राक्षसो घोरः प्रमादान्नाशयिष्यति।
मूलम्
रक्ष कर्णं रणे यत्तो वृतः सैन्येन मानद ॥ ४ ॥
मा कर्णं राक्षसो घोरः प्रमादान्नाशयिष्यति।
अनुवाद (हिन्दी)
‘मानद! तुम सेनाके साथ सावधान होकर रणभूमिमें कर्णकी रक्षा करो। कहीं ऐसा न हो कि हमलोगोंके प्रमादवश वह भयंकर राक्षस कर्णका विनाश कर डाले’॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्मिन्नन्तरे राजन् जटासुरसुतो बली ॥ ५ ॥
दुर्योधनमुपागम्य प्राह प्रहरतां वरः।
मूलम्
एतस्मिन्नन्तरे राजन् जटासुरसुतो बली ॥ ५ ॥
दुर्योधनमुपागम्य प्राह प्रहरतां वरः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी समय जटासुरका बलवान् पुत्र योद्धाओंमें श्रेष्ठ एक राक्षस दुर्योधनके पास आकर इस प्रकार बोला—॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधन तवामित्रान् प्रख्यातान् युद्धदुर्मदान् ॥ ६ ॥
पाण्डवान् हन्तुमिच्छामि त्वयाऽऽज्ञप्तः सहानुगान्।
मूलम्
दुर्योधन तवामित्रान् प्रख्यातान् युद्धदुर्मदान् ॥ ६ ॥
पाण्डवान् हन्तुमिच्छामि त्वयाऽऽज्ञप्तः सहानुगान्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘दुर्योधन! यदि तुम्हारी आज्ञा हो तो मैं तुम्हारे विख्यात शत्रु रणदुर्मद पाण्डवोंका उनके सेवकोंसहित वध करना चाहता हूँ॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जटासुरो मम पिता रक्षसां ग्रामणीः पुरा ॥ ७ ॥
प्रयुज्य कर्म रक्षोघ्नं क्षुद्रैः पार्थैर्निपातितः।
मूलम्
जटासुरो मम पिता रक्षसां ग्रामणीः पुरा ॥ ७ ॥
प्रयुज्य कर्म रक्षोघ्नं क्षुद्रैः पार्थैर्निपातितः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘मेरे पिता जटासुर राक्षसोंके अगुआ थे। उन्हें पूर्वकालमें इन नीच कुन्तीकुमारोंने राक्षस-विनाशक कर्म करके मार गिराया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यापचितिमिच्छामि शत्रुशोणितपूजया ।
शत्रुमांसैश्च राजेन्द्र मामनुज्ञातुमर्हसि ॥ ८ ॥
मूलम्
तस्यापचितिमिच्छामि शत्रुशोणितपूजया ।
शत्रुमांसैश्च राजेन्द्र मामनुज्ञातुमर्हसि ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजेन्द्र! मैं शत्रुओंके रक्त और मांसद्वारा पिताकी पूजा करके उनके वधका बदला लेना चाहता हूँ। आप इसके लिये मुझे आज्ञा दें’॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमब्रवीत् ततो राजा प्रीयमाणः पुनः पुनः।
द्रोणकर्णादिभिः सार्धं पर्याप्तोऽहं द्विषद्वधे ॥ ९ ॥
त्वं तु गच्छ मयाऽऽज्ञप्तो जहि युद्धे घटोत्कचम्।
राक्षसं क्रूरकर्माणं रक्षोमानुषसम्भवम् ॥ १० ॥
मूलम्
तमब्रवीत् ततो राजा प्रीयमाणः पुनः पुनः।
द्रोणकर्णादिभिः सार्धं पर्याप्तोऽहं द्विषद्वधे ॥ ९ ॥
त्वं तु गच्छ मयाऽऽज्ञप्तो जहि युद्धे घटोत्कचम्।
राक्षसं क्रूरकर्माणं रक्षोमानुषसम्भवम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब राजा दुर्योधनने अत्यन्त प्रसन्न होकर बार-बार उससे कहा—‘वीरवर! द्रोणाचार्य और कर्ण आदिके साथ मिलकर मैं स्वयं ही तुम्हारे शत्रुओंका वध करनेमें समर्थ हूँ। तुम तो मेरी आज्ञासे घटोत्कचके पास जाओ और युद्धमें उसे मार डालो। वह क्रूरकर्मा निशाचर मनुष्य और राक्षस दोनोंके अंशसे उत्पन्न हुआ है॥९-१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाण्डवानां हितं नित्यं हस्त्यश्वरथघातिनम्।
वैहायसगतं युद्धे प्रेषयेर्यमसादनम् ॥ ११ ॥
मूलम्
पाण्डवानां हितं नित्यं हस्त्यश्वरथघातिनम्।
वैहायसगतं युद्धे प्रेषयेर्यमसादनम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘हाथियों, घोड़ों तथा रथोंका विनाश करनेवाला आकाशचारी राक्षस घटोत्कच सदा पाण्डवोंके हितमें तत्पर रहता है। तुम युद्धमें उसे मारकर यमलोक भेज दो’॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथेत्युक्त्वा महाकायः समाहूय घटोत्कचम्।
जाटासुरिर्भैमसेनिं नानाशस्त्रैरवाकिरत् ॥ १२ ॥
मूलम्
तथेत्युक्त्वा महाकायः समाहूय घटोत्कचम्।
जाटासुरिर्भैमसेनिं नानाशस्त्रैरवाकिरत् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जटासुरके पुत्रका नाम अलम्बुष था। उस विशालकाय राक्षसने दुर्योधनसे ‘तथास्तु’ कहकर भीमसेनपुत्र घटोत्कचको ललकारा और उसके ऊपर नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलम्बुषं च कर्णं च कुरुसैन्यं च दुस्तरम्।
हैडिम्बिः प्रममाथैको महावातोऽम्बुदानिव ॥ १३ ॥
मूलम्
अलम्बुषं च कर्णं च कुरुसैन्यं च दुस्तरम्।
हैडिम्बिः प्रममाथैको महावातोऽम्बुदानिव ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे आँधी बादलोंको छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अकेले हिडिम्बाकुमार घटोत्कचने अलम्बुष, कर्ण तथा उस दुर्लङ्घ्य कौरव-सेनाको भी मथ डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो मायाबलं दृष्ट्वा रक्षस्तूर्णमलम्बुषः।
घटोत्कचं शरव्रातैर्नानालिङ्गैः समार्पयत् ॥ १४ ॥
मूलम्
ततो मायाबलं दृष्ट्वा रक्षस्तूर्णमलम्बुषः।
घटोत्कचं शरव्रातैर्नानालिङ्गैः समार्पयत् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राक्षस अलम्बुषने घटोत्कचका मायाबल देखकर उसके ऊपर तुरंत ही नाना प्रकारके बाणसमूहोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विद््ध्वा च बहुभिर्बाणैर्भैमसेनिं महाबलः।
व्यद्रावयच्छरव्रातैः पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ १५ ॥
मूलम्
विद््ध्वा च बहुभिर्बाणैर्भैमसेनिं महाबलः।
व्यद्रावयच्छरव्रातैः पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महाबली निशाचरने भीमसेनकुमारको बहुत-से बाणोंद्वारा घायल करके अपने बाणसमूहोंसे पाण्डव-सेनाको खदेड़ना आरम्भ किया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेन विद्राव्यमाणानि पाण्डुसैन्यानि भारत।
निशीथे विप्रकीर्यन्ते वातनुन्ना घना इव ॥ १६ ॥
मूलम्
तेन विद्राव्यमाणानि पाण्डुसैन्यानि भारत।
निशीथे विप्रकीर्यन्ते वातनुन्ना घना इव ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! उसके खदेड़े हुए पाण्डवसैनिक हवाके उड़ाये हुए बादलोंके समान उस निशीथकालमें चारों ओर बिखर गये॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घटोत्कचशरैर्नुन्ना तथैव तव वाहिनी।
निशीथे प्राद्रवद् राजन्नुत्सृज्योल्काः सहस्रशः ॥ १७ ॥
मूलम्
घटोत्कचशरैर्नुन्ना तथैव तव वाहिनी।
निशीथे प्राद्रवद् राजन्नुत्सृज्योल्काः सहस्रशः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी प्रकार घटोत्कचके बाणोंसे छिन्न-भिन्न हुई आपकी सेना भी सहस्रों मशालें फेंककर आधी रातके समय सब ओर भाग चली॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलम्बुषस्ततः क्रुद्धो भैमसेनिं महामृधे।
आजघ्ने दशभिर्बाणैस्तोत्रैरिव महाद्विपम् ॥ १८ ॥
मूलम्
अलम्बुषस्ततः क्रुद्धो भैमसेनिं महामृधे।
आजघ्ने दशभिर्बाणैस्तोत्रैरिव महाद्विपम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब क्रोधमें भरे हुए अलम्बुषने उस महासमरमें भीमसेनकुमार घटोत्कचको दस बाणोंसे घायल कर दिया, मानो महावतने महान् गजराजको अंकुशोंसे मार दिया हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिलशस्तस्य संवाहं सूतं सर्वायुधानि च।
घटोत्कचः प्रचिच्छेद प्रणदंश्चातिदारुणम् ॥ १९ ॥
मूलम्
तिलशस्तस्य संवाहं सूतं सर्वायुधानि च।
घटोत्कचः प्रचिच्छेद प्रणदंश्चातिदारुणम् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख अत्यन्त भयंकर गर्जना करते हुए घटोत्कचने अलम्बुषके सारथि, घोड़ों और सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रोंको तिल-तिल करके काट डाला॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कर्णं शरव्रातैः कुरूनन्यान् सहस्रशः।
अलम्बुषं चाभ्यवर्षन्मेघो मेरुमिवाचलम् ॥ २० ॥
मूलम्
ततः कर्णं शरव्रातैः कुरूनन्यान् सहस्रशः।
अलम्बुषं चाभ्यवर्षन्मेघो मेरुमिवाचलम् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् जैसे मेघ मेरुपर्वतपर जलकी वर्षा करता है, उसी प्रकार उसने भी कर्णपर, अन्यान्य सहस्रों कौरवयोद्धाओंपर तथा अलम्बुषपर भी बाण-समूहोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः संचुक्षुभे सैन्यं कुरूणां राक्षसार्दितम्।
उपर्युपरि चान्योन्यं चतुरङ्गं ममर्द ह ॥ २१ ॥
मूलम्
ततः संचुक्षुभे सैन्यं कुरूणां राक्षसार्दितम्।
उपर्युपरि चान्योन्यं चतुरङ्गं ममर्द ह ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस राक्षससे पीड़ित हुई सम्पूर्ण चतुरंगिणी कौरव-सेना विक्षुब्ध हो उठी और आपसमें ही एक-दूसरेको नष्ट करने लगी॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जाटासुरिर्महाराज विरथो हतसारथिः ।
घटोत्कचं रणे क्रुद्धो मुष्टिनाभ्यहनद् दृढम् ॥ २२ ॥
मूलम्
जाटासुरिर्महाराज विरथो हतसारथिः ।
घटोत्कचं रणे क्रुद्धो मुष्टिनाभ्यहनद् दृढम् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस समय सारथिके मारे जानेपर रथहीन हुए अलम्बुषने रणभूमिमें कुपित हो घटोत्कचको बड़े जोरसे मुक्का मारा॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुष्टिनाभ्याहतस्तेन प्रचचाल घटोत्कचः ।
क्षितिकम्पे यथा शैलः सवृक्षस्तृणगुल्मवान् ॥ २३ ॥
मूलम्
मुष्टिनाभ्याहतस्तेन प्रचचाल घटोत्कचः ।
क्षितिकम्पे यथा शैलः सवृक्षस्तृणगुल्मवान् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके मुक्केकी मार खाकर घटोत्कच उसी प्रकार काँप उठा, जैसे भूकम्प होनेपर वृक्ष, तृण और गुल्मोंसहित पर्वत हिलने लगता है॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स परिघाभेन द्विट्संघघ्नेन बाहुना।
जाटासुरिं भैमसेनिरवधीन्मुष्टिना भृशम् ॥ २४ ॥
मूलम्
ततः स परिघाभेन द्विट्संघघ्नेन बाहुना।
जाटासुरिं भैमसेनिरवधीन्मुष्टिना भृशम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् भीमसेनपुत्र घटोत्कचने शत्रुसमूहोंका नाश करनेवाली अपनी परिघ-जैसी मोटी बाँहके मुक्केसे जटासुरके पुत्रको बहुत मारा॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं प्रमथ्य ततः क्रुद्धस्तूर्णं हैडिम्बिराक्षिपत्।
दोर्भ्यामिन्द्रध्वजाभाभ्यां निष्पिपेष च भूतले ॥ २५ ॥
मूलम्
तं प्रमथ्य ततः क्रुद्धस्तूर्णं हैडिम्बिराक्षिपत्।
दोर्भ्यामिन्द्रध्वजाभाभ्यां निष्पिपेष च भूतले ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरे हुए हिडिम्बाकुमारने उसे अच्छी तरह मथकर तुरंत ही धरतीपर दे मारा और इन्द्र-ध्वजके समान अपनी दोनों भुजाओंद्वारा उसे भूतलपर रगड़ना आरम्भ किया॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जाटासुरिर्मोक्षयित्वा आत्मानं च घटोत्कचात्।
पुनरुत्थाय वेगेन घटोत्कचमुपाद्रवत् ॥ २६ ॥
मूलम्
जाटासुरिर्मोक्षयित्वा आत्मानं च घटोत्कचात्।
पुनरुत्थाय वेगेन घटोत्कचमुपाद्रवत् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब जटासुरका पुत्र अपने-आपको घटोत्कचके बन्धनसे छुड़ाकर पुनः उठ गया और बड़े वेगसे उसकी ओर झपटा॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलम्बुषोऽपि विक्षिप्य समुत्क्षिप्य च राक्षसम्।
घटोत्कचं रणे रोषान्निष्पिपेष च भूतले ॥ २७ ॥
मूलम्
अलम्बुषोऽपि विक्षिप्य समुत्क्षिप्य च राक्षसम्।
घटोत्कचं रणे रोषान्निष्पिपेष च भूतले ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अलम्बुषने भी झटका देकर रणभूमिमें राक्षस घटोत्कचको उठाकर पटक दिया और रोषपूर्वक वह उसे पृथ्वीपर रगड़ने लगा॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोः समभवद् युद्धं गर्जतोरतिकाययोः।
घटोत्कचालम्बुषयोस्तुमुलं लोमहर्षणम् ॥ २८ ॥
मूलम्
तयोः समभवद् युद्धं गर्जतोरतिकाययोः।
घटोत्कचालम्बुषयोस्तुमुलं लोमहर्षणम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गरजते हुए उन दोनों विशालकाय राक्षस घटोत्कच और अलम्बुषका वह युद्ध बड़ा ही भयंकर और रोमांचकारी था॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशेषयन्तावन्योन्यं मायाभिरतिमायिनौ ।
युयुधाते महावीर्याविन्द्रवैरोचनाविव ॥ २९ ॥
मूलम्
विशेषयन्तावन्योन्यं मायाभिरतिमायिनौ ।
युयुधाते महावीर्याविन्द्रवैरोचनाविव ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन्द्र और बलिके समान महापराक्रमी वे दोनों अत्यन्त मायावी राक्षस अपनी मायाओंद्वारा एक-दूसरेसे बढ़ जानेकी चेष्टा करते हुए परस्पर युद्ध कर रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पावकाम्बुनिधी भूत्वा पुनर्गरुडतक्षकौ ।
पुनर्मेघमहावातौ पुनर्वज्रमहाचलौ ॥ ३० ॥
मूलम्
पावकाम्बुनिधी भूत्वा पुनर्गरुडतक्षकौ ।
पुनर्मेघमहावातौ पुनर्वज्रमहाचलौ ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
एकने आग बनकर आक्रमण किया तो दूसरेने महासागर बनकर उसे बुझा दिया। इसी प्रकार एक तक्षक नाग बना तो दूसरा गरुड़। फिर एक मेघ बना तो दूसरा प्रचण्ड वायु। तत्पश्चात् एक महान् पर्वत बनकर खड़ा हुआ तो दूसरा वज्र बनकर उसपर टूट पड़ा॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनः कुञ्जरशार्दूलौ पुनः स्वर्भानुभास्करौ।
एवं मायाशतसृजावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ ॥ ३१ ॥
भृशं चित्रमयुध्येतामलम्बुषघटोत्कचौ ।
मूलम्
पुनः कुञ्जरशार्दूलौ पुनः स्वर्भानुभास्करौ।
एवं मायाशतसृजावन्योन्यवधकाङ्क्षिणौ ॥ ३१ ॥
भृशं चित्रमयुध्येतामलम्बुषघटोत्कचौ ।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर वे क्रमशः हाथी और सिंह तथा सूर्य और राहु बन गये। इस प्रकार वे अलम्बुष और घटोत्कच एक-दूसरेके वधकी इच्छासे सैकड़ों मायाओंकी सृष्टि करते हुए परस्पर अत्यन्त विचित्र युद्ध करने लगे॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिघैश्च गदाभिश्च प्रासमुद्गरपट्टिशैः ॥ ३२ ॥
मुसलैः पर्वताग्रैश्च तावन्योन्यं विजघ्नतुः।
मूलम्
परिघैश्च गदाभिश्च प्रासमुद्गरपट्टिशैः ॥ ३२ ॥
मुसलैः पर्वताग्रैश्च तावन्योन्यं विजघ्नतुः।
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों निशाचर परिघ, गदा, प्रास, मुद्गर, पट्टिश, मुसल तथा पर्वतशिखरोंसे एक-दूसरेपर चोट करने लगे॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हयाभ्यां च गजाभ्यां च रथाभ्यां च पदातिभिः ॥ ३३ ॥
युयुधाते महामायौ राक्षसप्रवरौ युधि।
मूलम्
हयाभ्यां च गजाभ्यां च रथाभ्यां च पदातिभिः ॥ ३३ ॥
युयुधाते महामायौ राक्षसप्रवरौ युधि।
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धस्थलमें वे महामायावी श्रेष्ठ राक्षस अपने हाथियों, घोड़ों, रथों और पैदल सैनिकोंके द्वारा एक-दूसरेपर प्रहार करते हुए युद्ध कर रहे थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो घटोत्कचो राजन्नलम्बुषवधेप्सया ॥ ३४ ॥
उत्पपात भृशं क्रुद्धः श्येनवन्निपपात च।
मूलम्
ततो घटोत्कचो राजन्नलम्बुषवधेप्सया ॥ ३४ ॥
उत्पपात भृशं क्रुद्धः श्येनवन्निपपात च।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर घटोत्कच अलम्बुषके वधकी इच्छासे अत्यन्त कुपित होकर ऊपर उछला और जैसे बाज (चिड़ियापर) झपटता है, उसी प्रकार उसके ऊपर टूट पड़ा॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गृहीत्वा च महाकायं राक्षसेन्द्रमलम्बुषम् ॥ ३५ ॥
उद्यम्य न्यवधीद् भूमौ मयं विष्णुरिवाहवे।
मूलम्
गृहीत्वा च महाकायं राक्षसेन्द्रमलम्बुषम् ॥ ३५ ॥
उद्यम्य न्यवधीद् भूमौ मयं विष्णुरिवाहवे।
अनुवाद (हिन्दी)
विशालकाय राक्षसराज अलम्बुषको दोनों हाथोंसे पकड़कर घटोत्कचने युद्धस्थलमें उसे उठाकर धरतीपर दे मारा, मानो भगवान् विष्णुने मयासुरको पछाड़ दिया हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो घटोत्कचः खड्गमुद्धृत्याद्भुतदर्शनम् ॥ ३६ ॥
रौद्रस्य कायाद्धि शिरो भीमं विकृतदर्शनम्।
स्फुरतस्तस्य समरे नदतश्चातिभैरवम् ॥ ३७ ॥
निचकर्त महाराज शत्रोरमितविक्रमः ।
मूलम्
ततो घटोत्कचः खड्गमुद्धृत्याद्भुतदर्शनम् ॥ ३६ ॥
रौद्रस्य कायाद्धि शिरो भीमं विकृतदर्शनम्।
स्फुरतस्तस्य समरे नदतश्चातिभैरवम् ॥ ३७ ॥
निचकर्त महाराज शत्रोरमितविक्रमः ।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तब अमितपराक्रमी घटोत्कचने अद्भुत दिखायी देनेवाली अपनी तलवार उठाकर समरांगणमें अत्यन्त भयंकर गर्जना करते और उछल-कूद मचाते हुए शत्रु अलम्बुषके भयंकर एवं विकराल मस्तकको उस भयानक राक्षसकी कायासे काटकर अलग कर दिया॥३६-३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिरस्तच्चापि संगृह्य केशेषु रुधिरोक्षितम् ॥ ३८ ॥
ययौ घटोत्कचस्तूर्णं दुर्योधनरथं प्रति।
अभ्येत्य च महाबाहुः स्मयमानः स राक्षसः ॥ ३९ ॥
शिरो रथेऽस्य निक्षिप्य विकृताननमूर्धजम्।
प्राणदद् भैरवं नादं प्रावृषीव बलाहकः ॥ ४० ॥
मूलम्
शिरस्तच्चापि संगृह्य केशेषु रुधिरोक्षितम् ॥ ३८ ॥
ययौ घटोत्कचस्तूर्णं दुर्योधनरथं प्रति।
अभ्येत्य च महाबाहुः स्मयमानः स राक्षसः ॥ ३९ ॥
शिरो रथेऽस्य निक्षिप्य विकृताननमूर्धजम्।
प्राणदद् भैरवं नादं प्रावृषीव बलाहकः ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
खूनसे भीगे हुए उस मस्तकके केश पकड़कर महाबाहु राक्षस घटोत्कच दुर्योधनके रथकी ओर चल दिया और पास जाकर मुसकराते हुए उसने विकराल मुख एवं केशवाले उस सिरको उसके रथपर फेंककर वर्षाकालके मेघकी भाँति भयंकर गर्जना की॥३८—४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अब्रवीच्च ततो राजन् दुर्योधनमिदं वचः।
एष ते निहतो बन्धुस्त्वया दृष्टोऽस्य विक्रमः ॥ ४१ ॥
मूलम्
अब्रवीच्च ततो राजन् दुर्योधनमिदं वचः।
एष ते निहतो बन्धुस्त्वया दृष्टोऽस्य विक्रमः ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तत्पश्चात् वह दुर्योधनसे इस प्रकार बोला—‘यह है तेरा सहायक बन्धु, इसे मैंने मार डाला। तूने देख लिया न इसका पराक्रम?॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनर्द्रष्टासि कर्णस्य निष्ठामेतां तथाऽऽत्मनः।
स्वधर्ममर्थं कामं च त्रितयं योऽभिवाञ्छति ॥ ४२ ॥
रिक्तपाणिर्न पश्येत राजानं ब्राह्मणं स्त्रियम्।
मूलम्
पुनर्द्रष्टासि कर्णस्य निष्ठामेतां तथाऽऽत्मनः।
स्वधर्ममर्थं कामं च त्रितयं योऽभिवाञ्छति ॥ ४२ ॥
रिक्तपाणिर्न पश्येत राजानं ब्राह्मणं स्त्रियम्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘अब तू कर्णकी तथा अपनी भी फिर ऐसी ही अवस्था देखेगा। जो अपने धर्म, अर्थ और काम तीनोंकी इच्छा रखता है, उसे राजा, ब्राह्मण और स्त्रीसे खाली हाथ नहीं मिलना चाहिये (इसीलिये तेरे मित्रका यह मस्तक मैं भेंटके तौरपर लाया हूँ)॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिष्ठस्व तावत् सुप्रीतो यावत् कर्णं वधाम्यहम् ॥ ४३ ॥
एवमुक्त्वा ततः प्रायात् कर्णं प्रति नरेश्वर।
किरन् शरगणांस्तीक्ष्णान् रुषितो रणमूर्धनि ॥ ४४ ॥
मूलम्
तिष्ठस्व तावत् सुप्रीतो यावत् कर्णं वधाम्यहम् ॥ ४३ ॥
एवमुक्त्वा ततः प्रायात् कर्णं प्रति नरेश्वर।
किरन् शरगणांस्तीक्ष्णान् रुषितो रणमूर्धनि ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तू तबतक यहाँ प्रसन्नतापूर्वक खड़ा रह, जबतक कि मैं कर्णका वध नहीं कर लेता।’ नरेश्वर! ऐसा कहकर क्रोधमें भरा हुआ घटोत्कच तीखे बाणसमूहोंकी वर्षा करता हुआ युद्धके मुहानेपर कर्णके पास चला गया॥४३-४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः समभवद् युद्धं घोररूपं भयानकम्।
विस्मापनं महाराज नरराक्षसयोर्मृधे ॥ ४५ ॥
मूलम्
ततः समभवद् युद्धं घोररूपं भयानकम्।
विस्मापनं महाराज नरराक्षसयोर्मृधे ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तदनन्तर रणभूमिमें सबको विस्मयमें डालनेवाला मनुष्य और राक्षसका वह घोर एवं भयानक युद्ध आरम्भ हो गया॥४५॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धे अलम्बुषवधे चतुःसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १७४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत घटोत्कचवधपर्वमें रात्रियुद्धके प्रसंगमें अलम्बुषवधविषयक एक सौ चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१७४॥