१६१ संकुलयुद्धे

भागसूचना

एकषष्ट्‌यधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेन और अर्जुनका आक्रमण और कौरव-सेनाका पलायन

मूलम् (वचनम्)

संयज उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरश्चैव भीमसेनश्च पाण्डवः।
द्रोणपुत्रं महाराज समन्तात् पर्यवारयन् ॥ १ ॥

मूलम्

ततो युधिष्ठिरश्चैव भीमसेनश्च पाण्डवः।
द्रोणपुत्रं महाराज समन्तात् पर्यवारयन् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! तदनन्तर पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर और भीमसेनने द्रोणपुत्र अश्वत्थामाको चारों ओरसे घेर लिया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो राजा भारद्वाजेन संवृतः।
अभ्ययात् पाण्डवान् संख्ये ततो युद्धमवर्तत ॥ २ ॥
घोररूपं महाराज भीरूणां भयवर्धनम्।

मूलम्

ततो दुर्योधनो राजा भारद्वाजेन संवृतः।
अभ्ययात् पाण्डवान् संख्ये ततो युद्धमवर्तत ॥ २ ॥
घोररूपं महाराज भीरूणां भयवर्धनम्।

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख द्रोणाचार्यकी सेनासे घिरे हुए राजा दुर्योधनने भी रणभूमिमें पाण्डवोंपर आक्रमण किया। महाराज! भी कायरोंका भय बढ़ानेवाला घोर युद्ध होने लगा॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अम्बष्ठान् मालवान् वङ्गान् शिबींस्त्रैगर्तकानपि ॥ ३ ॥
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय गणान् क्रुद्धो वृकोदरः।

मूलम्

अम्बष्ठान् मालवान् वङ्गान् शिबींस्त्रैगर्तकानपि ॥ ३ ॥
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय गणान् क्रुद्धो वृकोदरः।

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए भीमसेनने अम्बष्ठ, मालव, वंग, शिबि तथा त्रिगर्तदेशके योद्धाओंको मृत्युके लोकमें भेज दिया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभीषाहान् शूरसेनान् क्षत्रियान् युद्धदुर्मदान् ॥ ४ ॥
निकृत्य पृथिवीं चक्रे भीमः शोणितकर्दमाम्।

मूलम्

अभीषाहान् शूरसेनान् क्षत्रियान् युद्धदुर्मदान् ॥ ४ ॥
निकृत्य पृथिवीं चक्रे भीमः शोणितकर्दमाम्।

अनुवाद (हिन्दी)

अभीषाह तथा शूरसेन देशके रणदुर्मद क्षत्रियोंको भी काट-काटकर भीमसेनने वहाँकी भूमिको खूनसे कीचड़मयी बना दिया॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यौधेयानद्रिजान् राजन् मद्रकान्मालवानपि ॥ ५ ॥
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय किरीटी निशितैः शरैः।

मूलम्

यौधेयानद्रिजान् राजन् मद्रकान्मालवानपि ॥ ५ ॥
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय किरीटी निशितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार किरीटधारी अर्जुनने अपने पैने बाणोंद्वारा यौधेय, पर्वतीय, मद्रक तथा मालव योद्धाओंको भी मृत्युके लोकका पथिक बना दिया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रगाढमञ्जोगतिभिर्नाराचैरभिताडिताः ॥ ६ ॥
निपेतुर्द्विरदा भूमौ द्विशृङ्गा इव पर्वताः।

मूलम्

प्रगाढमञ्जोगतिभिर्नाराचैरभिताडिताः ॥ ६ ॥
निपेतुर्द्विरदा भूमौ द्विशृङ्गा इव पर्वताः।

अनुवाद (हिन्दी)

अनायास ही दूरतक जानेवाले उनके नाराचोंकी गहरी चोट खाकर दो दाँतोंवाले हाथी दो शिखरोंवाले पर्वतोंके समान पृथ्वीपर गिर पड़ते थे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निकृत्तैर्हस्तिहस्तैश्च चेष्टमानैरितस्ततः ॥ ७ ॥
रराज वसुधाऽऽकीर्णा विसर्पद्भिरिवोरगैः ।

मूलम्

निकृत्तैर्हस्तिहस्तैश्च चेष्टमानैरितस्ततः ॥ ७ ॥
रराज वसुधाऽऽकीर्णा विसर्पद्भिरिवोरगैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

हाथियोंके शुण्डदण्ड कटकर इधर-उधर तड़पते हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानो सर्प चल रहे हों। उनके द्वारा आच्छादित हुई वहाँकी भूमि अद्भुत शोभा पा रही थी॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षिप्तैः कनकचित्रैश्च नृपच्छत्रैः क्षितिर्बभौ ॥ ८ ॥
द्यौरिवादित्यचन्द्राद्यैर्ग्रहैः कीर्णा युगक्षये ।

मूलम्

क्षिप्तैः कनकचित्रैश्च नृपच्छत्रैः क्षितिर्बभौ ॥ ८ ॥
द्यौरिवादित्यचन्द्राद्यैर्ग्रहैः कीर्णा युगक्षये ।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रलयकालमें सूर्य और चन्द्रमा आदि ग्रहोंसे व्याप्त हुए द्युलोककी जैसी शोभा होती है, उसी प्रकार इधर-उधर फेंके पड़े हुए राजाओंके सुवर्णचित्रित छत्रोंद्वारा उस रणभूमिकी भी शोभा हो रही थी॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत प्रहरताभीता विध्यत व्यवकृन्तत ॥ ९ ॥
इत्यासीत् तुमुलः शब्दः शोणाश्वस्य रथं प्रति।

मूलम्

हत प्रहरताभीता विध्यत व्यवकृन्तत ॥ ९ ॥
इत्यासीत् तुमुलः शब्दः शोणाश्वस्य रथं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

लाल घोड़ोंवाले द्रोणाचार्यके रथके समीप मार डालो, निर्भय होकर प्रहार करो, बाणोंसे बींध डालो, टुकड़े-टुकड़े कर दो’ इत्यादि भयंकर शब्द सुनायी पड़ता था॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणस्तु परमक्रुद्धो वायव्यास्त्रेण संयुगे ॥ १० ॥
व्यधमत् तान् महावायुर्मेघानिव दुरत्ययः।

मूलम्

द्रोणस्तु परमक्रुद्धो वायव्यास्त्रेण संयुगे ॥ १० ॥
व्यधमत् तान् महावायुर्मेघानिव दुरत्ययः।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे दुर्जय महावायु मेघोंको छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए द्रोणाचार्यने वायव्यास्त्रके द्वारा युद्धमें समस्त शत्रुओंको तहस-नहस कर डाला॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते हन्यमाना द्रोणेन पञ्चालाः प्राद्रवन् भयात् ॥ ११ ॥
पश्यतो भीमसेनस्य पार्थस्य च महात्मनः।

मूलम्

ते हन्यमाना द्रोणेन पञ्चालाः प्राद्रवन् भयात् ॥ ११ ॥
पश्यतो भीमसेनस्य पार्थस्य च महात्मनः।

अनुवाद (हिन्दी)

द्रोणाचार्यकी मार खाकर भीमसेन और महात्मा अर्जुनके देखते-देखते पांचाल-सैनिक भयके मारे भागने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः किरीटी भीमश्च सहसा संन्यवर्तताम् ॥ १२ ॥
महता रथवंशेन परिगृह्य बलं महत्।

मूलम्

ततः किरीटी भीमश्च सहसा संन्यवर्तताम् ॥ १२ ॥
महता रथवंशेन परिगृह्य बलं महत्।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् अर्जुन और भीमसेन विशाल रथसमूहसे युक्त भारी सेना साथ लेकर सहसा द्रोणाचार्यकी ओर लौट पड़े॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बीभत्सुर्दक्षिणं पार्श्वमुत्तरं तु वृकोदरः ॥ १३ ॥
भारद्वाजं शरौघाभ्यां महद््भ्यामभ्यवर्षताम् ।
तौ तथा सृंजयाश्चैव पञ्चालाश्च महौजसः ॥ १४ ॥
अन्वगच्छन् महाराज मत्स्यैश्च सह सोमकैः।

मूलम्

बीभत्सुर्दक्षिणं पार्श्वमुत्तरं तु वृकोदरः ॥ १३ ॥
भारद्वाजं शरौघाभ्यां महद््भ्यामभ्यवर्षताम् ।
तौ तथा सृंजयाश्चैव पञ्चालाश्च महौजसः ॥ १४ ॥
अन्वगच्छन् महाराज मत्स्यैश्च सह सोमकैः।

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनने द्रोणाचार्यकी सेनापर दक्षिण पार्श्वसे और भीमसेनने बायें पार्श्वसे अपने बाणसमूहोंकी भारी वर्षा प्रारम्भ कर दी। महाराज! उस समय महातेजस्वी पांचालों, सृंजयों, मत्स्यों तथा सोमकोंने भी उन्हीं दोनोंके मार्गका अनुसरण किया॥१३-१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव तव पुत्रस्य रथोदाराः प्रहारिणः ॥ १५ ॥
महत्या सेनया राजन् जग्मुर्द्रोणरथं प्रति।

मूलम्

तथैव तव पुत्रस्य रथोदाराः प्रहारिणः ॥ १५ ॥
महत्या सेनया राजन् जग्मुर्द्रोणरथं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार प्रहार करनेमें कुशल आपके पुत्रके श्रेष्ठ रथी भी विशाल सेनाके साथ द्रोणाचार्यके रथके समीप जा पहुँचे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सा भारती सेना हन्यमाना किरीटिना ॥ १६ ॥
तमसा निद्रया चैव पुनरेव व्यदीर्यत।

मूलम्

ततः सा भारती सेना हन्यमाना किरीटिना ॥ १६ ॥
तमसा निद्रया चैव पुनरेव व्यदीर्यत।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय किरीटधारी अर्जुनके द्वारा मारी जाती हुई कौरवी-सेना अन्धकार और निद्रा दोनोंसे पीड़ित हो पुनः भागने लगी॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणेन वार्यमाणास्ते स्वयं तव सुतेन च ॥ १७ ॥
नाशक्यन्त महाराज योधा वारयितुं तदा।

मूलम्

द्रोणेन वार्यमाणास्ते स्वयं तव सुतेन च ॥ १७ ॥
नाशक्यन्त महाराज योधा वारयितुं तदा।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! द्रोणाचार्यने तथा स्वयं आपके पुत्रने भी उन्हें बहुतेरा रोका, तथापि उस समय आपके सैनिक रोके न जा सके॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा पाण्डुपुत्रस्य शरैर्दीर्यमाणा महाचमूः ॥ १८ ॥
तमसा संवृते लोके व्यद्रवत् सर्वतोमुखी।

मूलम्

सा पाण्डुपुत्रस्य शरैर्दीर्यमाणा महाचमूः ॥ १८ ॥
तमसा संवृते लोके व्यद्रवत् सर्वतोमुखी।

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुपुत्र अर्जुनके बाणोंसे विदीर्ण होती हुई वह विशाल सेना उस तिमिराच्छन्न जगत्‌में सब ओर भागने लगी॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्सृज्य शतशो वाहांस्तत्र केचिन्नराधिपाः।
प्राद्रवन्त महाराज भयाविष्टाः समन्ततः ॥ १९ ॥

मूलम्

उत्सृज्य शतशो वाहांस्तत्र केचिन्नराधिपाः।
प्राद्रवन्त महाराज भयाविष्टाः समन्ततः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! कुछ नरेश, जो सैकड़ोंकी संख्यामें थे, अपने वाहनोंको वहीं छोड़कर भयसे व्याकुल हो सब ओर भाग गये॥१९॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धे संकुलयुद्धे एकषष्ट्‌यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १६१ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत घटोत्कचवधपर्वमें रात्रियुद्धके अवसरपर संकुलयुद्धविषयक एक सौ इकसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१६१॥