१५३ दुर्योधनपराभवे

भागसूचना

(घटोत्कचवधपर्व)
त्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

कौरव-पाण्डव-सेनाका युद्ध, दुर्योधन और युधिष्ठिरका संग्राम तथा दुर्योधनकी पराजय

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदुदीर्णं गजानीकं बलं तव जनाधिप।
पाण्डुसेनामतिक्रम्य योधयामास सर्वतः ॥ १ ॥

मूलम्

तदुदीर्णं गजानीकं बलं तव जनाधिप।
पाण्डुसेनामतिक्रम्य योधयामास सर्वतः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— जनेश्वर! आपकी प्रचण्ड गजसेना पाण्डव-सेनाका उल्लंघन करके सब ओर फैलकर युद्ध करने लगी॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चालाः कुरवश्चैव योधयन्तः परस्परम्।
यमराष्ट्राय महते परलोकाय दीक्षिताः ॥ २ ॥

मूलम्

पञ्चालाः कुरवश्चैव योधयन्तः परस्परम्।
यमराष्ट्राय महते परलोकाय दीक्षिताः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पांचाल और कौरव योद्धा महान् यमराज्य एवं परलोककी दीक्षा लेकर परस्पर युद्ध करने लगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शूराः शूरैः समागम्य शरतोमरशक्तिभिः।
विव्यधुः समरेऽन्योन्यं निन्युश्चैव यमक्षयम् ॥ ३ ॥

मूलम्

शूराः शूरैः समागम्य शरतोमरशक्तिभिः।
विव्यधुः समरेऽन्योन्यं निन्युश्चैव यमक्षयम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक पक्षके शूरवीर दूसरे पक्षके शूरवीरोंसे भिड़कर बाण, तोमर और शक्तियोंसे समरभूमिमें एक-दूसरेको चोट पहुँचाने और यमलोक भेजने लगे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथिनां रथिभिः सार्धं रुधिरस्रावदारुणम्।
प्रावर्तत महद् युद्धं निघ्नतामितरेतरम् ॥ ४ ॥

मूलम्

रथिनां रथिभिः सार्धं रुधिरस्रावदारुणम्।
प्रावर्तत महद् युद्धं निघ्नतामितरेतरम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परस्पर प्रहार करनेवाले रथियोंका रथियोंके साथ महान् युद्ध होने लगा, जो खूनकी धारा बहानेके कारण अत्यन्त भयंकर जान पड़ता था॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वारणाश्च महाराज समासाद्य परस्परम्।
विषाणैर्दारयामासुः सुसंक्रुद्धा मदोत्कटाः ॥ ५ ॥

मूलम्

वारणाश्च महाराज समासाद्य परस्परम्।
विषाणैर्दारयामासुः सुसंक्रुद्धा मदोत्कटाः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए मदमत्त हाथी परस्पर भिड़कर दाँतोंके प्रहारसे एक-दूसरेको विदीर्ण करने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयारोहान् हयारोहाः प्रासशक्तिपरश्वधैः ।
बिभिदुस्तुमुले युद्धे प्रार्थयन्तो महद् यशः ॥ ६ ॥

मूलम्

हयारोहान् हयारोहाः प्रासशक्तिपरश्वधैः ।
बिभिदुस्तुमुले युद्धे प्रार्थयन्तो महद् यशः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस भयंकर युद्धमें महान् यशकी अभिलाषा रखते हुए घुड़सवार घुड़सवारोंको प्रास, शक्ति और फरसोंद्वारा घायल कर रहे थे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पत्तयश्च महाबाहो शतशः शस्त्रपाणयः।
अन्योन्यमार्दयन् राजन् नित्यं यत्ताः पराक्रमे ॥ ७ ॥

मूलम्

पत्तयश्च महाबाहो शतशः शस्त्रपाणयः।
अन्योन्यमार्दयन् राजन् नित्यं यत्ताः पराक्रमे ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! हाथोंमें शस्त्र लिये सैकड़ों पैदल सैनिक सदा पराक्रमके लिये प्रयत्नशील हो एक-दूसरेपर चोट कर रहे थे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गोत्राणां नामधेयानां कुलानां चैव मारिष।
श्रवणाद्धि विजानीमः पञ्चालान् कुरुभिः सह ॥ ८ ॥

मूलम्

गोत्राणां नामधेयानां कुलानां चैव मारिष।
श्रवणाद्धि विजानीमः पञ्चालान् कुरुभिः सह ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! नाम, गोत्र और कुलोंका परिचय सुनकर ही हमलोग उस समय कौरवोंके साथ युद्ध करनेवाले पांचालोंको पहचान पाते थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेऽन्योन्यं समरे योधाः शरशक्तिपरश्वधैः।
प्रैषयन् परलोकाय विचरन्तो ह्यभीतवत् ॥ ९ ॥

मूलम्

तेऽन्योन्यं समरे योधाः शरशक्तिपरश्वधैः।
प्रैषयन् परलोकाय विचरन्तो ह्यभीतवत् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समरांगणमें वे समस्त योद्धा निर्भय-से विचरते हुए बाण, शक्ति और फरसोंकी मारसे एक-दूसरेको परलोक भेज रहे थे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरा दश दिशो राजंस्तेषां मुक्ताः सहस्रशः।
न भ्राजन्ते यथातत्त्वं भास्करेऽस्तंगतेऽपि च ॥ १० ॥

मूलम्

शरा दश दिशो राजंस्तेषां मुक्ताः सहस्रशः।
न भ्राजन्ते यथातत्त्वं भास्करेऽस्तंगतेऽपि च ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! सूर्यास्त हो जानेके कारण उन योद्धाओंके छोड़े हुए सहस्रों बाण दसों दिशाओंमें फैलकर अच्छी तरह प्रकाशित नहीं हो पाते थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा प्रयुध्यमानेषु पाण्डवेयेषु भारत।
दुर्योधनो महाराज व्यवागाहत तद् बलम् ॥ ११ ॥

मूलम्

तथा प्रयुध्यमानेषु पाण्डवेयेषु भारत।
दुर्योधनो महाराज व्यवागाहत तद् बलम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतवंशी महाराज! जब इस प्रकार पाण्डवसैनिक युद्ध कर रहे थे, उस समय दुर्योधनने उस सेनामें प्रवेश किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सैन्धवस्य वधेनैव भृशं दुःखसमन्वितः।
मर्तव्यमिति संचिन्त्य प्राविशच्च द्विषद्‌बलम् ॥ १२ ॥

मूलम्

सैन्धवस्य वधेनैव भृशं दुःखसमन्वितः।
मर्तव्यमिति संचिन्त्य प्राविशच्च द्विषद्‌बलम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह सिंधुराजके वधसे बहुत दुःखी हो गया था। अतः मरनेका ही निश्चय करके उसने शत्रुओंकी सेनामें प्रवेश किया॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नादयन् रथघोषेण कम्पयन्निव मेदिनीम्।
अभ्यवर्तत पुत्रस्ते पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ १३ ॥

मूलम्

नादयन् रथघोषेण कम्पयन्निव मेदिनीम्।
अभ्यवर्तत पुत्रस्ते पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने रथकी घरघराहटसे दिशाओंको प्रतिध्वनित करता और पृथ्वीको कँपाता हुआ-सा आपका पुत्र पाण्डव-सेनाके सम्मुख आया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स संनिपातस्तुमुलस्तस्य तेषां च भारत।
अभवत् सर्वसैन्यानामभावकरणो महान् ॥ १४ ॥

मूलम्

स संनिपातस्तुमुलस्तस्य तेषां च भारत।
अभवत् सर्वसैन्यानामभावकरणो महान् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! पाण्डव-सैनिकों तथा दुर्योधनका वह भयंकर संग्राम समस्त सेनाओंका महान् विनाश करनेवाला था॥

मूलम् (वचनम्)

(धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणः कर्णः कृपश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः।
नावारयन् कथं युद्धे राजानं राजकाङ्क्षिणः॥

मूलम्

द्रोणः कर्णः कृपश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः।
नावारयन् कथं युद्धे राजानं राजकाङ्क्षिणः॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने पूछा— द्रोण, कर्ण, कृप तथा सात्वतवंशी कृतवर्मा—ये तो राजाके चाहनेवालोंमेंसे हैं, इन्होंने उसे युद्धमें जानेसे रोका क्यों नहीं?

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वोपायैर्हि युद्धेषु रक्षितव्यो महीपतिः।
एषा नीतिः परा युद्धे दृष्टा तत्र महर्षिभिः॥

मूलम्

सर्वोपायैर्हि युद्धेषु रक्षितव्यो महीपतिः।
एषा नीतिः परा युद्धे दृष्टा तत्र महर्षिभिः॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें सभी उपायोंसे राजाकी रक्षा करनी चाहिये। महर्षियोंने युद्धविषयक इसी सर्वोत्तम नीतिका साक्षात्कार किया है।

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रविष्टे वा मम सुते परेषां वै महद् बलम्।
मामका रथिनां श्रेष्ठाः किमकुर्वत संजय॥

मूलम्

प्रविष्टे वा मम सुते परेषां वै महद् बलम्।
मामका रथिनां श्रेष्ठाः किमकुर्वत संजय॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! जब मेरा पुत्र शत्रुओंकी विशाल सेनामें घुस गया, उस समय मेरे पक्षके श्रेष्ठ रथियोंने क्या किया?

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजन् संग्राममाश्चर्यं पुत्रस्य तव भारत।
एकस्य च बहूनां च शृणु मे ब्रुवतोऽद्भुतम्॥

मूलम्

राजन् संग्राममाश्चर्यं पुत्रस्य तव भारत।
एकस्य च बहूनां च शृणु मे ब्रुवतोऽद्भुतम्॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजयने कहा— भरतवंशी नरेश! आपके पुत्रके आश्चर्यजनक एवं अद्भुत संग्रामका, जो एकका बहुत-से योद्धाओंके साथ हुआ था, वर्णन करता हूँ, सुनिये।

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणेन वार्यमाणोऽसौ कर्णेन च कृपेण च।
प्राविशत् पाण्डवीं सेनां मकराः सागरं यथा॥

मूलम्

द्रोणेन वार्यमाणोऽसौ कर्णेन च कृपेण च।
प्राविशत् पाण्डवीं सेनां मकराः सागरं यथा॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्रोणाचार्य, कर्ण और कृपाचार्यके मना करनेपर भी जैसे मगर समुद्रमें प्रवेश करता है, उसी प्रकार दुर्योधन पाण्डव-सेनामें घुस गया था।

विश्वास-प्रस्तुतिः

किरन्निषुसहस्राणि तत्र तत्र तदा तदा।
पञ्चालान् पाण्डवांश्चैव विव्याध निशितैः शरैः॥

मूलम्

किरन्निषुसहस्राणि तत्र तत्र तदा तदा।
पञ्चालान् पाण्डवांश्चैव विव्याध निशितैः शरैः॥

अनुवाद (हिन्दी)

जहाँ-तहाँ सब ओर सहस्रों बाणोंकी वर्षा करते हुए उसने तीखे बाणोंद्वारा पांचालों और पाण्डवोंको घायल कर दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथोद्यन् विततं सूर्यो रश्मिभिर्नाशयेत् तमः।
तथा पुत्रस्तव बलं नाशयत् तन्महाबलः॥)

मूलम्

यथोद्यन् विततं सूर्यो रश्मिभिर्नाशयेत् तमः।
तथा पुत्रस्तव बलं नाशयत् तन्महाबलः॥)

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे उदयकालका सूर्य अपनी किरणोंद्वारा सर्वत्र फैले हुए अंधकारका नाश कर देता है, उसी प्रकार आपके महाबली पुत्रने शत्रुसेनाका विनाश कर दिया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा मध्यंदिने सूर्यं प्रतपन्तं गभस्तिभिः।
तथा तव सुतं मध्ये प्रतपन्तं शरार्चिभिः ॥ १५ ॥
न शेकुर्भ्रातरं युद्धे पाण्डवाः समुदीक्षितुम्।

मूलम्

यथा मध्यंदिने सूर्यं प्रतपन्तं गभस्तिभिः।
तथा तव सुतं मध्ये प्रतपन्तं शरार्चिभिः ॥ १५ ॥
न शेकुर्भ्रातरं युद्धे पाण्डवाः समुदीक्षितुम्।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे अपनी किरणोंसे तपते हुए दोपहरके सूर्यकी ओर कोई देख नहीं पाता, उसी प्रकार अपने बाणोंकी ज्वालाओंसे शत्रुओंको संताप देते हुए सेनाके मध्यभागमें खड़े आपके पुत्र एवं अपने भाई दुर्योधनकी ओर उस युद्धस्थलमें पाण्डव देख नहीं पाते थे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पलायनकृतोत्साहा निरुत्साहा द्विषज्जये ॥ १६ ॥
पर्यधावन्त पञ्चाला वध्यमाना महात्मना।

मूलम्

पलायनकृतोत्साहा निरुत्साहा द्विषज्जये ॥ १६ ॥
पर्यधावन्त पञ्चाला वध्यमाना महात्मना।

अनुवाद (हिन्दी)

महामनस्वी दुर्योधनकी मार खाकर पांचाल सैनिक इधर-उधर भागने लगे। अब वे पलायन करनेमें उत्साह दिखा रहे थे। उनमें शत्रुओंको जीतनेका उत्साह नहीं रह गया था॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रुक्मपुङ्खैः प्रसन्नाग्रैस्तव पुत्रेण धन्विना ॥ १७ ॥
अर्द्यमानाः शरैस्तूर्णं न्यपतन् पाण्डुसैनिकाः।

मूलम्

रुक्मपुङ्खैः प्रसन्नाग्रैस्तव पुत्रेण धन्विना ॥ १७ ॥
अर्द्यमानाः शरैस्तूर्णं न्यपतन् पाण्डुसैनिकाः।

अनुवाद (हिन्दी)

आपके धनुर्धर पुत्रके द्वारा चलाये हुए सुवर्णमय पंख तथा चमकती हुई धारवाले बाणोंसे पीड़ित होकर बहुतेरे पाण्डव-सैनिक तुरंत धराशायी हो गये॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तादृशं रणे कर्म कृतवन्तस्तु तावकाः ॥ १८ ॥
यादृशं कृतवान् राजा पुत्रस्तव विशाम्पते।

मूलम्

न तादृशं रणे कर्म कृतवन्तस्तु तावकाः ॥ १८ ॥
यादृशं कृतवान् राजा पुत्रस्तव विशाम्पते।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! आपके सैनिकोंने रणभूमिमें वैसा पराक्रम नहीं किया था, जैसा कि आपके पुत्र राजा दुर्योधनने किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रेण तव सा सेना पाण्डवी मथिता रणे ॥ १९ ॥
नलिनी द्विरदेनेव समन्तात् फुल्लपङ्कजा।

मूलम्

पुत्रेण तव सा सेना पाण्डवी मथिता रणे ॥ १९ ॥
नलिनी द्विरदेनेव समन्तात् फुल्लपङ्कजा।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे हाथी सब ओरसे खिले हुए कमलपुष्पोंसे सुशोभित पोखरेको मथ डालता है, उसी प्रकार आपके पुत्रने रणभूमिमें पाण्डव-सेनाको मथ डाला॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षीणतोयानिलार्काभ्यां हतत्विडिव पद्मिनी ॥ २० ॥
बभूव पाण्डवी सेना तव पुत्रस्य तेजसा।

मूलम्

क्षीणतोयानिलार्काभ्यां हतत्विडिव पद्मिनी ॥ २० ॥
बभूव पाण्डवी सेना तव पुत्रस्य तेजसा।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे हवा और सूर्यसे पानी सूख जानेके कारण पद्मिनी हतप्रभ हो जाती है, उसी प्रकार आपके पुत्रके तेजसे तप्त होकर पाण्डव-सेना श्रीहीन हो गयी थी॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाण्डुसेनां हतां दृष्ट्वा तव पुत्रेण भारत ॥ २१ ॥
भीमसेनपुरोगास्तु पञ्चालाः समुपाद्रवन् ।

मूलम्

पाण्डुसेनां हतां दृष्ट्वा तव पुत्रेण भारत ॥ २१ ॥
भीमसेनपुरोगास्तु पञ्चालाः समुपाद्रवन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! आपके पुत्रद्वारा पाण्डव-सेनाको मारी गयी देख पांचालोंने भीमसेनको अगुआ बनाकर उसपर आक्रमण किया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स भीमसेनं दशभिर्माद्रीपुत्रौ त्रिभिस्त्रिभिः ॥ २२ ॥
विराटद्रुपदौ षड्भिः शतेन च शिखण्डिनम्।
धृष्टद्युम्नं च सप्तत्या धर्मपुत्रं च सप्तभिः ॥ २३ ॥
केकयांश्चैव चेदींश्च बहुभिर्निशितैः शरैः।

मूलम्

स भीमसेनं दशभिर्माद्रीपुत्रौ त्रिभिस्त्रिभिः ॥ २२ ॥
विराटद्रुपदौ षड्भिः शतेन च शिखण्डिनम्।
धृष्टद्युम्नं च सप्तत्या धर्मपुत्रं च सप्तभिः ॥ २३ ॥
केकयांश्चैव चेदींश्च बहुभिर्निशितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय दुर्योधनने भीमसेनको दस, माद्रीकुमारों-को तीन-तीन, विराट और द्रुपदको छः-छः, शिखण्डीको सौ, धृष्टद्युम्नको सत्तर, धर्मपुत्र युधिष्ठिरको सात और केकय तथा चेदिदेशके सैनिकोंको बहुत-से तीखे बाण मारे॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्वतं पञ्चभिर्विद्ध्वा द्रौपदेयांस्त्रिभिस्त्रिभिः ॥ २४ ॥
घटोत्कचं च समरे विद्ध्वा सिंह इवानदत्।

मूलम्

सात्वतं पञ्चभिर्विद्ध्वा द्रौपदेयांस्त्रिभिस्त्रिभिः ॥ २४ ॥
घटोत्कचं च समरे विद्ध्वा सिंह इवानदत्।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर सात्यकिको पाँच बाणोंसे घायल करके द्रौपदीपुत्रोंको तीन-तीन बाण मारे। तत्पश्चात् समरभूमिमें घटोत्कचको घायल करके दुर्योधनने सिंहके समान गर्जना की॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शतशश्चापरान् योधान् सद्विपांश्च महारणे ॥ २५ ॥
शरैरवचकर्तोग्रैः क्रुद्धोऽन्तक इव प्रजाः।

मूलम्

शतशश्चापरान् योधान् सद्विपांश्च महारणे ॥ २५ ॥
शरैरवचकर्तोग्रैः क्रुद्धोऽन्तक इव प्रजाः।

अनुवाद (हिन्दी)

उस महायुद्धमें हाथियोंसहित सैकड़ों दूसरे योद्धाओंको क्रोधमें भरे हुए दुर्योधनने अपने भयंकर बाणोंद्वारा उसी प्रकार काट डाला, जैसे यमराज प्रजाका विनाश करते हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा तेन पाण्डवी सेना वध्यमाना शिलीमुखैः ॥ २६ ॥
तव पुत्रेण संग्रामे विदुद्राव नराधिप।

मूलम्

सा तेन पाण्डवी सेना वध्यमाना शिलीमुखैः ॥ २६ ॥
तव पुत्रेण संग्रामे विदुद्राव नराधिप।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! उस संग्राममें आपके पुत्रके चलाये हुए बाणोंकी मार खाकर पाण्डव-सेना इधर-उधर भागने लगी॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं तपन्तमिवादित्यं कुरुराजं महाहवे ॥ २७ ॥
नाशकन्‌ वीक्षितुं राजन् पाण्डुपुत्रस्य सैनिकाः।

मूलम्

तं तपन्तमिवादित्यं कुरुराजं महाहवे ॥ २७ ॥
नाशकन्‌ वीक्षितुं राजन् पाण्डुपुत्रस्य सैनिकाः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस महासमरमें तपते हुए सूर्यके समान कुरुराज दुर्योधनकी ओर पाण्डव-सैनिक देख भी न सके॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरो राजा कुपितो राजसत्तम ॥ २८ ॥
अभ्यधावत् कुरुपतिं तव पुत्रं जिघांसया।

मूलम्

ततो युधिष्ठिरो राजा कुपितो राजसत्तम ॥ २८ ॥
अभ्यधावत् कुरुपतिं तव पुत्रं जिघांसया।

अनुवाद (हिन्दी)

नृपश्रेष्ठ! तदनन्तर क्रोधमें भरे हुए राजा युधिष्ठिर आपके पुत्र कुरुराज दुर्योधनको मार डालनेकी इच्छासे उसकी ओर दौड़े॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावुभौ युधि कौरव्यौ समीयतुररिंदमौ ॥ २९ ॥
स्वार्थहेतोः पराक्रान्तौ दुर्योधनयुधिष्ठिरौ ।

मूलम्

तावुभौ युधि कौरव्यौ समीयतुररिंदमौ ॥ २९ ॥
स्वार्थहेतोः पराक्रान्तौ दुर्योधनयुधिष्ठिरौ ।

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंका दमन करनेवाले वे दोनों कुरुवंशी वीर दुर्योधन और युधिष्ठिर अपने-अपने स्वार्थके लिये युद्धमें पराक्रम प्रकट करते हुए एक-दूसरेसे भिड़ गये॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनः क्रुद्धः शरैः संनतपर्वभिः ॥ ३० ॥
विव्याध दशभिस्तूर्णं ध्वजं चिच्छेद चेषुणा।

मूलम्

ततो दुर्योधनः क्रुद्धः शरैः संनतपर्वभिः ॥ ३० ॥
विव्याध दशभिस्तूर्णं ध्वजं चिच्छेद चेषुणा।

अनुवाद (हिन्दी)

तब दुर्योधनने कुपित होकर झुकी हुई गाँठवाले दस बाणोंद्वारा तुरंत ही युधिष्ठिरको घायल कर दिया और एक बाणसे उनका ध्वज भी काट डाला॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इन्द्रसेनं त्रिभिश्चैव ललाटे जघ्निवान् नृप ॥ ३१ ॥
सारथिं दयितं राज्ञः पाण्डवस्य महात्मनः।

मूलम्

इन्द्रसेनं त्रिभिश्चैव ललाटे जघ्निवान् नृप ॥ ३१ ॥
सारथिं दयितं राज्ञः पाण्डवस्य महात्मनः।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! उन्होंने तीन बाणोंद्वारा महात्मा पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिरके प्रिय सारथि इन्द्रसेनको उसके ललाट-प्रदेशमें चोट पहुँचायी॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुश्च पुनरन्येन चकर्तास्य महारथः ॥ ३२ ॥
चतुर्भिश्चतुरश्चैव बाणैर्विव्याध वाजिनः ।

मूलम्

धनुश्च पुनरन्येन चकर्तास्य महारथः ॥ ३२ ॥
चतुर्भिश्चतुरश्चैव बाणैर्विव्याध वाजिनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर दूसरे बाणसे महारथी दुर्योधनने राजा युधिष्ठिरका धनुष भी काट दिया और चार बाणोंसे उनके चारों घोड़ोंको बींध डाला॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरः क्रुद्धो निमेषादिव कार्मुकम् ॥ ३३ ॥
अन्यदादाय वेगेन कौरवं प्रत्यवारयत्।

मूलम्

ततो युधिष्ठिरः क्रुद्धो निमेषादिव कार्मुकम् ॥ ३३ ॥
अन्यदादाय वेगेन कौरवं प्रत्यवारयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

तब राजा युधिष्ठिरने कुपित हो पलक मारते-मारते दूसरा धनुष हाथमें ले लिया और बड़े वेगसे कुरुवंशी दुर्योधनको रोका॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य तान् निघ्नतः शत्रून् रुक्मपृष्ठं महद् धनुः ॥ ३४ ॥
भल्लाभ्यां पाण्डवो ज्येष्ठस्त्रिधा चिच्छेद मारिष।

मूलम्

तस्य तान् निघ्नतः शत्रून् रुक्मपृष्ठं महद् धनुः ॥ ३४ ॥
भल्लाभ्यां पाण्डवो ज्येष्ठस्त्रिधा चिच्छेद मारिष।

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिरने दो भल्ल मारकर शत्रुओंके संहारमें लगे हुए दुर्योधनके सुवर्णमय पृष्ठवाले विशाल धनुषके तीन टुकड़े कर डाले॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विव्याध चैनं दशभिः सम्यगस्तैः शितैः शरैः ॥ ३५ ॥
मर्म भित्त्वा तु ते सर्वे संलग्नाः क्षितिमाविशन्।

मूलम्

विव्याध चैनं दशभिः सम्यगस्तैः शितैः शरैः ॥ ३५ ॥
मर्म भित्त्वा तु ते सर्वे संलग्नाः क्षितिमाविशन्।

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही, उन्होंने अच्छी तरह चलाये हुए दस पैने बाणोंसे दुर्योधनको भी घायल कर दिया। वे सारे बाण दुर्योधनके मर्मस्थानोंमें लगकर उन्हें विदीर्ण करते हुए पृथ्वीमें समा गये॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः परिवृता योधाः परिवव्रुर्युधिष्ठिरम् ॥ ३६ ॥
वृत्रहत्यै यथा देवाः परिवव्रुः पुरंदरम्।

मूलम्

ततः परिवृता योधाः परिवव्रुर्युधिष्ठिरम् ॥ ३६ ॥
वृत्रहत्यै यथा देवाः परिवव्रुः पुरंदरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर तो भागे हुए पाण्डव-योद्धा लौट आये और युधिष्ठिरको वैसे ही घेरकर खड़े हो गये, जैसे वृत्रासुरके वधके लिये सब देवता इन्द्रको घेरकर खड़े हुए थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरो राजा तव पुत्रस्य मारिष।
शरं च सूर्यरश्म्याभमत्युग्रमनिवारणम् ॥ ३७ ॥
हा हतोऽसीति राजानमुक्त्वामुञ्चद् युधिष्ठिरः।

मूलम्

ततो युधिष्ठिरो राजा तव पुत्रस्य मारिष।
शरं च सूर्यरश्म्याभमत्युग्रमनिवारणम् ॥ ३७ ॥
हा हतोऽसीति राजानमुक्त्वामुञ्चद् युधिष्ठिरः।

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! तदनन्तर राजा युधिष्ठिरने आपके पुत्र राजा दुर्योधनपर सूर्यकिरणोंके समान तेजस्वी, अत्यन्त भयंकर तथा अनिवार्य बाण यह कहकर चलाया कि ‘हाय! तुम मारे गये’॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तेनाकर्णमुक्तेन विद्धो बाणेन कौरवः ॥ ३८ ॥
निषसाद रथोपस्थे भृशं सम्मूढचेतनः।

मूलम्

स तेनाकर्णमुक्तेन विद्धो बाणेन कौरवः ॥ ३८ ॥
निषसाद रथोपस्थे भृशं सम्मूढचेतनः।

अनुवाद (हिन्दी)

कानोंतक खींचकर चलाये हुए उस बाणसे घायल हो कुरुवंशी दुर्योधन अत्यन्त मूर्च्छित हो गया और रथके पिछले भागमें धम्मसे बैठ गया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पाञ्चाल्यसेनानां भृशमासीद् रवो महान् ॥ ३९ ॥
हतो राजेति राजेन्द्र मुदितानां समन्ततः।
बाणशब्दरवश्चोग्रः शुश्रुवे तत्र मारिष ॥ ४० ॥

मूलम्

ततः पाञ्चाल्यसेनानां भृशमासीद् रवो महान् ॥ ३९ ॥
हतो राजेति राजेन्द्र मुदितानां समन्ततः।
बाणशब्दरवश्चोग्रः शुश्रुवे तत्र मारिष ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आदरणीय राजेन्द्र! उस समय प्रसन्न हुए पांचाल सैनिकोंने ‘राजा दुर्योधन मारा गया’ ऐसा कहकर चारों ओर अत्यन्त महान् कोलाहल मचाया। वहाँ बाणोंका भयंकर शब्द भी सुनायी दे रहा था॥३९-४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ द्रोणो द्रुतं तत्र प्रत्यदृश्यत संयुगे।
हृष्टो दुर्योधनश्चापि दृढमादाय कार्मुकम् ॥ ४१ ॥
तिष्ठ तिष्ठेति राजानं ब्रुवन् पाण्डवमभ्ययात्।

मूलम्

अथ द्रोणो द्रुतं तत्र प्रत्यदृश्यत संयुगे।
हृष्टो दुर्योधनश्चापि दृढमादाय कार्मुकम् ॥ ४१ ॥
तिष्ठ तिष्ठेति राजानं ब्रुवन् पाण्डवमभ्ययात्।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् तुरंत ही वहाँ युद्धस्थलमें द्रोणाचार्य दिखायी दिये। इधर, राजा दुर्योधनने भी हर्ष और उत्साहमें भरकर सुदृढ़ धनुष हाथमें ले ‘खड़े रहो, खड़े रहो’ कहते हुए वहाँ पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिरपर आक्रमण किया॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्युद्ययुस्तं त्वरिताः पञ्चाला जयगृद्धिनः ॥ ४२ ॥
तान् द्रोणः प्रतिजग्राह परीप्सन् कुरुसत्तमम्।
चण्डवातोद्‌धुतान् मेघान्‌ निघ्नन् रश्मिमुचो यथा ॥ ४३ ॥

मूलम्

प्रत्युद्ययुस्तं त्वरिताः पञ्चाला जयगृद्धिनः ॥ ४२ ॥
तान् द्रोणः प्रतिजग्राह परीप्सन् कुरुसत्तमम्।
चण्डवातोद्‌धुतान् मेघान्‌ निघ्नन् रश्मिमुचो यथा ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख विजयाभिलाषी पांचाल सैनिक तुरंत ही उसका सामना करनेके लिये आगे बढ़े; परंतु कुरुश्रेष्ठ दुर्योधनकी रक्षाके लिये द्रोणाचार्यने उन सबको उसी तरह नष्ट कर दिया, जैसे प्रचण्ड वायुद्वारा उठाये हुए मेघोंको सूर्यदेव नष्ट कर देते हैं॥४२-४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो राजन् महानासीत् संग्रामो भूरिवर्धनः।
तावकानां परेषां च समेतानां युयुत्सया ॥ ४४ ॥

मूलम्

ततो राजन् महानासीत् संग्रामो भूरिवर्धनः।
तावकानां परेषां च समेतानां युयुत्सया ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर युद्धकी इच्छासे एकत्र हुए आपके और शत्रुपक्षके सैनिकोंका महान् संग्राम होने लगा, जिसमें बहुसंख्यक प्राणियोंका संहार हुआ॥४४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि घटोत्कचवधपर्वणि रात्रियुद्धे दुर्योधनपराभवे त्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १५३ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत घटोत्कचवधपर्वमें रात्रिकालिक युद्धके प्रसंगमें दुर्योधन-पराजयविषयक एक सौ तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५३॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ७ श्लोक मिलाकर कुल ५१ श्लोक हैं।)