१३६ भीमयुद्धे

भागसूचना

षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेन और कर्णका युद्ध, कर्णका पलायन, धृतराष्ट्रके सात पुत्रोंका वध तथा भीमका पराक्रम

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

तवात्मजांस्तु पतितान् दृष्ट्वा कर्णः प्रतापवान्।
क्रोधेन महताऽऽविष्टो निर्विण्णोऽभूत् स जीवितात् ॥ १ ॥

मूलम्

तवात्मजांस्तु पतितान् दृष्ट्वा कर्णः प्रतापवान्।
क्रोधेन महताऽऽविष्टो निर्विण्णोऽभूत् स जीवितात् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! आपके पुत्रोंको रणभूमिमें गिरा हुआ देख प्रतापी कर्ण अत्यन्त कुपित हो अपने जीवनसे विरक्त हो उठा॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आगस्कृतमिवात्मानं मेने चाधिरथिस्तदा ।
यत्प्रत्यक्षं तव सुता भीमेन निहता रणे ॥ २ ॥

मूलम्

आगस्कृतमिवात्मानं मेने चाधिरथिस्तदा ।
यत्प्रत्यक्षं तव सुता भीमेन निहता रणे ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय अधिरथपुत्र कर्ण अपने-आपको अपराधी-सा मानने लगा; क्योंकि भीमसेनने उसकी आँखोंके सामने रणभूमिमें आपके पुत्रोंको मार डाला था॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनस्ततः क्रुद्धः कर्णस्य निशितान् शरान्।
निचखान स सम्भ्रान्तः पूर्ववैरमनुस्मरन् ॥ ३ ॥

मूलम्

भीमसेनस्ततः क्रुद्धः कर्णस्य निशितान् शरान्।
निचखान स सम्भ्रान्तः पूर्ववैरमनुस्मरन् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर पहलेके वैरका बारंबार स्मरण करके कुपित हुए भीमसेनने कर्णके शरीरमें बड़े वेगसे अपने पैने बाण धँसा दिये॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स भीमं पञ्चभिर्विद्ध्वा राधेयः प्रहसन्निव।
पुनर्विव्याध सप्तत्या स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः ॥ ४ ॥

मूलम्

स भीमं पञ्चभिर्विद्ध्वा राधेयः प्रहसन्निव।
पुनर्विव्याध सप्तत्या स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब राधानन्दन कर्णने हँसते हुए-से पाँच बाण मारकर भीमसेनको घायल कर दिया। फिर शानपर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले सत्तर बाणोंद्वारा उन्हें गहरी चोट पहुँचायी॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अविचिन्त्याथ तान् बाणान् कर्णेनास्तान्‌वृकोदरः।
रणे विव्याध राधेयं शतेनानतपर्वणाम् ॥ ५ ॥

मूलम्

अविचिन्त्याथ तान् बाणान् कर्णेनास्तान्‌वृकोदरः।
रणे विव्याध राधेयं शतेनानतपर्वणाम् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कर्णके चलाये हुए उन बाणोंकी कुछ भी परवा न करके भीमसेनने रणभूमिमें झुकी हुई गाँठवाले सौ बाणोंद्वारा राधापुत्रको घायल कर दिया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनश्च विशिखैस्तीक्ष्णैर्विद्ध्वा मर्मसु पञ्चभिः।
धनुश्चिच्छेद भल्लेन सूतपुत्रस्य मारिष ॥ ६ ॥

मूलम्

पुनश्च विशिखैस्तीक्ष्णैर्विद्ध्वा मर्मसु पञ्चभिः।
धनुश्चिच्छेद भल्लेन सूतपुत्रस्य मारिष ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! फिर पाँच तीखे बाणोंद्वारा सूतपुत्रके मर्मस्थानोंमें चोट पहुँचाकर भीमसेनने एक भल्लद्वारा उसका धनुष काट दिया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यद् धनुरादाय कर्णो भारत दुर्मनाः।
इषुभिश्छादयामास भीमसेनं परंतपः ॥ ७ ॥

मूलम्

अथान्यद् धनुरादाय कर्णो भारत दुर्मनाः।
इषुभिश्छादयामास भीमसेनं परंतपः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब शत्रुओंको संताप देनेवाले कर्णने खिन्न होकर दूसरा धनुष हाथमें ले भीमसेनको अपने बाणोंद्वारा आच्छादित कर दिया॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य भीमो हयान् हत्वा विनिहत्य च सारथिम्।
प्रजहास महाहासं कृते प्रतिकृते पुनः ॥ ८ ॥

मूलम्

तस्य भीमो हयान् हत्वा विनिहत्य च सारथिम्।
प्रजहास महाहासं कृते प्रतिकृते पुनः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनने उसके घोड़ों और सारथिको मारकर उसके प्रहारका बदला चुका लेनेके पश्चात् पुनः बड़े जोरसे अट्टहास किया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इषुभिः कार्मुकं चास्य चकर्त पुरुषर्षभः।
तत् पपात महाराज स्वर्णपृष्ठं महास्वनम् ॥ ९ ॥

मूलम्

इषुभिः कार्मुकं चास्य चकर्त पुरुषर्षभः।
तत् पपात महाराज स्वर्णपृष्ठं महास्वनम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! पुरुषशिरोमणि भीमने अपने बाणोंद्वारा कर्णका धनुष भी फिर काट दिया। स्वर्णमय पृष्ठभागसे युक्त और गम्भीर टंकार करनेवाला उसका वह धनुष पृथ्वीपर गिर पड़ा॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवारोहद् रथात् तस्मादथ कर्णो महारथः।
गदां गृहीत्वा समरे भीमाय प्राहिणोद् रुषा ॥ १० ॥

मूलम्

अवारोहद् रथात् तस्मादथ कर्णो महारथः।
गदां गृहीत्वा समरे भीमाय प्राहिणोद् रुषा ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महारथी कर्ण उस रथसे उतर गया और गदा लेकर उसने समरभूमिमें भीमसेनपर रोषपूर्वक चला दी॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तामापतन्तीमालक्ष्य भीमसेनो महागदाम् ।
शरैरवारयद् राजन् सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ ११ ॥

मूलम्

तामापतन्तीमालक्ष्य भीमसेनो महागदाम् ।
शरैरवारयद् राजन् सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस विशाल गदाको अपने ऊपर आती देख भीमसेनने सब सेनाओंके देखते-देखते बाणोंद्वारा उसका निवारण कर दिया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो बाणसहस्राणि प्रेषयामास पाण्डवः।
सूतपुत्रवधाकाङ्क्षी त्वरमाणः पराक्रमी ॥ १२ ॥

मूलम्

ततो बाणसहस्राणि प्रेषयामास पाण्डवः।
सूतपुत्रवधाकाङ्क्षी त्वरमाणः पराक्रमी ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब सूतपुत्रके वधकी इच्छावाले पराक्रमी पाण्डुपुत्र भीमसेनने बड़ी उतावलीके साथ एक हजार बाण चलाये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तानिषूनिषुभिः कर्णो वारयित्वा महामृधे।
कवचं भीमसेनस्य पाटयामास सायकैः ॥ १३ ॥

मूलम्

तानिषूनिषुभिः कर्णो वारयित्वा महामृधे।
कवचं भीमसेनस्य पाटयामास सायकैः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु कर्णने उस महासमरमें अपने बाणोंद्वारा उन सभी बाणोंका निवारण करके भीमसेनके कवचको बाणोंसे छिन्न-भिन्न कर दिया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथैनं पञ्चविंशत्या नाराचानां समार्पयत्।
पश्यतां सर्वसैन्यानां तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १४ ॥

मूलम्

अथैनं पञ्चविंशत्या नाराचानां समार्पयत्।
पश्यतां सर्वसैन्यानां तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर उसने सब सेनाओंके देखते-देखते भीमसेनपर पचीस नाराचोंका प्रहार किया। वह अद्भुत-सी बात हुई॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीमो महाबाहुर्नवभिर्नतपर्वभिः ।
प्रेषयामास संक्रुद्धः सूतपुत्रस्य मारिष ॥ १५ ॥

मूलम्

ततो भीमो महाबाहुर्नवभिर्नतपर्वभिः ।
प्रेषयामास संक्रुद्धः सूतपुत्रस्य मारिष ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! तब अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए महाबाहु भीमसेनने सूतपुत्रको झुकी हुई गाँठवाले नौ बाण मारे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तस्य कवचं भित्त्वा तथा बाहुं च दक्षिणम्।
अभ्ययुर्धरणीं तीक्ष्णा वल्मीकमिव पन्नगाः ॥ १६ ॥

मूलम्

ते तस्य कवचं भित्त्वा तथा बाहुं च दक्षिणम्।
अभ्ययुर्धरणीं तीक्ष्णा वल्मीकमिव पन्नगाः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे तीखे बाण कर्णके कवच तथा दाहिनी भुजाको विदीर्ण करके बाँबीमें घुसनेवाले सर्पोंके समान धरतीमें समा गये॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स च्छाद्यमानो बाणौघैर्भीमसेनधनुश्च्युतैः ।
पुनरेवाभवत् कर्णो भीमसेनात् पराङ्‌मुखः ॥ १७ ॥

मूलम्

स च्छाद्यमानो बाणौघैर्भीमसेनधनुश्च्युतैः ।
पुनरेवाभवत् कर्णो भीमसेनात् पराङ्‌मुखः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनके धनुषसे छूटे हुए बाणसमूहोंसे आच्छादित होकर कर्ण पुनः भीमसेनसे विमुख हो गया (उन्हें पीठ दिखाकर भाग चला)॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं पराङ्‌मुखमालोक्य पदातिं सूतनन्दनम्।
कौन्तेयशरसंछन्नं राजा दुर्योधनोऽब्रवीत् ॥ १८ ॥

मूलम्

तं पराङ्‌मुखमालोक्य पदातिं सूतनन्दनम्।
कौन्तेयशरसंछन्नं राजा दुर्योधनोऽब्रवीत् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूतपुत्र कर्णको युद्धसे विमुख, पैदल तथा भीमसेनके बाणोंसे आच्छादित देखकर राजा दुर्योधन अपने सैनिकोंसे बोला—॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वरध्वं सर्वतो यत्ता राधेयस्य रथं प्रति।
ततस्तव सुता राजन् श्रुत्वा भ्रातुर्वचो द्रुतम् ॥ १९ ॥
अभ्ययुः पाण्डवं युद्धे विसृजन्तः शिलीमुखान्।

मूलम्

त्वरध्वं सर्वतो यत्ता राधेयस्य रथं प्रति।
ततस्तव सुता राजन् श्रुत्वा भ्रातुर्वचो द्रुतम् ॥ १९ ॥
अभ्ययुः पाण्डवं युद्धे विसृजन्तः शिलीमुखान्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘वीरो! सब ओरसे राधानन्दन कर्णके रथकी ओर शीघ्र आओ और उसकी रक्षाका प्रबन्ध करो।’ राजन्! तब भाईकी यह बात सुनकर आपके पुत्र शीघ्रतापूर्वक युद्धमें पाण्डुपुत्र भीमपर बाणोंकी वर्षा करते हुए आ पहुँचे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रोपचित्रश्चित्राक्षश्चारुचित्रः शरासनः ॥ २० ॥
चित्रायुधश्चित्रवर्मा समरे चित्रयोधिनः ।

मूलम्

चित्रोपचित्रश्चित्राक्षश्चारुचित्रः शरासनः ॥ २० ॥
चित्रायुधश्चित्रवर्मा समरे चित्रयोधिनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

उनके नाम इस प्रकार हैं—चित्र, उपचित्र, चित्राक्ष, चारुचित्र, शरासन, चित्रायुध और चित्रवर्मा। ये सब-के-सब समरभूमिमें विचित्र रीतिसे युद्ध करनेवाले थे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तानापतत एवाशु भीमसेनो महारथः ॥ २१ ॥
एकैकेन शरेणाजौ पातयामास ते सुतान्।
ते हता न्यपतन् भूमौ वातरुग्णा इव द्रुमाः ॥ २२ ॥

मूलम्

तानापतत एवाशु भीमसेनो महारथः ॥ २१ ॥
एकैकेन शरेणाजौ पातयामास ते सुतान्।
ते हता न्यपतन् भूमौ वातरुग्णा इव द्रुमाः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महारथी भीमसेनने उनके आते ही शीघ्रतापूर्वक एक-एक बाण मारकर आपके सभी पुत्रोंको युद्धमें धराशायी कर दिया। वे मारे जाकर आँधीके उखाड़े हुए वृक्षोंके समान पृथ्वीपर गिर पड़े॥२१-२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा विनिहतान् पुत्रांस्तव राजन्‌महारथान्।
अश्रुपूर्णमुखः कर्णः क्षत्तुः सस्मार तद् वचः ॥ २३ ॥

मूलम्

दृष्ट्वा विनिहतान् पुत्रांस्तव राजन्‌महारथान्।
अश्रुपूर्णमुखः कर्णः क्षत्तुः सस्मार तद् वचः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! आपके महारथी पुत्रोंको इस प्रकार मारा गया देख कर्णके मुखपर आँसुओंकी धारा बह चली। उस समय उसे विदुरजीकी कही हुई बात याद आयी॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथं चान्यं समास्थाय विधिवत् कल्पितं पुनः।
अभ्ययात् पाण्डवं युद्धे त्वरमाणः पराक्रमी ॥ २४ ॥

मूलम्

रथं चान्यं समास्थाय विधिवत् कल्पितं पुनः।
अभ्ययात् पाण्डवं युद्धे त्वरमाणः पराक्रमी ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर उस पराक्रमी वीरने विधिपूर्वक सजाये हुए दूसरे रथपर बैठकर युद्धमें शीघ्रतापूर्वक पाण्डुपुत्र भीमसेनपर धावा किया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावन्योन्यं शरैर्भित्त्वा स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः।
व्यभ्राजेतां यथा मेघौ संस्यूतौ सूर्यरश्मिभिः ॥ २५ ॥

मूलम्

तावन्योन्यं शरैर्भित्त्वा स्वर्णपुङ्खैः शिलाशितैः।
व्यभ्राजेतां यथा मेघौ संस्यूतौ सूर्यरश्मिभिः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों एक-दूसरेको शिलापर तेज किये हुए सुवर्णपंखयुक्त बाणोंद्वारा क्षत-विक्षत करके सूर्यकी किरणोंमें पिरोये हुए बादलोंके समान सुशोभित होने लगे॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

षट्त्रिंशद्भिस्ततो भल्लैर्निशितैस्तिग्मतेजनैः ।
व्यधमत् कवचं क्रुद्धः सूतपुत्रस्य पाण्डवः ॥ २६ ॥

मूलम्

षट्त्रिंशद्भिस्ततो भल्लैर्निशितैस्तिग्मतेजनैः ।
व्यधमत् कवचं क्रुद्धः सूतपुत्रस्य पाण्डवः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् क्रोधमें भरे हुए भीमसेनने प्रचण्ड तेजवाले छत्तीस तीखे भल्लोंका प्रहार करके सूतपुत्रके कवचकी धज्जियाँ उड़ा दीं॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सूतपुत्रोऽपि कौन्तेयं शरैः संनतपर्वभिः।
पञ्चाशता महाबाहुर्विव्याध भरतर्षभ ॥ २७ ॥

मूलम्

सूतपुत्रोऽपि कौन्तेयं शरैः संनतपर्वभिः।
पञ्चाशता महाबाहुर्विव्याध भरतर्षभ ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! फिर महाबाहु सूतपुत्रने भी कुन्तीकुमार भीमसेनको झुकी हुई गाँठवाले पचास बाणोंसे बींध डाला॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्तचन्दनदिग्धाङ्गौ शरैः कृतमहाव्रणौ ।
शोणिताक्तौ व्यराजेतां चन्द्रसूर्याविवोदितौ ॥ २८ ॥

मूलम्

रक्तचन्दनदिग्धाङ्गौ शरैः कृतमहाव्रणौ ।
शोणिताक्तौ व्यराजेतां चन्द्रसूर्याविवोदितौ ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंने अपने शरीरमें लाल चन्दन लगा रखे थे। इसके सिवा उनके शरीरमें बाणोंके आघातसे बड़े-बड़े घाव हो गये थे। इस प्रकार खूनसे लथपथ हुए वे दोनों योद्धा उदयकालीन सूर्य और चन्द्रमाके समान शोभा पा रहे थे॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ शोणितोक्षितैर्गात्रैः शरैश्छिन्नतनुच्छदौ ।
कर्णभीमौ व्यराजेतां निर्मुक्ताविव पन्नगौ ॥ २९ ॥
व्याघ्राविव नरव्याघ्रौ दंष्ट्राभिरितरेतरम् ।
शरधारासृजौ वीरौ मेघाविव ववर्षतुः ॥ ३० ॥

मूलम्

तौ शोणितोक्षितैर्गात्रैः शरैश्छिन्नतनुच्छदौ ।
कर्णभीमौ व्यराजेतां निर्मुक्ताविव पन्नगौ ॥ २९ ॥
व्याघ्राविव नरव्याघ्रौ दंष्ट्राभिरितरेतरम् ।
शरधारासृजौ वीरौ मेघाविव ववर्षतुः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बाणोंद्वारा उन दोनोंके कवच कट गये थे और सारे अंग रक्तसे भींग गये थे। उस दशामें वे कर्ण और भीमसेन केंचुल छोड़कर निकले हुए दो सर्पोंके समान शोभा पाने लगे। जैसे दो व्याघ्र अपनी दाढ़ोंसे एक-दूसरेपर चोट करते हैं, उसी प्रकार वे दोनों पुरुषव्याघ्र योद्धा परस्पर प्रहार कर रहे थे। वे दोनों वीर दो मेघोंके समान बाणधाराकी वर्षा कर रहे थे॥२९-३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वारणाविव चान्योन्यं विषाणाभ्यामरिंदमौ ।
निर्भिन्दन्तौ स्वगात्राणि सायकैश्चारु रेजतुः ॥ ३१ ॥

मूलम्

वारणाविव चान्योन्यं विषाणाभ्यामरिंदमौ ।
निर्भिन्दन्तौ स्वगात्राणि सायकैश्चारु रेजतुः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे दो हाथी अपने दाँतोंसे एक-दूसरेपर आघात करते हैं, उसी प्रकार वे शत्रुदमन वीर अपने बाणोंद्वारा एक-दूसरेके शरीरोंको विदीर्ण करते हुए सुशोभित हो रहे थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नादयन्तौ प्रहर्षन्तौ विक्रीडन्तौ परस्परम्।
मण्डलानि विकुर्वाणौ रथाभ्यां रथसत्तमौ ॥ ३२ ॥

मूलम्

नादयन्तौ प्रहर्षन्तौ विक्रीडन्तौ परस्परम्।
मण्डलानि विकुर्वाणौ रथाभ्यां रथसत्तमौ ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंमें श्रेष्ठ भीम और कर्ण सिंहनाद करते, अत्यन्त हर्षसे उत्फुल्ल हो उठते और आपसमें खेल-सा करते हुए रथोंद्वारा मण्डलगतिसे विचरते थे॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वृषाविवाथ नर्दन्तौ बलिनौ वासितान्तरे।
सिंहाविव पराक्रान्तौ नरसिंहौ महाबलौ ॥ ३३ ॥
परस्परं वीक्षमाणौ क्रोधसंरक्तलोचनौ ।
युयुधाते महावीर्यौ शक्रवैरोचनी यथा ॥ ३४ ॥

मूलम्

वृषाविवाथ नर्दन्तौ बलिनौ वासितान्तरे।
सिंहाविव पराक्रान्तौ नरसिंहौ महाबलौ ॥ ३३ ॥
परस्परं वीक्षमाणौ क्रोधसंरक्तलोचनौ ।
युयुधाते महावीर्यौ शक्रवैरोचनी यथा ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे गायके लिये दो बलवान् साँड़ गरजते हुए लड़ जाते हैं, उसी प्रकार वे सिंहके समान पराक्रमी महान् बलशाली पुरुषसिंह कर्ण और भीम क्रोधसे लाल आँखें करके एक-दूसरेको देखते हुए महापराक्रमी इन्द्र और बलिके समान युद्ध कर रहे थे॥३३-३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीमो महाबाहुर्बाहुभ्यां विक्षिपन् धनुः।
व्यराजत रणे राजन्सविद्युदिव तोयदः ॥ ३५ ॥

मूलम्

ततो भीमो महाबाहुर्बाहुभ्यां विक्षिपन् धनुः।
व्यराजत रणे राजन्सविद्युदिव तोयदः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस रणक्षेत्रमें महाबाहु भीमसेन अपनी भुजाओंसे धनुषकी टंकार करते हुए बिजलीसहित मेघके समान शोभा पा रहे थे॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स नेमिघोषस्तनितश्चापविद्युच्छराम्बुभिः ।
भीमसेनमहामेघः कर्णपर्वतमावृणोत् ॥ ३६ ॥

मूलम्

स नेमिघोषस्तनितश्चापविद्युच्छराम्बुभिः ।
भीमसेनमहामेघः कर्णपर्वतमावृणोत् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथके पहियोंकी घरघराहट जिसकी गम्भीर गर्जना थी और धनुष ही विद्युत्‌के समान प्रकाशित होता था, भीमसेनरूपी उस महामेघने बाणरूपी जलकी वर्षासे कर्णरूपी पर्वतको ढक दिया॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शरसहस्रेण सम्यगस्तेन भारत।
पाण्डवो व्यकिरत् कर्णं भीमो भीमपराक्रमः ॥ ३७ ॥

मूलम्

ततः शरसहस्रेण सम्यगस्तेन भारत।
पाण्डवो व्यकिरत् कर्णं भीमो भीमपराक्रमः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! तदनन्तर अच्छी तरह चलाये हुए सहस्रों बाणोंसे भयंकर पराक्रमी पाण्डुपुत्र भीमने कर्णको आच्छादित कर दिया॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्रापश्यंस्तव सुता भीमसेनस्य विक्रमम्।
सुपुङ्खैः कङ्कवासोभिर्यत् कर्णं छादयच्छरैः ॥ ३८ ॥

मूलम्

तत्रापश्यंस्तव सुता भीमसेनस्य विक्रमम्।
सुपुङ्खैः कङ्कवासोभिर्यत् कर्णं छादयच्छरैः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्रोंने वहाँ भीमसेनका यह अद्भुत पराक्रम देखा कि उन्होंने कंकपत्रयुक्त सुन्दर पंखवाले बाणोंसे कर्णको आच्छादित कर दिया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स नन्दयन् रणे पार्थं केशवं च यशस्विनम्।
सात्यकिं चक्ररक्षौ च भीमः कर्णमयोधयत् ॥ ३९ ॥

मूलम्

स नन्दयन् रणे पार्थं केशवं च यशस्विनम्।
सात्यकिं चक्ररक्षौ च भीमः कर्णमयोधयत् ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेन रणक्षेत्रमें कुन्तीकुमार अर्जुन, यशस्वी श्रीकृष्ण, सात्यकि तथा दोनों चक्ररक्षक युधामन्यु एवं उत्तमौजाको आनन्दित करते हुए कर्णके साथ युद्ध कर रहे थे॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विक्रमं भुजयोर्वीर्यं धैर्यं च विदितात्मनः।
पुत्रास्तव महाराज दृष्ट्वा विमनसोऽभवन् ॥ ४० ॥

मूलम्

विक्रमं भुजयोर्वीर्यं धैर्यं च विदितात्मनः।
पुत्रास्तव महाराज दृष्ट्वा विमनसोऽभवन् ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! सुविख्यात भीमसेनके पराक्रम, बाहुबल और धैर्यको देखकर आपके सभी पुत्र उदास हो गये॥४०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि भीमयुद्धे षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १३६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें भीमसेनका युद्धविषयक एक सौ छत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१३६॥